काबुल पर तालिबान के कब्जे के लगभग तीन माह बाद, भारत ने अफगानिस्तान पर "क्षेत्रीय सुरक्षा वार्ता" के लिए 10 नवंबर को नई दिल्ली में सात देशों के राष्ट्रीय सुरक्षा परिषदों के प्रमुखों की एक बैठक बुलाई थी। इस संबंध में यह तीसरी बैठक थी और इससे पहले की दो बैठकों की मेजबानी ईरान ने की थी। यह अभ्यास इस आम सहमति को दोहराने के लिए था कि अफगानिस्तान से अमेरिका और नाटो की सेनाओं की वापसी के बाद, क्षेत्र के देशों को अफगानिस्तान में संकट से निपटने के लिए एकजुट होने की आवश्यकता है।
राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार स्तरीय बैठक के तीसरे अध्याय की अध्यक्षता भारतीय राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल ने की और इसमें रूस, ईरान और पांच मध्य एशियाई देशों नामत: कजाकिस्तान, ताजिकिस्तान, किर्गिस्तान, तुर्कमेनिस्तान और उजबेकिस्तान के प्रतिनिधियों ने भाग लिया। बैठक के महत्वपूर्ण एजेंडे में से एक अफगानिस्तान में उभरती स्थिति और वहां के घटनाक्रम से उत्पन्न सुरक्षा खतरों से निपटने के तरीके पर चर्चा करना था। अफगानिस्तान के निकट पड़ोसियों, पाकिस्तान और चीन को भी भारत ने परामर्श में भाग लेने के लिए आमंत्रित किया गया था, लेकिन दोनों देश शामिल नहीं हुए।
बैठक में[i] भारत ने अफगानिस्तान के पड़ोसियों के लिए सुरक्षा चुनौतियों पर ध्यान केंद्रित किया, ईरान ने सीमा पार प्रवास और अफगान शरणार्थियों और इससे निपटने के लिए अफगानिस्तान में एक समावेशी सरकार की आवश्यकता के मुद्दों को उठाया। कजाकिस्तान ने बिगड़ती सुरक्षा स्थिति पर प्रकाश डाला, ताजिकिस्तान ने सीमा पार आतंकवाद और मादक पदार्थों की तस्करी का उल्लेख किया जबकि किर्गिस्तान ने अफगानिस्तान में आतंकवादी समूहों के पुनरुत्थान की ओर इशारा किया। रूस, उज्बेकिस्तान और तुर्कमेनिस्तान ने देश में शांति बहाल करने के लिए संयुक्त प्रयासों का आह्वान किया।
अपनी टिप्पणी में, भारत के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार ने कहा कि इस क्षेत्र के सभी देश अफगानिस्तान के घटनाक्रम पर ध्यान दे रहे हैं क्योंकि इन घटनाक्रमों का न केवल अफगानिस्तान बल्कि उसके पड़ोसियों और बड़े पैमाने पर क्षेत्र पर भी महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ रहा है। राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार डोभाल ने जोर देकर कहा कि "यह क्षेत्र के देशों के बीच गहरे परामर्श, अधिक सहयोग, बातचीत और समन्वय का समय है।"[ii] प्रमुख हितधारकों ने क्षेत्रीय देशों तक भारत की पहुंच का स्वागत किया। भारत के नेतृत्व वाली वार्ता में रूस, ईरान और मध्य एशियाई देशों की भागीदारी को इस महत्वपूर्ण मुद्दे पर नई दिल्ली के वैध हितों और नेतृत्व की भूमिका की स्वीकृति के रूप में देखा जा सकता है।
वार्ता के बाद भारत के साथ द्विपक्षीय बैठकें हुईं और तत्पश्चात भाग लेने वाले देशों के प्रतिनिधिमंडल के नेताओं ने वार्ता समाप्त होने के बाद एकसाथ प्रधान मंत्री मोदी से मुलाकात की। प्रधान मंत्री के साथ बैठक के दौरान उन्होंने अफगानिस्तान की स्थिति पर अपने-अपने देशों के दृष्टिकोण प्रस्तुत किए।[iii] सात देशों के वरिष्ठ सुरक्षा अधिकारियों ने प्रधान मंत्री को अपनी टिप्पणियों में भी वार्ता के आयोजन में भारत की पहल की सराहना की और आदान-प्रदान की गुणवत्ता पर संतोष व्यक्त किया।
अफगानिस्तान पर दिल्ली घोषणा
बैठकों के बाद, "अफगानिस्तान पर दिल्ली घोषणा" नामक एक महत्वपूर्ण संयुक्त वक्तव्य जारी किया गया जिसमें कहा गया कि बैठक के प्रतिभागियों ने अफगानिस्तान में वर्तमान राजनीतिक स्थिति और आतंकवाद, कट्टरता, मादक पदार्थों की तस्करी से उत्पन्न खतरों सहित मानवीय सहायता की आवश्यकता पर विशेष ध्यान दिया।[iv]
दिल्ली घोषणा में उल्लिखित कुछ प्रमुख बिंदु इस प्रकार हैं: पहला, अफगानिस्तान के भू-क्षेत्र का उपयोग किसी भी तरह की आतंकवादी गतिविधियों को शरण देने, प्रशिक्षण देने, योजना बनाने या वित्तपोषण के लिए नहीं किया जाना चाहिए। दूसरा, इस क्षेत्र में कट्टरपंथ, उग्रवाद, अलगाववाद और मादक पदार्थों की तस्करी के खतरे के खिलाफ सहयोग होना चाहिए। तीसरा, एक खुली और वास्तव में समावेशी सरकार होनी चाहिए जो अफगानिस्तान के लोगों की आकांक्षाओं का प्रतिनिधित्व करे। चौथा, अफगानिस्तान में संयुक्त राष्ट्र की एक केंद्रीय भूमिका है, इसकी निरंतर उपस्थिति को संरक्षित किया जाना चाहिए और अंत में, यह सुनिश्चित करना चाहिए कि महिलाओं, बच्चों और अल्पसंख्यक समुदायों के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन न हो।
वक्तव्य में अफगानिस्तान में बिगड़ती सामाजिक-आर्थिक और मानवीय स्थिति पर भी चिंता व्यक्त की गई और अफगानिस्तान के नागरिकों को तत्काल मानवीय सहायता प्रदान करने की आवश्यकता पर बल दिया गया। जब से तालिबान ने अफगानिस्तान में सत्ता पर कब्जा किया है, तबसे युद्धग्रस्त देश एक ओर राजनीतिक उथल-पुथल से जूझ रहा है और दूसरी ओर गंभीर आर्थिक संकट और बढ़ती खाद्य कमी से जूझ रहा है। विदेशी ताकतों और कई अंतरराष्ट्रीय प्रदाताओं के जाने से देश के पास अनुदान उपलब्ध नहीं है जो सार्वजनिक व्यय के तीन चौथाई हिस्से का वित्तपोषित करता है। केंद्रीय बैंक के भंडार में लगभग 9.5 बिलियन डॉलर देश के बाहर रुके हुए हैं और पिछली सरकार को दिया गया अंतर्राष्ट्रीय सहयोग स्माप्त हो गया है।[v] अक्टूबर में अफगानिस्तान में विश्व खाद्य कार्यक्रम की प्रमुख मैरी-एलेन मैकग्रोथी ने कहा कि 8.7 मिलियन लोग "भुखमरी से एक कदम दूर" हैं।[vi] गंभीर सूखे और कोरोनावायरस महामारी ने केवल अफगानिस्तान के लोगों की पीड़ा को बढ़ाया है और लाखों लोगों को अत्यधिक भुखमरी का सामना करना पड़ा रहा है। इसके अतिरिक्त, हाल ही में इस्लामिक स्टेट ऑफ खुरासान प्रांत द्वारा कुंदुज और कंधार जैसे प्रांतों में किए गए बम विस्फोटों और लक्षित हमलों, जिसमें सैकड़ों अफगान मारे गए, ने पहले से ही भूख और अभाव से जूझ रहे आम अफगानों के दुखों को और अधिक बढ़ा दिया है।
अफगानिस्तान में सामने आ रही मानवीय आपदा के समाधान के लिए, जी20 देशों के समूह और कतर ने अक्टूबर में अफगानिस्तान पर एक 'असाधारण नेताओं' की बैठक आयोजित की।[vii] भारत, अन्य देशों के साथ, इस कठिन समय में अफगान लोगों की मदद करने के लिए सहायता प्रदान करने पर सहमत हुआ है। हालांकि, अंतरराष्ट्रीय समुदाय के लिए चिंता का एक महत्वपूर्ण विषय यह था कि तालिबान सरकार, जिसे अंतर्राष्ट्रीय समुदाय ने मान्यता नहीं दी है, के साथ समन्वय के बिना (या सीमित) अफगान लोगों को सहायता कैसे पहुंचाई जाए।
निष्कर्षत:, यह कहा जा सकता है कि पश्चिम के विपरीत, क्षेत्रीय देशों के पास इस क्षेत्र से बाहर जाने का विकल्प नहीं है और इसलिए अत्यधिक अस्थिर अफगानिस्तान से निपटने के लिए कोई तरीका खोजना होगा। अफगानिस्तान पर दिल्ली घोषणा निस्संदेह अफगानिस्तान में संकट के लिए एक समन्वित क्षेत्रीय प्रतिक्रिया सहित आने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। यह इसलिए भी महत्वपूर्ण था क्योंकि इसने यह संकेत दिया है कि नई दिल्ली महत्वपूर्ण क्षेत्रीय देशों के साथ अपनी अफगानिस्तान नीति का समन्वय करने के लिए तैयार है, जबकि इस मुद्दे पर एक प्रमुख वार्ताकार के रूप में अपनी भूमिका पर जोर देता है। निस्संदेह, तीसरे क्षेत्रीय सुरक्षा संवाद के संयुक्त वक्तव्य में जिन बिंदुओं पर प्रकाश डाला गया है, वे अत्यंत महत्वपूर्ण और प्रासंगिक हैं, लेकिन मुख्य चुनौती प्रतिज्ञाओं को व्यवहार में लाना होगा। पाकिस्तान जैसे विरोधियों के साथ, अफगानिस्तान पर एक समन्वित और सामंजस्यपूर्ण क्षेत्रीय दृष्टिकोण के लिए आगे की राह कठिन होने की संभावना है।
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*डॉ. अन्वेषा घोष, अध्येता, भारतीय वैश्विक परिषद, नई दिल्ली।.
अस्वीकरण: व्यक्त विचार व्यक्तिगत हैं
डिस्क्लेमर: इस अनुवादित लेख में यदि किसी प्रकार की त्रुटी पाई जाती है तो पाठक अंग्रेजी में लिखे मूल लेख को ही मान्य माने ।
पाद-टिप्पणियां
[i] “NSA-Level Meet on Afghanistan to be held in India | Afghan Crisis | International News | Taliban”. Wion, November 10, 2021. Available at:https://www.youtube.com/watch?v=1QWlnvDGd9w&t=134s (Accessed on 10.11.2021)
[ii] Ibid.
[iii] “Joint Call on Prime Minister by National Security Advisers / Secretaries of Security Councils attending the "Delhi Regional Security Dialogue on Afghanistan”, Press Release, Ministry of External Affairs, Govt. of India, Nov 10.2021. Available at:https://www.mea.gov.in/press-releases.htm?dtl/34496/Joint_Call_on_Prime_Minister_by_National_Security_Advisers__Secretaries_of_Security_Councils_attending_the_Delhi_Regional_Security_Dialogue_on_Afghani(Accessed on 10.11.2021)
[iv] “Delhi Declaration on Afghanistan: Statement”. DDNews Twitter Handle @DDNewslive, November 10, 2021. Available at: https://twitter.com/DDNewslive/status/1458360221701599234?ref_src=twsrc%5Egoogle%7Ctwcamp%5Eserp%7Ctwgr%5Etweet (Accessed on 11.11.2021)
[v] “Afghanistan: People struggle to make ends meet amid economic turmoil”. Deutsche Welle, November 8, 2021. Available at: https://www.dw.com/en/afghanistan-people-struggle-to-make-ends-meet-amid-economic-turmoil/a-59756824
[vi] Ibid
[vii]G20 agrees aid to avert Afghanistan humanitarian crisis”, Al Jazeera, Oct13, 2021. Available at: https://www.aljazeera.com/news/2021/10/13/g20-agrees-aid-to-avert-afghanistan-humanitarian-crisis(Accessed on 11.10.2021)