जून के अंतिम सप्ताह में, दो दिलचस्प घटनाक्रम हुए, जिन्होंने भारत की साइबर सुरक्षा पर ध्यान देने की आवश्यकता को रेखांकित किया। 28 जून को, लंदन स्थित एक प्रभावशाली थिंक-टैंक इंटरनेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ स्ट्रैटेजिक स्टडीज (आईआईएसएस) ने 'साइबर क्षमता एवं राष्ट्रीय शक्ति' पर एक रिपोर्ट जारी की, जिसमें भारत समेत 15 देशों की साइबर क्षमताओं का आकलन किया गया है। 29 जून को, भारत के विदेश सचिव (एफएस) हर्षवर्धन श्रृंगला ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (यूएनएससी) में 'अंतर्राष्ट्रीय शांति एवं सुरक्षा का अनुरक्षण: साइबर सुरक्षा' विषय पर खुली बहस को संबोधित किया, जो इस रिपोर्ट से संबंधित तो नहीं है, लेकिन दोनों का विषय एक है। अगर हम इसपर एक साथ बात करें तो, ये दोनों घटनाक्रम साइबर सुरक्षा और साइबर क्षमताओं के प्रति भारत के दृष्टिकोण पर प्रकाश डालने का एक अवसर प्रदान करते हैं।
विगत कुछ सालों में, राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़ी सभी बहसों में साइबर सुरक्षा का विषय शामिल रहा है। साइबर क्षमता को अब राष्ट्रीय शक्ति का एक घटक माना जाता है। देश अपने नागरिकों को आवश्यक सेवाएं देने, विरोधियों की डिजिटल अवसंरचना पर हमला करने, खुफिया जानकारी एकत्र करने और आर्थिक लाभ हेतु व्यापार से जुड़ी जानकारी और तकनीक की चोरी करने सहित कई उद्देश्यों के लिए इन क्षमताओं को विकसित करते हैं।[1] आर्थिक नुकसान पहुंचाने के साथ-साथ विरोधियों को संदेश भेजने हेतु कुछ गोपनीय लोगों की संभावित भागीदारी और/या समर्थन से इस तरह के साइबर हमले किए जाते हैं। साइबर हमले की बात को नकारना आसान है और इसकी लागत कम है, इस वजह से सुरक्षा एजेंसियां इसे विशेष साधन मानती हैं।
कोविड -19 महामारी और डिजिटल माध्यम से अपने घरों से काम करने वाले लोगों की संख्या बढ़ने की वजह से साइबर हमलों और साइबर स्पेस में आपराधिक गतिविधियों में वृद्धि हुई है। कई कंपनियों को निशाना बनाया जा रहा है और फिरौती मांगी जा रही है, और साथ ही पावर ग्रिड व पाइपलाइनों जैसे राष्ट्रीय अवसंरचना पर ऐसे हमले होना लाजिमी हैं।[2] दुनिया भर के सुरक्षा संगठन आतंकवादी समूहों द्वारा साइबर क्षमता के संभावित इस्तेमाल से निपटने की समस्या से जूझ रहे हैं। पहले भी हमने देखा है कि, इस्लामिक स्टेट ऑफ इराक एंड सीरिया (आईएसआईएस) ने अपना संदेश फैलाने और युवाओं को आकर्षित करने हेतु साइबर स्पेस का इस्तेमाल किया था। यह सुनिश्चित करने के लिए, साइबर क्षमताओं के सैन्य अनुप्रयोग और डिजिटल सिस्टम को बाधित करके अधिक प्रभाव डालने की आक्रामक क्षमता की वजह से उपजे जटिल रणनीतिक माहौल ने राष्ट्रीय सुरक्षा के योजनाकारों के समक्ष एक गंभीर समस्या पैदा की है। आने वाले समय में, साइबरस्पेस का महत्व बढ़ना तय है और इसलिए, साइबर स्पेस को सुरक्षित बनाने के लिए इंटरनेट गवर्नेंस के मुद्दे, जवाबदेही तय करना, मानदंड तय करना और एक व्यापक ढांचा तैयार करना जरुरी है। इस संबंध में यूएनएससी में विदेश सचिव (एफएस) का संबोधन बेहद अहम है, क्योंकि यह साइबर सुरक्षा के लिए भारत के दृष्टिकोण की व्यापक रूपरेखा को रेखांकित करता है।
संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में "अंतर्राष्ट्रीय शांति और सुरक्षा का अनुरक्षण : साइबर सुरक्षा" पर खुली चर्चा
संबोधन की शुरुआत यह मानते हुए हुई कि 'संघर्ष की प्रकृति और इसके अंतर्निहित साधन पिछले कई दशकों में काफी बदल गए हैं।'[3] दुनिया अब 'सदस्य देशों के लिए साइबरस्पेस से उत्पन्न होने वाले बढ़ते सुरक्षा खतरों को देख रही है।' ऐसे में 'यह खुली चर्चा का काफी सामयिक महत्व है।'[4] विदेश सचिव ने कहा कि, 'साइबरस्पेस की असीमित प्रकृति, और इससे भी ज्यादा महत्वपूर्ण रूप से इसपर सक्रिय लोगों की पहचान गुमनाम रहने की प्रवृति ने संप्रभुता, अधिकार क्षेत्र और गोपनीयता की पारंपरिक रूप से स्वीकृत अवधारणाओं को चुनौती दी है' और 'खुले समाज विशेष रूप से साइबर हमलों और दुष्प्रचार अभियानों के प्रति संवेदनशील रहे हैं।'[5] अमेरिकी चुनावों में रूस का कथित हस्तक्षेप ऐसे हमलों और दुष्प्रचार अभियानों का एक उदाहरण हैं।[6] साइबरस्पेस की ये अनूठी विशेषताएं सदस्य देशों के लिए अपनी तरह की अलग चुनौतियां पेश करती हैं, विशेष रूप से ऐसे खुले समाजों में, जहां गोपनीयता, खुलेपन व सुरक्षा के बीच संतुलन बनाने की कोई सरल प्रक्रिया नहीं है।
संबोधन में 'कुछ राज्यों' को संदर्भित किया गया जो 'अपने राजनीतिक और सुरक्षा संबंधी हितों को साधने और सीमा पार आतंकवाद के नए तौर तरीके अपनाने के लिए साइबर स्पेस में अपनी विशेषज्ञता का लाभ उठा रहे हैं।'[7] इसके अलावा, दुनिया भर में आतंकवादियों द्वारा अपनी विचारधारा का व्यापक स्तर पर प्रचार करने, दुर्भावना फैलाने, घृणा और हिंसा भड़काने, युवाओं को अपने संगठन में शामिल करने और धन जुटाने के लिए साइबर स्पेस का बडी कुशलता के साथ इस्तेमाल देखा जा रहा है।'[8] आतंकवादियों ने 'अपने हमलों की योजना बनाने और उन्हें अंजाम देने और कहर बरपाने के लिए भी सोशल मीडिया का इस्तेमाल किया है।'[9] इसका एक उदाहरण, 2019 का क्राइस्टचर्च आतंकी हमला है, जिसमें हमलावर ने हमले को फेसबुक पर लाइवस्ट्रीम किया।[10] विदेश सचिव ने कहा कि, आतंकवाद का दंश झेल रहे, भारत ने हमेशा ही इस बात पर जोर दिया है कि 'साइबर स्पेस का इस्तेमाल आतंकवादी गतिविधियों के लिए किए जाने और इससे निबटने के लिए प्रभावी रणनीति बनाएं।'[11]
विदेश सचिव ने कहा कि यह 'सुनिश्चित करना अंतरराष्ट्रीय समुदाय के हित में है कि साइबर स्पेस से जुडे सभी पक्ष अपने अंतरराष्ट्रीय दायित्वों और प्रतिबद्धताओं का पालन करें और उन प्रथाओं में शामिल न हों जो वैश्विक आपूर्ति श्रृंखलाओं और आईसीटी [सूचना एवं संचार प्रौद्योगिकी] उत्पादों के व्यापार पर संभावित विघटनकारी प्रभाव डाल सकते हैं।'[12] कोविड -19 के बाद आर्थिक सुधार को गति देने के लिए, साइबर उत्पादों के मामले में वैश्विक आपूर्ति श्रृंखलाओं और व्यापार के निर्बाध प्रवाह को सुनिश्चित करना महत्वपूर्ण है। भारत सेवाओं के निर्यात पर निर्भर है और आईसीटी उत्पाद भारत के सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में एक प्रमुख भूमिका निभाते हैं। इसलिए, यह मुद्दा भारत के लिए बहुत अधिक महत्वपूर्ण है।
साइबरस्पेस की सुरक्षा से जुड़ी समस्याओं के हल पर चर्चा करते हुए, विदेश सचिव ने कहा कि 'साइबर डोमेन की परस्पर संबद्धता को देखते हुए यह जरुरी है कि साइबर स्पेस से उत्पन्न जटिल समस्याओं और खतरों का समाधान अलग-अलग नहीं बल्कि मिलकर किया जाए।'[13] सदस्य देशों के रूप में, 'हमें साइबर स्पेस में परस्पर सहयोग के नियमों पर आधारित दृष्टिकोण अपनाने और इसके खुलेपन, स्थिरता और सुरक्षा को सुनिश्चित करने की दिशा में काम करने की आवश्यकता है।'[14] यह जरुरी है कि 'परस्पर सहमति वाले साइबर मानदंडों और नियमों में सुधार किया जाए।' इन नियमों से 'अंतर्राष्ट्रीय सहयोग के ज़रिए सामूहिक साइबर सुरक्षा सुनिश्चित करने का प्रयास करना चाहिए।'[15] भारत का मानना है कि, बहु-हितधारक भागीदारी इस उद्देश्य को प्राप्त करने में मदद करेगी।[16]
संबोधन में कह गया कि, कोविड के बाद के समय में बढ़ती डिजिटल निर्भरता ने जोखिमों को बढ़ाया है और डिजिटल असमानताओं को उजागर कर दिया है। संबोधन में इस बात पर जोर दिया गया कि देशों के बीच "डिजिटल अंतराल" और "डिजिटल ज्ञान अंतराल" साइबर डोमेन में एक अस्थिर वातावरण बनाते हैं।[17] इन्हें क्षमता निर्माण और सामूहिक प्रयास के जरिए पूरा किया जाना चाहिए। विगत कुछ सालों में, भारत ने 'सतत विकास लक्ष्य के एजेंडे को लागू करने और शासन में सुधार करने के लिए साइबर प्रौद्योगिकियों की जबरदस्त क्षमता का भरपूर लाभ उठाया है।'[18] विदेश सचिव ने साइबर सुरक्षा के मुद्दे पर भारत की स्थिति पर जोर देते हुए अपना संबोधन खत्म किया। संबोधन में कहा गया है कि 'हमारा व्यापक उद्देश्य न केवल अपने देश में बल्कि पूरी मानवता के संदर्भ में साइबर स्पेस का इस्तेमाल लोगों के विकास और सशक्तिकरण के लिए करना है।'[19] इसके लिए, 'भारत एक खुले, सुरक्षित, मुक्त, सुलभ और स्थिर साइबरस्पेस वातावरण के लिए प्रतिबद्ध है, जो नवाचार, आर्थिक विकास, सतत विकास का इंजन बनेगा, सूचना के मुक्त प्रवाह को सुनिश्चित करेगा और सांस्कृतिक और भाषाई विविधता का सम्मान करेगा।'[20]
साइबर सुरक्षा के मुद्दे पर भारतीय स्थिति के संदर्भ में, भारत की साइबर क्षमताओं पर विचार करना दिलचस्प होगा।
साइबर क्षमताओं और राष्ट्रीय शक्ति पर आईआईएसएस रिपोर्ट
आईआईएसएस की रिपोर्ट में सात मापदंडों के आधार पर 15 देशों का आकलन किया गया है। ये 7 मापदंड रणनीति व सिद्धांत, शासन, कमान व नियंत्रण, कोर साइबर-खुफिया क्षमता, साइबर अधिकारिता व निर्भरता, साइबर सुरक्षा व लचीलापन, साइबरस्पेस मामलों में वैश्विक नेतृत्व, आक्रामक साइबर क्षमता हैं।[21] इन मापदंडों के आधार पर, देशों को तीन श्रेणियों में बांटा गया है: टियर वन, इसमें वे देश हैं जिनके पास सभी कार्यक्षेत्रों में 'विश्व-अग्रणी क्षमता' है। संयुक्त राज्य अमेरिका (यूएस) एकमात्र ऐसा देश है जो टियर वन श्रेणी में रखा गया है। टियर टू के देशों वो शामिल हैं, जिनके पास कुछ श्रेणियों में 'विश्व-अग्रणी क्षमता' है और इसमें ऑस्ट्रेलिया, कनाडा, चीन, फ्रांस, इज़राइल, रूस और यूनाइटेड किंगडम (यूके) शामिल हैं। अंत में, टियर थ्री के देशों वो शामिल हैं, जिनके पास कुछ श्रेणियों में क्षमता है लेकिन दूसरी श्रेणियों में बहुत अधिक कमजोरियां हैं। भारत, इंडोनेशिया, ईरान, जापान, मलेशिया, उत्तर कोरिया और वियतनाम टियर थ्री का हिस्सा हैं।[22] आईआईएसएस की रिपोर्ट में कहा गया है कि ये सात देश 'अपनी साइबर यात्रा के शुरुआती चरण में हैं, हर एक के पास कुछ श्रेणियों में ताकत या संभावित क्षमता है लेकिन बाकी श्रेणियों में बहुत अधिक कमजोरियां भी हैं।'[23]
रिपोर्ट साइबर सुरक्षा के मुद्दे पर भारत के विकसित हो रहे दृष्टिकोण को रेखांकित करती है। इसमें कहा गया है कि, हालांकि, पहली राष्ट्रीय साइबर सुरक्षा नीति 2013 में जारी की गई थी, लेकिन 'सिविल क्षेत्र के लिए साइबर नीति पर भारत की सोच का विकास अभी भी जारी है।'[24] व्यापक एवं अद्यतन राष्ट्रीय साइबर सुरक्षा रणनीति को 2020 में '5जी, रैंसमवेयर और इंटरनेट ऑफ थिंग्स' के विकास संबंधी मुद्दों को हल करने के लिए जारी किया गया था।[25] हालांकि, कोविड -19 और अन्य चुनौतियों से यह कोशिश बाधित हुई। बहरहाल, भारत 'शिक्षा, कौशल, आयात नियंत्रण व राष्ट्रीय सुरक्षा सहित साइबर सुरक्षा नीति के सभी क्षेत्रों में फिर से तैयारी कर रहा है' और पिछले साल चीन के साथ सीमा संघर्ष के बाद से, चीन के साइबर हमलों और चीन की वजह से डिजिटल सिस्टम की सुरक्षा को लेकर चिंताएं बढ़ गई हैं।[26]
साइबर क्षमता के आकलन हेतु भारत एक दिलचस्प केस स्टडी है। इसके पास लगभग 190 बिलियन अमेरिकी डॉलर की बड़ी डिजिटल अर्थव्यवस्था है, एक जीवंत स्टार्ट-अप कल्चर और राष्ट्रीय साइबर शक्ति का निर्माण करने हेतु प्रतिभा का विशाल पूल है। फिर भी, भारत की साइबर क्षमताएं विकेंद्रीकृत हैं और कई एजेंसियां साइबर सुरक्षा संबंधी कार्यों में अपनी भूमिका निभाती हैं। 2004 में स्थापित किया गया राष्ट्रीय तकनीकी अनुसंधान संगठन (एनटीआरओ), एक 'मुख्य साइबर एजेंसी' है और राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार (एनएसए) को रिपोर्ट करती है।[27] 2019 में बनाई गई रक्षा साइबर एजेंसी, 'भारत की सैन्य साइबर क्षमताओं की कमान व नियंत्रण में केंद्रीय भूमिका में है।' डीसीए का मुख्य कार्य 'तीनों सशस्त्र सेवाओं की साइबर, स्पेस और विशेष बलों की क्षमताओं को एकीकृत तथा समन्वयित करना है।' इसके अलावा, इंटेलिजेंस ब्यूरो (आईबी), रिसर्च एंड एनालिसिस विंग (आरएडब्ल्यू) और डिफेंस इंटेलिजेंस एजेंसी (डीआईए) भारत की साइबर इंटेलिजेंस क्षमताओं के अभिन्न अंग हैं।[28]
रिपोर्ट में कहा गया है कि 'घरेलू खतरों से परे, भारत की साइबर-खुफिया क्षमता निकट पड़ोस, विशेष रूप से पाकिस्तान पर केंद्रित है, जो हैरानी करने वाली बात है।'[29] वास्तव में, 'भारत की साइबर-खुफिया पहुंच कमजोर दिखाई देती है' और इसलिए, 'यह साइबर से जुड़ी स्थितिजन्य जागरूकता और भविष्य में अपनी खुद की पहुंच विकसित करने में मदद के लिए अमेरिका, यूनाइटेड किंगडम और फ्रांस जैसे साझेदारी पर निर्भर है।'[30] दिलचस्प बात यह है कि रिपोर्ट में यह माना गया है कि 'कृत्रिम बुद्धिमत्ता (एआई) के क्षेत्र में, भारत की अनुसंधान क्षमता को विश्व रैंकिंग में काफी ऊंचा स्थान दिया गया है। भारत का 'एआई अनुसंधान एवं विकास (लगभग 85%) उद्योगों के बजाय विश्वविद्यालयों द्वारा किया जाता है।'[31] आईआईएसएस रिपोर्ट का मानना है कि 'भारत की साइबर सुरक्षा की सबसे बड़ी विशेषता निजी क्षेत्र का महत्व है, जिसने मजबूत नीतियों और मानकों को तैयार करने का मार्ग प्रशस्त किया है।'[32] चूंकि इंटरनेट रोजमर्रा की जिंदगी और ई-कॉमर्स जैसे क्षेत्रों में इस्तेमाल होता है, इसलिए साइबर क्षमताओं को विकसित करने की जरुरत अभूतपूर्व तरीके से बढ़ेगी।
भारत अक्सर चीनी और पाकिस्तानी साइबर हमलों का निशाना बनता रहा है। उत्तर कोरिया भी चीनी नेटवर्क का इस्तेमाल करके भारत पर साइबर हमले करता रहा है। 2020 में, भारत को रैंसमवेयर हमलों का सामना करना पड़ा, जिसकी संख्या दुनिया भर में होने वाले हमलों में दूसरे स्थान पर है। वित्तीय संस्थानों पर हमला भारत के लिए अधिक चिंता का विषय रहे हैं। हालांकि, साइबर क्षेत्र में बढ़ते खतरों से निपटने की भारत की तैयारियों में अभी बहुत काम करना बाकी है। 2018 में, अंतर्राष्ट्रीय दूरसंचार संघ द्वारा तैयार किए गए वैश्विक साइबर सुरक्षा सूचकांक में भारत 175 देशों में से 47वें स्थान पर था। इसी सूचकांक में चीन भारत से काफी आगे रहते हुए 27वें स्थान पर रहा।[33] आईआईएसएस की रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत समझता है कि 'इसकी रक्षात्मक क्षमताएं अपेक्षाकृत कमजोर हैं।' इसकी वजह से, 'यह अपने नेटवर्क को लक्षित करने वाले राज्यों से निपटने के लिए यथार्थवादी दृष्टिकोण बनाए रखते हुए, साइबरस्पेस को नियम-आधारित अंतरराष्ट्रीय व्यवस्था के भीतर लाने का राजनयिक प्रयास करता है।'[34] अमेरिका और ब्रिटेन के साथ भारत की साइबर साझेदारी अच्छी है और संभवतः इजरायल और फ्रांस जैसे करीबी रणनीतिक भागीदारों की मदद से यह अपनी क्षमताओं को बढ़ा सकता है।
आईआईएसएस की रिपोर्ट में कहा गया है कि 'भारत ने पाकिस्तान को ध्यान में रखते हुए उन्नत आक्रामक साइबर क्षमता विकसित की हैं। अब यह इन क्षमताओं को बढ़ाने का काम कर रहा है।[35] वास्तव में, नवंबर 2008 के आतंकवादी हमलों के मद्देनजर, भारत साइबर प्रतिक्रिया पर भी विचार कर रहा है।[36] रिपोर्ट में साफ कहा गया है कि 'आक्रामक क्षमताओं में भारत के मौजूदा निवेश की सीमा या झुकाव का अनुमान लगाना मुश्किल है, लेकिन ऐसे संकेत हैं कि चीन की बढ़ती अर्थव्यवस्था व क्षेत्रीय शक्ति को देखते हुए, इसपर विशेष ध्यान दिया जा सकता है।'[37] थिंक-टैंक ने भारत को अपनी आक्रामक साइबर क्षमता बढ़ाने का सुझाव दिया है। यह खंड भारत पर इस अवलोकन के साथ खत्म होता है कि 'पाकिस्तान पर भारत के ध्यान से उसे उपयोगी परिचालन अनुभव और कुछ व्यवहार्य क्षेत्रीय आक्रामक साइबर क्षमताएं हासिल हुई होंगी।'[38] आगे बढ़ते हुए, भारत को अपनी साइबर-खुफिया पहुंच का विस्तार करने की जरुरत पड़ेगी।' इसके लिए, 'अंतर्राष्ट्रीय भागीदारों, विशेष रूप से अमेरिका के साथ सहयोग बढ़ाना, इसके लिए मददगार साबित होगा।'[39]
समापन टिप्पणी
विदेश सचिव के संबोधन और आईआईएसएस रिपोर्ट के संदर्भ में, हम तीन बातें समझ सकते हैं: पहला, भारत साइबर सुरक्षा के मुद्दे पर गंभीरता से विचार कर रहा है और चीन जैसे देशों के विपरीत साइबरस्पेस पर राज्य के अधिक नियंत्रण का समर्थन करने वाले बहु-हितधारक दृष्टिकोण की वकालत कर रहा है। दूसरा, साइबर सुरक्षा न केवल भारत की डिजिटल अवसंरचना को सुरक्षित करने हेतु बल्कि भारत के परिवर्तन के लिए भी प्रासंगिक है, जैसा कि को-विन एप्लिकेशन के विकास में देखा जा सकता है जिसे कोविड-19 टीकाकरण हेतु विकसित और तैनात किया गया है। इस संबंध में, आसान, सस्ती और विश्वसनीय पहुंच प्रदान करके डिजिटल अंतर को पाटना महत्वपूर्ण है। साइबर गतिविधियों को बढ़ाने और करोड़ों भारतीयों को डिजिटल डोमेन में लाने के लिए रक्षात्मक व आक्रामक साइबर क्षमताओं का निर्माण आवश्यक होगा। तीसरा, साइबर सुरक्षा के क्षेत्र में कमियों को दूर करने के लिए भारत कदम उठा रहा है, जैसा कि कई एजेंसियों के सृजन और रणनीतिक भागीदारों के साथ राजनयिक सहयोग में देखा जा सकता है। लेकिन, भारत को अपनी साइबर अवसंरचना को सुरक्षित करने के लिए अभी बहुत काम करने की जरूरत है। विश्व एक ऐसे दौर में है, जहां राष्ट्रीय सुरक्षा, साइबर सुरक्षा पर बहुत अधिक निर्भर करेगी। इसलिए, साइबरस्पेस के इस्तेमाल हेतु शासी मानदंडों और ढांचे के निर्माण पर जोर देते हुए, रक्षात्मक और अति महत्वपूर्ण, आक्रामक साइबर क्षमताओं का निर्माण करने के अलावा कोई अन्य विकल्प नहीं है।
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* डॉ. संकल्प गुरज़ार , शोध अध्येता, विश्व मामलों की भारतीय परिषद्, नई दिल्ली।
अस्वीकरण: व्यक्त किए गए विचार व्यक्तिगत हैं।
डिस्क्लेमर: इस अनुवादित लेख में यदि किसी प्रकार की त्रुटी पाई जाती है तो पाठक अंग्रेजी में लिखे मूल लेख को ही मान्य माने ।
पाद टिप्पणियां
[1] International Institute of Strategic Studies, “Cyber Capabilities and National Power: A Net Assessment”, June 28, 2021. Available at: https://www.iiss.org/blogs/research-paper/2021/06/cyber-capabilities-national-power (Accessed on July 10, 2021).
[2]Ibid
[3]Ministry of External Affairs, “Foreign Secretary’s Statement at the UN Security Council Open Debate on “Maintenance of International Peace and Security: Cyber Security”, June 29, 2021. Available at: https://www.mea.gov.in/Speeches-Statements.htm?dtl/33963/Foreign_Secretarys_Statement_at_the_UN_Security_Council_Open_Debate_on_Maintenance_of_International_Peace_and_Security_Cyber_Security_June_29_2021Accessed on?
[4]Ministry of External Affairs, “Foreign Secretary’s Statement at the UN Security Council Open Debate on “Maintenance of International Peace and Security: Cyber Security”, June 29, 2021. Available at: https://www.mea.gov.in/Speeches-Statements.htm?dtl/33963/Foreign_Secretarys_Statement_at_the_UN_Security_Council_Open_Debate_on_Maintenance_of_International_Peace_and_Security_Cyber_Security_June_29_2021Accessed on?
[5]Ministry of External Affairs, “Foreign Secretary’s Statement at the UN Security Council Open Debate on “Maintenance of International Peace and Security: Cyber Security”, June 29, 2021. Available at: https://www.mea.gov.in/Speeches-Statements.htm?dtl/33963/Foreign_Secretarys_Statement_at_the_UN_Security_Council_Open_Debate_on_Maintenance_of_International_Peace_and_Security_Cyber_Security_June_29_2021Accessed on?
[6]Ministry of External Affairs, “Foreign Secretary’s Statement at the UN Security Council Open Debate on “Maintenance of International Peace and Security: Cyber Security”, June 29, 2021. Available at: https://www.mea.gov.in/Speeches-Statements.htm?dtl/33963/Foreign_Secretarys_Statement_at_the_UN_Security_Council_Open_Debate_on_Maintenance_of_International_Peace_and_Security_Cyber_Security_June_29_2021Accessed on?
[7]Ministry of External Affairs, No. 3
[8]Ministry of External Affairs, No. 3
[9]Ministry of External Affairs, No. 3
[10]Ministry of External Affairs, No. 3
[11]Ministry of External Affairs, No. 3
[12]Ibid
[13]Ibid
[14]Ibid
[15]Ibid
[16]Ibid
[17]Ibid
[18]Ibid
[19]Ibid
[20]Ibid
[21] International Institute of Strategic Studies, No. 1, pp. 3
[22] International Institute of Strategic Studies, No. 1, pp. 3
[23] International Institute of Strategic Studies, No. 1, pp. 3
[24]Ibid, pp. 133
[25]Ibid, pp. 133
[26]Ibid, pp. 133
[27]Ibid, pp. 134
[28]Ibid, pp. 134
[29] Ibid, pp. 135
[30] Ibid, pp. 135
[31] Ibid, pp. 135
[32] Ibid, pp. 135
[33]Ibid, pp. 137
[34]Ibid, pp. 137
[35]Ibid, pp. 139
[36]Ibid, pp. 139
[37]Ibid, pp. 139
[38]Ibid, pp. 139
[39]Ibid, pp. 139