हाल ही में भारत और यूरोपीय संघ (ईयू) ने एक प्रस्तावित मुक्त व्यापार समझौते (एफटीए) पर बातचीत को पुनः शुरू करने का फैसला किया है, जिसकी शुरुआत 2007 में की गई थी, लेकिन 16 दौर की बातचीत के बाद साल 2013 से रुकी हुई थी।[i]इस बातचीत के बंद होने की मुख्य वजह यूरोपीय संघ द्वारा अपने वाइन, ऑटो और कुछ अन्य क्षेत्रों के लिए उच्च बाजार पहुंच की मांग थी, जबकि भारत ने यूरोपीय संघ से अपने नागरिकों को पेशेवरों के रूप में समायोजित करने तथा अधिक बाजार पहुंच देने की मांग की थी। व्यापार के मुद्दे के साथ, मानव अधिकार, श्रम व पर्यावरण से जुड़े मानक दोनों पक्षों के बीच असहमति के प्रमुख मुद्दे थे। यूरोपीय संघ मानवाधिकार मुद्दों, पर्यावरण एवं श्रम मानकों को संरक्षणवादी तरीके के रूप में इस्तेमाल कर रहा है, यह कहते हुए भारत ने प्रस्तावित गैर-व्यापार मानदंडों का विरोध किया था। तब से, यूरोपीय संघ और भारत दोनों में और इन दोनों के संबंधों में भी काफी बदलाव आया है। घरेलू और वैश्विक राजनीतिक अर्थव्यवस्था के संबंध में उनकी स्थिति में हुए बदलाव उल्लेखनीय हैं। मौजूदा स्थिति को देखते हुए, दोनों के लिए व्यापार समझौते की संभावनाओं का पता लगाना पहले से कहीं अधिक महत्वपूर्ण और जरूरी हो गया है। यह लेख उन प्रासंगिक कारकों को सामने लाने का प्रयास करता है जो भविष्य में वार्ता प्रक्रिया को आकार देने में प्रमुख भूमिका निभाएंगे।
भारत और यूरोपीय संघ (ईयू) एक दूसरे के प्रमुख व्यापार भागीदार हैं। अभी, पिछले दशक से 72 प्रतिशत की वृद्धि के साथ कुल भारतीय व्यापार का 11.1% हिस्सा होने के नाते यूरोपीय संघ भारत का तीसरा सबसे बड़ा व्यापारिक भागीदार है।[ii]विशेष रूप से, यूरोपीय संघ भारत में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) प्रवाह के सबसे बड़े स्रोतों में से एक है। लगभग 6000 यूरोपीय कंपनियां भारी मात्रा में निवेश के साथ भारत में कार्यरत हैं। बहुत अधिक संख्या में भारतीय यूरोपीय संघ के विश्वविद्यालयों में पढ़ रहे हैं और यूरोपीय संघ में काम भी कर रहे हैं।
यह पारस्परिक महत्व हाल के दिनों में और बढ़ा है। दोनों देशों को प्रभावित करने वाली भू-आर्थिक घटनाओं से बड़े स्तर पर बदलाव हुआ है। ऐसा ही एक बदलाव यूरोपीय संघ से यूनाइटेड किंगडम (यूके) का हटना है। यूके इस क्षेत्रीय ब्लॉक में सबसे बड़ा व्यापारिक देश था, और इसलिए इसके हटने से समूह पर नकारात्मक असर हुआ है। यूके का अब साझा बाजार का हिस्सा न होने की वजह से यूरोपीय संघ के अन्य सदस्य देशों से यूके को निर्यात महंगा हो गया है। यूरोपीय संघ की बाजार पहुंच काफी हद तक कम हो गई है। (यूएन कॉमट्रेड[iii]) यूरोपीय संघ के एकल बाजार से यूके के हटने से माल निर्यात में 41% और आयात में 29% की गिरावट आई है।[iv]
हाल ही में यूरोपीय संघ ने उइगर में मानवाधिकारों के उल्लंघन और हांगकांग में चीन की नीति का हवाला देते हुए ईयू-चीन के बीच होने वाले निवेश सौदे को मंजूरी देने से इनकार कर दिया। चीन पर शिनजियांग उइगर स्वायत्त क्षेत्र (एक्सयूएआर) में पुनः शिक्षा के नाम पर लाखों उइगर मुसलमानों को हिरासत में लेने और उन्हें प्रताड़ित कर मानवाधिकारों का उल्लंघन करने का आरोप है।[v] इससे पहले यूरोपीय संघ ने चीन के चार राजनयिकों पर प्रतिबंध भी लगाए थे और चीन ने बदले में यूरोपीय संघ के कई अधिकारियों पर प्रतिबंध लगाकर अपनी प्रतिक्रिया दी थी। इन राजनीतिक मतभेदों की वजह से भी निवेश सौदे में बाधा आई।[vi]
कई दौर की बातचीत के बाद, भारत ने साल 2019 में आरसीईपी में शामिल होने से इनकार कर दिया था। भारत के इनकार की मुख्य वजह भारतीय बाजार में चीनी सामानों की डंपिंग का डर था, जिससे इसके घरेलू उद्योग को काफी नुकसान हो सकता था।[vii] हालांकि, छोटे उद्योग समूहों की रक्षा करते हुए, भारत ने दुनिया के कुछ आकर्षक बाजारों में अच्छी बाजार पहुंच हासिल करने का एक बड़ा अवसर खो दिया। ईयू एफटीए भारत के लिए एक बड़े समूह के साथ जुड़ने और अपनी अर्थव्यवस्था को लाभ पहुंचाने का एक और अवसर है।
बीते दशक में चीन के उद्भव ने दुनिया के कई हिस्सों में यूरोप के वर्चस्व को खतरे में डाल दिया है। चीनी कंपनियां भारत के विविध क्षेत्रों में बहुत अधिक निवेश कर रही हैं। कई मामलों में चीनी कंपनियां यूरोपीय संघ की फर्मों को नुकसान पहुंचाते हुए आगे बढ़ रही हैं। यूरोपीय संघ के लिए, प्रतियोगिता को समझने का यह एक अच्छा मौका है। कूटनीतिक परिप्रेक्ष्य की बात करें तो, चीन की बढ़ती सैन्य क्षमता के साथ एक छोटे व्यापारिक भागीदार से एक प्रतिद्वंद्वी आर्थिक शक्ति के रूप में उभरने से पश्चिमी देश और इंडो-पैसिफिक में स्थित उनके सहयोगी काफी चिंतित हैं, जहां ब्रुसेल्स अपना अधिक प्रभाव चाहता है। भारत यहां अहम भूमिका निभा सकता है।[viii]
यूरोपीय संघ और भारत दोनों के प्रति अब तक अनिश्चित रही अमेरिकी नीति और पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प के दौरान तनावपूर्ण संबंध मौजूदा शासन के तहत भी नहीं सुधरे हैं।[ix] चीन और अमेरिका के बीच व्यापार युद्ध तथा अमेरिका द्वारा बहुपक्षीय व्यवस्था को न मानने की वजह से बाकी देशों को आर्थिक और राजनीतिक रूप से एकजुट होने हेतु मजबूर होना पड़ा है। इसलिए, ऐसी स्थिति में यूरोपीय संघ और भारत के लिए सहयोग के अवसरों का पता लगाना और बातचीत को फिर से शुरू करना फायदेमंद है।
अंत में, कोविड -19 की वजह से पूरी दुनिया का आर्थिक विकास कम हुआ है। केवल घरेलू गतिविधियों या मौजूदा भागीदारों पर भरोसा करके अर्थव्यवस्थाओं को फिर से पटरी पर लाना मुश्किल है। सबी देश इसके लिए वैश्विक बाजार की ओर देख रहे हैं और नए अवसरों की तलाश रहे हैं। इस लिहाज से अपने व्यापार भागीदार के साथ लंबे समय से रुकी हुई बातचीत को फिर से शुरू करना निश्चित तौरपर एक ऐसा कदम है, जो इस वक्त जरुरी भी है। इसके अलावा, हाल ही में बढ़ी भारत की राजनयिक प्रासंगिकता और बढ़ती आर्थिक क्षमता दोनों ही यूरोपीय संघ के भारत की ओर झुकाव के मुख्य कारण हैं।
प्रस्तावित समझौते का दोनों पक्षों के लिए राजनीतिक और आर्थिक महत्व है। राजनीतिक दृष्टि से, यूरोपीय संघ के लिए यह किसी उभरती हुई अर्थव्यवस्था के साथ इसका पहला व्यापार समझौता होगा, जो भागीदारी को मजबूत करने हेतु एफटीए को नियोजित करने के यूरोपीय संघ के उद्देश्य को बढ़ावा देने का काम करेगा। इससे इसे अपने आर्थिक एकीकरण को बढ़ाने में मदद मिलेगी और वैश्विक व्यापार व्यवस्था में इसकी भूमिका भी मजबूत होगी। भारत के लिए, यह लंबे समय से सहयोगी रहे यूरोपीय संघ के साथ अपने व्यापार और राजनयिक जुड़ाव को गहरा करने का एक नया अवसर होगा। यूरोपीय संघ के साथ गहरे संबंध आर्थिक कूटनीति में भारत की बढ़ती महत्वाकांक्षाओं को हासिल करने में भी सहायक साबित होंगे। इस वजह से, इस व्यापार समझौते से दोनों भागीदारों को लाभ मिलने की उम्मीद है।
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* डॉ राहुल नाथ चौधरी, रिसर्च फेलो, इंडियन काउंसिल ऑफ वर्ल्ड अफेयर्स, नई दिल्ली।
अस्वीकरण: व्यक्त किए गए विचार व्यक्तिगत हैं।
डिस्क्लेमर: इस अनुवादित लेख में यदि किसी प्रकार की त्रुटी पाई जाती है तो पाठक अंग्रेजी में लिखे मूल लेख को ही मान्य माने ।
पाद टिप्पणियां:
[i]IndraniBagchi (May 6, 2021) India, EU to resume formal free trade agreement talks.The Times of India.available at: https://timesofindia.indiatimes.com/india/india-eu-to-resume-formal-free-trade-agreement-talks/articleshow/82433505.cms accessed on 13.05.21
[ii] Information available at Europa.com accessed on 14.5.2021
[iii]UN COMTRADE is a database provides trade data
[iv]Alasdair Sandford(April 11, 2021) 100 days on, what impact has Brexit had on UK-EU trade.Euro News. Available at:https://www.euronews.com/2021/03/31/brexit-three-months-on-uk-eu-trade-trouble-deeper-than-teething-problems-say-producers. Accessed on17.6.21
[v]Vincent Ni (4 May 2021) EU efforts to ratify China investment deal ‘suspended’ after sanctions. The Guardian. Available at: https://www.theguardian.com/world/2021/may/04/eu-suspends-ratification-of-china-investment-deal-after-sanctionsaccessed on 14.5.2021
[vi]Vincent Ni (4 May 2021) EU efforts to ratify China investment deal ‘suspended’ after sanctions. The Guardian. Available at: https://www.theguardian.com/world/2021/may/04/eu-suspends-ratification-of-china-investment-deal-after-sanctionsaccessed on 14.5.2021
[vii] Choudhury, Rahul (2019) Why did India betray RCEP? The East Asia Forum, 21st December 2019. https://www.eastasiaforum.org/2019/12/21/why-did-india-betray-rcep/accessed on14.5.2021
[viii]Robin Emmott and Jan Strupczewski (May 8, 2021) EU and India agree to resume trade talks at virtual summit. Reuters. Available at: https://www.reuters.com/world/europe/eu-india-re-launch-trade-talks-virtual-summit-2021-05-08/ accessed on 13.5.21
[ix]Pant Harsh V (December 01, 2018) Together in an uncertain world. The Hindu Available at:https://www.thehindu.com/opinion/op-ed/together-in-an-uncertain-world/article25637457.ece Accessed on 21.05.2021