सार
मेकांग नदी इस उप-क्षेत्र में रहने वाले 60 मिलियन से अधिक लोगों की अर्थव्यवस्था एवं आजीविका का आधार है। मेकांग और उसकी सहायक नदियां इस उप-क्षेत्र के विकास और स्थिरता लाती हैं, जिसकी वजह से इसका सामरिक महत्व है। यह शोध-पत्र यह क्षेत्र किस तरह से एक महत्वपूर्ण भू-राजनीतिक स्थान के रूप में उभर रहा है, जिसपर अत्यधिक बांध बनाने की वजह से नदी के जलमार्ग में बदलाव आ रहा है और क्षेत्रीय जैव विविधता, आजीविका प्रभावित हो रही है, और इसके खाद्य सुरक्षा के भविष्य का अध्ययन करता है।
मेकांग नदी का प्रकृति वर्णन और महत्व
पहला मानचित्र: मेकांग नदी की प्रणाली
स्रोत: एनसाइक्लोपीडिया ब्रिटानिका, इंक.
जैसा कि पहले मानचित्र में दिखाया गया है, मेकांग नदी का उद्गम दक्षिणी क्विंहाई प्रांत में तिब्बती पठार में स्थित जिफू पर्वत से होता है, जहां इसे लंकांग नदी के नाम से जाना जाता है। हिमालय के बर्फ के पिघलने से बनी मेकांग नदी, औसत वार्षिक निर्वहन के मामले में आठवीं सबसे बड़ी नदी है और लगभग 4909 किमी लंबाई के साथ यह दुनिया की दसवीं और एशिया की सातवीं सबसे लंबी नदी है। किंघई-तिब्बत पठार पर अपने स्रोत स्थान से यह चीन, म्यांमार, थाईलैंड, लाओस, कंबोडिया और वियतनाम को जोड़ते हुए 4,800 किलोमीटर तक फैली हुई है।[i] म्यांमार में प्रवेश करने पर यह निचले मेकांग बेसिन का हिस्सा बन जाती है और दक्षिण चीन सागर में समाने से पहले थाईलैंड, लाओस, कंबोडिया और वियतनाम से होकर गुजरती है। निचला मेकांग बेसिन का कुल क्षेत्र 630,000 किमी2 है और वनस्पतियों एवं जीवों की समृद्ध व विविध विविधता के साथ यहां लगभग 65 मिलियन लोग निवास करते हैं। 'एशिया का चावल का कटोरा' के रुप में जाने जाने वाला निचला मेकांग क्षेत्र, पानी और खाद्य सुरक्षा के लिए मेकांग और उसकी सहायक नदियों पर निर्भर है, क्योंकि यह सतही एवं भूजल को विनियमित करने में मदद करती है, और मिट्टी की उर्वरता को बढ़ाने के लिए आवश्यक समृद्ध तलछट को यहां पहुंचाने का काम करती है।[ii]
मेकांग नदी द्वारा लाए जाने वाले पोषक तत्व मछलियों की विशाल विविधता वाली प्रजातियों के लिए भी महत्वपूर्ण है, जिन पर लाखों लोग अपनी आजीविका के लिए निर्भर हैं। इस क्षेत्र का मीठा पानी दुनिया के सबसे बड़े अंतर्देशीय मछली पकड़ने के स्थानों में से एक है, जहां से वैश्विक आपूर्ति के एक चौथाई हिस्से की आपूर्ति होती है। हालांकि, मेकांग पर पहले से बने और आने वाले कुछ सालों में बनाये जाने वाले पनबिजली बांधों का जलवायु परिवर्तन पर प्रभाव के साथ-साथ यहां के मत्स्य पालन, कृषि, जैव-विविधता और नदी पर निर्भर लोगों के जीवन पर असर पड़ेगा। बहुत अधिक बांध बनाये जाने से मिट्टी की उर्वरता और पारिस्थितिक संतुलन बनाए रखने हेतु आवश्यक पानी के प्रवाह और पोषक तत्वों पर असर पड़ रहा है, जो इससे निचले क्षेत्रों में रहने वाली आबादी की खाद्य सुरक्षा के लिए एक बड़ा खतरा बनता जा रहा है।[iii]
बांधों का अत्यधिक निर्माण और उभरते असंतुलन
कंबोडिया, लाओ पीडीआर, थाईलैंड, और वियतनाम, मेकांग नदी आयोग [एमआरसी] के सदस्य हैं, जिसे 1995 में निचले मेकांग नदी बेसिन में जल संसाधनों के सतत प्रबंधन व विकास हेतु सहयोग को बढ़ावा देने के लिए एक समझौते के माध्यम से स्थापित किया गया था। हर पांच साल में प्रकाशित होने वाली एमआरसी की स्टेट ऑफ बेसिन रिपोर्ट [एसओबीआर] प्रमुख निष्कर्ष देती है और आवश्यक कार्रवाई अनुशंसित करती है। एसओबीआर की 2019 में प्रकाशित हुई तीसरी श्रृंखला के अनुसार, मेकांग बेसिन में बनाये गए जलाशय-बांध की वजह से नदी का प्रवाह बदल गया है, जिससे बाढ़ के मैदानों में तलछट के जमाव में काफी कमी आ रही है। रिपोर्ट में पर्यावरण पर लंबे समय में पड़ने वाले असर को कम करने हेतु उपाय करने की जरुरत पर प्रकाश डाला गया है, जिसमें आर्द्रभूमि व नदी के आसपास के निवास स्थान का नुकसान भी शामिल है और नष्ट होने से पहले शेष संपत्तियों की रक्षा हेतु तत्काल कार्रवाई का आह्वान किया गया है। मेकांग नदी में अत्यधिक बांध बनाये जाने की वजह से पानी की विशेषताओं में बदलाव आ रहा है और विशेष रूप से इससे पारिस्थितिक संतुलन और मत्स्य पालन प्रभावित हो रहा है। इसलिए, 2019 एसओबीआर ने "क्षेत्रीय योजना और संयुक्त परियोजनाओं, निवेश व निगरानी के माध्यम से मौजूदा सहयोग को मजबूत करने पर बल दिया है।" मेकांग मेनस्ट्रीम हाइड्रोपावर प्रोजेक्ट्स [जेईएम] के लिए संयुक्त पर्यावरण निगरानी के माध्यम से एमआरसी मेनस्ट्रीम की जलविद्युत परियोजनाओं के ट्रांस-बाउन्ड्री प्रभाव की निगरानी कर रहा है। जेईएम कार्यक्रम पांच मुख्य निगरानी विषयों: हाइड्रोलॉजी व हाइड्रोलिक, सेडमन्ट (तलछट) और जियोमोर्फोलॉजी, जल गुणवत्ता, अक्वाटिक इकोलॉजी और मछली एवं मत्स्य पालन...पर मेकांग की मेनस्ट्रीम जलविद्युत परियोजनाओं के प्रभाव आकलन करने हेतु प्रमुख पर्यावरण संकेतकों की संयुक्त निगरानी का कार्य करता है।[iv] हालांकि, एमआरसी की इन सकारात्मक पहलों के बावजूद, मेकांग में बांधों के निर्माण पर बहुत कम असर पड़ा है, जिसकी संख्या लगातार बढ़ रही है। कंबोडिया के एक पूर्व ऊर्जा मंत्री पोऊ सोथिरक के अनुसार, ऐसा इसलिए है क्योंकि "एमआरसी के पास नीति निर्माताओं को मेनस्ट्रीम में बांध बनाया जाये या न बनाया जाये, इसपर सहमत होने के लिए मजबूर करने का कोई सक्षम तंत्र नहीं है।"[v]
मार्च 2021 में, थाईलैंड, वियतनाम और कंबोडिया की सरकार ने "मेकांग नदी के पर्यावरणीय खतरों को तत्काल दूर करने हेतु अमेरिका और आसियान क्षेत्रीय समूह से मदद का आह्वान किया।" उन्होंने "चीन सहित सभी देशों द्वारा नदी पर जल डेटा के बेहतर साझाकरण की जरुरत" पर भी जोर दिया। एमआरसी के सचिवालय, वियतनाम और थाईलैंड ने "नदी के बहाव को निचले क्षेत्रों की ओर जाने को लेकर चीन और लाओस के बड़े जलविद्युत बांधों के प्रभाव" पर आवाज उठाई। जबकि चीन ने अपने बाधों की वजह से निचले तटवर्ती क्षेत्रों के राज्यों में जल स्तर पर प्रभाव पड़ने से इंकार किया है, और उसने आयोग के साथ जल स्तर से जुड़े डेटा को साझा करने पर सहमति व्यक्त की है।[vi]
माओत्से तुंग के समय से ही चीन अपने विकास की गति को बढ़ाने के लिए बांध बनाने जैसी बड़े पैमाने की इंजीनियरिंग परियोजनाएं चला रहा है। इसके अलावा, अपने ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को कम करने के लिए, चीन ने पिछले छह दशकों में कम से कम 86,000 बांध बनाकर अपनी पनबिजली क्षमता को बढ़ा रहा है। चीन से गुजरते हुए, मेकांग नदी युन्नान से होकर गुजरती है, जहां यह 1,780 मीटर की ऊँचाई से गिरती है, इससे पनबिजली ऊर्जा में 25,000 मेगावॉट [एमडब्ल्यू] की क्षमता होती है। "अनुमान के मुताबिक, प्रांत की वार्षिक जल विद्युत क्षमता 900 बिलियन केडब्ल्यूएच है, जिसमें से लगभग 400 बिलियन केडब्ल्यूएच को संभावित रूप से काम में लाने योग्य माना जाता है, जो कि चीन की कुल जरुरत का 20 प्रतिशत से अधिक है।"[vii] दूसरा मानचित्र मेकांग नदी पर बने प्रमुख बांधों को इंगित करता है, हरे रंग में दर्शाए गए बांध बन चुके हैं और परिचालन में हैं, पीले रंग से दर्शाए गए बांध निर्माणाधीन हैं और जिन बांधों को आने वाले समय में बनाने की योजना बनाई जा रही है, वे भूरे रंग में चिह्नित हैं।
दूसरा मानचित्र: मेकांग नदी पर बने प्रमुख बांध
स्रोत: चीन डॉयलाग
जैसा कि दूसरे मानचित्र में दर्शाया गया है, युन्नान प्रांत में लंकांग नदी पर बना मानवन बांध 1995 में बनकर तैयार हुआ था। 1,570 मेगावाट की क्षमता वाला बांध युन्नान प्रांत में बनाया जाने वाला पहला बड़ा बांध था और तब से पांच और बांध बन चुके हैं।[viii] युन्नान में वेइक्सी लिस्सू ऑटोनोमस काउंटी में बने बांधों में सबसे उत्तरी भाग में 990 मेगावाट का वुन्गलोंग बांध है। 300 मीटर लंबा और 100 मीटर से अधिक ऊँचा वुन्गलोंग बांध ऊपरी मेकांग के चीन के क्षेत्र में बनाया जाने वाला ग्यारहवां बांध है और अभी यहां 14 अन्य बांध बनाने की योजना है।[ix]
लाओस और कंबोडिया भी अपनी बढ़ती ऊर्जा जरुरतों को पूरा करने हेतु काफी हद तक पनबिजली पर निर्भर हैं। कंबोडिया में घरेलू बिजली उत्पादन का 48 प्रतिशत हिस्सा पनबिजली से आता है। दूसरे मानचित्र के अनुसार, लाओस-कंबोडिया सीमा के पास चीन के सिनो हाइड्रो कार्पोरेशन द्वारा बनाया गया डॉन साहोंग बांध कंबोडिया में पारिस्थितिक रूप से महत्वपूर्ण टोनले सैप झील के करीब बने मेकांग मेनस्ट्रीम के बांधों में से एक है। मौसम में परिवर्तन के प्रभाव के साथ-साथ मेकांग के प्रवाह में बदलाव की वजह से मौसम का मिजाज बदल गया है, जिसके परिणामस्वरूप बारिश कम होती है और लंबे समय तक शुष्क मौसम से तलछट का नुकसान होता है। इससे मछलियों के प्रवासन का पैटर्न प्रभावित हो रहा है, जिससे टोनले सैप के पारिस्थितिकी तंत्र में असंतुलन पैदा हो रहा है।[x] लाओ स्टेट इलेक्ट्रिसिटी कार्पोरेशन और इलेक्ट्रिसिटी दा लाओस [ईडीएल] के साथ एक संयुक्त उद्यम में सिनो हाइड्रो, लाओ पीडीआर में स्थानीय रूप से नाम ओब नदी के नाम से जाने जाने वाली ओब नदी पर भी सात कैस्कैडिंग (प्रपात की तरह गिरने वाले) बांधों का निर्माण कर रहा है। यह नदी मेकांग की एक प्रमुख सहायक नदी है। दूसरे मानचित्र के अनुसार, नवंबर 2019 में 180 मेगावाट की कुल क्षमता वाले पहले नाम ओब पनबिजली बांध का निर्माण किया गया, जो सात बांधों में से एक है।[xi] इसे लेकर विशेषज्ञों ने चेतावनी दी है कि, जब ओब नदी पर अन्य अपस्ट्रीम बांधों का संचालन शुरू होगा तो इससे नदी का प्रवाह बदल जायेगा जिससे हजारों लोगों को विस्थापन के लिए मजबूर होना पड़ेगा और साथ ही इससे मछली की अनोखी प्रजातियों का भारी नुकसान होगा। ओब नदी और मेकांग बेसिन के पार बने अन्य बांध चीन की बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव का हिस्सा हैं। चीन द्वारा मेकांग नदी के 2,700 मील के तटों पर चीन से लेकर दक्षिण पूर्व एशिया के मेकांग देशों तक 370 से अधिक बांध बनाने की योजना है।[xii]
निष्कर्ष
मेकांग नदी जैव विविधता को बढ़ावा देती है और इससे जीवन के समृद्ध जाल को बनाए रखती है, जिसमें दक्षिण पूर्व एशिया में रहने वाली आबादी शामिल है जो इस पर काफी निर्भर हैं। अंतरराष्ट्रीय बाजारों में ऊर्जा की अस्थिर कीमतों और कार्बन उत्सर्जन से जुड़ी चिंताओं की वजह से, इस क्षेत्र की बढ़ती बिजली जरुरतों को पूरा करने हेतु सस्ती और नवीकरणीय ऊर्जा की मांग बढ़ती जा रही है। मेकांग नदी पर अत्यधिक बांध बनाने से पानी के प्रवाह में बदलाव हो रहा है और इसके साथ ही यह मत्स्य पालन, कृषि व जैव विविधता को प्रभावित कर रहा है। दशकों से अत्यधिक बांधों का निर्माण करके चीन एक ऊपरी तटवर्ती राज्य रहा है, जो नदी के प्रवाह और इसपर नियंत्रण का दावा करने में सक्षम है। यह निचले मेकांग राज्यों के लिए एक चिंता का विषय बनता जा रहा है, जिससे पर्यावरण-प्रणाली की अपूरणीय क्षति हो रही है, जिस पर क्षेत्र की आजीविका निर्भर है। अपनी ऊर्जा और पानी की जरूरतों को पूरा करने की तलाश में, चीन पारिस्थितिकी और पर्यावरण को लगातार नुकसान पहुंचा रहा है। इसके अलावा, जलवायु परिवर्तन का भी प्रभाव बढ़ रहा है; जो मेकांग नदी पर खतरनाक रूप से निम्न स्तर पर दिखाई दे रहा है, जिससे डाउन्स्ट्रीम देश, विशेष रूप से वियतनाम और कंबोडिया प्रभावित हो रहे हैं।
ऊपरी तटवर्ती राज्यों द्वारा अत्यधिक बांध बनाने की वजह से पानी के प्रवाह में बदलाव हो रहा है, जिससे नदी की प्राकृतिक विशेषताएं और आसपास के निवास स्थान प्रभावित हो रहे हैं, जिसका प्रभाव निचले मेकांग देशों में अधिक देखने को मिल रहा है। इस क्षेत्र के कुछ देशों द्वारा ऊर्जा और जल संसाधनों की रक्षा हेतु जारी सक्रियता की वजह से असंतुलन पैदा हो रहा है जो अन्य मेकांग देशों के जीवन और आजीविका के लिए गंभीर खतरा है। मेकांग क्षेत्र की चुनौतियों की जटिलता की वजह से असंतुलन पैदा हो रहा है जिससे अमेरिका और चीन जैसी बाहरी शक्तियां, शक्ति एवं प्रभाव के लिए आपस में प्रतिस्पर्धा कर रही हैं। लंकांग-मेकांग सहयोगी नेताओं की बैठक और मेकांग-अमेरिका साझेदारी मंत्रिस्तरीय बैठक द्वारा सहयोग के माध्यम से नदी के लिए एक नया जलमार्ग बनाने की पहल की जा रही है। पांच मेकांग देशों और दो शक्तियों के बीच रणनीतिक विश्वास बनाने और भविष्य में मेकांग क्षेत्र में जल संसाधनों से संबंधित असुरक्षा और पारिस्थितिकी तंत्र से जुड़ी चुनौतियों का सामना करने में साझेदारी का यह रूप अत्यन्त महत्वपूर्ण होगा।
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*डॉ. टेम्जेनमरेन एओ, शोधकर्ता, विश्व मामलों की भारतीय परिषद, नई दिल्ली ।
व्यक्त किए गए विचार व्यक्तिगत हैं ।
डिस्क्लेमर: इस अनुवादित लेख में यदि किसी प्रकार की त्रुटी पाई जाती है तो पाठक अंग्रेजी में लिखे मूल लेख को ही मान्य माने ।
संदर्भ:
[i]“The Mekong”, Open Development Mekong, March 3, 2020, https://opendevelopmentmekong.net/topics/the-mekong/, Accessed on April 6, 2021.
[ii]“The Mekong”, Open Development Mekong, March 3, 2020, https://opendevelopmentmekong.net/topics/the-mekong/, Accessed on April 6, 2021.
[iii]“Requiem for a River: Can one of the World’s Great Waterways Survive its Development”, The Economist, https://www.economist.com/news/essays/21689225-can-one-world-s-great-waterways-survive-its-development, Accessed on April 5, 2021.
[iv]“Annual Report 2019”, Mekong River Commission, https://www.mrcmekong.org/assets/Publications/AR2019-Part-1.pdf, Accessed on April 7, 2021.
[v]Tyler Roney, “Damming the Mekong: China, Laos, Cambodia and the fate of Tonle Sap Lake”, The Asia-Pacific Journal, Volume 18, Issue 10, Number 2, May 15, 2020, https://apjjf.org/2020/10/Roney.html, Accessed on April 7, 2021.
[vi]Tyler Roney, “Damming the Mekong: China, Laos, Cambodia and the fate of Tonle Sap Lake”, The Asia-Pacific Journal, Volume 18, Issue 10, Number 2, May 15, 2020, https://apjjf.org/2020/10/Roney.html, Accessed on April 7, 2021.
[vii]Michael J. Loannides and Bryan Tilt, “China: Lessons Learned from the Manwan Dam”, Internal Displacement Monitoring Centre, April 11, 2017, https://www.internal-displacement.org/sites/default/files/inline-files/20170411-idmc-china-dam-case-study.pdf, Accessed on April 5, 2021.
[viii]“Requiem for a River: Can one of the World’s Great Waterways Survive its Development”, The Economist, https://www.economist.com/news/essays/21689225-can-one-world-s-great-waterways-survive-its-development, Accessed on April 5, 2021.
[ix]“Requiem for a River: Can one of the World’s Great Waterways Survive its Development”, The Economist, https://www.economist.com/news/essays/21689225-can-one-world-s-great-waterways-survive-its-development, Accessed on April 5, 2021.
[x] Tyler Roney, “Damming the Mekong: China, Laos, Cambodia and the fate of Tonle Sap Lake”, The Asia-Pacific Journal, Volume 18, Issue 10, Number 2, May 15, 2020, https://apjjf.org/2020/10/Roney.html, Accessed on April 7, 2021.
[xi]Ton Ka, “Loss of faith along the Ou River”, China Dialogue, March 27, 2020, https://chinadialogue.net/en/energy/11933-loss-of-faith-along-the-ou-river/, Accessed on April 7, 2021.
[xii]Shibani Mahtani, “How China is choking the Mekong: A River Journey Reveals displaced villages and a ruined Ecosystem”, The Washington Post, January 28, 2020, https://www.washingtonpost.com/graphics/2020/world/the-mekong-river-basin-under-threat/, Accessed on April 5, 2021.