व्यापार समझौते और निवेश से जुड़े फैसले कभी भी महज़ आर्थिक आधार पर ही नहीं लिए जाते। व्यापार संबंधों को बढ़ाने और / या इसमें किसी तरह की कमी करने में देशों की राजनीतिक प्राथमिकता का एक आवश्यक घटक है। राष्ट्र आर्थिक संबंधों को बनाने की कीमतों और लाभों का बेहद सावधानी से आकलन करने के बाद ही यह तय करते हैं कि नीति कार्रवाई को आगे बढ़ाया जाए या नहीं। समकालीन अंतरराष्ट्रीय मामलों में, इस तरह के कई उदाहरण मौजूद हैं। 2014-15 के आसपास, संयुक्त राज्य अमेरिका (यूएस) का ट्रांस-अटलांटिक व्यापार एवं निवेश भागीदारी (टीटीआईपी) और ट्रांस-पैसिफिक पार्टनरशिप (टीपीपी) में शामिल होने का फैसला ज़ाहिर तौर पर आर्थिक तर्क के साथ-साथ यूरोप और एशिया में गठजोड़ को मजबूत करने के राजनीतिक उद्देश्यों से प्रेरित थे। 2014 में, यूरोपीय संघ (ईयू) में अमेरिकी राजदूत, एंथनी गार्डनर ने कहा था कि, "इस समझौते को करने के भू-स्थैतिक कारण हैं। मेरे आने के बाद से, हम टीटीआईपी से क्यों जुड़ रहे हैं, इसके वैश्विक संदर्भ से अवगत कराया जा रहा है।"[1] इसके अलावा, उन्होंने मध्य पूर्व और रूस में मौजूद चुनौतियों की ओर भी इशारा किया था और कहा था कि इस संदर्भ में टीटीआईपी "नाटो के बराबर आर्थिक सहयोग प्रदान करने, और विश्व व्यापार के नियमों को तय करने से पहले पारगमन गठबंधन को मजबूत बनाने में मदद करेगा।"[2] इसी तरह की बात यूएसपी के व्यापार प्रतिनिधि माइकल फ्रान ने टीपीपी के संदर्भ में भी कही थी। उन्होंने कहा था कि, "टीपीपी हमारी एशियाई वास्तुकला का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। यह एशिया के प्रति राष्ट्रपति की पुनः संतुलन की रणनीति की सबसे ठोस अभिव्यक्ति है।"[3] उन्होंने आगे कहा कि "टीपीपी का केवल आर्थिक महत्व नहीं है, इसका क्षेत्र में अमेरिका को अंतःस्थापित करने, प्रमुख भागीदारों के साथ सहयोग के भाव विकसित करने और कई अन्य मुद्दों पर सहयोग के लिए आधार तैयार करने के साधन के रूप में रणनीतिक महत्व भी है।"[4]
क्योंकि, कभी-कभी कुछ वांछित राजनीतिक परिणाम हासिल करने के लिए आर्थिक साधनों का इस्तेमाल किया जाता है, इसलिए जिओ-इकोनॉमिक्स से जुड़ी की घटनाओं और अंतरराष्ट्रीय संबंधों को आकार देने में इसकी भूमिका को समझा जा सकता है। जिओ-इकोनॉमिक्स को "राष्ट्रीय हितों को बढ़ावा देने और बचाव करने, और लाभकारी भू-राजनीतिक परिणाम हासिल करने; और किसी अन्य देश द्वारा भू-राजनीतिक लक्ष्यों को हासिल करने के लिए किये गए आर्थिक कार्यों को प्रभावित करने हेतु आर्थिक साधनों का उपयोग" के रूप में परिभाषित किया गया है।[5] यह परिभाषा जिओ-इकोनॉमिक्स को विश्लेषण की एक विधि के साथ-साथ राज्य की शासन-कला के साधनों के रूप में भी दर्शाती है। यह कहा जाता है कि चीन जिओ-इकोनॉमिक्स में दुनिया भर में अग्रणी है। विश्व इतिहास में इससे पहले कभी भी किसी एक सरकार के पास इतनी अधिक संपत्ति नहीं थी।[6] और जैसे-जैसे चीन की समृद्धि और भौतिक शक्ति बढ़ती गई, राजनीतिक उद्देश्यों को प्राप्त करने हेतु भू-आर्थिक साधनों का इस्तेमाल करने की इसकी क्षमता भी बढ़ी। पिछले दिनों, चीन ने दलाई लामा की मेजबानी करने वाले देशों पर किसी न किसी रूप में आर्थिक दंड लगाया।[7] चीन ने 2010 में एक राजनीतिक मुद्दे के बाद जापान को दुर्लभ भू-खनिजों की आपूर्ति रोक दी थी।[8]चीन के व्यापार समझौते का हालिया उदाहरण, मॉरीशस के साथ उसके मुक्त व्यापार समझौते (एफटीए) का परिचालन और क्षेत्रीय व्यापक आर्थिक साझेदारी (आरसीईपी) पर हस्ताक्षर करना है, जिससे चीन की जिओ-इकोनॉमिक्स साधनों का उपयोग करने की क्षमता बढ़ सकती है।
चीन-मॉरीशस मुक्त व्यापार समझौता
मॉरीशस पहला अफ्रीकी देश है जिसके साथ चीन ने एफटीए पर हस्ताक्षर किए हैं।[9] यह समझौता न केवल अफ्रीका के साथ चीन के व्यापारिक संबंधों के लिए महत्वपूर्ण है, बल्कि हिंद महासागर के भू-राजनीति पर भी इसके निहितार्थ हैं। मॉरीशस को हमेशा से हिंद महासागर क्षेत्र में भारत का प्रमुख भागीदार माना जाता है और इसलिए, एफटीए और इसकी वजह से चीन की बढ़ती भूमिका का क्षेत्र में भारत के प्रभाव पर असर पड़ेगा। आइए इन कारकों पर और विस्तार से बात करें।
यह सभी को मालूम है कि चीन अफ्रीका का सबसे बड़ा व्यापारिक भागीदार है और 2019 में, चीन और अफ्रीका के बीच द्विपक्षीय व्यापार 192 बिलियन अमेरिकी डॉलर था। अंगोला, दक्षिण अफ्रीका, नाइजीरिया, मिस्र और कांगो गणराज्य अफ्रीकी क्षेत्र में चीन के प्रमुख व्यापारिक भागीदार हैं।[10] ऐसी उम्मीद की जा रही है कि मॉरीशस के साथ चीन का एफटीए, जिसपर अक्टूबर 2019 में हस्ताक्षर किया गया था और जनवरी 2021 में लागू हुआ था, चीन के लिए भविष्य में अफ्रीकी बाजारों को खोलने में महत्वपूर्ण भूमिका निभायेगा।[11] मॉरीशस का चीन सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार है और व्यापार संतुलन चीन के पक्ष में है। मॉरीशस के आयात में, चीन अपनी 16.7% हिस्सेदारी के साथ सबसे ऊपर है और पूरे आयात में 13.9% हिस्सेदारी के साथ भारत बहुत कम अंतर के साथ दूसरे स्थान पर है।[12]
चीनी और मॉरीशस की अर्थव्यवस्थाएं एक दूसरे के पूरक नहीं हैं। यह बात पर ध्यान नहीं दिया गया कि “मॉरीशस जिस वस्तु का निर्यात करने में अग्रणी है, चीन भी उसी का निर्यात करता है, लेकिन बेहतर और सस्ते तरीके से। वास्तव में, मॉरीशस वस्त्र का सबसे अधिक निर्यात करता है और उसकी चीन के साथ सीधी प्रतिस्पर्धा है।” [13] एफटीए के प्रावधानों के अनुसार, मॉरीशस को “7,504 टैरिफ लाइनों पर चीनी बाजार में शुल्क मुक्त पहुंच मिलेगी। अतिरिक्त 723 टैरिफ लाइनों पर शुल्क 1 जनवरी 2021 से शुरू होने वाली 5 से 7 साल की अवधि के लिए समाप्त कर दिया जाएगा। इसके अलावा, 8,000 वर्षों की अवधि में 50,000 टन चीनी के लिए टैरिफ दर कोटा प्रगतिशील आधार पर लागू किया जाएगा, जिसकी शुरुआती मात्रा 15,000 टन की होगी।” [14] हालांकि, इस संदर्भ में, इसपर विचार करना जरुरी है कि क्या मॉरीशस को इस व्यापार समझौते से कोई ठोस लाभ मिलेगा या नहीं। चैटम हाउस में अफ्रीकी कार्यक्रम के प्रमुख एलेक्स वाइन्स का मानना है कि एफटीए के माध्यम से "चीनी को काफी अधिक फायदा होगा।"[15] वास्तव में, “मॉरीशस और चीन के बीच बड़े पैमाने पर व्यापार असंतुलन है, जो चीन के पक्ष में है। हमें देखना होगा कि इससे मॉरीशस को कितना फायदा होता है।” [16]
मॉरीशस, एफटीए के माध्यम से अधिक से अधिक चीनी निवेश को आकर्षित करने की उम्मीद कर रहा है। चीनी फर्मों के लिए, मॉरीशस अफ्रीका का प्रवेश द्वार साबित हो सकता है। अफ्रीकी महाद्वीपीय मुक्त व्यापार क्षेत्र (एएफसीएफटीए) के माध्यम से अफ्रीकी देश एक एकल बाजार तैयार कर रहे हैं, जो पिछले महीने शुरु हुआ था। इसके तीन ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर के संयुक्त बाजार के साथ 1.2 बिलियन लोगों का एकल बाजार होने की संभावना है।[17] अफ्रीका के मुख्य व्यापारिक साझेदार के रूप में चीन की भूमिका और मॉरीशस के साथ एफटीए के माध्यम से बाजार तक सुगम पहुंच से अफ्रीका के साथ चीन के व्यापार संबंधों को बढ़ावा मिलने की संभावना है।
एफटीए में मॉरीशस को शामिल करने की चीन की पसंद भी ध्यान देने योग्य है क्योंकि यह छोटा हिंद महासागर देश चीनी को छोड़कर किसी अन्य वस्तु का कोई महत्वपूर्ण उत्पादन नहीं करता, लेकिन भू-रणनीतिक रूप से बेहद महत्वपूर्ण जगह पर स्थित है। 1.3 मिलियन की आबादी वाला मॉरीशस, एशिया, अफ्रीका और पश्चिम एशिया के चौराहे पर स्थित है। चीनी मूल के मॉरीशस नागरिक मॉरीशस की कुल आबादी में 2-3% हैं। मॉरीशस को वित्तीय सेवाओं का केंद्र, एक आकर्षक पर्यटन स्थल माना जाता है और टैक्स हेवन के रूप में जाना जाता है।[18] इसी के आधार पर, यह अनुमान लगाया जा सकता है कि, चीन द्वारा एफटीए पर हस्ताक्षर करने के कारण इस आर्थिक रूप से समृद्ध एवं राजनीतिक रूप से स्थिर देश की व्यापारिक क्षमता में नहीं बल्कि इसके भौगोलिक स्थिति जैसे अन्य कारकों में निहित हैं।
कई वर्षों से, चीन ने मॉरीशस के पड़ोसी देशों जैसे कि सेशेल्स और मेडागास्कर सहित दक्षिण और श्रीलंका के उत्तर तक तक अपने संबंध मजबूत किए हैं। चीन हिंद महासागर आयोग (आईओसी) में भी एक पर्यवेक्षक है, जो मॉरीशस सहित दक्षिण-पश्चिम हिंद महासागर में स्थित पाँच द्वीप देशों का एक समूह है।[19] चीन के अंतर्राष्ट्रीय व्यापार के लिए, मॉरीशस के आसपास का समुद्री क्षेत्र महत्वपूर्ण है क्योंकि मॉरीशस में कोई अपना स्थान होने से शिपिंग लेन की निगरानी करना आसान हो जायेगा जो हिंद महासागर में फैला है। चीन ने 2017 में जिबूती में एक सैन्य अड्डा खोला था और चीनी नौसेना रक्षा कूटनीति का संचालन करने हेतु पाकिस्तान जैसे हिंद महासागर के समुद्री और द्वीप देशों का नियमित दौरा करती रहती है।[20] इसलिए, हिंद महासागर और जिओ-इकोनॉमिक्स में चीन के रणनीतिक हित मॉरीशस के आसपास के समुद्री क्षेत्रों से जुड़े हुए हैं।
क्षेत्रीय व्यापक आर्थिक साझेदारी (आरसीईपी) में चीन
आरसीईपी पर नवंबर 2020 में हस्ताक्षर किए गए थे और आने वाले दशकों में इससे इंडो-पैसिफिक क्षेत्र के आर्थिक भविष्य को नया आकार मिलने की उम्मीद है। भारत-प्रशांत क्षेत्र की 15 प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं को एक साथ लाने वाले आरसीईपी का चीन एक प्रमुख सदस्य और सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है।[21] चीन ने आरसीईपी पर विशेष जोर दिया है और इसमें उन देशों को शामिल किया है जो बीजिंग के प्रति बहुत अधिक मित्रवत (जैसे कंबोडिया) और बहुत अधिक मित्रवत नहीं (जैसे ऑस्ट्रेलिया, वियतनाम और जापान) है।[22] यह अनुमान है कि आरसीईपी, जिसमें अमेरिका शामिल नहीं है, "दुनिया का सबसे बड़ा व्यापारिक ब्लॉक है, जिसमें 2.2 बिलियन लोगों का बाजार और 26.2 ट्रिलियन डॉलर का वैश्विक उत्पादन शामिल है।" इसमें दुनिया भर की और साथ ही वैश्विक अर्थव्यवस्था की 30% आबादी शामिल है।[23] यह यूरोपीय संघ (ईयू) से भी बड़ा है। आरसीईपी ने इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में गहरे आर्थिक संबंधों का आधार बनाया है। इसे बीजिंग की कूटनीतिक और भू-राजनीतिक सफलता माना जा रहा है।[24] भारत और अमेरिका के इसमें शामिल न होने से व्यापार का नेतृत्व सीधे चीन के हाथों में आ गया है और जिओ-इकोनॉमिक्स के ढांचे में भी देखा गया है कि इसका असर इंडो-पैसिफिक क्षेत्र के भू-स्थिर प्रक्षेपवक्र पर भी पड़ेगा।
भू-राजनीतिक प्रभाव
कुल मिलाकर, ये दो व्यापारिक व्यवस्थाएं (आरसीईपी और चीन-मॉरीशस एफटीए) हिंद महासागर की गुटबंदी कर रही हैं और चीन के प्रभाव को बढ़ाने की नींव रख रही हैं। आरसीईपी पूर्वी हिंद महासागर को कवर करता है, जबकि एएफसीएफटीए पश्चिमी हिंद महासागर को कवर करता है। चीन को अफ्रीका के साथ-साथ दक्षिण पूर्व एशिया में स्थित आरसीईपी देशों के साथ मजबूत व्यापारिक संबंधों का लाभ मिलता है और इसकी वजह से, हिंद महासागर की व्यापारिक गतिशीलता में बड़ा बदलाव आने की संभावना है। चीन पहले से ही पश्चिम एशियाई देशों के साथ-साथ पाकिस्तान का एक प्रमुख आर्थिक भागीदार है। साल 2019 में, पश्चिम एशिया में चीन के तेल की हिस्सेदारी 44% थी और चीनी तेल आयात में 16% हिस्सेदारी के साथ सऊदी अरब तेल का सबसे बड़ा आपूर्तिकर्ता था।[25] हाल के दिनों में, चीन ने ईरान के साथ दीर्घकालिक ऊर्जा एवं रणनीतिक समझौते पर हस्ताक्षर किए हैं।[26] इसलिए, इन संबंधों और व्यापारिक जुड़ाव से, चीन को पूरे हिंद महासागर रिम की आर्थिक, ऊर्जा तथा बुनियादी ढांचे की संरचना में दक्षिण अफ्रीका से ऑस्ट्रेलिया, पश्चिम और दक्षिण और दक्षिण पूर्व एशिया के माध्यम से बड़ा लाभ मिलने की संभावना है। आर्थिक तौरपर मजबुती के साथ-साथ इस तरह की मौजूदगी और सुगमता से इसका भू-राजनीतिक प्रभाव बढ़ सकता है। भारत के लिए, इसके गंभीर रणनीतिक एवं जिओ-इकोनॉमिक्स निहितार्थ हैं। अब तक, भारत आरसीईपी में शामिल नहीं हुआ है और लगभग 67 बिलियन अमेरिकी डॉलर के द्विपक्षीय व्यापार के साथ अफ्रीका का तीसरा सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार है, जो चीनी-अफ्रीकी व्यापार का लगभग एक-तिहाई है।[27] घरेलू स्तर पर सुस्त आर्थिक विकास से संभवतः भारत के रणनीतिक विकल्पों पर प्रभाव पड़ा है। इसलिए, भारत को सुधारात्मक कदम उठाने की आवश्यकता है, दक्षिणी हिंद महासागर के वेनिला द्वीप राष्ट्र सहित हिंद महासागर रिम के साथ आर्थिक एवं सामरिक संबंधों को मजबूत करना भी शामिल होगा। इस संदर्भ में, भारत के विदेश मंत्री (ईएएम) एस जयशंकर द्वारा मॉरीशस की हाल की यात्रा काफी महत्वपूर्ण है।
20-23 फरवरी, 2021 तक, विदेश मंत्री जयशंकर ने मालदीव और मॉरीशस की यात्रा की थी। इस यात्रा के दौरान, भारत और मॉरीशस ने अपने आर्थिक एवं रणनीतिक संबंधों को गहरा करने हेतु कई समझौतों पर हस्ताक्षर किए। मॉरीशस ऐसा पहला देश है, जिसके साथ भारत ने व्यापक आर्थिक सहयोग एवं भागीदारी समझौते (सीईसीपीए) पर हस्ताक्षर किए। इस समझौते से "हमारी अर्थव्यवस्थाओं को कोविड-19 से उबरने में समयबद्ध तरीके से प्रोत्साहन मिलने और भारतीय निवेशकों द्वारा महाद्वीपीय अफ्रीका में व्यापार के विस्तार हेतु मॉरीशस को लॉन्च-पैड के रूप में उपयोग करने में सक्षम होने" की उम्मीद है।[28] इससे 'अफ्रीका के केंद्र' के रूप में मॉरीशस की भूमिका और मजबूत होगी।[29] यह समझौता "थोक व्यापार और भविष्य में बिलियन से अधिक लोगों के लिए कई आकांक्षात्मक वस्तुओं के लिए में मॉरीशस को तरजीह देता है।"[30] सीईसीपीए के माध्यम से, "फ़्रोजन मछली, विशेष चीनी, बिस्कुट, ताजे फल, रस, मिनरल वॉटर, साबुन, बैग, चिकित्सा एवं शल्य चिकित्सा उपकरण, और परिधान" जैसे उत्पादों का भारतीय बाजार में पहुंच आसान होने की संभावना है।[31] मॉरीशस की जीडीपी में लगभग 76% योगदान सेवा क्षेत्र का है और मॉरीशस के "द्विभाषी कौशल" से भारत की आईटी कंपनियों को अफ्रीका के फ्रेंच भाषी हिस्सों में प्रवेश करने में मदद मिलने की संभावना है।[32]
इस यात्रा के दौरान, भारत ने रक्षा उपकरणों की खरीद के लिए 100 मिलियन अमेरिकी डॉलर के लाइन ऑफ क्रेडिट का भी विस्तार किया।[33] भारत के लिए मॉरीशस बहुत अधिक महत्वपूर्ण है। ऐतिहासिक रूप से, मॉरीशस भारत का करीबी सहयोगी रहा है और मॉरीशस में चीन की बढ़ती दिलचस्पी एक चिंताजनक विकास है। भारत अगलेगा द्वीप पर सैन्य अवसंरचना विकसित कर रहा है और जल्द ही दक्षिण-पश्चिम हिंद महासागर में एक मजबूत स्थिति हासिल करने की उम्मीद कर रहा है। भारत के फ्रांस, अमेरिका के साथ-साथ सेशेल्स और मेडागास्कर जैसे अन्य दक्षिण-पश्चिमी हिंद महासागर देशों के साथ बढ़ते संबंध इसमें महत्वपूर्ण भूमिका निभाएंगे। चीन की चुनौती से निपटने हेतु भारत के लिए अपने घरेलू आर्थिक विकास को फिर से पटरी पर लाना भी कठिन लेकिन जरुरी है। बढ़ती अर्थव्यवस्था और रणनीतिक संबंधों को गहरा करने के कई विकल्प मौजूद हैं जिससे भारत इस क्षेत्र में अपने प्रभाव को संरक्षित और विस्तार कर सकता है।
इसके अतिरिक्त, यह देखना दिलचस्प होगा कि भारत और चीन का भू-आर्थिक प्रभाव हिंद महासागर में होने वाली रणनीतिक प्रतिस्पर्धा को किस तरह से आकार देता है।
*****
*डॉ. संकल्प गुरज़र, शोधकर्ता, विश्व मामलों की भारतीय परिषद, नई दिल्ली ।
व्यक्त किए गए विचार व्यक्तिगत हैं ।
डिस्क्लेमर: इस अनुवादित लेख में यदि किसी प्रकार की त्रुटी पाई जाती है तो पाठक अंग्रेजी में लिखे मूल लेख को ही मान्य माने ।
संदर्भ:
[1] Daniela Vincenti, “US Ambassador: Beyond growth, TTIP must happen for geostrategic reasons”, Euractive, July 14, 2024, available at: https://www.euractiv.com/section/trade-society/interview/us-ambassador-beyond-growth-ttip-must-happen-for-geostrategic-reasons/ (Accessed on March 18, 2021)
[2] Ibid
[3] Office of the United States Trade Representative, “Remarks by Ambassador Michael Froman at the CSIS Asian Architecture Conference”, September 22, 2015, available at: https://ustr.gov/about-us/policy-offices/press-office/speechestranscripts/2015/september/remarks-ambassador-michael (Accessed on March 18, 2021)
[4] Ibid
[5] Robert D. Blackwill and Jennifer M. Harris, War by Other Means: Geoeconomics and Statecraft, Harvard University Press, Cambridge, Massachusetts and London, England, 2016, pp. 19-22
[6] Ibid, pp. 93-94
[7] Ibid, pp. 129-130
[8] Keith Bradsher, “Amid Tension, China Blocks Vital Exports to Japan”, The New York Times, September 22, 2010, available at: https://www.nytimes.com/2010/09/23/business/global/23rare.html (Accessed on March 18, 2021)
[9]TRT World, “China-Mauritius FTA goes into effect. But who benefits?”, January 4, 2021, available at: https://www.trtworld.com/magazine/china-mauritius-fta-goes-into-effect-but-who-benefits-42954 (Accessed on March 18, 2021)
[10]China-Africa Research Initiative, “Data: China-Africa Trade”, 2021, available at: http://www.sais-cari.org/data-china-africa-trade#:~:text=The%20value%20of%20China%2DAfrica,by%20South%20Africa%20and%20Egypt. (Accessed on march 18, 2021)
[11]Rosie Wigmore, Will Africa’s First Free Trade Agreement With China Actually Help Africa?”,The China Africa Project, October 2, 2020,available at: https://chinaafricaproject.com/analysis/will-africas-first-free-trade-agreement-with-china-actually-help-africa/(Accessed on March 18, 2021)
[12]Mauritius Trade Easy, “Mauritius Trade profile”, October, 2020, available at: http://www.mauritiustrade.mu/en/trading-with-mauritius/mauritius-trade-profile (Accessed on March 18, 2021)
[13] Chris Devonshire-Ellis, “Why The China Mauritius Free Trade Agreement Opens Up The African Belt And Road”, Silk Road Briefing, January 5, 2021, available at: https://www.silkroadbriefing.com/news/2021/01/05/why-the-china-mauritius-free-trade-agreement-opens-up-the-african-belt-and-road/ (Accessed on March 18, 2021)
[14]Ministry of Foreign Affairs, Regional Integration and International Trade (Mauritius), “Communique”, December 28, 2020, available at: https://foreign.govmu.org/Communique/Mauritius-China%20Free%20Trade%20Agreement%20will%20enter%20into%20force%20on%2001%20January%202021.pdf (Accessed on March 18, 2021)
[15]TRT World, “China-Mauritius FTA goes into effect. But who benefits?”, January 4, 2021, available at: https://www.trtworld.com/magazine/china-mauritius-fta-goes-into-effect-but-who-benefits-42954 (Accessed on March 18, 2021)
[16] Ibid
[17] Lauren Johnston and Marc Lanteigne, “Here’s why China’s trade deal with Mauritius matters”, World Economic Forum, February 15, 2021, available at: https://www.weforum.org/agenda/2021/02/why-china-mauritius-trade-deal-matters/#:~:text=The%20agreement%20unites%20an%20estimated,China%20and%20an%20African%20state. (Accessed on March 18, 2021)
[18]Abdi Latif Dahir, “How an idyllic African island became a tax haven for some of the world’s biggest corporations”, Quartz Africa, July 23, 2019, available at: https://qz.com/africa/1673027/how-did-mauritius-become-a-global-tax-haven/ (Accessed on March 18, 2021)
[19]Indrani Bagchi, “India accepted as observer in Indian Ocean Commission”, The Times of India, March 6, 2020, available at: https://timesofindia.indiatimes.com/india/india-accepted-as-observer-in-indian-ocean-commision/articleshow/74517245.cms (Accessed on March 18, 2021)
[20]Indrani Bagchi, “India accepted as observer in Indian Ocean Commission”, The Times of India, March 6, 2020, available at: https://timesofindia.indiatimes.com/india/india-accepted-as-observer-in-indian-ocean-commision/articleshow/74517245.cms (Accessed on March 18, 2021)
[21] Joshua Kurlantzik, The RCEP Signing and its Implications”, Council on Foreign Relations, November 16, 2020, available at: https://www.cfr.org/blog/rcep-signing-and-its-implications (accessed on March 18, 2021)
[22] Joshua Kurlantzik, The RCEP Signing and its Implications”, Council on Foreign Relations, November 16, 2020, available at: https://www.cfr.org/blog/rcep-signing-and-its-implications (accessed on March 18, 2021)
[23] Joshua Kurlantzik, The RCEP Signing and its Implications”, Council on Foreign Relations, November 16, 2020, available at: https://www.cfr.org/blog/rcep-signing-and-its-implications (accessed on March 18, 2021)
[24] Joshua Kurlantzik, The RCEP Signing and its Implications”, Council on Foreign Relations, November 16, 2020, available at: https://www.cfr.org/blog/rcep-signing-and-its-implications (accessed on March 18, 2021)
[25]US Energy Information Administration, “China”, September 30, 2020, available at: https://www.eia.gov/international/analysis/country/CHN (Accessed on March 18, 2021)
[26]US Energy Information Administration, “China”, September 30, 2020, available at: https://www.eia.gov/international/analysis/country/CHN (Accessed on March 18, 2021)
[27]Ministry of External Affairs, “Speech by MOS at the 15th CII-EXIM Bank India-Africa Project Partnership Conclave” September 24, 2020, available at: https://www.mea.gov.in/Speeches-Statements.htm?dtl/33052/Speech_by_MOS_at_the_15th_CIIEXIM_Bank_IndiaAfrica_Project_Partnership_Conclave (Accessed on March 18, 2021)
[28]Ministry of External Affairs, “Press Statement by External Affairs Minister during Official Visit to Mauritius”, February 22, 2021, available at: https://mea.gov.in/Speeches-Statements.htm?dtl/33559/Press_Statament_by_External_Affairs_Minister_during_Official_Visit_to_Mauritius (Accessed on March 18, 2021)
[29]Ministry of External Affairs, “Press Statement by External Affairs Minister during Official Visit to Mauritius”, February 22, 2021, available at: https://mea.gov.in/Speeches-Statements.htm?dtl/33559/Press_Statament_by_External_Affairs_Minister_during_Official_Visit_to_Mauritius (Accessed on March 18, 2021)
[30]Ministry of External Affairs, “Press Statement by External Affairs Minister during Official Visit to Mauritius”, February 22, 2021, available at: https://mea.gov.in/Speeches-Statements.htm?dtl/33559/Press_Statament_by_External_Affairs_Minister_during_Official_Visit_to_Mauritius (Accessed on March 18, 2021)
[31]Ministry of External Affairs, “Press Statement by External Affairs Minister during Official Visit to Mauritius”, February 22, 2021, available at: https://mea.gov.in/Speeches-Statements.htm?dtl/33559/Press_Statament_by_External_Affairs_Minister_during_Official_Visit_to_Mauritius (Accessed on March 18, 2021)
[32]Ministry of External Affairs, “Press Statement by External Affairs Minister during Official Visit to Mauritius”, February 22, 2021, available at: https://mea.gov.in/Speeches-Statements.htm?dtl/33559/Press_Statament_by_External_Affairs_Minister_during_Official_Visit_to_Mauritius (Accessed on March 18, 2021)
[33] Ibid