ईरान, एक ऐसा देश जो धर्मशासित- गणतंत्र द्वारा शासित है तथा दशकों से प्रतिबंधों और युद्ध के खतरों के अधीन रहा है, सांस्कृतिक और राजनीतिक जीवंतता की झलक दिखाता है, जहां धर्म और राजनीति, महाद्वीपीय यूरोपीय दर्शन और साहित्य से लेकर महिलाओं के अधिकारों तक हर मुद्दे पर भाव प्रवणता से चर्चा होती है।
जिस दिन दस लाख से अधिक तेहरानी लोग शहर में सुलेमानी की अंतिम यात्रा में उमड़े थे, मैं तेहरान में उसके एक दिन बाद पहुंची। तेहरान डायलॉग फोरम नामक एक वार्षिक फारसी खाड़ी अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन में एक ग्रीक पत्रकार मुझे बताती हैं कि वे तीन किलोमीटर पैदल चली पर फिर भी, उसे सुलेमानी का एक भी ऐसा पोस्टर नहीं मिला जो सड़क पर पड़ा हुआ हो। ईरानी विदेश मंत्री जवाद ज़रीफ़, जिन्होंने मुख्य भाषण दिया था, उन्होंने सम्मेलन स्थल - ईमारत जहाँ ईरानी विदेश मंत्रालय से सम्बद्ध एक प्रीमियर विदेश नीति थिंक टैंक स्थापित है – का नाम बदल कर ‘हमारे गैरावान्वित शहीद जनरल क़ासिम सुलेमानी’ के नाम पर रखा। शिया इस्लाम में, शहादत, जो धर्म और राष्ट्र की रक्षा करते हुए मौत या एक दमनकारी शक्ति के हाथों हुई मौत को दर्शाता है, का गहरा धार्मिक महत्व है। क्रांतिकारी ईरान, जिसने अपने अस्तित्व के पहले दशक में इराक के साथ आठ साल लंबा युद्ध लड़ा था, ‘उम्मत-ए-शहीद परवर’ (शहीदों का राष्ट्र) होने पर गर्व करता है।
शोक में डूबा एक शहर
तरबियत मोडारस विश्वविद्यालय, क्रांति के बाद प्रोफेसरों को प्रशिक्षित करने के उद्देश्य से स्थापित एक स्नातक विश्वविद्यालय, के अत्युत्तम मस्जिद के बाहर सुप्रीम लीडर खामेनेई और सुलेमानी का एक बड़ा, अक्सर देखा जाने वाला पोस्टर लगा है, जिसे देख कर ऐसा लगता है कि वो दोनों कोई गंभीर चर्चा कर रहे हों। उनकी तस्वीर के नीचे नेताओं के कहे हुए कुछ शब्द हैं जिसमें संयुक्त राज्य अमेरिका से ‘कड़ा प्रतिशोध’ (इंतकाम सख्त) लेने की चेतावनी दी गई है। पोस्टर के हेडर में लिखा है ‘हज़रत वली अस्र और सुप्रीम गार्डियन और शहीदों को पैदा करने वाले ईरान राष्ट्र को मुबारकबाद और सहानुभूति’। वली अस्र यानी ‘वर्तमान दौर के नेता’ गुप्त बारहवें इमाम महदी हैं, जो शिया के राजनीतिक विचारों के अनुसार विधिमान्य शासक हैं। सुप्रीम लीडर गुप्त इमाम के सहायक के रूप में राज्य का नेतृत्व करते हैं। सुलेमानी का चेहरा, कभी उदासीन और कभी प्रीतिकर मुस्कान के साथ, शहर भर में लगे हजारों पोस्टर पर नज़र आ रहा था। इनमें से अधिकतर पोस्टरों में उन्हें ‘यहूदीवाद-रोधी’ और ‘आतंकवाद-रोधी’ बल के रूप में वर्णित किया गया था, जबकि कुछ दूसरे पोस्टरों में गाढ़े लाल रंग के फारसी अक्षरों में केवल दो शब्द लिखे हुए थे ‘कड़ा प्रतिशोध’।
(तरबियत मोदर्रेस विश्वविद्यालय, तेहरान में शोक के काले झंडे, तस्वीर:दीपिका सारस्वत)
अगली सुबह जागते ही मुझे यह खबर सुनने को मिली कि एक ईरानी मिसाइल पश्चिमी इराक के आईन-अल-असद बेस पर गिरा है। यह वो बेस था जहाँ से अमेरिका ने 3 जनवरी को कुद्स बलों के कमांडर, आईआरजीसी की बाहरी भुजा क़ासिम सुलेमानी और अबु अल-मुहंदिस, इराकी संसद हश्द अल-शाबी के डिप्टी कमांडर पर हमला किया था, जो बग़दाद के हवाई अड्डे पर सुलेमानी को लेने गए थे। जब राष्ट्रपति ट्रम्प के ‘आल इस वेल’ ट्वीट ने युद्ध के पूर्वाभास को कुछ कम कर दिया था, ईरान की अति उत्साही स्टेट मीडिया इस बात का जश्न मना रही थी कि सुलेमानी की हत्या से राष्ट्र की प्रतिष्ठा और गौरव को जो आघात पहुंचा था, उसका बदला ले लिया गया है। मेरी टैक्सी के एफएम रेडियो पर, मैंने भीड़ को ‘सिपाह-ए-अज़ीज़न, तसकुर तसक्कुर’ (प्यारे सिपाह, धन्यवाद, धन्यवाद) का नारा लगाते सुना। टैक्सी का चालक, जो एक स्कूल का सेवानिवृत्त अध्यापक था, उसने मुझे बताया कि आईआरजीसी के वरिष्ठ नेता कह रहे हैं कि ‘मार कर भाग जाने वाला दौर ख़त्म हो चुका है’। उस पल मैंने सोचा कि यू.एस डेन ऑफ एस्पियोनाज़ म्यूजियम जाने का समय आख़िरकार आ गया है।
अमेरिकी दूतावास का एक भूतपूर्व परिसर जहाँ अमेरिका द्वारा अपदस्थ शाह को शरण में लेने के बाद क्रांतिकारी छात्रों के एक समूह ने बावन अमेरिकी राजदूतों को 7 नवम्बर, 1979 से 444 दिनों तक बंधक बना कर रखा था। परिसर के सामने के लॉन में अमेरिकी और इजराइली झंडे में लिपटे कई ताबूत बिखरे हुए हैं और जंग के दौरान पहने जाने वाले कई हेलमेट, अमेरिकी झंडे की पेंट वाले, लकड़ी के ऊंचे क्रॉस पर टंगे हुए हैं, जो अमेरिकी सैनिकों के कब्रिस्तान का साफ नज़ारा पेश कर रहे हैं। मुख्य भवन के ऊपर सुलेमानी का एक विशाल बैनर लगा है, जिस पर अंग्रेजी और फारसी दोनों भाषाओं में लिखा हुआ है ‘पूरी दुनिया तुमसे बदला लेगी’।
(भूतपूर्व अमेरिकी दूतावास के परिसर का बाड़ा, बड़े फारसी अक्षरों में लिखा है मा अमरीका रा ज़ीर पा मिगुज़ारिम (हम अमेरिका को अपने कदमों तले रखते हैं); दूर लगे लाल रंग के होर्डिंग पर लिखा है #इंतकाम सख्त (कड़ा प्रतिशोध) तस्वीर: दीपिका सारस्वत)
शुरुआती गैलरी में, हम सबसे पहले नेता खामेनेई के शब्द देखते हैं कि “अमेरिका मुर्दाबाद” का अर्थ “ट्रम्प, जॉन बोल्टन और पोम्पियो की मौत है। हमारा अमेरिकी लोगों से कोई नाता नहीं है”। अगले कई पोस्टरों में यह दिखाया गया था कि ईरान-इराक युद्ध के दौरान संयुक्त राज्य अमेरिका ने सद्दाम की सेना का कैसे समर्थन किया, कैसे ‘ईरान में गुप्त रूप से घरेलू आतंकवाद जारी रखवाया’, कैसे ईरान पर ‘चिकित्सा प्रतिबन्ध’ लगाए और ये सभी दर्शाने के लिए ईरान के उत्पीड़ित राष्ट्रवाद की कथाओं की मदद ली गई थी। संग्रहालय के टूर-लीडर मुझे एक ऐसे कमरे में ले गए जहाँ विशालकाय टेलीटाइप मशीनें रखी हुई थीं जिसका उपयोग ‘गुप्त संचार’ के लिए किया जाता था, दस्तावेज निपटान मशीनें, ‘गुप्त बैठकों’ के लिए साउंडप्रूफ ग्लास रूम भी था जो इस बात को रेखांकित करता है कि दूतावास किस तरह अनिवार्य रूप से गुप्तचरों का मांद हुआ करता था। दीवार पर टंगी अयातोल्लाह खोमैनी की तस्वीर के नीचे अंग्रेजी और फारसी में हस्त लिखित नारा ‘ईरान में अब साम्राज्यवाद के लिए कोई समय नहीं है’ लिखा हुआ है। जो राजदूतों का कार्यालय हुआ करता था, वहां पर हम क्रिसमस और नया साल मनाते बंधकों की तस्वीर देखते हैं, जो यह दर्शाता है कि छात्र अपने बंधकों से कितनी अच्छी तरह पेश आते थे और उनके साथ ‘इस्लामिक नियमों के अनुसार’ व्यवहार किया करते थे। इस बर्फीली सुबह यहाँ कुछ और पर्यटक भी आए हैं।
शहीद सुलेमानी: ईरानी वीरता के प्रतीक
अगले दिन मुझे शहीद बेहेश्ती विश्वविद्यालय में एक प्रोफेसर से मिलना था, जो 1959 में स्थापित शाह-दौर का एक विश्वविद्यालय था और जिसे दानेशगाह-ए-मेली या राष्ट्रीय विश्वविद्यालय के नाम से जाना जाता था। क्रांति के बाद, विश्वविद्यालय का नाम बदल कर मोहम्मद बेहेश्ती के नाम पर रखा गया, जो एक मौलवी-न्यायविद थे, जिन्हें ईरान में क्रांति के बाद के संविधान का निर्माता माना जाता है, और जिसमें वेलयत-ए-फ़क़ीह (न्यायविद की संरक्षकता) को इस्लामिक रिपब्लिक के आधार के रूप में माना गया है। जून 1981 में, वामपंथी-इस्लामवादी मोजाहिदीन ई-खल्क ने मौलवी बहुल इस्लामिक रिपब्लिक पार्टी के मुख्यालय पर बमबारी की, जिसमें बहत्तर अन्य सांसदों और नेताओं के साथ बेहेश्ती भी ‘शहीद’ हुए थे, और ये वामपंथी मौलवियों में सभी शक्तियां निहित होने का विरोध करते थे। जैसे ही मैं आर्थिक और राजनीति विज्ञान विभाग में प्रवेश हुई, मैंने दरवाजे के सामने बने हुए अमेरिकी और इजरायली झंडे पर पाँव रख दिया। मैं पांच साल पहले भी इस जगह आई थी, और उस समय भी उसी जगह ये झंडे बने हुए थे। मैं जिन प्रोफेसर से मिल रही हूँ, वो कुछ परेशान नज़र आ रहे हैं; उन्होंने सुलेमानी की हत्या को ‘भूराजनीतिक भूकंप’ बताया। उसके बाद उन्होंने मुझे बताया कि वो केर्मान से हैं, जो सुलेमानी का प्रान्त है, और ईरान-इराक युद्ध के दौरान उनके भाई ने सुलेमानी के अधीन अपनी सेवा प्रदान की थी। वो युद्ध के मैदान में सुलेमानी द्वारा दी गई व्यक्तिगत कुर्बानियों के बारे में बताते हैं; बताते हैं कि इराक के साथ युद्ध में उनकी एक भुजा और बाईं आँख क्षतिग्रस्त हो गई थी। उनके विचार में सुलेमानी ईरानी वीरता के तत्वों का प्रतिनिधित्व करते हैं जो एक सीधा-सादा इंसान होना है, जो आम लोगों के साथ जुड़ाव रखते थे, सेना के कमांडर होने के नाते जिन्होंने सर्वोच्च नैतिकता दिखाई थी और वो ईरान देश की क्षेत्रीय अखंडता को बरक़रार रखने वाले एक बहुत ही निष्ठावान रक्षक भी थे। ऐतिहासिक ईरानी वीरता के एक प्रतीक के रूप में सुलेमानी पर बोलते हुए उन्होंने तुरानी राजा अफ़्रसिअब द्वारा सियावश के अन्यायपूर्ण हत्या का सन्दर्भ दिया, जिसे शाहनामेह (राजाओं की किताब) में एक ‘बहुत बड़ी त्रासदी’ बताया गया है। शाहनामेह ईरान का राष्ट्रीय महाकाव्य है जिसे दसवीं शताब्दी में फिरदौसी ने लिखा था। ईरानी साहित्य और पुराण में सियावश पवित्रता का चिन्ह है। महान ईरान के पौराणिक शाह काई कवूस के बेटे सियावश को रोस्तम, जो फारसी पुराणों में एक प्रसिद्ध योद्धा थे, ने एक योद्धा की तरह पाला और प्रशिक्षित किया था। शाही महल में वापस लौटने के बाद, उन्होंने अपनी पवित्रता साबित की जब उन्होंने अपनी सौतेली-माता साउदबेह का प्रस्ताव ठुकरा दिया, जो अपने पति की हत्या करके जवान सियावश से विवाह करने को तैयार थीं। उसके बाद सियावश वहां से निकल कर तुरान चले गए और उन्होंने अफ़्रसिअब की बेटी राजकुमारी फरंगिस से विवाह कर लिया। अफ़्रसिअब के खिलाफ कपट करने के झूठे आरोप में उन्हें तुरान में मौत के घाट उतार दिया गया। बूढ़े योद्धा रोस्तम ने अफ़्रसिअब की हत्या कर सियावश के खून का बदला लिया। उसी तरह ईरानी लोग भी सुलेमानी की अन्यायपूर्ण हत्या का बदला लेने की दृढ़ इच्छा रखते हैं।
संसद के एक भूतपूर्व वक्ता, जिनसे मैं कुछ दिनों बाद मिली, ने सुलेमानी की तुलना नादेर शाह के साथ की, जो अठारहवीं शताब्दी के शक्तिशाली शासक थे. एक आम पृष्ठभूमि होने के बावजूद नादेर शाह 1722 में गुलनाबाद की जंग में अफ़ग़ानियों द्वारा सफाविद की पराजय के बाद क्षेत्रीय पतन के काल के दौरान उभरे थे। नादेर शाह अफशर का संक्षिप्त शासनकाल, शानदार सैन्य अभियानों की एक श्रृंखला के तहत फारस की पुरानी सीमाओं को पुनर्स्थापित करवाने, पश्चिम में ओटोमन को हराकर और पूर्व में अफ़ग़ानियों को हारने एवं समझौते के माध्यम से और ओटोमन-विरोधी गठबंधन द्वारा उत्तर से रूसियों को खदेड़ने के लिए याद किया जाता है। जब आप तेहरान में शुक्रवार की प्रार्थना के लीडर मुहम्मद जवाद अली अकबरी को सुनते हैं, तो नादेर शाह के साथ की गई यह तुलना बहुत ही उचित लगती है। वो यह कहते हुए सुलेमानी की प्रशंसा करते हैं कि उन्होंने क्षेत्र में अपने विभिन्न प्रतिनिधियों को तैनात करके और अफ़ग़ान तथा पाकिस्तानी शिया को साथ लेते हुए फातिमीयों और ज़ीनाबियों जैसे नए गुटों का निर्माण करके और सीरिया में बशर अल-असद के समर्थन में जंग लड़के और कमांड सेंटर, यानी ईरान, से जुड़े प्रतिरोध की एक कड़ी का निर्माण करके देश की रक्षा की है। उनका तर्क है कि ‘इसके परिणामस्वरूप सुरक्षा स्थिति बेहतर बनी है, दाएश खत्म हुआ है और प्रतिरोध की संस्कृति का प्रसार हुआ है’। वो सुलेमानी की तुलना क्रांति के अन्य नायकों जैसे कि मुस्तफा चमारन, हसन बाघेरी, अब्राहिम हेम्मत और होसैन खराज़ी से करते हैं, जो इराक के साथ युद्ध के दौरान मारे गए उच्च श्रेणी के आईआरजीसी अधिकारी थे। वो सुलेमानी की अंतिम यात्रा के लिए उमड़े लोगों के भीड़ को वेलयत-ए-फ़कीह, सुप्रीम लीडर की संस्था, पर जनमत संग्रह बताते हैं। तेहरान में, जहां सभी प्रमुख इंट्रा-सिटी एक्सप्रेसवे, सड़कों और चौराहों का नाम शहीद जनरलों और मौलवियों के नाम पर रखा गया है, पूर्वी तेहरान में रिसालत जिले को मोसल्ला के साथ जोड़ने वाले एक एक्सप्रेसवे का नाम बदल कर क़ासिम सुलेमानी एक्सप्रेसवे रखा गया है। यह स्पष्ट है कि मारे गए सैन्य कमांडर ईरानी राष्ट्रवाद, जो उत्पीड़ित इस्लामी राष्ट्रवाद - सामूहिक रूप से प्रतिरोध करते साम्राज्यवादी आक्रामकता की ऐतिहासिक स्मृति - और प्राचीन सभ्यता और संस्कृति के गौरव का मेल है, के एक शक्तिशाली प्रतीक हैं ।
अस्पष्ट विरोधाभासों वाला एक शहर
पिछली शताब्दी में, तेहरान शहर अपने पुराने केंद्र से आगे निकल कर अल्बोर्ज़ की ठंडी उत्तरी तलहटी में फैला है। उत्तरी उपनगर या बा’ला-शहर (उच्च-शहर), जहाँ गगनचुम्बी आवासीय टावर हैं, दुबई या तुर्की से लाए गए परिष्कृत अंतरराष्ट्रीय ब्रांड्स के कपड़े बेचने वाली दुकानें, पश्चिमी वेशभूषा में जवान लड़कियां नज़र आती हैं, जिनके सर पर हिजाब मुश्किल से होता है, दक्षिण तेहरान या पा’इन (निम्न-शहर) के बिलकुल विपरीत है जो पवित्र शहर कोम की ओर शुष्क मैदानों में फैला है। दक्षिण तेहरान में, आप ज्यादा से ज्यादा महिलाओं को पूरे शरीर का चोगा पहने हुए देखते हैं, जो कि काले रंग की चादर होती है। सीमेंट फैक्ट्री की चिमनियों से उठता धुँआ और दूर-दूर तक फैली भूरी चट्टानी पहाड़ियां एक ऐसा शहरी नज़ारा पेश करते हैं जो उत्तर में बर्फ से ढकी और हवादार तलहटियों से बिलकुल अलग है।
(इब्न बाबावायेह कब्रिस्तान का नाम शेख सादुख के नाम से पड़ा है जो 10 वीं शताब्दी के एक प्रसिद्ध शिया विद्वान थे, जिन्हें इब्न बाबावायेह कहा जाता था, रेय, तस्वीर: दीपिका सारस्वत)
गुरुवार शाम को, जो ईरान में सप्ताहांत की शुरुआत है, मैं तेहरान की दक्षिणी सीमा पर बसे रेय नामक शहर में इब्न बाबावायेह कब्रिस्तान में हूं। यह तेहरान महानगरीय क्षेत्र का सबसे पुराना कब्रिस्तान है। आप लोगों को पानी के कैन, फूल और मिठाई और खीरे के साथ वहां आते हुए देखते हैं। श्रद्धालु मानते हैं कि मृतकों की आत्माएं गुरुवार शाम से लेकर शुक्रवार को सूर्योदय होने तक वहां वापस लौटती हैं। लोग मृतकों की कब्रों को धोते हैं, दिया जलाते, फूल चढ़ाते हैं और फातिहा पढ़ते हैं, जो मृतकों के लिए एक प्रार्थना होती है, और फिर वहां बैठकर चाय की चुस्की लेते हैं।
बाद में शाम को, मेरे एक भारतीय मित्र, जो कुछ वर्षों से तेहरान में एक फारसी भाषा के समाचार पत्र में काम कर रहे हैं, ने दाराकेह घुमाने का प्रस्ताव दिया, जो उत्तरी तलहटी में एक लोकप्रिय स्थान है जहाँ नदी के किनारे कई रेस्टुरेंट और पहाड़ी पर चढ़ाई करने के लिए पगडंडियाँ भी हैं। हमने स्नैप को बुलाया, जो ईरान की मोबाइल ऐप-आधारित सवारी सेवा है। हमारा ड्राइवर एक स्मार्ट जवान बंदा है, जो दिन में एक छात्र और रात में कैब चालक बन जाता है। मुझे बताया गया है कि राज्य की अर्थव्यवस्था प्रतिबन्ध के अधीन होने के कारण, कई पेशेवर अतिरिक्त आमदनी के लिए स्नैप में अपना नामांकन करवाते हैं। ऐसा होना एक ऐसे देश में आसान है जहां वर्ग विभाजन विशेष रूप से कठोर नहीं है। हमारा युवा कैब चालक जोशीली बातें करने वाला बंदा है। वह विशाल पवित्र स्थान बनवाने और सीरिया के साथ जंग लड़ने में धन गवाने के खिलाफ सरकार की आलोचना करता है। वह बड़े ही जोश में अटकलबाजी करते हुए कहता है, ‘खामेनेई के बच्चों का अमेरिका में घर है और आधा यूरोप उनकी मुट्ठी में है’। अगले ही पल, वह अमेरिका की आलोचना और हिजबुल्लाह की प्रशंसा कर रहा है। मैं बस उसे बोलते हुए देखती रह जाती हूँ और बाद में मेरे भारतीय मित्र ने मुझे हिंदी में उसकी बातें समझाई। लगभग आधी रात को, वापस लौटते समय, हमारा जो कैब चालक था वो दिन में संगीतकार का काम करता है। कैब में बैठते ही उसने बोलना शुरू कर दिया। वह अपदस्थ शाह की प्रशंसा करता है और खुद को अरियाई (आर्यन) राष्ट्रवादी कहता है। वह अख़लक़-ए-ईरान (ईरानी लोकाचार) की बात करता है, जिसे मुल्लाहों ने बिगाड़ दिया है। वह शिकायत करता है कि उन्नीसवें दशक के अंत में क़ाजार से लेकर आज तक, सरकार हमें बताती रही है कि हमें क्या पहनना है और कैसे जीवन जीना है। ईरान में कई लोग सामाजिक और सांस्कृतिक व्यवहार को नियंत्रित करने की सरकार के प्रयास से नाराज़ हैं।
(तेहरान विश्वविद्यालय के किनारे इंगहेलाब सड़क है, बगल के रास्ते पर आप प्रसिद्ध ईरानियों के साथ-साथ अमेरिकी अभिनेताओं और निर्देशकों और यूरोपीय प्रबोधन दर्शनज्ञ की वुड प्रिंट्स देखते हैं, तस्वीर: दीपिका सारस्वत)
शहर के बहुत ही भीड़-भाड़ वाले केंद्र में, दो सबसे महत्वपूर्ण सड़कों-इंगहेलाब और वली अस्र के चौराहे पर पार्क-ए-दानेशजू (छात्र पार्क) स्थित है। यह 1962 में खोला गया एक प्रदर्शन कला परिसर (थिएटर शहर) है, और क्रांति के बाद से, संस्कृति और इस्लामी मार्गदर्शन मंत्रालय ने इसका संचालन भार संभाला है। तेहरान विश्वविद्यालय और आज़ादी टॉवर, एक और पूर्व-क्रांति स्मारक, दोनों से पैदल दूरी के भीतर स्थित है। यह कला और राजनीति का एक केंद्र है। यह कला प्रेमियों, छात्रों, युवा जोड़ों, समलैंगिकों और ड्रग-बिसातियों को भी आकर्षित करता। जिस शाम मैं अपने भारतीय मित्र के साथ वहां थी, दंगा पुलिस ने गोलाकार संरचना को घेरकर रखा हुआ था, पर फिर भी लोग बड़े ही आराम से वहां पर अन्दर-बाहर आ-जा रहे थे। इंगहेलाब सड़क पर, जवान लड़कों और लड़कियों के एक छोटे समूह ने आईआरजीसी द्वारा गलती से मार गिराए गए उक्रेनियाई विमान के पीड़ितों के लिए जलूस का आयोजन किया था, जो आईआरजीसी के हाथों गलती से मारे गए थे। मेरा भारतीय मित्र मज़ाक में बताता है कि यह तेहरान का जंतर-मंतर है, यहाँ पर हर दो-तीन महीने के नियमित अंतराल में शासन-विरोधी विरोध प्रदर्शन होते रहते हैं। जैसे ही हम पास के एक कैफे में घुसे, हमने सुना कि दंगा पुलिस ने प्रदर्शनकारियों पर आंसू गैस छोड़ दिया है।
पिक्सेल कैफे का नाम इसकी दीवारों पर टंगी 8-बिट पिक्सेल की कला तस्वीरों से पड़ा है। आप मर्लिन मुनरो की तीन अलग-अलग तस्वीरें, जॉनी डेप की एक तस्वीर देखते हैं और उनके बीच एक प्रसिद्ध ईरानी उपन्यासकार फ़ोरो फ़ारोखज़ाद की तस्वीर लगी है। अगर कई लोग मर्लिन को कामुकता और मासूमियत दोनों का प्रतीक मनाते हैं, तो वहीँ फ़ोरो फ़ारोखज़ाद को, उनकी मृत्यु के साठ साल से अधिक समय बाद और राष्ट्रीय आइकॉन के पैनथियन को पलट देने वाली एक क्रांति के बाद भी, लोगों का प्यार मिलता है और एक सर्वोत्कृष्ट रिवाज़ तोड़ने वाले के तौर पर देखा जाता है। फ़ारोखज़ाद की अंतरंग, विद्रोही कविता ने ईरानी साहित्यिक शैली को बदल दिया। एक युवा बरिस्ता मुझे बताता है कि पिछले दशक तक ईरान में उनकी पुस्तकों पर प्रतिबंध लगा हुआ था। फ़ारोखज़ाद के उथल-पुथल से भरे जीवन के बारे में बोलते हुए, वह बहुत ही भावुक है। 16 वर्ष की कम आयु में, उसने अपने चचेरे भाई, प्रसिद्ध कलाकार परविज़ शेपोर के साथ अपने परिवार की इच्छाओं के खिलाफ शादी कर ली, और फिर एक बेटा होने के तुरंत बाद, कविता और कला का अनुसरण करने के लिए उन्होंने अपने पति और बेटे को छोड़ दिया। बाद में, वे लेखक फिल्म निर्माता, अब्राहिम गोलेस्टन के प्यार में पड़ गईं, जो अब लंदन में रहते हैं। जब उस युवा बरिस्ता ने नौवीं सदी के फ्रांसीसी उपन्यासकार गुस्ताव फ्लौबर्ट की उतनी ही प्रशंसा की तो मैं स्तब्ध रह गई। बाद में मैंने उसके इंस्टाग्राम पेज पर देखा कि वह ‘सेंटिमेंटल एजुकेशन, तरबियत एहसासत’ का फारसी अनुवाद पढ़ रहा है। मैंने एक युवा ईरानी राजनयिक से पूछा कि क्या उन्होंने कभी फ्लौबर्ट की किताब पढ़ी है, तो उन्होंने बड़े ही उत्साह से जवाब दिया कि ‘मैडम बोवरी’ और ‘सेंटिमेंटल एजुकेशन’ उनकी पसंदीदा किताबें हैं। यह समझना मुश्किल नहीं है कि फ्लौबर्ट की मास्टरपीस ‘मैडम बोवरी’, जो उन्होंने तब लिखी थी जब निर्वाचित राष्ट्रपति लुइस नेपोलियन बोनापार्ट एक चाल चल कर राष्ट्रपति से सम्राट बन गया और प्रचार के दम पर शासन किया, कुछ ईरानी युवाओं में इतनी लोकप्रिय क्यों है।
(कैफे संस्कृति न केवल तेहरान में फली-फूली है, बल्कि ईरान के अधिकतर शहरों में भी फैली है। तस्वीर: दीपिका सारस्वत)
तेहरान में अपनी आखिरी शाम को मैं इंगहेलाब सड़क पर वापस आई। वहाँ मेरी मुलाकात ताहौरा से हुई, जो चादर पहनी हुई एक जवान लड़की थी, जिसे मैंने पिक्सेल कैफे का रास्ता पूछने के लिए रोका था। वाक्पटुता के साथ अंग्रेजी बोलते हुए उसने मुझसे अनुरोध किया कि क्या वह अपने देश और लोगों पर मेरे विचारों की रिकॉर्डिंग कर सकती है, उसके बाद उसने मुझे कैफे तक का रास्ता दिखाया। मैं बोलती गई पर उसने रिकॉर्ड करना बंद नहीं किया, तब भी जब मैंने उससे पूछा कि वो अरबी भाषा क्यों सीख रही है और जनरल सुलेमानी के बारे में उसके क्या विचार हैं। उसने मुझे बताया कि उसने चादर पहनने का फैसला इसलिए नहीं किया क्योंकि उसके माता-पिता पारंपरिक ख़यालात वाले लोग हैं – उसकी माँ एक शिक्षिका हैं और वो खुद ही चादर नहीं पहनती हैं – बल्कि इसलिए क्योंकि वो एक प्रयोग करना चाहती थी और उसे चादर पहनकर सुरक्षित और सशक्त महसूस होता है। उसके बाद, वो कहती है कि सुलेमानी एक वीर हैं, एक पूरी तरह से परिपूर्ण इंसान है। उसे वो इसलिए पसंद हैं क्योंकि वो इस बात की चिंता नहीं करते कि महिलाएं चादर पहनती हैं या नहीं। वो बताती है कि उसके दोस्तों को ये जानकार आश्चर्य हुआ कि वो अरबी भाषा सीख रही है, लेकिन उसका मानना है कि अरबी सीखने से उसे कुरान को खुद समझने में मदद मिलेगी। जब मैंने सुलेमानी की तुलना एक राजशाह नादेर शाह के साथ की तब ताहौरा उससे कुछ खुश नहीं लगी। वो बताती है कि ‘नादेर शाह बहुत ही सख्त था और लोगों को अपनी सरकार चुनने नहीं देता था’। वो केवल चौदह साल की है लेकिन मुझे नहीं लगता कि एक ऐसे नेता के लिए उसके मन में जो सम्मान है बड़े होने पर बदलेगा जिसके बारे में वो ये सोचती है कि वो व्यक्तिगत स्वतंत्रता और लोकतंत्र के समर्थक हैं।
धर्मनिरपेक्ष उदारतावाद चढ़ाव पर?
कैफे जाने वाले, सिगरेट और हुक्का पीने वाले और फ्रांसीसी-साहित्य पसंद करने वाले स्टाइलिश ईरानी युवा लड़के और लड़कियां क्रांतिकारी नागरिकता से बिलकुल अलग हैं, जिसका सपना आज भी इस्लामिक रिपब्लिक के कुछ नेता देखते हैं। वो नागरिक स्वतंत्रता, व्यक्तिगत एजेंसी और लोकतंत्र के मुद्दों से बहुत सरोकार रखते हैं, और गौरवान्वित राष्ट्रवादी हैं जिन्हें अमेरिका द्वारा टॉप जनरल सुलेमानी की हत्या से चोट पहुंची है। क्रान्ति-पूर्व दशकों में, ईरानी बुद्धिजीवियों ने पहलावी राजशाही के अधीन तेजी से बढ़ती पश्चिमी सभ्यता के दौर में वास्तविकता की खोज करने पर अपना ध्यान केन्द्रित किया. ऐसी सांस्कृतिक स्थिति की अहमद फर्दिद ने घर्बज़ादेगी या पश्चिमी पागलपन नाम के रोग से तुलना की थी। जलाल एल-ए अहमद, जिन्होंने इस धारणा को हवा दी थी, उनका तर्क था कि यह अनुपचारित घर्बज़ादेगी या सभी पश्चिमी चीजों के प्रति अत्यधिक आकर्षण ईरान की स्वदेशी सांस्कृतिक, राजनीतिक और आर्थिक ताने-बाने के पतन का कारण बनेगा। अली शरिअती, जो रोशनफेक्र, प्रबुद्ध व्यक्ति, के नाम से प्रख्यात हुए, इस्लाम को एक निजी नैतिकता और धार्मिक तंत्र से आगे बढ़ाकर एक क्रांतिकारी आंदोलन बनाने में मुख्य भूमिका निभाई थी। विश्वविद्यालयों में फ्रेंच-शिक्षित व्याख्यानकर्ताओं, जैसे कि कई दशकों से सांस्कृतिक वास्तविकता की तलाश में जुटे फर्दिद, द्वारा पढ़ाया जाने वाला महाद्वीपीय यूरोपीय दर्शन, खास कर हाईडेगर और सार्ट्रे का अस्तित्ववाद क्रांति की ओर ले जाता है। अल-ए-अहमद और शरिअती की रचनाएँ अभी भी तेहरान की किताबों की दुकानों में देखी जाती हैं, लेकिन धर्मशासित गणराज्य के बदले राजनीतिक संदर्भ और मार्क्सवाद के घटते महत्व, जिसने क्रांतिकारी इस्लामवाद को गंभीर रूप से प्रभावित किया था, का अर्थ है कि ईरानी युवा उदारवाद की ओर बढ़ रहे हैं। जब से अयातोल्लाह देश पर शासन कर रहे हैं, वियनायी दार्शनिक कार्ल पॉपर, जिनकी 'द ओपन सोसाइटी एंड इट्स एनीमीज़' का फ़ारसी में अनुवाद अज़ातुल्लाह फौल्दवंद ने अस्सी के दशक में किया था, और जिसकी मार्क्सवाद आलोचना को धार्मिक-बुद्धिजीवी अब्दुलकरिम सोरौश ने लोकप्रिय बनाया था, ने ईरान में बहुत ध्यान आकर्षित किया है। पॉपर ने अपने विज्ञान के दर्शन में इस विचार को सामने रखा कि कोई भी विज्ञान या ज्ञान निरपेक्ष नहीं हो सकता है या ‘सिद्ध’ नहीं किया जा सकता है, केवल प्रयोग और अनुभव के माध्यम से गलत साबित किया जा सकता है। वो मार्क्सवादियों और फ़ासिस्टों, जिन्हें वो ‘झूठे प्रोफेट’ कहते थे, द्वारा समर्थित 'सत्य’ और सत्ता के केंद्रीकरण के वैचारिक दावों के खिलाफ बोले। एक खुले समाज की कल्पना, जिसमें हर इंसान का महत्व है और स्वतंत्रता से सोचने की छूट है, सोरौश जैसे ईरानियों के ज़हन में बैठ गया। उन्होंने देखा कि इस्लामिक विचारधारा एक अपरिवर्तनीय विश्वदृष्टि के रूप मैं सम्पूर्ण धर्म की सकलता को घटाने का जोखिम पैदा करती है। जर्मन दर्शनज्ञ होर्गेन हबेरमास, जिनकी एक कार्यसाधक लोकतंत्र के प्रमुख घटकों के रूप में नागरिक समाज और लोक क्षेत्र की अवधारणा ने ईरानियों को बहुत लुभाया है, और जब राष्ट्रपति खातमी ने अलग-अलग सभ्यताओं से बात करने की इच्छा जताई थी, तब रिचर्ड रोर्टी, व्यावहारिक परंपरा के एक अमेरिकी दर्शनज्ञ ने 2000 की शुरुआत में तेहरान का दौरा किया और लोगों ने उनका स्वागत भी किया था।
कोम शहर, धार्मिक शिक्षा स्थल, में एक-के-बाद-एक बुकस्टोर इस्लामिक कानून, दर्शन और विधिशास्त्र की पुस्तकों से भरी हैं; मैंने परमाणु विधिशास्त्र नामक एक पुस्तक भी देखी। ‘द क्राइसिस ऑफ मॉडर्निटी एंड इस्लाम’, ‘अशुरा: ए रेवोलुशन इन कॉन्शियसनेस एंड बॉडी’, 'आइंस्टीन एंड रिलिजन,' 'मुहम्मद इन यूरोप: ए थाउज़ेंड इयर्स ऑफ़ वेस्टर्न मिथ-मेकिंग,' 'प्रिंसिपल्स ऑफ़ अपब्रिंगिंग बेस्ड ऑन कुरान,' ‘गाइडेंस इन फॉलोविंग वर्चू एंड अवॉयडिंग सिन’, 'इकनोमिक जिहाद: बेस्ड ऑन कुरान’ नामक पुस्तकें शासन का इस्लामिक प्रतिमान कायम करने के संबंध में व्यवस्थित प्रयासों को इंगित करती हैं पर धार्मिक नियमों के अनुसार जीवन जीने का मार्गदर्शन भी प्रदान करती हैं। अमेरिकी और इजराइली जासूसी ऑपरेशन पर कई पुस्तकें, जिनमें ‘ब्रेनवॉश: द सीक्रेट हिस्ट्री ऑफ़ माइंड कंट्रोल' और ‘बर्न बिफोर रीडिंग: प्रेसिडेंट्स, सीआईए डायरेक्टर्स, एंड सीक्रेट इंटेलिजेंस’, ‘ए स्पाई फॉर ऑल सीजन्स: माय लाइफ इन द सीआईए’ शामिल हैं, अमेरिका द्वारा इस्लामिक रिपब्लिक के मामलों में हस्तक्षेप करने और बाधा डालने पर रूढ़िवादी इस्लामिक धमकी पर चर्चाओं का एक भाग है। लेकिन इन सबके बीच, आप ‘राइज एंड फॉल ऑफ नाज़िस्म’, 'द लिबरलिज़्म लेडी: हैनाह ऐरेंडेट’, ‘इरानियन लिबरलिज्म’ देखेंगे और निर्वासित धार्मिक-बुद्धिजीवी अब्दुल करीम सोरौश की पुस्तकें भी देखेंगे जिन्होंने इस्लाम की उदार-लोकतांत्रिक पठन का आह्वान किया है।
ईरान में जो कुछ भी सामने आ रहा है, वह ईरान की पश्चिमी औपनिवेशिक आधुनिकता के साथ समझौते की एक सदी से अधिक लंबी प्रक्रिया का हिस्सा है, जिसमें एक आधुनिक ईरानी राष्ट्र की कल्पना और ईरान के इस्लामी और पूर्व-इस्लामी इतिहास और पश्चिम, जिसे विडंबनापूर्ण रूप से तकनीकी और आर्थिक प्रगति के लिए एक संदर्भ बिंदु और गैर-पश्चिमी लोगों और मुस्लिम राष्ट्रों के अधिकारों और प्रतिष्ठा पर थोपी गई एक शासी शक्ति के रूप में देखा जाता है, के साथ इसके संबंध विदेशी चालों और लोकप्रिय क्रांतियों के कारण विवादास्पद राजनीति के विषय रहे हैं। 1979 की इस्लामी क्रांति ने पश्चिमीकरण और अमेरिका द्वारा समर्थित पहलावी शाह को उखाड़ फेंका। शाही राजशाही या शहंशाही (‘राजाओं के राजा’) की ईरानी परंपरा के इतिहास को समाप्त करते हुए, इसने ईरान के लिए ‘लोकतंत्र के महान प्रयोग’ का मार्ग प्रशस्त किया है। इस्लामी क्रांतिकारी परियोजना, जिसकी पिछले साल फरवरी में क्रांति की चालीसवीं वर्षगांठ पर सुप्रीम लीडर ने जिसकी पुन: पुष्टि की थी, इस्लामी सभ्यता के पुनर्निर्माण के बारे में है। हालाँकि, इस्लामिक और रिपब्लिक के बीच दार्शनिक तनाव और पश्चिम, विशेष रूप से संयुक्त राज्य अमेरिका के साथ संबंधों के तनाव पर विभिन्न गुटों द्वारा बहस जारी है, जिसमें सुप्रीम लीडर के धार्मिक-वैचारिक विश्वदृष्टि का अक्सर ऊपरी हाथ रहा है। हालांकि, इस तरह की विश्वदृष्टि को युवा साझा नहीं करते हैं, वे न केवल एक वैश्विकृत दुनिया की सांस्कृतिक तरलता को साझा करते हैं, बल्कि एक शक्तिशाली राज्य तंत्र के खिलाफ अपनी व्यक्तिगत एजेंसी की भी बात कर रहे हैं, जो स्वयं इस्लाम की सामूहिक अवधारणा को पुनरुत्पादित करना चाहते हैं। मैं 23 वर्षीय रहील के बारे में सोचती हूं कि जब वह मेरे लिए एक कप ओमानी चाय बना रही थी तब उसने कैसे अपने हिजाब को एक स्टाइलिश हेड गियर में बदल दिया। अहवाज़ की ये युवा महिला अपनी बरिस्ता की पार्ट-टाइम नौकरी से अपना भरण-पोषण करती है और हेल्थकेयर इंजीनियरिंग की अपनी पढ़ाई पूरी करने के बाद विदेश में नौकरी पाने की आशा अपने मन में जगाई हुई है। वह उदासी के साथ कहती है, ‘उसके सामने दुनिया देखने का अपना सपना पूरा करने के लिए बस विदेश में रहने का एकमात्र रास्ता है’, ‘ईरानी मुद्रा बहुत कमजोर है, ईरान में कोई पैसा नहीं है’।
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* डॉ. दीपिका सारस्वत, शोधकर्ता, विश्व मामलों की भारतीय परिषद।
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