नेपाल में पिछले साल आम चुनाव होने के बाद साम्यवादी दल की सरकार सत्तारूढ़ हुई और के पी शर्मा ओली 15 फरवरी 2018 को प्रधानमन्त्री पद पर आसीन हुए. इसके बाद भारत और नेपाल के बीच आपसी यात्रायें हुई और कई महत्वपूर्ण द्विपक्षीय समझौतों पर हस्ताक्षर हुए. इसमें दोनों देशों के मध्य सहयोग, कनेक्टिविटी, आपसी विश्वास और लोगों के मध्य आपसी संपर्क को बढाने में काफी मदद मिली है. विगत वर्षों में एक दूसरे राष्ट्र का महत्व समझते हुए, एक तरफ जहाँ भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अब तक नेपाल की चार बार यात्रा की वहीं दूसरी तरफ नेपाल के प्रधानमंत्री ओली ने अपने दोनों कार्यकालों में भारत को राजकीय यात्रा के लिए प्रथम वरीयता दी. संभवतया, साल 2015 में नए संविधान की घोषणा और अघोषित नाकाबंदी के बाद दोनों देशों के मध्य संबंधों में आए ठहराव और अविश्वास को समाप्त करने का दोनों पक्षों की तरफ से भरपूर प्रयास किया गया. इसके साथ साथ दोनों देशों ने द्विपक्षीय संबंधों को मजबूत करने के अतिरिक्त बहुपक्षीय मंचों की सार्थकता समझते हुए क्षेत्रीय स्तर पर भी सहयोग को आगे बढाया है. इस लेख में पिछले एक साल में दोनों देशों के मध्य हुई पारस्परिक यात्राओं के महत्व और इस दौरान हुए समझौतों का वर्णन है.
ओली की भारत यात्रा
नेपाल के नवनिर्वाचित प्रधानमन्त्री के पी शर्मा ओली 6 से 8 अप्रैल तक भारत के दौरे पर रहे. विगत वर्ष हुए संघीय और प्रांतीय स्तर के चुनावों में अप्रत्याशित जीत के बाद ही यह निश्चित हो गया था कि एमाले के अध्यक्ष के पी शर्मा ओली नेपाल के नए प्रधानमन्त्री होंगे. वर्ष 2015 में बने नेपाल के नए संविधान के लागु करने की प्रक्रिया को पूरा करते हुए ओली 15 फरवरी 2018 को प्रधानमन्त्री पद पर आसीन हुए. ओली के प्रधानमन्त्री बनने के एक सप्ताह के भीतर भारत के प्रधानमन्त्री नरेंद्र मोदी ने उन्हें बधाई दी और भारत आने का न्योता भी दिया. ओली की प्रधानमन्त्री के रूप में यह भारत की दूसरी यात्रा थी इससे पहले वह मार्च 2016 में भारत आए थे. इस यात्रा से पूर्व के दो घटनाक्रमों को देखना यहाँ जरुरी है. पहला, काफी समय बाद नेपाल के ऐसे प्रधानमन्त्री भारत आए जो कि आम चुनाव द्वारा निर्वाचित हैं, एक स्थिर सरकार के मुखिया हैं और संसद में उन्हें बहुमत प्राप्त है. दूसरा, मार्च महीने में पाकिस्तानी प्रधानमन्त्री शाहिद खाकान अब्बासी के नेपाल दौरे के बाद नेपाल के राजनीतिक नेतृत्व पर भारत यात्रा का एक मनोवैज्ञानिक दबाव भी था. इस यात्रा के दौरान दोनों देशों के बीच तीन महत्वपूर्ण समझौते हुए. रेल लिंक समझौता: रक्सौल से काठमांडू तक- भारत और नेपाल के प्रधानमन्त्री एक नई विधुतीकरण रेल लाइन के निर्माण पर सहमत हुए, जिसमे भारत आर्थिक सहायता प्रदान करेगा. यह रेल लाइन भारत के सीमावर्ती शहर रक्सौल को नेपाल की राजधानी काठमांडू से जोड़ेगी. भारत सरकार इसके लिए नेपाल सरकार से विमर्श करेगी और एक साल में इसका प्राथमिक सर्वे का काम पूरा होगा. दोनों पक्ष इस प्रोजेक्ट के लागू होने का अंतिम फैसला विस्तृत रिपोर्ट तैयार होने पर करेंगे.
दूसरा महत्वपूर्ण समझौता नेपाल को जलमार्ग से समुद्र तक रास्ता देना है जिसके अंतर्गत प्रधानमंत्री मोदी ने सागरमाथा को सागर से जोड़ने की बात कही है. दोनों प्रधानमंत्रियों ने इस पर सहमति प्रकट करते हुए कहा कि व्यापार और पारगमन की व्यवस्थाओं के तहत नेपाल को अतिरिक्त रूप से समुद्री मार्ग मिलेगा और कार्गो और ट्रकों की सुगम आवाजाही होगी. इस पर दोनों नेताओं ने अपने अधिकारियों को निर्देश दिए कि आपसी सहमति के आधार पर इसके लिए आवश्यक प्रक्रिया का सूत्रीकरण किया जाए.
तीसरा समझौता कृषि क्षेत्र में नई साझेदारी को लेकर हुआ. दोनों देशों के किसानों, उपभोक्ताओं, वैज्ञानिक समुदाय और निजी सेक्टर के पारस्परिक लाभ के आधार पर बने ज्ञापन समझौते के तहत कृषि विज्ञान और तकनीक तथा कृषि उत्पादन और कृषि प्रक्रिया में सहयोग को शामिल किया गया है. यह साझेदारी कृषि अनुसन्धान और विकास, शिक्षा, प्रशिक्षण और छात्रवृत्ति की संयुक्त परियोजनाओं पर केन्द्रित होगी. इसके तहत बीज तकनीक, मृदा गुणवत्ता, मूलनिवासियों की पीढ़ियों के संसाधन, कृषि- वन जैविकता, जैव उर्वरकता आदि पर अनुसन्धान शामिल है.[1]
वस्तुतः नेपाल के प्रधानमन्त्री ओली की इस यात्रा में समझौतों से अधिक आपसी विश्वास के निर्माण पर बल दिया गया. इस यात्रा के दौरान नेपाल का राजनीतिक नेतृत्व एक नई राजनीतिक व्यवस्था और एक नई सोच के साथ भारत से अपने रिश्ते आगे बढ़ाने के मकसद को प्रकट करने के प्रयास करते दिखा. मोदी और ओली की बैठक के दौरान नेपाल के प्रधानमन्त्री ने एक महत्वपूर्ण बात कही कि हमारे लिए संधि समझौतों से पहले अपनी मित्रता है, जिसका समर्थन प्रधानमन्त्री मोदी ने भी किया और उन्होंने कहा कि हम भी यही चाहते है कि आपसी विश्वास बढे और मित्रता मजबूत हो.[2] इस यात्रा के भारत ने सार्क के इतर बिम्सटेक और बी बी आई एन जैसी उप क्षेत्रीय संगठनों में साझेदारी के संकेत दिए. चीन की ओबोर परियोजना और पाकिस्तानी प्रधानमंत्री द्वारा नेपाल में कनेक्टिविटी की बात करना कही ना कही नेपाल को पाकिस्तान और चीन के हमराही के रूप में दिखाता है. लेकिन भारत ने नेपाल की स्थल-बद्धता को जानते हुए इस बार रेलमार्ग और जलमार्ग जैसे संपर्कों से नेपाल को कनेक्टिविटी देने की पहल की. कुछ विश्लेषक इसे वर्ष 2016 में नेपाल चीन के मध्य हुए रेल मार्ग समझौते का प्रत्युत्तर मानते है. यहाँ तक कि संयुक्त वक्तव्य में भारत के प्रधानमन्त्री मोदी द्वारा सागरमाथा से सागर तक जोड़ने की बात इसको पूर्ण रूप से सिद्ध करती है.
मोदी की नेपाल यात्रा
अप्रैल माह में नेपाल के प्रधानमन्त्री के पी शर्मा ओली की भारत यात्रा के बाद प्रधानमन्त्री मोदी की नेपाल यात्रा को एक त्वरित पारस्परिक यात्रा के तौर पर देखा जा सकता है. 11 और 12 मई की यह दो दिवसीय राजकीय यात्रा भारतीय प्रधानमन्त्री के धार्मिक भ्रमण के अतिरिक्त नेपाली जनता से मुखातिब होने की झलक प्रस्तुत करती प्रतीत हुई. इस यात्रा में भारतीय प्रधानमन्त्री काठमांडू के अतिरिक्त नवगठित प्रान्त-2 की राजधानी जनकपुर गए जो कि इस यात्रा को महज राजनीतिक नेतृत्व की बैठक और संवाद के अतिरिक्त भारत के प्रधानमंत्री को नेपाल के स्थनीय स्तर से संवाद करने का अवसर प्रदान करता है. इस यात्रा में प्रधानमन्त्री मोदी का जानकी मंदिर, मुक्तिनाथ मंदिर और पशुपतिनाथ मंदिर जाना सांस्कृतिक कूटनीति के तहत दोनों देशों के आपसी मेल मिलाप को बढाने और रिश्तों को प्रगाढ़ करने की दिशा में प्रयत्न को प्रदर्शित करता है.
प्रधानमन्त्री मोदी ने अपनी नेपाल यात्रा जनकपुर से शुरू की, उनका वहाँ स्वागत नेपाल के रक्षा मंत्री ईश्वर पोखरेल ने किया, प्रान्त-2 में उनके नागरिक अभिनन्दन समाहरोह के कारण अवकाश घोषित किया गया. प्रधानमन्त्री मोदी ने इस अवसर पर अपना अभिभाषण नेपाली मैथिली और हिंदी भाषा में दिया. उन्होंने कहा कि भारत और नेपाल दो देश है, लेकिन हमारी मित्रता आज की नहीं त्रेता युग की है. राजा जनक और राजा दशरथ ने सिर्फ जनकपुर और अयोध्या को ही नहीं, भारत और नेपाल को भी मित्रता और साझेदारी के बंधन में बांध दिया था. यह बंधन है राम-सीता का, यह बंधन है बुद्ध का भी और महावीर का भी और यही बंधन रामेश्वरम में रहने वालों को खींचकर पशुपतिनाथ लेकर आता है. यही बंधन लुम्बिनी में रहने वालों को बौद्ध-गया ले जाता है और यही बंधन, यही आस्था, यही स्नेह आज मुझे जनकपुर खींच ले आया है. हमारी माता भी एक-हमारी आस्था भी एक; हमारी प्रकृति भी एक-हमारी संस्कृति भी एक; हमारा पथ भी एक और हमारी प्रार्थना भी एक. हमारे परिश्रम की महक भी है और हमारे पराक्रम की गूंज भी है. हमारी दृष्टि भी समान और हमारी सृष्टि भी समान है. हमारे सुख भी समान और हमारी चुनौतियां भी समान हैं. हमारी आशा भी समान, हमारी आकांक्षा भी समान है. हमारी चाह भी समान और हमारी राह भी समान है. ..... हमारे मन, हमारे मंसूबे और हमारी मंजिल एक ही है. यह उन कर्मवीरों की भूमि है जिनके योगदान से भारत की विकास गाथा में और गति आती है. उन्होंने कहा कि 'व्यक्ति और सरकारें आती जाती रहती है लेकिन सदियों पुराने हमारे सम्बन्ध हमेशा मजबूत रहेंगे'. धार्मिक परिप्रेक्ष्य में उन्होंने कहा कि अयोध्या जानकी के बिना अधूरा है तथा भारत के तीर्थ स्थान और राम नेपाल के बिना अपूर्ण है. नेपाल के विकास हेतु प्रधानमन्त्री मोदी ने नेपाल सरकार को सहायता के लिए प्रतिबद्धता दिखाई. उन्होंने प्रान्त-2 के लिए 1 बिलियन (भारतीय) रुपये की आर्थिक सहायता की घोषणा की, जिससे कि जनकपुर और उसके आसपास के क्षेत्रों में विकास के कार्य किए जा सके. इस अवसर पर प्रधानमन्त्री मोदी ने कहा कि 'मैं यह अनुदान सवा सौ करोड़ भारतीयों की तरफ से माता जानकी के चरणों में भेंट करता हूँ'. इस बात को नेपाली मीडिया ने नाटकीय रूप बताते हुए वर्ष 2015 में हुई अघोषित नाकाबंदी की क्षमा के रूप में बताया.[3] उन्होंने आगे कहा कि इतिहास साक्षी रहा है कि जब-जब एक-दूसरे पर संकट आए, भारत और नेपाल, दोनों मिलकर खड़े हुए. हमने हर मुश्किल घड़ी में एक-दूसरे का साथ दिया है. भारत दशकों से नेपाल के विकास का एक स्थाई साझेदार है. नेपाल हमारी पडोसी पहले की नीति में सबसे आगे आता है, सबसे पहले आता है. हम हिमालय पर्वत से जुड़े हैं, तराई के खेत-खलिहानों से जुड़े हैं, अनगिनत कच्चे-पक्के रास्तों से जुड़े हैं. छोटी-बड़ी दर्जनों नदियों से जुड़े हुए हैं और हम अपनी खुली सीमा से भी जुड़े हुए हैं. लेकिन आज के युग में सिर्फ इतना ही काफी नहीं है. हमें, और मुख्यमंत्री जी ने जितने विषय बताए, मैं बहुत संक्षिप्त में समाप्त कर दूंगा। हमें हाइवे से जुड़ना है, हमें information ways यानी I-ways से जुड़ना है, हमें trans ways यानी बिजली की लाइन से भी जुड़ना है, हमें रेलवे से भी जुड़ना है, हमें custom check post से भी जुड़ना है, हमें हवाई सेवा के विस्तार से भी जुड़ना है. हमें inland water ways से भी जुड़ना है, जलमार्गों से भी जुड़ना है. जल हो, थल हो, नभ हो या अंतरिक्ष हो, हमें आपस में जुड़ना है. जनता के बीच के रिश्ते-नाते फलें-फूलें और मजबूत हों, इसके लिए connectivity अहम है. यही कारण है कि भारत और नेपाल के बीच connectivity को हम प्राथमिकता दे रहे हैं.[4]
इस यात्रा के दूसरे दिन काठमांडू में जारी हुए संयुक्त वक्तव्य में कुछ महत्वपूर्ण कदमों को शामिल किया गया, जिसके तहत एक साल में रक्सौल-काठमांडू रेल सेवा के सर्वे को पूरा करने की बात कही गयी. संयुक्त वक्तव्य के अनुसार दोनों देशों के प्रधानमन्त्री इस बात पर भी राजी हुए कि अप्रैल माह में नेपाल के प्रधानमन्त्री की भारत यात्रा के दौरान हुए समझौतों और आपस में बनी समझ के मुताबिक सभी कार्यों को प्रभावशील तरीके से लागू किया जाएगा. इस बात पर भी सहमति बनी कि कृषि, रेल लिंक और जलमार्गों के विकास की द्विपक्षीय पहल को भी प्रभावी रूप से लागू किया जाए जिससे कि पूरे क्षेत्र में विकासात्मक परिवर्तन लाया जा सके. इस अवसर पर प्रधानमन्त्री ओली ने भारत नेपाल के मध्य व्यापार और पारगमन पर चिंता व्यक्त की और इसकी समस्याओं और समाधानों पर भी बात कही. दोनों नेताओं ने कनेक्टिविटी की बात पर भी बल दिया और कहा कि इससे आर्थिक उन्नति और आपस में जनता का संपर्क भी बढेगा.
नेपाल में इस यात्रा के मिश्रित भाव रहे, एक वर्ग यह मानता है कि दोनों देशों के मध्य पिछले कुछ समय में उत्पन्न हुए अविश्वास को इस यात्रा ने सफलतापूर्वक ख़त्म कर दिया है. वही दूसरा वर्ग मानता है कि इस यात्रा से प्रधानमन्त्री मोदी ने स्वयं की छवि, अपनी सरकार छवि को नेपाल की जनता समक्ष सुधारने तथा भारत में अपने राजनीतिक समकक्षों और पडौसी देशों की नजरों में भी छवि सुधारने की कोशिश की है. एक वर्ग यह भी मानता है कि इस यात्रा से नेपाल सरकार द्वारा भारत का तुष्टीकरण (अनावश्यक रूप से अभिनन्दन समाहरोह द्वारा खुश करने) करने का भी प्रयास किया गया.[5]
बिम्सटेक सम्मलेन
काठमांडू में 30-31 अगस्त को चौथा बिम्सटेक सम्मेलन आयोजित हुआ जिसमे प्रधानमन्त्री मोदी ने शिरकत की और वस्तुतः इस प्रकार उनकी यह नेपाल की चौथी यात्रा हो गयी. भारत के अलावा इस सम्मलेन में अन्य सदस्य राष्ट्रों के प्रमुखों ने भी भाग लिया. जिसमे सभी नेताओं ने क्षेत्रीय स्तर पर कनेक्टिविटी पर बल दिया. उद्घाटन सत्र में नेपाल के प्रधानमन्त्री ओली ने कहा कि बिम्सटेक से एक ऐसे जोड़ने वाले क्षेत्रीय समूह का विकास हुआ है; जो कि जुड़े हुए देशों, जुड़े हुए समाजों और जुड़े हुए लोगों का संगठन बन कर उभरा है. ओली ने इस अवसर पर यह भी कहा कि हम सभी को इस क्षेत्र में आतंकवाद, संगठित अपराध, मादक और मानव तस्करी के खिलाफ एकजुट होकर लड़ना चाहिए. इसके अतिरिक्त नेपाल के प्रधानमंत्री ने एक और महत्वपूर्ण बात कही कि बिम्सटेक को दक्षेस का विकल्प नहीं समझा जाये. इस दौरान भारत के प्रधानमन्त्री मोदी ने कहा कि भारत अपने नेशनल नोलेज नेटवर्क से नेपाल, बांग्लादेश और भूटान को डिजिटल कनेक्टिविटी से जोड़ना चाहता है.
इस प्रकार भारत ने बिम्सटेक और अन्य उपक्षेत्रीय संगठन जैसे बी बी आई एन को प्रोन्नत कर नेपाल के साथ रिश्ते न केवल प्रगाढ़ किये है बल्कि क्षेत्रीय स्तर पर इन स्थल-बद्ध देशों को कनेक्टिविटी के अवसर प्रदान किये है.
भारत नेपाल के मध्य आपसी यात्राओं की कड़ी में 6 सितम्बर को नेपाल के पूर्व प्रधानमन्त्री पुष्प कमल दहाल ने भारत की यात्रा की. इस दौरान उन्होंने नेपाल के राष्ट्रीय हितों और विकास के मुद्दों पर बातचीत की. इसी कड़ी में 12 दिसंबर को उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री आदित्यनाथ योगी की जनकपुर की यात्रा सांस्कृतिक रिश्तों को मजबूत करेगी. विगत समय में नेपाल में चीन के बढ़ते प्रभाव और निवेश के बावजूद, भारत और नेपाल दोनों देशों के मध्य पारस्परिक यात्राओं में नियमितता से संबंधों में विश्वास, स्थिरता और प्रगाढ़ता को मजबूत करने का प्रयास किया है. लेकिन भविष्य में दोनों देशों के संबंधों की प्रगाढ़ता इस बात पर भी निर्भर करेगी कि इन यात्राओं के दौरान हुए कनेक्टिविटी के समझौतों का क्रियान्वयन समय से पूरा हो पाता है कि नहीं.
*****
* डॉ राकेश कुमार मीना, अनुसन्धान अध्येयता, विश्व मामलों की भारतीय परिषद, सप्रू हाउस, नई दिल्ली |
डिस्क्लेमर: आलेख में दिए गए विचार लेखक के मौलिक विचार हैं और काउंसिल के विचारों को प्रतिबिम्बित नही करते है |
Endnotes
[1] Chandra Sekhar Adhikari, "New Channels of cooperation open", The Kathmandu Post, 8 April 2018,
http://epaper.ekantipur.com/the-kathmandu-post/2018-04-08/1
[2] परशुराम काफले, "प्रधानमन्त्री ओली को त्यों र यो भ्रमण", नयाँ पत्रिका, 11 अप्रैल 2018,
http://www.enayapatrika.com/2018/04/11/39432/
[3] Ajit Tivari, Shyam Sundar, "Strong ties 'shall always remain'", The Kathmandu Post, 12 May 2018,
http://epaper.ekantipur.com/the-kathmandu-post/2018-05-12/3
[4] ’Translation of Prime Minister's speech at civic reception in Janakpur during his visit to Nepal (May 11, 2018), Ministry of External Affairs, Government of India, May 12, 2018,
http://www.mea.gov.in/Speeches-Statements.htm?dtl/29890/Translation_of_Prime_Ministers_speech_at_Civic_Reception_in_Janakpur_during_his_visit_to_Nepal_May_11_2018
[5] Narayan Upadhyaya, "Improving Nepal India relations", The Kathmandu Post, 24 May 2018,
http://therisingnepal.org.np/news/23659