सार
वर्ष 2018 लैटिन अमेरिका और कैरिबियन क्षेत्र (LAC) में राजनीतिक परिवर्तन के मामले में बहुत महत्वपूर्ण रहा है। इस क्षेत्र में विविधता के बावजूद लैटिन अमेरिका में हुए हालिया चुनावों में पहले से कहीं अधिक आपसी समानता नज़र आती है। इन चुनावों ने, जो भ्रष्टाचार के खिलाफ, अधिक पारदर्शिता, बेहतर कानून-व्यवस्था और मज़बूत शासन के समर्थन में खड़े मंच से लड़े गए थे, इस क्षेत्र में मतदाताओं के दिल की धड़कन को पहचाना है। लैटिन अमेरिका में राजनीतिक दलों के प्रति अविश्वास की भावना है; हालाँकि, इतने लंबे समय तक मुख्य तौर पर से सत्तावादी शासन द्वारा नियंत्रित इस क्षेत्र में सत्ता का शांतिपूर्ण हस्तांतरण राजनीतिक स्थिरता और यहाँ के लोकतंत्र की शक्ति का सूचक है।
2018 में बांग्लादेश, भूटान, मालदीव और पाकिस्तान में चुनाव और 2017 में नेपाल के साथ दक्षिण एशिया एक समान प्रक्रिया से गुजर रहा है। अफगानिस्तान, भारत और श्रीलंका 2019 में चुनाव होंगे।
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परिचय
1 जनवरी 2019 को ब्राज़ील के राष्ट्रपति जायर बोल्सनारोi और 1 दिसंबर 2018 को मेक्सिको के राष्ट्रपति एंड्रेस मैनुअल लोपेज़ ओबराडोरii के सत्तासीन होने के साथ ही लैटिन अमेरिका की दो सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाओं के राष्ट्राध्यक्ष वे व्यक्ति बन गए हैं, जिन्हें सरकार -विरोधी माना जाता है।
ब्राजील और मेक्सिको में दो चुनाव हुए, लैटिन अमेरिका और कैरेबियन क्षेत्र में हुए चुनावों की श्रृंखला हुई, जिनसे इस क्षेत्र का राजनीतिक परिदृश्य बदल जाएगा। 2017 में चुनावी मौसम की शुरुआत चिली, होंडुरास और इक्वाडोर के चुनावों के साथ हुई। चिली में राजनैतिक रूप से दक्षिणपंथी राष्ट्रपति सेबेस्टियन पिनेरा ने रुकी हुई अर्थव्यवस्था को फिर से शुरू करने के वादे के दम पर चुनाव (दिसंबर 2017 में) जीता। चिली में हुए मतदान को समय की सरकार के खिलाफ और मतदाताओं की बदलाव लाने की इच्छा के तौर पर देखा गया। होंडुरास में दक्षिणपंथी नेता राष्ट्रपति जुआन ऑरलैंडो हर्नांडेज़ ने अपना दूसरा राष्ट्रपति चुनाव (नवंबर 2017 में) जीता। हालांकि विरोधियों और विपक्षी सदस्यों द्वारा चुनाव में धोखाधड़ी और धांधली होने का दावा किये जाने और चुनाव आयोग की तटस्थता पर सवाल उठाए जाने से चुनावों में हिंसा हुई. श्री लेनिन मोरेनो ने अप्रैल 2017 में इक्वाडोर में हुआ राष्ट्रपति का चुनाव जीता। उन्हें आर्थिक मंदी के बीच नौकरियों के सृजन के दबाव के अलावा सरकारी तेल कंपनी पेट्रो इक्वाडोर और ब्राज़ीली समूह ओडेब्रेच में भ्रष्टाचार के घोटालों का सामना करना पड़ रहा है।
2018 में ब्राजील, कोलंबिया, कोस्टा रिका, क्यूबा, अल सल्वाडोर (नगरपालिका और विधायी), मैक्सिको, पैराग्वे और वेनेजुएला में चुनाव हुए। इन चुनावों में नगरपालिका, प्रांतीय / राज्य स्तर के साथ-साथ संघीय / राष्ट्रपति चुनाव भी शामिल हैं।
छह देशों - बोलीविया, अर्जेंटीना, उरुग्वे, अल सल्वाडोर, पनामा, और ग्वाटेमाला में 2019 में राष्ट्रपति चुनाव होंगे। इस तरह से 2017-19 के बीच दो साल में इस क्षेत्र के लगभग सोलह देश चुनावी चक्र से गुज़र चुके होंगे, जिससे इस क्षेत्र की राजनीतिक और आर्थिक पृष्ठभूमि बदल जाएगी।
चुनावों का अवलोकन
लैटिन अमेरिका में कई जातीय समूहों, विभिन्न आर्थिक विकास स्तर और वैचारिक रूप से विविध संघीय सरकारों वाले देशों सहित अत्यधिक विविधतापूर्ण आबादी है. इसके बावजूद बड़े और छोटे, दोनों तरह के देशों की राजनीति में लोकलुभावनवाद में वृद्धि और ’मज़बूत’ नेताओं का चुनाव करने की इच्छा देखी गई है। राजनीतिक दलों और उम्मीदवारों के प्रति सामान्य असंतोष नज़र आता है। इन चुनावों में हुआ मतदान अक्सर उम्मीदवारों और / या राजनीतिक दलों के पक्ष में होने के बजाय अन्य विकल्पों को नकारने के लिए हुआ है। निरंकुश शासन के इतिहास के वाले इस क्षेत्र में व्यापक तौर पर फैले भ्रष्टाचार के मामलों, जिनमें न केवल कोई विशेष व्यक्ति या पार्टी, बल्कि सभी राजनीतिक दल शामिल हैं, जिनमें कुछ राष्ट्राध्यक्ष, अन्य सरकारी नेता और प्रमुख व्यवसाय भी हैं, ने इस क्षेत्र में राजनीतिक प्रक्रिया को कमज़ोर कर इन देशों की लोकतांत्रिक साख पर सवाल खड़े किये हैं।
यह कोई आश्चर्यजनक बात नहीं है कि सभी विजेता उम्मीदवारों के मामले में भ्रष्टाचार ने महत्वपूर्ण घरेलू भूमिका निभाई है। यह बात सरकारी स्वामित्व वाली पेट्रो ब्रास में भ्रष्टाचार से जुड़े बड़े मामलों, जिनमें पूर्व राष्ट्रपति और अन्य नेता शामिल हैं, से निपटने की कोशिश कर रहे ब्राज़ील में राष्ट्रपति बोल्सनारो के चुनाव में केंद्रीय मुद्दा रही है। मेक्सिको में राष्ट्रपति ओबराडोर के चुनावी अभियान का केंद्र बिंदु भ्रष्टाचार को मिटाना और सरकार में पारदर्शिता लाना था। मैक्सिकन अधिकारी पूर्व राष्ट्रपति पेना नीटो की पार्टी पीआरआई के उच्च अधिकारियों के खिलाफ भ्रष्टाचार के मामलों की जांच कर रहे हैं। कुछ हद तक भ्रष्टाचार की बात राष्ट्रपति मादुरो ने वेनेज़ुएला में अपनी रैलियों में भी की थी। अब समय आ गया है कि नई सरकारें लोगों की अधिक जवाबदेही सुनिश्चित करने और अधिकारियों पर लगे आरोपों की कड़ाई से जांच कराने से जुड़ी मांग के बारे में ज़रूरी कदम उठायें।
व्यापक भ्रष्टाचार के आरोपों से अन्य सरकारी संस्थानों के बारे में भी आशंकाएं पैदा हुई हैं। होंडुरास और वेनेजुएला जैसे कुछ उदाहरण हैं, जहां विपक्ष और अंतर्राष्ट्रीय पर्यवेक्षकों ने चुनाव आयोगों की पारदर्शिता पर सवाल उठाए हैं। सरकारों ने संयुक्त राष्ट्र और अमेरिकी राज्यों के संगठन की चुनाव निगरानी टीमों को कमज़ोर बनाने की कोशिश की है। इससे इन चुनावों में मतदान की सत्यता पर सवाल उठने लगे। इस बात के बावजूद यह भी सच है कि इस क्षेत्र में हुए चुनाव अपेक्षाकृत स्वतंत्र और निष्पक्ष रहे और मतदाताओं ने नाखुश होते हुए भी महाद्वीप में लोकतंत्र की जड़ों को मज़बूत करने में अपनी इच्छा से सहायक भूमिका निभाई।
अन्य साझा मुद्दा, जो इस क्षेत्र के मतदाताओं को एक सूत्र में पिरोता है, वह है आर्थिक विकास की मांग। ये चुनाव अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) द्वारा 2017 और 2018 में क्रमशः 1.7 प्रतिशत और 1.9 प्रतिशत की कम विकास दरों के अनुमान के परिदृश्य में करवाए गए हैं.iii जहां इसका अर्थ यह निकलता है कि यह क्षेत्र पूर्व के अपने ऋणात्मक विकास से उबर चुका है, लेकिन अंतरराष्ट्रीय आर्थिक मंदी, संयुक्त राज्य अमेरिका की विघटनकारी आर्थिक नीतियों के साथ साथ ऊर्जा की कीमतों में गिरावट का मतलब यह है कि सरकारें स्वास्थ्य सेवा, शिक्षा, रोजगार और गरीबी में कमी लाने जैसे सामाजिक कार्यक्रमों के पोषण के लिए धन जुटाने में जद्दो जहद कर रही हैं। सामाजिक खर्च पर अंकुश लगाने की पहल के कारण मैक्सिको और ब्राजील में विरोध हुए हैं। राजनीतिक दलों और जनप्रतिनिधियों पर रिश्वत और भ्रष्टाचार के आरोपों के सार्वजनिक होने से यह विरोध और भी मुखर हो गया है.
मेक्सिको के राष्ट्रपति ओबराडोर द्वारा पिछले प्रशासन के सुधारों पर सवाल उठाने के बाद अब उन्हें अब ऐसी नीतियां लागू करनी होंगी, जिनसे वे युवा कार्यक्रमों, बेहतर शिक्षा सुविधाओं, वृद्धों के लिए अधिक सामाजिक सुरक्षा के लिए अधिक धन जुटा सकें और साथ ही साथ अधिक नौकरियां पैदा करने के अलावा सार्वजनिक क्षेत्र की ऊर्जा कंपनियों का पुनरुत्थान कर सकें। राष्ट्रपति इवान ड्यूक (कोलम्बिया), राष्ट्रपति कार्लोस अल्वाराडो क्वासादा (कोस्टा रिका) और राष्ट्रपति मारियो अब्दो बेनिटेज़ (पैराग्वे) ने अपनी अर्थव्यवस्थाओं में जान फूंकने के उद्देश्य से अपने यहां ऊर्जा उद्योग पर लागू कर में कटौती करने और उसे समर्थन देने का प्रस्ताव किया है। इस क्षेत्र में शायद वेनेज़ुएला को अपनी अर्थव्यवस्था सुचारु करने के लिए किसी नीति की सर्वाधिक आवश्यकता है। अपने दूसरे छह वर्षीय कार्यकाल के लिए मई 2018 में चुनाव जीत चुके पदासीन राष्ट्रपति निकोलस मादुरो ने अपने ऊपर लगे धोखाधड़ी के आरोपों के बावजूद कहा है कि वे अर्थव्यवस्था को स्थिर करने की दिशा में काम करेंगे।
लैटिन अमेरिका और कैरेबियन क्षेत्र के व्यवसाई इस उम्मीद में हैं कि सरकारें व्यापार-अनुकूल नीतियां लाएंगी, जिससे इन देशों में अधिक निवेश आएगा। नेताओं ने आर्थिक विकास के लिए स्थिर वातावरण क़ायम करने के लिए सुरक्षा में सुधार करने का भी प्रण किया है। नई सरकार को न केवल आर्थिक विकास और बजट घाटे में संतुलन बनाना होगा, बल्कि गरीबी कम करने के लिए भी कदम उठाने होंगे, अमीरों और गरीबों के बीच बढ़ती खाई से निपटना होगा और वंचित लोगों को सशक्त करने वाली नीतियां बनाने होंगी।
मोटे तौर पर घरेलू मुद्दों के मुकाबले विदेश नीति को कम महत्त्व दिया गया है। विदेश नीति की बात की जाए तो यह मोटे तौर पर घरेलू मुद्दों से ही जुड़ी रही है। प्रवासन, महाद्वीप का आर्थिक स्वास्थ्य और चुनावों में हुई चर्चा के दौरान विकास नीतियों के लिए निवेश को आकर्षित करने की आवश्यकता, घरेलू और विदेश नीति, दोनों के ही एजेंडे में शामिल थे। संयुक्त राज्य अमेरिका के साथ संबंधों का मुद्दा इन चुनावों में ऐसा प्रमुख विदेश नीति मुद्दा रहा है, जिसके घरेलू परिणाम निकले। संयुक्त राज्य अमेरिका सर्वोच्च शक्ति है, जो इस क्षेत्र में कई देशों को सहायता प्रदान करता है।
ट्रम्प प्रशासन की अवैध प्रवासियों के बारे में नीतियों, संयुक्त राज्य अमेरिका में विनिर्माण हेतु अधिक कंपनियों को प्रोत्साहित करने की आर्थिक योजना और यूएसएआईडी कार्यक्रमों में कटौती का एलएसी क्षेत्र में कई देशों पर सीधे प्रभाव है। इस क्षेत्र के लोगों के बारे में राष्ट्रपति ट्रम्प के सामान्यत अनाकर्षक दृष्टिकोण का मतलब यह है कि नए राजनीतिक नेताओं को लोकलुभावन बयानबाज़ी और संयुक्त राज्य अमेरिका के साथ सौहार्दपूर्ण संबंधों को बनाए रखने के बीच संतुलन बनाना होगा।
राष्ट्रपति बोल्सोनारो (ब्राजील), राष्ट्रपति ड्यूक (कोलम्बिया) और राष्ट्रपति ओब्राडोर (मेक्सिको) ने संकेत दिया है कि वे अवैध प्रवासियों और नशीली दवाओं के खतरे से निपटने में ट्रम्प प्रशासन से सहयोग करेंगे। राष्ट्रपति बोल्सानारो और राष्ट्रपति ड्यूक ने भी वेनेजुएला के राष्ट्रपति मादुरो को अलग-थलग करने की नीति का समर्थन किया है, हालांकि उन्होंने यह भी संकेत दिया है कि वे सैन्य कार्रवाई को समर्थन देने को तैयार नहीं हैं। राष्ट्रपति ओब्राडोर ने संकेत दिया है कि वे इन दोनों में से किसी भी कार्रवाई का समर्थन नहीं करते हैं। सत्तासीन होने के ठीक बाद राष्ट्रपति ओब्राडोर ने प्रवासन के मुद्दे से निपटने के लिए मध्य अमेरिका हेतु मार्शल योजना से जुड़ी अपनी योजनाओं के बारे में घोषणा की। राष्ट्रपति दिए आइज़-कनेल (क्यूबा) ने यह भी संकेत दिया है कि क्यूबा संयुक्त राज्य अमेरिका के साथ अच्छे संबंधों का इच्छुक है, लेकिन ऐसा बराबर भागीदारों के तौर पर होना चाहिए। उन्होंने अमेरिका से प्रतिबंध हटाने का आह्वान किया है।
चीन द्वारा इस क्षेत्र के साथ अपने संबंध बनाने से एशिया के साथ संबंधों को महत्ता मिली है। राष्ट्रपति दिए ज़- कैनेल और राष्ट्रपति ड्यूक ने संकेत दिया है कि वे चीन के साथ मिलकर काम करना चाहेंगे। विशेष रूप से कोलंबिया अपनी अर्थव्यवस्था को पुनर्जीवित करने के लिए चीनी निवेश आकर्षित करना चाहता है। दूसरी तरफ राष्ट्रपति ओब्राडोर ने अभियान के दौरान चीन की आलोचना की थी। लेकिन चीन ब्राज़ील के लिए महत्वपूर्ण व्यापारिक साझेदार है और नई ब्राज़ीली सरकार के लिए चुनौती यह होगी कि वह चीन के बारे में ऐसी नीति बनाए, जिससे निवेश बढ़े और व्यापार घाटा कम हो।
राष्ट्रपति बोल्सोनारो ने इस बात का संकेत दिया है कि वे इज़रायल के साथ संबंध मज़बूत करेंगे और ब्राज़ीली दूतावास को तेल अवीव में स्थानांतरित कर देंगे। इससे पश्चिम एशिया में अन्य देशों के साथ संबंध जटिल हो जाएंगे। दूसरी ओर क्यूबा ने रूस के साथ अपने संबंध मज़बूत करने का फैसला किया है। ऐसा करना वेनेजुएला पर अत्याधिक निर्भर रही क्यूबा की अर्थव्यवस्था के लिए बहुत जरूरी है।
निष्कर्ष
समय पर हुए चुनावों, अपेक्षाकृत हुए अधिक मतदान और सत्ता के शांतिपूर्ण हस्तांतरण से इस क्षेत्र में लोकतांत्रिक प्रक्रिया की परिपक्वता नज़र आती है। उल्लेखनीय है कि कुछ देशों में काफी संख्या में उम्मीदवार चुनावों में पहली बार खड़े हुए थे। इन उम्मीदवारों में बड़ी संख्या महिलाओं की है और ब्राजील और मैक्सिको में स्वदेशी लोगों की भागीदारी बढ़ी है। दूसरी तरफ चुनावों से ब्राजील के मतदाताओं में ध्रुवीकरण और प्रमुख राजनीतिक दलों के अंदर विखंडन भी स्पष्ट हुआ है। उम्मीदवारों के खिलाफ हुई हिंसा, विशेष रूप से मेक्सिको में, से इस क्षेत्र की राजनीतिक प्रणाली में गिरोह-संबंधित हिंसा की घुसपैठ भी साफ़ नज़र आती है।
इस क्षेत्र में इस सदी की शुरुआत में प्रभुत्व रखने वाली वाम लहर से किनारा कर रूढ़िवादी दक्षिणपंथी दलों के पक्ष में कोई आम रुझान नज़र नहीं आता है। यह बात सच है कि दक्षिणपंथी पक्ष ने कुछ देशों में राष्ट्रपति चुनाव जीते हैं, जिनमें सर्वाधिक उल्लेखनीय ब्राज़ील है। दूसरी तरफ मेक्सिको वामपंथी विचारधारा के सत्तासीन होने का उदाहरण है, जो विपक्षी दलों की केंद्रवादी और दक्षिणपंथी विचारधारा के विरोधी हैं। इन चुनावों में एक साझा कारक रहा है लोगों का उन उम्मीदवारों को वोट देना, जिन्होंने खुद को राष्ट्रवादी के तौर पर पेश किया है और जिन्हें 'मज़बूत' नेता' के रूप में देखा गया है। नई सरकारें भ्रष्टाचार दूर करने और आर्थिक विकास सुनिश्चित करने के जनादेश के साथ चुनी गई हैं। लेकिन आशंका है कि ऐसी भावनाओं को नवनिर्वाचित शासनाध्यक्ष प्रमुख विपक्षी सदस्यों को दरकिनार करने और उन्हें सताने के लिए कर सकते हैं। इससे वे शक्तिशाली राष्ट्रपति बनने में कामयाब हो सकते हैं, जिससे बृहत्त विधायी बंधन और संतुलन कमज़ोर हो सकते हैं।
फिलहाल नई सरकारों का ध्यान इस क्षेत्र में संबंधों पर रहेगा। इस क्षेत्र के अंदर राजनीतिक परिवर्तन चलते सरकारें अपने संबंध मज़बूत करने या नई साझेदारियों के सृजन के लिए एक-दूसरे से सम्पर्क साधेंगीं। ब्राज़ील, कोलम्बिया और मेक्सिको इस क्षेत्र में प्रमुख शक्तियाँ हैं और अब नए राष्ट्रपति उन विचारों के समर्थक हैं, जो उनके पूर्ववर्तियों के विचारों से अलग हैं लेकिन उनके समक्ष वही चुनौतियां हैं। इससे वे नए संबंध बना सकेंगे, बल्कि इसके अलावा इस क्षेत्र में बदलाव लाने के लिए ज़ोर लगाने की प्रेरणा भी मिल सकती है। एक और प्रमुख देश अर्जेंटीना में इस साल राष्ट्रपति चुनाव होगा।
आम तौर पर इन चुनावों में एशिया केंद्रबिंदु नहीं रहा है। लेकिन इस क्षेत्र में चीन की बढ़ती उपस्थिति के कारण एशियाई देशों के साथ संबंध महत्वपूर्ण रहेंगे। लैटिन अमेरिका और कैरिबियन देश अपनी उपज और घरेलू विकास परियोजनाओं में निवेश भागीदार के तौर पर चीन पर आँखें गड़ाए बैठे हैं।
व्यापक परिदृश्य में लैटिन अमेरिका और कैरिबियन क्षेत्र में हुई चुनावी प्रक्रियाएं दक्षिण एशिया के राजनीतिक संवाद में हावी रहने वाले कुछ विषयों को प्रतिबिंबित करती हैं, जहां चल रहे क्षेत्र-व्यापी चुनावी चक्र में आर्थिक विकास, रोजगार सृजन और सरकार में पारदर्शिता पर ज़ोर दिया जा रहा है।
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*डॉ. स्तुति बैनर्जी भारतीय विश्व मामलों की परिषद, नई दिल्ली में शोधार्थी हैं।
अस्वीकरण: यहां व्यक्त किए गए विचार शोधकर्ता के हैं, परिषद के नहीं हैं।
संदर्भ
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i President Bolsonaro won the presidential election in October 2018.
ii President Obrador won the presidential elections in July 2018.
iii Daniel Zovatto, “Latin America’s super election cycle is wide open,”, https://www.brookings.edu/blog/order-from-chaos/2017/11/06/latin-americas-super-election-cycle-is-wide-open/, Accessed on 28 November 2018.