नेपाल में दो दशक बाद स्थानीय स्तर के चुनाव अभी हाल ही में संपन्न हुए है।सितम्बर 2015 में नए संविधान की घोषणा के बाद उसके क्रियान्वयन के लिए ये चुनाव करवाना नितांत आवश्यक था।परन्तु देश के एक बड़े समुदाय मधेश/तराई के लोगों को इस संविधान के जरिये काफी प्रावधानों द्वारा उपेक्षित रखा गया और वे अपनी मांगों को पूरा करवाने के लिए इस दौरान आन्दोलन भी करते रहे, शुरू में यह आन्दोलन हिंसक रहा परन्तु बाद में शांतिपूर्ण एवं अहिंसक बना रहा।इस संविधान की घोषणा के बाद से देश के तीनों बड़े दलों के नेता प्रधानमंत्री बन चुके है लेकिन मधेशियों की मांगे अभी पूरी नहीं हुई है। पूर्व प्रधानमंत्री पुष्पकमल दहाल ने हालांकि मधेश के नेताओं से बातचीत कर उनकी मांगों को पूरा करने की सकारात्मक पहल की तथा स्थानीय चुनावों को संपन्न करवाने के लिए प्रतिबद्ध भी रहे, जिसे उनके कार्यकाल की उपलब्धि कहा जा सकता है।प्रारंभ में ये चुनाव देश में एक साथ संपन्न होने वाले थे लेकिन बाद में इन्हें दो चरणों में करवाने पर सहमति हुई।मधेश के नेता इस चुनाव से पहले अपनी मांगों को पूरा करवाने के लिए अड़े रहे और उन्होंने चुनाव में भाग न लेने और इसका बहिष्कार करने का निर्णय लिया वही दूसरी तरफ प्रमुख विपक्षी दल एमाले ने मधेशियों की मांगों को देश के विरुद्द बताया और चुनाव करवाने पर जोर दिया।इस समय में सरकार पर भारी दबाव था लेकिन सरकार ने चुनावों की तैयारी पुरजोर तरीके से की।अंततः 14 मई और 28 जून को नेपाल में स्थानीय चुनाव दो चरणों में संपन्न हुए।
प्रथम चरण के चुनाव-
प्रथम चरण के चुनाव प्रांत संख्या 3, 4 और 6 में 14 मई को संपन्न हुए जिसमे 34 जिलो की 283 स्थानीय इकाइयों से 13,556 प्रतिनिधि चुने जाने थे।1 प्रथम चरण के चुनाव सफल तरीके से हुए और इसमें 73 प्रतिशत लोगों ने मतदान किया।सरकार द्वारा प्रथम चरण के चुनाव मुख्यतया पहाड़ी प्रदेशों में करवाए गये जिसके पीछे मुख्य कारण मधेश आन्दोलन को माना जा सकता है।चुनाव आयोग के मुताबिक सर्वाधिक मतदान रसुवा, भक्तपुर, डोल्पा और गोरखा जिलों में 82 प्रतिशत हुआ।देश के प्रमुख दलों के नेताओं का यह मानना था कि पहले चरण के चुनावों की सफलता दूसरे चरण के चुनाव संपन्न होने को सुनिश्चित करती है।प्रथम चरण में हिंसक घटनाओं के कारण तीन केन्द्रों पर चुनाव निरस्त कर दिए गये थे। इस चुनाव में मुख्य विपक्षी दल एमाले ने जीत दर्ज की तथातीनों प्रान्तों में इस दल को सर्वाधिक मत मिले (विस्तृत परिणाम के लिए मानचित्र देखे)।दूसरे और तीसरे स्थान पर सत्ताधारी दल नेपाली कांग्रेस और माओवादी केंद्र रहे।जिससे यह स्पष्ट हो गया कि नेपाल के नागरिक नये राजनीतिक दलों में नहीं परम्परागत शक्तियों में ही विश्वास रखते है।इस चुनाव में बड़े राजनीतिक दलों की स्थिति काफी अच्छी रही और ज्यादातर वोट उन्ही के मध्य बटें।एमाले ने देश के मेट्रोपोलिटन शहरों काठमांडू, भारतपुर, ललितपुर और पोखरा के मेयर पदों पर भी जीत हासिल की। छोटे और स्थानीय राजनीतिक दलों को इस चुनाव में कोई ख़ास सफलता नहीं मिली।
द्वितीय चरण के चुनाव-
14 मई को प्रथम चरण के चुनाव होने के बाद लगने लगा कि दूसरे चरण के चुनाव भी आसानी से हो जायेंगे और 14 जून तारीख तय हुई। लेकिन 10 दिनों के बाद प्रचंड के इस्तीफ़ा देने और राष्ट्रीय जनता पार्टी – नेपाल (मधेश गठबंधन दल) द्वारा आन्दोलन की चेतावनी ने दूसरे चरण के चुनावों को अनिश्चितता में ला दिया। नवनिर्वाचित प्रधानमंत्री शेर बहादुर देउबा के समक्ष चुनाव करवाना एक चुनौती बन गयी, अतीत में भी वे इस चुनौती से गुजर चुके है। अंततः मधेश दलों ने बातचीत के बाद यह निष्कर्ष निकला कि जब तक संविधान संशोधन न हो जाये प्रांत संख्या 2 में चुनाव नहीं होंगे और इन्हें तीसरे चरण में 18 सितम्बर को करवाया जायेगा।2 इस चुनाव की दो तारीखे टलने के बाद अंततः 28 जून को प्रांत संख्या 1, 5 और 7 में स्थानीय स्तर के द्वितीय चरण के चुनाव संपन्न हुए। पहले द्वितीय स्तर के चुनावों में 41 जिलों में 461 स्थानीय निकायों पर चुनाव होने वाले थे लेकिन मधेशियों की मांगों को देखते हुए सरकार ने प्रांत संख्या 2 में चुनाव आगे के लिए टाल दिए और इस प्रकार दूसरे चरण में 34 जिलों के लिए 334 स्थानीय निकायों पर ही चुनाव हुए।
बुधवार 28 जून को हुए चुनाव 15, 038 पदों और 334 स्थानीय निकायों के लिए तीन प्रान्तों के 35 जिलों में मतदान हुआ। इस चुनाव में 70.5 प्रतिशत मतदान हुआ तथा बजुरा, डांग, रुकूम और दरचुला जिलों में सर्वाधिक 75 से 80 प्रतिशत मतदान हुआ।3 इस मतदान के अधिकतर क्षेत्र तराई के थे जहाँ माओवादी और स्थानीय मधेश दलों की पकड़ मानी जा रही थी लेकिन जैसे ही चुनाव के परिणाम धीरे धीरे आने लगे तो सबसे ज्यादा मत एमाले के पक्ष में आये और नेपाली कांग्रेस दूसरे स्थान पर टिकते हुए प्रांत संख्या 7 में एमाले को टक्कर दे रही है (विस्तृत परिणाम के लिए मानचित्र देखे)। प्रथम और द्वितीय चरण के चुनावों के परिणाम को देखे तो इसमें एमाले को 276, नेपाली कांग्रेस को 226, माओवादी केंद्र को 84, रा प्र पा को 5 और अन्य दलों को 25 सीटों पर जीत हासिल हुई।
नेपाल के प्रथम और द्वितीय चुनावों के परिणामों से प्रदर्शित होता है कि देश के तीनों बड़े दलों का ही वर्चस्व रहा है। एमाले ने इस चुनाव में 45 प्रतिशत स्थानीय निकायों पर सीटें जीते, नेपाली कांग्रेस ने 35 प्रतिशत और माओवादी केंद्र ने 15 प्रतिशत सीटों पर जीत हासिल की। राष्ट्रीय प्रजातान्त्रिक पार्टी और अन्य छोटे दलों को अपेक्षित सीटें नहीं मिली, उनकी स्थिति काफी खराब रही। 2008 और 2013 के संवैधनिक सभा के चुनाव से यदि तुलना करे तो देखेंगे कि चुनाव में माओवादी और मधेश के छोटे दलों की स्थिति काफी अच्छी थी। क्योंकि 2006 की शांति प्रक्रिया के बाद नेपाल की जनता के मन में शासन में एक बड़ा परिवर्तन और बड़े दलों को लेकर एक असमंजस/भ्रम की स्थिति थी। लेकिन इस समय जनता ने ऐसे नेताओं और दलों को वोट दिया जिनका संपर्क केंद्र है जिससे कि उनके क्षेत्र में संसाधनों की कमी न रहे। इसके अतिरिक्त कुछ तकनीकी कारण भी रहे, जैसे इस चुनाव में आनुपातिक प्रतिनिधित्व की पद्दति न अपना कर फर्स्ट पास्ट द पोस्ट की पद्दति अपनाई गयी, जिसके कारण छोटे दलों को नुकसान हुआ और बड़े दलों को फायदा हुआ। यद्यपि बड़े दलों के वर्चस्व से नेपाल में राजनीतिक स्थायित्व आ सकता है लेकिन इसकी भी कुछ खामियां है। बड़े दलों से जुड़े नेता केंद्र से लाभ ले सकते है पर छोटे दलों से विजयी नेताओं को उनका हिस्सा मिलना कठिन है। इससे बड़े दलों के नेताओं को केंद्रीकृत व्यवस्था को अपने नियंत्रण में करने का भी अवसर मिल सकता है।4
एक महत्वपूर्ण बात यह रही कि दूसरे चरण में महिलाओं के मतदान प्रतिशत में वृद्धि हुई। लेकिन इस बात का दूसरा पहलू यह भी हो सकता है कि घर के पुरुष रोजगार के लिए विदेश या बाहर चले गये हो। तीनों ही प्रान्तों में महिलाओं की मतदान में भागीदारी पुरुषों से ज्यादा रही।5 इस चुनाव में संविधान अनुसार समावेशी सिद्धांत का ध्यान रखा गया, संविधान के अनुसार प्रत्येक स्थानीय स्तर पर सात सीटों के लिए लोग प्रतिनिधि चुनेंगे, जिसमे प्रमुख, उपप्रमुख, अध्यक्ष, उपाध्यक्ष, वार्ड सदस्य, महिला और दलित महिला। वार्ड स्तर एक दलित महिला का स्थान अनिवार्य रखा गया जो कि संविधान के समावेशी दृष्टिकोण को इंगित करता है।6
नेपाल में स्थानीय स्तर के चुनाव 1997 के बाद पहली बार और 2015 के नए संविधान के अधीन भी पहली बार जनता वयस्क मताधिकार का उपयोग कर रही है। नेपाल की सरकारों का यह मानना रहा है कि संविधान के सही मायने में लागुकरण हेतु चुनाव करवाना बहुत जरुरी है, देश के सभी प्रमुख राजनीतिक दल इस बात के पक्ष में रहे है। लेकिन तराई के मधेश आधारित दल चुनाव से पहले संविधान संशोधन के पक्ष में रहे। चुनावों से पूर्व की पृष्ठभूमि को यदि हम देखे तो पायेंगे कि नेपाल की राजनीति और सत्ताधारी दलों के समक्ष मधेश आन्दोलन और उनकी मांगे प्रमुख चुनौती रही है। अपनी मांगों को पुरजोर तरीके से मनवाने के लिए मधेश के 6 राजनीतिक दल एकजुट हुए और राष्ट्रीय जनता पार्टी- नेपाल नामक नए दल का निर्माण इस साल अप्रैल माह में किया। इस दल में महंत ठाकुर, राजेन्द्र महतो, शरत चन्द्र भंडारी, महेंद्र यादव, राजकिशोर यादव और अनिल झा वाली 'वन मेन' पार्टी शामिल है। पूर्व प्रधानमन्त्री प्रचंड ने मधेश की मांगों को पूरा करने का आश्वासन दिया जिसके फलस्वरूप प्रथम चरण के चुनाव संपन्न हुए उसके बाद नेपाली कांग्रेस के नेता शेर बहादुर देउबा प्रधानमंत्री का पद सँभालते है प्रांत संख्या 2 के चुनाव टाल कर शेष तीन प्रान्तों में सफल चुनाव करवा लेते है। मधेश की मांगों को इस प्रकार से आगे के लिए टालते रहने से उनकी मांगे पूरी होना मुश्किल प्रतीत होता है। स्थानीय चुनाव करवाकर और आगामी चुनावों को जनवरी 2018 तक पूरा करने की मंशा सरकार स्पष्ट कर चुकी है। जिसमे मधेश की मांगें कही पीछे रह गयी है। इन स्थानीय चुनावों के परिणाम देश की राजनीति और जनता का मूड बयान करती है। एमाले का इस चुनाव में सबसे ऊपर होना जबकि इस समय यह दल प्रमुख विपक्षी दल है और इस दल के नेता मधेश की मांगों को सिरे से नकारते हुए आये है, जो कि देश की आगे की दिशा तय करने के संकेत है। इस चुनाव में एक और मुख्य बात गौर करने लायक थी कि छोटे और नए राजनीतिक दलों को कोई ख़ास सफलता नहीं मिली और तराई के क्षेत्रों में भी एमाले और कांग्रेस को ही वोट ज्यादा मिले, स्थानीय दल इसमें पिछड़ गये। इसका एक प्रमुख कारण यह रहा है कि इन बड़े दलों ने तराई के क्षेत्रों से उन जातियों और जनजातियों के लोगों को टिकिट दिया जो यहाँ के स्थानीय निवासी है। इससे जीत तो मिली ही और साथ में इस धारणा पर भी चोट हुई कि उच्च हिन्दू जाति के लोगों को नहीं वंचित समुदाय के लोगों को यहाँ से उम्मीदवार बनाया गया। लेकिन चुनाव से पहले तराई के नेताओं को, यहाँ के लोगों को और यहाँ के वोटों को एकजुट माना जा रहा था लेकिन चुनाव परिणाम ने इसके विपरीत छवि प्रस्तुत की। बड़े और परम्परागत दलों की स्थानीय स्तर पर जीत मधेश दलों की स्थिति को कमजोर करती है। अब प्रश्न यह भी उठने लगा है कि क्या आने वाले प्रांत और केंद्र के चुनावों में ये बड़े राजनीतिक दल तराई क्षेत्र में अपना वर्चस्व स्थापित करेंगे?7 स्थानीय चुनावों में मधेश के दलों के कुछ उम्मीदवारों ने स्वतंत्र रूप से चुनाव लड़ा जिसमे मुख्यतया कपिलवस्तु, रुपन्देही और नवलपरासी जिलों में इन्होने भाग लिया और केवल सविना शुक्ला को ही नवलपरासी जिले से सफलता मिली। वही मधेश के दो दल संघीय समाजवादी (उपेन्द्र यादव) और मधेश जनाधिकार फोरम (बिजय गच्छेदार) ने इन चुनावों में कैलाली, बांके और सुनसरी जिलों में भाग लिया। जिसमे गच्छेदार की पार्टी को आंशिक सफलता मिली लेकिन यादव के दल को कोई सीट नहीं मिल पाई। इस चुनाव में राष्ट्रीय जनता पार्टी –नेपाल के आन्दोलन की असफलता के दो प्रमुख कारण माने जा सकते है, पहला, देश में 20 साल बाद स्थानीय स्तर के चुनावों को लेकर जनता में उत्साह और उत्सुकता थी और साथ ही साथ चुनाव आयोग द्वारा नागरिकों को मतदान हेतु प्रशिक्षित भी किया गया, जिसके कारण राजपा के द्वारा चुनाव बहिष्कार करने के बाद भी तराई क्षेत्र में लोगों ने मतदान दिया। दूसरा, मधेश दलों में आपसी फूट के कारण ये सभी एकजुट नहीं हो सके। राजपा के अध्यक्ष महंत ठाकुर ने इन चुनावों में भाग न लेने की बात सभी मधेश दलों से कही लेकिन संघीय समाजवादी नेता उपेन्द्र यादव इन चुनावों में भाग लेने के पक्ष में थे। इसके अतिरिक्त मधेश के कई नेताओं ने निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर चुनाव लड़ा। इससे राजपा की छवि को धक्का लगा है।
नेपाल में प्रथम चरण के चुनाव प्रारंभ होने से पहले ही भारत यहाँ की गतिविधियों का अवलोकन कर रहा है। प्रधानमंत्री दहाल द्वारा 14 मई को चुनावों की घोषणा से पहले ही भारत ने किसी भी प्रकार की प्रतिक्रिया नहीं दी। लेकिन 4 मई को भारत के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता गोपाल बागले ने कहा कि "किसी भी देश में लोकतंत्र की जड़ों को मजबूत करने के लिए स्थानीय चुनाव एक महत्वपूर्ण उपकरण है"।8 दूसरे चरण के चुनाव के तुरंत बाद नेपाल के उप्रधानमंत्री और विदेश मंत्री भारत दौरे पर है और भारत की विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने उन्हें स्थानीय चुनाव सफलतापूर्वक करवाने पर बधाईयाँ दी। इस प्रकार भारत की तरफ से लोकतंत्र को मजबूत करने के लिए चुनावों के महत्व को समर्थन दिया गया।
नेपाल का राजनीतिक नेतृत्व अब स्थानीय चुनाव के संपन्न होने के बाद प्रांतीय और केंद के चुनावों पर ध्यान दे रहा है। वही राजपा जो कि दूसरे चरण से पहले चुनाव का बहिष्कार कर रही थी और सरकार ने इसके चलते प्रांत संख्या 2 के चुनाव को आगे खिसका दिया, जिसे राजपा अपनी जीत मान रही थी। लेकिन दूसरे चरण के चुनाव के बाद यह राजनीतिक दल अपने एजेंडे को जीवित रखने की कोशिश में लगा हुआ है और साथ ही दल के अन्दर फैल रहे असंतोष की चुनौती से भी यह मधेश के गठबंधन का दल जूझ रहा है। राजपा ने चुनाव का आधिकारिक रूप से बहिष्कार किया था लेकिन दल के कुछ सदस्यों द्वारा निर्दलीय रूप से चुनाव में भाग लेने से स्थिति पेचीदा हो गयी है। राजपा के नेता ह्रिदेयाश त्रिपाठी और सर्बेन्द्र नाथ शुक्ल ने कहा कि क्या चुनाव का बहिष्कार करने का निर्णय सही था, इसके कारण हमारे हजारों कार्यकर्त्ता प्रान्त संख्या 5 और 7 में भाग नहीं ले सके और हम क्या केवल प्रांत 2 में ही भाग लेंगे। 9इस चुनाव के बाद आगे की स्थिति का आंकलन करे तो दो बाते उभरकर आती है, पहली, क्या प्रधानमंत्री शेर बहादुर देउबा स्थानीय चुनाव के तीसरे चरण (प्रांत 2 के लिए 18 सितम्बर तक) से पहले मधेश की मांगों को पूरा करने के लिए संविधान संशोधन बिल को संसद में पास करवा पाते है? और दूसरी बात यदि नहीं करवा पाते है तो क्या मधेश आधारित राष्ट्रीय जनता पार्टी- नेपाल दल एकजुट होकर आन्दोलन को उग्र रास्ते पर ले जाएगा? लेकिन अभी यहाँ यह कहा जा सकता है कि मधेश के दलों को अभी एकजुट होकर इस चुनाव के परिदृश्य, परिणाम और अपनी मूल मांगों को जीवित रखकर पुनर्विचार करने की आवश्यकता है। यदि चुनाव परिणाम से विचलित होकर मधेश के दल विखंडित होते है तो मधेशियों की मांगे भविष्य में पूरा होना मुश्किल है।
अभी आगे भविष्य में स्थानीय चुनावों का तीसरा चरण 18 सितम्बर को प्रांत संख्या 2 में होना बाकि है जिसमे 127 स्थान है। इस चुनाव में 744 स्थानों पर चुनाव हुए, जिसमे 617 स्थानों पर चुनाव हो चुके है जिसमे 276 स्थानों पर एमाले जीतकर सबसे आगे है और 226 स्थानों पर नेपाली कांग्रेस ने जीतकर दूसरा पायदान हासिल किया है। हालाँकि गठबंधन सरकार के तौर पर देखे तो अभी भी एमाले संख्या के हिसाब से इनसे पीछे है। लेकिन नेपाली राजनीति में गठबंधन बदलते रहते है, इसीलिए यहाँ कुछ भी स्थायी नहीं है। 2008 के संवैधानिक सभा के चुनाव में माओवादी, 2013 के चुनाव में नेपाली कांग्रेस और अब इन स्थानीय चुनावों में एमाले (दूसरे चरण के परिणाम तक) ने जगह बनायीं है। जो कि नेपाल के बदलते राजनीतिक परिदृश्य का परिणाम है। इस परिणाम से यह सिद्द होता है कि संसद में सर्वाधिक सांसदों वाली नेपाली कांग्रेस का मनोबल गिरा है और अभी वह तीसरे चरण की रणनीति बना रही है जिससे कि आगामी चुनावों में जीता जा सके। वही दूसरी तरफ एमाले जो अभी प्रमुख विपक्षी दल है और संसद में नेपाली कांग्रेस के बाद सबसे ज्यादा सांसद उसी के है, और इन चुनाव परिणामों से एमाले के विश्वास को संबल मिला है। इस चुनाव ने वस्तुतः आगामी प्रांतीय और संसदीय चुनावों की पृष्ठभूमि तैयार की है जिसमे एमाले और नेपाली कांग्रेस नेपाली राजनीति के दो धड़े होंगे तथा माओवादी केंद्र और राष्ट्रीय प्रजातंत्र पार्टी गठबंधन के घटक के तौर पर भूमिका निभाएंगे।
मधेशी दल निरंतर संशोधन बिल को पास करवाने की मांग कर रहे है लेकिन संसद में एमाले के समर्थन के बिना यह मुश्किल है। इस चुनाव के परिणाम ने वर्तमान सरकार को आगे के चुनाव करवाने के लिए प्रोत्साहित किया है यद्यपि प्रांत संख्या 2 में 127 स्थानीय निकायों के चुनाव शेष है पर इन दो चरणों के चुनावों के परिणाम और ट्रेंड से यह प्रतीत होता है कि इसमें भी बड़े दलों का ही वर्चस्व रहेगा। मधेश दलों ने हालाँकि तीसरे चरण में भाग लेने के लिए चुनाव आयोग में पंजीकरण किया है, लेकिन इन छोटे दलों की आंतरिक कलह और उपेन्द्र यादव और बिजय गच्छेदार जैसे मधेशी नेताओं का वर्तमान सरकार में मंत्रालय पाने की सम्भावना उन्हें मधेश आन्दोलन से दूर करती है। इससे प्रान्त संख्या 2 के मतों में बिखराव होने की प्रबल सम्भावना है और इसका लाभ निश्चित रूप से बड़े दलों को होगा।
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* लेखक, शोध अध्येता, विश्व मामलों की भारतीय परिषद, सप्रू भवन, नई दिल्ली |
डिस्क्लेमर: आलेख में दिये गए विचार लेखक के मौलिक विचार हैं और काउंसिल के विचारों को प्रतिबिम्बित नहीं करते।
Endnotes
1Prthvi Man Shreshta, "All Set for polls", The Kathmandu Post, 14 May 2017,
http://epaper.ekantipur.com/the-kathmandu-post/2017-05-14/1
2 "Ruling parties, RJP-N agree to postpone election in Province 2", The Kathmandu Post, 15 June 2017,
http://kathmandupost.ekantipur.com/news/2017-06-15/ruling-parties-rjp-n-agree-to-postpone-election-in-province-2.html
3Prithvi Man Shrestha, "Phase II polls see 70.5 pc voter turnout", The Kathmandu Post, 29 June 2017,
http://epaper.ekantipur.com/the-kathmandu-post/2017-06-29/1
4 "The Long Road", The Kathmandu Post, 6 July 2017,
http://kathmandupost.ekantipur.com/news/2017-07-06/the-long-road.html
5"Women voters outnumber men", The Kathmandu Post, 29 June 2017,
http://epaper.ekantipur.com/the-kathmandu-post/2017-06-30/1
6Arjun Poudel, "6.4 million voter to pick over 15000 local reps", The Himalayan Times, 28 June 2017,
http://epaper.thehimalayantimes.com/index.php?pagedate=2017-6-28&edcode=71&subcode=71&mod=1&pgnum=2
7Tika R pradhan, "Will major forces win west Tarai", The Kathmandu Post, 1 July 2017,
http://epaper.ekantipur.com/the-kathmandu-post/2017-07-01/1
8Kamal Dev Bhattarai, "New Delhi Changes tack , assumes 'neutral position', The Kathmandu Post, 17 May 2017,
http://epaper.ekantipur.com/the-kathmandu-post/2017-05-17/1
9Anil Giri, "RJP-N scrambles to make sense of its own decision", The Kathmandu Post, 6 July 2017,
http://epaper.ekantipur.com/the-kathmandu-post/2017-07-06/1