सितम्बर २०१५ में नेपाल में नए संविधान की घोषणा के बाद ऐसा अनुमान लगाया जा रहा था कि देश राजनीतिक स्थिरता की ओर अग्रसर होगा। लेकिन नए संविधान कि घोषणा के तुरंत बाद ही इसमें निर्दिष्ट कुछ प्रावधानों को लेकर एक समुदाय/वर्ग विशेष (तराई क्षेत्र) में असंतुष्टता और नाराजगी कि लहर फ़ैल गयी। विगत एक वर्ष में इस मुद्दे के परिप्रेक्ष में सीमा पर उस वर्ग द्वारा नाकेबंदी हुई और भारत के साथ नेपाल के संबंधों में भी तल्खी आई। इसी क्रम में के पी शर्मा ओली को प्रधानमंत्री पद छोड़ने और वर्तमान प्रधानमंत्री पुष्प कमल दहाल ‘प्रचंड’ के हाथों में सत्ता सौपने के पीछे एक मुख्य कारक मधेश संकट भी रहा है। प्रचंड के जुलाई माह में प्रधानमंत्री बनने के बाद मधेश समस्या से निपटने के लिए संविधान में संशोधन करना जरुरी था और इसके लिए वे काफी बार मधेश नेताओं को आश्वासन भी दे चुके थे। अंततः २९ नवम्बर २०१६ को दहाल सरकार ने मुख्य विपक्षी दल एमाले के विरोध के बावजूद संशोधन बिल संसद में पंजीकृत कर दिया।
यद्यपि जनवरी २०१६ में मधेश की मांगों को पूरा करने के लिए प्रथम संविधान संशोधन हुआ। तत्कालीन प्रधानमंत्री के पी शर्मा ओली ने भारत यात्रा से पहले नए संविधान में दो संशोधन किये। ये संशोधन अनुच्छेद ४२ में और अनुच्छेद २८६ में किये गये- जहाँ अनुच्छेद ४२ में, वंचित समूहों जिसमे सामजिक रूप से पिछड़े महिलाओं, दलितों, आदिवासी, जनजाति, खास, आर्य, मधेशी, थारू, मुस्लिम और अन्य अल्पसंख्यको को समावेशी सिद्धांत के आधार पर सार्वजनिक सेवाएं और राज्य की संरचना में रोजगार का अवसर दिया गया। अनुच्छेद २८६ में एक प्रावधान निर्वाचन क्षेत्र परिसीमांकन आयोग द्वारा बनाया गया। जहाँ निर्वाचन क्षेत्रों का निर्धारण करते समय भौगोलिक स्थिति के बजाय जनसँख्या को वरीयता दी जाएगी। यद्यपि संसद में उपस्थित दो तिहाई सांसदों ने इसे पास किया लेकिन मधेश सांसदों ने इसका बहिष्कार किया और इसे तराई क्षेत्र के लोगों कि आँखों में धूल झौंकने के समान बताया।1
पिछले एक साल में संविधान में संशोधन को लेकर मधेश नेताओं और सरकार के मध्य ३६ बार बातचीत हो चुकी है लेकिन ये सब बेनतीजा रही। सत्तारूढ़ दल माओवादी केंद्र और नेपाली कांग्रेस पर मधेश नेताओं द्वारा नियमित दबाव के चलते अनुच्छेद २९६ के तहत इसे संसद में पंजीकृत किया गया।2
इस संविधान संशोधन के प्रारूप में सरकार ने मुख्यतः चार प्रावधानों में संशोधन को शामिल किया- जिसमे प्रान्तों के सीमांकन, राष्ट्रिय महासभा में प्रतिनिधित्व, नागरिकता और भाषा शामिल है।
नेपाल सरकार द्वारा हालाँकि इस बिल को संसद में पेश कर दिया गया है लेकिन मधेश के दल इससे संतुष्ट नहीं है। उनका मानना है कि वे सरकार का इस मामले को लेकर विरोध करते रहेंगे चाहे यह बिल संसद में पास हो जाये।
सत्तारूढ़ दलों द्वारा इस बिल को संसद में पंजीकृत करने के बाद एमाले और मधेश दलों ने इसका विरोध शुरू कर दिया। मधेश दलों का मानना है कि प्रस्तावित बिल में थोडा और सुधार करके तथा उनकी अन्य मांगों को शामिल करके पुनः पेश किया जाये। वही दूसरी तरफ एमाले जो कि पहले से मधेश मांगों को नकार कर इस बिल का पुरजोर तरीके से विरोध करती आ रही और इस दल के शीर्ष नेताओं का यह कहना है कि यह बिल राष्ट्र के हितो के विरुद्ध है और यह बिल्कुल स्वीकार्य नहीं है।5 बिल के पंजीकृत होने के बाद से एमाले ने इस बिल के विरोध में नेपाल के कई जिलों में धरना, प्रदर्शन और रैलियां की। इसके साथ ही जब कभी संसद में इस विषय पर चर्चा हुई तो एमाले ने संसद की कार्यवाही में भी अवरोध उत्पन्न किया। इस मुद्दे को लेकर नेपाल की राष्ट्रपति बिद्या देवी भंडारी ने सभी दलों के नेताओं के साथ बैठक की और कहा कि इस गतिरोध को आपसी मशवरे से जल्द समाप्त करे लेकिन सभी दलों में एक राय नहीं बन पायी।6
संसद में संशोधन बिल पास करने के मतों का समीकरण:7
समर्थक दल |
अनिर्णीत/तटस्थ दल |
विरोधी दल |
नेपाली कांग्रेस – २०६ |
संघीय समाजवादी फोरम- एन – १५ |
सीपीएन- 182 |
माओवादी केंद्र – ८१ |
राष्ट्रीय प्रजातंत्र पार्टी – ३७ |
सीपीएन- 5 |
तराई मधेश लोक पार्टी – ११ |
सी पी एन (यूनाइटेड)- ३ |
एनएमकेपी- 4 |
सद्धभावना पार्टी – ५ |
एम जे एफ (लोकतान्त्रिक)- १४ |
राष्ट्रीय जनमोर्चा- 3 |
तराई मधेश समज्बदी पार्टी – ३ |
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जनमुक्ति पार्टी- 2 |
तराई मधेश सद्धभावना – ३ |
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नेपा पार्टी- 1 |
अन्य छोटे दल -१५ |
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मधेश समता पार्टी- 1 |
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परिवार दल- 2 |
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बहुजन शक्ति पार्टी- 1 |
सरकार चाहती है कि मधेश समस्या का हल चुनावों से पहले हो जाए और इसके लिए संसद में बिल पंजीकृत हो जाये। लेकिन इस बिल के प्रकटन के लिए ३९६ सांसदों को इसके पक्ष में मतदान करना पड़ेगा। इसके विपक्ष में अभी एमाले के सांसदों के अलावा १९८ सांसद भी है तथा तटस्थ ६९ है और इस बिल के पक्ष में ३२७ है। इसीलिए संसद में इस बिल को लेकर अंकों का खेल जारी है।8
एक तरफ जहाँ संशोधन बिल को पास करने में गतिरोध चल रहा था वही दूसरी तरफ एमाले ने सरकार से आगामी स्थानीय चुनावों पर ध्यान और तैयारी करने के लिए कहा। इसी दिशा में आगे, तीनों दलों के शीर्ष नेताओं ने वर्तमान राजनीतिक गतिरोध को समाप्त करने हेतु अप्रैल-मई में स्थानीय चुनाव करवाने हेतु राजी हो गये है। तीनों ने यह भी निर्णय लिया है कि वर्तमान में जिस बिल से राजनीतिक गतिरोध हो रहा है उसे निष्क्रिय रखा जाये। २९ नवम्बर को पंजीकृत हुए संशोधन बिल को लेकर सत्तारूढ़ दल और विपक्षी दलों में खीचातानी चल रही थी। इसके लिए प्रधानमन्त्री दहाल ने बालूवाटर आवास पर इस संकट से उभरने के लिए सभी दलों के नेताओं को आमंत्रित किया।9 संयुक्त लोकतान्त्रिक मधेशी मोर्चा और अन्य सात दलों के घटक ने सरकार द्वारा संशोधन बिल को दरकिनार कर स्थानीय चुनावों करवाने की योजना पर घोर आपत्ति जताई है। मधेशी नेताओं ने तीनों दलों को चेताया कि वे पहले हमारी मांगो को पूरा करे अन्यथा देश कि राजनीति अस्थिरता की ओर चली जाएगी। मधेश दल इस कदम से माओवादी केंद्र दल और नेपाली कांग्रेस द्वारा धोखा देने की बात कह रहे है। संघीय गठबंधन के अध्यक्ष उपेन्द्र यादव ने कहा कि जैसे ही सरकार चुनाव की तिथि की घोषणा करेगी हम उसी दिन से आन्दोलन शुरू करेंगे। उन्होंने आगे कहा कि सभी दलों को वर्तमान राजनीतिक परिदृश्य से आगे जाकर संशोधन बिल को संसदीय तरीके से पास करवाना चाहिए और उसमे प्रस्तावित सुधारों को भी शामिल किया जाना चाहिए। सद्भावना पार्टी के अध्यक्ष राजेन्द्र महतो ने कहा कि इस समय सरकार चुनाव के लिए इतनी उतावली क्यों हो रही है जबकि वे जानते है कि देश के एक बड़े समुदाय को उपेक्षित करके वे चुनाव नहीं करवा पायेंगे। उन्होंने आगे कहा कि नेपाली कांग्रेस और माओवादी दल ने वादा किया था कि चुनावों से पहले वे हमारी मांगों को पूरा करेंगे लेकिन अब चुनाव योजना सामने रख कर संशोधन बिल से ध्यान भटकाने की कोशिश की जा रही है। मोर्चा के नेता इस मामले को लेकर प्रधानमंत्री दहाल और नेपाली कांग्रेस के मुखिया शेर बहादुर देउबा से मिलने कि योजना बना रहे है।10
गत वर्ष नेपाल में २९ नवम्बर को संविधान संशोधन बिल के पंजीकृत करने के बाद भारत की तरफ से सकारात्मक प्रतिक्रिया रही। विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता आनंद स्वरूप ने इस कदम को नेपाल की राजनीति के लिए एक सकारात्मक कदम बताया। इसके अतिरिक्त भारत में नेपाल के राजदूत रणजीत राय ने इस बिल के पंजीकृत होने के बाद मधेश के नेताओं के साथ मुलाकात की और इस बिल को स्वीकार करने का आग्रह किया।11
भारतीय खेमे कि तरफ से इस प्रकार की प्रतिक्रिया के बाद नेपाल के मुख्य विरोधी दल एमाले ने इसकी आलोचना की। एमाले ने कहा कि हमारे आंतरिक मामलों में पडौसी और अंतर्राष्ट्रीय मित्रों को दखल नहीं देना चाहिए। एक बैठक में एमाले के सचिव योगेश भट्टराई ने कहा कि हम अपने पडौसी देशो और अंतर्राष्ट्रीय मित्रों से अपील करते है कि वे नेपाल के आंतरिक मामलों में भाग न ले।12
नेपाल में राजनीतिक समीकरण काफी तेजी से बदलते जिसके कारण राजनीतिक स्थिरता की बात करना बेमानी होगा। संशोधन बिल को लेकर न केवल मधेश के दल चिंतित है बल्कि स्वयं प्रधानमन्त्री पुष्प कमल दहाल भी परेशान है। दहाल को आभास है कि इस बिल को पास करना कितना जरुरी है जहाँ पडौसी देश भारत ने भी इसे समर्थन दिया। दूसरी तरफ उनके सत्ता में रहने का आधार भी इस बिल के पास होने के भविष्य पर निर्भर है। दहाल ने बीच में इस बिल को रोक कर चुनावों की तैयारी की ओर रुख किया था लेकिन अभी पुनः उन्होंने चुनावों से पहले संशोधन बिल को पास करने की बात कही है। इस बिल को लेकर इतना हंगामा इसलिए हो रहा है क्योंकि संशोधन बिल से प्रान्तों में प्रतिनिधित्व पर भी असर पड़ेगा और जिलों को एक प्रान्त से दूसरे प्रांत में बदलने पर उस निर्वाचन क्षेत्र के मतों पर भी असर पड़ेगा। अतः एक तरफ यह संशोधन बिल जहाँ मधेश की मांगों को पूरा करने पर टिका है वही अब राजनीति और चुनावों में अपने अपने हितों को साधने का अखाडा भी बनता जा रहा है। नेपाल सरकार ने अभी हाल ही में स्थानीय चुनावों तारीख 14 मई घोषित की है और इस घोषणा के बाद मधेश दलों ने सरकार से समर्थन वापस लेने की बात कही है। मधेश दल आगामी स्थानीय चुनावों में भाग नहीं लेने और इसका बहिष्कार करने की बात कर रहे है और ऐसी स्थिति में नेपाल में संवैधानिक संकट उभरेगा और यदि इस वर्ग की मांगों के अनुरूप संशोधन बिल पास नहीं होता है तब भी स्थिति ऐसी ही रहेगी। अंततः नेपाल के नेताओं को संविधान को एक गत्यात्मक ग्रन्थ मानकर संशोधन बिल को तुरंत पास करना चाहिए। एक समुदाय विशेष को उपेक्षित कर देश में राजनीतिक स्थिरता लाना दूर की कौड़ी है। नेपाल में शांतिपूर्ण तरीके से चुनाव करवाने और संविधान को सही मायने में लागू करवाने के लिए संविधान में उचित संशोधन करना नितांत आवश्यक है।
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लेखक, शोध अध्येता, विश्व मामलों की भारतीय परिषद्, सप्रू हाउस, नई दिल्ली.
व्यक्त विचार शोधकर्ता के हैं, परिषद के नहीं.
1 Keshav P. Koirala, “Nepal makes first amendment of its constitution four months after promulgation”, The Himalayan Times, 23 January 2016,
http://thehimalayantimes.com/nepal/breaking-nepal-makes-first-amendment-of-its-constitution/
2 “Statute amendment bill registered at parliament”, The Rising Nepal, November 30, 2016,
3 “Govt registers Constitution amendment bill”, The Himalayan Times, November 29, 2016, https://thehimalayantimes.com/nepal/cabinet-passes-constitution-amendment-bill-registered-house-secretariat/
4 “Constitution amendment bill registered in Parliament”, Recent Fusion.com: Breaking News From Nepal, November 29, 2016, http://www.recentfusion.com/2016/11/29/constituion-amendment-bill-registered-in-parliament/
5 Tika R Pradhan, “UML pours cold water on consensus efforts” The Kathmandu Post, 22 November 2016,
http://epaper.ekantipur.com/the-kathmandu-post/2016-11-22/1
6 “Solve problems thru collective efforts: Prez”, The Rising Nepal, 5 December 2016,
7 “Voices against bill rise an oppen’s strength in House reaches 201”, The Kathmandu Post, 22 December 2016,
http://epaper.ekantipur.com/the-kathmandu-post/2016-12-22/3
8 Binod Ghimere, “Numbers game after bill enters parliament”, The Kathmandu Post, 27 November 2016,
http://epaper.ekantipur.com/the-kathmandu-post/2016-11-27/1
9 Tika R Pradhan, “Three parties at one about holding polls”, The Kathmandu Post, 14 December 2016,
http://epaper.ekantipur.com/the-kathmandu-post/2016-12-14/1
10 Roshan Sedhai, “Morcha sees election plan as subterfuge”, The Kathmandu Post, 15 December 2016,
http://epaper.ekantipur.com/the-kathmandu-post/2016-12-15/1
11 “Indian envoy advises morcha to accept the amendment bill”, The Kathmandu Post, 3 December 2016,
http://epaper.ekantipur.com/the-kathmandu-post/2016-12-04/1
12 Tika R. Pradhan, “UML hardens position, decides to intensify stir”, The Kathmandu Post, 6 December 2016,