सामुद्रिक पर्यावरण मनुष्य को क्रमवार असंख्य सेवाएं प्रदान करता है जिनमें खाद्य सुरक्षा, आजीविका तथा रोजगार, सांस्कृतिक सेवाएं, जलवायु नियंत्रण और साथ ही साथ यह तटीय लोगों को तूफान से भी संरक्षण प्रदान करता है। समुद्र ‘ब्लू कार्बन’ के रूप में आवश्यक सेवाएं मुहैया करवाता है जो कि सदाबहार वन, समुद्री घास की पट्टी एवं अनेक सामुद्रिक वनस्पति के रूप में उपलब्ध रहते हैं तथा ये वन उष्णकटिबंधीय वनों से पांच गुना ज्यादा कार्बन को अवशोषित करते हैं। छोटे विकासशील द्वीपीय राष्ट्रों और अन्य तटीय राष्ट्रों के लिए सामुद्रिक तथा तटीय पर्यावरण कई रूपों में इनके विकास में व्यापक भूमिका निभाता है।
इस संदर्भ में, सामुद्रिक अर्थव्यवस्था या ब्लू इकॉनोमी की अवधारणा हरित अर्थव्यवस्था का ही वृहद रूप है जिसका प्रस्फुटन एवं विकास रियो+२० सम्मेलन में हुआ था और इसका विकास छोटे विकासशील द्वीपीय राष्ट्रों और अन्य तटीय राष्ट्रों की आवश्यकताओं का पोषण करने के लिए हुआ।
सामुद्रिक कानून पर संयुक्त राष्ट्र के अभिसमय (UNCLOS) के अनुसार, तटीय देशों को यह अधिकार है कि वे प्रादेशिक समुद्र के संलग्न और उसके आगे विशिष्ट आर्थिक क्षेत्र की स्थापना कर सकते हैं। इस क्षेत्र का विस्तार अधिकतम २०० समुद्री दूरी/नॉटिकल माइल्स तक कर सकते हैं जिसका मापन प्रादेशिक समुद्र की चौडाई की आधारभूत सीमा से होगा। यदि इस दूरी तक समुद्र खुला हुआ नही है (मध्य में कोई द्वीपीय राष्ट्र है) तो उस द्वीप या देश के साथ समझौता करना पड़ेगा। इस मामले को दोनों देशों को ‘अनिवार्य झगड़ों के निपटारे’ के तहत मानना पड़ेगा। तटीय देश को इस मानचित्र/चार्ट को प्रदर्शित करना होगा तथा एक प्रति संयुक्त राष्ट्र के महासचिव के पास जमा करनी होगी। १८८ नॉटिकल माइल्स के इस समुद्री क्षेत्र के अंतर्गत, तटीय देशों के पास कुछ विशिष्ट उद्देश्यों के लिए संप्रभु अधिकार होते हैं। लेकिन प्रादेशिक सामुद्रिक अधिकार जो एक राष्ट्र निर्वहन करता था, वे सार्वभौमिक रूप से तुलना करने पर कम होंगे। इस मामले में जिन अधिकारों का सार्वभौमिक रूप से निर्वहन एक राष्ट कर सकेगा वे हैं- कृत्रिम अधिष्ठापन में संसाधनों और अधिकार क्षेत्र पर सार्वभौम अधिकार, सामुद्रिक वैज्ञानिक शोध तथा सामुद्रिक पर्यावरण संरक्षण। राष्ट्रों का विशिष्ट आर्थिक क्षेत्र काफी व्यापक है, उनके अपने वाणिज्यिक मत्स्य उद्योग के लिए नौकाएँ कम स्तर पर हैं तथा वृहद स्तर पर अवैधानिक रूप से मत्स्य पालन के पर्यवेक्षण तथा निगरानी के लिए वित्त काफी कम है।
मॉरिशस का विशिष्ट आर्थिक क्षेत्र दक्षिण पश्चिमी हिन्द महासागर में लगभग २ मिलियन वर्ग किलोमीटर के दायरे में फैला हुआ है। वर्ष २०११ में, संयुक्त राष्ट्र के महाद्वीपीय शेल्फ की सीमा के आयोग ने मॉरिशस तथा सेशेल्स गणराज्य द्वारा दिए गए संयुक्त ज्ञापन को स्वीकार कर लिया। इसके अनुसार इन देशों ने मैकारेन पठार क्षेत्र पर लगभग ३९६,००० वर्ग किलोमीटर के दायरे में महाद्वीपीय शेल्फ का विस्तार किया है। इसके अतिरिक्त सरकार के २०१२-१५ के कार्यक्रम के तहत मॉरिशस भविष्य में इस सेक्टर को अपनी अर्थव्यवस्था का आधार बनाने के उद्देश्य से महासागरीय अर्थव्यवस्था के विकास को बढ़ावा दे रहा है।
सेशेल्स के लिए मत्स्य पालन काफी महत्वता रखता है; यह लघु स्तर पर और उद्योग के स्तर, दोनों ही में महत्वपूर्ण है। लघु स्तर पर मत्स्यिकी (मछली पकड़ना) सेक्टर को कुछ चुनौतियाँ मिल रही हैं जिससे इसको उभरना है, ये चुनौतियाँ हैं - संचालन एवं निवेश के लिए उच्च दरें होने के कारण इस सेक्टर के लिए यूरोपीय संघ द्वारा निर्धारित किये गए मापदंडों को हासिल करना कठिन है, जिसके कारण इस सेक्टर की पहुँच यूरोपियन बाजार में बंद हो गयी तथा साथ ही इसके उत्पाद वैश्विक बाजार में
(Source: Division for Ocean Affairs and the Law of the Sea, Oceans and Law of the Sea, United Nations, http://www.un.org/depts/los/clcs_new/submissions_files/musc08/SMS-ES-MAP%201_R.pdf) |
चुनौती नहीं दे पा रहे हैं। मूल्य वर्धित उत्पादों के विकास में कमी, कमजोर बाजारीकरण एवं साथ ही साथ प्रक्रियागत कम्पनियों की सीमित संख्या इत्यादि ने इस सेक्टर के विकास में अड़चनें पैदा की हैं। वर्तमान में, सेशेल्स के मत्स्यिकी सेक्टर के तीन घटक हैं - परम्परागत मत्स्यपालन, अर्द्ध उद्योग मत्स्यिकी एवं मत्स्यिकी का पूर्णतः औद्योगिक रूप। मत्स्य उद्योग में विदेशी स्वामित्व के पर्स सेनर्स (एक प्रकार का जहाज) और औद्योगिक लॉन्ग लाइनर (बड़े और लम्बे जहाज) शामिल हैं, जबकि वही परम्परागत मछली पकड़ने के व्यवसाय में १५ तरीके शामिल हैं। मॉरिशस में टूना मछली का व्यवसाय दो भागों में विभक्त है - समुद्र के तटीय क्षेत्र पर तथा गहरे समुद्र में। टूना और टूना जैसी मछली की प्रजाति को मुख्यतया तटवर्ती इलाकों में स्थानीय मछुआरों द्वारा पकड़ा जाता है। उद्योग के तौर पर टूना मछली के पकड़ने के व्यवसाय में पर्स सेनर्स और औद्योगिक लॉन्ग लाइनर का उपयोग किया जाता है। ये मुख्यतया लाइसेंस प्रदत्त विदेशी जहाज हैं और इनके द्वारा मॉरिशस के विशिष्ट आर्थिक क्षेत्र से प्रतिवर्ष १०,००० टन मछली पकड़ी जाती है। पकड़ी जाने वाली मछलियों की प्रजाति विशेष तौर पर स्किपजैक टूना और येलोफिन टूना रहती हैं तथा अंतर्राष्ट्रीय बाजार में इसकी बहुत मांग है।
मॉरिशस की अर्थव्यवस्था में सामुद्रिक उद्योग एक उभरता हुआ तथा आशापूर्ण विकासशील सेक्टर है। मॉरिशस के समुद्री उद्योग में जबरदस्त विस्तार हुआ है, समुद्री खाद्य से लेकर समुद्र में मत्स्य पालन में निवेश की मात्रा बढ़ी है। अनुकूल व्यापारिक वातावरण में मॉरिशस ने इस क्षेत्र में समुद्री खाद्य की हब/मंडी के रूप में अपना एक स्थान बनाया है। विश्व के टूना मछली के उत्पादन में २३ प्रतिशत योगदान देकर हिन्द महासागर ने इस उत्पादन में महत्वता को प्रदर्शित किया है। पश्चिमी हिन्द महासागर से होने वाले ९६२,००० टन उत्पादन ने द्वीपीय राष्ट्र मॉरिशस और सेशेल्स के लिए मत्स्यिकी को महत्वपूर्ण बना दिया है।
वर्तमान में प्रति व्यक्ति समुद्री खाद्य का उपभोग १७.२ किलो है एवं समुद्री खाद्य का वैश्विक बाजार का आंकलन १०० बिलियन अमेरिकी डॉलर प्रति वर्ष है। यह प्रति व्यक्ति उपभोग की दर वर्ष २०३० तक १९-२१ किलो तक पहुँचने की उम्मीद है, जो कि वृहद रूप से जापान, अमेरिका और यूरोपियन देशों में समुद्री खाद्य के बाजार बढ़ने पर निर्भर करता है तथा इसके लिए उनके समुद्री खाद्य के
उपभोग का ४०-६० प्रतिशत निर्यात आवश्यक है। विश्व खाद्य सुरक्षा में समुद्री खाद्य एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है, जो कि नई पीढ़ियों के समक्ष चिंतन के लिए महत्वपूर्ण विषय है। मछली प्रोटीन का न केवल एक प्रमुख स्रोत है जो कि विश्व के १.५ बिलियन लोगों को १५ प्रतिशत प्रोटीन प्रदान करती है बल्कि ये आवश्यक पोषक तत्वों की भी पूर्ति करती है।
मॉरिशस और सेशेल्स के सामुद्रिक उद्योग की रणनीति संपोषितता, उद्योग के आधार का विस्तार, मूल्यवर्द्धित मत्स्यिकी और समुद्री खाद्य का विकास, तथा इससे सम्बंधित सेक्टरों जैसे मत्स्य पालन, नौ समुद्री पोतों के परिवहन तथा अनुषंगी क्षेत्रों आदि पर आधारित है। मत्स्यिकी और मत्स्य पालन जैसे परम्परागत कृत्यों के अलावा इन दोनों द्वीपीय देशों ने अखाद्य मछलियों से मूल्यवान ओमेगा-३ तेल निकालना शुरू किया जो कि फार्मेसी उद्योग में प्रयोग लायी जाती है।
वर्ष २००८ में मॉरिशस और सेशेल्स, दोनों सरकारों के आग्रह के बाद राष्ट्रमंडल सचिवालय ने हिन्द महासागर में ४००,००० वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में अतिरिक्त समुद्री बेस बनाने में दोनों देशों के दावे और अधिकारों को सुरक्षित करने में सहायता की। इस प्रक्रिया में (दोनों देशों के) संयुक्त महाद्वीपीय शेल्फ ने एक आग्रह तैयार कर ‘महाद्वीपीय शेल्फ की सीमाओं के आयोग’ को प्रस्तुत किया जो कि एक अंतर्राष्ट्रीय सहमति के आधार पर बना है एवं जिसकी स्थापना १९८२ में ‘संयुक्त राष्ट्र के समुद्री कानून अभिसमय’ द्वारा की गयी। महाद्वीपीय शेल्फ के प्रतिवेदन को तैयार करना एक जटिल और महत्वपूर्ण कार्य है, जिसमें कई प्रकार के तकनीकी और वैज्ञानिक मुद्दे फंसे रहते हैं। लेकिन दोनों सरकारों ने इस कार्य को तत्परता पूर्वक किया, सफलतापूर्वक क्षेत्र को चिन्हित किया तथा सभी क़ानूनी बाधाओं पर भलीभांति नियंत्रण पाकर उनका पालन किया। राष्ट्रमंडल के सचिवालय और संयुक्त राष्ट्र के कार्यालय के सहयोग से संयुक्त प्रबंधन क्षेत्र में एक समझौता बनाया। इस कार्य के परिणामस्वरूप, मॉरिशस और सेशेल्स की सरकारों ने दो सदस्यीय देशों के २०० नौटिकल माइल्स विशिष्ट आर्थिक क्षेत्र से आगे अतिरिक्त ४००,००० वर्ग किलोमीटर के समुद्री क्षेत्र (महाद्वीपीय शेल्फ) के प्रबंधन हेतु अपने संयुक्त अधिकारों को संरक्षित किया है। इस प्रकार के क्षेत्र में ये दोनों देश विश्व के प्रथम संयुक्त प्रबंधन क्षेत्र स्थापित करने वाले बन गये हैं। इसके साथ ही एक संयुक्त आयोग यहाँ के समुद्री क्षेत्र के जीवित और मृत संसाधनों के उत्खनन, संरक्षण और विकास हेतु बनाया गया है एवं इसकी सहमति संयुक्त राष्ट्र भी प्रदान कर चुका है।
भारत यात्रा के दौरान सेशेल्स के राष्ट्रपति जेम्स एलेक्स मिशेल ने विस्तारित ३९६,००० वर्ग किलोमीटर के समुद्री क्षेत्र (महाद्वीपीय शेल्फ) में भारत की भूमिका के बारे में बात कही जिसको वे हिन्द महासागर में मॉरिशस के साथ साझा करते हैं। उन्होंने आगे कहा कि भारत के बिना हम ब्लू इकोनोमी में आगे नहीं बढ़ सकते, यह एक अवधारणा बन चुकी है। सेशेल्स के वित्त, व्यापार और ब्लू इकोनोमी प्रभार को संभाल रहे मंत्री जें पोल एडम ने कहा कि हम भारतीय निर्माण कर्ताओं को सही समय पर बुलाएँगे जिससे कि वे क्षेत्र में हाइड्रोग्राफी को विकसित करेंगे तथा साथ ही सामुद्रिक क्षेत्र में भारतीय तकनीकी ज्ञान का भी लाभ लेंगे जो कि समुद्री जीवन और हाइड्रो कार्बन में काफी उपयोगी होगा।
जिस प्रकार से इन दोनों देशों ने पारस्परिक रूप से अपने मध्य समझौते स्थापित किये और एक आपसी सहमति पर संयुक्त प्रबंधन क्षेत्र निर्मित किया, जहाँ न केवल ये दोनों देश इस क्षेत्र के संसाधनों को साझा करते हैं बल्कि इस क्षेत्र के संरक्षण एवं संपोषितता की जिम्मेदारी में भी इनकी हिस्सेदारी है। समाधान और आपसी समझ का मॉडल के रूप में ये दोनों देश क्षेत्र और संसाधनों के हिस्से में झगड़ों के लिए अन्य देशों के लिए एक सीख बन सकते हैं। हिन्द महासागर में इस प्रकार के विशिष्ट आर्थिक क्षेत्र और संयुक्त प्रबंधन क्षेत्र में आर्थिक विकास की स्थापना से शांति का माहौल बनाये रखना एक सामरिक महत्व वाले क्षेत्र के लिए महत्वपूर्ण है।
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* लेखक, शोध अध्येता, विश्व मामलों की भारतीय परिषद्, सप्रू हाउस, नई दिल्ली
व्यक्त विचार शोधकर्ता के हैं, परिषद के नहीं.
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