सारांश
आज भारत तथा सऊदी अरब के मध्य द्विपक्षीय सम्बन्धों की बढ़ती प्रवृत्तियों में रक्षा, रणनीति, सुरक्षा, निवेश, विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी, व्यापार के साथ-साथ शिक्षा, ऊर्जा तथा प्रसार कारक शामिल हैं। यह उन सम्भावनाओं के बढ़ते सौहार्द्र तथा समझ की स्पष्ट झलक है जिसमें द्विपक्षीय साझेदारी विकसित हुई है। दोनों देशों के मध्य भागीदारी में हुए विकास के कारण उन विभिन्न कारकों तथा चुनौतियों का मूल्यांकन करना आवश्यक है जिसके द्वारा दोनों देशों के मध्य द्विपक्षीय सम्बन्धों में और अधिक वृद्धि हो सकती है।
भूमिका
भारत-सऊदी सम्बन्धों की हालिया प्रवृत्तियों ने भागीदारी की प्रासंगिकता को पुन: दुहराया है जिसमें आर्थिक, सुरक्षा, रक्षा, रणनीतिक तथा राजनीतिक क्षेत्रों का विस्तार हुआ है। यह सऊदी अरब द्वारा उपक्रमित वर्तमान आर्थिक एवं सामाजिक परिवर्तन के प्रति भारत की बढ़ती जागरूकता के कारण सम्भव हुआ है। इसके बदले में सऊदी अरब अन्तर्राष्ट्रीय मामलों में भूराजनीतिक तथा आर्थिक निष्पादन में भारत के विकास की क्रमिक गाथा की निरन्तर प्रशंसा करता रहा है। यह उन सम्भावनाओं के बढ़ते सौहार्द्र तथा समझ की स्पष्ट झलक है जिसमें द्विपक्षीय साझेदारी विकसित हुई है। आज हम सम्बन्धों में परिपक्वता का वह स्तर देख रहे हैं जिसने भारत और सऊदी अरब को दीर्घकालीन द्विपक्षीय सहयोग की दिशा में प्रतिबद्ध होने में समर्थ बनाया है। अत: सऊदी अरब की आधुनिकीकरण की दिशा में बढ़ने की लालसा तथा 'विजन 2030' जैसी घरेलू नीति आदि आन्तरिक कारकों सहित पश्चिमी एशिया तथा दक्षिणी एशिया में वर्तमान भूराजनीति ने भारत सहित अन्य देशों के लिए आर्थिक अवसरों के द्वार खोल दिए। अत: भारत तथा सऊदी अरब के बीच द्विपक्षीय साझेदारी का होना इसकी एक अन्य विशेषता है।
क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान के नेतृत्व में सऊदी अरब ने 25 अप्रैल, 2016 को एक महत्वाकांक्षी केन्द्रीकृत विकास योजना 'विजन 2030' प्रारम्भ की। इस परियोजना के तहत सऊदी अरब दीर्घकाल से संस्थापित संकीर्णतावादी मुस्लिम समाज से आधुनिकता के पथ पर संक्रमण कालीन दौर से गुजर रहा है। इसके अतिरिक्त, ऊर्जा बाजार की नाजुक तथा अनिश्चित प्रकृति के कारण यह सम्भावना अधिक बलवती दिखाई दे रही है कि राजस्व के स्रोत के रूप में तेल निर्यात बाजार पर अत्यधिक निर्भरता से आने वाले वर्षों में सऊदी अरब के आर्थिक विकास पर प्रभाव पड़ सकता है। 'विजन 2030' के माध्यम से इस देश ने पर्यटन, आवास, रक्षा, व्यापार तथा निवेश जैसे क्षेत्रों पर ध्यान केन्द्रित करना प्रारम्भ किया है ताकि आर्थिक राजस्व के स्रोतों का विविधीकरण किया जा सके। इससे घरेलू स्तर पर तथा विदेशी कम्पनियों, दोनों के लिए अवसर उपलब्ध हुए हैं।
प्रिंस सलमान के लिए इस संकल्पना के क्रियान्वयन में आन्तरिक कारकों को महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाने के लिए तैयार किया गया है, उदाहरण के लिए, जनांकिकीय संरचना जिसमें व्यापक युवा जनसंख्या में सन्तुलित वृद्धि देखी गयी जिसके अन्तर्गत कुल जनसंख्या के 70 प्रतिशत लोग शामिल हैं। सऊदी अरब में इस्लाम के दो सर्वाधिक पवित्र मस्जिदें मदीना तथा मक्का में है जो धार्मिक पर्यटन को सुनिश्चित करती हैं क्योंकि यहाँ प्रतिवर्ष भारी संख्या में प्रवासी कुशल एवं अकुशल श्रमशक्ति के साथ-साथ पर्याप्त संख्या में विदेशी पर्यटक भी आते हैं। किन्तु प्रिंस सलमान की इस महत्त्वाकांक्षी परियोजना के सफल क्रियान्वयन में औद्योगिक उत्पादन के स्वदेशीकरण, तकनीकी सम्भावनाओं के अभाव आदि की सीमा के रूप में बाधाएँ भी हैं।
इन परिस्थितियों के सऊदी अरब के कूटनीतिक सम्बन्ध महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं और भारत जैसे देशों के साथ द्विपक्षीय सम्बन्ध महत्त्वपूर्ण हो जाते हैं।
सऊदी अरब भारत की बाजारी सम्भावनाओं, जनांकिकीय संरचना, अवसंरचना, रक्षा क्षमताओं, मृदु शक्ति क्षमताओं तथा रणनीतिक प्रासंगिकता के कारण भारत के साथ सम्बन्धों को प्रगाढ़ करने का निरन्तर इच्छुक है। स्पष्ट रूप से आज सऊदी की अर्थव्यवस्था भारतीय निवेशकों, कम्पनियों, श्रम शक्ति तथा कुशल पेशेवरों के लिए अधिक समायोजक है जो उन्हें महत्त्वाकांक्षी विजन 2030 परियोजना के तहत आतिथ्य, पर्यटन, आवास, आईटी आदि के बढ़ते क्षेत्रों में प्रवेश करने के लिए आकर्षित करती है। साथ ही, भारत के 'स्किल इण्डिया', 'डिजिटल इण्डिया', 'स्मार्ट सिटी' जैसे विकासपरक कार्यक्रम और अवसंरचनात्मक विकास सम्भावित पहलें हैं जो विशेष रूप से सऊदी अरब के विजन 2030 कार्यक्रम के सन्दर्भ में हैं।
संक्षिप्त ऐतिहासिक पृष्ठभूमि
दोनों देशों के मध्य उच्च स्तरीय द्विपक्षीय सहयोग1 उस समय प्रारम्भ हुआ जब महामहिम किंग सौद ने 1955 में भारत का दौरा किया, जिसके एक वर्ष बाद भारत के प्रधानमन्त्री जवाहर लाल नेहरू ने सऊदी का दौरा किया। इसके बाद तत्कालीन महामहिम क्राउन प्रिंस फैजल ने 1959 में भारत का और प्रधानमन्त्री इन्दिरा गांधी ने 1982 में सऊदी का दौरा किया।
सहयोग का सर्वाधिक स्पष्ट विकास जनवरी 2006 में दिखाई दिया जब महामहिम किंग अब्दुल्ला ने भारत का दौरा किया। इस दौरे को द्विपक्षीय सम्बन्धों में "एक नये युग" का प्रारम्भ कहा गया जिसमें ऐतिहासिक दिल्ली घोषणा (2006) पर हस्ताक्षर किये गये। 26 जनवरी, 2006 में नई दिल्ली में गणतन्त्र दिवस के अवसर पर सऊदी के किंग मुख्य अतिथि थे। वे यह सम्मान प्राप्त करने वाले प्रथम सऊदी किंग थे और सऊदी अरब की ओर से भी इसका प्रतिफल दिया गया।
बाद में 2016 में प्रधानमन्त्री नरेन्द्र मोदी एकमात्र ऐसे भारतीय नेता बने जिन्हें सऊदी अरब का सर्वोच्च नागरिक सम्मान किंग अब्दुल अजीज सैश प्रदान किया गया। 2018 में सऊदी अरब के प्रतिष्ठित वार्षिक 'राष्ट्रीय विरासत तथा सांस्कृतिक उत्सव' जनद्रिया उत्सव में भारत को 'गेस्ट ऑफ ऑनर' के लिए चुना गया। 19-20 फरवरी, 2019 को महामहिम क्राउन प्रिंस सलमान की प्रथम भारत यात्रा से परस्पर सहयोग में और अधिक मजबूती आई।
प्रिंस सलमान तथा प्रधानमन्त्री मोदी के बीच की वार्ता से जीवन्त आशावाद का संचार हुआ क्योंकि इसमें सरकारी स्तर पर ऊर्जा, रक्षा, अवसंरचना, सुरक्षा, पर्यटन, व्यापार तथा निवेश सहित सहयोग के प्रमुख क्षेत्रों में समझौतों पर हस्ताक्षर किये गये।
व्यापार तथा निवेश सहयोग
भारत तथा सऊदी अरब जीवन्त द्विपक्षीय व्यापारिक सम्बन्धों को साझा करते हैं जिसमें सन् 2000 के मध्य से निरन्तर प्रगाढ़ता आई है। भारत एक विशाल बाजार और व्यापक रूप से आयात उन्मुख देश है। आर्थिक तथा निवेश समझौतों पर हस्ताक्षर से सऊदी अरब को भारत में अपने आर्थिक कार्यक्रमों के विस्तार में सहायता मिली है। संयुक्त उपक्रमों तथा व्यापक स्तर के निवेशों के लिए सऊदी अरब हेतु भारतीय व्यापार महत्त्वपूर्ण हैं। साथ ही निवेशों तथा प्रवासी श्रमशक्ति के कारण भारत तथा सऊदी अरब के बीच आर्थिक क्षेत्र में पारस्परिक लाभकारी साझेदारी के अवसर भी मिले हैं। 2017-18 में भारत तथा सऊदी अरब के बीच 27.48 बिलियन डॉलर का व्यापार हुआ। दोनों देशों ने विभिन्न क्षेत्रों में संयुक्त सहयोग तथा निवेश के लगभग 40 सम्भावित क्षेत्रों को भी चिन्हित किया। व्यापारिक बाधाओं को दूर करने के लिए दोनों देशों ने निर्यात तथा घरेलू एवं क्षेत्रीय बाजारों में पहुँच बनाने हेतु व्यापार एवं व्यापारिक निवेश सम्बन्धी नियमों में छूट देने पर भी ध्यान केन्द्रित किया।
भारत-सऊदी व्यापार (बिलियन अमेरिकी डॉलर में)
वर्ष (अप्रैल-मार्च) |
सऊदी अरब से आयात |
सऊदी अरब को निर्यात
|
कुल व्यापार |
द्विपक्षीय व्यापार में % वृद्धि
|
भारतीय आयातों में % वृद्धि |
भारतीय निर्यातों में % वृद्धि |
2013-2014 |
3640 |
12.21 |
48.62 |
11.05 |
7.08 |
24.86 |
2014-2015 |
28.10 |
11.16 |
3926 |
-19.24 |
-22.79 |
-8.65 |
2015-2016 |
20.32 |
639 |
26.71 |
-3197 |
-27.7° |
-42.71 |
2016-2017 |
1994 |
5.13 |
25.08 |
-6.12 |
-1.85 |
-19.70 |
2017-2018 |
22.06 |
5.14 |
27.48 |
+956 |
+10.50 |
+5.88 |
स्रोत : वाणिज्य विभाग, भारत सरकार। (www.dgft.gov.in), http://www.indianembassy.org.sa/india-saudi-arabia/india-saudi-bilateral-relations
ऊर्जा सहयोग
पश्चिमी एशिया में भारत की रुचि मुख्यत: विशाल भारतीय जनसमुदाय तथा ऊर्जा सुरक्षा के कारण है। पश्चिमी एशिया में सऊदी अरब की रणनीतिक स्थिति तथा राजनीतिक और आर्थिक शक्ति जो इसे वैश्विक तेल भण्डारों के साथ-साथ उन्नत करती है, भारत को अपना महत्त्वपूर्ण साझेदार बनाती है। भारत की बढ़ती ऊर्जा आवश्यकताओं के कारण दोनों पक्षों ने भारत-सऊदी अरब ऊर्जा परामर्शों तथा निवेश एवं पेट्रोकेमिकल क्षेत्र में संयुक्त उपक्रमों की निरन्तरता पर ध्यान केन्द्रित किया है।
अमेरिका की एकपक्षीय कार्यवाही का इसे साझेदारों और विशेष रूप से कात्सा प्रतिबन्धों के कारण भारत पर इसका गम्भीर प्रभाव पड़ा जिसके कारण भारत पर ईरान से ऊर्जा आयातों को कम करने का दबाव पड़ा। इससे सऊदी अरब जैसे तेल निर्यातक देशों के लिए अवसर के द्वार खुल गये। वर्तमान में ईरान पर प्रतिबन्धों के बाद सऊदी अरब के भारत को तेल निर्यात में 9.46 प्रतिशत की वृद्धि हुई। साथ ही दोनों देश ऊर्जा सहयोग में परम्परागत क्रेता-विक्रेता सम्बन्धों से परे जाने के इच्छुक दिखाई दिए।
जनसमुदाय
सऊदी अरब में 2.8 मिलियन भारतीय कार्मिक नियुक्त हैं जो भारत में बहुमूल्य विदेशी मुद्रा भेजते हैं। भारतीय जनसमुदाय ने सऊदी अरब में कुशल एवं अकुशल विभिन्न पेशों में उद्यमी, अध्यापकों, चिकित्सकों, वकीलों, इंजीनियरों, चार्टर्ड एकाउन्टेंटों तथा प्रबन्धकों के रूप में पर्याप्त उपस्थिति दर्ज करायी है। यह समुदाय दोनों देशों के मध्य द्विपक्षीय सम्बन्धों को मजबूत करने में भी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है। सऊदी नेतृत्व ने भी सऊदी अरब के विकास में भारतीय समुदाय के योगदान को स्वीकार किया है। भारत के लिए सऊदी अरब सहित पश्चिमी एशियाई देशों के साथ उत्तम सम्बन्ध प्रवासी भारतीय समुदाय के कल्याण के लिए आवश्यक हैं जैसे आपातकालीन स्थिति में भारतीय नागरिकों को वापस भारत लाना एक आवश्यकता है। 2015 में आपरेशन राहत के माध्यम से यमन संकट के दौरान सऊदी अरब की सहायता से भारी संख्या में भारतीय तथा विदेशी नागरिकों को सुरक्षित निकाला गया।
चिकित्सा पर्यटन, शिक्षा तथा पर्यटन के लिए भारत एक व्यावहारिक गन्तव्य स्थल है। उदाहरण के लिए भारतीय विश्वविद्यालयों ने भारत में अध्ययन के लिए सऊदी अरब के विद्यार्थियों को छात्रवृत्ति प्रदान करके आकर्षित किया है। व्यापार तथा ऊर्जा सहयोग एवं जनसमुदाय के अतिरिक्त सऊदी अरब तथा भारत के बीच आतंकवाद का निरोध तथा रक्षा सहयोग के कुछ नये महत्त्वपूर्ण क्षेत्र हैं।
आतंकवाद की निन्दा
दोनों देशों के एक-दूसरे के निकट आने का एक कारण बढ़ते चरमपंथ तथा आतंकवाद के प्रति चिन्ता है। आतंकवाद के विरुद्ध सामूहिक संघर्ष के इस प्रयास ने द्विपक्षीय स्तर को और अधिक बढ़ाया है जिसके कारण दोनों देशों ने आतंकवाद के विरुद्ध संघर्ष के लिए एक समझौता ज्ञापन-पत्र पर हस्ताक्षर किये। चाहे वह रियाद घोषणा हो या प्रिंस सलमान की हालिया यात्रा, दोनों देशों के नेताओं ने आतंकवाद, चरमपंथ तथा हिंसा की जो आलोचना की वह केवल पुन: पुष्टि करती है कि आतंकवाद वैश्विक है और प्रत्येक समाज के लिए खतरा है।
सऊदी सरकार ने प्रमुख संदिग्ध आतंकियों को पकड़ने में नियमित रूप से भारत की सहायता की है। यह उल्लेखनीय है कि 2012 में सऊदी अरब ने 2008 के मुम्बई हमलों में लिप्त संदिग्ध आतंकवादी जैबुद्दीन अंसारी उर्फ अबू जिंदाल को पकड़ने में भारत की सहायता की। दिसम्बर 2016 में सऊदी अरब ने अब्दुल सलाम नामक जाली भारतीय मुद्रा चलाने वाले रैकेट के मुखिया को पकड़कर भारत भेजा।
प्रिंस सलमान की हालिया भारत यात्रा उस संवेदनशील समय में हुई जब पुलवामा में केन्द्रीय रिजर्व पुलिस बल पर आतंकवादी हमला किया गया जिसमें 40 भारतीय जवान शहीद हो गये। यह आतंकवादी हमला पाकिस्तान आधारित जैश-ए-मुहम्मद द्वारा किया गया था। प्रिंस सलमान की भारत यात्रा का महत्त्वपूर्ण निष्कर्ष आतंकवाद को समाप्त करने तथा आतंकवादी संगठनों को आश्रय देने या प्रायोजित करने वाले देशों के विरुद्ध अन्तर्राष्ट्रीय समुदाय सहित एकजुट होकर कार्य करने का आह्वान था। भारत और सऊदी अरब राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकारों के स्तर पर एक 'व्यापक सुरक्षा संवाद' तथा आतंकवाद निरोध पर संयुक्त कार्यकारी समूह स्थापित करने के इच्छुक हैं।
रक्षा समझौते
रक्षा क्षेत्र में भारत और सऊदी अरब दोनों व्यापक रूप से आयात उन्मुखी देश हैं। किन्तु न केवल रक्षा बाजारों में विविधता लाने बल्कि अपने सम्बद्ध रक्षा औद्योगिक क्षेत्र के स्वदेशीकरण के माध्यम से आत्मनिर्भर होने की बढ़ती आवश्यकता को भी ध्यान में रखना होगा।
यद्यपि इस दिशा में दोनों देशों को पूर्ण सम्भावनाएँ हासिल करनी शेष हैं किन्तु द्विपक्षीय स्तर पर दोनों देशों का लक्ष्य रक्षा सहयोग में वृद्धि करना है। इसने दोनों पक्षों को घनिष्ठ सुरक्षा तथा रक्षा सम्बन्धी सम्बन्धों जैसे सूचनाएं साझा करना, सैन्य अभ्यास तथा सैनिकों के प्रशिक्षण आदि के लिए प्रोत्साहित किया है, जिसे प्रधानमन्त्री मोदी के 'मेक इन इण्डिया' तथा प्रिंस सलमान के 'विजन 2030' दोनों की सहायता के लिए एक सम्भावित युक्ति के रूप में देखा गया।
इस दिशा में दोहरा उपयोग कार्यक्रम एक प्रमुख क्षेत्र हो सकता है। दोहरा-उपयोग उत्पादन के माध्यम से दोनों देश वाणिज्यिक सहायता जैसे सशस्त्र वाहनों हेतु विकसित इलेक्ट्रॉनिक बोर्ड तथा कम्प्यूटर, सार्वजनिक परिवहन और औद्योगिक अनुप्रयोग सहित सैनिक एवं नागरिक उद्देश्यों का डिजाइन तैयार कर सकते हैं। इसके लिए हम निजी क्षेत्र की कम्पनी महिन्द्रा का उदाहरण ले सकते हैं। वर्तमान में महिन्द्रा के ट्रैक्टर 40 से अधिक देशों में खेतों की जुताई का कार्य कर रहे हैं। मित्सुबिशी, टीवाईएम तथा हुआंघाईजिन्मा के साथ स्थायी साझेदारी के द्वारा उनके ट्रैक्टर संयुक्त राज्य अमेरिका जैसे देशों में तेजी से अपनी उपस्थिति दर्ज करा रहे हैं। इसके साथ ही रक्षा सेवाओं में महिन्द्रा का सहयोग 1947 से रहा है और वे भारत सरकार के 'मेक इन इण्डिया' प्रयासों में निरन्तर सहयोग कर रहे हैं। महिन्द्रा भारत सरकार के निजी क्षेत्र के सबसे बड़े आपूर्तिकर्ताओं में से एक है जो सशस्त्र वाहनों, भूमि तथा नौसेना प्रणालियों, रक्षा इलेक्ट्रॉनिक्स तथा संचार प्रणालियों के साथ भारत को सुरक्षित एवं संरक्षित करने में सहयोग दे रहा है।3
दोनों देशों के मध्य दोहरा-उपयोग तकनीकी उत्पादन जैसी व्यवस्था जो कि रक्षा औद्योगिक क्षेत्र के स्वदेशीकरण के लिए प्रतिबद्ध है, न केवल रक्षा हितों के लिए उपयोगी है बल्कि कृषि जैसे क्षेत्रों में भी सहयोग को प्रोत्साहित करेगी।
भारत तथा सऊदी अरब के बीच द्विपक्षीय सहयोग का एक अन्य स्तम्भ रणनीतिक सहयोग है।
भारत-सऊदी अरब सम्बन्धों का रणनीतिक महत्त्व
खाड़ी क्षेत्र तथा भारतीय उपमहाद्वीप की स्थिरता तथा सुरक्षा एक-दूसरे से घनिष्ठ रूप से सम्बद्ध हैं। भारतीय दृष्टिकोण से क्षेत्रीय स्थिरता की प्रमुख चुनौतियों में सीरिया में जारी गृह युद्ध, अमेरिका-ईरान के मध्य कटुता तथा फिलिस्तीन मुद्दे शामिल हैं। भारत यमन में हो रहे विकास पर भी नजदीकी दृष्टि जमाए हुए है। दक्षिणी एशिया भी आतंकवाद तथा कट्टरपन्थिता सहित अनेक गम्भीर चुनौतियों का सामना कर रहा है। साइबर सुरक्षा तथा समुद्री सुरक्षा इस क्षेत्र के अन्य प्रमुख मुद्दे हैं। पश्चिमी एशिया में सऊदी अरब की भूमिका तथा दक्षिणी एशियाई भूराजनीति में भारत की प्रासंगिकता के कारण भारत तथा सऊदी अरब के मध्य सकारात्मक सम्बन्धों के निर्माण के लिए इन विकासों ने उचित स्थान प्रदान किया है।
पश्चिमी एशिया में भारत की प्रमुख रुचि खाड़ी क्षेत्र की स्थिरता तथा सुरक्षा हेतु प्रमुख क्षेत्रीय तथा अतिरिक्त क्षेत्रीय देशों के साथ सहयोग करने की इच्छा है। दोनों देशों के बीच रणनीतिक सहयोग में वृद्धि करने के लिए सऊदी सैन्य कैडेट सैनिक प्रशिक्षण के लिए भारत के एनडीए के साथ भी सम्बद्ध हुए हैं। भारतीय जनसमुदाय के अतिरिक्त यह एक एक सकारात्मक कदम है जो सम्भवत: रणनीतिक तथा रक्षा समुदायों में भी एक संगठित अन्तर्क्रिया की ओर बढ़ सकता है। भारत तथा सऊदी अरब के बीच इन सहयोगों के अतिरिक्त साझा हितों के अन्य क्षेत्र निम्नलिखित हैं :
दोनों देशों के मध्य सहयोग हेतु स्वास्थ्य क्षेत्र में पर्याप्त सम्भावनाएँ हैं; विशेष रूप से प्रशिक्षण तथा चिकित्सक विनिमय कार्यक्रम, चिकित्सा पर्यटन, स्वास्थ्य सेवाओं में विस्तार, स्वास्थ्य अवसंरचनाओं का निर्माण तथा इससे सम्बन्धित तकनीकों का विकास। भारत फार्मास्यूटिकल्स के सबसे बड़े निर्माताओं तथा निर्यातकों में से एक है।
दोनों देश ज्ञान-आधारित अर्थव्यवस्था पर ध्यान केन्द्रित कर रहे हैं। उदाहरण के लिए, वे सूचना तकनीक, अन्तरिक्ष विज्ञान एवं अन्य महत्त्वपूर्ण तकनीकों जैसी अपनी सम्बद्ध क्षमताओं पर विचार कर रहे हैं। इससे पारस्परिक लाभ के अनेक अवसर उत्पन्न होंगे।
भारत के पास विश्व का सबसे बड़ा वैज्ञानिक तथा तकनीकी श्रमशक्ति का भण्डार है और इसे इसकी तकनीकी कुशलता के लिए विश्व भर में जाना जाता है। अनेक भारतीय प्रवासी जो सूचना तकनीक के विशेषज्ञ हैं सऊदी अरब के सूचना तकनीक तथा ज्ञान आधारित उद्योगों के विकास में और अधिक वृद्धि करने में योगदान कर सकते हैं।
शिक्षा, व्यावसायिक प्रशिक्षण तथा पर्यटन को प्रोत्साहन अन्य क्षेत्र हैं जिसमें दोनों देश पारस्परिक लाभ के लिए संयुक्त रूप से कार्य करने पर ध्यान केन्द्रित कर सकते हैं।
प्रिंस सलमान की यात्रा के दौरान सहयोग के अन्य सम्भावित क्षेत्र पर्यटन, उड्डयन उद्योग, समुद्री सुरक्षा की वृद्धि हेतु हिन्द महासागर रिम, साइबर स्पेस में तकनीकी सहयोग; सुधरे हुए बहुपक्षवाद को प्रोत्साहन, वैश्विक प्रशासन आदि थे। प्रिंस सलमान भारत के हाजी तीर्थयात्रियों का कोटा 200,000 तक बढ़ाने के लिए भी सहमत हुए। उनकी यात्रा के दौरान भारत 1 अप्रैल, 2019 से सऊदी अरब से विदेशी उड़ान अधिकारों के कोटे में 40% की वृद्धि करने पर भी सहमत हुआ।4
सम्भावनाएँ
यद्यपि सम्भावनाओं के अनेक क्षेत्र हैं किन्तु निम्नलिखित तीन क्षेत्र सम्बन्धों को प्रगाढ़ करने के लिए महत्त्वपूर्ण हैं :
दोनों देशों की जनता का परस्पर सम्पर्क
सऊदी अरब उन देशों में से एक है जहाँ भारी संख्या में भारतीय प्रवासी हैं और उनकी वहाँ उपस्थिति को परिसम्पत्ति में परिवर्तित करने की आवश्यकता है। उदाहरण के लिए वर्तमान में सऊदी अरब द्वारा पर्यटन तथा मनोरंजन के क्षेत्र में ध्यान दिये जाने के कारण मनोरंजन भी पर्यटन का एक सम्भावित क्षेत्र हो सकता है। इसके साथ-साथ मनोरंजन क्षेत्र मनोरंजन तथा वाणिज्यिक क्षेत्र का एक पूर्ण संयोजन है।
वर्तमान में भारतीय फिल्म उद्योग का पर्याप्त विकास हुआ है और यह भारत में सबसे तेजी से उभरने वाला उद्योग है। भारत एक बहुभाषी देश है और इसीलिए इसका फिल्म उद्योग भी बहुभाषी है। भारत में अनेक लोगों के दक्षिण भारतीय राज्यों से आने के कारण इन राज्यों के फिल्म उद्योग बहुत पिछड़े नहीं हैं। उदाहरण के लिए मलयालम फिल्म उद्योग सऊदी अरब में केरल बहुल जनसमुदाय में एक परिसम्पत्ति सिद्ध हो सकता है।
अगली पीढ़ी को तैयार करना
विशेष रूप से सऊदी अरब के साथ द्विपक्षीय सम्बन्धों को आधुनिकीकरण के मार्ग पर आगे बढ़ाने के लिए अगली पीढ़ी को तैयार करना महत्त्वपूर्ण है। क्राउन प्रिंस सलमान अगली पीढ़ी की ओर देख रहे हैं जिसे वह "भविष्य के शिल्पकार" कहते हैं।5 भारत भी युवा बाहुल्य देश है। अत: विद्यार्थियों के विनिमय कार्यक्रमों, युवा मंचों, सांस्कृतिक कार्यक्रमों आदि के माध्यम से राष्ट्र निर्माण की प्रक्रिया में युवा की व्यापक भागीदारी की सम्भावनाएँ तलाश की जा सकती हैं।
चौथी औद्योगिक क्रान्ति द्वारा जीवन तथा कार्यशैली में परिवर्तन होने के कारण भारत तथा सऊदी अरब दोनों युवाओं के आवागमन पर बल दे सकते हैं क्योंकि युवा लोगों के सहयोग की द्विपक्षीय सम्बन्धों के विकास में महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है।
सांस्कृतिक गतिविधियों को बढ़ावा
भारतीय जनसमुदाय ने अरब संस्कृति से बहुत कुछ ग्रहण किया है जो कि सऊदी अरब में रहने वाले भारतीय जनसमुदाय का एक अन्तर्भूत घटक हो गया है। सऊदी अरब में भारतीय जनसमुदाय एक सेतु की भूमिका निभाता है जिसके कारण दोनों देशों के मध्य एक सांस्कृतिक सम्बन्ध निर्मित होता है। यह समुदाय भारत-सऊदी सम्बन्धों को दृढ़ करने और प्रोत्साहित करने में सफल रहा है। अत: दोनों देशों के मध्य द्विपक्षीय सम्बन्धों को मजबूत करने में सांस्कृतिक विनिमय तथा अन्तर्क्रिया के क्षेत्र पर निरन्तर बल दिया जाना चाहिए। योग जैसे सांस्कृतिक कार्यक्रम दोनों देशों के मध्य द्विपक्षीय सम्बन्ध को और अधिक स्पष्ट बनाते हैं।
सऊदी सरकार द्वारा 'सऊदीकरण' नीति को प्रोत्साहित करने हेतु जारी किया गया दिशा-निर्देश विशेष रूप से भारतीय प्रवासी जनसमुदाय को प्रभावित कर सकता है क्योंकि इसके कारण उसे अपने नागरिकों को अधिक नौकरियाँ उपलब्ध कराने के लिए भारतीयों को कुछ विशेष नौकरियों से प्रतिबन्धित रखा जाता है। साथ ही 'परिवार कर' सऊदी अरब में भारतीय जनसमुदाय के लिए चिन्ता का एक अन्य विषय है क्योंकि इससे अप्रवासी कामगारों को प्रतिमाह अपने प्रत्येक आश्रित के लिए 100 रियाल (लगभग रु. 1,700) का शुल्क अदा करना पड़ता है।6 अत: यदि कोई भारतीय प्रवासी अपनी पत्नी तथा दो बच्चों के साथ वहाँ रहता है तो उसे प्रतिमाह 300 रियाल का शुल्क अदा करना पड़ता है। इस कर में वर्ष 2020 तक प्रतिवर्ष प्रति आश्रित के लिए 100 रियाल की वृद्धि की जायेगी। इससे सऊदी अरब में रहने वाले विशाल भारतीय जनसमुदाय पर आर्थिक बोझ पड़ा है। सहयोग में वृद्धि होने के कारण सऊदी अरब उन वर्तमान नीतियों की समीक्षा कर सकता है जिससे भारतीय जनसमुदाय प्रभावित होता है जो कि इस देश पर देनदारी की अपेक्षा एक परिसम्पत्ति रहा है।
भारत तथा सऊदी अरब दोनों ने द्विपक्षीय सहयोग के क्षेत्रों को व्यापक बनाने पर बल दिया है अत: दोनों देश एक-दूसरे के हितों में सन्तुलन स्थापित कर सकते हैं किन्तु साथ-साथ उन्हें एक-दूसरे की संवेदनाओं की भी अनदेखी नहीं करनी होगी। दोनों देश ऐसे कुछ मुद्दों पर ध्यान दे सकते हैं जो साझेदारी को प्रभावित कर सकते हैं जैसे कि भारतीय जनसमुदाय की कठिनाइयों का निराकरण करना। अब दोनों देशों को परस्पर किये गये समझौतों को क्रियान्वित करने की दिशा में आगे बढ़ना है और प्रभावी परिणाम प्राप्त करने के लिए समय-समय पर उनकी समीक्षा करना है।
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* लेखिका, शोधकर्ता, वैश्विक मामलों की भारतीय परिषद, नई दिल्ली।
अस्वीकरण : इसमें व्यक्त विचार शोधकर्ता के हैं न कि परिषद के।
1 The section on brief historical background is taken from the “India – Saudi Arabia Bilateral Relations”, Ministry of External Affairs, https://www.mea.gov.in/Portal/ForeignRelation/India-Saudi_Bilateral_Relations_Aug__2017.pdf Accessed on 14 May 2019
2 Vinay Kaura, “India and Saudi Arabia Move Beyond Energy”, The Diplomat, 08 February 2019.
https://thediplomat.com/2019/02/india-and-saudi-arabia-move-beyond-energy/Accessed on 23 March 2019.
3Mahindra Group, https://www.mahindra.com/defence Accessed on 12 April 2019
4 Mihir Mishra, “In rare concession, India to hike Saudi flying rights by 40%”, Economic Times, 07 March
2019.//economictimes.indiatimes.com/articleshow/68295906.cms?utm_source=contentofinterest&utm_medium=tex
t&utm_campaign=cppst Accessed on 22 March 2019
5 Bethan McKernan, “Saudi Arabia's youth embrace crown prince’s desire for liberalization”, Independent, 25
October 2017 https://www.independent.co.uk/news/world/middle-east/saudi-arabia-change-youth-crown-princemodernise-wahhabism-mohammed-bin-salman-a8019876.html Accessed on 13 January 2019.
6 “Saudi Arabia 'family tax': What is it? How will it affect Indians?”, Business Today, 21 June 2017.
https://www.businesstoday.in/current/economy-politics/saudi-arabia-family-tax-what-is-it-how-will-it-affectindians/story/254822.htmlAccessed on 23 March 2019
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