सार
सुदूर पूर्व का रूस हाल ही के दिनों में एक राष्ट्रीय प्राथमिकता के रूप में उभरा है। इसकी भौगोलिक स्थिति और आर्थिक संभावनाओं को देखते हुए एफ.ए.आर. क्षेत्रीय जुड़ाव(कनेक्टिविटी) और आर्थिक एकीकरण के लिए अनुमानित रूप से सबसे महत्वपूर्ण क्षेत्रों में से एक है। इस क्षेत्र में समृद्ध तेल और प्राकृतिक गैस, लौह अयस्क और तांबा, हीरा और सोना, लकड़ी तथा ताजे मछली के भंडार हैं। विशेष रूप से कृषि क्षेत्र रूस के लिए एक प्रमुख केंद्र बिंदु क्षेत्र के रूप में उभरा है। कृषि की संभावनाओं का पता लगाने,सूदूर पूर्व में कृषि उद्योगों और कृषि-प्रसंस्करण परिसरों के विकास लिए स्थानीय निवासियों और विदेशी नागरिकों को समान रूप से प्रोत्साहित करने के लिए रूसी हामस्टेड अधिनियम की शुरूआत की गई।“वर्ष 2016 में रूसी होमस्टेड अधिनियम”केसंदर्भ में और भारत विश्व के सबसे बड़े कृषि किसानों के आप्रवास में से एक के लिए मेजबान है, कृषि क्षेत्र की संभावनाओं को पूरा करने लिए भारत और रूस दोनों की आवश्यकता महत्वपूर्ण हैं।
मुख्य शब्द :सुदूर पूर्व, होमस्टेड अधिनियम, क्षेत्रीय संपर्क, आर्थिक एकीकरण, भारतीय किसान आप्रवास ।
दोनों देशों के बीच आर्थिक संबंधों को मजबूत करने की धारणा बढ़ती हुई प्रतीत होती है। आर्थिक संबंधों को पुनर्जीवित करने के लिए भारत और रूस ने वर्ष 2015 तक 30 बिलियन डॉलर के व्यापार की कुल बिक्री(टर्नओवर) और 30 बिलियन डॉलर के निवेश का लक्ष्य रखा है। रूस और भारत वार्षिक द्विपक्षीय शिखर सम्मेलन के सफल आयोजन के माध्यम से, विभिन्न संस्थानों और तंत्रों(मेकेनिज्मों)की स्थापना जैसे कि “रणनीतिक आर्थिक वार्ता, भारत-रूस व्यापार काउंसिल, भारत-रूस व्यापार, निवेश तथा प्रौद्योगिकी संवर्धन काउंसिल, भारत-रूस व्यापार संवाद(डायलाग), भारत-रूस चैंबर ऑफ कॉमर्स, सेंट पीटर्सबर्ग इंटरनेशनल इकोनॉमिक फोरम” और आई.एन.एस.टी.सी. जैसे बहु-मोडल नेटवर्क का उद्देश्य आर्थिक सहयोग में पुनर्संरचना का लक्ष्य है।
इस तरह की पहल केवल इस तथ्य को इंगित करती है कि भारत और रूस एक साथ अत्यधिक गहन निगरानी कर रहे हैं ताकि आर्थिक व्यस्तताओं को दूर किया जा सके। इस दिशा में दोनों देशों ने आर्कटिक क्षेत्र और सुदूर पूर्वी क्षेत्र(एफ.ए.आर) जैसे सहयोग के नए क्षेत्रों की पहचान की है।
सुदूर पूर्व के रूस की भौगोलिक स्थिति समृद्ध तेल और प्राकृतिक गैस, लौह अयस्क और तांबा, हीरा और सोना, लकड़ी और मछली के भंडार के कारण जुड़ाव(कनेक्टिविटी) और आर्थिक एकीकरण के लिए सबसे महत्वपूर्ण क्षेत्रों में से एक है। सुदूर पूर्व “कृषि क्षेत्र और मत्स्यपालन के अलावा स्वर्ण-समृद्ध मगदान क्षेत्र और हीरा-खनन सखा-याकूतिया गणराज्य जैसे समृद्ध क्षेत्रों साथ ही महत्वपूर्ण बंदरगाह और सल्मॉन-समृद्ध नदियों”2का घर है। वर्ष 2013 में राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने सुदूर पूर्व को राष्ट्रीय प्राथमिकता और ‘राष्ट्रव्यापी कार्य’3 घोषित किया था। सुदूर पूर्व को एक राष्ट्रीय प्राथमिकता के रूप में पेश करने के पीछे यह विचार है कि कृषि(वानिकी), मत्स्यपालन(निजी) व्यवसाय को शुरू करने के लिए पुनर्वास को प्रोत्साहित किया जाए।
हालांकि सुदूर पूर्व हाल के दिनों में रूस के लिए एक महत्वपूर्ण क्षेत्र के रूप में उभरा है, लेकिन भारत जैसे ‘अनूकूल’ साझेदारों द्वारा इसे अभी पूंजीकृत किया जाना शेष है। “हालांकि भारत विकास परियोजनाओं में सक्रिय भागीदारी के माध्यम से इस क्षेत्र से लाभ प्राप्त करना चाहता है, लेकिन ठोस परिणाम प्राप्त होना अभी बाकी है।बढ़ते हुए महत्व को देखते हुए कि रूस सुदूर पूर्व से जुड़ता है, इस क्षेत्र पर भारत द्वारा ध्यान दिए जाने की आवश्यकता है क्योंकि यह जुड़ाव(कनेक्टिविटी) तथा आर्कटिक क्षेत्र तक पहुंच बनाने और भारत-प्रशांत क्षेत्र में भारत के आर्थिक दायरे का विस्तार करने के लिए वाहक नलिका के रूप में कार्य करता है।
सुदूर पूर्व है इसलिए भारत के लिए आर्कटिक और भारत-प्रशांत क्षेत्र दोनों में अपने भू-आर्थिक दृष्टिकोण का विस्तार करने के लिए बहुत आवश्यक उत्तोलन बिंदु(लीवरेज प्वाइंट) है”।4भारत और रूस के बीच सुदूर पूर्व में सहयोग फिर भी मुख्य रूप से क्षेत्रीय संपर्क, आर्थिक संगठनों में भागीदारी और घरेलू नीतियों के विलय के माध्यम से द्विपक्षीय संबंधों में महत्वपूर्ण विकास के बड़े संदर्भ में है।
जबकि रक्षा, ऊर्जा और परमाणु सहयोग भारत-रूस आर्थिक सहभागिता, कृषि जैसे क्षेत्र में सीमित दायरे में एक बड़ा हिस्सा योगदान देता है। इसलिए कृषि की संभावनाओं को पूरा करने के लिए समय की आवश्यकता है और विशेष रूप से 2016 में ‘रूसी होमस्टेड अधिनियम’ के संदर्भ में और भारत को विश्व के सबसे बड़े कृषि किसानों के आप्रवास में से एक की मेजबानी करने आवश्यकता है।इसलिए यह लेख उन संभावित तंत्रों का मूल्यांकन करता है जिनके माध्यम से दोनों देशों द्वारा सुदूर पूर्व में एक प्रायोगिक परियोजना के प्रस्ताव के साथ संबंधों को आगे बढ़ाया जा सकता है जिसे भारत और रूस के बीच आर्थिक संबंधों को मजबूत करने में सहायता करने के लिए माना जा सकता है।
स्रोत: http://www.maff.go.jp/j/kokusai/kokkyo/attach/pdf/haifu_6nd-5.pdf
एफ.ए.आर. की प्रासंगिकता का मूल्यांकन करने और विशेष रूप से कृषि क्षेत्र के दोहन में संभावित अवसरों का पता लगाने की जरूरत है, जिससे इस क्षेत्र में रूस का बढ़ता ध्यान(फोकस) तथा भारत विश्व में कृषि उत्पादन और किसान के आप्रवास में अग्रणी देशों में से एक है। वर्ष 2014 में पश्चिम द्वारा रूस पर आर्थिक प्रतिबंध लगाए जाने के बाद से क्रीमियापर दावा करते हुए रूस ने ऊर्जा बाजारों पर अपनी निर्भरता के अलावा अपने आर्थिक राजस्व में विविधता लाने का वादा किया है। दिलचस्प बात यह है रूस के कृषि क्षेत्र पर प्रतिबंध एक वरदान साबित हुआ है, क्योंकि रूस ने प्रतिबंधों के प्रतिशोध में पश्चिमी देशों से कृषि उत्पादों को आयात करने पर प्रतिबंध लगा दिया है।
इसने स्थानीय किसानों के लिए अवसर की एक खिड़की खोल दी है क्योंकि रूस घरेलू उत्पादकों से आत्मनिर्भरता और आयात प्रतिस्थापन की ओर ध्यान दे रहा है।
रूस का कृषि आज संभावित क्षेत्र में बदल गया है क्योंकि उसके रूस कृषि निर्यात रक्षा निर्यात के बराबर है। वर्ष 2017 में कृषि से निर्यात राजस्व $20bn से अधिक हो गया है।5आज, “रूस वर्ष 2016 में विश्व में लगभग 23.5 मिलियन टन गेहूं शिपिंग का प्रमुख निर्यातक है। रूस का लक्ष्य वर्ष 2020 तक कृषि उत्पादन को 24.8% तक बढ़ाना है”।6
स्रोत: http://www.maff.go.jp/j/kokusai/kokkyo/attach/pdf/haifu_6nd-5.pdf
कृषि क्षेत्र में भारत और रूस दोनों को एक सुर में ध्यान देने की आवश्यकता है क्योंकि एफ.ए.आर. में आर्थिक भागीदारी को मजबूत करने के लिए सहयोग का एक प्रमुख क्षेत्र है।
रूस का होमस्टेड अधिनियम
जैसा कि पहले उल्ले्ख किया गया है, रूस अपनी ओर से अंतरराष्ट्रीय खिलाडि़यों को आकर्षित करने का प्रयास कर रहा है जिसमें सुदूर पूर्व के प्रस्ताओवों की संभावनाओं का पता लगाने के लिए अपने द्विपक्षीय भागीदारों को शामिल किया गया है। ऐसा ही एक प्रयास वर्ष 2016 में ‘रूसी होमस्टेओड अधिनियम’ की शुरूआत है।इस अधिनियम के अनुसार रूस अपने नागरिकों और विदेशी नागरिकों,न्या यसंगत उद्देश्य के लिए सुदूर पूर्व में 2.5 हेक्टेडयर भूमि(2.5 एकड़) की पेशकश करता है।
हालांकि, शर्त यह है कि भूमि का स्वा मी पाँच वर्ष के लिए भूमि को किराए पर नहीं देता सकता है, बिक्री नहीं कर सकता है अथवा किसी को दे नहीं सकता है।विदेशी लोग भी इस प्रोग्राम में शामिल हो सकते हैं, लेकिन 5 वर्ष बाद तब तक भूमि के स्वा मी नहीं बन सकते हैं जब तक वे नागरिकीकरण के तहत रूसी नागरिकता प्राप्त नहीं कर लेते हैं।7
अधिनियम का कार्य-क्षेत्र(स्को प) और मूल्यां।कन सुदूर पूर्व(एम.डी.एफ.ई.) विकास मंत्रालय द्वारा प्रशासित किया जाता है जिसे रूसी सुदूर पूर्व एवं आर्कटिक (2019) और सुदूर पूर्व मानव पूंजी विकास एजेंसी के विकास के लिए मंत्रालय के रूप में नाम दिया गया है। एम.डी.एफ.ई की भूमिका सुदूर पूर्वी संघीय जिले के आर्थिक और सामाजिक-जनसांख्यिकीय विकास के लिए राज्य की नीतियों का समन्वय करना है।8
सुदूर पूर्व में भारत-रूस की व्यस्तता का मुख्य ध्यान केंद्रित क्षेत्र में कृषि कार्यबल को आकर्षित करने की संभावना हो सकती है, जो कि कृषि क्षेत्र में भारत के विशाल संभावित रिकॉर्ड और विश्व में किसानों के आप्रवास को देखते हुए हो सकता है। वर्ष 2016 में ‘रूसी होमस्टेड अधिनियम’ की शुरूआत भारत-रूस कृषि संबंध(इंगेजमेंट) को व्यापक बनाने में प्रमुख रूप से ध्यान केंद्रित कर सकती है, जो सुदूर पूर्व में भारतीय किसानों की उपस्थिति को बढ़ा सकता है।
स्रोत :http://www.maff.go.jp/j/kokusai/kokkyo/attach/pdf/haifu_6nd-5.pdf
सुदूर पूर्व में रूस के कृषि महत्वाकांक्षाओं में भारत कैसे शामिल हो सकता है?
भारत रूस के एफ.ए.आर. के साथ अपने भू-आर्थिक हितों को बढ़ाने के लिए अपने फोकस हेतु प्रतिबद्ध है। इस दिशा में,“भारत को उन किसानों के सबसे बड़े आप्रवास में से एक के रूप में होस्ट(मेजबानी) किया गया है, जो बड़े पैमाने पर पशुधन, श्रमिकों, उद्यान कृषिविद्यों और कनाडा जैसे देशों में कृषि आधारित सेवा के रूप में विशिष्ट हैं, जिसमें रूसी सुदूर पूर्व जैसे एक उजाड़ जलवायु भी है। इस तथ्य को देखते हुए होमस्टेड अधिनियम विदेशी नागरिकों को भी समान लाभ प्रदान करता है, भारत और रूस एक प्रायोगिक परियोजना(पायलट प्रोजेक्ट) शुरू कर सकते हैं जो कृषि उत्पादन और संबंधित सेवाओं के लिए सुदूर पूर्व”9 की संभावनाओं का पता लगाने के लिए भारतीय किसानों को आकर्षित करने में सहायता करता है।
स्रोत : http://www.maff.go.jp/j/kokusai/kokkyo/attach/pdf/haifu_6nd-5.pdf
भारतीय किसान सुदूर पूर्व में रूस की कुछ आयात मांगों जैसे सोयाबीन उत्पादन, फल, सब्जियां और अन्य कृषि आधारित उत्पादों के उत्पादन में एक विकल्प के रूप में कार्य कर सकते हैं। “उदाहरण के लिए सोयाबीन, भारतीय खाद्य तेल पूल में महत्वपूर्ण योगदान देता है क्योंकि यह कुल तिलहन में 43% और देश में कुल तेल उत्पादन में 25% का योगदान देता है। वर्तमान में, भारत विश्व में सोयाबीन के उत्पादन के मामले में चौथे स्थान पर है। महाराष्ट्र और मध्य प्रदेश सोया के प्रमुख उत्पादक हैं, जो देश में कुल सोयाबीन उत्पादन का 89% योगदान करते हैं।”10
यह सर्वविदित है कि आज कनाडा और ऑस्ट्रेलिया जैसे देश भारतीय किसानों के आप्रवास के लिए काफी लोकप्रिय स्थल हैं। उदाहरण के लिए हम कनाडा के मामले को लेते हैं, भारतीय किसानों ने लंबे समय से कनाडा में “हरियाले चारागाहों” की तलाश में एक कोर्स किया है।
यह कहा जाता है कि लुधियाना स्थित पंजाब कृषि विश्वविद्यालय(पी.ए.यू.) कनाडियन फार्म प्रैक्टिसेस में संभावित भारतीय किसानों को तैयार करने में सहायता करता है । अल्पावधि पाठ्यक्रम भावी भारतीय किसानों को भारतीय और कनाडाई खेती का तरीका, जलवायु परिस्थितियों, सब्जी और कट फूल की खेती, कीटों के प्रबंधन, पश्चिम में खाद्य विपणन के लिए दृष्टिकोण, आधुनिक कृषि मशीनरी में व्यावहारिक प्रशिक्षण और किसानों को सुशिक्षित करने के लिए बुनियादी कंप्यूटर कौशल के बीच समानता एवं अंतर सिखाता है।11
इसी तरह, ऐसे पहल भारत-रूस व्यापार संवादों पर ध्यान केंद्रित कर सकती है जो नियमित आधार पर होती है।
सिफारिशें : प्रायोगिक परियोजना हेतु आवश्यकता
एक तुलनीय मॉडल में, भारत और रूस पांच वर्ष की अवधि के लिए एक प्रायोगिक परियोजना(पायलट प्रोजेक्ट) कर सकते हैं जिसमें हिमाचल प्रदेश के किसानों का एक छोटा समूह शामिल हो सकता है क्योंकि कृषि हिमाचल प्रदेश राज्य की अर्थव्यवस्था का एक बड़ा हिस्सा है और राज्य के घरेलू उत्पाद में 45% से अधिक का योगदान है, क्योंकि यह राज्य के लोगों का मुख्य व्यवसाय है।
इस प्रायोगिक परियोजना में भारतीय कृषि विश्वविद्यालय जैसे जी.बी. पंत कृषि और प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय(जीबीपीयूए एंड टी)(http://gbpuat.ac.in/) सी.एस.के हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय(http://www.hillagric.ac.in/) तथा रूस की मास्को तिमिर्याज़ेव कृषि अकादमी (https://www.timacad.ru/), फेडरल स्टेट एजुकेशनल इंस्टीट्यूशन ऑफ हायर एजुकेशन ‘नोवोसिबिर्स्क स्टेट एग्रेरियन यूनिवर्सिटी’(https://nsau.edu.ru/) के बीच सहयोग शामिल किया जाए जिसमें भारतीय किसान जो सुदूर पूर्वी क्षेत्र में कृषि उत्पादों का उत्पादन करने के लिए जलवायु परिस्थितियों के आधार पर आधुनिक तकनीक और अन्य आवश्यक जानकारियों के उपयोग से अभ्यस्त होने के लिए अल्पावधि पाठ्यक्रम में भाग लेता है।
इससे भी महत्वपूर्ण बात यह है कि हिमाचल प्रदेश के किसान सुदूर पूर्व की कमोबेश इसी तरह के मौसम की परिस्थितियों के अभ्यस्त हैं अर्थात् भारतीय राज्य हिमाचल प्रदेश गर्मी और बरसात के मौसम के अलावा, सर्दियों के महीनों के दौरान भारी बर्फबारी का सामना करता है । तापमान 0 डिग्री से 15 डिग्री सेल्सियस तक घटता-बढ़ता रहता है। विशाल ग्रामीण आबादी शामिल होने के बावजूद हिमाचल क्षेत्र का एक प्रमुख पहलू साक्षरता दर है जो वर्ष 2011 की जनसंख्या के अनुसार जनगणना 82.80 प्रतिशत है, पुरुष साक्षरता 89.53 प्रतिशत है जबकि महिला साक्षरता 75.93 प्रतिशत है।12
हिमाचल प्रदेश कृषि में खेती की जाने वाली मुख्य खाद्य फसलें सुदूर पूर्वी क्षेत्र और रूस में बड़े पैमाने पर कृषि और फलों की खेती डिमांडस के समान हैं। “हिमाचल प्रदेश क्षेत्र द्वारा उत्पादित कुछ फसलों में गेहू, मक्का, चावल, जौ, बीज-आलू, अदरक, सब्जियाँ, सब्जियों के बीज, मशरूम, चिकॉरि के बीज, हॉप्स, जैतून और अंजीर शामिल हैं। फलों के बड़े पैमाने पर उत्पादन के लिए राज्य को ‘भारत का सेब राज्य’ के रूप में भी जाना जाता है। किसानों ने फलों की खेती में खुद को बहुत अधिक व्यस्त कर लिया है। हिमाचल प्रदेश सरकार द्वारा उपलब्ध कराए गए आंकड़ों के अनुसार राज्य का कृषक समुदाय के पास 9.99 लाख हेक्टेयर का क्षेत्र है, जो कुल भौगोलिक क्षेत्र के 55.673 हेक्टेयर में से 8.63 लाख क्षेत्र पर किसानों द्वारा खेती की जाती है।”13
कृषि उत्पादन पर उच्च निर्भरता के अलावा, राज्य सरकार ने खेती के आधुनिक साधनों को प्रोत्साहित किया है जिसमें जीरों बजट प्राकृतिक खेती कार्यक्रम जैसी घरेलू योजनाओं की शुरूआत के माध्यम से जैविक खेती शामिल है। इस कार्यक्रम के तहत “किसानों को बिना किसी उर्वरक और कीटनाशक अथवा किसी भी विदेशी तत्वों को शामिल किए बिना प्राकृतिक खेती के माध्यम से कृषि उत्पादों का उत्पादन करने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है।”14इससे महिला किसानों को टमाटर, फूलगोभी और हल्दी जैसी फसलों की जैविक खेती करने के लिए भी प्रोत्साहित किया गया है। इस क्षेत्र में बढ़ रहे जलवायु परिवर्तन को देखते हुए, किसानों ने आज सब्जी नर्सरी उत्पादन के लिए हाई-टेक ग्रीनहाउस स्थापित करने के विकल्प की खोज की है। “शिमला जिले के धामून और पड़ोसी गांवों में किसान ग्रीनहाउस के भीतर सटीक सिंचाई और नियंत्रित स्थितियों के साथ सीमित परिस्थितियों में फसल उगाने में कुशल हो गए हैं ।”15
इसलिए श्रम आप्रवास मंत्रालय, हिमाचल प्रदेश, कृषि विभाग और भारत सरकार के पर्यावरण, वैज्ञानिक और प्रौद्योगिकी विभाग और रूसी सुदूर पूर्व की घरेलू सरकारी एजेंसियों जैसे कि रूसी सुदूर पूर्व और आर्कटिक एवं सुदूर पूर्व मानव पूंजी विकास एजेंसी विकास मंत्रालय की भूमिका और सहयोगात्मक प्रयास महत्वपूर्ण है।
भारत और रूस के लिए होमस्टेड अधिनियम पर सफलतापूर्वक सहयोग करने के लिए घरेलू स्तर पर व्यावसायिक संस्कृति, कृषि प्रवृत्तियों और मांगों को समझाना महत्वपूर्ण है। इस संबंध में संबंधित सरकारों के साथ संघीय राज्यों की भूमिका महत्वपूर्ण हो जाती है जो क्रमश: भारत और रूस दोनों में कृषि संभावनाओं और अवसरों को निष्पादित करने में सहायता कर सकते हैं। कृषि क्षेत्र में संलग्नताओं की प्रगति के लिए निर्बाध दीर्घकालिक आर्थिक प्रतिबद्धताओं और नियमित मूल्यांकन की आवश्यकता भी है । 21वीं सदी के भू-अर्थशास्त्र के रूझानों को देखते हुए भारत और रूस दोनों को द्विपक्षीय स्तर पर वर्तमान आवश्यकताओं और हितों के अनुरूप आर्थिक तंत्र(मेकनिज्म) को संशोधित करने की आवश्यकता है। इस तरह से सुदूर पूर्वी क्षेत्र इसीलिए दोनों देशों के बीच न केवल धूमिल आर्थिक संबंधों को बढ़ाने के लिए एक महत्वपूर्ण पहलू है, बल्कि दोनों देशों के बीच कृषि टोकरी(बास्केट) को बढ़ाने और विविधता लाने के लिए भी है।
होमस्टेड अधिनियम के लाभों के साथ भारतीय सुदूर पूर्व में भारतीय किसानों को आकर्षित करने के लिए कुछ प्रोत्साहन दिए जा सकते हैं :
ए) राज्य सब्सिडी और प्राप्त निधियों से भारतीय स्टार्ट-अप खेतों तक बढ़ाया जाएगा।
बी) “नौसिखिया किसान(बिगनर्स फार्मर)” कार्यक्रम के समान भारत और रूस दोनों एक संयुक्त तंत्र(मेकेनिज्म) स्थापित कर सकते हैं जो स्टार्ट-अप फार्मों को अपने स्वयं के कृषि-व्यवसाय के विकास के लिए अनुदान प्राप्त करने की अनुमति देता है।
सी) बाधाएं जैसे कि विदेशियों को केवल राज्य सब्सिडी प्राप्त करना, यदि कंपनी रूसी अस्तित्व (इनटिटि) के नाम से पंजीकृत है, तो भारतीय किसानों और कृषि व्यवसाय शुरू करने वाली कंपनियों को ‘असाधारण(एक्सेप्शनल)’ बनाया जाएगा।
डी) रूबल का अवमूल्यन और भाषा अवरोध चिंता का एक कारण है जिसे भारतीय किसानों को इन प्रभावों से बचाने के लिए ध्यान देने की आवश्यकता है।
ई) भारत और रूस के बीच द्विपक्षीय संबंधों की विशेष प्रकृति को देखते हुए दोनों देश सुदूर पूर्व में भारतीय किसानों के प्रवाह को प्रोत्साहित करने और आकर्षित करने के लिए व्यक्तिगत सुरक्षा, संसाधन, स्वास्थ्य और अन्य सुविधाएं प्रदान करने के लिए मिलकर काम कर सकते हैं।
रूस और ई.ई.एफ के साथ भारत की आर्थिक भागीदारी से जुड़ी शानदार रणनीति भारत के सुदूर पूर्व में अपने भू-आर्थिक हितों के विस्तार पर केंद्रित है । “उल्लेखनीय रूप से, भारत को रूस शुरू की गई परियोजनाओं में भागीदारी में काफी हद तक आसानी हुई है, जो कि आत्मविश्वास और भरोसा पैदा करती हैं। इसके अतिरिक्त चीन द्वारा बेल्ट एंड रोड पहल में भारत की गैर-भागीदारी और ई.ई.एफ में इसकी भागीदारी केवल यह संकेत देती है कि भारत के पास अपने राष्ट्रीय हितों को बढ़ाने और आर्थिक व्यस्तताओं के लिए अपने स्वयं के वैकल्पिक विकल्प हैं, जो चीन की आकर्षक आर्थिक परियोजनाओं का नेतृत्व किया है।”16सुदूर पूर्वी क्षेत्र फिर भी आर्कटिक सहित भारत-प्रशांत क्षेत्र में भारत के भू-आर्थिक हितों का बढ़ावा देने के लिए महत्वपूर्ण होगा क्योंकि इसके पास अपने भू-आर्थिक हितों को और बढ़ाने के लिए व्यवसाय, व्यापार(ट्रेड) एवं नवाचार के नोडल बिंदुओं में से एक बनने का हर संभव मौका है ।
* लेखिका, भारतीय विश्व मामले परिषद, नई दिल्ली में अध्येता हैं
अस्वीकरण: व्यक्तमंतव्य लेखिका के हैं और परिषद के मंतव्यों को परिलक्षित नहीं करते।
1डेनियल वर्कमेन, “ इंडियाज टॉप ट्रेडिंग पार्टनर्स”, 12 अप्रैल, 2019.http://www.worldstopexports.com/indias-top-import-partners/05 जनवरी 2019 को एक्सेस किया गया ।
2सुदूर पूर्व के रूस के लिए होमस्टेड अधिनियम – पुतिन फ्री लैंड हैंडआउट का समर्थन करता है, रूस टुडे, https://www.rt.com/russia/224099-russia-land-free-east/
3कोनस्टेनटिन बेल्केनको,“ सुदूर पूर्व राष्ट्रव्यापी नवीकरण हुआ”,25 फरवरी,2019,
https://www.eastrussia.ru/material/dalnemu-vostoku-obnovili-obshchenatsionalnost/
4चंद्र रेखा, “भारत के भू-आर्थिक हितों(जियो इकोनॉमिक इंटरेस्ट्स) में रूस के सुदूर पूर्व की प्रासंगिकता”, विशेषज्ञ दृष्टिकोण(एक्सपर्ट विव्यू), सी.ए.पी.एस, 01 दिसंबर,2017.
http://capsindia.org/files/documents/CAPS_ExpertView_CR_04.pdf
5“रूस एक कृषि महाशक्ति के रूप में उभरा है”,द इक्नॉमिस्ट, 29 नवंबर, 2018.https://www.economist.com/business/2018/11/29/russia-has-emerged-as-an-agricultural-powerhouseएक्सेस्डऑन 04 मार्च, 2018
6“रूसी कृषि उत्पादन विस्फोट का अर्थ है कि बड़े मशीनरी के अवसर”,आई.टी.ई. फूड एंड ड्रिंक, 22फरवरी,2017.http://www.food-exhibitions.com/Market-Insights/Russia/Russian-agriculture-output-explosion-means-big-macएक्सेस्डऑन 27 जनवरी, 2019
7“पुतिन ने मुक्त भूमि का विस्तार करते हुए पूरे रूस को पीछे छोड़ दिया”, रूस टुडे, 15 जून, 2017.https://www.rt.com/business/392450-russia-free-land-putin/ एक्सेस्डऑन 04 मार्च,2018.
8 हेल्गे ब्लकिकिसरुद, “पूर्व की ओर रूस की बारी(टर्न): सुदूर पूर्व के विकास के लिए मंत्रालय और घरेलू आयाम”, नॉर्वेजियन इंस्टिट्यूट ऑफ इंटरनेशनल अफेयर्स, पॉलिसी ब्रीफ, 08 2017. पेज.3 एक्सेस्डऑन16 अप्रैल 2018
9एन.4
10“सोयाबीन पर पी.पी.पी.आई.ए.डी. परियोजना का मूल्यांकन”, आर्चर डेनियल मिडलैंड कंपनी(ए.डी.एम) द्वारा महाराष्ट्र में सोयाबीन की उत्पादकता में सुधार पर परियोजना का प्रलेखन और एकीकृत कृषि विकास कार्यक्रम के लिए सार्वजनिक निजी भागीदारी, एग्रीकल्चर डिवीजन फेडरेशन ऑफ इंडियन चैंबर ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री द्वारा समर्थित कृषि विभाग, महाराष्ट्र सरकार, 2014, पी.पी.. 8-14.
11चंदर सुता डोगरा, “बढ़ती इनपुट लागत, कम रिटर्न पंजाब के हलवाहों(टिलर्स) को पश्चिमी की ओर(वेस्टवर्ड) ले जा रहा है”, आउटलुक, 19 जून, 2006. https://www.outlookindia.com/magazine/story/a-piece-of-canada/231610
12“हिमाचल प्रदेश जनसंख्या 2011-2018की जनगणना,
https://www.census2011.co.in/census/state/himachal+pradesh.htmlएक्सेस्ड ऑन 12 मार्च,2019
13हिमाचल प्रदेश कृषि, 07 जुलाई 2011
https://business.mapsofindia.com/state-agriculture/himachal-pradesh-agriculture.htmlएक्सेस्ड ऑन12 मार्च,2019
14“एच.पी. गवर्नर ने जैविक खेती को बढ़ावा देने के लिए जीरो बजट प्राकृतिक खेती शुरू की : इसके बारे में सब कुछ”,
इंडिया टुडे, 01 फरवरी, 2018. https://www.indiatoday.in/education-today/gk-current-affairs/story/to-promote-organic-farming-hp-governor-launches-zero-budget-natural-farming-1159421-2018-02-01एक्सेस्ड ऑन12 मार्च,2019
15 गगनदीप सिंह, “यह हिमाचल समुदाय ने न केवल फसल की विफलता को झेला, बल्कि फसल का जोरदार उत्पादन किया!”https://www.thebetterindia.com/125839/agriculture-farming-innovation-cultivation-climate-control-himachal-pradesh/ एक्सेस्ड ऑन05 जून, 2019
16एन4