प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के निमंत्रण पर बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना भारत के अपने चार दिवसीय आधिकारिक दौरे पर दिनांक 7 अप्रैल, 2017 को दिल्ली हवाई अड्डा पहुंचीं। इस पूरे दौरे में भारत-बांग्लादेश के मैत्रीपूर्ण संबंध की गरमाहट और गहराई, एक दूसरे के प्रति परस्पर विश्वास और सम्मान, और जटिल समस्याओं को सुलझाने में सहयोगपूर्ण रवैया पूरी तरह दिखा। कोई भी व्यक्ति सहज हीं इस तथ्य के मद्देजनर इस यात्रा से जुड़े भारत के महत्व को समझ सकता है कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी स्वयं ही अपने आधिकारिक प्रोटोकोल को नजरअंदाज करते हुए अपने बांग्लादेशी समकक्ष को लेने हवाई अड्डा गए और उनका भव्य स्वागत किया।
अपने दौरे के दौरान प्रधानमंत्री शेख हसीना ने कहा कि वे सार्वजनिक रूप से उन भारतीय शहीदों को सम्मानित करेंगी जिन्होंने सन् 1971 में बांग्लादेश को आजाद कराने में मुक्तिवाहिनी गुरिल्लाओं के साथ-साथ लड़ाई लड़ी थी। इसके लिए दिनांक 8 अप्रैल को नई दिल्ली में मानिक शॉ केन्द्र में एक समारोह का आयोजन किया गया था। दोनों शीर्ष नेताओं – नरेन्द्र मोदी और शेख हसीना- ने इस समारोह की अध्यक्षता की और उपस्थित समूह को संबोधित किया। शहीद भारतीय सैनिकों को सरकारी तौर पर सम्मानित करने के साथ ही शेख हसीना ने आधिकारिक रूप से बांग्लादेश की स्वतंत्रता में भारत द्वारा निभायी गयी महत्वपूर्ण भूमिका को उचित मान्यता प्रदान की। भारत ने भी उसी भाव को प्रदर्शित करते हुए नई दिल्ली की एक सड़क को शेख मुजिबुर रहमान के नाम से पुनर्नामित किया।
दोनों प्रधानमंत्रियों ने 8 अप्रैल को कई मुद्दों पर चर्चा की जिनमें आतंकवाद, क्षेत्रीय सुरक्षा व स्थिरता, रक्षा सहयोग, जल में हिस्सेदारी, अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी, कनेक्टिविटी, विकास साझेदारी, ऊर्जा, व्यापार व निवेश, तथा लोगों के बीच संबंध शामिल थे। दोनों नेताओं ने द्विपक्षीय संबंध की व्यापक समीक्षा भी की और इसे रेखांकित किया कि भारत और बांग्लादेश के बीच संबंध भ्रातृभाव संबंध और सर्व साझेदारी पर आधारित है जो रणनीतिक साझेदारी से परे है। तत्पश्चात संयुक्त वक्तव्य जारी किया गया जिसमें इस सर्वोच्च स्तर पर हुई चर्चा का सार व वे क्षेत्र शामिल थे जिनमें दोनों देश सहयोग करने व संबंध को और मजबूत करने के लिए सहमत हुए थे।
हसीना-मोदी बैठक में प्रमुख मुद्दे
कुछ अपवादों को छोड़कर प्रधानमंत्री शेख हसीना के हाल के दौरे को भारत में बहुत ही सफल और बांग्लादेश में संतोषजनक बताया गया है। 8 अप्रैल को दोनों प्रधानमंत्रियों की बैठक के बाद जारी संयुक्त वक्तव्य में उपयुक्त और सकारात्मक तरीके से दोनों देशों की अधिकांश चिंताओं पर ध्यान दिया गया और भविष्य में मैत्रीपूर्ण संबंध को मजबूत करने के लिए एक रूपरेखा निर्धारित की गयी। दोनों ही देशों ने इस क्षेत्र में आतंकवाद, हिंसात्मक चरमपंथ और उग्रवाद द्वारा उत्पन्न चुनौती की गंभीरता को माना और इस क्षेत्र में स्थिर और सुरक्षित वातावरण तैयार करने के लिए साथ कार्य करने का संकल्प लिया। दोनों देश इस पर सहमत हुए कि समन्वित सीमा प्रबंधन योजना (सीबीएमपी) के प्रभावी कार्यान्वयन से भारत-बांग्लादेश सीमा से संबंधित अधिकांश अत्यावश्यक समस्याओं का समाधान हो जाएगा। पिछले कुछ समय से सीमा पर हत्या दोनों देशों के बीच एक विवादास्पद मुद्दा रहा है। इस मुद्दे के समाधान के लिए दोनों ही प्रधानमंत्रियों ने न केवल हत्या की संख्या शून्य करने की आवश्यकता को दुहराया बल्कि संबंधित प्राधिकारियों को इस उद्देश्यको पूरा करने के लिए साथ मिलकर कार्य करने का भी निर्देश दिया।
इस संयुक्त वक्तव्य में प्रमुख रूप से विकास साझेदारी, विद्युत और ऊर्जा क्षेत्र में सहयोग, व्यापार व निवेश संवर्धन तथा कनेक्टिविटी का उल्लेख था। दोनों ही देशों ने इन क्षेत्रों में अब तक हुई प्रगति पर संतोष व्यक्त किया और अपने द्विपक्षीय सहयोग को और आगे बढ़ाने पर सहमत हुए। दोनों ही शीर्ष नेताओं ने इस विचार को साझा किया कि द्विपक्षीय व्यापार के विकास की बहुत क्षमता विद्यमान है और पत्तन प्रतिबंधों सहित व्यापार संबंधी सभी बाधाओं को समाप्त करने की आवश्यकता पर जोर दिया। उन्होंने पहले से ही पहचान किए गए स्थलों पर तेजी से भारतीय विशेष आर्थिक जोन (एसईजेड) की स्थापना को सुकर बनाने के लिए संबंधित देश के संबंधित अधिकारियों को भी निर्देश दिया। उन्होंने आशा व्यक्त की कि एसईजेड से भारतीय कारोबारी बांग्लादेश में अधिकाधिक निवेश लाने के लिए प्रेरित होंगे।
जहां तक कनेक्टिविटी का संबंध है, दोनों पक्षों ने तटीय नौवहन समझौते के परिचालन पर अपना संतोष जताया और आशुगंज अंतर्देशीय कंटेनर पत्तन (आईसीपी) के निर्माण में शीघ्रता लाने की आवश्यकता पर जोर दिया। दोनों नेताओं ने संयुक्त रूप से हाल ही में पुनर्बहाल राधिकापुर-बिरोल रेल संपर्क का उद्घाटन किया, आशा है कि इस रेल संपर्क से दोनों पड़ोसी देशों के बीच कार्गो की आवाजाही सुकर होगी। वे खुलना-कोलकाता यात्री सवारी ट्रेनके ट्रायल रन के भी साक्षी बने और कोलकाता-खुलना-ढ़ाका बस सेवा को शुरू करने का अभिवादन किया।
इसके अतिरिक्त, दोनों देशों ने विद्युत, जल संसाधन, व्यापार, पारगमन और कनेक्टिविटी सहित कई क्षेत्रों में उप क्षेत्रीय सहयोग के लाभों पर जोर दिया। दोनों पक्षों ने सभी क्षेत्रों में परस्पर लाभों के लिए क्षेत्रीय सहयोग को बेहतर करने की अपनी साझा प्रतिबद्धता की पुनर्पुष्टि की। उन्होंने दक्षिण एशिया सेटेलाइट परियोजना में भागीदारी करने के पड़ोसी देशों के निर्णय पर अपनी संतुष्टि जाहिर की, इस परियोजना से इस क्षेत्र में विकास के लिए अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी का इस्तेमाल होगा। दोनों नेता बाहरी अंतरिक्ष के शांतिपूर्ण इस्तेमाल में सहयोग करने पर भी सहमत हुए।
दोनों ही पक्षों ने मजबूत संयुक्त राष्ट्र संघ के महत्व को रेखांकित किया और इस पर जोर दिया कि संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद् (यूएनएससी) जैसे शक्तिशाली निकाय में सुधार किए जाने की आवश्यकता है। उन्होंने यूएनएससी में व्यापक सुधार करने के लिए अंतर सरकारी समझौतों (आईजीएन) को समर्थन देने की अपनी प्रतिबद्धता को भी दुहराया। बांग्लादेशी प्रधान मंत्री शेख हसीना ने एक विस्तारित और संशोधित यूएनएससी में स्थायी सदस्यता के लिए भारत की उम्मीदवारी के लिए अपने समर्थन को भी दुहराया।
समझौते और समझौता ज्ञापन
जैसी आशा थी, उच्च स्तरीय बैठक के पश्चात, दोनों देशों ने तीस अधिक दस्तावेजों पर हस्ताक्षर किए। हस्ताक्षर किए गए दस्तावेजों में से ग्यारह को समझौते के रूप में सूचीबद्ध किया गया जबकि 24 को समझौता ज्ञापन की श्रेणी में रखा गया है। इसके अतिरिक्त, दो मानक परिचालन प्रक्रियाओं (एसओपी) पर भी सहमति बनी किंतु इन एसओपी को सरकारी दस्तावेज सूची में शामिल नहीं किया गया। ग्यारह समझौतों में से चार समझौते विद्युत क्षेत्र से, तीन परमाणु क्षेत्र में सहयोग की श्रेणी वाला जो केवल शांतिपूर्ण उद्देश्यों के लिए है, और प्रत्येक मोटर वाहन यात्री परिवहन के विनियमन, पेट्रोलियम शोधन सहयोग, बांग्लादेश में छत्तीस सामुदायिक क्लीनिकों निर्माण और दृश्य-श्रव्य सह निर्माण से संबंधित है।
अन्यों में शामिलए एमओयू की सूची में सीमा हाटों के परिचालन के तरीके, तटीय और प्रोटोकोल मार्गों में यात्री और क्रूज सेवाएं, बाह्य अंतरिक्ष के शांतिपूर्ण उपयोग, सूचना प्रौद्योगिक और इलेक्ट्रॉनिक, पुनर्गैसीकृत तरलीकृत प्राकृतिक गैस (आरएलएनजी), रक्षा सहयोग ढ़ांचा, राष्ट्रीय सुरक्षा और रणनीतिक अध्ययनों के क्षेत्र में सहयोग, रक्षा लाइन ऑफ क्रेडिट का विस्तार (500 बिलियन डॉलर), और रिलायंस पावर द्वारा 500 एमएमएससीएफडी एलएनजी टर्मिनल की स्थापना।
रक्षा सहयेाग संबंधी समझौता ज्ञापन (एमओयू)
यद्यपि उपर्युक्त सभी मुद्दों पर चर्चा की गयी और इसके परिणामस्वरूप पैंतीस दस्तावेजों पर हस्ताक्षर किए गए, किंतु द्विपक्षीय रक्षा सहयोग संबंधी समझौता ज्ञापन पर दोनों ही देशों द्वारा अधिकतम ध्यान दिया गया। यद्यपि, इनका पूरा ब्यौरा अभी नहीं है किंतु ऐसा माना जाता है कि रक्षा सहयोग को औपचारिक बनाते हुए किसी भी देश के साथ बांग्लादेश द्वारा हस्ताक्षरित इस प्रकार का पहला समझौता है। रक्षा श्रेणी के तहत चार समझौते हुए है। इन चार समझौतों में केवल एक समझौते में ही रक्षा सहयोग रूपरेखा के बारे में बताया गया है। अन्य महत्वपूर्ण रक्षा एमओयू विशेष रूप से बांग्लादेश को लाभ देने वाला है जिनके तहत भारत ने 500 मिलियन डॉलर रक्षा लाइन आफ क्रेडिट दी है जिसका इस्तेमाल भारत से रक्षा उपकरणों की खरीद के लिए किया जा सकता है। अन्य दो एमओयू पर दोनों देशों की प्रशिक्षण संस्थाओं द्वारा हस्ताक्षर किए गए हैं। रक्षा सेवा स्टॉफ कॉलेज, वेलिंग्टन (नीलगिरि) तमिलनाडु तथा रक्षा सेवा कमान और स्टॉफ कॉलेज, मीरपुर, ढ़ाका के बीच एमओयू राष्ट्रीय सुरक्षा और रणनीतिक अध्ययन के क्षेत्र में सहयोग बढ़ाने से संबंधित है। राष्ट्रीय रक्षा महाविद्यालय, मीरपुर तथा राष्ट्रीय रक्षा महाविद्यालय, नई दिल्ली के बीच एमओयू भी राष्ट्रीय सुरक्षा और रणनीतिक अध्ययनों के क्षेत्र में सहयोग को बढ़ावा देने के लिए है।
जब से रक्षा की संभावना से जुड़े एमओयू सार्वजनिक किए गए, संबंधित देशों में तीव्र चर्चा शुरू हो गयी। भारत में, इस क्षेत्र में बदलती भू-भौतिकी तथ्यों को देखते हुए, इसे दोनों देशों के बीच मैत्री संबंधों को और मजबूत बनाए जाने की कोशिश के रूप में देखा गया। तथापि, बांग्लादेश में ऐसा नहीं था। देश में कुछ वर्गों, विशेषकर बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी (बीएनपी), ने ऐसे किसी भी प्रस्ताव का पुरजोर विरोध किया। यह तर्क दिया गया कि इस समझौते के परिणामस्वरूप एक ओर तो ढ़ाका की नई दिल्ली पर पूर्ण निर्भरता हो जाएगी, दूसरी ओर बीजिंग के साथ इसका संबंध खतरे में पड़ जाएगा।
बीएनपी इस मुद्दे पर हसीना सरकार को निशाने पर लेने में सबसे आगे रही है और बढ़-चढ़ बोलती रही है। इस मामले की जानकारी मिलने के तत्काल बाद उसने सरकार को चेताया कि भारत के साथ किसी प्रकार का रक्षा सहयोग आत्मघाती होगा और देश की संप्रभुता के लिए खतरनाक होगा। अब इस दौरे के पूरा होने तथा दस्तावेजों पर हस्ताक्षर होने के बाद बीएनपी मुखिया खालिदा जिया ने शेख हसीना के भारत दौरे को ‘असफल’ बताया और कहा कि प्रधानमंत्री ‘’खाली हाथ’’ वापस आयीं। उन्होंने यह भी कहा कि, यदि वे सत्ता में आयीं तो उनकी सरकार भारत के साथ हुए ‘’राष्ट्र विरोधी’’ सभी समझौतों और एमओयू की समीक्षा करेंगी। कई बांग्लादेशी विश्लेषक और टिप्पणीकार भारत-बांग्लादेश संबंधों में हाल की घटनाओं को बीजिंग के साथ ढ़ाका के बढ़ते रक्षा सहयोग की प्रतिक्रिया के रूप में देखते हैं।
यद्यपि, बांग्लादेश में एक वर्ग ने इस रक्षा सहयोग रूपरेखा के विरूद्ध आवाज उठायी है, किंतु यह एमओयू दो देशों के बीच निकट द्विपक्षीय सुरक्षा सहयोग की स्वाभाविक परिणति है और दोनों ही देशों व क्षेत्र के हित में है। इस क्षेत्र में बदलते तथ्यों तथा अपने ही देश में सर्वव्याप्त आतंकी चुनौती को देखते हुए ढ़ाका स्वयं ही नई दिल्ली के साथ औपचारिक समझौता करने का इच्छुक था। बांग्लादेश सरकार ने हाल ही में भारत के गृह मंत्रालय के साथ साझा रिपोर्ट में माना था कि हरकत उल जिहाद अल इस्लाम (हूजी) और जमात उल मुजाहिद्दीन बांग्लादेश (जेएमबी) से संबंधित चरमपंथी तत्वों ने कई गुणा बढ़ा ली है तथा पश्चिम बंगाल, असम और त्रिपुरा जैसे भारतीय राज्यों में विद्यमान हैं। भारतीय राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) ने भी अक्टूबर, 2014 में वर्धमान विस्फोट में जेएमबी की सीधी भूमिका पायी । सीमा सुरक्षा बल (बीएसएफ) के गुप्तचर विंग ने भी बांग्लादेश से भारत घुसपैठ करने वाले तीन हजार से अधिक जेएमबी और हूजी के आतंकवादियों के बारे में असम पुलिस को सूचना दी थी।
उपर्युक्त घटनाक्रम से यह पता चलता है कि दोनों देशों की इस क्षेत्र में शांति और स्थायित्वके संबंध में वास्तविक चिंता है। रक्षा सहित कई क्षेत्रों में एक दूसरे के साथ सहयोग संबंधी उनका निर्णय न केवल इस संबंध में सहायक होगा बल्कि दोनों देशों के राष्ट्रीय हित में भी होगा।
तीस्ता समझौता को शामिल नहीं किया जाना
बांग्लादेश में पिछले कुछ समय से यह अवधारणा है कि भारत बांग्लादेश की कुछ वास्तविक समस्याओं को दूर करने में आगे नहीं आ रहा है। जल बंटवारा दोनों देशों के बीच महत्वपूर्णऔर विवादित मुद्दा है जिस पर तत्काल ध्यान दिए जाने की आवश्यकता है। पश्चिम बंगाल की मुख्य मंत्री ममता बनर्जी के विरोध को देखते हुए यह स्पष्ट था कि अंतिम समझौता सूची में तीस्ता जल बंटवारा समझौता को शामिल नहीं किया जाएगा।भारत में सामान्य अवधारणा यह थी कि इस मामले को 8 अप्रैल, 2017 को हसीना-मोदी की बैठक में प्रमुखता से उठाया जाएगा। तथापि, बांग्लादेश में कुछ का विश्वास था कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी इस मुद्दे को सुलझाने में अंतिम समय में कोई प्रयास कर सकते हैं।
कई दौर की बातचीत के बाद वर्ष 2010 में मूल रूप से तीस्ता जल संधि का प्रारूप तैयार किया गया था और माना गया था कि वर्ष 2011 में पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के दौरे के दौरान इस पर हस्ताक्षर किया जाएगा। तथापि, ममता बनर्जी के तीव्र विरोध के कारण इस संधि पर हस्ताक्षर नहीं किया जा सका। वर्ष 2016 में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की यात्रा के दौरान कइयों ने इस समझौते पर हस्ताक्षर होने की उम्मीद जतायी थी किंतु ऐसा नहीं हुआ। ममता बनर्जी कूचबिहार, जलपाईगुड़ी, दक्षिण और उत्तरी दिनाजपुर और दार्जलिंग के किसानों के हितों के कारण इस बंटवारे के फार्मूले से खुश नहीं थीं। इन जिलों में अल्पसंख्यकों की संख्या अच्छी खासी है और तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) के लिए चुनावी रूप से महत्वपूर्ण हैं।
जैसी की आशा थी, तीस्ता जल संधि पर स्पष्ट कारणों से हस्ताक्षर नहीं हो पाया। शेख हसीना की ममता बनर्जी के साथ हुई बैठक से यह बर्फ नहीं पिघला। बल्कि ममता बनर्जी ने साफ तौर पर इसका एक विकल्प सुझाते हुए प्रत्येक को आश्चर्य चकित किया। उन्होंने कहा कि तीस्ता का जल बंटवारे के लिए नहीं है। उन्होंने प्रस्ताव दिया था कि भारत सरकार को बांग्लादेश के साथ जल बंटवारे के लिए अन्य नदी प्रणाली की खोज करनी चाहिए।
शेख हसीना ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के साथ अपनी बैठक के दौरान इस मुद्दे को उठाया और उनसे अनुरोध किया कि जनवरी, 2011 में दो देशों द्वारा हुई सहमति के अनुसार तीस्ता जल के बंटवारे के संबंध में अंतरिम समझौता करें। इस पर प्रधानमंत्री मोदी ने यह कहते हुए इस पर प्रतिक्रिया दी कि उसकी सरकार इस समझौते के शीघ्र समाधान के लिए देश में सभी पणधारकों के साथ कार्य कर रही है। दोनों प्रधानमंत्री ने संबंधित अधिकारियों को निर्देश दिया कि वे फेनी, मनु, मुहुरी, खोवाई, गुमती, धारला और दुध कुमार सहित सात अन्य नदियों के जल के बंटवारे पर चर्चाओं को अंतिम रूप दें। उन्होंने बांग्लादेश में गंगा बैराज का संयुक्त रूप से निर्माण करने हेतु उठाए गए सकारात्मक कदम की भी प्रशंसा की।
यद्यपि, लंबे समय से प्रतीक्षित तीस्ता जल बंटवारा संबंधी मुद्दा अनिर्णित ही रहा और यह बांग्लादेश में निराशा का कारण था। प्रधानमंत्री शेख हसीना का दौरा कई कारणों से महत्वपूर्ण था। इस दौरे से इस संबंध को एक नयी उंचाई मिली। इस दौरे ने एक ओर तो भारत और बांग्लादेश के बीच मैत्री संबंध मजबूती प्रदान की और दूसरी ओर सहयोग के नए कार्य क्षेत्रों को खोला है।
*डॉ. आशिष शुक्ला, भारतीय विश्व मामले परिषद, नई दिल्ली में अध्येता हैं
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अस्वीकरण: व्यक्त मंतव्य लेखक के हैं और परिषद के मंतव्यों को परिलक्षित नहीं करते।
पाद-टिप्पणियां
1 http://www.thedailystar.net/frontpage/pm-returned-empty-handed-1390516
2 http://www.theindependentbd.com/post/86303
3 http://www.dhakatribune.com/bangladesh/crime/2017/03/18/jmb-huji-militants-india/