राष्ट्रपति रेसेप तैयिप एर्दोगन ने, 2008 में अपनी पहली यात्रा के बाद दूसरी बार 1 मई 2017 को भारत की यात्रा की। भारतीय नेताओं के साथ अपने पिछले संवादों में, रेसेप तैयिप एर्दोगन ने 2003 में प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी से उनके तुर्की दौरे के समय और 2008 में प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह से, प्रधानमंत्री के रूप में रेसेप तैयिप एर्दोगन की भारत की अपनी पहली यात्रा के समय मुलाकात की। एर्दोगन को 16 जुलाई 2016 को प्रधानमंत्री मोदी ने एकजुटता और समर्थन की कॉल की गई, जब तुर्की में भयावह तख्तापलट का असफल प्रयास किया गया था।
दोनों नेता समझते हैं कि दोनों देशों ने अब तक द्विपक्षीय व्यापार और राजनीतिक संबंधों की क्षमता हासिल नहीं की है। 1 मई 2017 को, उन्होंने अपना व्यापार बढ़ाकर 20201 तक 10 बिलियन अमेरिकी डॉलर तक करने पर सहमति जताई, जो पिछली सरकारों द्वारा नियत 15 बिलियन डॉलर की तुलना में कम लक्ष्य था। तुर्की सक्रिय रूप से भारत के साथ व्यापार घाटे को पाटने और अब व्यापक आर्थिक भागीदारी समझौते के हिस्से के रूप में मुक्त व्यापार समझौता, यथाशीघ्र पूरा करने की राह देख रहा है। राष्ट्रपति एर्दोगन ने तुर्की-भारत बिजनेस फोरम में अपने भाषण में व्यापार संबंधों पर ध्यान केंद्रित किया।
विदेश मंत्रालय, भारत सरकार द्वारा "भारत-तुर्की-एक स्थिर और मैत्रीपूर्ण साझेदारी" शीर्षक से जारी "भारत-तुर्की संयुक्त वक्तव्य" दोनों पक्षों की व्यावहारिकता और उनके संबंधों में सभी बाधाओं का प्रतिरोध करने की इच्छा को दर्शाता है।
भारत और तुर्की इसकी सराहना करते हैं कि उनकी अर्थव्यवस्था विचलन के बजाय अधिक अभिसरण करने के लिए पर्याप्त मजबूत है। वे महसूस करते हैं कि आर्थिक ताकत उनके आपसी हितों को पुन:परिभाषित करने और एक नया आर्थिक आदेश खोजने में योगदान करने का अवसर है। तुर्की-भारत व्यापार मंच में भाग लेने के लिए राष्ट्रपति एर्दोगन के साथ 160 सदस्यों का एक बड़ा व्यापार प्रतिनिधिमंडल भारत के बड़े और संभावित बाजार में तुर्की के व्यापारिक समुदाय की उत्सुकता का प्रतीक है।2 प्रतिनिधिमंडल में तुर्की के शीर्ष व्यापारिक समूह और उनके सीईओ जैसे डोगस कंस्ट्रक्शन कंपनी, लिमेक होल्डिंग, कोक होल्डिंग, बीटा गिदा, एजेलराकासिलर, बिरलिगी, डेमीरइनसाट, टर्किश इमलाक कोंनट, और सभी प्रमुख व्यापारिक संगठन जैसे मुसियाड, टीआईएम, टीओबीबी और डीआईईके ने व्यापार मंच में भाग लिया। प्रधानमंत्री मोदी की टिप्पणी अत्यंत उदार थी जब उन्होंने घोषणा की “भारत की ओर से, मैं बांहें फैलाकर आपका स्वागत करता हूं। मैं विश्वास के साथ कह सकता हूं कि भारत इससे पहले अधिक आशाजनक गंतव्य नहीं था। इसे और बेहतर बनाने के लिए, मैं आपको अपनी व्यक्तिगत देखभाल और सहयोग का आश्वासन देता हूं।3
प्रधानमंत्री मोदी ने तुर्की की कंपनियों को भारत के आवास और रेलवे में निवेश करने का प्रस्ताव दिया, क्योंकि भारत 2022 तक 50 मिलियन घर बनाने और 50 शहरों में मेट्रो रेल परियोजनाएं और उच्च गति वाली ट्रेनें शुरू करने की योजना बना रहा है। आम क्षेत्रों के रूप में हाइड्रोकार्बन, सौर और पवन ऊर्जा क्षेत्रों की भी पहचान की गई जिनमें भारत और तुर्की सहयोग कर सकते हैं। तुर्की मीडिया की रिपोर्टों में बताया है कि तुर्की के एक समाचारपत्र डेली सबहके अनुसार, कई तुर्की कंपनियां अब विशेष रूप से निर्माण और ऑटोमोबाइल क्षेत्रों में भारत में निवेश के अवसरों की खोज करने की प्रक्रिया में हैं। टाटा का उद्यम, वोल्टास लिमिटेड, और तुर्की की आर्सेलिक एएस की एक सहायक कंपनी आर्डेक बीवी, ने भारत में 100 मिलियन डॉलर की इक्विटी पूंजी से एक संयुक्त उद्यम कंपनी (JVC) स्थापित करने की घोषणा की है। येनिसफक समाचार पत्र के अनुसार, तुर्की के पर्यटक होटल और पर्यटन मैनेजमेंट एसोसिएशन (DOKTOB) और मुगला चैंबर ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री (MUTSO) अपने भारतीय साझेदारों के साथ पर्यटन क्षेत्र में सहयोग बढ़ाने के लिए बातचीत कर रहे हैं।5
संयुक्त बयान में दर्शाया गया है कि दोनों पक्षों ने व्यापार, सांस्कृतिक सहयोग, आतंकवाद और संयुक्त राष्ट्र सुधारों सहित मुद्दों पर व्यापक चर्चा की। दोनों नेताओं ने यात्रा के दौरान पांच द्विपक्षीय समझौतों और समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए:
संयुक्त बयान के अनुसार भारत के परमाणु आपूर्तिकर्ता समूह की सदस्यता के मुद्दे पर भी चर्चा हुई, जिस पर प्रधानमंत्री मोदी ने एमटीसीआर की भारत की सदस्यता और परमाणु आपूर्तिकर्ता समूह और वासेनार व्यवस्था में शामिल होने के आवेदनों पर तुर्की के समर्थन के लिए राष्ट्रपति एर्दोगन को धन्यवाद दिया।6 तुर्की का कहना है कि वह सर्वसम्मति [भारत की एनएसजी सदस्यता पर] में शामिल होने के लिए तैयार है यदि ऐसा होता है। 2008 में प्रधानमंत्री एर्दोगन के साथ संयुक्त संवाददाता सम्मेलन में, प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह ने एनएसजी में भारत की सदस्यता के आवेदन पर तुर्की के दृष्टिकोण की सराहना की थी।8
मीडिया की प्रतिक्रियाएं
चूंकि तुर्की आज की पश्चिम एशियाई क्षेत्रीय राजनीति में एक महत्वपूर्ण खिलाड़ी है, जिसमें भारत एक संतुलन कार्रवाई को आगे बढ़ा रहा है, तुर्की और भारतीय दोनों मीडिया ने यात्रा में काफी रुचि दिखाई।
अंकारा में भारतीय राजदूत राहुल कुलश्रेष्ठ ने तुर्की के एक समाचारपत्र डेली सबह में यात्रा और भारत और तुर्की के लिए अपने संबंधों को आगे बढ़ाने के अवसरों के महत्व पर प्रकाश डाला।9 राष्ट्रपति के सलाहकार इल्नूर सेविक सहित कई तुर्की विश्लेषकों ने डेली सबह में “तुर्की और भारत खोई मैत्री की फिर से खोज के लिए तैयार” शीर्षक अपना लेख लिखाजिसमें दोनों देशों के बीच ऐतिहासिक संबंधों का हवाला दिया। हालांकि, नई दिल्ली में डेली सबह द्वारा आयोजित एक कार्यक्रम में उनके बयानों को अधिक राजनयिक और मीडिया आकर्षण मिला जब उन्होंने मीडियाकर्मियों को बताया कि भारत और तुर्की रक्षा संबंधों को आगे बढ़ाने के लिए तैयार हैं और तुर्की भारत को सशस्त्र मानवरहित हवाई वाहन (UAVs) की पेशकश कर सकता है।10डेली सबह ने, उदाहरण के लिए, स्थानीय मुद्रा में निर्यात और आयात का संचालन करके मुद्रा दबाव को कम करने के लिए राष्ट्रपति एर्दोगन द्वारा दिए गए सुझाव का उल्लेख किया। समाचारपत्र में एर्दोगन द्वारा भारतीय प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व में उच्च प्रौद्योगिकी, कंप्यूटर सॉफ्टवेयर और अंतरिक्ष अन्वेषण के तहत प्रगति कर रहे भारत की प्रशंसा पर ध्यान केंद्रित किया गया। राष्ट्रपति एर्दोगन ने इन क्षेत्रों में भारत के साथ सहयोग विकसित करने की इच्छा व्यक्त की। 1 मई को हुर्रियत डेली न्यूज में एक अन्य टिप्पणीकार ने कहा, "यह स्पष्ट प्रतीत होता है कि संबंधों में [भारत के साथ] सुधार करते समय, तुर्की भारत के कट्टर दुश्मन,पाकिस्तान के साथ नाराजगी पैदा करने से बचने पर अत्यधिक ध्यान दे रहा है। तुर्की के एक अधिकारी ने अपने भारतीय समकक्षों से कहा, "हम दोस्त हैं और हम पाकिस्तान के दोस्त बने रहेंगे।" अधिकारी ने फिलिस्तीन और इजरायल के साथ भारत के संबंधों का उदाहरण देते हुए यह भी कहा कि, इन संबंधों से भारत के साथ संबंध फीके नहीं पड़ेंगे।12
जबकि राष्ट्रपति एर्दोगन का एक भारतीय टीवी चैनल से साक्षात्कार उनके आगमन की पूर्व संध्या पर प्रसारित किया जा रहा था, जम्मू-कश्मीर और भारत-पाकिस्तान संबंधों पर उनकी विवादास्पद टिप्पणियों ने मीडिया का काफी ध्यान आकर्षित किया। कूटनीतिक मामलों के टीकाकार डॉ. सी. राजामोहन ने इंडियन एक्सप्रेस में लिखा, “भारत के अधिक कठिन द्विपक्षीय संबंधों - पाकिस्तान और चीन के अलावा अन्य से - की किसी सूची में, तुर्की प्रमुखता से अंकित होगा। अगर तुर्की को पक्ष में करना काफी समय से भारत के लिए एक बड़ी कूटनीतिक चुनौती रही है, तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इसका समाधान करने के लिए उत्सुक हैं। तुर्की के शासन का पाकिस्तान का अविवेकी आलिंगन अपरिवर्तित रहा है, भले ही अंकारा पर - धर्मनिरपेक्ष सेना या मौजूदा इस्लामी नेतृत्व किसी का वर्चस्व रहा हो।”13इंडियन एक्सप्रेस ने 2 मई के अपने संपादकीय में भारत सरकार से सिफारिश की कि ‘’अपने अतिथि को याद दिलाएं कि कश्मीर मुद्दे का हल करने के लिए किसी बाहरी मदद की जरूरत नहीं है।"14अन्य प्रमुख अखबार द हिंदू ने 2 मई को अपने संपादकीय में लिखा" संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की सदस्यता के लिए भारत की कोशिश का समर्थन करने पर एर्दोगन की टिप्पणी शामिल होने वाले अन्य देशों पर भारी रही, और परमाणु आपूर्तिकर्ता समूह के लिए पाकिस्तान के समर्थन की गुहार के साथ। लेकिन यह निश्चित रूप से एक शुरुआत है जो दो मुद्दों पर गहरा जुड़ाव पैदा कर सकती है।”15पूर्व राजदूत राकेश सूद ने यात्रा के परिणामों के बारे में मिश्रित भावना व्यक्त करते हुए लिखा:
“दोनों पक्षों ने अधिकआर्थिक सहयोग की क्षमता पर जोर देने की मांग की। हालांकि, मौजूदा समझौतों द्वारा स्पष्ट सीमाएं थोपी गई हैं। तुर्की का 350 बिलियन डॉलर का विदेशी व्यापार यूरोप के साथ है। हमारा द्विपक्षीय व्यापार जो 6 बिलियन डॉलर का है, और 2020 तक बढ़कर 10 बिलियन डॉलर तक होने की उम्मीद है, शायद ही प्रमुख चालक बन सकता है। भारत-तुर्की संबंधों में नया अध्याय खोलने में, स्पष्ट रूप से बेहतर समय की प्रतीक्षा करनी होगी।”16
दूसरी ओर, पूर्व राजदूतों एमके भद्रकुमार और मणिशंकर अय्यर ने 26-29 अप्रैल को भारत में साइप्रस के राष्ट्रपति की यात्रा और 30 अप्रैल को उपराष्ट्रपति हामिद अंसारी की आर्मेनिया यात्रा के समय की आलोचना की। हालांकि, राष्ट्रपति एर्दोगन के सलाहकार इल्नूरसेविक के अनुसार, तुर्की का पक्ष इस प्रकार था:
“भारत के साथ तुर्की के संबंधों को चिरकालिक मित्र पाकिस्तान के साथ इसके संबंधों से अलग तौर पर लिया जाना चाहिए। भारत के आर्मेनिया और यूनानी साइप्रोट्स के साथ अच्छे संबंध हैं, लेकिन यह भी भारत के साथ घनिष्ठ संबंध बनाने में हमारे लिए कोई बाधा नहीं है।"17
जैसा कि दोनों पक्षों के रणनीतिक समुदाय ने भारत-तुर्की संबंधों का मूल्यांकन किया है, दोनों पक्षों ने अधिक-अपेक्षा में शामिल हुए बिना व्यावहारिकता का स्तर बनाए रखा है। तुर्की के लिए, भारत एक महत्वपूर्ण बाजार; विज्ञान और प्रौद्योगिकी, आईटी और चिकित्सा के क्षेत्र में एक उभरती हुई शक्ति बना हुआ है, तुर्की इसे जोड़े रखना आवश्यक समझता है। हालांकि, रणनीतिक सहयोग, सुरक्षा और रक्षा पर, दोनों पक्ष अपनी सीमाओं से अवगत हैं। उदाहरण के लिए, रक्षा सहयोग पर प्रगति, जिसका 2013 में तुर्की की अपनी यात्रा के दौरान राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी द्वारा फिर से उल्लेख किया गया, में अधिक प्रगति नहीं देखी गई है। तब से विचाराधीन द्विपक्षीय रक्षा सहयोग समझौते पर अब तक हस्ताक्षर नहीं किए गए हैं।
मतभेद, लेकिन असहमति नहीं
भारत और तुर्की के अलग-अलग राजनीतिक और सुरक्षा संदर्भों को दोनों देशों द्वारा व्यावहारिक सीमाओं में अपने द्विपक्षीय संबंधों को परिभाषित किया जाना आवश्यकहै। कश्मीर और पाकिस्तान पर तुर्की का दृष्टिकोण भारत और तुर्की को कूटनीतिक स्तर पर अपनी साझेदारी बढ़ाने के बारे में सोचने में संकोची बनाता है। उदाहरण के लिए कश्मीर पर, भारत तुर्की पक्ष और इस्लामिक सहयोग संगठन को अपना दृष्टिकोण बता रहा था। पहले, तुर्की ने भारत और पाकिस्तान दोनों को इस मुद्दे को द्विपक्षीय रूप से हल करने का सुझाव देने के अपने दृष्टिकोण को सीमित रखा है। भारत यात्रा से कुछ दिन पहले, एक भारतीय टीवी चैनल वॉयन ने एर्दोगन से पूछा, “जम्मू और कश्मीर के मुद्दे पर आपकी राय क्या है? तुर्की ने क्यों पाकिस्तान का समर्थन करना जारी रखा है?”18उनकी प्रतिक्रिया में तुर्की की पारंपरिक नीति की बजाय, मुद्दे को सुलझाने के लिए उनके अपने देश की मध्यस्थता सहित बहुपक्षीय प्रयास किए जाने का प्रस्ताव था। हालांकि अधिक सक्रियता से नहीं, किंतु इसी नीति का तुर्की पिछले कुछ वर्षों से पालन कर रहा है। भारत सरकार ने एक बयान में स्पष्टत: लेकिन विनम्रता से बहुपक्षीय तंत्र के तुर्की के प्रस्ताव को खारिज कर दिया। इसके अलावा, पाकिस्तान के साथ तुर्की के संबंधों ने तर्कसंगत रूप से विविध संबंधों को विकसित करने की अपेक्षा सुरक्षा और रक्षा सहयोग में अधिक प्रगति की है। तुर्की चीनी बेल्ट रोड पहल परियोजना से भी जुड़ गया है, जो तुर्की के विचार में इसे कई व्यापार राजमार्गों और ट्रेनों और समुद्री बिंदुओं के साथ जोड़ते हुए यूरोपीय और एशियाई बाजारों के बीच एक वास्तविक सेतु बना देगी। भारत ने संबंधित देशों को स्पष्ट रूप से अपनी आपत्तियों से अवगत कराया है कि उसका चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर में भारत की क्षेत्रीय संप्रभुता का उल्लंघन करता है।
भारत की एनएसजी कोशिश पर तुर्की का दृष्टिकोण भारत और चीन के साथ अपने व्यापारिक हितों और पाकिस्तान के साथ सुरक्षा हितों के बीच संतुलन बनाने के लिए संघर्ष कर रहा है। भारत-पाकिस्तान संबंधों को बेहतर बनाने में तुर्की की सफलता दोनों देशों के बीच अधिक सामान्य हितों को सुरक्षित करने की क्षमता पर निर्भर करेगी। दोनों देशों ने व्यापार से परे अपने संबंधों में विविधता लाने और विस्तार करने में सीमित प्रगति की है। अगर तुर्की के अपने पश्चिमी सहयोगियों के साथ अच्छे संबंध होते, तो तुर्की को एनएसजी सदस्यता के मुद्दे सहित भारत के साथ अधिक साझा आधार मिल जाता। तुर्की और रूस ने रूसी एस-400 मिसाइल प्रणाली सौदे के "तकनीकी मुद्दों" को अंतिम रूप दिया है और तुर्की चीन के ओबोर में शामिल हो गया है, तुर्की के फैसले पश्चिमी सुरक्षा वास्तुकला के बाहर अधिक हैं।
भारत की संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की सदस्यता का मुद्दा भी भारत और तुर्की को विभाजित करता है। जबकि सिद्धांत रूप में तुर्की संयुक्त राष्ट्र सुधारों से सहमत है लेकिन यह ऐसे-कथित कॉफी क्लब में शामिल हो गया है जो स्थायी सदस्यों की वृद्धि का विरोध करता है; इसके बजाय, इसने चक्रीय रूप से अलग-अलग क्षेत्रों से गैर-स्थायी सदस्यों को चुनने का प्रस्ताव दिया। जामिया मिलिया इस्लामिया में अपने भाषण में, तुर्की के राष्ट्रपति ने दुनिया के सबसे शक्तिशाली निकाय में स्थायी सीट के लिए एक बिलियन मुसलमानों की उम्मीदें जगाईं। इस उम्मीद को भारत का समर्थन मांगते हुए उन्होंने, शायद यूएनएससी में एक मुस्लिम उम्मीदवार को भारत के समर्थन के बदले, भारत की उम्मीदवारी को समर्थनकी पेशकश की।
इन मतभेदों के बावजूद, हालिया वर्षों में पश्चिमी देशों और यूरोप के साथ तुर्की के संबंधों के प्रतिमान बदल रहे हैं और अविश्वास उनके सुरक्षा सहयोग को फीका कर देता है। तुर्की नए सुरक्षा प्रतिमान खोजने के लिए रूस, चीन और पाकिस्तान के साथ सक्रिय रूप से संलग्न है। जी20 और एससीओ के हिस्से के रूप में, दोनों पक्षों के पास अपने हितों में अभिसरण खोजने के अधिक अवसर हैं। तुर्की एससीओ में एक संवाद भागीदार है और एससीओ में तुर्की की पूर्ण सदस्यता पर लगातार गंभीर चर्चा हो रही है। नई दिल्ली में एक साक्षात्कार में तुर्की के राष्ट्रपति के सलाहकार इल्नुरसेविक ने कहा:
“भारत के साथ तुर्की के संबंधों को चिरकालिक मित्र पाकिस्तान के साथ इसके संबंधों से अलग तौर पर लिया जाना चाहिए। भारत के आर्मेनिया और यूनानी साइप्रोट्स के साथ अच्छे संबंध हैं, लेकिन यह भी भारत के साथ घनिष्ठ संबंध बनाने में हमारे लिए कोई बाधा नहीं है।"19
इसे पर्याप्त रूप से नहीं माना जा रहा कि भारत-तुर्की संबंध पहले ही इन सीमाओं को स्वीकार करते हुए आगे बढ़ चुके हैं। उदाहरण के लिए, कई अन्य अरब और मुस्लिम देशों, सऊदी अरब, ईरान और संयुक्त अरब अमीरात ने भारत के साथ अच्छे संबंध विकसित किए हैं। यह कहना सुरक्षित है कि तुर्की वर्तमान में एक संक्रमण चरण में है जिसमें वह अपने पश्चिमी सहयोगियों पर निर्भरता कम करने के लिए मजबूत सहयोगियों और व्यापारिक साझेदारों की तलाश कर रहा है। लेकिन यह जरूरी नहीं कि तुर्की अपने सहयोगियों से पूरी तरह से अलग होगा। यूरोपीय संघ की सदस्यता की इसकी उम्मीदें तुर्की की व्यापार, सुरक्षा और कूटनीतिक प्रोफ़ाइल को बढ़ाने के लिए इसकी यूरोपीय नीति को परिभाषित करती रहेंगी।
ईरान के साथ खुली सीमाओं के जरिए तुर्की के बेहतर व्यापारिक संबंध होने के बावजूद, ऐतिहासिक सांप्रदायिक प्रतिद्वंद्विता अब भी एक-दूसरे की लोकप्रिय कल्पना पर हावी है। मुगल भारत के किसी भी राज्य ने कभी भी तुर्क खिलाफत को आधिकारिक रूप से स्वीकार नहीं किया था और उनमें से ज्यादातर सफाविद-शिया ईरान के करीब बने रहे। तुर्की के लिए पाकिस्तान का महत्व उनके सुन्नी-हनाफी-सूफी इस्लाम में सामान्य मूल के कारण भी है।
धर्मनिरपेक्ष तुर्की ने, हालांकि 1979 में आर्थिक सहयोग संगठन के बाद क्षेत्रीय सहयोग के विकास के लिए एक रचनात्मक दृष्टिकोण की तलाश की, जिससे तुर्की, पाकिस्तान और ईरान के बीच एक सहयोग मॉडल बना। तब ईसीओ ट्रेन परियोजना को भारत, म्यांमार और बांग्लादेश तक विस्तारित किया गया ताकि विशाल मानव आबादी को जोड़ने के लिए एक लंबी भौगोलिक कनेक्टिविटी बनाई जा सके। देर से ही, भारत सऊदी अरब और संयुक्त अरब अमीरात जो पहले पाकिस्तान के घनिष्ठ सहयोगी माने जाते थे, के साथ अपने संबंधों को फिर से परिभाषित करने में सक्षम रहा है। व्यापार से परे द्विपक्षीय संबंधों के विस्तार और क्षेत्रीय सुरक्षा, आतंकवाद-रोधी, राजनीतिक और सांस्कृतिक संबंधों में सहयोग पर संवाद बढ़ाने से यह संभव हुआ। भारत और तुर्की को इस स्तर तक अपने संबंधों का विस्तार करना और विविधता लाना बाकी है; हालांकि उन्होंने उपयोगी व्यापार संबंधों को बनाए रखा है।
निष्कर्ष
तुर्की पश्चिम एशियाई क्षेत्र में एक प्रभावशाली देश बना हुआ है, जहां कई संघर्षों ने प्रमुख हितधारकों की सुरक्षा और कूटनीतिक गणना को काफी जटिल बना दिया है। इसका यूरोपीय भूगोल तुर्की को एशियाई और यूरोपीय दोनों बाजारों को जोड़ने का अवसर प्रदान करता है। यूरोपीय बाजार भारतीय कंपनियों के लिए महत्वपूर्ण आकर्षण हैं और तुर्की यूरोपीय, मध्य एशियाई, काकेशस और मध्य पूर्वी बाजारों से जुड़ने के लिए एक महत्वपूर्ण जंक्शन बना हुआ है।
इस यात्रा से, इसके सीमित राजनीतिक परिणामों के बावजूद, दोनों देशों के नेताओं को एक व्यावहारिक एजेंडा को आगे बढ़ाते हुए देखा जा सकता है। अपनी भारत यात्रा पर राष्ट्रपति एर्दोगन के साथ आए तुर्की विशेषज्ञों ने यह देखने के बाद आशा प्रकट की कि इस यात्रा में वह प्रत्येक बिंदु शामिल किया गया जिस पर वे अपने द्विपक्षीय संबंधों के बारे में बात करना चाहते थे और एक दूसरे की संवेदनाओं को व्यक्त किया गया। इस यात्रा ने वास्तव में भविष्य के सहयोग के लिए विश्वास का निर्माण किया है। भारत और तुर्की के बीच व्यावहारिक जुड़ाव इस बात के बावजूद जारी रहेगा कि दोनों देशों के बीच आगे चलकर कैसे अभिसरण होता है। जैसा कि संयुक्त वक्तव्य में संदर्भ दिया गया है, यात्रा ने "दृष्टिकोणों के बढ़ते अभिसरण को रेखांकित किया है, जो आपसी हित के अंतर्राष्ट्रीय मुद्दों जैसे नई आर्थिक व्यवस्था, स्थिरता और संबंधित क्षेत्रों की सुरक्षा का समाधान करने में योगदान दे सकता है।"20
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*डॉ. ओमेर अनस, भारतीय विश्व मामले परिषद, नई दिल्ली में अध्येता हैं
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अस्वीकरण: व्यक्त मंतव्य लेखक के हैं और परिषद के मंतव्यों को परिलक्षित नहीं करते।