26 अगस्त, 2018 को डी.म्वांगवा ने जिम्बाव्वे के नये राष्ट्रपति के रूप में पदभार ग्रहण किया। यह क्षण 30 जुलाई, 2018 को सम्पन्न हुए ऐतिहासिक सुसंगति के परिणामों के गम्भीर संघर्ष तथा विवादित चुनौतियों के पश्चात आया। इस घटना से अगले पाँच वर्षों के लिए म्वांगवा राष्ट्रपति के रूप में सुनिश्चित हो गये और मुगाबे का परवर्ती समय संवैधानिक स्वरूप ग्रहण करने लगा। चूँकि चुनाव सम्पन्न हो चुके हैं अत: उनके घरेलू तथा अन्तर्राष्ट्रीय निहितार्थों के सन्दर्भ में यह आलेख प्रक्रिया तथा परिणाम का परीक्षण करने का संक्षिप्त प्रयास है।
इन चुनावों का महत्त्व
ये चुनाव इस अर्थ में ऐतिहासिक थे कि ये 93 वर्ष की आयु के राष्ट्रपति रॉबर्ट जी मुगाबे के बिना लड़ा गया जिन्हें सेना ने नवम्बर, 2017 में त्यागपत्र देने के लिए बाध्य कर दिया। मुगाबे ने 1980 से 37 वर्षों तक जिम्बाव्वे पर शासन किया, पहले प्रधानमन्त्री के रूप में तथा बाद में राष्ट्रपति के रूप में। उपनिवेश से मुक्त अफ्रीका तथा एशिया में उपनिवेश विरोधी सम्मानित संघर्षकर्ता ने धीरे-धीरे 'तानाशाह' के रूप में कलंकित हुए और सुदृढ़ अर्थव्यवस्था के साथ विकास करते हुए देश को अभाव तथा गरीबी की ओर धकेल दिया। मुगाबे के शासन काल में जिम्बाव्वे की रुग्ण अर्थव्यवस्था इससे स्पष्ट हो जाती है कि 1990 में देश की जीडीपी 8.784 बिलियन डॉलर थी जो 2008 में घटकर 4.418 बिलियन डॉलर रह गयी जिसे इसने काफी समय पहले ही 1979 में (5.177 बिलियन डॉलर) प्राप्त कर लिया था। 1979 और 2008 के बीच के काल में जीडीपी में वृद्धि और ह्रास के अनेक चरण देखने को मिले जो प्राथमिक रूप से राजनीतिक हंगामे तथा सरकार की आर्थिक नीति-निर्माण एवं प्रबन्धन में आत्मविश्वास की कमी के कारण था। जिम्बाव्वे में मुद्रा संकट जिम्बाव्वे में सकल आर्थिक कुप्रबन्धन का मात्र एक उदाहरण है जिसने 2009 तक अनिरन्तर होने से पूर्व जिम्बाव्वे की मुद्रा को अभूतपूर्व स्थिति (बेलगाम मुद्रास्फीति) की अवस्था तक पहुँचा दिया।
अति मुद्रा स्फीति विकट घरेलू राजनीतिक स्थिति तथा 1990 में मुगाबे सरकार द्वारा क्रियान्वित आक्रामक श्वेत विरोधी भूमि के पुनर्वितरण के सन्दर्भ में घटित हुआ। संयुक्त राज्य अमेरिका (यूएस) तथा यूरोपीय संघ (ईयू) द्वारा लगाये गये प्रतिबन्धों ने जिम्बाव्वे को अन्तर्राष्ट्रीय समुदाय से अलग-थलग कर दिया जिससे घोर आर्थिक तथा मुद्रा संकट उत्पन्न हो गया। विदेशी विकासपरक धन तथा निवेश बन्द हो गये। राजनीतिक मोर्चे पर मुगाबे का शासन मुक्त तथा निष्पक्ष चुनावी प्रक्रिया के कारण प्रश्नों में घिरा रहा।
यद्यपि तकनीकी तौर पर जिम्बाव्वे में बहुदलीय लोकतन्त्र है किन्तु इस पर 1980 से इकलौते दल जिम्बाव्वे अफ्रीकन नेशनल यूनियन-पैट्रियाटिक फ्रंट (जेडएएनयू-पीएफ) का शासन रहा है।
मुगाबे के शासन चोरतन्त्र का विकृत रूप ले चुका था जिसने उपनिवेश विरोधी/'पश्चिम विरोधी' आडम्बर का उपयोग करते हुए अपने कार्यों को न्यायसंगत बताया। उन्हें तथा उनके परिवार पर अवैध साधनों तथा पर्याप्त चतुरता से धन एकत्र करने और शक्ति का एकीकरण करने का आरोप लगा। वृद्ध होने तथा खराब स्वास्थ्य के बावजूद मुगाबे सत्ता से चिपके रहे और साथ ही अपनी पत्नी ग्रेस को राष्ट्रपति पद के भावी उम्मीदवार और अपने दल जेडएएनयू-पीएफ की नेता के रूप में प्रस्तुत करने का भी प्रयास किया।
मुगाबे के शासन तथा नीतियों के सम्बन्ध में असन्तोष लगातार बढ़ रहा था। बाहरी विश्व के सम्मुख उजागर नगरीय जिम्बाव्वे की शासन व्यवस्था उनके तथा उनके शासन के अधिक प्रतिकूल थी। मूवमेंट फॉर डेमोक्रेटिक चेंज (एमडीसी) गुट ने वास्तविक लोकतान्त्रिक जिम्बाव्वे का वादा करते हुए जेडएएनयू-पीएफ के विरुद्ध चुनौती दी और चुनाव लड़ा। इसके अतिरिक्त, मुगाबे के सत्ताच्युत होने तथा म्वांगवा के वादे के कारण, जिन्होंने वास्तविक लोकतान्त्रिक तथा मुक्त जिम्बाव्वे हेतु सैन्य 'चातुर्य' के पश्चात राष्ट्रपति पद की शपथ ली, यह मुकाबला और रोचक हो गया। प्रमुख रूप से अफ्रीकी संघ (एयू), ईयू तथा यूएस जैसे अन्तर्राष्ट्रीय समुदाय इन चुनावों पर गहन दृष्टि रखे हुए थे।
मुकाबला तथा सन्देह
2018 के चुनावों की तैयारी मुगाबे के सत्ताच्युत होने से काफी पहले प्रारम्भ हो चुकी थी। 5 अगस्त, 2017 को मूवमेंट फॉर डेमोक्रेटिक चेंज (एमडीसी) का निर्माण करने के लिए सात विपक्षी दल एकजुट हो गये। इस गुट ने राष्ट्रपति पद के लिए अपने नेता के रूप में नेल्सन चमीसा को चुना। यद्यपि मुगाबे के सत्ताच्युत होने के बाद स्थिति बदल गयी थी, विपक्ष को अब भी उसी दल का सामना करना था जिसका समर्थन विकट सेना कर रही थी जिसने कभी उनके शासन का समर्थन किया था। उनके जाने से सरकार में दल का परिवर्तन नहीं हो सका। नये राष्ट्रपति म्वांगवा अपनी स्थिति को दृढ़ करना चाह रहे थे जबकि विरोधी उन्हें जेडएएनयू-पीएफ द्वारा संरक्षित मानते थे। अत: वास्तविक सरकार की लालसा तथा विपक्ष के जीतने के सम्भावित अवसर ने गहन चुनावी अभियान तथा प्रतिस्पर्द्धा के लिए प्रेरित किया। यद्यपि मुगाबे काल के ही म्वांगवा ने स्वयं को कुछ भिन्न घोषित किया। यह तथ्य के कारण कि मुगाबे से उन्होंने झगड़ा किया था और पूर्व में उपराष्ट्रपति से हटा दिया गया था, इस कार्य में काफी मददगार सिद्ध हुआ। 2017 के 'विप्लव' के पश्चात अपने पहले अध्यक्षीय भाषण में म्वांगवा ने कहा था, "हमारी अर्थव्यवस्था दुरुस्त होगी और सेवा के लिए लोग होंगे।" उन्होंने जिम्बाव्वे को "वर्तमान तथा सम्भावित निवेशकों के बीच" अत्यधिक जोखिम वाले राष्ट्र की छवि को समाप्त करने का वादा किया और विप्लव के बाद की स्थिति को "इस राष्ट्र का दूसरा जन्म" बताया। यद्यपि अन्य दल भी मैदान में थे किन्तु प्रमुख मुकाबला जेडएएनयू-पीएफ तथा नवनिर्मित गठबन्ध एमडीसी के मध्य था जिसने चुनावों से ठीक पहले स्वयं को एक राजनीतिक दल के रूप में पंजीकृत कराया था। दोनों पक्षों ने एक ही प्रकार के लोकतान्त्रिक तथा आर्थिक परिवर्तनों का वादा किया किन्तु शासक दल के साथ सेना की शक्ति और षडयन्त्र था और वह मुक्त तथा निष्पक्ष चुनाव में बाधा पहुँचाने को तत्पर था। अत: चूँकि म्वांगवा ने मुगाबे की नीतियों तथा मार्ग से स्वयं को अलग कर लिया अत: मुक्त तथा निष्पक्ष चुनावों की सम्भावना की धारणा धूमिल हो गयी।
प्रक्रिया
चुनाव निर्धारित कार्यक्रम के अनुसार 30 जुलाई, 2018 को सम्पन्न हुए। यद्यपि एक बम धमाके में राष्ट्रपति के दो सुरक्षा गार्डों, बुलावायो की म्वांगवा की रैली में उनके दो उपाध्यक्षों तथा अनेक अन्य पार्टी कार्यकर्ताओं की मृत्यु हो गयी किन्तु चुनावी अभियान के दौरान सरकारी मशीनरी द्वारा किसी प्रकार की हिंसा या उपद्रव नहीं दिखाई दिया। किन्तु चुनावों से पूर्व विपक्ष जिम्बाव्वे के चुनाव आयोग (जेडईसी) की निष्पक्षता के प्रति सशंकित था। इसने दावा किया कि जेडईसी की जेएएनयू-पीएफ उम्मीदवारों के पक्ष में मतपत्रों की डिजाइनिंग, मुद्रण तथा भण्डारण के सम्बन्ध में सरकार से साठ-गाँठ है। मतदाता रजिस्टर समय पर उपलब्ध न कराने तथा बूथ के प्रशासन में अनियमितताओं के भी आरोप लगे थे जिसके कारण चुनावों से पूर्व जेडईसी के विरुद्ध विपक्ष दो बार विरोध प्रदर्शन मार्च निकालने के लिए प्रोत्साहित हुआ।9 अत: चुनाव प्रक्रिया की वैधता सूक्ष्मता से सिद्ध करने के लिए सत्तासीन म्वांगवा सरकार ने 'पश्चिमी' चुनाव प्रेक्षकों पर लम्बे समय तक के लिए प्रतिबन्ध लगा दिया। प्रक्रिया के पर्यवेक्षण के लिए 63 आमन्त्रितों (विभिन्न देश तथा संगठन दोनों) में उन्होंने ईयू तथा यूएस के प्रतिनिधियों को भी शामिल किया।10 अफ्रीकी संघ आयोग (एयूसी) ने दीर्घकालिक प्रेक्षण अभियान के लिए एक 14-सदस्यीय दल भेजा।11 भारत, चीन, कॉमन मार्केट फॉर ईस्टर्न एण्ड सदर्न अफ्रीका (सीओएमईएसए) तथा सर्दन अफ्रीकन डेवलपमेंट कम्युनिटी (एसएडीसी) जैसे देशों तथा संगठनों ने भी अपने प्रेक्षक भेजे। मुक्त अनुसन्धान एवं अन्तर्राष्ट्रीय सहयोग संघ (एएफआरआईसी) ने मोजाम्बिक, दक्षिण अफ्रीका, केप वर्डे, मंगोलिया, भारत, जर्मनी, पुर्तगाल, स्वीडेन, स्विट्जरलैण्ड, रूस तथा यूक्रेन जैसे 40 देशों से स्वयं सेवी संगठनों, संसदों तथा शैक्षिक संस्थानों के प्रतिनिधियों को स्वतन्त्र पर्यवेक्षक के रूप में एक साथ ला दिया।12 चुनाव-पूर्व प्रक्रियायें तथा परिवेश 2008 तथा 2013 में हुए पूर्व चुनावों की तुलना में उल्लेखनीय रूप से शान्तिपूर्ण प्रतीत होता था और व्यय के लिए अधिक संसाधनों की उपलब्धता के कारण शासक दल में उत्साह था। चुनाव के दिन मतदान के लिए मतदाताओं में भारी उत्साह तथा उपस्थिति थी।
परिणाम तथा चुनाव पश्चात अराजकता
परिणामों की घोषणा के दौरान हिंसा भड़कने से पूर्व तक चुनावी प्रक्रिया अभूतपूर्व ढंग से शान्त चल रही थी। नेशनल असेम्बली में प्रत्यक्ष रूप से 210 सीटों में से जेडएएनयू-पीएफ को 145 (69.04%) सीटों पर जबकि एमडीसी गठबन्धन को मात्र 63 (30%) सीटों पर विजय प्राप्त हुई। सत्ताधारी दल ने भी महिला कोटा तथा सीनेट में भी 35 (58.33%) सीटें जीतीं जबकि एमडीसी गठबन्धन को 24 (40%) सीटें प्राप्त हुईं।13 जेडएएनयू-पीएफ द्वारा दो-तिहाई बहुमत प्राप्त कर लेने से उन्हें संविधान में एकपक्षीय संशोधन करने की शक्ति प्राप्त हो गयी। किन्तु दोनों दलों के बीच प्रमुख प्रतिद्वन्द्विता राष्ट्रपति के चुनाव परिणाम को लेकर थी। हालिया रुझान द्वारा उत्साहित विपक्ष का उत्सव बाद में कटुता में बदल गया और धोखाधड़ी के आरोप-प्रत्यारोप लगे। यहाँ तक कि मतगणना पूरी होने से पूर्व ही एक महत्त्वपूर्ण विपक्षी नेता तेंदाईबिती ने घोषणा की कि एमडीसी गठबन्धन आश्वस्त था कि इसने राष्ट्रपति पद जीत लिया था और यदि परिणाम विपरीत आते हैं तो वे अपने परिणाम स्वयं घोषित करेंगे।14 यद्यपि गहन सत्यापन प्रक्रिया के कारण परिणाम घोषित होने में विलम्ब हुआ किन्तु जेडईसी के दावे के अनुसार विपक्ष के लिए अन्तिम परिणाम न तो अनुकूल थे और न ही पचाने योग्य थे। कुल डाले गये मतों में से म्वांगवा को 50.8 (बाद में संशोधित होकर 50.6) प्रतिशत जबकि चमीसा को 44.7 (बाद में संशोधित होकर 44.3) प्रतिशत मत प्राप्त हुए। इसी बीच परिणाम में विलम्ब होने के कारण विपक्ष का यह सन्देह और भी प्रबल हो गया कि चुनाव में हेराफेरी और धोखाधड़ी की गयी है। उनके समर्थकों ने भारी विरोध प्रदर्शन किया जिससे उनका संघर्ष सैन्य कर्मियों से हो गया और इसमें छ: लोगों की मृत्यु हो गयी। सरकार ने विपक्ष पर हिंसा, आगजनी तथा अवैध हथियार रखने का अभियोग लगाया और उनके अनेक नेताओं तथा कार्यकर्ताओं को बन्दी बना लिया। ये आरोप भी लगाये गये कि सुरक्षा बलों के सदस्यों ने लोगों का अपहरण, धमकी, मार-पीट तथा बलात्कार किया है।
न्यायालय में चुनौती
नेल्सन चमीसा ने चुनाव परिणाम निरस्त करने की माँग करते हुए न्यायालय की शरण में गये। उनके वकील ने दावा किया कि सत्तासीन सरकार द्वारा व्यापक "छिपाव" तथा "सबूतों की हेराफेरी" की गयी।15 उनके कथन मतदाता रजिस्टर, मतगणना प्रक्रिया, परिणामों में अनेक हेरा-फेरी तथा सरकार द्वारा बल प्रयोग करने सहित धोखाधड़ी से सम्बन्धित अनियमितताओं और असंगतियों पर आधारित थे। उन्होंने यह आरोप भी लगाया कि अनेक "काल्पनिक" और अवास्तविक मतदान केन्द्र बनाये गये थे क्योंकि अनेक मतदान केन्द्रों की मतगणना की संख्या एक जैसी थी। विपक्ष ने दावा किया कि अनियमितताओं के कारण "बहुत कम अन्तर" की जीत हार में बदल दी गयी जिससे म्वांगवा ने दूसरे चरण के मतदान को रोक दिया। किन्तु न्यायालय की संवैधानिक पीठ ने विपक्ष के विरुद्ध एकमत से निर्णय दिया और म्वांगवा को विजेता घोषित कर दिया। न्यायालय ने कहा कि विपक्ष अपने अभियोग के समर्थन में कोई "स्पष्ट, प्रत्यक्ष, पर्याप्त तथा विश्वसनीय प्रमाण" नहीं प्रस्तुत कर सका और खर्च वसूली सहित याचिका खारिज कर दी।
अन्तर्राष्ट्रीय पर्यवेक्षण
जेडईसी के अनुसार 202 विदेशी पत्रकारों ने चुनावों को कवर किया और कुल 1007 अन्य विदेशी पर्यवेक्षकों ने इसकी निगरानी की।17 हरारे में हिंसा भड़क उठने पर उन्हें अपना कार्य करना कठिन हो गया। विदेशी पर्यवेक्षकों के एक समूह को सेना तथा पुलिस द्वारा विपक्ष के विरोध को नियन्त्रित करने के लिए "सुरक्षाबलों के अत्यधिक प्रयोग" तथा उन्हें "हिंसा नियन्त्रित करने" के लिए कहते हुए एक संयुक्त वक्तव्य जारी करना पड़ा।18 इसी बीच एसएडीसी मिशन ने प्रतिवेदन किया, "जिम्बाव्वे में सिविल तथा राजनीतिक अधिकारों के उपयोग तथा सुरक्षा में उल्लेखनीय प्रगति हुई है।"19 एयू मिशन ने निष्कर्ष निकाला कि कुल मिलाकर "प्रक्रिया शान्तिपूर्ण और पूर्णत: अनुशासित थी।"20 सीओएमईएसए (कोमेसा) के पर्यवेक्षकों ने कहा कि यह "सामान्यत: शान्तिपूर्ण, पारदर्शी और राष्ट्रीय, क्षेत्रीय तथा अन्तर्राष्ट्रीय मानकों के अनुकूल था।"21 किन्तु कुछ विचार इसके प्रतिकूल भी थे। एयू तथा एसएडीसी मिशन दोनों ने भी राज्य की मीडिया पर सत्ताधारी दल का पक्ष लेने के विषय में संकेत किया था। विपक्ष की निष्पक्षता तथा उनके लिए उपलब्ध भूमिका के विषय में अन्य लोगों में अमेरिका तथा ईयू के पर्यवेक्षक दलों की प्रतिक्रिया प्रतिकूल थी। वर्धित प्रतबन्धों सहित जिम्बाव्वे डेमोक्रेसी एण्ड इकोनॉमिक रिकवरी एक्ट (जेडआईडीईआरए, जिदेरा) अमेंडमेंट बिल22 की विधायी प्रक्रिया के बीच यूएस डिपार्टमेंट ऑफ स्टेट ने इस चुनाव को "हिंसा से चोटिल" बताया तथा "विरोधकर्ताओं के विरुद्ध अनुचित रूप से घातक बल के प्रयोग" का आरोप लगाया।23 ईयू मिशन ने पाया कि "सामान्यत: शान्तिपूर्ण अभियान के दौरान स्वतन्त्रताओं का सम्मान किया गया किन्तु राज्य संसाधनों के दुरुपयोग तथा मतदाताओं को धमकी की रिपोर्ट स्वतन्त्र मतदान के अधिकार की धारणा को ध्वस्त करती है।"22 एयू तथा एसएडीसी मिशन ने भी जेडईसी की न्यून विश्वसनीयता का उल्लेख किया किन्तु इसे व्यापक रूप से संस्थाओं के अविश्वास का परिणाम बताया जो विगत अनुभवों के कारण जनता में समा गया था। किन्तु समस्त पर्यवेक्षकों ने जिम्बाव्वे में एक "उन्नत" तथा अधिक "समावेशी" राजनीतिक दृष्टिकोण पाया। चीनी प्राधिकरणों ने परिणामों की घोषणा के तुरन्त बाद राष्ट्रपति म्वांगवा को बधाई दी। विपक्ष को "सड़कों पर उतरने से परहेज करने" का परामर्श देते हुए उनके पर्यवेक्षक इससे सन्तुष्ट थे कि चुनाव प्रक्रिया "शान्तिपूर्ण, व्यवस्थित" तथा "विश्वसनीय" थी। भारतीय मिशन चुनावों के संचालन से सन्तुष्ट था और जेडईसी के परिणामों से सहमत था।26
अर्थ तथा निहितार्थ
घरेलू तौर पर नेशनल असेम्बली के चुनावों ने जेडएएनयू-पीएफ को एक सशक्त दल होने की पुष्टि कर दी। किन्तु केवल 0.6 प्रतिशत के बहुत कम अन्तराल से राष्ट्रपति चुनाव के दूसरे चरण की जीत कथित हेराफेरी के बीच सरकार की प्रक्रियात्मक तथा संवैधानिक वैधता की समस्या इंगित करती है। किन्तु चमीसा तथा म्वांगवा द्वारा छ: प्रतिशत से अधिक वोटों का अन्तर देखने में म्वांगवा को अधिक सशक्त करता है। यदि यह अन्तराल एक प्रतिशत या इससे कम होता तो सरकार की वैधता पर पुन: प्रश्नचिह्न लग जाता। म्वांगवा की छवि अब भी काफी सुस्त है। इसके निराकरण के लिए उन्होंने अपने साक्षात्कारों तथा भाषणों में लगातार सकारात्मक संदेश देने का मार्ग अपनाया है। मुगाबे के साथ उनके गम्भीर मतभेद होने के बाद उनकी नीतियों का अनुसरण न करना परिपक्व राजनीति का प्रतीक है। किन्तु आश्वासन एक तरफ, म्वांगवा सरकार के गुणात्व अन्तरों के विषय में कुछ सन्देह हैं क्योंकि मुगाबे के साथ तथा उनके लिए कार्य करना म्वांगवा का इतिहास रहा है। चुनाव पश्चात भारी संख्या में सेना तथा पुलिस का उपयोग करने इन सन्देहों की एक कड़ी है। तथापि अन्तर्राष्ट्रीय समुदाय ने अभूतपूर्व "शान्ति" तथा "स्वतन्त्र" प्रक्रिया कहकर उनके चुनाव को वैध करार दिया है।
"विश्व के समस्त राष्ट्रों के साथ ठोस रचनात्मक कार्यक्रम" पर बल देते हुए म्वांगवा ने अपने हालिया उद्घाटन भाषण में जिम्बाव्वे के लिे "विदेशी प्रत्यक्ष निवेश", "समावेशी विकास", "उत्तम आजीविका" तथा "उत्तम सेवा" की अवधारणा प्रस्तुत की।27 यहाँ इन चुनावों के विषय में अमेरिका तथा ईयू के दृष्टिकोण को ध्यान में रखना महत्त्वपूर्ण है क्योंकि वे जिम्बाव्वे पर प्रतिबन्ध लगाने में सहायक रहे हैं। प्रतिबन्धों पर अमेरिकी स्थिति महत्त्वपूर्ण है क्योंकि जिम्बाव्वे द्वारा अपनी निजी मुद्रा को त्यागने के पश्चात अमेरिकी डॉलर के उपयोग ने इसकी अर्थव्यवस्था को उन्नत किया है। यद्यपि ईयू ने चुनावों से काफी पहले प्रतिबन्धों में छूट दे दी थी किन्तु इसके हथियारों पर रोक तथा देश की प्रमुख हस्तियों पर प्रतिबन्ध जारी है। म्वांगवा के सत्तासीन होने की सुनिश्चितता के साथ ही दोनों ने कोई और राहत देने से पूर्व उनकी गतिविधियों को परखने का निर्णय लिया है।
अमेरिका, यूरोप तथा अन्तर्राष्ट्रीय वित्तीय संस्थानों द्वारा डाले गये अत्यधिक दबाव के कारण कर की उगाही के बावजूद जिम्बाव्वे ने अपनी विवादित भूमि नीति जारी रखी है जिसके कारण उसे पश्चिमी प्रतिबन्धों का सामना करना पड़ा था। किन्तु, हाल ही में, "अन्तर्राष्ट्रीय समुदाय" को जिम्बाव्वे पर अपनी स्थिति की निरर्थकता का आभास होता भी प्रतीत होता है क्योंकि जिम्बाव्वे की भूमि नीति में कोई परिवर्तन होता नहीं दिखाई दे रहा है। यद्यपि लगता है कि नये राष्ट्रपति "पश्चिम" के साथ अपने सम्बन्ध सुधारना चाहते हैं किन्तु वे इस मुद्दे पर डगमगाते नहीं दिखाई देते हैं। इसके अतिरिक्त अन्तर्राष्ट्रीय वित्तीय तथा भूराजनीतिक परिदृश्य भी प्रतिबन्धों के बावजूद जिम्बाव्वे द्वारा नये समर्थन प्राप्त करने के लिए अपेक्षाकृत उत्तम होती स्थिति के साथ बदल रहा है और वित्तीय संकट से निपटने का प्रयास कर रहा है। इसे हासिल करने के लिए जिम्बाव्वे को उत्तम आर्थिक प्रबन्धन तथा एक विश्वसनीय मुद्रा की आवश्यकता है। वैकल्पिक एशियाई वित्त पोषण तथा अफ्रीका से मिलने वाले परामर्श के साथ यह प्राप्त करना सम्भव लगता है और राष्ट्रपति म्वांगवा इसके प्रति उदार हैं। किन्तु यह भार उन्हीं के कन्धे पर है क्योंकि उन्हें अपने पूर्ववर्तियों से अपनी गुणात्मक भिन्नता सिद्ध करनी है। यदि वह अपनी घरेलू राजनीतिक वैधता सुनिश्चित करते हैं और अर्थव्यवस्था का उचित प्रबन्धन कर लेते हैं तो परिवर्तन का यह क्षण उनके तथा व्यापक तौर पर अन्तर्राष्ट्रीय समुदाय के लिए आपसी सहयोग तथा जिम्बाव्वे के पुनर्निर्माण हेतु एक अवसर होगा।
***
* लेखक, शोधार्थी, विश्व मामलों की भारतीय परिषद, नई दिल्ली।
अस्वीकरण : इसमें व्यक्त दृष्टिकोण शोधार्थी के हैं न कि परिषद के।
अन्त्य टिप्पणी
1 यह 'सुसंगत' था क्योंकि राष्ट्रपति, संसदीय तथा स्थानीय चुनाव एक साथ सम्पन्न हुए थे।
2 जिम्बाव्वे, कंट्री प्रोफाइल, विश्व बैंक, https://data.worldbank.org/country/zimbabwe
3 एमडीसी गठबन्धन में शामिल दल थे : एमडीसी-टी (नेल्सन चमीसा के नेतृत्व में), एमडीसी (वेल्शमैन नक्यूब के नेतृत्व में), पीपल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (तेंदाईबिती के नेतृत्व में), ट्रांसफॉर्म जिम्बाव्वे (जैकब नगरिवह्यूम के नेतृत्व में), जिम्बाव्वे पीपल फर्स्ट (अग्रिप्पा मुताम्बारा के नेतृत्व में), मल्टी-रेशियल क्रिश्चियन डेमोक्रेटिक पार्टी (माथियाज गुचुतू के नेतृत्व में), तथा जेडएएनयू नदोंगा (डेनफोर्ड मसियारिरा के नेतृत्व में)।
4 राष्ट्रपति म्वांगवा का 24 नवम्बर, 2017 को प्रथम उद्घाटन भाषण।
5 आइबिड।
6 "राजनीतिक रैली में विस्फोट जिम्बाव्वे के राष्ट्रपति म्वांगवा की 'हत्या का प्रयास', news.com.au, 24 जून, 2018, https://www.news.com.au/world/africa/explosion-at-political-rally-an-assassination-attempt-on-zimbabwes-president-mnangagwa/news-story/4d6a961d0adee955a6bd93a8b15ec456
मुगाबे युगीन चुनाव हिंसक होते थे और ये विशेष रूप से सुरक्षा बलों, पुलिस के लिए जाने जाते थे तथा जेडएएनयू-पीएफ समर्थक केवल शहरी क्षेत्रों में ही विपक्षी अभियानों को पीड़ित करते और विरोध करते थे।
"जिम्बाव्वे का विपक्ष सुधारों की माँग के लिए निर्वाचक एजेन्सी की ओर बढ़े," र्यूटर्स, 11 जुलाई, 2018, https://www.reuters.com/article/us-zimbabwe-politics/zimbabwe-opposition-marches-on-electoral-agency-to-demand-reforms-idUSKBN1K11FW
9 आइबिड।
"जिम्बाव्वे ने ईयू तथा अमेरिका द्वारा चुनावी निगरानी पर लगा प्रतिबन्ध हटाया," द आइरिश टाइम्स, 11 अप्रैल, 2018, https://www.irishtimes.com/news/world/africa/zimbabwe-lifts-ban-on-election-monitoring-by-eu-and-us-l.3458408
"अफ्रीकी संघ ने जिम्बाव्वे की निर्वाचन प्रक्रिया के आकलन के लिए दीर्घकालीन पर्यवेक्षण मिशन नियुक्त किया," 16 जुलाई, 2018, https://au.int/en/pressreleases/20180716/african-union-deploys-long-term-election-
observation-mission-assess-zimbabwe
“पर्यवेक्षक दल ने चुनावों को उत्तम बताया”, द हेरल्ड, 1 अगस्त, 2018, https://www.herald.co.zw/observer-teams-give-polls-thumbs-up/
डाटा जिम्बाव्वे निर्वाचन आयोग (जेडईसी) द्वारा अपलोड सूची से लिया गया है।
“विपक्ष के जीत के दावे के पश्चात जिम्बाव्वे ने अभियोग जारी करने की चेतावनी दी”, डेली नेशन, 1 अगस्त, 2018, https://www.nation.co.ke/news/africa/Zimbabwe-election-results/1066-4691374-l1a5ymz/index.html
“समीक्षा : 'यदि म्वांगवा अपनी जीत का दावा करते हैं तो उन्हें आँकड़े उपलब्ध कराने चाहिए,' एमडीसी के वकील ने कहा”, न्यूज 24, 22 अगस्त, 2018, https://www.news24.com/Africa/Zimbabwe/live-zimbabwes-constitutional-court-hears-mdcs-election-petition-20180822
“समीक्षा : अदालत ने म्वांगवा को जिम्बाव्वे का उचित रूप से चुना हुआ राष्ट्रपति घोषित किया”, न्यूज 24, 24 अगस्त, 2018, https://www.news24.com/Africa/Zimbabwe/live-all-eyes-on-zim-concourt-as-ruling-on-election-challenge-expected-today-20180824
जेडईसी द्वारा प्रदत्त 2018 के समरस चुनावों के निरीक्षणकर्ताओं की कुल संख्या 12,966 है। इसमें विदेशी पत्रकार, विदेशी पर्यवेक्षक, स्थानीय पत्रकार तथा स्थानीय पर्यवेक्षक शामिल हैं।
जिम्बाव्वे के सुसंगत चुनावों के लिए अन्तर्राष्ट्रीय पर्यवेक्षण मिशन का संयुक्त वक्तव्य, 30 जुलाई, 2018. वक्तव्य पर हस्ताक्षर करने वाले में एयू इलेक्शन ऑब्जर्वेशन मिशन (एयूईओएम), कॉमनवेल्थ इलेक्शन ऑब्जर्वेशन मिशन, एसएडीसी पार्लियामेंट्री फोरम इलेक्शन ऑब्जर्वेशन मिशन, ईसीएफ-एसएडीसी मिशन, कोमेसा इलेक्शन ऑब्जर्वेशन मिशन, ईयू इलेक्शन ऑब्जर्वेशन मिशन (ईयूईओएम), कार्टर सेंटर इलेक्शन ऑब्जर्वेशन मिशन और आईआरआई तथा एनडीआई का संयुक्त अन्तर्राष्ट्रीय प्रतिनिधिमण्डल शामिल था।
30 जुलाई, 2018 को एसएडीसी इलेक्शन ऑब्जर्वर मिशन (एसईओएम) द्वारा निर्गत प्राथमिक वक्तव्य।
1 अगस्त, 2018 को अफ्रीकन यूनियन इलेक्शन ऑब्जर्वर मिशन (एईओएम) द्वारा निर्गत प्राथमिक वक्तव्य।
1 अगस्त, 2018 को कोमेसा इलेक्शन ऑब्जर्वर मिशन (एईओएम) द्वारा निर्गत प्राथमिक वक्तव्य।
जिदेरा संशोधन विधेयक अमेरिकी कांग्रेस द्वारा केवल कुछ ही दिन पहले पारित किया गया और चुनावों के बाद इस पर अधिनियम के रूप में हस्ताक्षर किया गया।
यूएस डिपार्टमेंट ऑफ स्टेट का जिम्बाव्वे के चुनावों पर प्रेस वक्तव्य, 3 अगस्त, 2018,
https://www. state.gov/r/pa/prs/ps/2018/08/284915.htm
1 अगस्त, 2018 को ईयू इलेक्शन ऑब्जर्वर मिशन (ईयूईओएम) द्वारा निर्गत प्राथमिक वक्तव्य।
“चीनी पर्यवेक्षकों ने 30 जुलाई के मतदान की पुष्टि की, द हेरल्ड, 2 अगस्त, 2018, https://www.herald.co.zw/chinese-observers-endorse-july-30-poll/
“पर्यवेक्षक टीम ने मतदान को उत्तम बताया”, द हेरल्ड, 1 अगस्त, 2018, https://www.herald.co.zw/observer-teams-give-polls-thumbs-up/
“राष्ट्रपति ईडी म्वांगवा का उद्घाटन भाषण”, 26 अगस्त, 2018, https://www.chronicle.co.zw/president-mnangagwas-inauguration-speech-in-full/