भूमिका 1985 के असम समझौते के बाद से राष्ट्रीय नागरिक पंजिका व नेशनल रजिस्टर फ़ॉर सिटिज़न्स (एनआरसी) असम की राजनीति में एक विवादास्पद मुद्दा रहा है। हालांकि यह अभी 2014 की बात है जब सुप्रीम कोर्ट ने अखिल भारतीय अहोम संध व अन्य बनाम भारतीय संघ¹ के मामले में अपने फैसले में केंद्र सरकार और असम सरकार को उसकी देखरेख में नागरिकों की राष्ट्रीय पंजिका तैयार करने का निर्देश दिया। राष्ट्रीय नागरिक पंजिका काफी हद तक एक घरेलू मसला है, लेकिन इसके संभावित अंतरराष्ट्रीय आयामों का आकलन नहीं किया गया था, खासतौर पर तब, जब सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को विदेशी के रूप में पहचाने गए लोगों के निर्वासन के मुद्दे पर बांग्लादेश के साथ संपर्क करने का निर्देश दिया था। यह शोध आलेख भारत-बांग्लादेश संबंधों के संदर्भ में निर्वासन की व्यवहार्यता का आकलन करता है।
भावनात्मक सीमाओं का निर्माण
देश विभाजन के बाद भारत की आबादी के विनिमय पश्चिमी सीमा की तुलना में पूर्वी सीमा में लंबी अवधि तक जारी रहा और पूरी तरह से अपने अंजाम तक नहीं पहुंचा था।² हालांकि इससे पहले में पूर्वी पाकिस्तान से लोगों के आगमन को एक प्रकार से घर वापसी के रूप में देखा गया था,, क्योंकि राष्ट्रीय पहचान उस क्षेत्र और वहां के लोगों के दिमाग में कुछ ज्यादा ही उलझ कर रह गयी थी। जहां तक शरणार्थियों को उन्हें अस्थायी आवास की मंजूरी देने का जरूरत थी, तो इनको सरकार की सीमित कानूनी और स्थानिक समझ द्वारा आगे भी सम्मिलित कर लिया गया था।³ असम में अप्रवासी मुद्दे को दो भागों में विभाजित किया गया है, यानि विभाजन के बाद ‘घर वापसी’और 1971 के बाद ‘घुसपैठ’। विभाजन के बाद पहले वाले को बड़े पैमाने पर प्रवास की एक जैविक प्रक्रिया के रूप में देखा गया था, जबकि 1971 के बाद के प्रवास को मुख्यतया आर्थिक स्वरूप के तौर पर माना गया था। इसके कारण लोगों के बीच भावनात्मक सीमाओं का निर्माण हुआ, जिसने घुसपैठ की कहानी के लिए जमीन तैयार कर दी।⁴
असम में प्रवास के विरोध का आधार जनसांख्यिकीय और आर्थिक है।⁵ दरअसल, असम में मौजूदा विदेशी-विरोधी आंदोलन का बीज 1971 में शरणार्थी के आबाध प्रवेश को लेकर दिए गए भाषणों में है। जनसांख्यिकीय में बदलाव की आशंकाओं की पुष्टि 1981 की जनगणना में की गई थी, जिसके अनुसार असम की जनसंख्या 24.7 प्रतिशत के राष्ट्रीय औसत के मुकाबले 36.3 प्रतिशत बढ़ी; खासकर 1970-72 और 1976-78 में जनसंख्या की स्वाभाविक वृद्धि राष्ट्रीय औसत के मुकालबे क्रमश: 0.5 प्रतिशत और 1.2 प्रतिशत कम थी।⁶ इससे संकेत मिलता है कि 1971-81 के बीच 1.8 मिलियन लोगों का देशांतरण हुआ।⁷
अनियमित प्रवासन की समस्या का समाधान करने के लिए एक बहुस्तरीय रणनीति की आवश्यकता होती है, बहरहाल, नीतिगत अनिवार्यता यानी अनियमित या अवैध प्रवासियों का पता लगाना, उन पर पाबंदी लगाना, उन्हें कैद करना और निर्वासित करना या नागरिक बनाना बहुत ही मौलिक विषय है। एनआरसी का उपयोग मूलतया 1985 के असम समझौते के तहत इसके कानूनी आधार के साथ विदेशियों का पता लगाने संबंधी एक प्रयोग है, जहां इस बात पर सहमति हुई थी कि 25 मार्च 1971 के बाद असम में प्रवेश करने वाले अवैध प्रवासियों का पता लगाने, हटाने और निर्वासित करने का देश प्रयास करेगा।⁸ हालांकि इस तरह के किसी भी प्रयोग को नागरिकों और गैर-नागरिकों - दोनों के लिए संविधान में निहित अधिकारों को स्थापित करने का प्रयास के रूप में किया जाना चाहिए।
एनआरसी से बाहर किए गए व्यक्तियों की स्थिति
बांग्लादेश से भारत के सीमावर्ती राज्यों में लोगों की आवाजाही मुख्य रूप से दबाब कारकों द्वारा संचालित होती है, इसके लिए रोजगार के अवसरों की कमी, भूमि की तुलना में आबादी की अनुपातहीनता, धार्मिक अल्पसंख्यकों का उत्पीड़न आदि को जिम्मेदार ठहराया जा सकता है। दूसरी ओर सांस्कृतिक समानता के चलते संभावित रोजगार के अवसर, भारत में रिश्तेदारों का बसना और कृषि योग्य भूमि की उपलब्धता आदि प्रवासियों के लिए आकर्षण के कारकों के रूप में कार्य करती है।⁹ स्थलीय और नदी के तटवर्ती सीमाओं की दलदली क्षेत्र में गश्त लगाने की समस्याओं के मद्देनजर दबाव और आकर्षण के कारक अक्सर अनियमित प्रवासन को सहूलियत प्रदान करते हैं। इस तरह एनआरसी का प्रयोग भारत में अनियमित रूप से प्रवासन में उनकी कानूनी स्थिति पर सवाल खड़ा करता है।
यहां इस बात पर जोर देना जरूरी है कि एनआरसी का उद्देश्य केवल भारतीय नागरिकों को पहचानना है, न कि असम के मूल निवासियों को।¹⁰ तदनुसार असम के निवासियों को यह दो भागों में बांट देता है। एक, 25 मार्च 1971 से पहले या 1951 के नागरिकों के राष्ट्रीय पंजिका में जिनके नाम हैं या ऐसे व्यक्तियों के वंशज हैं, जिनके पास असम में निवास का विरासत है।¹¹ दो, यदि 25 मार्च 1971 से पहले असम में संबंधित व्यक्ति निवास नहीं करता था तो नागरिकता का सत्यापन अंतरराज्यीय पत्राचार के माध्यम से किया जाता है।¹² स्वाभाविक नतीजा यह है कि जो लोग एनआरसी में शामिल नहीं हैं उन्हें विदेशी¹³ माना जाएगा यानि ऐसे व्यक्ति जो भारतीय नागरिक नहीं हैं।¹⁴
ऐसी स्थिति में जहां विदेशियों के किसी देश में अनियमित रूप से रहने का पता चलता है तो मेजबान देश अक्सर उन्हें उनकी राष्ट्रीयतावाले देश में निर्वासित कर देना चाहता है और प्रापक देश अपने नागरिकों के पुन: प्रवेश को स्वीकार करता है।¹⁵ हालांकि इस घटना में आरोप यह है कि उनकी राष्ट्रीयता वाला देश उन्हें नागरिकों के रूप में पहचानने से इंकार कर देता है और मेजबान देश में स्थिति स्पष्ट नहीं होने के कारण उस व्यक्ति/व्यक्तियों को देशविहीन के रूप में जाने जाने के संकट से गुजरना पड़ता है। इसलिए इस स्थिति में दो संभावनाओं की व्यवहार्यता का आकलन करना जरूरी हो जाता है यानि बांग्लादेश वापस भेजा जाना या उन्हें देशविहीन मान लेना।
भारत-बांग्लादेश संचालक शक्ति
बताया जा रहा है कि जिन व्यक्तियों की राष्ट्रीयता की पहचान हुई है, उनके बांग्लादेशी होने की संभावना है। इसके अलावा एनआरसी एक घरेलू कवायद है, जिसका भारत के अंतरराष्ट्रीय संबंधों पर प्रभाव पड़ता है; खासतौर पर तब जब उच्चतम न्यायालय ने बांग्लादेश के साथ जरूरी विचार-विमर्श का केंद्र सरकार को निर्देश दिया।¹⁶ यह बात पर ध्यान दिया जाना चाहिए कि चार मिलियन लोगों को एनआरसी के अंतिम मसौने से बाहर रखा गया है और एनआरसी अंतिम सूची तैयार हो जाने के बाद घोषित विदेशियों की इतनी बड़ी तादाद में वापस भेजा जाना बांग्लादेश के साथ संबंध को तनावपूर्ण कर सकता है। वैकल्पिक रूप से गैर-नागरिकों के रूप में लाखों की पहचान और उनके देशविहीनता का जोखिम अनचाहे अंतरराष्ट्रीय पड़ताल को आकर्षित कर सकता है। इस संदर्भ में भारत-बांग्लादेश संबंधों पर इस तरह की घटना के संभावित प्रभाव का आकलन करना जरूरी है।
अखबारों की रिपोर्टों के अनुसार, अवैध प्रवासन का मुद्दा प्रमुख रूप से असम की घरेलू राजनीति और पूर्वोत्तर में व्यापक रूप से सामने आया है, लेकिन अतीत में इसे कभी द्विपक्षीय स्तर पर नहीं उठाया गया।¹⁷ इस पर विचार करते हुए भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने अपने आदेश में केंद्र सरकार को निर्वासन की प्रक्रिया को कारगर बनाने के लिए बांग्लादेश के साथ जरूरी विचार-विमर्श ’करने का निर्देश दिया था। बहरहाल, अगर बांग्लादेश के सूचना मंत्री के बयानों पर ध्यान दिया जाए, तो माना जाता है गृह मंत्रालय अपने समकक्ष को आश्वासन देगा कि एनआरसी विशुद्ध रूप से भारत का एक अंदरुनी मसला है और चिह्नित किए गए विदेशियों को निर्वासित नहीं किया जाएगा।¹⁸
इसके अलावा 2018 के अंत में बांग्लादेश में आम चुनाव होने वाले हैं, जहां बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी (बीएनपी) शेख हसीना के नेतृत्व वाली अवामी लीग को चुनौती दे रही होगी। शेख हसीना की अगुवाई वाली सरकार ने आतंकवाद का मुकाबला करने, सीमा पार भारत-विरोधी तत्वों के कारनामों को रोकने और आईएसआई की गतिविधियों जैसी अन्य मामलों पर अंकुश लगाने में सहयोग करने के साथ भारत के प्रति दोस्ताना रुख अपनाया हुआ है। शेख हसीना पहले से ही सत्ता-विरोधी तत्वों और रोहिंग्या संकट से जूझ रही हैं, लेकिन स्थिर और मैत्रीपूर्ण द्विपक्षीय संबंधों के हित में भारत सत्ता में शेख हसीना की वापसी चाहता है। इसलिए बांग्लादेश के साथ इन असम्बद्ध मसलों और निर्वासन प्रक्रिया में लंबा समय लग जाने को देखते हुए, अगर आगे बढ़ कर इसे किया गया तो विदेशियों के निर्वासन के मुद्दे पर बांग्लादेश के साथ किसी समझौते पर पहुंचना मुश्किल हो सकता है।
बांग्लादेश में रोहिंग्या समुदाय के प्रवेश ने भी एक बड़ी भूमिका निभायी है, अनुमान है कि रोहिंग्याओं पर टाटमदाव (म्यांमार सेना) द्वारा किए गए हमले के बाद 700,000 रोहिंग्याओं ने बांग्लादेश में प्रवेश किया।¹⁹ बांग्लादेश अपनी ओर से रोहिंग्या आबादी की मेजबानी कर रहा है, वैसे नेतृत्व के लिए यह चिंता का एक प्रमुख कारण भी है।²⁰ इसलिए इसके बाद बांग्लादेश, म्यांमार और शरणार्थियों के लिए संयुक्त राष्ट्र के उच्चायुक्त ने प्रत्यावर्तन के लिए लिखित समझौता किया है, लेकिन इसका नतीजा अभी देखा जाना बाकी है।²¹ इसलिए इस बात पर शक की पूरी गुंजाइश है कि बांग्लादेश पहले ही रोहिंग्या मसले से जूझ रहा है, ऐसे में भारत से बांग्लादेश लाखों लोगों को ‘पुन: प्रवेश’की अनुमति देने को तैयार होगा।
अंत में अंतरराष्ट्रीय जांचकर्त्ता को भी इसमें शामिल करने की जरूरत है। एनआरसी प्रक्रिया के दो संभावित नतीजे हो सकते हैं यानी निर्वासन या देशविहीनता - ये दोनों स्थितियां गहन अंतरराष्ट्रीय जांच को बढ़ावा देंगी, खासतौर पर तब जब इसमें लाखों की तादाद में लोग शामिल हों। इसके अलावा देशविहीन एक नई आबादी का निर्माण अंतरराष्ट्रीय कानून और इसके अंतर्गत आने वाले दायित्वों के प्रति संवेदनशील होना लाजिमी होगा।²² संयुक्त राष्ट्र के मानवाधिकार विशेष प्रतिवेदकों ने पहले ही विदेश मंत्री को एक पत्र लिखा है, जिसमें राष्ट्रीयता से संबंधित मुद्दों पर स्पष्टता, भेदभाव को रोकने के मद्देनजर सुरक्षा उपाय और एनआरसी से बाहर हो जाने वालों के लिए पर्याप्त उपाय करने को कहा गया है।²³
असम से बांग्लादेश में अनियमित आवाजाही के मामले में की जाने वाली किसी भी कार्रवाई को बांग्लादेश नकारात्मक रूप से ले सकता है। इन तमाम पहलुओं को ध्यान में रखते हुए भारत सरकार को सावधानीपूर्वक कोई स्वीकार्य समाधान के लिए तैयार रहना चाहिए, ताकि निर्वासन के मामले को आगे बढ़ाना ही है तो दो मित्र राष्ट्रों के द्विपक्षीय संबंधों पर आंच नहीं आए। इसे देखते हुए पूर्वोत्तर के राज्यों में भारत के सरोकार और विकासोन्मुख योजनाओं में बांग्लादेश की एक महत्वपूर्ण भागीदारी है और इसके लिए एक्ट ईस्ट पॉलिसी²⁴ के लिए सहयोग बहुत ही महत्वपूर्ण है। इन सभी तथ्यों को ध्यान में रखते हुए यह दलील दी जा सकती है कि निर्वासन और देशविहीनता इस कवायद चिंताजनक परिणाम हैं। इसलिए ऐसा प्रतीत होता है कि भारत ने अगर एनआरसी की अंतिम सूची में विदेशियों के रूप में चिह्नित लोगों के मामले में अनुकूल व एकीकृत तरीका ढ़ूंढ़ लिया तो उसे कम से कम नुकसान होगा।
संभावित समाधान लोगों की स्थिति और एनआरसी के मुद्दे पर भारत-बांग्लादेश को गतिशील बनाने के लिए, इन विकट परिस्थितियों में एनआरसी पर संभावित समाधानों पर विचार करना आवश्यक है। भारत को दक्षिण एशियाई समस्याओं के लिए एक दक्षिण एशियाई प्रथा स्थापित करने का एक अभूतपूर्व अवसर प्राप्त हुआ है, खासकर अतीत को देखते हुए जब समस्या का समाधान असंभव लगता था। इसलिए समस्या को संभावित रूप से देखते हुए, सवाल उठता है कि क्या एनआरसी भारत और दक्षिण एशिया में प्रवासन के मामले में बेहतर प्रबंधन की शुरुआत हो सकती है?
एनआरसी के मामले में प्रमुख चिंता दस्तावेजों की कमी है, जिसके कारण भारतीय राष्ट्रीयता पर कुछ लोगों के वैध दावे के बावजूद उनके देशविहीन होने के खतरे को दर्शाता है। जरूरी दस्तावेजों की कमी वाले लोगों की पहचान होने के बाद भारत और खासतौर पर असम के साथ उनकी कड़ी का आगे आकलन किया जा सकता है। इसका सकारात्मक प्रभाव दस्तावेजीकरण की संस्कृति तैयार करने और कल्याणकारी संरचना में उन्हें शामिल करने के अलावा भविष्य में भारतीय अधिकारियों के लिए इसे आसान बनाने में होगा। इस तरह समस्या का समाधान या तो ऊपर चर्चा किए गए साधनों के जरिए किया जा सकता है, लेकिन यहां बांग्लादेश को अलग करने का भी जोखिम है; या फिर असम के भीतर इन लोगों को एकीकृत कर भी किया जा सकता है।
आसन्न जनसांख्यिकीय बदलाव के कारण असम के मूल निवासियों कका अल्पसंख्यक के रूप में फिर से हस्तांतरण होने का डर समावेश करने की इस नीति में बाधा हो सकती है।²⁵ इसलिए जनसांख्यिकी रूप से असम जैसे एक पेचीदा राज्य के लिए भारत में अन्य राज्यों में सामान्यतया लागू होने वाली राजनीतिक व्यवस्था का सामान्य नियम आदर्श नहीं हो सकते है, क्योंकि इस बदलाव में राजनीतिक व्यवस्था को बाधित करने की क्षमता है। ऐसी स्थिति में सत्ता के बंटवारे का कोई स्वरूप जरूरी है, जिसमें क्षेत्रीय विकेंद्रीकरण या चुनावी व्यवस्था तंत्र की गुंजाइश का पता लगाया जा सकता है,²⁶ यानी राज्य विधानसभाओं में एक सत्ता के बंटवारे के माध्यम से सीट के विशिष्ट कोटा को आरक्षित करके अधिक निश्चितता को सुनिश्चित किया जा सकता है।²⁷ असम में इस तरह की वैकल्पिक चुनावी संरचना तय की गयी, इस प्रक्रिया में असम के विधानसभा में एक ऐतिहासिक प्रतिनिधित्व को मंजूरी दी जा सकती है ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि किसी भी समुदाय को राज्य में अपनी राजनीतिक पूंजी को खोने के डर में नहीं होगा।
ऐसी किसी भी नई चुनावी व्यवस्था की पवित्रता बनाए रखने के लिए अप्रवासी और शरणार्थी नीतियों को और ज्यादा मजबूती बनाने के लिए तैयार रहना होगा। यह बांग्लादेश के सहयोग के साथ सीमा पर अप्रवासी मुद्दे पर बुनियादी संरचना में सुधार होना चाहिए, ताकि आने वाले समय में अप्रवास के मुद्दे पर एकरूपता नजर आए। समानांतर रेखाए हॉर्न ऑफ अफ्रीका के यूरोपीय बेहतर प्रवासन प्रबंधन (बीएमएम) परियोजना से खींची जा सकती हैं, जिसमें भाग लेने वाले देश और क्षेत्र के अन्य किरदारो बेहतर और नियमित प्रवास के लिए मजबूत साझेदारी की मांग कर रहे हैं। इस परियोजना का कार्यान्वयन चार घटकों पर आधारित है: नीतियों का अनुकूलनकरण, क्षमता-निर्माण, संरक्षण और जागरूकता।²⁸ बीएमएम में माइग्रेशन प्रबंधन की एक प्रणाली की पड़ताल की जा सकती है, तभी इस क्षेत्र में भारत की विकास परियोजनाएं पूरी होगी। बहरहाल, सामाजिक-आर्थिक वास्तविकताओं और भारत के विशाल जनसांख्यिकीय लाभांश को देखते हुए नीति निर्धारतकों को प्रवास के मुद्दे की बुनियादी संरचना की मजबूती और सीमा पर गश्त के माध्यम से बेहतर प्रवासन प्रबंधन द्वारा अनियमित प्रवास से निपटने के तरीके खोजने होंगे।
निष्कर्ष
असम में प्रवासन की स्थिति में हस्तक्षेप न करना कोई आदर्श नीतिगत रवैया नहीं है, क्योंकि इससे न केवल राज्य; बल्कि पूरा क्षेत्र पिछड़ जाता है। स्थिति की अनिश्चितता उस क्षेत्र के आर्थिक विकास और शांति में बाधा डालती है, जो विकास को प्राप्त करने के लिए महत्वपूर्ण हैं। एनआरसी प्रयोग कई मायनों में एक आवश्यक प्रयोग है, क्योंकि यह प्रवास के नियमों को फिर से स्थापित करने का अवसर तैयार करता है। यह न केवल शासन समाधानों, जो कि असम जैसे एक जातीय विविध राज्य की जरूरतों के लिए अधिक अनुकूल हैं, का एक अवसर प्रदान करता है; बल्कि बांग्लादेश और भारत के बीच एक बेहतर प्रवासन प्रबंधन प्रणाली के लिए भी जगह बनाता है, जाहिर है निर्वासन या देशविहीनता अलाभकारी नीति के विकल्प से लगते हैं। इसके अलावा, अप्रवास की समस्या के मुद्दे के लिए भारतीय नीति निर्माता जो उपाय ढूंढ़ निकालते हैं, वह क्षेत्र की भलाई के तौर पर काम कर सकता है और क्षेत्र में भारत की विकास लालसा को आवश्यक गति प्रदान कर सकता है।
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* लेखक, रिसर्च फेलो, इंडियान काउंसिल ऑफ वर्ल्ड अफेयर्स, नई दिल्ली.
अस्वीकरण: आलेख में व्यक्त किए गए विचार शोधकर्त्ता के है, काउंसिल के नहीं।
संदर्भ
¹ 2014 की रिट याचिका (सिविल) नंबर 876
² विलेम वान शेंडेल, द बंगाल बॉर्डरलैंड: बियॉन्ड स्टेट एंड नेशन इन साउथ एशिया, (प्रथम संस्करण, एंथम प्रेस 2004), पृष्ठ 192.
³ अंतरा दत्ता, ‘रिफ्यूजी एंड बॉर्डर्स इन साउथ एशिया: द ग्रेट एक्सडस ऑफ 1971’, (प्रथम संस्करण, रूटलेज 2013), पृष्ठ 62.
⁴ पूर्वोक्त
⁵ असम में अवैध प्रवासन पर असम के राज्यपाल रिपोर्ट, निम्न लिंक पर उपलब्ध है: http://www.satp.org/satporgtp/countries/india/states/assam/documents/papers/illegal_migration_in_assam.htm, (6 सितंबर 2018 को एक्सेस किया गया)
⁶ माय्रोन वेनर, पॉलिटिकल डेमोग्राफी ऑफ असम’स एंटी-इमीग्रेंट मुवमेंट, पॉपुलेशन एंड डेवल्पमेंट रिव्यू, खंड 9, नंबर 2, पृष्ठ 286.
⁷ पूर्वोक्त
⁸ असम समझौता 1985
⁹ दत्ता, पी. (2004) पुश-पुल फैक्टर्स ऑफ अनडोक्यूमेंटेड माईग्रेशन फ्राम बांग्लादेश टू वेस्ट बेंगॉल: ए परसेप्शन स्टजी. निम्न लिंक पर उपलब्ध है: http://nsuworks.nova.edu/tqr/vol9/iss2/9, द क्वालिटेटिव रिपोर्ट, 9(2), 335-358.
¹⁰ कमलख्या दे पुरकायस्थ व अन्य बनाम भारतीय संघ, रिट याचिका (सिविल) संख्या 1028, 2017.
¹¹ अनुच्छेद खंड 2 (3) (असम राज्य में भारतीय नागरिकों के राष्ट्रीय रजिस्टर की तैयारी के तरीके के रूप में विशेष प्रावधान) नागरिकता (नागरिकों के पंजीकरण और राष्ट्रीय पहचान पत्र के मुद्दे) नियम, 2003.
¹² पूर्वोक्त अनुच्छेद 3(5) ¹³ पूर्वोक्त अनुसूची 3(2)
¹⁴ विदेशी अधिनियम, 1946 की धारा 2 (ए).
¹⁵ नागरिक और राजनीतिक अधिकारों पर अंतरराष्ट्रीय समझौता अनुच्छेद 12 (4), 1976.
¹⁶ उपर्युक्त आई, पृष्ठ 68.
¹⁷ नवीन कपूर, नॉट करैक्ट टू लिंक इलीगल इम्मीग्रेंट्स विद अस: बांग्लादेश,
https://www.aninews.in/news/world/asia/not-correct-ti-link-illegal-immigrants-with-us`bangladesh201808010212470001/,
(23 अगस्त 2018 को एक्सेस) और टाइम्स न्यूज नेटवर्क, सेंटर, स्टेट मिसलीड पीपुल ऑन इंफ्लूक्स
https://timesofindia.indiatimes.com/city/guwahati/centre-state-misled-people-on- influx/articleshow/59499714.cms,
(23 अगस्त 2018 को एक्सेस)
¹⁸ कल्लोल भट्टाचार्य, ‘अमित शाह’ज टरमाइट रिमार्क अनवांटेड: बांग्लादेश मिनिस्टर’ https://www.thehindu.com/news/national/amit-shahs-termite-remark-unwanted-bangladesh- minister/article25022118.ece,
(24 सितंबर 2018 को एक्सेस)
¹⁹ सिच्युएशन रिफ्यूजी रिस्पांस इन बांग्लादेश’ निम्न लिंक पर उपलब्ध है:
https://data2.unhcr.org/en/situations/myanmar_refugees, (21 अगस्त 2018 को एक्सेस)
²⁰ गौतम सेन, ‘पॉलआउट ऑफ द रोहिंग्या इशू ऑन बांग्लादेश’ज डोमेस्टिक पॉलिटिक्स। इंस्टीट्यूट फॉर डिफेंस स्टडीज एंड एनालिसिस’ (Idsa.in 2017) निम्न लिंक पर उपलब्ध है: https://idsa.in/idsacomments/fallout-of-the-rohingya-issue-on- bangladesh-domestic-politics_gsen_031017, (17 अगस्त 2018 को एक्सेस)
²¹ हारून हबीब, म्यांमार, बांग्लादेश साइन एग्रीमेंट ऑन रोहिंग्या मुसलिम, 23 नवंबर 2017, निम्न लिंक पर उपलब्ध है: https://www.thehindu.com/news/international/myanmar-bangladesh-sign-agreement-on- rohingya/article20714515.ece
(21 अगस्त 2018 को एक्सेस)
²² मानव अधिकारों सार्वभौम घोषणा, अनुच्छेद 15
²³ भारत के नागरिक राष्ट्रीय पंजिका के प्रयोग पर राष्ट्रीय मानवाधिकार विशेष प्रक्रियाओं पर संयुक्त राष्ट्र संघ के विशेष प्रतिवेदकों द्वारा दिया गया पत्र, निम्न लिंक पर उपलब्ध है:
https://www.ohchr.org/Documents/Issues/Racism/SR/Commun ications/OL-IND-13-2018.pdf ,
(20 अगस्त 2018 को एक्सेस)
²⁴ संजय कथुरिया, बांग्लादेश वाइटल टू इंडियाज ‘एक्ट इस्ट’ पॉलिसी, निम्न लिकं पर उपलब्ध है: http://www.worldbank.org/en/news/opinion/2017/09/27/bangladesh-corridor-vital-indias-act-east-policy, (20 अगस्त 2018 को एक्सेस)
²⁵ संगीता और मुनिंदर बोरा, ‘फर्टिलिटी एंड पोपुलेशन ग्रोथ इन असम’, इंटरनेशनल जर्नल ऑफ इंजीनियरिंग डेवलपमेंट एंड रिसर्च, खंड 6 इशू 1.
²⁶ उपर्युक्त नोट वीआई पृष्ठ 1.
²⁷ रजत शेठी, मणिपुर मुख्यमंत्री सलाहकार, इंस्टीट्यूट औफ पीस एंड कंफ्लिट स्टहीज में "सिटीजन डिटरमिनेशन प्रोसेसेज इन असम: द नेशनल रेजिस्टर ऑफ सिटीजन (एनआरसी) एंड बिओंड " विषय पर बातचीत।
²⁸ बेटर माइग्रेशन मैनेजमेंट (बीएमएम), खार्तूम प्रक्रिया', निम्न लिंक पर उपलब्ध है
https://www.khartoumprocess.net/operations/39-better-migration-management-bmm,
(24 अगस्त 2018 को एक्सेस)