आयतुल्लाह ख़ामेनई, इस्लामी गणतंत्र ईरान के सर्वोच्च नेता के तौर पर देश की राष्ट्रीय सुरक्षा और विदेश नीति की दिशा निर्धारित करते हैं। इस नेता ने हाल ही में राष्ट्रपति रूहानी को सलाह दी कि ‘जहाँ यूरोप के साथ संबंध स्थापित करना, बातचीत जारी रखना ठीक है, वहीं आपको जे.सी.पी.ओ.ए या आर्थिक मामलों जैसे मुद्दों पर उनसे अपेक्षा रखना बंद कर देना चाहिए।'1 इस साल की शुरूआत में, ईरानी सरकार से विदेशों पर निर्भर ना होने के संबंध कहते हुए नेता जी ने तर्क दिया कि 'विदेश नीति में, हमारे लिए आज की शीर्ष प्राथमिकताओं में पश्चिम की तुलना में पूर्व को प्राथमिकता देना, दूर-दराज के देशों की तुलना में पड़ोसी देशों को प्राथमिकता देना, हमारे लक्ष्यों को साझा करने वाले देशों और राष्ट्रों को प्राथमिकता देना शामिल है।'2 ईरान एक-तरफा प्रतिबंधों को दरकिनार करने के लिए परमाणु समझौते के लिए यूरोपीय हस्ताक्षरकर्ताओं के साथ काम कर रहा है, लेकिन ईरान को 'आर्थिक गारंटी' देने में यूरोप की असमर्थता और ईरान के बैलिस्टिक मिसाइल कार्यक्रम के प्रति उनके विरोध को देखते हुए, नेता जी ने लुक टू द ईस्ट नीति का समर्थन किया है, जो ईरान की क्रांतिकारी पहचान और देश के दीर्घकालिक रणनीतिक और आर्थिक हितों के साथ सुसंगत है।
राष्ट्रपति अहमदीनेजाद (2005-2013) द्वारा शुरू की गई लुक टू द ईस्ट नीति का उद्देश्य ईरान के विवादास्पद परमाणु कार्यक्रम पर पश्चिमी दबाव के प्रतिकार के तौर पर रूस, चीन और भारत जैसी उभरती शक्तियों के साथ संबंधों को गहरा बनाना और 20 वर्ष राष्ट्रीय परिकल्पना में पहचाने गए ईरान के विकास लक्ष्यों को आगे बढ़ाना था। ‘पूर्वी ब्लॉक’ के साथ संबंधों को अधिक गहरा बनाने के लिए नए सिरे से जो बल दिया गया है, वो अंतर्राष्ट्रीय व्यवस्था के बारे में ईरानी नेता के दृष्टिकोण से उपजा है, क्योंकि ये सत्ता में बदलाव के दौर से गुजर रहा है, जिसमें आर्थिक शक्ति और इसके साथ राजनीतिक शक्ति का केंद्र धीरे-धीरे पश्चिम से हटकर पूर्व, एशिया की ओर स्थानांतरित हो रहा है। यह परिवर्तन, उनके विचार में बढ़ती शक्तियों और क्षेत्रीय खिलाड़ियों को अंतर्राष्ट्रीय व्यवस्था को आकार देने की अधिक संभावना पैदा करती है। रूहानी प्रशासन की लुक टू द ईस्ट नीति 2.0 ऐसे समय में एशियाई देशों के साथ संपर्क बढ़ाने की कोशिश करता है, जब इन देशों के साथ संबंधों पर संयुक्त राज्य अमेरिका का फोकस तेल निर्यात से हटकर निवेश परियोजनाओं के जुड़ाव पर चला गया है और इस प्रकार उसका प्रभाव कमजोर हो गया है।3 यह पत्र अपने लुक टू द ईस्ट नीति के तीन महत्वपूर्ण स्तंभों जैसे कि रूस, चीन और भारत के साथ ईरान के संबंधों की आकृति और सामग्री की परिक्षा करता है।
ईरान-रूस की उभरती रणनीतिक साझेदारी
ईरान-रूस संबंध कुछ समय पहले तक सामान्य थे, खासकर रूस के प्रति ईरान के संदेह और नकारात्मकता की ऐतिहासिक स्मृति के कारण, जिसके कारण ईरान ने गुलिस्तान (1813) और तुर्कमेन्केय (1828) की अपमानजनक संधियों में दक्षिण काकेशस में बड़े पैमाने पर अपने प्रदेश खो दिए थे। सोवियत संघ के पतन के बाद ईरान की उत्तरी सीमा पर मंडराता एक बड़ा सुरक्षा खतरा दूर हो गया, नाटो विस्तार के प्रति उनके साझा विरोध ने दोनों देशों के बीच सहयोग को प्रोत्साहित किया, जिसे पश्च-सोवियत राज्यों जैसे कि जॉर्जिया और यूक्रेन में ‘वेल्वेट क्रांति' कहा जाता था और क्षेत्र में सुन्नी कट्टरपंथ की धारणाओं को साझा किया। इस क्षेत्र में सुरक्षा और स्थिरता पर अभिसमय विचारों पर आधारित उनकी साझेदारी ने आतंकवाद विरोधी सहयोग का रूप ले लिया, जिसके हिस्से के तौर पर रूस ने सीरिया में ईरानी सहयोगी बशर अल-असद के समर्थन में एक सैन्य अभियान शुरू किया।
जैसा कि दोनों पक्षों ने कहा है ईरान-रूस की साझेदारी सामरिक प्रकृति से हटकर कूटनीति की तरफ बढ़ रही है, दोनों देश इस बात पर भी ध्यान दे रहे हैं कि दोनों देशों के मध्य आर्थिक संबंध अच्छी तरह विकसित नहीं हुए हैं, जिसमें परमाणु ऊर्जा एक प्रमुख अपवाद रही है। 2014 में, रूस ने दक्षिणी ईरान के बंदरगाह शहर बुशहर में ईरान के पहले परमाणु ऊर्जा संयंत्र को पूरा करने के बाद, आठ और परमाणु ऊर्जा संयंत्रों के निर्माण के लिए एक अनुबंध पर हस्ताक्षर किए।4 करीबी आर्थिक सहयोग की बुनियाद, विशेष रूप से तेल और ऊर्जा क्षेत्र में, दोनों देशों पर अमेरिकी प्रतिबंधों के कारण उत्पन्न हुआ है। जहाँ ईरान की परमाणु समझौते के प्रति ट्रम्प प्रशासन की दुश्मनी ने यूरोपीय तेल कंपनियों को देश में निवेश करने से चिड़चिड़ा बना दिया, वहीं ईरान ने यूक्रेन में मास्को के हस्तक्षेप पर पश्चिमी प्रतिबंधों के तहत रूसी राज्य के स्वामित्व वाली कंपनियों की ओर रुख किया। अमेरिका के परमाणु समझौते से हाथ वापस खींच लेने के बाद, सर्वोच्च नेता के शीर्ष विदेश नीति सलाहकार अली अकबर वेलयाती ने दीर्घकालिक सहयोग को मजबूत बनाने और ईरान के खिलाफ अमेरिकी ‘आर्थिक युद्ध’ का मुकाबला करने के लिए मास्को और बीजिंग की यात्रा की। मास्को में, वेलयाती ने तर्क दिया कि अगर प्रमुख रूसी तेल कंपनियां कच्चे तेल की खोज और उत्पादन में निवेश करती हैं, साथ ही साथ शोधन भी करती हैं तो रूस-ईरान तेल सहयोग को कुछ $50 बिलियन तक विकसित किया जा सकता है। मार्च, 2018 में, एक रूसी कंपनी के साथ पहले सौदे में, ईरान की दाना एनर्जी ने राज्य के स्वामित्व वाली ज़ुर्बेज़नेफ्ट के साथ $742 मिलियन के सौदे में प्रवेश किया, जो इराकी सीमा के निकट अबान और पेदार के तेल क्षेत्र को विकसित करने की परियोजना के वित्तपोषण के पचासी प्रतिशत व्यय को कवर करेगा। आने वाले वर्षों में इन दोनों क्षेत्रों में उत्पादन बढ़ने की वजह से ईरान के तेल राजस्व में $4 बिलियन का इजाफा होने की उम्मीद है। इस वर्ष की शुरुआत में रूस ने भी यूरेशियन इकोनॉमिक यूनियन (ई.ए.ई.यू) के सदस्यों और ईरान के बीच एक मुक्त व्यापार क्षेत्र के गठन को भी मंजूरी दी थी; ये एक ऐसा कदम है जिससे तेहरान और मॉस्को के बीच तेल व्यापार को व्यापक रूप से बढ़ावा मिलने की अपेक्षा है और ईरानी तेल का अंतर्राष्ट्रीय बाजार तक पहुंचना आसान बनाता है।5
फारस की खाड़ी और कैस्पियन सागर के निकट के क्षेत्रों में अपने रणनीतिक स्थान का लाभ उठाने के लिए उत्सुक ईरान उत्तर-दक्षिण अक्ष पर यूरोप और एशिया को जोड़ने वाले अंतरमहाद्वीपीय परिवहन अवसंरचना का एक महत्वपूर्ण नोड बनना चाहता है, जो संयुक्त राज्य अमेरिका द्वारा समर्थित पूर्व-पश्चिम अक्ष के विपरीत है, जैसे कि अज़रबैजान, जॉर्जिया और तुर्की के ज़रिए तुर्कमेनिस्तान से यूरोप तक ट्रांस-कैस्पियन पाइपलाइन। अंतर्राष्ट्रीय उत्तर-दक्षिण परिवहन कॉरिडोर (आई.एन.एस.टी.सी) एक बहु-माध्यमिक भूमि-समुद्री परिवहन मार्ग है जो भारत को ईरान, दक्षिण काकेशस और रूस के माध्यम से यूरोप के साथ जोड़ता है, और रूस, दक्षिण काकेशस, ईरान और मध्य एशियाई गणराज्यों के बीच क्षेत्रीय व्यापार संपर्कता को बढ़ाना चाहता है।
ईरान और रूस के बीच बढ़ती सुरक्षा और आर्थिक सहयोग भी इस क्षेत्र में रणनीतिक वास्तविकताओं को प्रभावित करता है। क्षेत्रीय सहयोग के लिए रूस और ईरान की साझित वरीयता बताती है कि कैसे अज़रबैजान और कज़ाखिस्तान समेत कैस्पियन तट पर स्थित पांच देश, जिनका नाटो और संयुक्त राज्य अमेरिका के साथ करीबी सहयोग है – जिन्होंने इन देशों को अपनी सैन्य रक्षा को मजबूत बनाने और यहां तक कि अपनी नौसेना बनाने में मदद की - एक समझौते पर पहुंचे और अपनी कानूनी स्थिति पर एक संधि पर हस्ताक्षर किए। ईरानी और रूसी दोनों ही दृष्टिकोणों से एक महत्वपूर्ण उपलब्धि यह है कैस्पियन में नाटो की सैन्य उपस्थिति के अपने डर को दूर करने के लिए ‘कैस्पियन सागर में उन सशस्त्र बलों की गैर-मौजूदगी जो पक्षों के नहीं हैं’ नामक लेख।
ईरान-चीन साझेदारी: ऊर्जा, निवेश और संपर्कता
जे.सी.पी.ओ.ए के कार्यान्वयन और प्रतिबंध उठने के तुरंत बाद राष्ट्रपति ज़ी जिनपिंग ने जनवरी 2016 में ईरान का दौरा किया। दोनों देशों के बीच 25 साल के रणनीतिक संबंध की स्थापना के लिए सहमति का समर्थन करते हुए, सर्वोच्च नेता ख़ामेनई ने तर्क दिया कि 'ईरान की सरकार और लोगों ने हमेशा चीन जैसे स्वतंत्र और भरोसेमंद देशों के साथ संबंधों का विस्तार करने की अपेक्षा की है और अब भी करते हैं।' सिल्क रोड को पुनर्जीवित करने के लिए चीनी योजनाओं के साथ काम करने की ईरान की इच्छा व्यक्त करते हुए उन्होंने आगे कहा कि 'इस्लामी गणराज्य प्रतिबंधों के समय के दौरान चीन के सहयोग को कभी नहीं भूलेगा।'7
ईरान और चीन के बीच आर्थिक संबंध तब से परवान चढ़ रहा है, जब से अहमदीनेजाद प्रशासन ने पश्चिम द्वारा लगाए गए परमाणु प्रतिबंधों को दरकिनार करने के लिए लुक टू द ईस्ट नीति शुरू की थी। 2014 की शुरुआत में, जब संयुक्त राज्य अमेरिका ने एक अंतरिम परमाणु समझौते के तहत ईरान पर लगे प्रतिबंधों को हटाया, तब चीन ईरान के शीर्ष व्यापारिक साझेदार के रूप में उभरा और तब से ये ओहदा बना हुआ है। ईरानी कच्चे तेल के शीर्ष ग्राहक के रूप में, 2017 में, ईरानी तेल निर्यात का एक तिहाई हिस्सा चीन को बेचा जाता है - ईरान के तेल निर्यात को बनाए रखने के प्रयास में चीन महत्वपूर्ण रहा है, इसके बावजूद कि अमेरिका ने इसे घटाकर शून्य करने की धमकी दी है। चीन ऊर्जा के प्रमुख स्रोत के साथ-साथ बुनियादी संरचनाओं के निवेशक के रूप में भी उभरा है, खासकर तब जब अमेरिका द्वारा दूसरी बार प्रतिबंध लगाए जाने के डर से यूरोपीय कंपनियों ने ईरानी बाजार से पलायन किया था। फ्रेंच टोटल अमेरिकी प्रतिबंधों से छुटकारा पाने में विफल रहने और यह घोषणा करने के बाद कि उसने पिछले साल दक्षिण पार्स गैस फील्ड का फेज 11 विकसित करने के लिए जो $1 बिलियन के समझौते पर हस्ताक्षर किया था उससे पीछे हट रहा है, सी.एन.पी.सी जो परियोजना का 30 शेयरधारक था, अब वह अधिकतम शेयर हासिल करने के लिए कटिबद्ध है।8
ईरान की लुक टू द ईस्ट नीति 2.0 का एक प्रमुख घटक रूस, चीन और भारत के साथ क्षेत्रीय संपर्कता और उनके द्वारा प्रायोजित आर्थिक परियोजनाओं के साथ तालमेल बिठाना है। ईरान चीन के बेल्ट और सड़क पहल को इस क्षेत्र में अपनी भू-अर्थव्यवस्था बढ़ाने और अंतर्राष्ट्रीय राजनीतिक अर्थव्यवस्था में शक्ति संतुलन बनाने की अपनी संभावना के लिए एक रणनीतिक अवसर के रूप में मानता है।9 जहाँ ईरान अपनी बुनियादी संरचना के नेटवर्क का विस्तार और आधुनिकीकरण करना चाहता है, वहीं चीनी निवेश का स्वागत किया गया है। सितंबर 2017 में, ईरान और चीन ने 2016 में प्रतिबंधों को हटाने के बाद से सबसे बड़े आर्थिक समझौते पर हस्ताक्षर किए, जिससे ईरानी बैंकों को ऊर्जा, प्राकृतिक पर्यावरण, परिवहन और जल संसाधनों के प्रबंधन जैसे क्षेत्रों में परियोजनाओं के लिए $10 बिलियन की क्रेडिट लाइन प्रदान की गई।10 मार्च, 2018 में, चीन नेशनल मशीन इंडस्ट्री कॉर्प्स (सिनोमैक) ने तेहरान को पश्चिमी ईरान में हमादान और सानंदज से जोड़ने वाली रेल लिंक बनाने के लिए $845 मिलियन के अनुबंध पर हस्ताक्षर किए।11 यह परियोजना 3,400 किलोमीटर की नई सिल्क रोड रेल लिंक है जो तेहरान को चीन के उरूमची और और चार मध्य एशियाई गणराज्य कज़ाखिस्तान, तुर्कमेनिस्तान, उज़्बेकिस्तान और किर्गिस्तान से जोड़ती है।12 चीन के साथ चल रही संपर्क परियोजनाओं को देखते हुए और चाबहार और पाकिस्तान के ग्वादर बंदरगाह परियोजना के बीच गतिशील प्रतिस्पर्धा से बचने के लिए - चीन पाकिस्तान आर्थिक कॉरिडोर (सी.पी.ई.सी) को जोड़ने वाला एक प्रमुख इंटरफ़ेस जो परिवहन और ऊर्जा अवसंरचना के माध्यम से पाकिस्तान के अरब सागर तट को पश्चिमी चीन के साथ जोड़ता है - ईरान परियोजना के शून्य-योग दृष्टिकोण से बचा है।13 इस महीने की शुरुआत में जब सऊदी अरब ने सी.पी.ई.सी से संबंधित सड़क अवसंरचना और ऊर्जा परियोजनाओं के वित्तपोषण के लिए तीन समझौतों पर हस्ताक्षर किया, ईरान ने इस ये तथ्य पेश करते हुए तर्क दिया कि ये परियोजना क्षेत्र के लिए एक 'गेम चेंजर' है और ईरान किसी भी देश की भागीदारी का विरोध नहीं करता है।14 इस साल की शुरुआत में ईरान ने ग्वादर और चाबहार के बीच एक रेल-लिंक बनाने में रुचि व्यक्त की। लंबे समय से रुकी ईरान पाकिस्तान (आई.पी) पाइपलाइन परियोजना को पूरा करने के इच्छुक ईरान को ये उम्मीद भी है कि सी.पी.ई.सी की रूपरेखा के अंतर्गत विकसित की जा रही ग्वादर-नवाबशाह एल.एन.जी पाइपलाइन को ईरानी सीमा तक फैलाई है और 2011 में पूरी हुई ईरानी खंड की पाइपलाइन के साथ जोड़ी जाए।15
ईरान-भारत साझेदारी: ऊर्जा और संपर्कता
2016 की शुरुआत में अंतर्राष्ट्रीय प्रतिबंधों को हटाए जाने के बाद भारत ईरान संबंधों को एक नई गति मिली। प्रतिबंध हटाने के चार महीने बाद, भारत, ईरान और अफ़गानिस्तान ने ईरान के चाबहार बंदरगाह को विकसित करने और इसे व्यापार और परिवहन कॉरिडोर के माध्यम से अफ़गानिस्तान के साथ जोड़ने के लिए एक ऐतिहासिक समझौते पर हस्ताक्षर किया। जनवरी 2017 में, ईरान भारत का तीसरा सबसे बड़ा कच्चे तेल का आपूर्तिकर्ता बन गया। क्योंकि दोनों देश अपने ऊर्जा संबंधों को खरीदार और विक्रेता के संबंध से आगे बढ़ाना चाहते थे, भारत में तेल और प्राकृतिक गैस कॉर्प की विदेशी भुजा, ओ.एन.जी.सी विदेश ने पहले खोजी गई फरज़ाद बी गैस क्षेत्र पर विकास के अधिकार प्राप्त किए।
यद्यपि, ईरान-भारत संबंधों का एक केंद्रस्थ स्थान है चाबहार बंदरगाह, जो ओमान के तट और अरब सागर में ईरान के मुख्य आउटलेट पर स्थित है। इस बंदरगाह को भारत द्वारा ईरान, अफ़गानिस्तान और मध्य एशियाई गणराज्यों के साथ अपने व्यापार के विस्तार के लिए एक प्रवेश द्वार के रूप में विकसित किया जा रहा है। बंदरगाह की क्षमता का संचालन करने के लिए, भारत ने चाबहार को अफ़गानिस्तान में ज़रांज-डेलाराम सड़क से जोड़ने में और चाबहार-ज़ाहेदान रेलवे लिंक में बड़े पैमाने पर निवेश किया है, जिसे पूर्वी ईरान में मशहद तक बढ़ाया जाएगा और इसके बाद मध्य में भी विस्तृत किया जाएगा।17 जैसे-जैसे मध्य एशिया के साथ भारत का जुड़ाव प्रबल होता जा रहा है, खासकर जब से भारत पिछले साल जून में शंघाई सहयोग संगठन का सदस्य बना है, ईरान इस क्षेत्र में भारत के पहुँच के लिए महत्वपूर्ण हो गया है। इस वर्ष फरवरी में, मध्य एशिया के साथ भारत के संपर्क विकल्पों में विविधता लाने के उद्देश्य से, भारत ने अश्गाबात समझौते में प्रवेश किया, जो मध्य एशिया में तुर्कमेनिस्तान और उज़्बेकिस्तान और फारस की खाड़ी क्षेत्र में ईरान और ओमान के बीच के बीच एक परिवहन और पारगमन कॉरिडोर बनाना चाहता है।18 इसके अलावा हाल में उज्बेक राष्ट्रपति शव्कत मिर्ज़ियोयेव के नई दिल्ली, भारत दौरे के दौरान जब उज़्बेकिस्तान ने दो वर्षों के भीतर $1 बिलियन का द्विपक्षीय व्यापार का लक्ष्य प्राप्त करने का फैसला किया, तब उन्होंने चाबहार के माध्यम से अपना व्यापार चलाने का निर्णय लिया।
ऐसे समय में जब ईरान और भारत अपने संबंधों को बहुआयामी प्रकृति का बनाने के लिए प्रयासरत हैं, दोनों देशों के सामने खड़ी एक बड़ी चुनौती है कि वे किस प्रकार अपने संबंधों को तीसरे पक्ष के प्रभाव से बचाए। इस तथ्य को देखते हुए कि भारत के दो राज्य रिफाइनरों ने नवंबर के महीने के लिए आयात के लिए 1.25 मिलियन टन ईरानी तेल का अनुबंध किया है और सरकार डॉलर में व्यापार करने के बदले रुपये में व्यापार करने की तैयारी कर रही है, जिससे ईरान के तेल और बैंकिंग क्षेत्र पर अमेरिकी प्रतिबंधों को दरकिनार किया जाएगा, यह दर्शाता है कि दोनों देश आपसी हित के आधार पर अपने संबंधों को मजबूत बनाने के लिए तत्पर हैं। क्योंकि अब 4 नवंबर को अमरीका ईरान पर अगला प्रतिबंध लगाने वाला है, नई दिल्ली ने पहले बर्थ पर शेष काम को पूरा करने और आने वाले हफ्तों में इसे चालू करने के अपने प्रयासों को दुबारा शुरू कर दिया है। चूंकि नई दिल्ली चाबहार को अपनी अतिरिक्त-क्षेत्रीय संपर्कता महत्वाकांक्षाओं के लिए महत्वपूर्ण मानता है और अफ़गानिस्तान में अपनी विकासात्मक भूमिका के लिए भी, वाशिंगटन से इस परियोजना के लिए उदार दृष्टिकोण अपनाने की उम्मीद है, यह अफ़गानिस्तान में अमेरिकी उद्देश्यों के साथ सामंजस्य रखता है।20
निष्कर्ष
ईरान की लुक टू द ईस्ट नीति, जो विशेष रूप से दीर्घकालिक संपर्कता परियोजनाओं के संदर्भ में रूस के साथ ईरान की फलती-फूलती रणनीतिक संबंध और चीन और भारत के साथ आर्थिक संबंध में देखा गया है, अंतर्राष्ट्रीय प्रणाली के बारे में ईरान के पारंपरिक द्विध्रुवी दृष्टिकोण से उभरी है। नीति यह भी इंगित करती है कि ‘ना तो पूर्व, ना ही पश्चिम’ का पिछला युग, जब ईरान ने अंतर्राष्ट्रीय व्यवस्था को अभिभावी माना था और अंतर्राष्ट्रीय प्रणाली की यथास्थिति और मौलिक नियमों को बदलना चाहा था, इस नीति ने ईरान को खुद को एक एशियाई देश के रूप में देखने और एशिया की उभरती शक्तियों के साथ अपना संबंध मजबूत बनाने के लिए मार्ग प्रशस्त किया है। लुक टू द ईस्ट नीति ईरान को विश्व अर्थव्यवस्था के साथ अपने एकीकरण का लाभ उठाने की अनुमति देती है, जबकि पश्चिम पर निर्भर होने से बचाती है। यह विशेष रूप से महत्वपूर्ण है, क्योंकि एक स्वतंत्र विदेश नीति का अनुसरण करना ईरान की क्रांतिकारी पहचान का महत्वपूर्ण हिस्सा है। यह नीति भारत और चीन जैसी उभरती अर्थव्यवस्थाओं को क्षेत्रीय संपर्कता की अपनी परियोजनाओं को साकार करने के लिए एक रणनीतिक अवसर भी प्रस्तुत करती है, जहाँ ईरान यूरोप और एशिया के बीच महत्वपूर्ण भूमि-सेतु है।
* * *
* लेखिका, रिसर्च फेलो, इंडियन काउंसिल ऑफ वर्ल्ड अफेयर्स, नई दिल्ली.
अस्वीकरण: इसमें व्यक्त किया गया नज़रिया शोधकर्ता का नज़रिया है और ना की परिषद् का नज़रिया है।
अंत टिप्पणी
अगर हम अपने राष्ट्रीय हितों को पूरा करने में विफल रहे तो हम जे.सी.पी.ओ.ए को अलग कर देंगे: आयतुल्लाह ख़ामेनई, अगस्त 29, 2018, http://english.khamenei.ir/news/5897/We-will-put-aside-the-JCPOA-if-it-fails-to-fulfill-our-national
पश्चिम की तुलना में पूर्व की वरीयता ईरान की प्राथमिकता है : आयतुल्लाह ख़ामेनई, फरवरी 18, 2018, http://english.khamenei.ir/news/5481/Preference-of-East-over-West-is-a-priority-for-Iran-Ayatollah
रूस-ईरान साझेदारी: एक विहंगावलोकन और भविष्य की संभावना, 2016, रुसी अंतर्राष्ट्रीय कार्यक्रम परिषद्- ईरान यूरेशिया अध्ययन संस्थान, http://russiancouncil.ru/en/activity/publications/russia-iran-partnership-an- overview-and-prospects-for-the-fu/
तकनीकी समस्याओं के कारण बुशहर संयंत्र के निर्माण में देरी, अप्रैल 3, 2016,
https://en.mehrnews.com/news/115518/Bushehr-plants-construction-delayed-for-technical-issues
ईरान यूरेशियाई आर्थिक संघ के साथ मुक्त व्यापार क्षेत्र के साथ जुड़ा, अप्रैल 24, 2018,
कैस्पियन महासागर सम्मेलन में क्षेत्र में गैर-तटीय राज्यों के सैन्य उपस्थिति पर प्रतिबंध, अगस्त 6, 2018, https://sputniknews.com/military/201808061066987252-caspian-sea-military-ban/
ईरान प्रतिबंधों के समय के दौरान चीन के सहयोग को कभी नहीं भूलेगा, जनवरी 23, 2016,
http://english.khamenei.ir/news/3212/Iran-will-never-forget-China-s-cooperation-during-the-time-of
टोटल ईरान परियोजना छोड़ने के लिए सी.एन.पी.सी के टेकओवर के इंतज़ार में, अगस्त 14, 2018,
https://www.presstv.com/Detail/2018/08/14/571146/Iran-gas-South-Pars-France-Total-China-CNPC
मोहसेन शरियातिनिया और हमीद्रेज़ा अज़ीज़ी (2017) सिल्क रोड आर्थिक बेल्ट में ईरान-चीन सहयोग: सामरिक समझ से परिचालानात्मक समझ तक, चीन और विश्व अर्थव्यवस्था, भाग 25: 4
ईरान को $ 10 बिलियन का ऋण देने के लिए चीन ने सौदे पर हस्ताक्षर किया,
https://www.presstv.com/Detail/2017/09/15/535211/China-signs-deal-to-provide-Iran-with-10bn-in-loans
चीन की सिनोमैक पश्चिमी ईरान में $845 मिलियन की रेलवे लाइन बनाएगी, मार्च 21, 2018,
ईरान और चीन नई सिल्क रोड परियोजना के लिए साथ आए, जून 14, 2017, https://financialtribune.com/articles/domestic- economy/66450/iran-china-team-up-on-new-silk-road-project
ईरान की पाकिस्तान के साथ सी.पी.ई.सी साझेदारी में रूचि, अप्रैल 15, 2018, https://financialtribune.com/articles/economy- domestic-economy/84579/iran-interested-in-cpec-partnership-with-pakistan
ईरान सी.पी.ई.सी में किसी भी देश की भागीदारी के खिलाफ नहीं: राजदूत, अक्टूबर 4, 2018,
https://tribune.com.pk/story/1818151/1-iran-not-countrys-involvement-cpec-envoy/
ईरानी गैस सी.पी.ई.सी के लिए ‘अपरिहार्य’ हो सकती है, सितम्बर 22, 2018, https://tribune.com.pk/story/1512890/iranian- gas-can-indispensable-cpec/
ईरान में विशाल गैस क्षेत्र के लिए भारत $3-4 बिलियन की विकास योजना प्रस्तुत करेगा: सूत्र, अप्रैल 4, 2018, https://in.reuters.com/article/india-iran-energy/india-to-offer-3-4-billion-development-plan-for-giant-iran-gas-field- sources-idINKCN1HB21M
चाबहार बंदरगाह के लिए वित्तपोषण हेतु भारत स्टॉप्स बनवाएगा, जुलाई 12, 2018,
भारत परिवहन कॉरिडोर पर अश्गाबात सहमति के साथ जुड़ा, फरवरी 2,2018,
https ://www. azernews.az/region/126504.html
भारत, उज़्बेकिस्तान ने $1 बिलियन का वार्षिक द्विपक्षीय व्यापार लक्ष्य तय किया, अक्टूबर 1, 2018,
20 यू.एस ईरान के प्रतिबंध के भारतीय, अफ़ग़ान प्रभावों पर चाबहार घटक पर विचार करेगा, सितम्बर 27, 2018, https://economictimes.indiatimes.com/news/defence/us-will-consider-chabahar-factor-in-indian-afghan-impact-of-iran-sanctions/articleshow/65977393.cms