चूंकि अभी के सशस्त्र संघर्षों में ड्रोन तकनीक का बड़े पैमाने पर इस्तेमाल किया जा रहा है, इसलिए विद्वानों एवं नीति निर्माताओं ने मानव रहित हवाई वाहनों को, जिन्हें "ड्रोन" भी कहा जाता है, आज की सैन्य तकनीकों की एक प्रमुख विशेषता कहा है।[i] 2020 में ड्रोन से ही अजरबैजान युद्ध जीतने में कामयाब रहा।[ii] चूंकि ड्रोन दोहरे उपयोग वाली तकनीक है, इसलिए कुछ देशों द्वारा ड्रोन का निर्माण किए जाने ने सुरक्षा संबंधी समस्याएं पैदा कर दी है, जिससे राष्ट्र थ्यूसीडाइड्स के जाल में फंस गए है। गैर-राज्य अभिकर्ताओं के बीच भी ड्रोन का प्रसार प्रचलित हो गया है।[iii] ईरान के खिलाफ पाकिस्तान द्वारा किए गए ड्रोन और मिसाइल हवाई हमले, हौथिस द्वारा लाल सागर में जहाजों को निशाना बनाकर ड्रोन एवं मिसाइलों से किए गए अब तक के सबसे बड़े हमले, तुर्की सेना द्वारा उत्तरी सीरिया में सीरियाई अरब सेना के खिलाफ ड्रोन-आधारित वायुशक्ति का इस्तेमाल, तुर्की द्वारा बेकरतार टीबी 2 ड्रोन की यूक्रेन को आपूर्ति, रूस द्वारा यूक्रेन के खिलाफ कई ड्रोन हमले शुरू करना आदि राज्य एवं गैर-राज्य अभिकर्ताओं के बीच ड्रोन के बढ़ते उपयोग को दर्शाते हैं।
जबकि ड्रोन को वैध नागरिक उपयोग हेतु इस्तेमाल किया जा सकता है, संघर्ष की स्थितियों में राज्यों और गैर-राज्य अभिकर्ताओं द्वारा ड्रोन की बढ़ती तैनाती अंतरराष्ट्रीय सुरक्षा परिवेश के लिए जोखिम पैदा करती है। अन्य देशों की तरह, ड्रोन का ऐसा प्रसार भारतीय सुरक्षा को भी प्रभावित कर रहा है, जो भारत को ड्रोन के जिम्मेदारी पूर्वक उपयोग की वकालत करते हुए ड्रोन के विकास, उत्पादन, क्षमता निर्माण और तैनाती में सक्रिय भूमिका निभाने हेतु प्रेरित कर रहा है।
इस विशेष रिपोर्ट में ड्रोन की शुरुआत, विगत कुछ वर्षों में उनके बढ़ते सैन्य इस्तेमाल तथा अपने स्वदेशी सैन्य ड्रोन इकोसिस्टम को विकसित करने में भारत के प्रयासों पर चर्चा कि गई है।
ड्रोन वर्ल्ड का सृजन
मानवरहित विमान कोई नई परिघटना नहीं है, हालाँकि विगत बीस वर्षों में तकनीक के क्षेत्र में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है। ड्रोन या मानव रहित हवाई वाहन (यूएवी) को 'संचालित, हवाई वाहन के रूप में परिभाषित किया गया है जिसमें मानव ऑपरेटर की जरुरत नहीं होती है, जिसमें वाहन को ऊपर लिफ्ट करने के लिए वायुगतिकीय बलों का उपयोग होता है, सॉफ्टवेयर के माध्यम से स्वतः उड़ सकता है या रिमोट के ज़रिए संचालित किया जा सकता है, विस्तार किए जाने योग्य या रिकवर किेए जाने योग्य हो सकता है, और घातक या गैर-घातक सामग्री ले जा सकता है।'[iv] ड्रोन ग्राउंड कंट्रोल स्टेशनों द्वारा संचालित रोटर्स, सेंसर, LiDAR (लाइट डिटेक्शन एंड रेंजिंग), नेविगेशन सिस्टम आदि से लैस सॉफ्टवेयर एवं हार्डवेयर का एक संयोजन है।[v] इन ड्रोनों का उपयोग नागरिक (कृषि, आपदा, खनन, मौसम विज्ञान, सर्वेक्षण, खनन, निर्माण आदि) और सैन्य दोनों उद्देश्यों के लिए किया जा रहा है।
ड्रोन का सैन्य इस्तेमाल ड्रोन के प्रकार यानी सशस्त्र एवं हथियार-रहित ड्रोन के आधार पर कफी अधिक है। हथियार-रहित ड्रोन का इस्तेमाल निगरानी संबंधी मिशनों में किया जाता है जबकि सशस्त्र प्रणालियाँ निगरानी मिशनों के अलावा घातक मिशनों को भी अंजाम दे सकती हैं। ड्रोन का उपयोग निगरानी, टोही, सैन्य डेटा लिंक स्थापित करने एवं आपूर्ति वितरण आदि सहित कई उद्देश्यों के लिए किया जाता है। इसके अलावा, मिसाइल रक्षा में उपयोग के लिए भी सशस्त्र ड्रोन विकसित किए जा रहे हैं।
सेनाओं ने पहली बार 20वीं सदी की शुरुआत में यूएवी विकसित करना शुरू किया था, लेकिन तकनीकी बाधाओं के कारण ड्रोन का इस्तेमाल आगे नहीं बढ़ सका, जिससे इसको व्यापक स्तर पर नहीं अपनाया जा सका।[vi] 1960 के दशक में, अमेरिका ने वियतनाम में निगरानी हेतु यूएवी का इस्तेमाल किया, इज़राइल ने लेबनान युद्ध में इसका इस्तेमाल किया, और पश्चिमी खुफिया एजेंसियों ने यमन, पाकिस्तान व सोमालिया जैसे सैन्य युद्धक्षेत्र के बाहरी हिस्सों में गुप्त अभियानों में सशस्त्र ड्रोन का इस्तेमाल किया।[vii] 11 सितंबर के हमलों के बाद, मानव रहित विमानों पर अमेरिकी खर्च काफी अधिक बढ़ गया और इससे अन्य देश भी ड्रोन के इस्तेमाल की ओर आकर्षित हुए, जिसके परिणामस्वरूप वैश्विक मांग में वृद्धि हुई। 2019 तक, न्यूयॉर्क के बार्ड कॉलेज के एक शोध संस्थान, सेंटर फॉर द स्टडी ऑफ ड्रोन के शोधकर्ताओं ने अनुमान लगाया है कि लगभग 100 देशों के पास सैन्य ड्रोन हैं और दुनिया भर की सैन्य सेवाओं में 30,000 से अधिक ड्रोन तैनात हैं।[viii] शोधकर्ताओं ने सैन्य सूची में 171 प्रकार के ड्रोन और 58 देशों द्वारा स्थापित 268 सैन्य-ड्रोन इकाइयों की जानकारी दी है। जैसे-जैसे ड्रोनों का प्रसार हुआ, मॉडलों की रेंज भी बढ़ी, जिसकी क्षमता और आकार अलग-अलग हैं।[ix] अमेरिकी वायु सेना टियर प्रणाली के अनुसार ड्रोन को आकार, सहनशक्ति एवं सीमा के आधार पर वर्गीकृत किया जाता है क्योंकि टियर I में ऑर्बिटर जैसे कम ऊंचाई, कम सहनशक्ति वाले ड्रोन शामिल होते हैं: टियर II में रीपर या प्रीडेटर जैसे मध्यम ऊंचाई, लंबी सहनशक्ति वाले ड्रोन शामिल होते हैं; और टियर II+ ग्लोबल हॉक जैसे उच्च ऊंचाई, लंबी सहनशक्ति वाले ड्रोन पर लागू होता है।[x]
ड्रोन का बाज़ार बहुत तेज़ी से बढ़ रहा है। तीन सबसे बड़े ड्रोन उत्पादक एवं विक्रेता देश संयुक्त राज्य अमेरिका, इज़राइल और चीन हैं। इन वैश्विक खिलाड़ियों के अलावा, तुर्की और ईरान जैसे क्षेत्रीय खिलाड़ी भी बहुत तेजी से बढ़ रहे हैं। पहला चार्ट सैन्य ड्रोन के प्रमुख निर्यातकों को दर्शाता है।[xi] और एसआईपीआरआई के आर्म्स ट्रांसफर डेटाबेस के अनुसार, भारत एवं यूनाइटेड किंगडम विश्व स्तर पर ड्रोन के सबसे बड़े आयातक हैं। नीचे दी गई तालिका में सबसे लोकप्रिय ड्रोन के साथ उनके निर्यातक देशों और आयातक देशों की जानकारी दी गई है।[xii] ड्रोन आयात करने वाले देशों की संख्या निर्यातक देशों की तुलना में बहुत अधिक है क्योंकि आयात करने वाले देश निर्यातक देशों के छोटे समूह की तुलना में अफ्रीका, पश्चिम एशिया एवं यूरोप आदि से दुनिया भर में फैले हुए हैं। इन ड्रोनों का उपयोग गुप्त अभियानों, न्यायेतर लक्षित हत्याओं, आतंकवादी अभियानों को अंजाम देने में किया जा रहा है, विशेष रूप से लंबी दूरी के सैन्य ग्रेड कामिकेज़ ड्रोन (निर्यात नियंत्रण का उल्लंघन करते हुए वाणिज्यिक घटकों से निर्मित) का उपयोग किया जा रहा है।[xiii]
स्रोत: एसआईपीआरआई आर्म्स ट्रांसफर डेटाबेस, 13 मार्च, 2023, https://www.sipri.org/databases/armstransfers चित्र 2
स्रोत: शोधकर्ता (अनुभा) द्वारा निर्मित
ड्रोन का इस्तेमाल क्यों बढ़ रहा है और अंतर्राष्ट्रीय प्रतिक्रिया
सैन्य ड्रोन आज उग्रवाद से लेकर अंतरराज्यीय संघर्षों तक युद्ध के कई पहलुओं में इस्तेमाल किए जा रहे हैं। दो प्रतिस्पर्धी धारणाएं हैं जो ड्रोन के बढ़ते उपयोग की बहस पर हावी हैं।[xiv] एक खेमा ड्रोन तकनीक को परिवर्तनकारी मानता है क्योंकि यह दोहरे उपयोग वाली है और यह सैनिकों के लिए जोखिम को कम करती है, जिससे बल के उपयोग में बाधा कम होती है, इसलिए, वो देशों द्वारा ड्रोन का अधिक इस्तेमाल करने की वकालत करते हैं। दूसरा खेमा ड्रोन को परिवर्तनकारी नहीं मानता है क्योंकि ड्रोन अन्य वायु प्रौद्योगिकियों द्वारा किए जा सकने वाले अधिकांश कार्यों को बस दोहराते हैं।[xv] यह भाग पहले खेमे की इस धारणा पर चर्चा करता है कि ड्रोन का इस्तेमाल बढ़ रहा है और बढ़ेगा।
ड्रोन के बढ़ते उपयोग के दो पक्ष हैं, एक आपूर्ति पक्ष एवं दूसरा मांग पक्ष। आपूर्ति पक्ष पर, निर्यातक देश दुनिया भर में ड्रोन को पहुंचाने में सफल हो रहे हैं क्योंकि ड्रोन बनाना लागत प्रभावी हो गया है, तकनीकी प्रगति के कारण ड्रोन बनाने की क्षमताओं में वृद्धि हुई है और उनके निर्यात को प्रतिबंधित करने वाले कोई औपचारिक वैश्विक नियम नहीं हैं।[xvi]
ड्रोन के बढ़ते उपयोग का मांग पक्ष ज्यादातर खतरे के माहौल का कारण बन गया है। सैन्य तैनाती (अमेरिका, चीन) या गठबंधन प्रतिबद्धताओं (अमेरिका एवं नाटो) के हिस्से के रूप में, अत्यधिक सुरक्षा खतरों (अज़रबैजान, इथियोपिया) का मुकाबला करने हेतु ड्रोन का उपयोग किया जा रहा है।[xvii] ज्यादातर देश सीमा विवाद, आतंकवाद, या उग्रवाद आदि से निपटने के लिए सुरक्षा खतरों का सामना करने हेतु ड्रोन का इस्तेमाल करते हैं। चीन के साथ भारत के सैन्य गतिरोध ने भारत को अपनी रक्षा सेवाओं को ऐसे ड्रोन से लैस करने हेतु प्रेरित किया है जो उसके उत्तरी हिस्से में अधिक ऊंचाई पर काम कर सकें। भारत बड़े, सशस्त्र ड्रोन भी चाहता है जो सटीक मिसाइलों से पाकिस्तानी सीमा के पार आतंकवादी शिविरों को निशाना बना सकें।[xviii] उदाहरण के लिए, फ्रांस ने अपनी निगरानी क्षमताओं को बढ़ाने और कथित विद्रोहियों एवं अल कायदा के सदस्यों को ट्रैक करने में मदद करने हेतु अमेरिका से हथियार-रहित एमक्यू-9 रीपर्स खरीदे।[xix] ड्रोन का उपयोग करने से किसी देश की निगरानी या हमला करने के मिशन में सुधार होता है जिससे देशों को अपने पायलटों को जोखिम में डालने से बचने की सुविधा मिलती है। इसके अलावा, ड्रोन में किसी भी लक्ष्य पर लंबे समय तक नज़र रखने की क्षमता होती है जिससे वास्तविक समय में जागरूकता मिलती है जो मानवयुक्त विमान से नहीं हो पाता हैं। यूएस आरक्यू-4 ग्लोबल हॉक ब्लॉक 40 से अमेरिकी निगरानी ड्रोन, यू-2 तक, मानवयुक्त निगरानी हवाई जहाज लगभग समान ऊंचाई पर उड़ता है, जबकि यू-2 कई घंटों तक हवा में रह सकता है, ग्लोबल हॉक किसी लक्ष्य के आसपास चौबीस घंटे तक घूम सकता है।[xx] इससे राज्य के सैनिकों, नागरिकों की सुरक्षा और दुश्मन के सैन्य लक्ष्यों को नष्ट करने का ड्रोन एक आसान तरीका प्रतीत होता है।
ड्रोन की अनूठी विशेषताओं से राज्य और गैर-राज्य अभिकर्ताओं को कई फायदे हैं, जिसके परिणामस्वरूप ड्रोन का प्रसार हुआ है, फिर भी, ऐसा नहीं कहा जा सकता कि ड्रोन तकनीक से कोई जोखिम नहीं है। सितंबर 2015 में, संयुक्त राष्ट्र के अपर महासचिव एवं निरस्त्रीकरण के लिए कार्यवाहक उच्च प्रतिनिधि, श्री किम वोन-सू ने कहा कि सशस्त्र यूएवी में "अनोखी विशेषताएं हैं जिसकी वजह से ये अन्य प्रौद्योगिकियों की तुलना में दुरुपयोग के प्रति अतिसंवेदनशील भी हो जाती हैं। इनकी लागत कम है, जिससे उनका तेजी से प्रसार हो सकता है; उनकी दृढ़ता एवं सटीकता, जो गुप्त सशस्त्र बलों और गैर-राज्य अभिकर्ताओं को गुप्त तीरके से एवं बिना किसी पारदर्शिता, निरीक्षण और जवाबदेही के इनका उपयोग करने को लुभा सकती है; और उनके संचालकों को जोखिम कम होता है, जिससे उनके उपयोग के लिए राजनीतिक सीमा भी नहीं है।"[xxi] विभिन्न आतंकवादी समूहों जैसे गैर-राज्य अभिकर्ताओं को, ड्रोन ने घातक बल का उपयोग करने के नए तरीके प्रदान किए हैं। कॉन्फ्लिक्ट आर्मामेंट रिसर्च (सीएआर) द्वारा किए गए केस स्टडीज के निष्कर्षों से पता चला है कि इराक और यमन में गैर-राज्य सशस्त्र समूह मुख्यतः कमर्शियल ड्रोन के ज़रिए अपने स्वयं के ड्रोन बनाकर आतंकवाद के लिए ड्रोन का उपयोग कर रहे हैं। इसके अलावा, आईएसआईएस ने हथियार-युक्त कमर्शियल ड्रोन घटकों के साथ एक प्रभावी ड्रोन कार्यक्रम के निर्माण में लाखों का निवेश किया है, जिसे अन्य आतंकवादी समूहों द्वारा तात्कालिक विस्फोटक उपकरणों के रूप में घातक बल का प्रयोग करने में कॉपी किया जा रहा है।[xxii]
ड्रोन के बढ़ते उपयोग ने ड्रोन से जुड़े जोखिमों से निपटने हेतु कई अंतरराष्ट्रीय प्रतिक्रियाएं उत्पन्न की हैं। संयुक्त राष्ट्र के पारंपरिक हथियारों के रजिस्टर एवं वासेनार व्यवस्था (जो दोहरे उपयोग वाली तकनीकी से संबंधित है) और एमटीसीआर (मिसाइल प्रौद्योगिकी नियंत्रण व्यवस्था) के माध्यम से कुछ देशों ने सशस्त्र ड्रोन के हस्तांतरण और रखने से संबंधित मुद्दों के समाधान के लिए कदम उठाए हैं।[xxiii] संयुक्त राज्य अमेरिका ने अपने ड्रोन हमलों के प्रभाव पर पारदर्शिता बढ़ाने के लिए 2016 के मध्य में कुछ प्रयास करने की घोषणा की, जिसके परिणामस्वरूप "सशस्त्र या स्ट्राइक-सक्षम यूएवी के निर्यात एवं उसके बाद उपयोग के लिए संयुक्त घोषणा" हुई।[xxiv] देशों ने माना है कि नागरिक सुरक्षा, अंतर्राष्ट्रीय शांति व सुरक्षा बनाए रखने और कानून के शासन के संबंध में ड्रोन के उपयोग से जुड़े जोखिम से निपटने के लिए ड्रोन को लेकर एक व्यापक कानूनी ढांचा तैयार करने का समय आ गया है।
भारत और इसका ड्रोन इकोसिस्टम
भारत आज की जटिल भू-राजनीतिक परिस्थितियों, चीन के साथ अपने सैन्य गतिरोध; पाकिस्तान के साथ प्रतिद्वंद्विता एवं आतंकवाद के खतरे में ड्रोन के महत्व को अच्छी तरह से समझता है।[xxv] जून 2021 में, भारत में ड्रोन द्वारा किया गया अपनी तरह का पहला आतंकवादी हमला हुआ, जिसमें जम्मू वायु सेना स्टेशन पर सेना के जवान घायल हो गए।[xxvi] इसके अलावा, विशेष रूप से पंजाब और जम्मू में हथियार, गोला-बारूद व ड्रग्स गिराने के लिए ड्रोन के इस्तेमाल के मामले देखे गए हैं। भारत लंबे समय से ड्रोन को लेकर सोच-विचार रहा है।[xxvii] भारत ड्रोन के सबसे बड़े आयातकों में से एक है और यह ज्यादातर ड्रोन इजराइल से आयात करता है। भारतीय सेना ने इज़राइल से हेरॉन I, सर्चर एमके II और हैरोप लॉटरिंग युद्ध सामग्री खरीदी है।[xxviii] भारतीय सेना ने हाल ही में इज़राइल से चार उन्नत ड्रोन (एडवांस्ड हेरॉन 2) खरीदे हैं जो एलएसी पर निगरानी रखने हेतु सैटेलाइट से जुड़े हैं। सेना ने चीन एवं पाकिस्तान के साथ सीमाओं पर अपनी परिचालन क्षमता बढ़ाने के लिए 100 से अधिक सामरिक भारत-इज़राइल कामिकेज़ ड्रोन का भी ऑर्डर दिया है, जिनका इस्तेमाल अज़रबैजान-आर्मेनिया युद्ध में किया गया था।[xxix] भारत को 31 सशस्त्र एमक्यू-9बी स्काई गार्जियन ड्रोन के अधिग्रहण हेतु अमेरिकी विदेश विभाग से भी मंजूरी मिल गई है।[xxx] आयात के अलावा, भारत का सार्वजनिक क्षेत्र स्वदेशी उत्पादन भी कर रहा है। 1990 से डीआरडीओ की निशांत मानवरहित हवाई वाहन बनाने की परियोजना से शुरू होकर ड्रोन भारत की सेना का एक महत्वपूर्ण हिस्सा रहे हैं।[xxxi] निशांत के अलावा, भारत ने रुस्तम, नेत्र आदि का निर्माण किया है। इंटेलिजेंस, निगरानी, लक्ष्य को भेदने और टोही (आईएसटीएआर) जैसे कार्यों में इस्तेमाल के लिए विकसित तापस मीडियम एल्टीट्यूड लॉन्ग एंड्योरेंस (एमएएलई) यूएवी निर्माण से पूर्व परीक्षणों के सबसे उन्नत चरण में है।
इसके अलावा, भारत स्वदेशी निजी सैन्य ड्रोन इकोसिस्टम पर भी जोर दे रहा है। प्रधानमंत्री मोदी का भारतीय कंपनियों पर ध्यान केंद्रित करने और ड्रोन जैसी नए युग की तकनीक को तेजी से अपनाने का दृष्टिकोण बहुत स्पष्ट है।[xxxii] नई तकनीक पर सरकार के जोर और भारतीय स्टार्टअप्स द्वारा दिखाए गए उत्साह के बीच, भारत अपने स्वदेशी सैन्य ड्रोन इकोसिस्टम को बनाने पर गंभीरता से विचार कर रहा है। अगस्त 2021 में केंद्र सरकार द्वारा ड्रोन प्रौद्योगिकियों के लिए नए नियम अधिसूचित किए गए थे। 'ड्रोन नियम 2021' के माध्यम से, भारत सरकार का लक्ष्य अपने उभरते स्वदेशी ड्रोन उद्योग को बढ़ावा देना है, खासकर जब सरकार देश में एक मजबूत सैन्य-औद्योगिक परिसर बनाने की तैयारी कर रही है।
भारत में कई ड्रोन निर्माता ऊभरे हैं और भारत में शीर्ष ड्रोन निर्माताओं में आइडियाफोर्ज, आरव अनमैन्ड सिस्टम (एयूएस), एस्टेरिया एयरोस्पेस, आईओटेक एवं हब्बल फ्लाई शामिल हैं। सेना लगातार देश में निजी ड्रोन कंपनियों से जुड़ रही है। उदाहरण के लिए, बेंगलुरु स्थित भारतीय स्टार्टअप न्यूस्पेस रिसर्च एंड टेक और नोएडा स्थित फर्म रैपे के साथ स्वार्म ड्रोन के लिए दो सौदों पर हस्ताक्षर किए गए थे। 2021 में फिर से भारतीय सेना, नौसेना और वायु सेना ने भारतीय कंपनियों पर ध्यान केंद्रित करते हुए ड्रोन प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में कई अनुबंधों पर हस्ताक्षर किए।[xxxiii] जनवरी में, आइडियाफोर्ज को अपने स्विच 1.0 यूएवी के लिए 20 मिलियन डॉलर का ड्रोन अनुबंध मिला, जिसे भारतीय सशस्त्र बलों में शामिल किया जाएगा।[xxxiv] ये यूएवी लंबी अवधि के संचालन, लंबे समय तक निगरानी और सुरक्षा निरीक्षण में सक्षम हैं। भारतीय कंपनी ज़ेन को भारतीय वायु सेना से काउंटर मानवरहित हवाई प्रणाली विकसित करने का ऑर्डर मिला है।
भारतीय निजी ड्रोन उद्योग अपने पंख फैला रहा है लेकिन अभी भी शुरुआती चरण में है लेकिन संभावनाएं काफी अधिक हैं। अनुमान है कि भारत अगले दशक में ड्रोन का अरबों डॉलर का उद्योग विकसित करेगा।[xxxv] नवोन्मेष, सूचना प्रौद्योगिकी, लागत प्रभावी इंजीनियरिंग और उच्च स्थानीय मांग में अपनी क्षमता के कारण, भारत 2030 तक विश्वव्यापी ड्रोन हब बनने की क्षमता रखता है। ड्रोन आयात के लिए अन्य देशों पर निर्भरता कम करने हेतु भारत धीरे-धीरे स्वदेशी ड्रोन इकोसिस्टम के लिए रास्ता बना रहा है।
निष्कर्ष
ड्रोन 21वीं सदी की एक महत्वपूर्ण विशेषता बन गए हैं और दुनिया भर में ड्रोन का उपयोग तेजी से बढ़ा है। हालाँकि ड्रोन से सेना को कई फायदे होते हैं क्योंकि इससे सेना के जवानों के लिए जोखिम कम होता है, बेहतर निगरानी और खुफिया जानकारी एकत्र करने के माध्यम से स्थितिजन्य जागरूकता बढ़ती है जिससे यह एक तरफ विश्वास को बढ़ावा देता है लेकिन दूसरी तरफ युद्ध को आसान बनाकर बल के उपयोग की सीमा को कम करता लेकिन दूसरी ओर यह युद्ध को आसान बनाकर बल प्रयोग की सीमा को कम कर देता है और गैर-राज्य अभिकर्ताओं और आतंकवादी समूहों के हाथों में ड्रोन के पड़ने का डर भी कम हो जाता है। इससे ड्रोन के उत्पादन, उपयोग एवं हस्तांतरण के लिए अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सहमत सिद्धांतों और विनियमों के साथ संरेखित करने की तत्काल आवश्यकता का पता भी चलता है।
*****
*अनुभा गुप्ता, रिसर्च एसोसिएट, भारतीय वैश्विक परिषद, नई दिल्ली
अस्वीकरण: व्यक्त किए गए विचार व्यक्तिगत हैं।
डिस्क्लेमर: इस अनुवादित लेख में यदि किसी प्रकार की त्रुटी पाई जाती है तो पाठक अंग्रेजी में लिखे मूल लेख को ही मान्य माने ।
पाद-टिप्पणियाँ
[i] Matthew Fuhrmann and Michael C. Horowitz, “Droning On: Explaining the Proliferation of Unmanned Aerial Vehicles”, International Organisation, vol. 71, no. 2 (2017), pp.397-418. Available at file:///C:/Users/Dr%20Puyam/Downloads/S0020818317000121.pdf, Accessed on 5th January 2024.
[ii] Snehesh Alex Philip, “Drones won the war for Azerbaijan. India must spend military modernisation money wisely,” ThePrint, November 20, 2020, Available at https://theprint.in/opinion/brahmastra/drones-won-war-for-azerbaijan-india-must-spend-military-modernisation-money-wisely/548029/, Accessed on 7th January 2024
[iii] Is a term popularized by American political scientist Graham T. Allison to describe an apparent tendency towards war when an emerging power threatens to displace an existing great power as a regional or international hegemon.
[iv] https://www.thefreedictionary.com/UAV
[v] Sam Daley, “Drone Technology: What is a Drone,”BuiltIn, March 23, 2023, Available at https://builtin.com/drones
, Accessed on 10th January 2024.
[vi] John Borrie, Elena Finckh and Kerstin Vignard, “Increasing Transparency, Oversight and Accountability of Armed Unmanned Aerial Vehicles,” UNIDIR, December 1, 2017, Available at https://unidir.org/publication/increasing-transparency-oversight-and-accountability-of-armed-unmanned-aerial-vehicles/ Accessed on 12th January, 2024
[vii] Ibid
[viii] Warren B. Strobel, “Military Drones Now Common to Nearly 100 Nations, Report Finds,” The Wall Street Journal, September 25, 2019, Available at https://www.wsj.com/articles/military-drones-now-common-to-nearly-100-nations-report-finds-11569403805 Accessed on 12th January, 2024
[ix] Ibid
[x] https://www.newamerica.org/future-security/reports/world-drones/introduction-how-we-became-a-world-of-drones/
[xi]https://www.newamerica.org/future-security/reports/world-drones/introduction-how-we-became-a-world-of-drones/#:~:text=According%20to%20SIPRI's%20arms%20transfers,largest%20importers%20of%20drones%20internationally.
[xii]Steven Feldstein, “How Global Demand for Military Drones is Transforming International Security and Geopolitics,” Carnegie Endowment for International Peace, December 6, 2023, Available at https://carnegieendowment.org/publications/91222#:~:text=Military%20use%20of%20drones%20is,capabilities%2C%20and%20minimal%20export%20restrictions. Accessed on 17th January, 2024
[xiii]Drone proliferation is on the rise and so is the need for international regulation, PaxforPeace, November 30, 2023, Available at https://paxforpeace.nl/news/drone-proliferation-is-on-the-rise-and-so-is-the-need-for-international-regulation/#:~:text=international%20regulation%20%2D%20PAX-,Drone%20proliferation%20is%20on%20the%20rise%20%E2%80%93%20and%20so,the%20need%20for%20internati Accessed on 17th January, 2024.
[xiv] Michael C. Horowitz, Sarah E. Kreps, Matthew Fuhrmann; Separating Fact from Fiction in the Debate over Drone Proliferation. International Security vol.42, no. 2 (2016), Available at doi: https://doi.org/10.1162/ISEC_a_00257 Accessed on 24th January 2024.
[xv] Ibid
[xvi] Steven Feldstein, “How Global Demand for Military Drones is Transforming International Security and Geopolitics,” Georgetown Journal of International Affairs, Johns Hopkins University Press, vol. 24, no.2 (2023), 146-155. Available at https://muse.jhu.edu/pub/1/article/913640/pdf accessed on 24th January, 2024.
[xvii] Ibid.
[xviii] Sandeep Unnithan, “Raising a swarm,” India Today, November 2, 2020, Available at https://www.indiatoday.in/magazine/defence/story/20201102-raising-a-swarm-1734183-2020-10-23 Accessed on 28th January 2024
[xix] Matthew Fuhrmann and Michael C. Horowitz, “Droning On: Explaining the Proliferation of Unmanned Aerial Vehicles”, International Organisation, vol. 71, no. 2 (2017), pp.397-418. Available at file:///C:/Users/Dr%20Puyam/Downloads/S0020818317000121.pdf, Accessed on 5th January, 2024.
[xx] Ibid.
[xxi] Elena Finckh, John Borrie and Kerstin Vingard (2017), “Increasing-transparency-oversight-and-accountability-of-armed-unmanned-aerial-vehicles,”UNIDIR, Available at https://unidir.org/publication/increasing-transparency-oversight-and-accountability-of-armed-unmanned-aerial-vehicles/ Accessed on 30th January, 2024
[xxii] Ibid
[xxiii] Elena Finckh, John Borrie and Kerstin Vingard (2017), “Increasing-transparency-oversight-and-accountability-of-armed-unmanned-aerial-vehicles,”UNIDIR, Available at https://unidir.org/publication/increasing-transparency-oversight-and-accountability-of-armed-unmanned-aerial-vehicles/ Accessed on 5th Feb 2024
[xxiv] Ibid.
[xxv] Pintu Kumar Mahla, “Military Drones in India New Frontier of Warfare,” IDSA, Available at https://idsa.in/system/files/jds/jds-16-4_Pintu-Kumar-Mahla_15.pdf Accessed on 5th Feb 2024
[xxvi] Rakshit Kweera, “Drones: An Emerging Threat on the Volatile India-Pakistan Border,” The Diplomat, Available at https://thediplomat.com/2023/05/drones-an-emerging-threat-on-the-volatile-india-pakistan-border/#:~:text=India%20witnessed%20a%20significant%20drone,improvised%20explosive%20devices%20(IEDs). Accessed on
[xxvii]Pia Krishnankutty, “Why India’s drone market could become a multi-billion-dollar industry in next decade,” The Print, July 23, 2021, Available at https://theprint.in/india/governance/why-indias-drone-market-could-become-a-multi-billion-dollar-industry-in-next-decade/700817/ Accessed on 10th Feb 2024
[xxviii] Ibid
[xxix] Snehesh Alex Philip, “Drones won the war for Azerbaijan. India must spend military modernisation money wisely,” ThePrint, November 20, 2020, Available at https://theprint.in/opinion/brahmastra/drones-won-war-for-azerbaijan-india-must-spend-military-modernisation-money-wisely/548029/ , Accessed on 7th January 2024
[xxx] “India to acquire 31 MQ-9B armed drones from US. All you need to know about the deal,” Livemint, February 6, 2024, Available at https://www.livemint.com/news/world/india-to-acquire-31-mq-9b-armed-drones-from-us-all-you-need-to-know-about-the-deal-11707189402807.html Accessed on 9th Feb 2024
[xxxi] Pintu Kumar Mahla, “Military Drones in India New Frontier of Warfare,” IDSA, Available at https://idsa.in/system/files/jds/jds-16-4_Pintu-Kumar-Mahla_15.pdf Accessed on 5th Feb 2024
[xxxii] Snehesh Alex Philip, “Drones won the war for Azerbaijan. India must spend military modernisation money wisely,” ThePrint, November 20, 2020, Available at https://theprint.in/opinion/brahmastra/drones-won-war-for-azerbaijan-india-must-spend-military-modernisation-money-wisely/548029/ , Accessed on 7th January 2024
[xxxiii] Ibid
[xxxiv] ideaForgeI, Available at https://ideaforgetech.com/blogs/indian-army-signs-a-20-million-contract-with-ideaforge-to-procure-switch-uav , Accessed on 9th Feb 2024
[xxxv] Pia Krishnankutty, “Why India’s drone market could become a multi-billion-dollar industry in next decade,” The Print, July 23, 2021, Available at https://theprint.in/india/governance/why-indias-drone-market-could-become-a-multi-billion-dollar-industry-in-next-decade/700817/ Accessed on 10th Feb 2024