दिनांक 23 फरवरी 2024 को, पाकिस्तान की अंतरिम सरकार की कैबिनेट कमिटी ऑन एनर्जी (सीसीओई) ने ईरान-पाकिस्तान (आईपी) गैस पाइपलाइन परियोजना पर निर्माण कार्य को मंजूरी दी। शहबाज शरीफ के दोबारा प्रधानमंत्री बनने से इस परियोजना को और गति मिली है। 25 मार्च को, सीसीओई के प्रमुख के रूप में, शरीफ ने ईरान-पाकिस्तान परियोजना में तेजी लाने हेतु तुरंत एक अंतर-मंत्रालयी समिति गठित करने का निर्देश जारी किया।[i] यह निर्णय 2775 किलोमीटर लंबी पाइपलाइन के पूरा होने में लगभग एक दशक की देरी के बाद लिया गया है, जिसमें से 781 किलोमीटर पाकिस्तान के अंदर बनना है। हालांकि, ईरान ने पाइपलाइन का अपना हिस्सा पूरा कर लिया है, लेकिन पाकिस्तान बार-बार प्रतिबद्धता दर्शाने के बावजूद परियोजना का निर्माण शुरू करने में असमर्थ रहा है। ऐसी देरी का कारण पश्चिम के 'बाहरी दबाव' को ठहराया गया है। संयुक्त राज्य अमेरिका (यूएस), संयुक्त राष्ट्र (यूएन), यूरोपीय संघ (ईयू) और अन्य देशों ने ईरान पर परमाणु गतिविधियों को आगे बढ़ाने पर प्रतिबंध लगाए हुए हैं। ऐसे में सवाल उठता है कि जब इस तरह का दबाव लगातार बना हुआ है तो पाकिस्तान अब आईपी गैस पाइपलाइन के निर्माण पर आगे क्यों बढ़ रहा है? इस्लामाबाद की मंजूरी का समय एवं परियोजना से जुड़ी भू-राजनीतिक जटिलताएँ ध्यान देने योग्य हैं।
ईरान-पाकिस्तान पाइपलाइन की पृष्ठभूमि
दोनों देशों के बीच प्रारंभिक समझौते पर हस्ताक्षर किए जाने के बाद ईरान-पाकिस्तान गैस पाइपलाइन पर पहली बार 1995 में सहमति बनी थी। यह ऐसी परियोजना है जिसका उद्देश्य ईरान में दक्षिण पारस गैस क्षेत्र से पाकिस्तान में सिंध (ग्वादर और नवाबशाह) तक गैस पहुंचाना है। 1999 तक, भारत को इसका हिस्सा बनने हेतु आमंत्रित किया गया, जिससे इसका नाम ईरान-पाकिस्तान-भारत (आईपीआई) पाइपलाइन हो गया था, जिसे नई दिल्ली तक विस्तारित किया जाना था। इसपर थोड़ी बहुत प्रगति होने से पहले ही भारत ने 2009 में इस परियोजना से खुद को अलग कर लिया। ईरान को भी उम्मीद थी कि चीन और बांग्लादेश इस परियोजना से जुड़ेंगे, [ii] लेकिन ऐसा नहीं हुआ।
2010 में, ईरान और पाकिस्तान दोनों ने पाइपलाइन के अपने संबंधित खंडों को 2014 तक पूरा करने हेतु अंकारा में एक समझौते पर हस्ताक्षर किए। 2011 में, ईरान ने घोषणा की कि पाइपलाइन का उसका खंड पूरा होने वाला है। पाकिस्तान ने देरी का कारण धन की कमी बताते हुए इस पर काम शुरू नहीं किया था। तेहरान ने पाइपलाइन के लिए इस्लामाबाद को 500 मिलियन अमेरिकी डॉलर का ऋण देने की पेशकश की, उस समय पाकिस्तान के लिए इसकी लागत 1.5 बिलियन अमेरिकी डॉलर आंकी गई थी। पाइपलाइन की कुल लागत 7 बिलियन अमेरिकी डॉलर है।[iii] इस्लामाबाद को पता था कि अगर वह परियोजना को समय पर पूरा नहीं कर पाया तो उसे प्रतिदिन 1 मिलियन अमेरिकी डॉलर का जुर्माना देना होगा। जुर्माने के डर से, तत्कालीन राष्ट्रपति आसिफ अली जरदारी ने मार्च 2013 में अपने ईरानी समकक्ष के साथ पाइपलाइन के निर्माण कार्य का उद्घाटन किया और तत्कालीन प्रधानमंत्री नवाज शरीफ ने इसपर पाकिस्तान की प्रतिबद्धता को पूरा करने का वादा किया।
लेकिन इन आश्वासनों के बावजूद, 2014 तक, आईपी पाइपलाइन परियोजना न केवल समय पर पूरी नहीं हुई बल्कि एक कदम पीछे ही चली गई क्योंकि पाकिस्तान इस परियोजना को बंद करने पर विचार करने लगा और ईरान ने पाकिस्तान को प्रस्तावित ऋण वापस ले लिया।
2019 में, ईरान ने पाकिस्तान पर इस परियोजना को छोड़ने पर कानूनी कार्रवाई करने की बात कही। समझौते पर बार-बार आगे बढ़ने और फिर भी परियोजना शुरू करने में असमर्थ होने के बाद, पाकिस्तान ने जून 2023 में गैस बिक्री एवं खरीद समझौते (जीएसपीए) के तहत ईरान को अप्रत्याशित घटना नोटिस[iv] जारी किया। ईरान ने इस नोटिस का खंडन किया, लेकिन जीएसपीए में संशोधन किया गया ताकि पाइपलाइन के निर्माण के लिए पाकिस्तान को पांच साल और दिए जाएं। इस बीच, पाकिस्तान को ईरान को 2023 तक 18 बिलियन अमेरिकी डॉलर का जुर्माना देना पड़ा, [v] जिसकी सूचना पाकिस्तान की सार्वजनिक खाता समिति को दी गई थी।
पाकिस्तान में गहराते ऊर्जा संकट के बोझ को कम करने हेतु आईपी गैस पाइपलाइन को एक प्रासंगिक परियोजना के रूप में प्रचारित किए जाने के साथ, सीसीओई ने इस वर्ष 23 फरवरी को पाइपलाइन के निर्माण के पहले चरण को मंजूरी दे दी। 80 किलोमीटर के खंड को गैस इंफ्रास्ट्रक्चर डेवलपमेंट सेस (जीआईडीसी) द्वारा वित्तपोषित किया जाना है और पाकिस्तान के इंटरस्टेट गैस सिस्टम्स (प्राइवेट) लिमिटेड (आईएसजीएस) द्वारा निष्पादित किया जाना है।
देरी के पीछे की भू-राजनीति
ईरान-पाकिस्तान पाइपलाइन में देरी का कारण ईरान पर लगाए गए प्रतिबंध बताए जा रहे हैं। संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद ने विगत कुछ वर्षों में छह प्रस्तावों के माध्यम से ईरान पर विभिन्न प्रतिबंध लगाए थे, जिन्हें अक्टूबर 2023 तक हटा दिया गया था। इसके अलावा, ईरान पर लगाया गया अमेरिकी प्रतिबंध न केवल तेहरान के परमाणु कार्यक्रम से संबंधित हैं, बल्कि मानवाधिकारों के उल्लंघन और कथित तौर पर आतंकी गतिविधियों के लिए उकसाने से भी संबंधित हैं। इनमें से कई प्रतिबंधों पर यूरोपीय संघ का समर्थन हैं और आगे जारी रहेंगे। कथित तौर पर, 2013 में, अमेरिका ने पाकिस्तान को चेतावनी दी थी कि अगर वह आर्थिक प्रतिबंधों से बचना चाहता है तो वह ईरान-पाकिस्तान पाइपलाइन परियोजना छोड़ दे। इसके बजाय, अमेरिका ने एक तरलीकृत प्राकृतिक गैस (एलएनजी) टर्मिनल बनाने का सुझाव दिया, जिसके लिए वाशिंगटन मदद करने को तैयार था।[vi] इसके अलावा, इस वैकल्पिक परियोजनाओं को पाकिस्तान के लिए अधिक उपयुक्त बताया गया है, जिस पर इस्लामाबाद ने कहा है कि वह इसपर विचार करेगा। गौरतलब है कि पाकिस्तान कतर से अपना एलएनजी आयात बढ़ा रहा है।
ईरान-पाकिस्तान पाइपलाइन के निर्माण में देरी की वजह वित्तीय सहायता और ऋण से भी संबंधित है जो पाकिस्तान को उनसे मिल रही है जिन्होंने तेहरान के साथ इस्लामाबाद की इस परियोजना का विरोध किया था। उदाहरण के लिए, पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था मंदी में है और यह पैसे के लिए अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) पर बहुत अधिक निर्भर है। ऐसे समय में ईरान पर पश्चिमी देशों के रुख को चुनौती देने से पाकिस्तान की परेशानी बढ़ सकती है। जून 2023 में, पाकिस्तान ने बताया कि वह आईपी पाइपलाइन पर काम शुरू करने में असमर्थ है।[vii] इसपर ध्यान दिया जा सकता है कि उस समय, पाकिस्तान स्टैंड-बाय अरेंजमेंट (एसबीए) के माध्यम से 3 बिलियन अमेरिकी डॉलर का ऋण पाने के लिए आईएमएफ के साथ बातचीत कर रहा था।[viii] ईरान के साथ इस्लामाबाद की परियोजना का विरोध सऊदी अरब के साथ-साथ कतर में भी दिखाई दे रहा था। दोनों देशों ने पाकिस्तान को उसके आर्थिक संकट से उबरने में मदद करने हेतु धन देकर सहायता की है, हालांकि ईरान के साथ दोनों के अपने मतभेद हैं जिससे क्षेत्र में भू-राजनीतिक तनाव बढ़ता है।
अब परियोजना पर आगे क्यों बढ़ रहे हैं?
पाकिस्तान द्वारा अब आईपी के निर्माण को आगे बढ़ाने के तीन मुख्य कारण बताएं जा सकते हैं। सबसे पहला, पाकिस्तान पर आईपी परियोजना के लिए जो 18 बिलियन अमेरिका डॉलर का जुर्माना लगा है, वह इस्लामाबाद के लिए बहुत अधिक है। मुख्यतः अमेरिका की वजह से आईएमएफ से लंबित ऋणों के कारण पाकिस्तान को इस परियोजना में देरी करने हेतु मजबूर होना पड़ा। पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था लगातार मंदी में है और आईएमएफ के विस्तारित सुविधा कोष की नौवीं किश्त पर फिलहाल बातचीत चल रही है। हालाँकि, इस्लामाबाद की मजबूरियाँ अब थोड़ी अलग हैं। पाकिस्तान पिछले साल आईएमएफ से ऋण पाने में कामयाब रहा और इस वर्ष अगले दौर का ऋण मिलने की उम्मीद है। दूसरी ओर, नई सरकार आने के बाद, इस्लामाबाद अपने उभरते ऊर्जा संकट को लेकर अधिक चिंतित है। यह इस बात से पता चलता है कि शहबाज शरीफ खुद सीसीओई का नेतृत्व कर रहे हैं और स्थिति को बेहतर बनाने हेतु निर्देश जारी कर रहे हैं।
देश की ऊर्जा ज़रूरतें बढ़ती जा रही हैं और बुनियादी वस्तुओं की कीमतों के साथ-साथ आयात का खर्च भी बढ़ रहा है। आईपी पाइपलाइन चालू हो जाने पर, पाकिस्तान को प्रतिदिन 750 मिलियन क्यूबिक फीट सस्ती गैस उपलब्ध होने की उम्मीद है, जो प्रति माह सात एलएनजी कार्गो के बराबर है।[ix] पाइपलाइन के लिए पैसा जीआईडीसी के पास उपलब्ध है, बस इसके जारी होने का इंतजार है। इसलिए, पाइपलाइन के निर्माण में और देरी पाकिस्तान के लिए हानिकारक है। इसकी जानकारी अमेरिका को भी दे दी गई है।[x]
दूसरा, जहां इस्लामाबाद कथित तौर पर ईरान के साथ सहयोग में अमेरिका द्वारा लगाए गए प्रतिबंधों से छूट मांग रहा है, [xi] वहीं उसे तेहरान के साथ विभिन्न मुद्दों पर बातचीत भी करनी पड़ रही है। ईरान और पाकिस्तान के लिए साल की शुरुआत ख़राब रही। ईरान ने पाकिस्तान के बलूचिस्तान प्रांत में आतंकवादी समूह जैश अल-अदल पर मिसाइल हमले किए। इज़राइल-हमास युद्ध और ईरान द्वारा इराक एवं सीरिया में इसी तरह के हमलों की पृष्ठभूमि में, पाकिस्तान ने जवाबी हमले किए और ईरान से अपने दूत पाकिस्तान से वापस बुला लिया। हालाँकि स्थिति जल्द ही सामान्य हो गई, आईपी पाइपलाइन को हरी झंडी देकर, पाकिस्तान को ईरान के साथ अपने संबंधों को सुचारू बनाए रखने की उम्मीद है। इसके अलावा, ईरान ने सितंबर 2024 तक आईपी परियोजना को पूरा करने हेतु पाकिस्तान को 180 दिनों की समय अवधि बढ़ाई है। इसका मतलब यह निकाला जा सकता है कि ईरान इस्लामाबाद को अंतर्राष्ट्रीय मध्यस्थता न्यायालय में खींचने के बजाय पाकिस्तान के साथ समझौता करने के लिए अधिक इच्छुक है। ऐसा प्रतीत होता है कि यह पाकिस्तान के लिए आईपी पाइपलाइन को पटरी पर लाने का एक अवसर है।
तीसरा, अनवार-उल-हक काकर के नेतृत्व वाली अंतरिम सरकार थी जिसने आईपी पाइपलाइन पर काम शुरू करने के लिए हरी झंडी दी थी। ऐसा कहा जाता है कि कक्कड़, जो बलूचिस्तान से हैं (और बलूचिस्तान अवामी पार्टी से हैं), मानते हैं कि पड़ोसी ईरान के साथ गैस पाइपलाइन एक महत्वपूर्ण परियोजना है और इस तरह के समझौते के महत्व को बेहतर ढंग से आंकते हैं। जब कक्कड़ सरकार ने पाइपलाइन पर निर्णय लिया, तब तक यह भी स्पष्ट था कि शरीफ और जरदारी के नेतृत्व वाला गठबंधन जल्द ही केंद्र में सत्ता में आएगा, वही गठबंधन जिसने 2013 में आईपी पाइपलाइन का उद्घाटन एवं प्रचार किया था। उस समय, भू-राजनीतिक कारणों से प्रतिबद्धता के बावजूद परियोजना को छोड़ दिया गया था। इस बार, प्रधानमंत्री के रूप में शहबाज शरीफ संघीय गठबंधन का नेतृत्व कर रहे हैं और आसिफ अली जरदारी राष्ट्रपति के रूप में सत्ता में वापस आ रहे हैं, इसलिए परियोजना के पूरा होने की संभावना जताई जा रही है।
निष्कर्ष
पाकिस्तान पिछले साल देश में फैली नागरिक अशांति से बाहर निकलने के रास्ते तलाशने की कोशिश कर रहा है। इसके लिए, इस्लामाबाद के लिए ऊर्जा संकट को कम करने, अपनी अर्थव्यवस्था को फिर से पटरी पर लाने और अपने पड़ोसियों एवं सहयोगियों के साथ अपने संबंधों को प्रबंधित करना महत्वपूर्ण है। आईपी पाइपलाइन समझौते के आगे बढ़ने से ऐसा करने में मदद मिलने की उम्मीद है। इस पूरे घटनाक्रम पर उन पक्षों की ओर से कोई आधिकारिक बयान नहीं दिया गया है जो ईरान और पाकिस्तान के बीच आईपी समझौते के विरोध में हैं। फिर भी, लंबे समय में ईरान के साथ अपने समझौते से लाभ उठाने के लिए पाकिस्तान को कूटनीतिक रूप से निपुण होना होगा।
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डॉ. श्रबना बरुआ भारतीय वैश्विक परिषद में शोध-अध्येता हैं।
लेखक द्वारा व्यक्त किये गये विचार व्यक्तिगत हैं।
डिस्क्लेमर: इस अनुवादित लेख में यदि किसी प्रकार की त्रुटी पाई जाती है तो पाठक अंग्रेजी में लिखे मूल लेख को ही मान्य माने ।
अंत टिप्पण
[i] Ahmad Ahmadani, “PM hurries the petroleum division into kickstarting 14-year old gas pipeline project to avoid penalties”, Profit, 25 March. 2024, URL: https://profit.pakistantoday.com.pk/2024/03/25/pm-hurries-the-petroleum-division-into-kickstarting-14-year-old-gas-pipeline-project-to-avoid-penalties/#:~:text=ISLAMABAD%3A%20Fourteen%20years%20after%20the,of%20the%20long%2Dpending%20Iran%2D.
[ii] Muhammad Munir, Muhammad Ahsan and Saman Zulfqar, (2014), Iran-Pakistan Gas Pipeline: Cost-Benefit Analysis, Islamabad Policy Research Institute, URL: https://ipripak.org/iran-pakistan-gas-pipeline-cost-benefit-analysis/.
[iii] Ibid.
[iv] Force Majeure is invoked when a party seeks exemption from liability due to non-performance caused by an event beyond its control, referring to it as an ‘act of God’.
[v] Khaleeq Kiani, “Gas pipline green-lit to avoid Iranian penalty”, Dawn, 24 February 2024, URL: https://www.dawn.com/news/1816640.
[vi] Muhammad Munir, Muhammad Ahsan and Saman Zulfqar, (2014), Iran-Pakistan Gas Pipeline: Cost-Benefit Analysis, Islamabad Policy Research Institute, URL: https://ipripak.org/iran-pakistan-gas-pipeline-cost-benefit-analysis/.
[vii] Sajjad Hussain, “Pakistan, Turkmenistan sign joint implementation plan to execute TAPI gas pipeline project”, The Print, 8 June 2023,URL: https://theprint.in/world/pakistan-turkmenistan-sign-joint-implementation-plan-to-execute-tapi-gas-pipeline-project/1618579/.
[viii] International Monetary Fund, “IMF Executive Board Approves US$3 billion Stand-By Arrangement for Pakistan”, 12 July, 2023, URL: https://www.imf.org/en/News/Articles/2023/07/12/pr23261-pakistan-imf-exec-board-approves-us3bil-sba.
[ix] X, @AbdulRehman0292, URL: https://twitter.com/AbdulRehman0292/status/1761259055299903706.
[x] “Pakistan says no basis for US objection to construction of Iran gas pipeline”, Arab News Pakistan, 7 March, 2024, URL: https://www.arabnews.pk/node/2472666/pakistan.
[xi] OILPRICE.COM, “Pakistan Considers Iran Gas Pipeline Restart Despite U.S. Sanctions”, 22 February, 2024, URL: https://oilprice.com/Energy/Natural-Gas/Pakistan-Considers-Iran-Gas-Pipeline-Restart-Despite-US-Sanctions.html.