जनवरी 2024 की शुरुआत में भारत के पश्चिमी में स्थित गांधीनगर शहर में आयोजित 10वें वाइब्रेंट गुजरात वैश्विक शिखर सम्मेलन के मौके पर भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और तिमोर-लेस्ते के राष्ट्रपति डॉ. जोस रामोस होर्टा के बीच हुई बातचीत, दोनों देशों के सरकार के प्रमुख या राष्ट्र प्रमुख स्तर पर इस तरह की पहली बातचीत थी। हालाँकि दोनों नेताओं ने शिखर सम्मेलन के दौरान बातचीत की, जिसमें उनके समकालीनों एवं अन्य देशों के समकक्षों ने भी हिस्सा लिया, यह जुड़ाव नई दिल्ली और दिली के लिए, विशेष रूप से इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में, अत्यधिक भू-आर्थिक एवं भू-राजनीतिक महत्व रखता है।
शिखर सम्मेलन में भाग लेने हेतु भारतीय प्रधानमंत्री द्वारा राष्ट्रपति डॉ. जोस रामोस होर्टा को दिया गया निमंत्रण न केवल सद्भावना का संकेत था, बल्कि यह इंडो-पैसिफिक दृष्टिकोण के ढांचे के अंतर्गत भारत की विदेश नीति के संदर्भ में दक्षिण पूर्व एशियाई क्षेत्र की बढ़ती अहमियत का भी संकेत था। प्रधानमंत्री मोदी ने इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में दक्षिण पूर्व एशियाई देशों के संगठन (आसियान) के महत्व की पुनः पुष्टि की, विशेष रूप से इस बात को देखते हुए कि तिमोर-लेस्ते क्षेत्रीय ब्लॉक (मानचित्र देखें: I) में शामिल होने को तैयार है। दोनों नेताओं के बीच यह बातचीत भारत द्वारा सितंबर 2023 में दिली में दूतावास स्थापित करने की घोषणा के महीनों बाद हुई है जिससे 'तिमोर लेस्ते की विकास प्राथमिकताओं को पूरा करने' में सुविधा मिलेगी।[i]
मानचित्र I: तिमोर-लेस्ते की अवस्थिति
स्रोत: "तिमोर-लेस्ते", इनसाइट आईएएस, 11 सितंबर, 2023, https://www.insightsonindia.com/2023/09/11/timor-leste/ , 19 फरवरी, 2024 को एक्सेस किया गया।
पूर्वी तिमोर: संघर्ष से भरे इतिहास से जागती हुई उम्मीद
तिमोर-लेस्ते का समकालीन इतिहास उस जटिलता का प्रतिबिंब माना जा सकता है जो दक्षिण पूर्व एशिया से अभिन्न है, क्योंकि तिमोर-लेस्ते की स्वतंत्रता का मार्ग लंबे समय तक संघर्ष और रक्तपात से भरा हुआ था।
28 नवंबर, 1975 को, तिमोर, जो उस समय एशिया में पुर्तगाल का एकमात्र उपनिवेश था, ने अपनी स्वतंत्रता की एकतरफा घोषणा कर दी। हालाँकि, यह स्वतंत्रता अल्पकालिक ही थी क्योंकि 7 दिसंबर, 1975 को पड़ोसी देश इंडोनेशिया की सेना ने हाल ही में बने इस राज्य पर कब्ज़ा कर लिया। उस वक्त जकार्ता ने इसका प्रत्यक्ष कारण साम्यवाद के प्रसार का डर बताया था, विशेष रूप से वियतनाम में संयुक्त राज्य अमेरिका के खिलाफ वियतनाम कांग्रेस की जीत के संदर्भ में। यही कारण था कि कुछ देश, जिनमें दक्षिण पूर्व एशिया के देश भी शामिल थे, जकार्ता और उसके कार्यों के प्रति सहानुभूति रखते थे।
हालाँकि, नवंबर 1975 से पहले के वर्ष भी तिमोर के लिए उथल-पुथल भरे समय थे, क्योंकि पुर्तगाली तिमोर का राजनीतिक परिदृश्य प्रतिस्पर्धी एवं स्पर्धात्मक राजनीतिक संस्थाओं द्वारा एक-दूसरे से आगे निकलने की कोशिश से बिगड़ गया था। यह फ्रेटिलिन (पुर्तगाली में फ़्रेन्टे रेवोलुसिओनारिया डे तिमोर-लेस्ते इंडिपेंडेंट, या स्वतंत्र पूर्वी तिमोर का क्रांतिकारी मोर्चा), अपने वामपंथी क्रांतिकारी उग्रवादी राजनीतिक झुकाव के साथ, राजनीतिक परिदृश्य पर हावी हो गया। फ्रेटिलिन के उदय तथा तिमोर की राजनीति के केंद्र में इसकी भूमिका ने कई देशों के बीच चिंता पैदा कर दी, जिन्हें साम्यवाद और वामपंथी राजनीति को कड़ी आपत्ति थी, जिसमें इंडोनेशिया भी शामिल था, जिसने अंततः 17 जुलाई, 1976 को 14,874 वर्ग किमी के इस क्षेत्र पर कब्जा कर लिया।[ii]
इंडोनेशिया द्वारा आक्रमण और उसके बाद के कब्जे से प्रतिरोध का उदय हुआ, जिसके कारण 1999 तक लगभग 90,000-115,000 लोगों की जान चली गई। लगभग ढाई दशकों में गई जिंदगियों में से, यह अनुमान लगाया गया है कि 73,000-95,000 लोगों की मौत भूख और बीमारी से हुई थी, और बाकी मौतों का कारण युद्ध और लक्षित मानवाधिकार उल्लंघनों को माना जा सकता है।[iii] इन नुकसानों और इंडोनेशियाई प्रशासन के कड़े दृष्टिकोण के बावजूद, फ्रेटिलिन ने जनता के बीच अपनी राजनीतिक अपील नहीं खोई और जकार्ता के मुकाबले अपने प्रतिरोध को बनाए रखने में कामयाब रहा।
हालाँकि, दो प्रमुख प्रमुख कारक सामने आए जिन्होंने तिमोर-लेस्ते की स्वतंत्रता का मार्ग प्रशस्त किया। पहला, 1997 के एशियाई वित्तीय संकट की वजह से दक्षिण पूर्व एशिया के भीतर बदलती राजनीतिक रूपरेखा, जिससे जकार्ता में सुहार्तो के राष्ट्रपति पद के तीन दशकों का कार्यकाल समाप्त हो दिया। दूसरा, दुनिया की कई राजधानियों में, विशेषकर शीत युद्ध के बाद के युग में, बदलती राजनीतिक प्राथमिकताएँ थीं।
22 दिसंबर, 1975 के संयुक्त राष्ट्र प्रस्वात 384 में इंडोनेशिया से अपने सैनिकों को वापस हटाने और पुर्तगाल की "प्रशासनिक शक्ति" को मान्यता देने का आह्वान किया गया था। हालाँकि, प्रस्ताव से पूर्वी तिमोर के लोगों के स्वनिर्णय के अधिकार को मान्यता मिली।[iv] यह वह प्रस्वात था जिसे दुबारा शुरुर किया गया और बाद में संयुक्त राष्ट्र के तत्वावधान में 30 अगस्त 1999 को आयोजित जनमत संग्रह का मार्ग प्रशस्त हुआ। जनमत संग्रह में स्वतंत्रता के लिए भारी जनसमर्थन देखा गया। हालाँकि, 20 मई 2002 को ही तिमोर-लेस्ते को एक संप्रभु राज्य के रूप में मान्यता दी गई थी। अंतरिम में, संयुक्त राष्ट्र के बैनर तले एक शांति सेना, अंतर्राष्ट्रीय बल पूर्वी तिमोर को तैनात किया गया था, और इस क्षेत्र पर संयुक्त राष्ट्र के नेतृत्व वाले परिवर्तनकालिक प्रशासन का शासन था।
तिमोर-लेस्ते और तिमोर सागर से जुड़ा मुद्दा
न तो आज़ादी की राह आसान थी और न ही उसके बाद का सफ़र। इस नवोदित राष्ट्र के सामने सबसे पहली चुनौती राष्ट्र निर्माण थी, जो अभी भी जारी है। हालाँकि, अतीत की तरह, स्वतंत्रता के बाद तिमोर-लेस्ते को समुद्री क्षेत्रों के सीमांकन को लेकर इस बार भी अपने दक्षिण में स्थित पड़ोसी ऑस्ट्रेलिया से निपटना पड़ा। यह एक ऐसी विरासत थी जो दिली को पहले पुर्तगाल से और बाद में इंडोनेशिया से विरासत में मिली, इसका इतिहास साढ़े चार दशक पुराना है, जिसकी शुरुआत 1972 के ऑस्ट्रेलिया-पुर्तगाल समझौते से हुई, जिसके बाद 1997 में ऑस्ट्रेलिया और इंडोनेशिया के बीच समझौता हुआ था।
ध्यान देने वाली बात है कि, दिली ने अपनी स्वतंत्रता के दिन, 20 मई, 2002 को ऑस्ट्रेलिया के साथ तिमोर सागर संधि पर हस्ताक्षर किए। यह संधि दोनों देशों के बीच हाइड्रोकार्बन संसाधनों और उनसे होने वाली आय को साझा करने पर केंद्रित थी। इस संधि को एकतरफा, ऑस्ट्रेलिया के पक्ष में माना गया। बाद में, 2007 में, दोनों देशों के बीच तिमोर सागर में कुछ समुद्री समझौतों पर हस्ताक्षर किए गए, जिससे पिछली व्यवस्था की असमानता को दूर किया गया।
इसके बाद, 30 अगस्त, 2018 को, न्यूयॉर्क में, दोनों पक्ष समुद्री कानून पर संयुक्त राष्ट्र कन्वेंशन (यूएनसीएलओएस) में निहित सिद्धांतों को ध्यान में रखते हुए, अपनी समुद्री सीमाओं का सीमांकन करने पर सहमत हुए और इस तरह अंततः इस विषय पर लंबे समय के लिए विराम लग गया। दिलचस्प बात यह है कि 2018 की संधि जो एक साल बाद 30 अगस्त, 2019 को लागू हुई, उसमें तिमोर सागर में दो काउंटियों के व्यापारिक हितों को भी शामिल किया गया। परिणामस्वरूप, विशेष रूप से ग्रेटर सनराइज (तेल) क्षेत्रों में, एक राजस्व-साझाकरण मॉडल अपनाने पर सहमति हुई है, जिसमें यदि अपस्ट्रीम विकास तिमोर-लेस्ते में है तो ऑस्ट्रेलिया को आय का 30 प्रतिशत मिलेगा और अगर ऐसा ऑस्ट्रेलिया में है उस केवल 20 प्रतिशत मिलेगा। इस प्रकार, इस संधि ने न केवल तिमोर-लेस्ते द्वारा उठाई गई चिंताओं को संबोधित किया, बल्कि यह भी सुनिश्चित किया कि आय में दिली की हिस्सेदारी कुल का 70 या 80 प्रतिशत होगी। इस समुद्री सीमांकन के साथ, समुद्री क्षेत्र के संबंध में दिली और कैनबरा की चिंताओं को दोनों पक्षों की संतुष्टि के लिए संबोधित किया गया है।
आसियान में सदस्यता का मार्ग
2011 में, इंडोनेशिया के आसियान का अध्यक्ष बनने के दौरान, तिमोर-लेस्ते ने औपचारिक रूप से क्षेत्रीय समूह में शामिल होने हेतु आवेदन किया, जिसमें जकार्ता ने दिली को अपना पूर्ण समर्थन दिया।[v] एक दशक के बाद 2022 के शिखर सम्मेलन में आसियान सैद्धांतिक रूप से तिमोर-लेस्ते को अपने 11वें सदस्य के रूप में स्वीकार करने पर सहमत हुआ। इसके बाद, तिमोर-लेस्ते को पहली बार फरवरी 2023 में आयोजित आसियान समन्वय परिषद (एसीसी) की बैठक में पर्यवेक्षक के रूप में आमंत्रित किया गया, जिसमें इंडोनेशिया एक बार फिर इस क्षेत्रीय समूह के अध्यक्ष के रूप में शामिल हुआ।
तिमोर-लेस्ते के लिए इंडोनेशिया का समर्थन इस बात का प्रतिबिंब है कि दोनों देशों ने मतभेदों को भुला दिया है और आगे बढ़ गए हैं। हालाँकि, आसियान के सभी सदस्य तिमोर-लेस्ते को आसियान में शामिल करने को उचित नहीं मानते हैं। इसका एक कारण अपनी सभी संरचनाओं एवं संस्थानों के साथ क्षेत्रीय समूह के प्रति अपनी प्रतिबद्धताओं का सम्मान करने की दिली की क्षमता पर संदेह था। इस बात से इसकी जटिलता और बढ़ गई है कि आबादी का एक तिहाई हिस्सा निरक्षर है, युवा बेरोजगारी 40 प्रतिशत से अधिक है। इसमें आगे यह भी माना गया है कि राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था पूरी तरह से अपने हाइड्रोकार्बन भंडार से संचालित होती है,[vi] जो चिंता का एक अन्य क्षेत्र है क्योंकि देशों की अर्थव्यवस्था स्थिर होने में अभी बहुत समय है। इसी संदर्भ में जुलाई 2023 में राष्ट्रपति जोस रामोस-होर्टा ने अफसोस जताया था कि "ऐसा लगता है कि स्वर्ग की राह - स्वर्ग की पूर्णता तक पहुंचना - आसियान के द्वार तक पहुंचने की तुलना में आसान है"।[vii] हालाँकि, आसियान अब दक्षिण पूर्व एशियाई समुदाय के एक साथी सदस्य के रूप में दिली का स्वागत करने हेतु सहमत हो गया है, जो न केवल एक स्वागत योग्य कदम है बल्कि इसमें महत्वपूर्ण भूराजनीतिक और भू-आर्थिक निहितार्थ भी हैं
तिमोर लेस्ते और एसएलओसी: चियान फैक्टर
प्रारंभ में, इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में तिमोर-लेस्ते का महत्व इसका विशेष जगह पर स्थित होना है। इंडोनेशिया के द्वीपसमूह समुद्री लेन (अलुर लौट केपुलाउन इंडोनेशिया -एएलकेआई) के हिस्से के रूप में, दिली तिमोर सागर और ओमबाई-वेटर जलडमरूमध्य के चौराहे पर स्थित है। मलक्का, सुंडा और लोम्बोक जलडमरूमध्य की तुलना में संचार के ये समुद्री रास्ते उतने महत्वपूर्ण भले नहीं हैं, लेकिन क्षेत्र में अंतरराज्यीय फ्लैशप्वाइंट की बहुलता एवं विकसित क्षेत्रीय परिदृश्य को देखते हुए, तिमोर के समुद्र तट सहित जलमार्ग का हर चैनल- लेस्ते में एक संवेदनशील भू-राजनीतिक केंद्र बिंदु में बदलने की क्षमता है। (मानचित्र II देखें )
मानचित्र II: इंडोनेशिया के द्वीपसमूह समुद्री मार्ग: एएलकेआई
स्रोत: बारा मैरिटिम, https://www.linkedin.com/posts/baramaritim_as-a-result-of-indonesias-recognition-as-activity-7155074715529748481-VVzr/
इसका अन्य कारण यह है कि दिली ने हाल ही में 23 सितंबर, 2023 को चीन के साथ एक व्यापक रणनीतिक साझेदारी (सीएसपी) किया था। दिली-बीजिंग सीएसपी के बाद संयुक्त वक्तव्य में एक चीन नीति का विशेष संदर्भ दिया गया, जिसमें तिमोर-लेस्ते ने "ताइवान स्वतंत्रता" की धारणा का विरोध किया। संयुक्त वक्तव्य में सहयोग के प्रमुख क्षेत्रों (i) उद्योग पुनरुद्धार एवं हाइड्रोकार्बन क्षेत्र में सहयोग, (ii) बुनियादी ढांचे का विकास, भौतिक और संचार बुनियादी ढांचे दोनों के संदर्भ में, (iii) मछली पकड़ने और मछली पालन सहित खाद्य आत्मनिर्भरता, और (iv) विशेष रूप से तिमोर-लेस्ते के लोगों की आजीविका में सुधार, की पहचान करते हुए बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (बीआरआई) का भी उल्लेख किया गया है।[viii] बयान में उच्च स्तरीय सैन्य आदान-प्रदान बढ़ाने, कार्मिक प्रशिक्षण, उपकरण प्रौद्योगिकी और संयुक्त अभ्यास और प्रशिक्षण के संचालन जैसे क्षेत्रों में सहयोग को मजबूत करने का विशेष संदर्भ दिया गया।
यह सीएसपी को ऑस्ट्रेलिया द्वारा संदेह के साथ अपनाने की पृष्ठभूमि में किया गया क्योंकि कैनबरा को इस समझौते पर संदेह था कि यह अंततः "सैन्य संधि" बनने की शुरुआत होगी। कैनबरा की चिंताएँ इस तथ्य से भी बढ़ जाती हैं कि कई प्रशांत द्वीप देशों को चीन की ओर झूकते हुए देखा जाता है। इन द्वीप राज्यों और उनके द्वारा कब्ज़ा किए गए समुद्री क्षेत्र को लंबे समय तक ऑस्ट्रेलिया के रणनीतिक क्षेत्र के रूप में देखा जाता था।
इस चिंता को संबोधित करने के लिए, राष्ट्रपति डॉ. जोस रामोस होर्टा ने कहा कि "ऑस्ट्रेलिया, इंडोनेशिया और सिंगापुर और मलेशिया जैसे अन्य आसियान सदस्य 'शांति से सो सकते हैं', क्योंकि इस समझौते से तिमोर-लेस्ते अपने पड़ोसियों के लिए खतरा नहीं बनेगा।"[ix] हालाँकि सतही तौर पर यह बयान दिली के पड़ोसियों की चिंताओं को दूर करने हेतु दिया गया था, लेकिन इसको संयुक्त राज्य अमेरिका जैसे दूसरों देशों के लिए संकेत के रूप में देखा जा सकती है। ऐसा इसलिए क्योंकि वाशिंगटन स्थिरता का आधा-संतुलन प्रदान करने और उन चुनौतियों की बहुलता के लिए संप्रभुता के गारंटर के रूप में एक प्रमुख भूमिका निभाने लगा है जो अब दक्षिण और पूर्वी चीन सागर दोनों के समुद्री क्षेत्र पर हावी हैं।
हालांकि, ऑस्ट्रेलिया सीएसपी पर अपनी राय के बारे में मुखर रहा है, इंडोनेशिया ने तिमोर-लेस्ते को आसियान के दायरे में लाने की प्रक्रिया में तेजी लाने हेतु नरम राजनयिक दृष्टिकोण अपनाया है। दिली-बीजिंग सीएसपी पर चिंताओं को दूर करने, सैन्य समझौते का मार्ग प्रशस्त करने में आसियान का महत्व और इस प्रकार आसियान के अन्य तंत्रों के अलावा, तिमोर क्षेत्र का प्रतिभूतिकरण इसके चार्टर, मित्रता और सहयोग की संधि एवं इंडो-पैसिफिक क्षेत्र (एओआईपी) पर आसियान आउटलुक के साथ आसियान की मूल विशेषता में निहित है।
दिल्ली-दिली और क्षेत्र
भले ही विकास कैसे भी हो, इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में भू-राजनीति की शैडोबॉक्सिंग अब तिमोर सागर में भी देखी जाएगी। बहरहाल, एओआईपी नई दिल्ली के इंडो-पैसिफिक महासागर पहल (आईपीओआई) के साथ प्रतिध्वनित होता है, क्योंकि इस क्षेत्र के विकास एवं आर्थिक प्रगति की एक शर्त में शांति और स्थिरता पर जोर दिया गया है। इसी तरह की भावनाएँ भारत की एक्ट ईस्ट पॉलिटी के साथ भी प्रतिध्वनित होती हैं, क्योंकि यह आसियान समुदाय के साथ जुड़ाव को बढ़ाने पर जोर देती है।
इंडो-पैसिफिक क्षेत्र के प्रति भारत और आसियान दोनों के दृष्टिकोण में तालमेल को देखते हुए, नई दिल्ली की भूमिका बहुआयामी एवं गतिशील दोनों होगी। नई दिल्ली की विकासात्मक साझेदारी और क्षमता-सृजन दृष्टिकोण पहले से ही दिली की अपेक्षा है और आसियान से भी इसको बढ़ावा मिलेगा। दूसरा, भारत उस जटिल भू-राजनीति में संतुलन बनाने की भूमिका निभा सकता है जो अब दक्षिण पूर्व एशिया के जल क्षेत्र पर हावी हो गई है।
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*डॉ. श्रीपति नारायणन, भारतीय वैश्विक परिषद, नई दिल्ली में शोध अध्येता हैं।
अस्वीकरण : यहां व्यक्त किए गए विचार निजी हैं।
डिस्क्लेमर: इस अनुवादित लेख में यदि किसी प्रकार की त्रुटी पाई जाती है तो पाठक अंग्रेजी में लिखे मूल लेख को ही मान्य माने ।
पाद-टिप्पणियाँ
[i] ‘Prime Minister‘s meeting with the President of Timor-Leste’. Press Information Bureau, Government of India, January 9, 2024, https://pib.gov.in/PressReleaseIframePage.aspx?PRID=1994417, Accessed on March 1, 2024.
[ii] ‘Timor-Leste- Country Summary”, CIA World Factbook, February 21, 2024, https://www.cia.gov/the-world-factbook/countries/timor-leste/summaries/, Accessed on February 22, 2024.
[iii]“The Profile of Human Rights Violations in Timor-Leste, 1974-1999”, Human Rights Data Analysis Group, https://archive.ph/20120529004414/http://www.hrdag.org/resources/timor_chapter_graphs/timor_chapter_page_02.shtml#selection-539.26-551.51, Accessed on February 15, 2024.
[iv] “Resolution 384-East Timor”, United Nations Security Council Resolutions, http://unscr.com/en/resolutions/384, Accessed on February 19, 2024.
[v] Roberto Soares, “Timor-Leste’s Aspiration for ASEAN Membership” S. Rajaratnam School of International Studies, March 9, 2023, https://www.rsis.edu.sg/rsis-publication/rsis/timor-lestes-aspiration-for-asean-membership/?doing_wp_cron=1707906288.3389759063720703125000, Accessed on February 2, 2024.
[vi] Kaewkamol Pitakdumrongkit, “Timor-Leste’s Road to ASEAN Membership Will be Challenging: An Economic Integration Perspective”, S. Rajaratnam School of International Studies, November 18, 2022
https://www.rsis.edu.sg/rsis-publication/cms/timor-lestes-road-to-asean-membership-will-be-challenging-an-economic-integration-perspective/, Accessed on February 16, 2024.
[vii]Parker Novak, “José Ramos-Horta’s Australian visit: A Checklist”, The Interpreter,
https://www.lowyinstitute.org/the-interpreter/jose-ramos-horta-s-australian-visit-checklist, September 5, 2022, Accessed on February 19, 2024.
[viii]Joint Statement between the People's Republic of China and the Democratic Republic of Timor-Leste on Establishing Comprehensive Strategic Partnership, The State Council- People’s Republic of China, September 23, 2023,
https://english.www.gov.cn/news/202309/23/content_WS650eced8c6d0868f4e8dfb32.html, Accessed on February 23, 2024.
[ix]Kornelius Purba, “Indonesia, Australia split over Timor-Leste-China strategic partnership”, Jakarta Post, October 6, 2023, https://www.thejakartapost.com/opinion/2023/10/06/indonesia-australia-split-over-timor-leste-china-strategic-partnership.html#google_vignette, Accessed on February 22, 2024.