भारत-आसियान संबंधों के तीस साल पूरे होने के उपलक्ष्य में 20-21 जुलाई 2022 को इंडियन काउंसिल ऑफ वर्ल्ड अफेयर्स (आईसीडब्ल्यूए) ने आसियान इंडिया सेंटर (एआईसी) के सहयोग से विकासशील देशों के लिए अनुसंधान एवं सूचना प्रणाली (आरआईएस) में "भू-राजनीतिक बदलाव और अवसर: भारत-दक्षिण पूर्व एशिया के संबंधों में नए क्षितिज" विषय पर दो दिवसीय अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन का आयोजन किया। सेमिनार में थिंक टैंक, शैक्षणिक संस्थानों के साथ-साथ भारत और आसियान देशों के पूर्व राजनयिकों समेत चालीस से अधिक वक्ता मौजूद थे।
अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन का उद्घाटन सत्र 20 जुलाई 2022 को सप्रू हाउस में लोगों की उपस्थिति के बीच आयोजित किया गया था। आईसीडब्ल्यूए के महानिदेशक व राजदूत विजय ठाकुर सिंह और भारत में सिंगापुर गणराज्य के उच्चायुक्त महामहिम साइमन वोंग वी कुएन ने अपना संबोधन दिया। नई दिल्ली स्थित एशिया सोसाइटी पॉलिसी इंस्टीट्यूट के सीनियर फेलो डॉ. सी. राजा मोहन द्वारा विशेष टिप्पणी की गई। भारत सरकार के विदेश राज्य मंत्री माननीय डॉ. राजकुमार रंजन सिंह द्वारा मुख्य भाषण दिया गया।
विदेश राज्य मंत्री डॉ. राजकुमार रंजन सिंह ने कहा कि आसियान-भारत का संबंध भारत की विदेश नीति के प्रमुख स्तंभों में से एक है जिसने एक व्यापक इंडो-पैसिफिक के भारतीय दृष्टिकोण को आगे बढ़ाने में मदद की है। दक्षिण-पूर्व एशिया वास्तव में 21वीं सदी के विश्व के आर्थिक और भू-राजनीतिक आकर्षण केंद्र के रूप में उभरा है। आसियान की एकता और केंद्रीयता इस क्षेत्र में विकसित हो रही संरचना का एक महत्वपूर्ण स्तंभ है। भू-राजनीतिक बदलावों ने क्षेत्र की सुरक्षा और विकास सुनिश्चित करने के लिए क्षेत्रीय सहयोग को मजबूत करने के महत्व को रेखांकित किया है। भारत और आसियान अपने संबंध को अधिक केंद्रित व्यावहारिक सहयोग के जरिये नई ऊंचाइयों तक ले जाना चाहते हैं। भारत-आसियान सहयोग इस क्षेत्र में स्थिरता का एक कारक है।
भारत में सिंगापुर गणराज्य के उच्चायुक्त महामहिम श्री साइमन वोंग वी कुएन ने कहा कि हाल ही में हुई भारत-आसियान विदेश मंत्रियों की बैठक ने व्यापक रणनीतिक साझेदारी के लिए और अधिक रणनीतिक रूप से जुड़ने का मार्ग प्रशस्त किया है। मुद्रास्फीतिजनित मंदी, वैश्विक व्यापार में गिरावट, आपूर्ति श्रृंखला में व्यवधान, मांग में व्यवधान, युवा बेरोजगारी, अमेरिका-चीन प्रतिस्पर्धा और यूक्रेन में लंबे समय तक युद्ध भारत और आसियान के सामने एक-दूसरे से जुड़ी हुई चुनौतियों में से हैं। भारत और आसियान डिजिटल भुगतान से जुड़कर, स्टार्ट-अप और फिनटेक पारिस्थितिक तंत्र के लिंक-अप, कौशल केंद्रों और विश्वविद्यालय विकास में सहयोग, तथा हरित ऊर्जा, स्वास्थ्य एवं फार्मा क्षेत्रों में सहयोग के माध्यम से अपनी साझेदारी को मजबूत कर सकते हैं।
एशिया सोसाइटी पॉलिसी इंस्टीट्यूट के सीनियर फेलो डॉ. सी राजा मोहन ने कहा कि इंडो-पैसिफिक संरचना आसियान को इस क्षेत्र के केंद्र में रखता है और इसलिए, आसियान की केंद्रीयता अधिक महत्वपूर्ण हो जाती है। क्वाड यहां आसियान की जगह लेने के लिए नहीं बल्कि मिलकर काम करने के लिए है। भारत और आसियान को और अधिक सुरक्षा सहयोग विकसित करने की आवश्यकता है ताकि वे इस विचार से बाहर निकल सकें कि क्षेत्र की स्थिरता सुनिश्चित करने के लिए अमेरिका और चीन की आवश्यकता है। भारत और आसियान को सामूहिक और द्विपक्षीय, दोनों तरीके से रक्षा और सुरक्षा सहयोग पर मिलकर काम करना है। वर्तमान भू-राजनीतिक विक्षोभ और अमेरिका-चीन प्रतिद्वंद्विता का जवाब भारत और दक्षिण-पूर्व एशिया के देशों के बीच सहयोग को और बढ़ाना है, उसे कम करना नहीं है।
सम्मेलन के तकनीकी सत्र वर्चुअल मोड में आयोजित किए गए। "क्षेत्रीय और वैश्विक रुझान" पर पहले सत्र की अध्यक्षता विशिष्ट फेलो, गेटवे हाउस, मुंबई और पूर्व महानिदेशक, आईसीडब्ल्यूए राजदूत राजीव भाटिया ने की थी। सत्र में उपस्थित वक्ताओं में शामिल थे, मलेशिया के राष्ट्रीय विश्वविद्यालय (यूकेएम) बांगी के मलेशियाई एवं अंतर्राष्ट्रीय अध्ययन संस्थान (आईकेएमएएस) के एशियाई अध्ययन केंद्र के प्रमुख व एसोसिएट प्रोफेसर डॉ कुइक चेंग-च्वे; यूनिवर्सिटी मलाया (CARUM), कुआलालंपुर के आसियान क्षेत्रवाद केंद्र के निदेशक डॉ. राहुल मिश्रा; नई दिल्ली के जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) के भारत-प्रशांत अध्ययन केंद्र के प्रो. शंकरी सुंदररमन; और जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) के चीनी और दक्षिण पूर्व एशियाई अध्ययन केंद्र के चीन और चीनी अध्ययन के प्रोफेसर प्रो. बी.आर. दीपक। सत्र में प्रमुख वैश्विक और क्षेत्रीय रुझानों पर चर्चा हुई जो वर्तमान भू-राजनीतिक परिदृश्य को परिभाषित करते हैं जिसमें कोविड-19 महामारी, यूएस-चीन टकराव, इंडो-पैसिफिक और यूक्रेन संकट शामिल हैं। यह देखा गया कि इंडो-पैसिफिक क्वाड की तुलना में एक व्यापक ढांचा है जिसमें आर्थिक और गैर-पारंपरिक सुरक्षा शामिल है। क्वाड आसियान का विरोध नहीं करता है और वर्तमान भू-राजनीतिक रुझान भारत और दक्षिण पूर्व एशियाई देशों के बीच मजबूत संबंधों को आवश्यक बनाते हैं।
"अतीत और वर्तमान के बीच: दक्षिण-पूर्व एशिया में भारत के पदचिह्नों की तलाश" विषय पर आधारित दूसरे सत्र की अध्यक्षता जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू), नई दिल्ली के पूर्व प्रोफेसर प्रो. बलदास घोषाल ने की। सत्र के वक्ताओं में शामिल थे, फ़िलीपींस विश्वविद्यालय, दिलिमन के एशियन सेंटर के एशियाई अध्ययन के प्रोफेसर, व मनीला स्थित फिलीपींस के आसियान अध्ययन संघ के अध्यक्ष प्रो. जोएफ़ संतारिता; सामाजिक इतिहासकार और हेरिटेज क्यूरेटर, सिंगापुर की डॉ नलिना गोपाल; हैदराबाद विश्वविद्यालय, हैदराबाद के प्रो. सुचंद्र घोष; और नालंदा विश्वविद्यालय, नालंदा के एसोसिएट प्रोफेसर डॉ राजीव रंजन चतुर्वेदी। सत्र में भारत और दक्षिण-पूर्व एशिया को जोड़ने वाली सभ्यता के पहलुओं और समकालीन वास्तविकताओं के लिए इसकी प्रासंगिकता पर चर्चा हुई। इस सत्र में भारत और दक्षिण-पूर्व एशिया के बीच सांस्कृतिक और ऐतिहासिक संबंधों पर विस्तार से चर्चा की गई। यह देखा गया कि दक्षिण-पूर्व एशिया में भारतीय प्रभावों और भारत पर दक्षिण-पूर्व एशियाई देशों की संस्कृतियों के प्रभाव के अध्ययन पर समान रूप से जोर देने की आवश्यकता है। पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए नए जोश की आवश्यकता, दक्षिण-पूर्व एशिया में विरासत स्थलों की पुन:बहाली में भारतीय विकास सहायता और संग्रहालयों के बीच सहयोग पर जोर दिया गया। सत्र में इस बात पर जोर दिया गया कि भारत और दक्षिण-पूर्व एशिया दोनों की बहुलवादी प्रकृति ने उनके मैत्रीपूर्ण और घनिष्ठ संबंधों के लिए मजबूत आधार प्रदान किया है।
"क्षेत्रीय सहयोग के माध्यम से आम सहमति निर्माण" पर आधारित तीसरे सत्र की अध्यक्षता बैंकॉक के चुलालोंगकोर्न विश्वविद्यालय के प्रोफेसर एमेरिटस प्रो. सुतिफंद चिराथिवत ने की। सत्र में वक्ताओं में अंतर्राष्ट्रीय संबंध और सामरिक अध्ययन, मलेशिया के राष्ट्रीय विश्वविद्यालय (यूकेएम), कुआलालंपुर के एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. रविचंद्रन मूर्ति; अंतर्राष्ट्रीय राजनीति और सुरक्षा पर स्वतंत्र शोधकर्ता, हैदराबाद के श्री संजय पुलिपका; और आईसीडब्ल्यूए, नई दिल्ली के रिसर्च फेलो डॉ टेमजेनमेरेन एओ शामिल थे। सत्र ने इंडो-पैसिफिक में भारत और दक्षिण-पूर्व एशिया के बीच तालमेल बनाने की दिशा में चर्चा की। जैसा कि आसियान राष्ट्रों के बीच इंडो-पैसिफिक पकड़ बना रहा है, आईपीओआई और एओआईपी के बीच सम्मिलन का निर्माण करने और आईपीईएफ की बढ़ी हुई आर्थिक भागीदारी के तहत सूचीबद्ध किए गए चार मुख्य स्तंभों के बीच सहयोग करने की आवश्यकता पर बल दिया गया। यह पाया गया कि भारत और दक्षिण-पूर्व एशिया आईपीईएफ के तहत लचीली आपूर्ति श्रृंखला का निर्माण कर सकते हैं।
"बदलती हुई सुरक्षा गतिकी" पर चौथे सत्र की अध्यक्षता भारत सरकार के विदेश मंत्रालय के पूर्व सचिव (पूर्व), राजदूत अनिल वाधवा ने की। वक्ताओं में वियतनाम सामाजिक विज्ञान अकादमी (VASS), हनोई के दक्षिण-पूर्व एशियाई अध्ययन संस्थान (ISEAS) के उप निदेशक डॉ. वो जुआन विन्ह; चुलालोंगकोर्न विश्वविद्यालय, बैंकॉक के सहायक प्रोफेसर डॉ. जिरायुध सिन्थुफन, डॉ. एम. मयिलवगनन, एसोसिएट प्रोफेसर, राष्ट्रीय उन्नत अध्ययन संस्थान (एनआईएएस), बेंगलुरु; और मनोहर पर्रिकर रक्षा अध्ययन और विश्लेषण संस्थान (एमपी-आईडीएसए), नई दिल्ली के पूर्व वरिष्ठ अनुसंधान सहयोगी डॉ. उदय भानु सिंह शामिल थे। सत्र में इस क्षेत्र में सुरक्षा के बदलते आयामों पर चर्चा हुई जिसमें पारंपरिक और गैर-पारंपरिक सुरक्षा खतरे शामिल थे। सत्र में उल्लेख किया गया कि सामान्य रूप से दक्षिण-पूर्व एशिया और विशेष रूप से आसियान को अमेरिका और चीन के बीच इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में रणनीतिक प्रतिस्पर्धा के कारण बड़ी चुनौती का सामना करना पड़ रहा है। आसियान क्षेत्र में शांति का उत्प्रेरक है; चल रहे तनावों और चुनौतियों के लिए एक बहुपक्षीय तंत्र की आवश्यकता है जो सभी प्रमुख हितधारकों को रचनात्मक वार्ता के लिए एक साझा मंच पर एक साथ लाकर आसियान प्रदान करता है। आसियान को प्रमुख सुरक्षा चुनौतियों से निपटने के लिए अपनी भूमिका बढ़ाने की जरूरत है।
"आर्थिक सहयोग" पर पांचवें सत्र की अध्यक्षता आईआईटी इंदौर के प्रोफेसर व इंडोनेशिया और आसियान में भारत के पूर्व राजदूत रहे राजदूत गुरजीत सिंह ने की। मुख्य वक्ता थे डॉ. मोहम्मद मसूदुर रहमान, विजिटिंग फेलो, इंस्टीट्यूट ऑफ साउथ एशियन स्टडीज (आईएसएएस), सिंगापुर; बोलिगर एंड कंपनी, बैंकॉक के सलाहकार (माननीय) व पूर्व कार्यकारी निदेशक, मेकांग इंस्टीट्यूट (एमआई) के डॉ. वाचरस लीलावथ; तथा भारतीय विदेश व्यापार संस्थान (आईआईएफटी), नई दिल्ली के प्रो. बिस्वजीत नाग। सत्र में महामारी के बाद की दुनिया में भारत और दक्षिण-पूर्व एशियाई देशों के बीच आर्थिक सहयोग से संबंधित मुद्दों और अवसरों पर चर्चा हुई। भौतिक और डिजिटल दोनों तरह से संपर्क बनाने की आवश्यकता पर बल दिया गया जिससे व्यापार, वाणिज्य और लोगों से लोगों के बीच संबंधों को बढ़ावा देने में मदद मिलेगी। परिवहन संपर्क के लिए बिम्सटेक मास्टर प्लान और स्थानीय क्षमता निर्माण में मेकांग गंगा सहयोग की अपार संभावनाओं पर ध्यान दिया गया। कपड़ा क्षेत्र की पहचान इस क्षेत्र में वैश्विक मूल्य श्रृंखला विकसित करने की क्षमता के लिए की गई। यह भी बताया गया कि त्रिपक्षीय राजमार्ग जैसी बुनियादी ढांचा परियोजनाओं के लिए भारतीय पक्ष में औद्योगिक क्षेत्रों के विकास की आवश्यकता होगी ताकि पूरी तरह से लाभ प्राप्त हो सके।
"विकास भागीदारी" पर छठे सत्र की अध्यक्षता जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू), नई दिल्ली के एमेरिटस प्रोफेसर प्रो. एस डी मुनि ने की। वक्ताओं में डॉ. सिथानोनक्सय सुवन्नाफकडी, प्रमुख शोधकर्ता (अर्थशास्त्र), आसियान अध्ययन केंद्र, आईएसईएएस- युसोफ इशाक संस्थान, सिंगापुर; डॉ. सोमडेथ बोधिसाने, उद्योग और वाणिज्य संस्थान (आईआईसी), उद्योग और वाणिज्य मंत्रालय (एमओआईसी), वियनतियाने; डॉ. उमा पुरुषोत्तमन, सहायक प्रोफेसर, अंतर्राष्ट्रीय संबंध विभाग, केरल केंद्रीय विश्वविद्यालय, केरल; और डॉ. संपा कुंडू, सलाहकार, आसियान-इंडिया सेंटर (एआईसी), आरआईएस, नई दिल्ली शामिल थे। सत्र में दक्षिण-पूर्व एशिया में भारत की विकास साझेदारी के पहलुओं पर चर्चा की गई जिसमें लाइन ऑफ क्रेडिट, छात्रवृत्ति और विरासत स्थल की पुन:बहाली शामिल है। भारत ने दक्षिण-पूर्व एशिया में अंग्रेजी भाषा प्रशिक्षण केंद्र, आईटी केंद्र, महिला प्रशिक्षण केंद्र आदि बनाए हैं। भारत मेकांग देशों में त्वरित प्रभाव परियोजनाओं का वित्तपोषण कर रहा है और सीएलएमवी देशों में भौतिक और डिजिटल कनेक्टिविटी को बढ़ाने पर ध्यान केंद्रित किया गया है। नालंदा विश्वविद्यालय, आईसीसीआर, आईटीईसी और आईआईटी के माध्यम से आसियान के छात्रों को छात्रवृत्ति दी जा रही है। विकास सहयोग भारत-आसियान संबंधों का मुख्य आधार रहा है।
"नए एजेंडा का निर्माण: एक्ट ईस्ट के आगे का मार्ग" पर सातवें सत्र की अध्यक्षता कंबोडियन इंस्टीट्यूट फॉर कोऑपरेशन एंड पीस (सीआईसीपी), नोम पेन्ह के कार्यकारी निदेशक राजदूत पो सोथिरक ने की। मुख्य वक्ता थे डॉ. ब्रैडली मुर्ग, विशिष्ट वरिष्ठ फेलो, कंबोडियन इंस्टीट्यूट फॉर कोऑपरेशन एंड पीस (सीआईसीपी), नोम पेन्ह; डॉ. सिनीनत सरमचीप, सहायक प्रोफेसर, चुलालोंगकोर्न विश्वविद्यालय, बैंकॉक; प्रो. अमिता बत्रा, जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू), नई दिल्ली; और डॉ. प्रबीर डे, प्रोफेसर, आसियान-इंडिया सेंटर (एआईसी), आरआईएस, नई दिल्ली और डॉ. तुहिनसुभरा गिरी, फेलो, आरआईएस, नई दिल्ली। सत्र में द्विपक्षीय और क्षेत्रीय स्तरों पर भारत और आसियान देशों के बीच सहयोग के नए एजेंडे पर चर्चा हुई। वर्तमान भू-राजनीतिक और भू-आर्थिक वातावरण के आलोक में, सत्र ने समुद्री, आपूर्ति श्रृंखला एकीकरण, डिजिटल कनेक्टिविटी, आर्थिक एकीकरण और वैश्विक तौर पर आमजनों की भलाई के लिए संबंधों को और गहरा करने की आवश्यकता पर प्रकाश डाला, जो वास्तव में संबंधों को ऊपर उठाने में मदद करेगा।
सम्मेलन का समापन आईसीडब्ल्यूए, नई दिल्ली की निदेशक (अनुसंधान) डॉ निवेदिता रे और आरआईएस, नई दिल्ली के एआईसी में प्रोफेसर और समन्वयक डॉ प्रबीर डे के धन्यवाद प्रस्ताव के साथ हुआ।
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