श्रीमती रीवा गांगुली दास, सचिव (पूर्व), विदेश मंत्रालय,
डॉ. मालिनी वी शंकर, कुलपति, भारतीय समुद्री विश्वविद्यालय (आईएमयू), चेन्नई और विशिष्ट प्रतिभागियों,
मैं आप सभी का " हिंद-प्रशांत महासागर पहल (आईपीओआई) पर राष्ट्रीय परामर्श" में पूरी गर्मजोशी के साथ स्वागत करती हूं। यह विदेश मंत्रालय के सहयोग से विश्व मामलों की भारतीय परिषद (आईसीडब्ल्यूए) द्वारा आयोजित किया जा रहा है।
भारत समुद्र के निकट स्थित एक प्राचीन देश है और दुनिया के कुछ सबसे पुराने बंदरगाह यहां पर हैं। सहस्राब्दियों से, हमारे लोग अपने साथ कई तरह के सामान, विचार और धर्मेां को लेकर महासागरों को पार करते हुए दूर देशों की यात्राएं करते रहे हैं और इसके जरिए अफ्रीका से खाड़ी तक मल्लाका जलडमरूमध्य को पार करते हुए दक्षिण पूर्व एशिया तक सभ्यतागत संबंध स्थापित किए हैं।
महासागरों और समुद्रों ने भारत के इतिहास को गहरे प्रभावित किया है और अब यह इसके भविष्य को भी आकार देने में बड़ी भूमिका निभाने वाले हैं। आज के समय में मात्रा के हिसाब से हमारा 90 प्रतिशत व्यापार समुद्र के रास्ते होता है। हमारे पास 7,500 कि.मी.का तटवर्ती इलाका, 1200 द्वीप और 24 लाख वर्ग कि.मी. का विशेष आर्थिक क्षेत्र है। इतनी प्राचीन समुद्री परंपरा और इतने विस्तृत समुद्री पदचिह्न के साथ, भारत द्वारा अपने आसपास के महासागर क्षेत्रों की शांति, समृद्धि, स्थिरता और सुरक्षा को खास महत्व दिया जाना स्वाभाविक है।
इसलिए, भारत ने समुद्री क्षेत्र से संबंधित कई महत्वपूर्ण मुद्दों पर वैश्विक विमर्श को आकार देने में काफी योगदान दिया है और अभी भी ऐसा कर रहा है। आप में से कई लोगों को याद होगा कि मार्च 2015 में, मॉरीशस की अपनी यात्रा के दौरान, प्रधानमंत्री मोदी ने सागर क्षेत्र में सभी के लिए सुरक्षा और विकास की अवधारणा को व्यक्त किया था। यह एक सुरक्षित और स्थिर हिंद महासागर क्षेत्र सुनिश्चित करने के लिए सहयोग को आगे बढ़ाने और साझेदारी बनाने का एक दृष्टिकोण है, जो महासागरों के व्यवस्थित और टिकाऊ उपयोग के माध्यम से सभी को समृद्धि प्रदान करता है।
2018 में सिंगापुर में शंगरीला डायलॉग में, प्रधानमंत्री मोदी ने हिंद-प्रशांत क्षेत्र को पूर्वी अफ्रीका के तटों से पश्चिमी प्रशांत क्षेत्र तक फैले एक प्राकृतिक क्षेत्र के रूप में बताया था जो आसियान देशों की नीतियों का केन्द्र है और जिसमें हिंद महासागर और प्रशांत महासागर जैसे निर्बाध प्रवाह वाले दो विशाल जल क्षेत्र हैं। भारत प्रशांत क्षेत्र को एक स्वतंत्र और खुले तथा क्षेत्रीय अखंडता और संप्रभुता के नजरिए से समावेशी और नियम आधारित एक ऐसे क्षेत्र के रूप में देखता है जहां नौवहन और विमानों के लिए स्वतंत्र उड़ान क्षेत्र के सिद्धांत; वैध वाणिज्य के निर्बाध प्रवाह और अंतरराष्ट्रीय कानून के अनुसार विवादों के शांतिपूर्ण समाधान को बरकरार रखा जाता है।
इसके बाद, 4 नवंबर, 2019 को बैंकॉक में पूर्वी एशिया शिखर सम्मेलन में, प्रधानमंत्री मोदी ने हिंद-प्रशांत सागर पहल (आईपीओआई) की घोषणा की, जो सात विषयगत क्षेत्रों में व्यावहारिक सहयोग पर केंद्रित है, जैसे कि : (i) समुद्री सुरक्षा; (ii) समुद्री पारिस्थितिकी; (iii) समुद्री संसाधन; (iv) क्षमता निर्माण और संसाधन साझा करना; (v) आपदा जोखिम शमन और प्रबंधन (vi) विज्ञान, प्रौद्योगिकी और शैक्षणिक सहयोग; और (vii) व्यापार, संपर्क और समुद्री परिवहन।
आईपीओई साझेदारी बनाकर हितधारकों का एक समूह बनाना चाहता है। आईपीओआई के कई मूलभूत सिद्धांतो पर आगे बढ़ते हुए, भारत अन्य देशों को इस पहल में शामिल होने के लिए प्रोत्साहित कर रहा है। पहल के तहत कुछ विषयगत क्षेत्रों का पहले से ही कुछ देश नेतृत्व कर रहे हैं।
आईसीडब्ल्यूए, आईपीओआई के तीन स्तंभों अर्थात (i) समुद्री सुरक्षा; (ii) क्षमता निर्माण और संसाधन साझा करना; और (iii) विज्ञान, प्रौद्योगिकी और शैक्षणिक सहयोग को बढ़ावा देने के क्षेत्र में ज्ञान साझा करने और विचारों के आदान प्रदान करने वाले भागीदारों में से एक है।
इन राष्ट्रीय स्तर के परामर्शों का उद्देश्य सभी सात आधारभूत सिद्धांतों पर चर्चा करना और उन अवधारणाओं और व्यावहारिक विचारों के साथ आगे आना है जो भागीदार देशों के साथ इनके कार्यान्वयन के काम को आगे बढ़ा सकें। आईपीओआई समुद्री सुरक्षा और महासागरों के सतत उपयोग के लिए विभिन्न अन्य पहलों में अत्यधिक योगदान देगा। हमारा मानना है कि यह आने वाले वर्षों में भी 2021से 2030 तक मनाये जा रहे सतत विकास के लिए संयुक्त राष्ट्र महासागर विज्ञान दशक में एक महत्वपूर्ण योगदान देगा।
भारत वैश्विक स्तर पर महासागर क्षेत्र के लिए तैयार किए गए एजेंडे के लिए प्रतिबद्ध है। हाल ही में संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद् की अपनी अध्यक्षता के दौरान भारत ने समुद्री सुरक्षा को प्राथमिकता वाले क्षेत्र के रूप में स्वीकार किया । प्रधानमंत्री मोदी ने 'समुद्री सुरक्षा बढ़ाना: अंतर्राष्ट्रीय सहयोग का एक माध्यम' पर उच्च स्तरीय यूएनएससी खुली चर्चा में भाग लिया था। भारत लगातार समुद्री क्षेत्र से जुड़े मुद्दों पर अपना ध्यान केन्द्रित किए हुए है।
मैं एक बार फिर आप सभी का स्वागत करती हूं। आईपीओआई पर यह राष्ट्रीय परामर्श आने वाले समय में आयोजित होने वाले इसी तरह के कई अन्य कार्यक्रमों में से एक है। इसमें इस साल नवंबर में होने वाला एक अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन भी शामिल है।
हम इस महत्वपूर्ण विषय पर रचनात्मक और उपयोगी चर्चा की आशा करते हैं।
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