आज की चर्चा जानकारियों से परिपूर्ण और व्यापक रही। मैं श्री डेविड हैरी को उनके मुख्य भाषण और सभी प्रतिभागियों को उनकी अंतर्दृष्टिपूर्ण टिप्पणियों के लिए धन्यवाद देना चाहती हूं। आईसीडब्ल्यूए और यूएसआई संयुक्त राष्ट्र शांति अभियानों से संबंधित वेबिनार की एक श्रृंखला पर सहयोग कर रहे हैं। यह इस श्रृंखला का चौथा वेबिनार था।
भारत 1956 से संयुक्त राष्ट्र के शांति प्रयासों में योगदान दे रहा है और संयुक्त राष्ट्र शांति अभियानों के परिचालन में बड़ी भूमिका निभा रहा है। वैश्विक शांति और सुरक्षा बनाए रखने के लिए अंतर्राष्ट्रीय समुदाय के पास संयुक्त राष्ट्र शांति अभियान एक महत्वपूर्ण उपकरण है। कुछ दशक पहले तक संयुक्त राष्ट्र के शांति अभियान एक दूसरे देशों के बीच युद्धविराम पर सहमति हो जाने पर संघर्षों की बाद की स्थितियों में चलाए जाते रहे लेकिन आज इसके विपरीत संयुक्त राष्ट्र के दो तिहाई से अधिक शांति सैनिक अधिकतर सदस्य देशों के भीतर चल रहे जटिल संघर्षों में शामिल हैं। इन नई परिस्थितियों ने शांति सैनिकों को बिना किसी संघर्ष विराम समझौते के ही आम नागरिकों के निकट संपर्क में ला दिया है।
आज की चर्चा ने यह साबित किया है कि कैसे कई देशों में विभिन्न युद्धरत समूहों के कारण उपजी हिसंक स्थितियों ने संयुक्त राष्ट्र शांति अभियानों की जटिलताओं को बढ़ा दिया है। यह न केवल संघर्ष क्षेत्रों में शांति वापस लाने के लिए बल्कि संघर्षों में फंसे लाखों निर्दोष नागरिकों के मुद्दे से निपटने के लिए संयुक्त राष्ट्र शांति अभियान परिचालन की क्षमता की परीक्षा लेता है। यह संयुक्त राष्ट्र के लिए एक चुनौती है।
अप्रैल, 2021 को "सशस्त्र संघर्ष में नागरिकों की सुरक्षा" पर संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में आयोजित खुली चर्चा में भारत ने तीन प्रमुख बातें उठायीं थी जिसमें उसने (i) निर्दोष नागरिकों के खिलाफ दमनकारी हिंसा के उपयोग और सशस्त्र संघर्षों में नागरिक संपत्तियों को निशाना बनाने की कड़ी निंदा की; (ii) इस बात पर चिंता जताई कि सशस्त्र संघर्षों में आजकल नागरिक आबादी और नागरिक बुनियादी ढांचे को अक्सर लक्षित किया जाता है जिसके परिणामस्वरूप हजारों लोग मारे जाते हैं और लाखों लोग बेघर हो जाते हैं; (iii) और, इस संदर्भ में उसने ऐसे सशस्त्र संघर्षों में नागरिकों और नागरिक संपत्तियों की सुरक्षा के लिए लागू अंतरराष्ट्रीय कानून के ढांचे के भीतर और राज्यों की संप्रभुता के सम्मान के सिद्धांत का सख्ती से पालन करने का आह्वान किया।
संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद द्वारा नागरिकों की सुरक्षा (पीओसी) पर पहला प्रस्ताव 1999 में अपनाया गया था।
बाद में 2005 में संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा पारित "सिद्धांत की रक्षा की जिम्मेदारी" के साथ, अंतर्राष्ट्रीय समुदाय ने नागरिकों को अत्याचारों से बचाने के लिए अधिक जिम्मेदारी स्वीकार की।
उभरती सुरक्षा चुनौतियों की बदलती प्रकृति को देखते हुए नागरिकों की सुरक्षा के लिए संयुक्त राष्ट्र शांति स्थापना के तरीके लगातार बेहतर हो रहे हैं ताकि पीओसी जनादेश को प्रभावी ढंग से लागू करने के लिए विकसित परिचालन विधियों और दृष्टिकोणों को प्रतिबिंबित किया जा सके। 2015 पीओसी दिशानिर्देश नागरिकों की सुरक्षा के लिए त्रिस्तरीय दृष्टिकोण प्रदान करता है। टीयर I - संवाद और जुड़ाव के माध्यम से सुरक्षा; टियर II - शारीरिक सुरक्षा का प्रावधान; और टियर III - एक सुरक्षात्मक वातावरण की स्थापना। इस अवधारणा को आम तौर पर सदस्य राष्ट्रों ने अपना समर्थन दिया है।
शांति अभियानों को लेकर निर्धारित संयुक्त राष्ट्र के मानदंडों में कुछ अस्पष्टता के कारण नागरिकों के संरक्षण के संबंध में कुछ मुद्दों पर आज की चर्चा में सैद्धांतिक भ्रम की स्थिति रही। यह अस्पष्टता जो कि एक तरह का लचीलापन भी प्रदान करती है का राजनीतिक और राजनयिक स्तरों पर तो महत्व है लेकिन परिचालन स्तर पर यह एक बड़ी बाधा और सामरिक स्तर पर एक खतरनाक दायित्व बन जाती है, जिससे कई बार लोगों की जान चली जाती है। भारत का अरसे से यह मानना रहा है कि शांति अभियानों को सफल बनाने के लिए इसके नागरिक और सैन्य दोनों घटकों के बीच तालमेल बैठाने की आवश्यकता है।
नीति निर्माताओं को सशस्त्र संघर्षों में नागरिकों की दुर्दशा और इससे उन्हें बचाने के लिए उचित कार्रवाई के बीच मौजूदा कमियों को खत्म करने की दिशा में निरंतर कदम उठाने की आवश्यकता है।
इसके लिए हमें निम्नलिखित बातों पर ध्यान देने की जरूरत है:
(1) बड़ी कमियों को दूर करना। संयुक्त राष्ट्र में वर्तमान में महत्वपूर्ण क्षमताओं का अभाव है जैसे कि खुफिया जानकारी जुटाना, शांति बल को बनाए रखने की क्षमता, किसी भी स्थिति में तेजी से प्रतिक्रिया देने की क्षमता और ऐसी ही कई अन्य बातें । इन कमियों को दूर करने की जरूरत है।
(2) शांति सैनिकों का प्रशिक्षण। जटिल मिशनों के लिए सामान्य मानकों और क्षमताओं को प्राप्त करने के लिए प्रशिक्षित होने के लिए विभिन्न पृष्ठभूमि और अनुभवों वाले शांति सैनिकों की आवश्यकता होती है। यह नागरिकों की सुरक्षा के लिए महत्वपूर्ण है।
(3) प्रौद्योगिकी और नवाचार। शांति अभियानों को सफल बनाए जाने के लिए प्रौद्योगिकी का उपयोग किया जा सकता है। ऐसी तकनीक की आवश्यकता है जो प्रमाणिक हो, लागत प्रभावी हो, क्षेत्र की परिस्थितियों में विश्वसनीय हो और प्रारंभिक चेतावनी और शीघ्र प्रतिक्रिया को सक्षम बनाती हो।
कुल मिलाकर संयुक्त राष्ट्र प्रणाली को सदस्य देशों के साथ मिलकर काम करते हुए, संघर्ष की स्थितियों में नागरिकों की सुरक्षा के उद्धेश्य को प्राप्त करने के लिए इन मुद्दों पर ध्यान देना चाहिए।
*****