मेजर जनरल बी.के. शर्मा, निदेशक, यूएसआई
सुश्री पर्निला रायडेन, निदेशक, चुनौती मंच और,
विशिष्ट वक्ता एवं प्रतिभागी,
विदेश नीति पर वैचारिक विमर्श करने वाली सबसे पुरानी संस्था “विश्व मामलों की भारतीय परिषद” तथा सैन्य मामलों पर भारत के सबसे पुराने थिंक टैंक –“संयुक्त सेवा संस्थान” (यूएसआई) दोनों मिलकर “शांति अभियान” विषय पर छह वेबिनार की एक श्रृंखला आयोजित कर रहे हैं। 'संयुक्त राष्ट्र शांति स्थापना और जनादेश के सिद्धांत' तथा 'संयुक्त राष्ट्र शांति सैनिकों को बंधक बनाया जाना' विषयों पर दो वेबिनार पहले ही आयोजित किए जा चुके हैं। इस श्रृंखला के तीसरे वेबिनार में बोलते हुए मुझे खुशी हो रही है, जो 'संयुक्त राष्ट्र शांति अभियानों की प्रभावशीलता: संयुक्त राष्ट्र शांति अभियानों पर सैनिकों की संरचना और विविधता की गतिशीलता' पर आधारित है।
अंतर्राष्ट्रीय शांति और सुरक्षा बनाए रखने के लिए शांति अभियान संयुक्त राष्ट्र का एक महत्वपूर्ण प्रयास है। शांति अभियानों के लिए सदस्य देश स्वेच्छा से अपने सैनिकों का योगदान करते हैं। भारत शांति अभियानों में योगदान करने वाले सबसे पुराने देशों में से एक है।
भारत ने पिछले कुछ वर्षों में 49 ऐसे अभियानों में 250,000 से अधिक सैनिकों का योगदान दिया है, जो कुल मिलाकर किसी भी देश की ओर से किया गया सबसे बड़ा योगदान है। इस प्रकार, यह सर्वोत्तम प्रथाओं का एक विशाल भंडार है। यह संयुक्त राष्ट्र शांति अभियानों के लिए अति सक्षम फोर्स कमांडरों को प्रदान करना जारी रखता है और 1998 से संयुक्त राष्ट्र शांति अभियानों के लिए विश्वसनीय और प्रशिक्षित शांति सैनिकों के शीर्ष पांच सैन्य योगदानकर्ताओं में से एक रहा है। हाल ही में, इस वर्ष मार्च में,संयुक्त राष्ट्र शांति अभियान स्थापना के साथ एकजुटता प्रदर्शित करते हुए भारत ने दुनिया भर में संयुक्त राष्ट्र शांति सैन्य कर्मियों के लिए 200,000 कोविड टीके प्रदान किए।
यह संयुक्त राष्ट्र शांति स्थापना के प्रयासों के लिए भारत की प्रतिबद्धता का सबूत है, कि इस वर्ष अगस्त में यूएनएससी की अध्यक्षता के दौरान चिन्हित किए गए तीन मुख्य मुद्दों में से एक शांति अभियान संचालन था। 18 अगस्त को 'संरक्षकों की रक्षा: प्रौद्योगिकी और शांति स्थापना' विषय पर परिषद में शांति स्थापना पर उच्च स्तरीय खुली चर्चा में शांति सैनिकों की रक्षा और सुरक्षा बढ़ाने के लिए तथा शांति अभियानों को उनके अधिदेशों को प्रभावी ढंग से लागू करने में सहायता करने के लिए आधुनिक तकनीकी उपकरणों के उपयोग पर ध्यान केंद्रित किया गया था।
संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद् ने 'प्रौद्योगिकी और शांति स्थापना' पर अध्यक्ष के एक वक्तव्य को अपनाया। यह इस विषय पर संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद का पहला दस्तावेज और साथ ही 'संयुक्त राष्ट्र शांति सैनिकों के खिलाफ अपराधों की जवाबदेही' पर एक प्रस्ताव भी था।
उच्च स्तरीय खुली चर्चा में, भारत के विदेश मंत्री ने संयुक्त राष्ट्र के सहयोग से चुनिंदा शांति अभियानों में “यूएनआईटीई अवेयर प्लेटफॉर्म” को शुरु किए जाने की घोषणा की। यह एक स्थितिजन्य जागरूकता सॉफ्टवेयर प्रोग्राम है जो इस उम्मीद पर आधारित है कि वास्तविक समय के आधार पर एक संपूर्ण शांति-संचालन की कल्पना, समन्वय और निगरानी की जा सकती है। प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में शांति रक्षकों के प्रशिक्षण और क्षमता निर्माण पर भारत और संयुक्त राष्ट्र के बीच एक समझौता ज्ञापन पर भी हस्ताक्षर किए गए।
शांति अभियानों को न केवल शांति और सुरक्षा बनाए रखने के लिए बल्कि राजनीतिक प्रक्रियाओं को सुविधाजनक बनाने, नागरिकों की रक्षा करने, लड़ाकों को निरस्त्र करने, चुनावों का समर्थन करने, मानवाधिकारों की रक्षा करने और बढ़ावा देने और कानून के शासन को बहाल करने के काम के लिए भी चलाया जाता है। दूसरे शब्दों में, वे बहुआयामी भूमिका निभाते हैं। हालाँकि, संयुक्त राष्ट्र शांति स्थापना के मूल सिद्धांत हमेशा कायम हैं। ये हैं - पार्टियों की सहमति, निष्पक्षता, और आत्मरक्षा और जनादेश की रक्षा के अलावा बल का प्रयोग न करने के सिद्धांत। इन सिद्धांतों ने कई बदलावों को निर्देशित किया है जिन्हें शांति स्थापना के पिछले वर्षों के युद्धविराम-पर्यवेक्षण मिशनों से आज के बहु-आयामी जनादेश तक में देखा गया है। संयुक्त राष्ट्र ने समय के साथ उभरती सुरक्षा चुनौतियों की बदलती प्रकृति को समझा है, फिर भी यह सुनिश्चित करने के लिए व्यावहारिक दृष्टिकोण की दिशा में काम करने की निरंतर आवश्यकता है कि संयुक्त राष्ट्र शांति अभियान प्रभावी रहे और 21 वीं सदी की चुनौतियों का समाधान करें।
शांति अभियानों के प्रभावी होने के लिए यह बेहद जरूरी है कि इन अभियानों में शामिल किए गए शांति सैनिक अच्छी तरह से प्रशिक्षित हों और हथियारों से सुसज्जित हों, लेकिन जब तक शांति सैनिकों को मेजबान देश में स्वीकृति नहीं मिलती है, तब तक प्रभावी शांति अभियान नहीं संभव है। मेजबान देश द्वारा शांतिरक्षकों की स्वीकृति महत्वपूर्ण है; और यह मेजबान देश की धारणा पर निर्भर करता है कि वह इन शांति सैनिकों को जो कि उसके यहां शांति -रखरखाव के लिए तैनात सैन्य टुकड़ियां से कई मायने में भिन्न हैं किस तरह से देखता है। यह भिन्नता शांति-सैनिकों के सामाजिक-सांस्कृतिक पृष्ठभूमि और संचालन संबंधी लोकाचार से जुड़ी हो सकती हैं।
आज के वेबिनार में संयुक्त राष्ट्र के शांति अभियानों को प्रभावी बनाने में योगदान करने वाले देशों के सैनिकों की संरचना और विविधता के प्रभाव, उनकी बदली हुई सामाजिक-सांस्कृतिक विशेषताओं और परिचालन व्यवहार पैटर्न पर विचार विमर्श किया जाएगा। इन कारकों का महत्व आमतौर पर चिकित्सकों को पता है लेकिन अकादमिक क्षेत्र में इस पर ज्यादा चर्चा नहीं की गई है। इस तरह की चर्चाएं शोधकर्ताओं की ओर से शामिल मुद्दों की समझ को बढ़ाने में योगदान कर सकती हैं और संयुक्त राष्ट्र शांति अभियानों की और अधिक प्रभावी बनाने के लिए भारत जैसे प्रमुख सैन्य योगदान देने वाले देश को बौद्धिक योगदान देने में भी सक्षम बनाती हैं।
मैं सभी प्रतिभागियों को बेहतर विचार-विमर्श का अवसर मिले इसके लिए शुभकामनाएं देती हूं।
धन्यवाद।
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