महामहिमण, प्रतिष्ठित विद्वतजन, देवियों और सज्जनों।
1. गैलीपोली 2021 अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन के उद्घाटन पर आज मैं आप सभी के साथ जुड़ते हुए प्रसन्नता का अनुभव कर रहा हूं। भारत में राष्ट्रीय महत्व के किसी भी मंच द्वारा गैलीपोली युद्ध के स्मरण में आयोजित किया जाने वाला यह पहला बड़ा आयोजन है। संभवत:, यह केवल तभी युक्तियुक्त होगा जब ऐसा दो सम्मानित, ऐतिहासिक निकायों अर्थात यूनाइटेड सर्विस इंस्टिट्यूट तथा विश्व मामलों की भारतीय परिषद द्वारा संयुक्त रूप से किया जाए। उनके द्वारा अंतर्राष्ट्रीय भागीदारी निभाते हुए एक-दूसरे के समीप आने से, उन्हें न केवल गैलीपोली अभियान पर अपने सहयोग को प्रतिबिंबित करने का मौका मिला है, बल्कि प्रथम विश्व युद्ध में भारत के योगदान का आकलन करने का भी अवसर प्राप्त हुआ है। मैं जानता हूं कि आज का विशिष्ट विषय गैलीपोली की पुनर्समीक्षा है, लेकिन यह भारत की वैश्विक भागीदारी और उपस्थिति के व्यापक मुद्दे पर एक बार पुन: सूक्ष्म नज़र दौड़ाने का भी एक अवसर है।
2. विजेता सहयोगी सेनाओं के भाग के रूप में प्रथम विश्व युद्ध में लड़ने वाले भारतीय सैनिकों का योगदान 2014-2018 के बीच भारत के विदेश मंत्रालय और भारत के संयुक्त सेवा संस्थान के बीच संयुक्त परियोजना का केंद्र-बिंदु रहा है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ऑस्ट्रेलिया, फ्रांस, ब्रिटेन और इज़राइल की अपनी आधिकारिक यात्राओं के दौरान इस विषय में बोलते हुए इस मुद्दे पर व्यक्तिगत रुचि ली थी। उन्होंने नवंबर 2014 में उनके मेजबान ऑस्ट्रेलिया के तत्कालीन प्रधान मंत्री टोनी एबोट को 14वीं फिरोजपुर सिख बटालियन के एक भारतीय सैनिक की प्रतिमा की रजत प्रतिकृति भेंट की थी। मैं समझता हूं कि इसकी मूल प्रतिमा 4 मेक (1 सिख) के ऑफिसर मेस में विद्यमान है, जो इस यूनिट का रेखिक वंशज है, जिसने गैलीपोली में युद्ध किया था। 16,000 भारतीय किसी भी राष्ट्रीय समूह द्वारा किए गए प्रधान योगदान के मध्य गैलीपोली संघटन का हिस्सा थे जो उनमें से किसी भी के लिए एक अत्यधिक विशाल संख्या है। वस्तुत:, युद्ध के मैदान में हर दस में से एक शहीद हो गया था, जिसकी विशिष्टाता को संभवत: एक सेवारत जर्मन जनरल के शब्दों में सबसे अच्छी तरह से व्यक्त किया गया है: "शायद ही कभी दुनिया के इतने अधिक देशों, नस्लों और राष्ट्रों ने अपने प्रतिनिधियों को एक-दूसरे को मार डालने के सराहनीय आशय के साथ इतनी छोटी जगह पर भेजा होगा।”
3. आप सभी जानते हैं कि प्रथम विश्व युद्ध के दौरान, 1.3 मिलियन से अधिक भारतीयों ने विदेशों में अपनी सेवाएं दी थीं जिनमें से 74,000 सैनिक हताहत हुए थे। वस्तुत: गैलीपोली ही ऐसा एकमात्र स्थान नहीं था जहां उन्होंने अपनी उत्कृष्टता प्रदर्शित की थी। मध्य एशिया से लेकर पूर्वी अफ्रीका तक, जिसमें पश्चिमी मोर्चे के दुर्गम भूभागों से लेकर मेसोपोटामिया के रेगिस्तान शामिल हैं, भारतीय साहस और अजेयता युद्ध के अत्यंत व्यापक क्षेत्रों में स्पष्टत: दिखाई दी थी। वास्तव में, निडर भारतीय वैमानिक यूरोप के आसमान में उड़ने वाले प्रारंभिक वैमानिकों में से भी एक थे। हमारे हताहत हुए अनेक सैनिकों का स्मरण दुनिया भर में विद्यमान अनेक स्मारकों और कब्रिस्तानों में किया जाता है। नई दिल्ली में स्थित इंडिया गेट के पत्थरों पर ऐसे 13,000 शहीद सैनिकों के नामों को उकेरा गया है, जहां से हम लोग हर रोज गुजरते हैं। यह भारतीय सैनिकों का अधिकार है कि इस अवधि के इतिहास के खातों में उनके महान योगदान को नजरअंदाज नहीं किया जाना चाहिए। फिर भी, ऐसा नहीं होता है कि यह वैसा ही बना रहा जैसा कि यह सदैव वास्तविकता में रहा है।
4. यह समझा जा सकता है कि अन्य शक्तियों की इतिहास को अपने लाभ के लिए दर्शाने के पीछे अपना ही स्वार्थ था। आखिरकार, अंतत: यह एक अभिभावी कवायद है जो एक बड़े रणनीतिक दावे का भाग है। तथापि, भारत के मामले में अनेक वर्षों तक, इतिहास की झिझक ने हमें अपनी विरासत के इस पहलू पर दावा करने के लिए अनिच्छुक बना दिया। ऐसा अब पारंपरिक सैन्य अवसरों जैसे युद्ध-विराम दिवस से आगे बढ़ते हुए और विदेशों में भारतीय सैनिकों के राजनीतिक महत्व को पहचानने के माध्यम से किया गया है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने स्वयं अप्रैल 2015 की अपनी यात्रा के दौरान फ्रांस के न्युवे चैपेले स्मारक पर जाकर तथा भारतीय सैनिकों के साहस और बलिदान की सराहना करके इसका एक उदाहरण पेश किया। दो साल बाद, इजरायल की अपनी ऐतिहासिक यात्रा के दौरान, उन्होंने हैफा स्मारक का दौरा किया, जो उसकी 1918 में उसकी स्वाधीनता के दौरान भारतीय सैनिकों के बलिदानों का प्रतीक है। अपने अतीत की उन्मुक्त भारतीय स्वीकरोक्ति पर स्वाभाविक रूप से विश्व द्वारा भी समुचित प्रतिक्रिया व्यक्त की गई थी ।
5. नवंबर 2017 में, बेल्जियम के सम्राट फिलिप और रानी मैथिल्डे ने इंडिया गेट पर पुष्पांजलि अर्पित करके और नई दिल्ली में "इंडिया इन फ्लैंडर्स फील्ड्स" नामक एक प्रदर्शनी का उद्घाटन करके बेल्जियम की रक्षा में भारतीय सैनिकों के योगदान को मान्यता प्रदान दी। जनवरी 2018 में प्रधानमंत्री मोदी और इज़राइली प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू ने नई दिल्ली में हैफा-तीन मूर्ति स्मारक को पुनर्नामित करने संबंधी समारोह में भाग लिया। नवंबर 2018 में, उपराष्ट्रपति वेंकैया नायडू ने प्रथम विश्व युद्ध के दौरान फ्रांस की स्वतंत्रता में भारतीय सैनिकों के योगदान का स्मरण करने के लिए फ्रांसीसी सरकार द्वारा दान में दी गई भूमि पर विलेर्स गुईस्लेन, फ्रांस में निर्मित भारतीय सशस्त्र बल स्मारक का उद्घाटन किया। मुझे इस बात पर कोई संदेह नहीं है कि हमें भविष्य में ऐसे कई और उदाहरण देखने को मिलेंगे।
6. कई मायनों में, गैलीपोली अभियान की गूंज सैन्य महत्व से कहीं अधिक प्रतिध्वनित हुई थी। ब्रिटिश, फ्रांसीसियों और जर्मनों ने इसके राजनीतिक और रणनीतिक परिणामों को लगभग तुरंत ही महसूस कर लिया था। तुर्की के लिए, यह इसके आधुनिक राष्ट्र की जन्मस्थली के रूप में एक विशेष अर्थ रखता है। एएनज़ैडएसी गाथा भी इस भीषण अनुभव से उभरी है, जिसने ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड की राष्ट्रीय पहचानों को मजबूत किया। स्पष्टत:, यहां तैनात की गई विविध टुकड़ियो में से प्रत्येक टुकड़ी अपनी स्मृतियो और सबकों के साथ यहां से वापस लौटीं। इस संदर्भ में, भारत के लिए संभवत: अधिक अध्ययन और व्यापक आत्मनिरीक्षण की आवश्यकता है। मित्र देशों की हार ने युद्ध में भारत की आगे की भागीदारी और मेसोपोटामिया में इसके उपरांत की तैनाती का निर्धारण किया। रणनीतिक परिणामों पर इसके द्वारा कारित किए गए अंतर ने पश्चिम एशिया में वह योगदान दिया जिसके बारे में वर्तमान में हम जानते हैं। 1918 तक, गैलीपोली सहित भारतीय प्रदर्शन के फलस्वरूप किंग्स कमीशंड इंडियन ऑफिसर का सृजन हुआ। हमारे राष्ट्रीय आंदोलन और स्वतंत्रता के लिए संघर्ष पर इसकी विवक्षाओं के बारे में हम कुछ जानकारी रखते हैं, जिन विषयों पर कुछ प्रसिद्ध विद्वानों द्वारा पहले से ही अन्वेषण कार्य किया गया है। जहां हम अधिक ध्यानपूर्वक ढंग से कार्य कर सकते हैं, वह क्षेत्र है एक राष्ट्रीय कर्ता के रूप में वैश्विक राजनयिक मंच पर भारत के उभरने के परिणाम।
7. गैलीपोली के उपरांत, भारत को इम्पीरियल वार कैबिनेट में शामिल कर लिया गया था, हालांकि यह एक वह उपनिवेशिक राज्य नहीं था। यह घटना, अपने आप में, मित्र देशों के प्रयासों में इसके सैन्य योगदान के महत्व को मान्यता प्रदान करने के तौर पर थी। इसके परिणामस्वरूप, भारत को 1919 में पेरिस शांति सम्मेलन के लिए ब्रिटिश साम्राज्य प्रतिनिधिमंडल में शामिल कर लिया गया। इसके साथ ही, भारत ने वर्साय की संधि पर हस्ताक्षर करने का अधिकार प्राप्त किया और वह लीग ऑफ नेशंस का संस्थापक सदस्य बन गया। अनेक दशकों बाद, अगले विश्व युद्ध में भारत के योगदान ने 1942 में वाशिंगटन सम्मेलन में 25 अन्य देशों के साथ उसकी उपस्थिति को समर्थ बनाया। इसके परिणामस्वरूप संयुक्त राष्ट्र द्वारा की गई घोषणा ने बहुपक्षीय संस्थानों की समकालीन संरचनाओं को गतिशील बना दिया जिनसे हम आज परिचित हैं, जिसमें संयुक्त राष्ट्र और इसकी विशिष्ट एजेंसियां, आईएमएफ और विश्व बैंक भी शामिल हैं। उन लोगों से, जो 20वीं शताब्दी में भारतीय युद्ध के प्रयासों के महत्व को मान्यता प्रदान करने के लिए अनिच्छुक रहे हैं, हम यह पूछ सकते हैं कि क्या वैश्विक संबंधों के शुरुआती अनुभव इन विवादों में भागीदारी के बिना आ सकते थे। और इनसे आवश्यकता रूप से तनाव हो सकता है क्योंकि ये कूटनीतिक अनुभव वास्तव में भारत के वैश्विक दृष्टिकोण के विकास में आधारभूत सबक रहे हैं।
8. जहां तक प्रथम विश्व युद्ध और गैलीपोली अभियान का संबंध है, हमें यह भी याद रखना चाहिए कि युद्ध के प्रयास को उस समय मुख्यधारा की भारतीय राजनीतिक राय का समर्थन हासिल था। यह आशा की गई थी कि ज़रूरत के समय में साम्राज्यवादी ब्रिटेन का समर्थन करके, भारत उसे नैतिक ऋण के अधीन ला देगा और इस तरह वह अपनी आकांक्षाओं पर और आगे काम करेगा। वस्तुत: इस तथ्य की हिमायत स्वयं महात्मा गांधी द्वारा भी की गई थी। जैसा कि हम सभी जानते हैं इन हतोत्साहित आशाओं ने पूर्ण स्वतंत्रता की दिशा में आंदोलन को तेज किया। उन्होंने बाद में द्वितीय विश्व युद्ध के प्रति भारतीय राजनीतिक दृष्टिकोण को भी आकार प्रदान किया। प्रत्येक अनुभव वास्तविक राजनीति में अपने स्वयं के सबक प्रदान करता है। लेकिन संचयी रूप से, उन्होंने पश्चिम के एक संदेह का आधार स्थापित किया जिसे शीत युद्ध के फैसलों से और भी मजबूती प्राप्त हुई। आज, वैश्विक व्यवस्था के पुनर्संतुलन ने नए अभिसरण पैदा किए हैं। अल्प वैचारिक सिद्धांतों के साथ बृहद राष्ट्रीय विश्वास ने मजबूत संपर्कों को प्रोत्साहित किया है। लेकिन अतीत विशेष रूप से विकास संबंधी मुद्दों पर कतिपय संशयवाद का वर्णन करता है।
9. यह सम्मेलन गैलीपोली के अनुभव से हासिल किए गए तुलनात्मक सबकों के आदान-प्रदान के लिए व्यापक उपाय के प्रति समर्पित है। यह स्वाभाविक है कि इस विषय का समाधान दुनिया भर से इकट्ठे हुए सैन्य इतिहासकारों के समूह द्वारा किया जाना चाहिए। और मैं समान रूप से इस बात से अवगत हूं कि इसके अनेक राजनीतिक, रणनीतिक और कूटनीतिक परिणामों पर पर्याप्त चर्चा की जाएगी। लेकिन एक विदेश मंत्री और अंतर्राष्ट्रीय राजनीति के छात्र के रूप में, मैं इस अवसर पर इस अभियान और उस युग के राजनीतिक परिणामों के बारे में अपने कुछ विचार साझा करना चाहूंगा। जैसाकि आपने देखा ही होगा, इस असाधारण आयोजन में विचार-विमर्श के लिए संभावनाएं विद्यमान हैं कि इसके प्रभावों को एक सदी बाद भी महसूस किया जाता रहेगा।
10. सर्वाधिक प्रासंगिक प्रश्न साझे हित के लिए आपस में सहयोग करने से संबंधित है। यह स्मरणीय है कि विश्व युद्धों के दौरान भारतीय सैनिकों को प्रेरणा न विजय से और न ही अधिग्रहण से हासिल हुई थी। उनकी उत्प्रेरणा शक्ति सैन्य नैतिकता, सम्मान और एक पेशेवर सैनिक की गरिमा थी। इसने विदेश में उनकी आत्म-धारणा और व्यवहार को आकार दिया तथा अनुशासन और जिम्मेदारी की छवि का निर्माण किया। वे मानक जिनके साथ भारतीय सेना देश और विदेश में अन्यों के साथ सहयोजित है, उनमें अनेक अन्य बातों के साथ उसका इतिहास भी शामिल है। यह विशेष रूप से एक ऐसे भारत के संदर्भ में प्रासंगिक है जो अब अपने उद्भव के एक अलग चरण में प्रवेश करने की तैयारी कर रहा है। परंतु मैं यह कहना चाहता हूं कि इसमें शेष विश्व के लिए भी हित के अनेक क्षेत्र विद्यमान हैं।
11. प्रथम विश्व युद्ध में, युद्ध के मैदान अथवा अन्यथा भारतीय सैनिकों के उत्कृष्ट प्रदर्शन ने, हमें शांति स्थापना के लंबे मार्ग पर ला खड़ा किया है। पुलिस कर्मियों के अलावा 50 अभियानों और 2,53,000 सैनिकों के साथ भारत का योगदान संयुक्त राष्ट्र शांति स्थापना में सबसे बड़ा रहा है। भारतीयों ने गैलीपोली के समीप के क्षेत्रों में अत्यंत उत्कृष्टता के साथ कार्य किया है और वे आज भी ऐसा ही कर रहे हैं। संयुक्त राष्ट्र की सर्वोच्च बलिदान देने वाली टुकड़ियों की विशालतम संख्या भी भारत की ही है। हमारे सैनिक अपने साथ सहानुभूति और निष्पक्षता की संस्कृति लाते हैं, वे मित्रों या भागीदारों के साथ संबंध बनाते हैं, न कि अपरिचितों या अजनबियों के साथ। भारतीय शांति स्थापना टुकड़ियों को शायद ही कभी ऊपर से थोपा हुआ समझा जाता है; वस्तुत: वे आसानी से स्थानीय समाज के ताने-बाने में घुलमिल जाते हैं। इसके परिणामस्वरूप, वे परिवर्तन के उत्प्रेरक बनने के लिए अपनी निर्धारित भूमिका से परे भी जा सकते हैं।
12. इस संबंध में वर्ष 2007 में लिबेरिया में संयुक्त राष्ट्र शांति स्थापना के लिए गठित प्रथम सर्व-महिला पुलिस यूनिट की गाथा उल्लेखनीय है। उस देश में यौन और लिंग-आधारित हिंसा का मुकाबला करने में इस यूनिट का एक महत्वपूर्ण योगदान था। भारतीय महिलाओं की वर्दी में प्रेरणादायक उपस्थिति ने लिबेरिया में महिला सशक्तिकरण की प्रक्रिया को प्रोत्साहित किया। वस्तुत: लिबेरियाई राष्ट्रीय पुलिस में महिला आवेदकों की संख्या में अगले दो महीनों में काफी वृद्धि हो गई। लिबेरियाई पुलिस अकादमी में महिलाओं का नामांकन वर्ष 2006 में प्रति कक्षा चार से बढ़कर वर्ष 2007 में प्रति कक्षा 30 हो गया और 2008 में यह और भी बढ़कर प्रति कक्षा 100 हो गया। लिबेरियाई सुरक्षा सेवाओं में महिलाओं की भर्ती 10 प्रतिशत से बढ़कर 17 प्रतिशत हो गई। अत: हमने यहां ऐसी स्थिति देखी जहां भारतीय महिला शांति-स्थापना सैनिकों को भलाई के लिए एक बल के रूप में देखा गया, जो अनुकरण के योग्य था; ठीक उसी तरह, जिस तरह निष्ठावान भारतीय सैनिक प्रथम विश्व युद्ध के दौरान सर्द, ठंड से कड़कड़ाते युद्ध के मैदानों में अपने कर्त्तव्य का निर्वहन कर रहे थे। यूरोप द्वारा उनके अपने साथियों और स्थानीय लोगों का समान रूप से सम्मान किया गया था। वास्तव में, वे समकालीन समय में भारत के सबसे बेहतर राजदूतों में से एक थे।
13. एक ऐसी दुनिया में, जो निराशाजनक रूप से उस तुलना में कम बहुपक्षीय थी, जितना कि उसे होना चाहिए था, और जैसा वह होना चाहती थी, साझा हित एक सतत राष्ट्रीय पहल है। हमारे अपने क्षेत्र में, किसी भी मानवीय सहायता या आपदा राहत के मामले ने भारत ने सदैव प्रथम प्रतिक्रियादाता के रूप में पहल की है। हमने यह बात अक्सर देखी है - चाहे वह यमन में छिड़ा गृहयुद्ध हो, नेपाल में आया भूकंप हो, मोजाम्बिक में चक्रवात हो या श्रीलंका में हुआ भूस्खलन हो। कुछ ऐसी विषम परिस्थितियों, जो कोविड-19 महामारी ने हमारे सामने प्रस्तुत की थीं, का भी समाधान भारतीय सेना की तैनाती द्वारा किया गया है। हमारे सैन्य चिकित्सा दलों ने पिछ्ले वर्ष कुवैत, मालदीव, मॉरीशस, मेडागास्कर, सेशेल्स और कोमोरोस में सार्वजनिक स्वास्थ्य स्थितियों को सामान्य बनाने में महत्वपूर्ण योगदान दिया। लेकिन, चुनौतियां केवल संकट के समय पर ही उत्पन्न नहीं होती हैं। उदाहरण के लिए, साझे वैश्विक हित समुद्री सुरक्षा की चुनौतियों के कारण हर दिन ही संकट में घिरे रहते हैं। आतंकवाद या संगठित अपराध के खतरे हमेशा ही मौजूद रहते हैं। जलवायु परिवर्तन प्राकृतिक आपदाओं को निरंतर आमंत्रण दे रहा है। और मानव-निर्मित संघर्षों की मात्रा में गैलीपोली के बाद एक शताब्दी तक भी कोई कमी नहीं आई है। आदर्श रूप में, हर महत्वपूर्ण चुनौती का समाधान एक सहमत तंत्र या व्यवस्था द्वारा ही किया जाना चाहिए। लेकिन वास्तविकताएं अत्यत दुखद हैं और निरंतर यह स्पष्ट होता जा रहा है कि वर्तमान समय की अधिकांश जिम्मेदारियों का निर्वहन को उन लोगों द्वारा किया जाना होगा जिनके पास ऐसा करने की क्षमता और इच्छा मौजूद है। उस अर्थ में, गैलीपोली की भावना वैश्विक कल्याण के लिए भारत के योगदान का मार्गदर्शन करती रहेगी।
14. साझे कल्याण के लिए सैन्यीकरण को स्पष्ट रूप से किसी समाज के दृष्टिकोण से आकार प्रदान किया जाता है। यह स्वाभाविक ही है कि एक ऐसा राष्ट्र, जिसने विश्व से दूरी बनाए रखने के स्थान पर ऐतिहासिक रूप से दुनिया को गले लगाया है, इस दिशा में एक अधिक इच्छुक रुख अपनाएगा। समकालीन राजनयिकता में, यह रुख बहुपक्षवाद के प्रति निष्ठावान, वास्तविक समर्थन में भी परिलक्षित होता है। जहां कहीं भी इसका अभाव हो जाता है, अब वहां इसे बहुपक्षीय पहलों में अभिव्यक्त किया जाता है। भारत आज बहुपक्षवाद का एक प्रबल समर्थक है और यह इसके सुधार की पुरजोर हिमायत करता है। वैश्विक व्यवस्था में परिवर्तनों का विरोध करने वाले राष्ट्र आज अपनी हठ को आखिरी विश्व युद्ध के दिए गए सैन्य योगदान और उसके परिणामों के अनुपालन के परिप्रेक्ष्य में सही ठहराते हैं। लेकिन वास्तव में, गैलीपोली और अन्य विश्व युद्ध की घटनाएं यह रेखांकित करती हैं कि भारत उन देशों में से एक था जो इस संबंध में अल्प-परिवर्तित हुए थे। चाहे वह अतीत हो या भविष्य, वैश्विक निर्णय लेने की प्रक्रिया को वस्तुत: और अधिक प्रतिनिधित्वकारी बनाए जाने का एक मजबूत मामला बनता है। यह तथ्य इस मामले को मजबूती प्रदान करता है कि भारतीय अंतर्राष्ट्रीयवाद वस्तुत: समय की ताकत के साथ और भी अधिक मजबूत हुआ है। और स्पष्ट रूप से इसे सैन्य-व्यवस्था से परे विभिन्न आयामों में व्यक्त किया गया है। यदि भारत आज एक अंतर्राष्ट्रीय सौर संधि अथवा आपदारोधी अवसंरचना के लिए गठबंधन का नेतृत्व करता है, तो उन्हें उनका नेतृत्व करने वाली प्रवृत्तियां उतनी भिन्न नहीं होती हैं। यह कृषि, ऊर्जा, डिजिटल या शिक्षा के क्षेत्र में व्यापक विकास भागीदारी के संदर्भ में भी सत्य है जो अफ्रीका के माध्यम से कैरेबियाई क्षेत्र तक आज प्रशांत द्वीप-समूह में विस्तारित हो गया है।
15. गैलीपोली निश्चित रूप से आधुनिक युग में भारत के वैश्विक सैन्य विस्तार का एक महत्वपूर्ण उदाहरण है। विश्व युद्धों ने अपने इतिहास में व्यापक अंतराल के बाद भारतीय सैन्य-शक्ति की सुदूरवर्ती तैनाती के अवसरों को पुनर्जीवित किया। परंतु ये हमें दो अंतर्निहित सत्यों का स्मरण कराते हैं: पहला, दुनिया की सहज प्रकृति, और दूसरा, भारत का वैश्विक प्रभाव। लेकिन दुर्भाग्यवश दोनों ही वास्तविकताओं को इतिहास द्वारा बाधित किया गया जिसने दुनिया को भारतीय शक्ति में कमी करते हुए भी कृत्रिम भागों में विभाजित कर दिया। तथापि, विश्व व्यवस्था का पुनर्संतुलन और आगामी बहुध्रुवीयता एक लंबे समय से प्रतीक्षित सुधार को संचालित कर रहे हैं। भारत आज इतिहास को पुनःव्यवस्थित करने और रूढ़िवादी परंपराओं से परे अपने हितों को फिर से सुदृढ़ बनाने के बीच की अवस्था में है। यह एक्ट ईस्ट नीति, भारत-प्रशांत दृष्टिकोण, खाड़ी और पश्चिम एशिया के साथ संबंधों को पुनर्जीवित करने और अफ्रीका तक पहुंच बनाने के उसके प्रयासों से स्पष्ट है। यह भी समान रूप से स्पष्ट है कि संयोजनता, जो एक ऐसी अवधारणा है जिसका गैलीपोली सुदृढ़ता के साथ प्रतिनिधित्व करता है, 21वीं सदी की कड़ी प्रतिस्पर्धा में और अधिक संवेदनशील हो गई है। जब भारतीय दुनिया को नए सिरे से और स्पष्ट दृष्टिकोण के साथ देखते हैं, वैश्विक युद्ध के मैदान जहां हमने क्षणिक परिणामों को निर्धारित करने के लिए रक्त बहाया है, स्मरण और प्रेरणा दोनों ही की भूमिका निभाते हैं।
16. इतिहास का अर्थ अलग-अलग काल में अलग-अलग लोगों के लिए अलग-अलग बातें होता है। गैलीपोली भी इसका कोई अपवाद नहीं है, और इसके सभी प्रतिभागियों का इसके संबंध में अपना-अपना दृष्टिकोण था। लेकिन इसके महत्व के बारे में हमारी समझ भी समय बीतने के साथ विकसित हुई। अतीत स्वाभाविक रूप से सभी देशों पर अपना प्रभाव डालना जारी रखता है, चाहे वह बड़े दृष्टिकोण के संदर्भ में हो या संकीर्ण नीति के मामले में। जब हमने एक साथ खून बहाया हो, तो हमारे आपसी संबंध उस दृष्टि से हमेशा मजबूत होते हैं। कभी-कभी, विशिष्ट अनुभवों ने हमारी सोच को आकार दिया है : जैसे वर्ष 1915 में पश्चिमी मोर्चे पर तैनात भारतीय सैनिकों पर रासायनिक हथियारों का प्रयोग किया गया था। एक अन्य स्तर पर, अतीत में उत्पन्न हुआ संशय सदैव ही भविष्य के संबंधों में एक कारक रहा है। यह भावना उस समय अत्यधिक स्पष्ट थी जब 2015 में प्रधानमंत्री मोदी फ्रांस की यात्रा पर थे। जबकि एक ओर भारत नए समीकरणों के साथ एक बहुध्रुवीय विश्व को अपना रहा था, ये पर्याप्त महत्व के ब्लॉकों का निर्माण कर रहे हैं। भारत में, यदि हम अतीत की घटनाओं के बारे में हमारे पठन के प्रति चयनात्मक रहते हैं, तो विषयपरकता मौजूदा राजनीति को प्रतिबिंबित करती है। दशकों तक, इसके कारण एक महान परंपरा और एक साहसी रिकॉर्ड को उसकी क्षमता से कम हासिल हुआ है, हालांकि हमारी मौजूदा क्षमताएं उन्हीं नींवों पर खड़ी हुई थीं। वास्तव में, हमारे ऐतिहासिक आकलन अधिक समकालीन और तात्कालिक उद्देश्यों की पूर्ति करने के लिए तैयार किए गए थे। जबकि अब हम अंतत: आगे बढ़ गए हैं, तो संभवत: समय परिपक्व हो गया है कि हम हमारे वैश्विक योगदान की वस्तुपरक रूप से पुन: समीक्षा करें। एक आश्वस्त राष्ट्र अपने अतीत के बारे में समान रूप से आश्वस्त हो सकता है। और कम-से-कम, यह एक ऐसे समाज के निर्माण के लिए मददगार होगा जो गंभीरता से उसी रूप में तैयार होगा, जैसेकि इसके द्वारा प्रतीक्षा की जा रही है।
17. देवियो और सज्जनों, मैं अपनी बात की समाप्ति एक बार फिर गैलीपोली पर इस अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन का आयोजन करने की इस प्रशंसनीय पहल के प्रति सराहना व्यक्त करते हुए करना चाहूंगा। यह हमारे लिए एक समसामयिक संदेश है कि भारत हमेशा वैश्विक घटनाक्रमों के प्रति सजग रहा है और हमें उसी तरीके से सोचना जारी रखना चाहिए । यह हमारे लिए एक अनुस्मारक भी है कि हमारे हित और प्रभाव प्रतिस्पर्धियों द्वारा सुझाए गए परिमाण की तुलना में कहीं अधिक व्यापक हैं। और हम में से अधिकांश के लिए, यह एक चहुंमुखी विचार के रूप में अर्थपूर्ण और विचारोत्तेजक संवाद को प्रोत्साहित और आयोजित करने के संबंध भारत द्वारा दिए जाने वाले महत्व की सकारात्मक पुष्टि है।
मेरे विचारों को ध्यानपूर्वक सुनने के लिए आपका बहुत-बहुत धन्यवाद।
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