गेलीपोली पर यूएसआई–आईसीडब्ल्यूए की अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी , अप्रैल 2021
प्रारंभिक कथन
अपने देश के लिए जीने और मर मिटने वालों के लिए हमारे दिलों में बहुत सम्मान है और हम उन सभी की तहे दिल से प्रशंसा करते हैं। इसलिए आज यहाँ होना बहुत सम्मान की बात है क्योंकि आज हम सब यहां एक सदी से भी पहले गेलीपोली में हमारे भविष्य के अपने वर्तमान को कुर्बान करने वालों के योगदान, वीरता और बलिदान को याद करने आए हैं।
मैं महामारी से प्रभावित इस बेहद चुनौतीपूर्ण समय में इस संगोष्ठी को आयोजित करने की पहल करने पर यूएसआई और विश्व मामलों की भारतीय परिषद् को धन्यवाद देना चाहता हूँ। इस संगोष्ठी में शामिल होने वाले कुछ विशेष वक्ताओं में उच्चायुक्त के राजदूत और बड़ी संख्या में प्रसिद्ध लेखक, प्रख्यात इतिहासकार और सेना से सेवानिवृत्त हो चुके अधिकारी हैं जिन्होंने पिछले दो दिनों में हुई कार्यवाही में बहुत योगदान दिया। हालांकि अभी भी कई कहानियां इतिहास के पन्नों में छुपी होंगी फिर भी यूएसआई और आईसीडब्ल्यूए के प्रयास वाकई सराहनीय हैं।
इसे अच्छी तरह से स्वीकार किया जा चुका है कि तुर्की, ऑस्ट्रेलिया और न्यूज़ीलैंड के समकालीन इतिहास को आकार देने में गेलीपोली का बहुत प्रभाव पड़ा था। यहां तक की भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन पर हुए महायुद्ध के प्रभाव को भी स्वीकार किया गया है।
व्यापक संदर्भः प्रथम विश्वयुद्ध के परिप्रेक्ष्य में
- प्रथम विश्व युद्ध विश्व के इतिहास की ऐतिहासिक घटना थी। इसने विश्व के सामाजिक और राजनीतिक मानचित्र को प्रभावित किया था। उस समय भारतीय सेना दुनिया की सबसे बड़ी स्वैच्छिक सेना थी और इसने यूरोप, एशिया और अफ्रीका में अपनी सेवाएं दी थीं।
- भारतीय सैनिकों ने सेना से जुड़ी प्रतिष्ठा के लिए जंग लड़ी। उन्होंने अपनी रेजीमेंट की इज्जत और सम्मान के लिए हंसते– हंसते अपने प्राण न्योछावर कर दिए। हिन्दु, मुस्लिम, सिख और इसाई, सभी ने भाईचारे में विश्वास रखते हुए, जैसा कि वे आज भी करते हैं, कंधे– से– कंधा मिला कर युद्ध किया।
- मैं इस तथ्य पर ध्यान दिलाना चाहता हूं कि युद्ध में 1.3 मिलियन (13 लाख) भारतीय सैनिकों ने हिस्सा लिया था जिसमें से 74,000 सैनिकों की मृत्यु जंग में हो गई और कई घायल हुए। भारतीय सेना के सैनिकों को 9200 से भी अधिक वीरता पुरस्कार मिले जिनमें से 11 विक्टोरिया क्रॉस थे।
- प्रथम विश्व युद्ध के समाप्त होने के बाद भी जीवित बचे सैनिकों का संघर्ष समाप्त नहीं हुआ था। उनमें से कईयों को 1919 में चल रहे तीसरे अफगान युद्ध और 1919-20 के वज़ीरिस्तान अभियान में अलग– अलग भूमिकाओं में भेजा गया।
- इसलिए गेलीपोली अभियान विश्व युद्ध के दौरान भारतीय सेना द्वारा लड़े गए कई अभियानों में से एक अभियान भर है।
बेहद आशावादी और महत्वाकांक्षी योजना
- दोनों पक्षों के हताहतों की संख्या के संदर्भ में गेलीपोली अभियान बहुत ही महंगा अभियान था। जटिल प्रदेश और मजबूत दुश्मन को देखते हुए मित्र देशों के दृष्टिकोण से यह निश्चित रूप से सबसे अच्छी तरह नियोजित और साधन संपन्न अभियान नहीं था। ब्रिटिश इतिहासकार जॉन कीगन ने जनरल हैमिल्टन के नेतृत्व में भूमध्यसागरीय अभियान सैन्यदल के इस भूमि और जल दोनों पर ही चलाए जाने वाले अभियान के बारे में लिखते हुए कहा कि, " पूरे घटनाक्रम को देखें तो पता चलेगा कि, हैमिल्टन को जो सैन्यबल उपलब्ध कराया गया था उसमें हैमिल्टन तो क्या किसी की भी योजना काम नहीं कर सकती थी"। एक अन्य इतिहासकार पीटर हार्ट ने गेलीपोली को " 'पूर्व' की एक रोमांचक श्रृंखला बताया जिसे वैश्विक स्थिति के उचित विश्लेषण किए बिना शुरु किया गया था और जिसमें रसद संबंधी वास्तविकताओं की अनदेखी एवं दुश्मनों की ताकत को कम आंका गया था।"
- यह पहली बार नहीं था और न ही आखिरी बार जब बहुत आशावादी एवं अत्यधिक महत्वाकांक्षी योजना और उसके निष्पादन में सेना को हार का सामना करना पड़ा हो। लेकिन गेलीपोली का युद्ध केवल खराब योजना का ही विषय नहीं है, यह तो कहानी का केवल एक हिस्सा है। यह उन सैनिकों के धैर्य और संकल्पशक्ति से भी जुड़ा है जो एक अंजान परिवेश में खुद को अपनी मातृभूमि से दूर पाते हैं। इन जांबाज सैनिकों ने सफलता की बहुत कम संभावना होने के बावजूद दुश्मनों को मुँहतोड़ जवाब दिया।
गेलीपोली में भारतीय सैनिक
- मात्र ग्यारह (11) रुपये महीने के वेतन, एक जोड़ी वर्दी और एक दिन में तीन बार भोजन; इसलिए गेलीपोली में भारतीय सैनिकों की कहानी बहुत प्रेरणादायक है। इस अभियान में हिस्सा लेने वाले करीब 15,000 भारतीय सैनिकों में से चार गोरखा बटालियन, एक सिख इंफेंट्री बटालियन (सिख पैदल– सेना), सातवीं (7) भारतीय तोपखाना ब्रिगेड चिकित्सा इकाई ( सेवेंथ इंडियन आर्टिलरी ब्रिगेड मेडिकल यूनिट) के वीर तोपची 14 सिख और अश्व कोर के हिस्से के रूप में कई हजार अश्व चालक।
गोरखा
- भूमध्यसागरीय अभियान सैन्यदल के कमांडर जनरल हैमिल्टन जिन्हें गेलीपोली अभियान का जिम्मा सौंपा गया था, ने अपनी नौकरी के दौरान पहले ही गोरखा पैदल सिपाहियों को देख रखा था और पहाड़ी प्रदेशों में वे उनकी क्षमताओं से भी वाकिफ थे। इसलिए इसमें कोई आश्चर्य की बात नहीं है कि उन्होंने अभियान के शुरु होने से पहले ही गेलीपोली के लिए गोरखाओं की बिग्रेड भेजने के लिए लॉर्ड किचनर को एक अनुरोध पत्र लिखा था। उन्होंने लिखा और मैं वही यहां उद्धृत कर रहा हूँ "पठार के दक्षिण–पश्चिम हिस्से छोटी– छोटी पहाड़ियों की तरह हैं और ये छोटे साथी उनमें बेहतरीन प्रदर्शन करते हैं… हर एक "गुर्क" गेलीपोली में अपनी पूरी क्षमता के साथ काम कर सकता है।"
- गुरखा बटालियनों ने अपनी एक पहचान बनाई है और यह साबित किया है कि कुशल नेतृत्व में वे सभी चुनौतियों को पार कर सकते हैं। केप हेल्स सेक्टर में, शुरुआती दिनों में गोरखाओं द्वारा कब्जा किए गए 300 फीट उंची पहाड़ी का नाम बदल कर गोरखा ब्लफ रखा गया– एक नाम जिसे आज भी जलसैनिक अपने चार्ट में देख सकते हैं, उनके वीर कर्मों के प्रति श्रद्धांजलि है।
- यह मुझे 5 गोरखा राइफल्स का इतिहास बताने वाली किताब के दिलचस्प किस्से की याद दिलाता है, किस्सा इस प्रकार हैः
" कवरिंग पार्टी के प्रभारी एन.के. धान सिंह गुरुंग रास्ता भटक गए और तुर्कों ने उन्हें पकड़ लिया। मौका मिलते ही वह पहाड़ी से कूद गए, बच गए और तट पर पहुँच गए लेकिन उनका दुर्भाग्य की उन्हें फिर से पकड़ लिया गया। इसके बाद भी उन्होंने हिम्मत नहीं हारी और एक बार फिर वे दुश्मन की पकड़ से छूटे और समंदर में छलांग लगा दी। कई चीजों की तरह गोरखाओं को तैराकी के लिए नहीं जाना जाता। लेकिन ये धान सिंह गुरुंग थे। वर्दी और हथियार के बोझ से लदे और जबरदस्त गोली–बारी के बीच वे नीले समंदर में तैरने लगे और तैरते रहे और फिर वे तट के साथ– साथ तैरने लगे और तब तक तैरते रहे जब तक की ब्रिटिश सीमा नहीं आ गई। फिर उन्होंने ड्यूटी के लिए खुद के प्रस्तुत कर दिया।"
- ऐसी कई कहानियां हैं जिन्हें इतिहास के आधिकारिक किताबों में कभी जगह नहीं मिल पाई
लेकिन सेना की यूनिटों में फौजी अधिकारियों द्वारा उन्हें बहुत ही गर्व के साथ नए सैनिकों को सुनाया जाता और निश्चित रूप से उनमें अधिकारी कुछ बातें अपनी तरफ से जोड़ देते।
- गेलीपोली के कुछ सिंगल क्लास बटालियनों में से एक, वीर 14 फीरोज़पुर सिख, ने अपने 75% सैनिक गंवा दिए थे और उनके सभी अधिकारी एक ही हमले में मारे गए थे। ऐसा प्रचंड युद्ध था।
- अश्व कोर की बात करें तो अश्व चालक गेलीपोली में भारतीय सेना का एकमात्र सबसे बड़ा घटक था। गेलीपोली प्रायद्वीप में पूरे सैन्यबल के लिए ये घोड़े आपूर्ति व्यवस्था के मुख्य आधार थे। उनके बिना बीहड़ पहाड़ी इलाके और घनी झाड़ियों वाले हिस्से को कभी पार नहीं किया जा सकता था। न तो उन्होंने कोई युद्ध की घोषणा की न ही कोई वीरतापूर्ण आक्रमण किया। उन्होंने चुपचाप अपनी गाड़ियों को भरा और संकरे रास्ते से होते हुए चोट लगने और मशीन गन एवं स्नाइपर्स से हो सकने वाली मौत का जोखिम उठाते हुए अपने रोजमर्रा के काम में लग गए। उन्होंने राशन और गोला–बारूद पहुँचाया लेकिन सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि वे सीमा पर तैनात सैनिकों के लिए उम्मीद ले कर आए।
- निश्चित रूप से सैन्य अभियान जिन प्रदेशों में चलाए जाते हैं वहां की भूमि पर वे अमिट छाप छोड़ जाते हैं। हर एक पक्ष द्वारा निभाई जाने वाली भूमिका अपने स्थान पर महत्वपूर्ण थी। सिपाही होने की वास्तविक खुशी ने इन सैनिकों को दूर देशों में वीरता के दुर्लभ कारनामे करने को प्रेरित किया। भारतीय सेना और राष्ट्र के रूप में भारत, प्रत्येक सैनिक, जिन्होंने अपने विश्वास के लिए पूरी वीरता के साथ युद्ध लड़ा, के शूरता को स्वीकार करता है।
- समय बदल गया है। आज विश्व युद्ध के सबसे बड़े शत्रु सबसे अच्छे सहयोगी और साझेदार बन चुके हैं और दुनिया में शांति और सद्भाव को बढ़ावा देने के लिए एक दूसरे के साथ सहयोग कर रहे हैं। यही सामंजस्य की शक्ति है। तुर्की द्वारा गेलीपोली में बनाए गए स्मारक के शिलालेख पर लिखे शब्द इस भावना को बहुत अच्छे से व्यक्त करते हैं– 'वे नायक जिन्होंने अपना खून बहाया और अपने प्राण न्योछावर किए, अब एक मित्र देश की मिट्टी में आराम कर रहे हैं। इसलिए शांति से विश्राम करें। हमारे देश में आस– पास चिर निंद्रा में सोए जॉनीज़ और मेहमेट्स में कोई अंतर नहीं। आप माताएं जिन्होंने अपने बेटों को दूर देशों में भेजा, अपने आंसू पोंछ लें। आपके बेटे अब हमारे वक्षस्थल में हैं और विश्राम कर रहे हैं। इस भूमि पर अपने प्राण न्योछावर करने के बाद वे हमारे भी बेटे बन गए हैं।'
- अभियान में करीब 60,000 सैनिकों को खोने के बाद भी इस प्रकार का स्मारक बनवाना, वास्तव में अनुकरणीय है। इसमें हम सभी के लिए एक सीख है कि हमें सभी के साथ अच्छे संबंध बना के रखने चाहिए और शांति एवं सद्भावना के साथ रहना चाहिए।
- सूदूर देशों से आए सैनिकों के बीच की मित्रता और सौहार्द पहेली जैसा है। उनमें कुछ में आम नहीं होता, उनके द्वारा बोली जाने वाली भाषा भी नहीं और फिर भी वे एक दूसरे को बहुत अच्छी तरह से समझ सकते हैं। गेलीपोली में भारतीय और एनजैक सैनिकों द्वारा साझा की जाने वाली अनेकों चीजों में से राशन भी था जिसमें भारतीयों का मुख्य भोजन दाल और रोटी एनजैक सैनिकों के बीच काफी लोकप्रिय हो गया था।
- एनजैक सैनिकों के डायरी में मिली तस्वीरें और पत्र जिन्होंने अपने भारतीय सहयोगियों के बारे में बहुत अच्छी बातें लिखीं, हमारे लिए मूल्यवान संसाधन हैं। एक भारतीय सैनिक– करम सिंह की वीरता का वर्णन, जिन्होंने तोपखाने के गोले के बाहरी हिस्से से चोट लगने और उसकी वजह से अपनी आँखों की रौशनी गंवाने के बाद भी अपने सैनिकों को गोलीबारी जारी रखने का आदेश देते रहे; और गेलीपोली के युद्ध के मैदान में भारतीय अश्व चालकों के साथ रहने वाले ऑस्ट्रेलियाई जॉन सिम्पसन की कहानी, ऑस्ट्रेलिया की लोककथाओं में सिंपसन और उनका गदहा नाम से प्रख्यात है क्योंकि उन्हें ऑस्ट्रेलियाई राशन में मिलने वाले बीफ (गौमांस) से कहीं अधिक भारतीय सैनिकों द्वारा पकाया जाने वाला ताजा भोजन पसंद था। ये कुछ ऐसी कहानियां हैं जो कुछ ऑस्ट्रेलियाई विद्वानों द्वारा कई वर्षों के शोध के बाद सामने आईं हैं।
- गेलीपोली के मैदानों में बने दोस्ती के इन बंधनों को न सिर्फ याद किया जाना चाहिए बल्कि इन्हें बनाए रखा जाना और मजबूत किया जाना चाहिए। भूमध्यसागर के तट पर गेलीपोली संग्रहालय में भारतीय सैनिकों के पुरावशेष वर्दियों और पुराने हथियारों को प्रदर्शित करने की भारत सरकार एवं तुर्की सरकार की पहल इसी दिशा में उठाया गया कदम है।
उपसंहार
- अपनी बात समाप्त करते हुए मैं कहना चाहूंगा कि प्रथम विश्व युद्ध भारतीय सैनिकों के लिए अनूठा विदेशी अनुभव था। विश्व को भारत और भारतीय सैनिकों के दमखम का पता चला। वास्तव में, पंजाब रेजीमेंट के रूप में नामित बटालियनों का, धार्मिक वर्जनाओं के बावजूद समुद्री यात्रा करने की मान्यता देने के लिए 'खुस्की वा तारी' (हमेशा तत्पर) मोटो के साथ बैज ऑफ गैले से सम्मानित किया गया। नौसेना का प्रतीक चिन्ह से सम्मानित होने वाली यह थलसेना की एकलैती इकाई है। तुर्कों की तरह अन्य स्वतंत्र लोग, जो अपना भाग्य खुद संवार रहे हैं, के लिए इस खुलासे ने हमारे सैनिकों को राष्ट्रवाद की नई भावना दी है।
- इसलिए जब ये सैनिक युद्ध के बाद अपने घर लौटे तो उनके अनुभवों और कहानियों ने भारत के स्वतंत्रता आंदोलन में प्रेरणा का काम करेंगे। राष्ट्रीय चेतना में यह वृद्धि स्वाधीनता और स्वतंत्रता के अधिकार हेतु व्यापक इच्छा को जन्म देगी। इसके बाद होने वाली घटनाएं युद्ध के बाद भारतीय राष्ट्रवाद में वृद्धि की गवाह हैं।
- मैं कहना चाहूंगा कि गेलीपोली के महान युद्ध के कई अभियान न सिर्फ परिचालन के दृष्टिकोण से बल्कि लोगों के नजरिए से भी बहुत मायने रखता है। इस अभियान ने युद्ध के बीच मनुष्य के स्वभाव के विभिन्न रंगों को खूबसूरती से कैद किया। एक ही समय में वे गर्मी और मच्छरों एवं पेचिश की महामारी से जूझ रहे थे और अगले ही मौसम में वे बारिश और बर्फबारी का सामना कर रहे थे। उनकी सूती वर्दी खून जमा देने वाली सर्दी में मौत के मुँह में ढकेल रही थी।
- इस संदर्भ में यह संगोष्ठी उस महान युद्ध में भारत के योगदान को ही नहीं बल्कि विश्व के अलग– अलग हिस्सों से आए सैनिकों ने कैसे अलग– अलग सांस्कृतिक पृष्ठभूमि के होते हुए भी मूल्यों को साझा किया और एक दूसरे के साथ सौहार्द बनाए रखते हुए दोस्त बने, को उजागर करने के दृष्टिकोण से भी महत्वपूर्ण है।
- आखिर में, मैं इस अभियान के विभिन्न आयामों को बहुत सावधानी से एक साथ लाने और दर्शकों में दिलचस्पी पैदा करने और उनका ध्यान आकर्षित करने के लिए बेहद कुशल वक्ताओं को आमंत्रित करने पर यूएसआई और आईसीडब्ल्यूए का धन्यवाद करना चाहता हूँ।
- मैं आयोजकों का भी धन्यवाद करना चाहता हूँ जिन्होंने मुझे अपने विचारों को साझा करने के लिए यह अवसर और सम्मान दिया।
धन्यवाद और शुभकामनाएं "जय हिन्द"
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