“मुझे विश्व मामलों की भारतीय परिषद द्वारा आयोजित ‘‘गांधी एवं विश्व’’ पर दो दिवसीय अंतर्राष्ट्रीय वेबिनार में विदाई भाषण देते हुए प्रसन्नता हो रही है।
मैं गांधीजी की 150वीं जयंती का दो वर्षीय उत्सव समाप्तकरने के लिए गांधीजी पर इस कार्यक्रम के आयोजन के लिए आईसीडब्ल्यूए की सराहना करता हूँ।
इन दो दिनों के दौरान, संगोष्ठी में गांधीजी के सिद्धांतों और दुनियाभर में उनके प्रभाव और प्रासंगिकता पर चिंतन किया गया। गांधीवादी मूल्यों की शाश्वतता है। वे सभी देशों के लिए और हर समय के लिए प्रासंगिक प्रतीत होते हैं। हालांकि, उन्हें ऐसी दुनिया में और अधिक प्रासंगिकता मिली है जो नई चुनौतियों का सामना कर रही है।
दुनिया कोविड-19 महामारी के मद्देनजर सबसे बड़े स्वास्थ्य संकटों में से एक का सामना कर रही है। जब दुनिया ने स्पेनिश फ्लू के दौरान 1918 में इसी तरह की चुनौती का अनुभव किया था तो गांधीजी सभी लोगों, खासकर गरीबों और वंचितों की पीड़ा समझने की आवश्यकतापर बोले थे।
जहाँ सामाजिक दूरी, अपने व्यक्तिगत और सार्वजनिक स्थानों को स्वच्छ करना और मास्क पहनना आज महत्वपूर्ण मानदंड बन गए हैं, वहीं यह याद करना उपयुक्त होगा कि महात्मा ने तत्कालीन महामारी के दौरान क्या लिखा था: "एक बार पुन: काले बादल इकट्ठा हो रहे हैं।यह हमारे लोगों के लिए बड़ा लाभकारी होगा यदि वे निम्नलिखित नियमों को मन में टांक लें; नहीं तो भारी नुकसान होगा"-उन्होंने कहा था और उन मानदंडों का वर्णन और उल्लेख किया था जिन्हें उस समय वैश्विक स्वास्थ्य चुनौती से अपने आपको बचाने के लिए बनाए रखने की आवश्यकता थी।
यह वास्तव में परीक्षण का समय है। इस महामारी ने विभिन्न राष्ट्रों की अर्थव्यवस्थाओं पर अकल्पनीय कहर ढाया है और लोगों, विशेषरूप से गरीब और हाशिए पर पड़े वर्गों के जीवन को बुरी तरह से प्रभावित किया है। यह जरूरतमंदों की ओर मदद का हाथ बढ़ाने और उनकी मुश्किलें कम करने का समय है। जैसा कि स्पेनिश फ्लू के दौरान लोगों की पीड़ा समझने की आवश्यकतापर महात्मा गांधी ने कहा था, ‘‘वर्तमान समय गरीबों के प्रति समानुभूतिन कि सहानुभूति’’ का आह्वान करता है
प्रिय बहनों और भाइयों,
जैसा कि आप सभी जानते हैं, संयुक्त राष्ट्र द्वारा महात्मा गांधी के जन्मदिन को 'अंतर्राष्ट्रीय अहिंसा दिवस' के रूप में मान्यता दी जाती और मनाया जाता है।
यह न केवल महात्मा गांधी द्वारा मानवता पर छोड़ी गई चिरस्थायी छाप का प्रतीक है, बल्कि दुनिया को लगातार याद दिलाता है कि शांति प्रगति के लिए आवश्यक पूर्वापेक्षा है।
महात्मा गांधी ने सत्य और अहिंसा के अपने संदेश के माध्यम से दुनिया को अन्याय के विरूद्ध संघर्ष की एक नवीन विधा, जीवन का एक नवीनमार्ग दिखाया था।
वह 20वीं सदी में दीन-दुखियों के लिए प्रकाशस्तंभ बनेथे और अपनी मृत्यु के 72वर्ष बाद आज भी बने हुए हैं।
भारत को औपनिवेशिक शासन से मुक्त कराने के उनके प्रयास, जो सत्य (सत्याग्रह) और अहिंसा के मूल्यों में आरोपित दर्शन के नमूने पर था, ने देश की स्वतंत्रता का मार्ग प्रशस्त किया और दुनिया भर में अन्याय और अत्याचार के विरूद्ध संघर्ष प्रेरित किया।
यह देखकर आज मुझे प्रसन्नताहो रही है कि भारत और 14 देशों के विद्वान इस वेबिनार में भाग ले रहे हैं।आपकी उपस्थिति और महात्मा गांधी के जीवन और दर्शन पर आपके कार्य उनके संदेशों, मूल्यों और शिक्षाओं और प्रजाति, वर्ग, पंथ, लिंग और भूगोल की बाधाओं से ऊपर उठकरउनकी शाश्वत प्रासंगिकता का महत्व रेखांकित करता है।
जहाँ सत्याग्रह और अहिंसा महात्मा के दर्शन के दो स्तंभ हैं, वहीं महात्मा गांधी के जीवन में जो चीज सर्वाधिक प्रेरणादायीथी, वह मानवता की सहज अच्छाई में उनका अटूट विश्वास था। महात्मा गांधी मानते थे कि लोग बुरे नहीं होते, केवल कर्म बुरे होते हैं।
एक ऐसी दुनिया में जहाँ आतंकवाद, युद्ध और जघन्य अपराधों की घटनाएं दुनिया भर में मानवता मेंव्यक्ति केविश्वास की जड़ेंझकझोर रही हैं, वहीं आपको हमेशा याद रखना चाहिए कि महात्मा गांधी ने क्या कहा था। उन्होंने कहा था: "आपको मानवता में विश्वास नहीं खोना चाहिए, मानवता एक महासागर है। यदि महासागर की कुछ बूँदें गंदी हो जाती हैं, तो महासागर गंदा नहीं हो जाता है।"
सत्य, अहिंसा और शांति का सार्वभौमिक विषय शायद आज पहले से कहीं अधिक प्रासंगिक हैं।1948 में महात्मा गांधी की हत्या के बाद से दुनिया काफी बदल गई है।
हाइड्रोजन बम के विकास से लेकर जलवायु परिवर्तन और वैश्विक आतंकवाद से लेकर बढ़ते भौतिकवाद और आईटी के असाधारण विकास तक, यह वह दुनिया है जो संधारणीय विकास की तलाश कर रही है। यह वह दुनिया है जो दु:साध्य चुनौतियों का समाधान तलाश रही है।
आज दुनिया कोपीड़ाहारी स्पर्श, मानवीय स्पर्श, सामंजस्यपूर्ण स्पर्श की आवश्यकता है। यही वह चीज है जो गांधीवादी आदर्श हमारी दुनिया को दे सकते हैं।
उनकी सार्वभौमिक ख्याति प्राप्त विरासत, शिक्षाओं, नैतिकता और सिद्धांतों को याद करने के लिए शायद महात्मा गांधी की 150वीं जयंती से अधिक प्रासंगिक कोई और समय नहीं हो सकता। जब डॉ मार्टिन लूथर किंग से पूछा गया कि आज गांधीजी कहाँ हैं? उन्होंने उत्तर दिया, गांधीजी अपरिहार्य हैं।यदि मानवता को प्रगति करनी है तो गांधीजी अपरिहार्य हैं। वह शांति और सद्भाव की दुनिया की दिशा में विकसित हो रही मानवता की दृष्टि से प्रेरित दुनिया में रहे, चिंतन और काम किया। हम केवल अपने जोखिम पर ही उनकी अनदेखी कर सकते हैं। एक व्यक्ति के रूप में गांधीजी के जीवन की कहानी औसत स्तर से ऊपर उठकर सार्थक जीवन व्यतीत करने की आकांक्षा रखने वाले हर मनुष्य के लिए महत्तम प्रासंगिकता कीकहानी है।
1959 में भारत पहुँचने पर, डॉ किंग ने कहा था, ‘‘अन्य देशों में मैं एक पर्यटक के रूप में जा सकता हूँ, लेकिन भारत में मैं एक तीर्थयात्री के रूप में आता हूँ। शायद सबसे बढ़कर, भारत वह भूमि है जहाँ अहिंसक सामाजिक परिवर्तन की तकनीकों का विकास हुआ जिसका मेरे लोगों ने मॉन्टगोमरी, अल्बामा और पूरे दक्षिण अमेरिक में अन्यत्र उपयोग किया। हमने उन्हें प्रभावी और संभालने वाला पाया है-वे काम करते हैं!"
भारतीयों द्वारा 'गुरुदेव' के रूप में पूजनीय रहे प्रसिद्ध नोबेल पुरस्कार विजेता रवींद्रनाथ टैगोर ने महात्मा गांधी के प्रति अपनी प्रशंसा व्यक्त करते हुए कहा था, "गांधीजी के आह्वान पर, भारत बिल्कुल पहले की तरह एक बारफिर नई महानता की ऊंचाइयों पर पहुँच गया है, जब बुद्ध ने सभी जीवित प्राणियों के बीच सत्य, साथी भावना और करुणा की घोषणा की थी।
महात्मा गांधी की महानता उनकी सीखने की क्षमता और इच्छा में निहित है। उन्होंने न केवल दुनिया को गहराई से प्रभावित किया, बल्कि दुनिया को समान रूप से अपने विचारों को प्रभावित औरप्रेरित करने की अनुमति दी।
रूसी लेखक लियो टॉलस्टॉय की पुस्तक 'द किंगडम ऑफ गॉड इज विदइन यू' और उनके निबंध 'क्रिश्चियनिटी एंड पैटरियटिज़्म' ने गांधीजी पर गहरी छाप छोड़ी, जिसमें'जीवन की सादगी' और 'उद्देश्य की शुद्धता' के उनके सिद्धांतों ने उन्हें बहुत अधिक द्रवित किया। उन्होंने यहाँ तक लिखा कि कैसे यह पुस्तक पढ़ने से अहिंसा में उनका विश्वास मजबूत हुआ।
जैसा कि पहले उल्लेख किया जा चुका है, महात्मा गांधी के विचार और सिद्धांत मानवता द्वारा सामना की जा रही विभिन्न चुनौतियों - संधारणीय विकास और आत्मनिर्भरता को बढ़ावा देने से लेकर आतंकवाद का मुकाबला करने तक -पर विजय पाने में मार्गदर्शक प्रकाशस्तंभ बने रहेंगे।
वह सहयोग और सहकार्यता में विश्वास करते थे, जो आज एक वैश्विक आवश्यकता है-चाहे वह महामारी से लड़ने के लिए हो या गरीबी से लड़ने के लिए हो। उन्होंने सुप्रसिद्ध रूप से कहा था: "सभीआवश्यकता के लिए पर्याप्त है, लेकिन हर किसी के लालच के लिए नहीं", और उनका विश्वास कि "मिट्टी, वायु, भूमि और पानी हमारे पूर्वजों से मिली विरासत नहीं हैं, बल्कि हमारे बच्चों काहम पर ऋण है', ऐसे समय में संधारणीय विकास आगे बढ़ाने के लिए याद किए जाने की आवश्यकता है जब बढ़ता पर्यावरणीय शोषण आपदा सूचित कर रहा है।
महात्मा गांधी का दर्शन और सर्वोदय की उनकी अवधारणा हमारी सरकार के लिएअनवरत मार्गदर्शक प्रकाशस्तंभ रहा है जो शांतिपूर्ण और समृद्ध भारत सुनिश्चित करने के प्रति प्रतिबद्ध है। स्वच्छता पर महात्मा गांधी का आग्रह आगे बढ़ाने के लिए प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र भाई मोदी जी ने देश भर के स्वच्छ शहरों और गांवों का लक्ष्य साकार करने के लिए स्वच्छ भारत अभियान का शुभारंभ किया।
सामाजिक, राजनीतिक, आर्थिक के साथ-साथ पर्यावरणीय समस्याओं से जुझ रही दुनिया में गांधीवादी आदर्शों का पुनरुज्जीवन समय की माँग है।
अंत में, समापन से पहले, मैं इस वेबिनार में भाग लेने वाले सभी विद्वानों का अभिनंदन करना चाहता हूँ। इतने सारे देशों की भागीदारी समकालीन दुनिया के लिए गांधी जी की विरासत की प्रासंगिकता रेखांकित करती है।
दक्षिण अफ्रीका, म्यांमार, रूस, सिंगापुर, ओमान, श्रीलंका, इटली, जर्मनी, मैक्सिको, ब्राजील, अर्जेंटीना, कोस्टा रिका, उज्बेकिस्तान और चीन के सभी विद्वानों को उनके ज्ञानवर्धक कार्य के लिए मेरी हादक बधाई।
जय हिंद”