विकासशील देशों की शोध एवं सूचना प्रणाली (आरआईएस) के सहयोग से विश्व मामलों की भारतीय परिषद, नई दिल्ली ने 27 नवंबर 2020 को अपने जर्मन समकक्ष - जर्मन इंस्टीट्यूट ऑफ ग्लोबल एंड एरिया स्टडीज (जीआईजीए) - स्टिफ़टंग विस्सेनशॉफ्ट अनड पॉलिटिक (एसडब्ल्यूपी) - बर्टेल्समन स्टिफ्टंग के साथ ट्रैक 1.5 संवाद का आयोजन किया। यह संवाद का दूसरा दौर था; पहला दौर नवंबर 2019 में नई दिल्ली में द्विपक्षीय अंतर-सरकारी परामर्श की ओर से आयोजित किया गया था। उद्घाटन वक्तव्यश्री हर्षवर्धन श्रृंगला, विदेश सचिव, विदेश मंत्रालय, भारत और श्री नील्स एनेन, संघीय विदेश कार्यालय में राज्य मंत्री, जर्मनी द्वारा दिए गए। विदेश व सुरक्षा नीति और व्यापार व अर्थव्यवस्था पर दो सत्रों में चर्चा की गई।
2. विदेश सचिव, श्री हर्षवर्धन श्रृंगला ने अपने संबोधन में कहा कि स्वास्थ्य संकट ने अंतरराष्ट्रीय सहयोग और महामारी के बाद आर्थिक सुधार कैसे की जाए, इसपर सभी का ध्यान खींचा है। महामारी से अधिक सुरक्षित, विश्वसनीय व लचीला आपूर्ति श्रृंखलाओं की आवश्यकता सामने आई है। प्रधानमंत्री मोदी द्वारा शुरू किए गए आत्मनिर्भर भारत अभियान ने वैश्विक आपूर्ति श्रृंखलाओं का घरेलू उत्पादन व खपत का विलय कर दिया है। भारत ने श्रम, कृषि व निवेश क्षेत्र में कई सुधार किए हैं जिससे जर्मन कंपनियों के लिए अधिक निवेश के अवसर पैदा हुए हैं। डिजिटलाइजेशन, नवोन्मेष, स्टार्ट-अप्स, नई व उभरती हुई टेक्नोलॉजी, क्लाइमेट सेंसिटिव टेक्नोलॉजी के क्षेत्र में सहयोग की काफ़ी संभावनाएं मौजूद हैं। एक तरफ जर्मनी के पास टेक्नोलॉजी में शोध एवं विकास की क्षमता है, तो वहीं भारत के पास मानव संसाधन और बाजार हैं। उन्होंने कहा कि भारत और जर्मनी के बीच भारत-प्रशांत क्षेत्र में उच्च स्तर की अभिसारिता देखी गई; भारत ने इस साल की शुरुआत में जर्मनी द्वारा जारी इंडो-पैसिफिक दिशानिर्देशों का स्वागत किया था; और दोनों पक्षों को सभी की सुरक्षा एवं वृद्धि सुनिश्चित करने हेतु इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में व्यावहारिक सहयोग को आगे बढ़ाने में साथ मिलकर काम करने की आवश्यकता है। उन्होंने कहा कि जलवायु परिवर्तन एक ऐसा क्षेत्र है जिसपर भारत और जर्मनी के विचार एक जैसा रहे हैं। उन्होंने जर्मनी से अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन में शामिल होने का आह्वान किया।
3. जर्मन संघीय विदेश कार्यालय में राज्य मंत्री नील्स एनेन ने कहा कि इस स्वास्थ्य संकट की वजह से राजनीतिक, सामाजिक व आर्थिक परिदृश्य में काफी बदलाव आया है। कोविड-19 और अमेरिका-चीन के बीच व्यापार संघर्ष तथा बिगड़ते द्विपक्षीय संबंधों ने यूरोप के देशों को अपने राजनीतिक एवं आर्थिक हितों की रक्षा करने की स्थिति में ला दिया है। चीन महामारी जैसे मुद्दों पर जर्मनी का भागीदार, विनिर्माण, व्यापार व निवेश जैसे मुद्दों पर प्रतियोगी और मानव अधिकारों, क्षेत्रीय विवादों आदि जैसे मुद्दों पर प्रतिद्वंद्वी है। इंडो-पैसिफिक पर उन्होंने कहा कि जर्मनी इंडो-पैसिफिक में अपनी भूमिका को बढ़ाने की आवश्यकता को समझता है। जर्मनी मुक्त, खुले एवं सुरक्षित समुद्री मार्गों को महत्वपूर्ण मानता है। इस क्षेत्र में जर्मनी और भारत की भूमिका काफी महत्वपूर्ण है। इंडो-पैसिफिक के तहत बहुपक्षीय वार्ता के दायरे में और देशों को शामिल करने की आवश्यकता है। उन्होंने इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में भारत की सक्रिय, सकारात्मक और गतिशील भूमिका की सराहना की। उन्होंने जलवायु परिवर्तन, मानवाधिकार, कनेक्टिविटी के क्षेत्रों में जर्मनी तथा भारत के अभिसरणों की भी सराहना की।
4. विदेश एवं सुरक्षा नीति पर आयोजित पहले सत्र की अध्यक्षता डॉ. टीसीए राघवन,महानिदेशक, विश्व मामलों की भारतीय परिषद ने की। इस सत्र के वक्ताओं में अनिल वाधवा, भारत के पूर्व राजदूत और प्रतिष्ठित अध्येता, विवेकानंद इंटरनेशनल फाउंडेशन और प्रो. डॉ. अमृता नार्लीकर, अध्यक्ष, जीआईजीए शामिल थे। इस बात पर चर्चा की गई कि भारत और जर्मनी की विदेश एवं सुरक्षा नीतियों में कई तरह के अभिसरण मौजूद हैं और ये इंडो-पैसिफिक के संदर्भ में अधिक स्पष्ट हैं। इस बात पर भी चर्चा हुई कि इंडो-पैसिफिक के तहत पश्चिमी हिंद महासागर और पूर्वी हिंद महासागर पर समान रुप से ध्यान देना आवश्यक है। चीन भारत का निकटतम पड़ोसी है और सीमा पर हुई हालिया झड़पों के मद्देनजर, संबंधों का सुरक्षा परिप्रेक्ष्य जर्मनी या यूरोपीय संघ के अन्य देशों के उस खतरे से अलग है जिसे आर्थिक धमकी या प्रतियोगिता माना जाता है। जर्मनी द्वारा अपनी इंडो-पैसिफिक रणनीति में ट्रांस-अटलांटिक संबंधों पर और अधिक ध्यान देने की आवश्यकता पर भी चर्चा की गई।
5. व्यापार एवं अर्थव्यवस्था पर आयोजित दूसरे सत्र की अध्यक्षता सुश्री अनिका लॉडियन, परियोजना प्रबंधक, बर्टेल्समन स्टिफ्टंग ने की थी। इस सत्र के वक्ताओं में डॉ. हैन्स-गुंथर हिल्परट, शोध प्रभाग एशिया के प्रमुख, एसडब्ल्यूपी और प्रो. एस.के. मोहंती, आरआईएस, नई दिल्ली शामिल थे। दोनों देशों की अर्थव्यवस्थाओं पर कोविड-19 के प्रभाव पर चर्चा हुई। इस बात पर चर्चा की गई कि यूरोपीय संघ मूल्य आधारित व्यापार नीति अपनाना रहा है जिसमें उपभोक्ता सुरक्षा, निवेश संरक्षण, सतत विकास आदि को अधिक महत्वपूर्ण माना जाता है। इसलिए, इसे इंडो-पैसिफिक में इसी तरह के विचारधारा वाले भागीदारों की तलाश थी। भारत उच्च विकास की क्षमता वाली अर्थव्यवस्था है और व्यापक आर्थिक स्थिरता, राजनीतिक स्थिरता और लोकतांत्रिक ढांचे वाला देश है, जिसके साथ जर्मनी अपने सहयोग को बढ़ाना चाहता है। हालांकि, अप्रवासन के नियमों, बाजार के खुलेपन, विकास में बाधा बने हुए हैं। इस बात पर चर्चा हुई कि भारत जर्मनी दोनों ही लचीली अर्थव्यवस्थाएं हैं, जिनकी विकास दर महामारी के बावजूद क्रमशः 2021 में 8.8% और 4.2% रहने की उम्मीद है। समुद्री प्रौद्योगिकी, नवाचार व प्रौद्योगिकी में निवेश, नीली अर्थव्यवस्था को भारत और जर्मनी के बीच सहयोग के संभावित क्षेत्र माना गया।
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