विश्व मामलों की भारतीय परिषद, नई दिल्ली ने 27 अक्टूबर 2020 को 'वैश्विक बदलाव के समय में मजबूत भारत-पोलैंड साझेदारी की ओर' विषय पर पोलैंड में अपने समझौता ज्ञापन साझेदार, द पोलिश इंस्टीट्यूट ऑफ इंटरनेशनल अफेयर्स (आरआईएसी) के साथ अपनी सातवीं रणनीतिक वार्ता की। उद्घाटन सत्र में पोलिश इंस्टीट्यूट ऑफ इंटरनेशनल अफेयर्स के निदेशक श्री स्लावोमिर दोब्सकी, विश्व मामलों की भारतीय परिषद के महानिदेशक डॉ. टी.सी.ए. राघवन, भारत में पोलैंड गणराज्य के राजदूत एडम बराकोव्स्की और पोलैंड में भारत गणराज्य के राजदूत सेवांग नामग्याल शामिल थे।
2. उद्घाटन सत्र में, कोविड-19 महामारी की पृष्ठभूमि में वैश्विक व्यवस्था के बदलते स्वरूप पर बल दिया गया । यह कहा गया कि मौजूदा महामारी और इस पर वैश्विक प्रतिक्रियाओं ने यूरोपीय संघ और भारत के बीच रणनीतिक सहयोग को संकट के प्रति प्रतिक्रिया के रूप में दर्शाया है। महामारी ने भारत और यूरोपीय संघ दोनों के लिए नीतिगत प्राथमिकताओं में बदलाव के लिए मजबूत कारण प्रदान किया है, जिसमें सुरक्षा से लेकर विकासात्मक सहयोग तक अनेक मुद्दे शामिल हैं। इस बात पर बल दिया गया कि भारत और पोलैंड अपने-अपने क्षेत्रों में दो सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाएं हैं, कोविड के बाद आर्थिक सुधार ने दोनों देशों को आर्थिक सहयोग की पूर्ण संभावनाएं तलाशने का अवसर प्रदान किया है। आईसीडब्ल्यूए और पीआईएसएम के बीच रणनीतिक संवाद को मजबूत करने पर बल दिया गया। विश्व मामलों की भारतीय परिषद के महानिदेशक डॉ. टी.सी.ए. राघवन ने उल्लेख किया कि, एक नई सर्वोच्च शक्ति के उदय से वैश्विक क्रम बदल रहा है और अपने निकट होने के कारण भारत विशेष रूप से इसे सीधे महसूस करता है। एशिया में अमेरिका की भूमिका, हिंद-प्रशांत में, अफगानिस्तान में विकास और पाकिस्तान में संकट, इन सभी विशिष्ट मुद्दों में से प्रत्येक को वैश्विक भू-राजनीतिक मंथन की बड़ी तस्वीर के रूप में देखा जाना चाहिए।
3. पीआईएसएम के अनुसंधान विभाग के उप प्रमुख श्री लुकास कुलेसा ने यूएस-चीन प्रतिद्वंद्विता और उभरते नए विश्व की समस्याएं पर सत्र 1 की अध्यक्षता की। वक्ताओं में डॉ. स्तुति बैनर्जी, शोधकर्ता, आईसीडब्ल्यूए और पीआईएसएम अनुसंधान विभाग की उप प्रमुख सुश्री जुस्तीना जीजुदलिक शामिल थे। राष्ट्रपति चुनाव के बाद अमेरिकी विदेश नीति और एशिया में चीन की बढ़ती मुखरता, भारत-प्रशांत क्षेत्र और यूरेशिया पर चर्चा हुई। यह कहा गया कि चीन के प्रति पोलैंड का दृष्टिकोण यूरोपीय संघ की नीति पर आधारित है, यह पारस्परिकता के आधार पर गहरा हुआ है, लेकिन यह चीन के व्यवहार में कोई महत्वपूर्ण और ठोस परिवर्तन लाने में विफल रहा है। जबकि यूरोपीय संघ संरक्षणवादी नहीं बन रहा है, वह पहले अपना हित साध रहा है। शायद यह यूरोपीय संघ के लिए चीन के प्रति अपने रक्षात्मक दृष्टिकोण से आगे बढ़ने और एक सक्रिय एजेंडा तैयार करने के दृष्टिकोण को अपनाने का समय है, जोकि भविष्य के लिए सही कदम होगा।
4. विश्व मामलों की भारतीय परिषद की अनुसंधान निदेशक डॉ. निवेदिता रे ने कोविड -19 के दौरान यूरोपीय संघ और दक्षिण एशिया – अंत में रणनीतिक सहयोग पर सत्र 2 की अध्यक्षता की । सत्र के लिए वक्ताओं में डॉ विवेक मिश्रा, शोधकर्ता, आईसीडब्ल्यूए और सुश्री जोलंता सिमेसाका, यूरोपीय संघ कार्यक्रम, पीआईएसएम की प्रमुख शामिल थे। यह कहा गया कि यूरोपीय संघ महामारी के कारण भारी आर्थिक संकट का सामना कर रहा है जो इसकी एकजुटता की परीक्षा है। तथापि, महामारी ने यूरोपीय संघ के एकल बाजार की रणनीतिक स्वायत्तता को एक अनुकूल आघात दिया है। ब्रेक्सिट के बाद के यूरोप पर, हिंद-प्रशांत पर संबंधित पड़ोस की चर्चा हुई। यह कहा गया कि वैश्विक क्रम में हो रहे बदलावों के परिणामस्वरूप यूरोपीय संघ परिधि से हिंद-प्रशांत के केंद्र की ओर बढ़ रहा है।
5. श्री दामियन वानुकोव्स्की, वरिष्ठ विश्लेषक, पीआईएसएम ने भारत-पोलैंड सहयोग की संभावनाएं रणनीतिक होने का समय पर सत्र 3 की अध्यक्षता की। वक्ताओं में डॉ. अंकिता दत्ता, शोधकर्ता, आईसीडब्ल्यूए और श्री पेट्रिक कुगियल, वरिष्ठ विश्लेषक, पीआईएसएम शामिल थे। इस बात पर बल दिया गया कि भारत और पोलैंड का आर्थिक संबंध, सांस्कृतिक संबंध और उच्च राजनीतिक संपर्कों द्वारा परिभाषित एक दीर्घकालिक संबंध है । दोनों देशों के संबंधों के तीन रणनीतिक क्षेत्र हैं: नियम आधारित अंतरराष्ट्रीय व्यवस्था का समर्थन, जलवायु परिवर्तन, वैश्विक महामारी के खिलाफ लड़ाई और महामारी के बाद सुधार पर समान विचार । ये रणनीतिक सहयोग का आधार बना सकते हैं। भारत-पोलिश संबंधों पर प्रभाव डालने वाले कारकों में अमेरिका, यूरोपीय संघ, चीन, रूस और ब्रेक्सिट शामिल हैं। पोलैंड भारत-यूरोपीय संघ की साझेदारी से लाभ प्राप्त कर सकता है और इसे मजबूत बनाने में सहायता कर सकता है। बहुपक्षीय मंचों पर सहयोग और वैश्विक संस्थानों में सुधार सहयोग के महत्वपूर्ण क्षेत्र हो सकते हैं। द्विपक्षीय सहयोग को आगे बढ़ाने के लिए स्वच्छ ऊर्जा, खनन, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, फार्मास्यूटिकल्स जैसे सहयोग की नई संभावनाओं की पहचान की गई।
*****