विश्व मामलों की भारतीय परिषद ने महात्मा गांधी की 150वीं जयंती के दो वर्ष तक चलने वालेसमारोहों के समापन को चिह्नित करने के लिए 1-2 अक्टूबर, 2020 को “गांधी और विश्व” पर दो दिवसीय अंतर्राष्ट्रीय वेबिनार आयोजित किया।इस वेबिनार में भारत और14 अन्य देशों के 25 विद्वानों ने भाग लिया।इस वेबिनार में एक वार्तालाप; एक पुस्तक चर्चा; एक गांधी कथा, तीन विषयों अर्थात् ‘गांधी और उनके समकालीन’, गांधी और विश्व:विभिन्न भौगोलिक क्षेत्र'और'एक वैश्वीकृत दुनिया में गांधीका अध्ययन' पर पैनल चर्चाएंऔर लैटिन अमेरिका से उठती आवाज़ें पर एक अलग सत्र जैसे कई घटक थे।भारत के माननीय उपराष्ट्रपति और आईसीडब्ल्यूके अध्यक्ष, श्री एम वेंकैया नायडू ने2 अक्टूबर, 2020 को समापन भाषण दिया।
2. उद्घाटन सत्र में डॉ. टी.सी.ए. राघवन ने स्वागत भाषण दिया, जिसके बाद विवेकानंद इंटरनेशनल फाउंडेशन, नई दिल्ली के निदेशक, डॉ. अरविंद गुप्ता, और भारतीय उन्नत अध्ययन संस्थान (आईआईएएस), शिमला के प्रोफेसर और निदेशक, डॉ मकरंद परांजपे के बीच ‘21वीं सदी में 'महात्मा गांधी: एक नई लहर’ पर चर्चा हुई, जिसमें कहा गया कि महात्मा गांधी मानव जाति के लिए एक दार्शनिक उपहार थे। गांधी के दर्शन का प्रभाव केवल भारत तक ही सीमित नहीं है, पूरी दुनिया में इसके प्रभाव का अनुभव किया जाता है। चर्चा में उल्लेख किया गया कि आज के समय में गांधीवादी बनना आसान नहीं है। हम सत्य के बाद के युग में हैं, जबकि गांधी के लिए सत्य ही संपूर्ण था। आज की आत्म-निर्भरता प्रत्यक्ष रूप से स्वदेशी में गांधी के विश्वास से प्रभावित है जो अपनी क्षमता में विश्वास की अभिव्यक्ति था। यह नव-गांधी का युग है, जिसका अर्थ है कि गांधी के दर्शन की वापसी आवश्यक है। हम गांधी पर जितने प्रश्न उठाते हैं, वे हमें उतना अधिक उकसाते हैं।
3. पहला पैनल 'गांधी और उनके समकालीन' विषय पर आधारित था। इसकी अध्यक्षता विवेकानंद इंटरनेशनल फाउंडेशन, नई दिल्ली के निदेशक, डॉ. अरविंद गुप्ता ने की और पैनल के सदस्यों में गांधीग्राम ग्रामीण संस्थान, गांधीग्राम, तमिलनाडु के राजनीति विज्ञान और विकास प्रशासन विभाग के प्रोफेसर और प्रमुख, डॉ. वी. रघुपति ने “गांधी और मार्टिन लूथर किंग जूनियर” पर व्याख्यान दिय। भारतीय उन्नत अध्ययन संस्थान, (आईआईएएस), शिमला के प्रोफेसर और निदेशक, डॉ. मकरंद परांजपे ने "गांधी और स्वामी विवेकानंद" पर और केप टाउन विश्वविद्यालय, दक्षिण अफ्रीका के प्रोफेसर, डॉ. इमरान कोवडिया ने "गांधी, मंडेला, टॉलस्टॉय: बीसवीं शताब्दी में कट्टरपंथी परंपरा" पर व्याख्यान दिया।
4. 'गांधी और विश्व विभिन्न भौगोलिक क्षेत्र' विषय पर आयोजित दूसरे पैनल को दो भागों में विभाजित किया गया था। पहले भाग ने "गांधी और स्वामी विवेकानंद" की अध्यक्षता भारतीय उन्नत अध्ययन संस्थान, (आईआईएएस), शिमला के प्रोफेसर और निदेशक, डॉ. मकरंद परांजपे की थी और पैनल के सदस्यों में: ताशकंद स्टेट इंस्टिट्यूट ऑफ ओरिएंटल स्टडीज, फैकल्टी ऑफ हिस्ट्री एंड फिलॉस्फी के संकाय, ओरियंटल दर्शन और संस्कृति विभाग, ताशकंद, उज्बेकिस्तान के व्याख्याता श्री पुलातोव शेरदोर नेमात्जोनोविच ने "मध्य एशिया और विशेष रूप से उज़्बेकिस्तान पर महात्मा गांधी के सामाजिक-दार्शनिक विचारों के प्रभाव" पर वार्ता प्रस्तुत की। साउथ एशिया स्टडीज प्रोग्राम, नेशनल यूनिवर्सिटी ऑफ़ सिंगापुर (एनयूएस), सिंगापुर के प्रोफेसर और प्रमुख, डॉ. राजेश राय ने "गांधी, दक्षिण पूर्व एशिया और भारतीय प्रवासी" पर व्याख्यान दिया; अचल धरोहर, जोहानसबर्ग शहर, दक्षिण अफ्रीका के प्रमुख, श्री एरिक इत्ज़किन ने "गांधी स्क्वायर के मामले, उस स्थल के ऐतिहासिक महत्व को जानना और जोहान्सबर्ग में इस महत्वपूर्ण सार्वजनिक स्थल के आसपास हाल के संघर्ष के बारे में वार्ता प्रस्तुत की तथा अर्थशास्त्र एवं राजनीति शास्त्र महाविद्यालय, सुल्तान काबूस विश्वविद्यालय, मस्कट, ओमान के राजनीति विज्ञान अनुभाग के प्रमुख, डॉ. हुचांग हसन-यारी ने "एक से दूसरे संकट में: मध्य पूर्व गांधी को याद करता है" पर एक रोचक प्रस्तुति दी।
5. इसके बाद राजदूत पास्कल एलन नाज़रेथ द्वारा लिखी गई पुस्तक “गांधी: द सोल फोर्स वारियर: रेवोल्यूशनाइज्ड रिवोल्यूशन एंड स्पिरिचुअलिज्ड इट” पर पुस्तक प्रस्तुतिकरण और चर्चा का आयोजन हुआ। आईसीडब्ल्यूए के महानिदेशक, डॉ. टी. सी. ए. राघवन ने सत्र का संचालन किया और विदेश मंत्रालय, भारत सरकार के नीति सलाहकार, श्री अशोक मलिक ने चर्चा में भाग लिया। यह उल्लेख किया गया कि पुस्तक का गांधीवादी प्रयोगों को छह सिद्धान्तों- सत्याग्रह, सर्वोदय, स्वराज, स्वदेशी, संस्कृत और विश्वस्तता में विभाजित करना, इसकी प्रमुख विशेषता है। यह पुस्तक गांधी को एक क्रांतिकारी और क्रांतिकारी कार्रवाई के सिद्धांतकार के रूप में प्रस्तुत करती है। उनके विचारों की समकालीन प्रासंगिकता का मूल्यांकन करने के लिए व्यक्ति को विचार से अलग करना महत्वपूर्ण है। शत्रु से लेकर मित्र तक, उत्पीड़ित और उत्पीड़क के बीच के संबंधों की प्रकृति के परिवर्तन पर बल देना, गाँधीवादी क्रांति का एक महत्वपूर्ण पहलू है। गांधी का धर्म को आध्यात्मिकता के स्तर तक ले जाने का अभ्यास एक ऐसी धारणा है, जो समकालीन दुनिया की समस्याओं से निपटने के लिए अत्यंत आवश्यक है। गांधीवादी विचारों की समकालीन व्याख्या और उनका नारीवाद, पर्यावरणवाद सहित नए सामाजिक आंदोलनों के लिए प्रेरणा बनना, इस बात का प्रमाण है कि गांधी 21वीं सदी में भी कितने प्रासंगिक बने हुए हैं।
6. अगले पैनल में लैटिन अमेरिका के प्रतिभागी थे। यह "लैटिन अमेरिका के स्वर" विषय पर आधारित था। इस सत्र की अध्यक्षता राजदूत आर. विश्वनाथन ने की, जो अर्जेंटीना, उरुग्वे, पराग्वे और वेनेजुएला में पूर्व भारतीय राजदूत और साओ पाउलो, ब्राजील में महावाणिज्यदूत रह चुके है। इस पैनल के सदस्यों में: लेखिका और एसोसियाकिया पलास एथेना, ब्राजील की संस्थापक, डॉ. लिया डिस्किन ने "गांधी और सह-अस्तित्व के लिए नैतिकता" पर प्रस्तुति दी । कोस्टा रिका की पूर्व राजनयिक, डॉ. ऑस्कर अल्वारेज अराया ने "गांधी और लैटिन अमेरिका" पर वार्ता प्रस्तुत की । भारत और दक्षिण एशिया पर वर्किंग ग्रुप, एशियन अफेयर्स कमेटी, संबंधों अर्जेंटीना अंतर्राष्ट्रीय परिषद, ब्यूनस आयर्स, अर्जेंटीना के डॉ. लिओ रोड्रिगुवेज डे ला वेगा ने "अमेरिका में शांति स्थापना और प्रयासों में गांधी की पहुंच" पर प्रस्तुति दी और मेक्सिको के राष्ट्रीय स्वायत्त विश्वविद्यालय (यूएनएएम), मेक्सिको सिटी, मैक्सिको के इतिहासकार, डॉ. बीट्रिज़ मार्टिनेज़ सावेद्रा ने "गांधी और लैंगिक समानता: मेक्सिको से एक अध्ययन" पर व्याख्यान दिया।
7. दूसरा दिन, गांधी और विश्व : विभिन्न भौगोलिक क्षेत्र’ विषय पर दूसरे पैनल के दूसरे भाग के साथ आरंभ हुआ । इस सत्र की अध्यक्षता विदेश मंत्रालय, भारत सरकार के नीति सलाहकार, श्री अशोक मलिक ने की और पैनल सदस्यों में कलकत्ता विश्वविद्यालय के प्रोफेसर, डॉ. राज शेखर बसु ने "गांधी और प्रशांत क्षेत्र में अनुबंधित श्रम का प्रश्न: फिजी की कथा" प्रस्तुत की। म्यांमार के विद्वान, श्री माउंग माउंग ऊ, ने "गांधी और म्यांमार" पर अपने विचार प्रस्तुत किए। कोलंबो विश्वविद्यालय, श्रीलंका के प्रोफेसर, डॉ. संदागोमी कोपरहेवा ने "भाषा पर गांधी के विचार और श्रीलंका की भाषा नीति के निर्माण पर इसके प्रभाव" प्रस्तुत किया। वक्ता इस बारे में एकमत थे कि गांधी और उनके विचार भौगोलिक क्षेत्रों से परे और सार्वभौमिक हैं तथा उन्होंने विभिन्न मुक्ति आंदोलनों और नेताओं को प्रभावित किया है।
8. 'एक वैश्वीकृत विश्व में गांधी अध्ययन' विषय पर आयोजित तीसरे पैनल को भी दो भागों में विभाजित किया गया था। पहले भाग की अध्यक्षता कलकत्ता विश्वविद्यालय के प्रोफेसर डॉ. राज शेखर बसु ने की और पैनल सदस्यों में; सनयात्सेन विश्वविद्यालय, गुआंगज़ौ विश्वविद्यालय, चीन के प्रोफेसर, डॉ. हुआंग यिंगहोंग ने "गांधी की अहिंसा और न्याय के सिद्धांत" पर प्रस्तुति दी। डॉ. हुआंग वर्तमान में ओ.पी जिंदल में शिक्षक हैं। एशियाटिक सोसाइटी, कोलकाता के डॉ. अरुण बंदोपाध्याय ने "गांधी के पर्यावरणवाद" विषय पर एक जीवंत प्रस्तुति दी। इंडिया डेस्क, आईएसएमईओ, रोम; सैपनिज़ा विश्वविद्यालय, रोम, इटली के पूर्व प्रोफेसर, श्री फैबियो स्कियलपी, ने "महात्मा गांधी और विश्वः संस्थापक नैतिक सिद्धांत; समकालीन प्रासंगिकता" पर वार्ता प्रस्तुत की। डॉ. गैलिना एलेक्सेवा, प्रमुख, अनुसंधान विभाग, टॉलस्टॉय एस्टेट, यास्नाया पॉलीआना, रूस, ने "गांधी और भारत जैसा यस्नाया पोलियाना में टॉल्स्टॉय के निजी पुस्तकालय में परिलक्षित होता है" पर व्याख्यान दिया।
9. अंतिम पैनल चर्चा, ‘एक वैश्विक दुनिया में गांधी ध्ययन’ विषय पर आधारित तीसरे पैनल को दो प्रस्तुतियों और एक गांधी कथा में विभाजित किया गया था। सत्र की अध्यक्षता एशियाटिक सोसाइटी, कोलकाता के डॉ. अरुण बंदोपाध्याय ने की थी। पैनल के दो सदस्य थे: मारबर्ग विश्वविद्यालय, जर्मनी के पूर्व प्रोफेसर, डॉ. मार्टिन अर्नाल्ड और सेंटर फॉर पॉलिटिकल स्टडीज़, जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय, नई दिल्ली में सहायक प्रोफेसर, डॉ. पापिया सेनगुप्ता। डॉ. मार्टिन ने "अहिंसक कार्रवाई की शक्तिशाली अवधारणाओं के 700 वर्ष" पर व्याख्यान दिया और डॉ. पापिया सेनगुप्ता ने "सत्याग्रह, सत्य और संचार: “मिथ्या समाचार” के समय में गांधी" पर अपने विचार प्रस्तुत किए। इसके बाद भारतीय मौखिक इतिहास की परंपरा का अनुसरण करते हुए नैतिक फोरम फॉर एथिकल कॉर्पोरेट गवर्नेंस, एससीओपीई, नई दिल्ली की मुख्य कार्यपालिका, डॉ. शोभना राधाकृष्ण द्वारा गांधी कथा पर एक अनूठी प्रस्तुति दी गई। गांधी कथा "महात्मा गांधी के परिवर्तनकारी नेतृत्व और इसकी वैश्विक प्रासंगिकता" पर आधारित थी।
10. समापन सत्र में डॉ. टी.सी.ए. राघवन, महानिदेशक, आईसीडब्ल्यूए ने उद्घाटन टिप्पणी की। उन्होंने कहा कि दो दिवसीय अंतर्राष्ट्रीय वेबिनार ने दर्शाया है कि गांधीजी समकालीन विश्व को प्रेरित कर रहे हैं। यदि हमें सतत विकास का मॉडल विकसित करना है, तो गांधीजी के दर्शन और विचार प्रासंगिक हैं और उनका दर्शन हमारे समकालीन विश्व के लिए अपरिहार्य है। भारत के माननीय उपराष्ट्रपति और आईसीडब्ल्यूए के अध्यक्ष श्री एम. वेंकैया नायडू ने समापन भाषण दिया। उन्होंने कहा कि गांधीजी का दर्शन आज भी कालातीत है। उन्होंने उल्लेख किया कि दुनिया इतिहास की सबसे बड़ी महामारी का सामना कर रही है। 1918 में, हमारी दुनिया को ऐसी ही चुनौती का सामना करना पड़ा था। सुरक्षा के नियमों के पालन के बारे में उस चरण में गांधीजी की कही बातें आज भी प्रासंगिक हैं। गांधीजी के विचार, उत्पीड़ित लोगों के लिए प्रकाश का एक प्रतीक हैं और उनके अहिंसा और सत्याग्रह के सिद्धांतों ने हमारे देश की स्वतंत्रता का मार्ग प्रशस्त किया। गांधीजी के विचार वर्ग, पंथ, लिंग, नस्ल और भूगोल से परे तथा प्रासंगिक हैं। लोगों की सहज अच्छाई में उनका अटूट विश्वास था। उनका मानना था कि लोग बुरे नहीं होते और केवल कर्म बुरे होते हैं। भारत के माननीय उपराष्ट्रपति और आईसीडब्ल्यूए के अध्यक्ष, श्री एम. वेंकैया नायडू ने आईसीडब्ल्यूए द्वारा की गई पहल की सराहना की और दो दिवसीय कार्यक्रम में अपने विचार और अनुभव प्रस्तुत करने वाले 14 देशों और भारत के वक्ताओं को बधाई दी।
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