विश्व मामलों की भारतीय परिषद्, नई दिल्ली ने भारतीय और दक्षिण पश्चिम एशियाई अध्ययन की वियतनाम संस्थान (वीआईआईएसएसएस), हनोई, जो वियतनाम सामाजिक विज्ञान अकादमी की एक संबद्ध संस्था है, के साथ मिलकर दिनांक 7 अक्तूबर, 2020 को ‘भारत-वियतनाम संबंधों की नई क्षितिज’ पर एक अंतरराष्ट्रीय वेबीनार का आयोजन किया। इस वेबीनार में दो संघटक थे: उद्घाटन सत्र और दूसरा पैनल चर्चा। माननीय विदेश राज्य मंत्री श्री वी. मुरलीधरन ने आधार व्याख्यान दिया और माननीय वियतनाम के विदेश मंत्रालय के माननीय उप मंत्री महामहिम श्री नुयेन मिन्ह वू ने इस उद्घाटन सत्र के दौरान अपना भाषण दिया।
2. डॉ. टी. सी. ए. राघवन, महानिदेशक, आईसीडब्लूए; प्रो. डॉंग अन्ह, उपाध्यक्ष, वीएएसएस; राजदूत प्रणय वर्मा, वियतनाम में भारतीय राजदूत और भारत में वियतनाम राजदूत फैम सान्ह चाउ ने उद्घाटन भाषण दिया। यह कहा गया कि भारत-वियतनाम संबंध के बीच 2000 वर्षों का सभ्यतागत संबंध और 2007 में रणनीतिक साझेदारी बनाने हेतु पांच दशकीय कूटनीतिक संबंध एवं 2016 में बनी व्यापक रणनीतिक साझेदारी है तथा यह संबंध परस्पर विश्वास एवं समझ की मजबूत नींव पर बना है। वियतनाम भारत की एक्ट ईस्ट नीति का एक मुख्य स्तंभ है तथा क्षेत्रीय व वैश्विक मुद्दों पर हितों व विचारों के मजबूत संसृति को साझा करता है। एक खुला, पारदर्शी, समावेशी एवं नियम आधारित हिंद-प्रशांत क्षेत्रीय ढ़ांचे को बनाए रखने में भारत और वियतनाम की एक महत्वपूर्ण भूमिका है।
3. आधार व्याख्यान में माननीय विदेश राज्य मंत्री श्री वी. मुरलीधरन ने कहा कि चूंकि कोविड महामारी के बाद वैश्विक व्यापार और कारोबार में बदलाव आया है जिसमें भारत और वियतनाम के लिए नई आपूर्ति श्रृंखला और साझेदारी बनाकर आर्थिक सहयोग को और मजबूत करने के अवसर उभर रहे हैं। इस संदर्भ में वस्तु संबंधी समझौते में 2008 के भारत-आसियान व्यापार को उन्नत बनाना महत्वपूर्ण है क्योंकि इसमें वर्तमान वास्तविकताएं परिलक्षित नहीं होती हैं। पुरातात्विक और विरासत संरक्षण परियोजनाओं में हाल की घटनाएं भारत-वियतनाम सांस्कृतिक संबंधों के पूर्ण विस्तार को व्याप्त करने का और अवसर प्रदान करती हैं। योग की बढ़ती लोकप्रियता बढ़ते सांस्कृतिक और लोगों के बीच संबंधों का एक उदाहरण है। अन्य वक्ताओं ने योग, भारत की एक्ट ईस्ट नीति, हिंद-प्रशांत विजन, सागर पहल, औषध क्षेत्र– जिसमें जेनेरिक औषधियों के उत्पादन पर फोकस किया गया है- जैसी महत्वपूर्ण बातों, जो भारत और वियतनाम के बीच संबंधों को मजबूत बनाता है, पर भाषण दिया।
4. ‘नए क्षेत्रीय और वैश्विक संदर्भ में वियतनाम और भारत’ के संबंध में प्रथम पैनल चर्चा की अध्यक्षता आसियान-भारत केंद्र के समन्वयक प्रो. प्रबीर डे ने की। इसमें पेनेलिस्ट थे: डॉ. संजय पुलिपाका, वरिष्ठ फेलो, दिल्ली नीति समूह और एसोसिएट प्रो. नुयेन जुयान ट्रंग, महानिदेशक, वीआईआईएसएएस, वीएएसएस। यह कहा गया कि यह सुनिश्चित करने की आवश्यकता है कि एशिया की बहुध्रुवीयता को बनाए रखा जाए। वियतनाम और भारत बहुध्रुवीय विश्व व्यवस्था के पक्ष में हैं। आक्रमक प्रादेशिक दावों से जूझने की आवश्यकता है।
5. दूसरी पैनल चर्चा ‘वियतनाम-भारत व्यापक रणनीतिक साझेदारी की नयी क्षितिज’ की अध्यक्षता वीएएसएस के प्रो. कू चि लोई द्वारा की गयी। इसमें पैनेलिस्ट थे: डॉ. ध्रुवज्योति भट्टाचार्यजी, अध्येता, आईसीडब्लूए और डॉ. ले थी हांग ने, उप मुख्य संपादक, जर्नल फॉर इंडियन एंड एशियन स्टडीज, वीआईआईएसएएस, वीएएसएस। रक्षा क्षेत्र में सहयोगबढ़ाने की संभावनाओं पर चर्चा की गयी। यह विचार व्यक्त किया गया कि वस्त्र क्षेत्र के भारत-वियतनाम व्यापार संबंधों में मुख्य सहयोग क्षेत्र बनने की संभावना है। दोनों पक्ष इस पर सहमत हुए कि भारतीय पुरातात्विक सर्वेक्षण द्वारा वियतनाम के मायसन में 9वीं सदी के विशालकाय शिवलिंग की खोज भारत और वियतनाम के गहरे सभ्यतागत संबंध को दर्शाता है और उन्होंने दोनों देशों के बीच पूर्ण सांस्कृतिक एवं ऐतिहासिक संबंधों हेतु पुरातत्व में और सहयोग का आह्वान किया।
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