विश्व मामलों की भारतीय परिषद ने 04 मार्च 2020 को “बदलते आर्कटिक के साथ का जुड़ाव” पर एक संगोष्ठी का आयोजन किया।
- संगोष्ठी से पहले महामहिम श्री ओलाफुर रगनार ग्रिम्ससन, आइसलैंड के पूर्व राष्ट्रपति और आर्कटिक सर्कल के अध्यक्ष द्वारा 33 वां सप्रू हाउस व्याख्यान दिया गया था।व्याख्यान में श्री सुरेश रेड्डी, अतिरिक्त सचिव (यूरोप), विदेश मंत्रालय, भारत सरकार और डॉ. विजय कुमार, वैज्ञानिक जी / सलाहकार, पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय, भारत सरकार ने भी टिप्पणी दी थी।
- संगोष्ठी के प्रतिभागियों में दिल्ली और बैंगलोर के थिंक टैंक और विश्वविद्यालय के विद्वान शामिल थे। सेमिनार में तीन तकनीकी सत्र शामिल थे, जैसे आर्कटिक साइंटिफिक फ्रंटियर्स: क्षेत्रीय और वैश्विक महत्व, आर्कटिक की भू-सामरिक प्रासंगिकता और बदलते आर्कटिक के साथ भारत का जुड़ाव।
- पहले सत्र की अध्यक्षता बैंगलोर के राष्ट्रीय उन्नत अध्ययन संस्थान के निदेशक डॉ. शैलेश नायक ने की। इस सत्र में वक्ताओं में डॉ. कृष्णन के.पी., वैज्ञानिक ई और समूह निदेशक (आर्कटिक संचालन), राष्ट्रीय ध्रुवीय और महासागर अनुसंधान संस्थान, गोवा, डॉ. ए.ए. मोहम्मद हत्था, प्रोफेसर, मरीन बायोलॉजी, माइक्रोबायोलॉजी, बायोकेमिस्ट्री, कोचीन विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग, कोचीन और डॉ. डेविड मोल्डन, महानिदेशक, एकीकृत पर्वतीय विकास के लिए अंतर्राष्ट्रीय केंद्र, काठमांडू।सत्र में आर्कटिक की जैविक, भूभौतिकीय और रासायनिक प्रक्रियाओं, और महासागर, भूमि, वायुमंडल और जैविक प्रणालियों की बातचीत की समझ बनाने की आवश्यकता पर चर्चा की गई। इसने ’तीसरे ध्रुव’ हिमालय, भारत में नदी प्रणालियों और पड़ोस पर आर्कटिक के प्रभाव को समझने की भी कोशिश की।
- दूसरे सत्र की अध्यक्षता श्री आर.आर. रश्मि, विशिष्ट अध्येता और कार्यक्रम निदेशक, पृथ्वी विज्ञान और जलवायु परिवर्तन, टीईआरआई, नई दिल्ली ने सत्र में वक्ताओं में कैप्टन सरबजीत परमार, कार्यकारी निदेशक, राष्ट्रीय समुद्री फाउंडेशन, नई दिल्ली और श्री एच.पी. राजन, पूर्व उप निदेशक, महासागर मामलों और सागर के कानून का प्रभाग (डीओएलओएस), संयुक्त राष्ट्र, कानूनी और तकनीकी आयोग के पूर्व सदस्य, अंतर्राष्ट्रीय सीबेड अथॉरिटी, नई दिल्ली शामिल थे।सत्र ने शिपिंग मार्ग और संचार पर आर्कटिक में बर्फ के पिघलने के प्रभाव का आकलन नए शिपिंग मार्ग जैसे कि उत्तरी सागर मार्ग, उत्तरी मार्ग और ट्रांस-पोल मार्ग और हिंद महासागर में पारंपरिक परिवहन मार्ग पर उनका प्रभाव। इसमें आर्कटिक सागर के मार्गों के खुलने और हिंद महासागर, अरब सागर और पश्चिमी प्रशांत महासागर के समुद्री मार्गों में सुरक्षा परिप्रेक्ष्य पर प्रभाव और मौजूदा अंतरराष्ट्रीय कानून पर प्रभाव पर भी चर्चा हुई।
- तीसरे सत्र की अध्यक्षता दक्षिण एशिया विश्वविद्यालय, नई दिल्ली के अंतर्राष्ट्रीय अध्ययन विभाग के डीन डॉ. संजय चतुर्वेदी ने की। सत्र में वक्ताओं में सुश्री सुलगना चट्टोपाध्याय, मुख्य संपादक, भूगोल और आप, नई दिल्ली और डॉ. सूबा चंद्रन, प्रोफेसर और डीन, स्कूल ऑफ कॉन्फ्लिक्ट एंड सिक्योरिटी स्टडीज, एनआईएएस, बैंगलोर शामिल थे। सत्र में समुद्री क्षेत्र में भारत की सुरक्षा और आर्कटिक राष्ट्रों और आर्कटिक परिषद के साथ और अधिक संलग्न होने की भारत की आवश्यकता पर इन नए मार्गों के भू-रणनीतिक निहितार्थ पर प्रकाश डाला गया।
- समापन सत्र में समापन भाषण विश्व मामलों की भारतीय परिषद के महानिदेशक डॉ. टी.सी.ए. राघवन द्वारा प्रस्तुत किया गया, इसके बाद विवेकानंद इंटरनेशनल फाउंडेशन के निदेशक डॉ. अरविंद गुप्ता ने विशेष टिप्पणी की।समापन भाषण आर्कटिक सर्कल के सीईओ श्री डागफिनूर स्विनबॉर्नसन द्वारा दिया गया था। सत्र ने भारत को हिमालय-तीसरे ध्रुव की सुरक्षा के लिए कदम उठाने की आवश्यकता पर बल देते हुए एक आर्कटिक नीति विकसित करने की आवश्यकता पर प्रकाश डाला।
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