युद्ध निवारण – ई यु सुपरनेशनल (अधिराष्ट्रीय)ई यु विधायी संस्थानों का प्रभाव
पर
इवेंट रिपोर्ट
सप्रु हाउस, नई दिल्ली
6 जून, 2016
साइप्रस गणराज्य के हाई कमिश्नर (उच्चायुक्त), महामहिम श्री देमेट्रीओस ए. थिओफिलक्टोव ने ‘‘युद्ध निवारण - ई यु सुपरनेशनल (अधिराष्ट्रीय)ई यु विधायी संस्थानों का प्रभाव’’ विषय पर 6 जून, 2016 को, भारतीय विदेश मामलों की परिषद् (आईसीडब्ल्यूए), सप्रु हाउस, नई दिल्ली में एक प्रस्तुति दी। महामहिम श्री थोमस्ज कोज्लोव्स्की, यूरोपियन युनियन (ई यु) के भारत में राजदूत ने उद्घाटन भाषण दिया। इस कार्यक्रम की अध्यक्षता राजदूत नलिन सूरी, महानिदेशक, आईसीडब्ल्यूए, नई दिल्ली ने की। अपने उद्घाटन भाषण में राजदूत थोमस्ज कोज्लोव्स्कीने कहा कि युरोपियन युनियन कोई नियमित अंतर्राज्कीय संगठन नहीं है। यह एक नियमित क्षेत्रीय अखंड़ संगठन है। दूसरे उन्होंने टिप्पणी की कि युरोपियन युनियन विधायी सन्धियों के माध्यम से बनी है। लिजबन संधि अंतिम संधि है जिसमें युरोपियन युनियन के विधायी मानक की परिभाषा बतायी गयी है। राष्ट्रीय तथा अंतर्राष्ट्रीय कानूनों के अलावा, युरोपियन युनियन के पास युरोपियन कानूनों का सैट है। ई यु एक्विस कॉमुन्नोटेयर में विधान, कानूनी अधिनियम तथा न्यायालयी निर्णय हैं। तीसरे, राजदूत कोज्लोव्स्की ने कहा कि युरोपियन संसद ईयु के सदस्य देशों के पात्र मतदाताओं द्वारा सीधे चुनी जाती है। संसद के पास विधायी शक्तियां हैं तथा ये ई यू के सभी सदस्य देशों का समूह है। ईयु की शक्तियां सदस्य देशों द्वारा प्रदत्त हैं। सदस्य देशों ने अपनी शक्तियों का एक हिस्सा ई यु में एकत्र किया है। ऐसा विश्वास किया जाता है कि एक हस्ती के रूप में काम करने वाली ईयु कुछ मामलों को सुलझाने की बेहतर जगह है। उन्होंने बताया कि ई यु बहुगुणी चुनौतियों का सामना कर रही है, जैसेकि राजस्व संकट, प्रवासी तथा शरणार्थी संकट, अंतर्राष्ट्रीय उग्रवाद इत्यादि। यह इन चुनौतियों में से कुछ से निपटने को तैयार नहीं थी। इसलिए इसे इन चुनौतियों से कारगर ढ़ंग से निपटने के लिए स्वयं को तैयार करने में लगभग तीन-चार वर्ष लगे। उन्होंने ई यु के भविष्य पर सकारात्मक दृष्टिकोण व्यक्त किया तथा कहा कि यह प्रत्येक संकट के पश्चात बेहतर उभर कर आयेगी।
श्री देमेट्रीओस ए. थिओफिलक्टोथौरोली ने युद्ध निवारण तथा युद्ध के समाधान में ई यु की भूमिका के विभिन्न पहलुओं को स्पष्ट किया। उनकी प्रस्तुति ई यु के सॉफ्ट पॉवर के महत्व,ई यु स्तर पर कानून के शासन, युद्ध के समाधान तथा रोकथाम के युरोपियकरण तथा ई यु के सॉफ्ट तथा नागरिक शक्ति (सिविलियन पावर) में विभक्त थी। उन्होंने ई यु की सुधार सन्धि तथा लोगों के इसमें सतत विश्वास की भी चर्चा की। उनकी प्रस्तुति उनके शोध पत्र शीर्षक,‘‘युद्ध निवारण – ई यु सुपरनेशनल ई यु विधायी संस्थानों का प्रभाव’’ पर आधारित थी जो एएएलसीओ-जनरल ऑफ इन्टरनेशनल लॉ, खंड़ 4, ईशु 1 (2015) में प्रकाशित हुआ था उनका तर्क था कि युरोपियन अखंड़ता का लक्ष्य केवल युद्ध समाप्ति नहीं है बल्कि युरोपियन देशों के बीच जोरदार सहयोग बढ़ाना भी है। युरोपियन शांति वास्तुकला ई यु संस्थानों के विकास के माध्यम से और भी सुदृढ़ हुई है।ई यु ने ईईसी, युरोहॉम (ईयुआरएटीओएम), दिकस्टम युनियन, कॉमन कृषि नीति, इत्यादि बनाए हैं। कुछ संकटों के बावजुद युरोपियन अखंड़ता परियोजना धीरे-धीरे परिपक्व हुई है। नम्र/प्रामाणिक उपायों के आधार पर ई यु ने युद्ध के शांतिपूर्ण समाधान को बढ़ावा देने तथा युद्ध के कारणों को निपाटने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा की है।
थिओफिलेक्टोव ने बताया कि युरोपियन युनियन मॉडल के कानूनी पहलु के दीर्घकालिक प्रभाव है। उन्होंने ई यु के कानूनी संस्थानों के बारे में युरोपियन तथा गैर-युरोपियन लोगों के सकारात्मक बोध की चर्चा की तथा टिप्पणी की कि ई यु के सॉफ्ट पावर मूल्य (सिद्धान्त) युरोपियन नागरिकों को आकर्षित करते हैं। जब ई यु कल्याणात्मक फायदे पहुंचाने में विफल रहेगी या सामाजिक/सार्वजनिक खर्च में कटौती के उपाय करने, यथा सहासिकियो (छूट) में कटौती या मितोपयोगी उपाय बताने में विफल रहेगी तो लोगों का ई यु से मोह भंग हो जाएगा। संस्थानिक क्षमता के रूप में सॉफ्ट पावर ई यु का एक महत्वपूर्ण पहलु है। उसके विचार से अंतर्राष्ट्रीय उग्रवाद,पारदेशी अपराधों तथा अन्य वैश्विक तथा क्षेत्रीय धमकियों से निपटने में राष्ट्रीय सरकारों की अपेक्षा ई यु बेहतर स्थिति में है। अधिराष्ट्रीय विधायी संस्थानों में नागरिकों का विश्वास क्रमश: राष्ट्रों के संस्थानों की अपेक्षा कहीं अधिक है। श्री थिओफिलेक्टोव ने अपनी दलीलों में युरोबेरोमीटर तथा पेव अनुसंधान केंद्र द्वारा आयोजित सर्वेक्षणों के परिणामोंका भी सबूत दिया।
ई यु सुधारों तथा युरो सन्देहवाद की वृद्धि पर उनका विचार था कि ई यु सुधार संधि-लिजबन संधि को लागू करेगी। प्रजातांत्रिक घाटा युरोपियन राजनीति में एक महत्वपूर्ण राजनीतिक मसला बन गया है। राष्ट्रीय संसदों की बड़ी भूमिका के लिए मांग उठ रही है। हाल ही के समय में ई यु नागरिकों की अपेक्षाओं/आकांक्षाओं के अनुरूप नहीं रही। उन्होंने कहा कि नयी चुनौतियों से निपटना तथा युरोपियन नागरिकों की उच्चाकांक्षाओं को पूरा करना आवश्यक है। इस संबंध में प्रामाणिक तथा उपयोगात्मक दृष्टिकोण अनिवार्यहैं। श्री थिओफिलेक्टोव ने ई यु की सॉफ्ट पॉवर पर जोर दिया। ई यु का प्रामाणिक दृष्टिकोण तथा कानूनी पहलू युनियन के बाहर से नागरिकों को आकर्षित करते हैं।
उन्होंने अंत में कहा कि ई यु को अब भी राष्ट्रीय सरकारों की अपेक्षा अधिक कारगर हस्ति के रूप में माना जाता है। लोगों का ई यु संस्थानों में विश्वास है। ई यु मॉडल इसकी मुख्यत: विधायी संरचनाओं तथा मौलिक कानूनों से प्रकट होने वाली सॉफ्ट पॉवर से बढ़कर है।
प्रश्नोत्तर सत्र में, मुद्दों की व्यापक श्रृंखला पर चर्चा की गयी थी। दूरस्थ दक्षिणी पार्टियों के उदय, राजकोषीय तथा आर्थिक चुनौतियां, ऊर्जा संघ, ब्रेक्सिट,ई यु की सामुद्रिक सुरक्षा में भूमिका तथा एशिया प्रशांत और प्रजातंत्र पर प्रश्नोंत्तर के दौरान चर्चा हुई। श्री थिओफिलेक्टोव ने कहा कि ई यु सभी मसलों से प्रभावी ढ़ंग से निपट रही है। राय/दृष्टिकोणों में अंतर होना प्रजातंत्र का एक अवयव है परन्तु जैसा श्री थिओफिलेक्टोव ने तर्क दिया था ई यु महत्वपूर्ण नीति के मामलों में अपने सदस्य देशों के बीच सह-क्रियाएं बनाए रखने में समर्थहै। अपनी समापन टिप्पणी में राजदूत टोमास्ज ने कहा कि ई यु अभी विकसित हो रही है इसलिए यह सफल समय है, और यह अन्य मामलों में उम्मीदों पर खरी नहीं उतर पायी है। उन्होंने प्राधिकरण के वैधीकरण, युद्ध निवारण बल से नहीं तथा ई यु की बालकान्स में संलिप्तता पर चर्चा की। उन्होंने यह भी सूचित किया कि ई यु केन्द्रीय तथा पूर्वी युरोप में सफल है। उन्होंने बताया कि अफगानिस्तान ई यु का मसला नहीं था।
डॉ. दिनोज के उपाध्याय, अनुसंधान (शोध अधिष्ठाता) फेलो, भारतीय विदेशी मामलों की परिषद्, सप्रु हाउस, नई दिल्ली द्वारा रिपोर्ट तैयारकी गयी।
दावात्यागकर्त्ता : बैठक में व्यक्त विचार वक्ताओं के व्यक्तिगत विचार हैं।