जादवपुर अंतर्राष्ट्रीय संबंध महासंघ (जेएआईआर)
द्वारा आयोजित
एक्ट ईस्ट थ्रू नार्थ ईस्ट: कुटनीति के नये युग की ओर भारत का मार्ग
पर
राष्ट्रीय सम्मेलन
स्थान
डेरा नेतुंग राजकीय महावि़द्यालय, ईटानागर, अरूणाचल प्रदेश
विदेश मंत्रालय
भारत सरकार के
नीति नियोजन एवं अनुसंधान प्रभाग
द्वारा समिर्थत
15 तथा 16 नवम्बर, 2018
भारत सरकार के विदेश मंत्रालय के नीति नियोजन एवं अनुसंधान प्रभाग के समर्थन से एक्ट ईस्ट थ्रू नार्थ ईस्ट: कुटनीति के नये युग की ओर भारत का मार्ग विषय पर राष्ट्रीय सम्मेलन डेरा नेतुंग राजकीय महावि़द्यालय, ईटानागर, अरूणाचल प्रदेश 15 नवम्बर, 2018 को उपस्थितजनों के वंदे मातरम ज्ञान से शुरू हुआ। इसके तुरंत बाद श्रीमती श्रीजता राय अपने सम्बोधन में सम्मेलन में भाग लेने वालों का स्वागत किया तथा सम्मेलन के कार्यवृत का संक्षिप्त विवरण के साथ जादवपुर अंतर्राष्ट्रीय संबंध महासंघ (जेएआईआर) पर कुछ अभियुक्तियां दीं। उन्होने दीप प्रज्जवलित कर सममेलन की अधिकारिक तौर पर शुरूआत करने के लिए उद्घाटन सत्र में प्रतिनिधिमंडल को आमंत्रित किया। सम्मेलन के आयोजकों को विशिष्ट प्रतिनिधिमंडल के सम्मानार्थ मंच पर बुलाया गया जिन्हे उत्तरीय, हस्तनिर्मित डायरियां हाथ से बने कागज के थैलों में भेट किए गए। डेरा नेतुंग राजकीय महावि़द्यालय के प्रतिनिधियों ने उन्हें परंपरागत हथकरघा शॉल तथा दुपट्टे भेट कर सम्मानित किया। सम्मेलन उन पत्रकारों, प्रतिनिधिमंडलों, अध्यक्षों तथा श्रोताओं के समुचे स्पेक्ट्रम के विशुद्ध चरित्र के कारण बहुत सफल रहा जिन्होंने इसकी कार्यवाही में सक्रिय रूप से भाग लिया था। सम्मेलन में इस पर प्रकाश डाला गया की पूर्वोत्तर भारत बहुत से कारकों कारण से भारत के अत्यधिक सवेंदनशील क्षेत्रों में है, यथा सांझा अंतर्राष्ट्रीय सीमाएं होना, उस पर नृवंशीय समानता वाली झरझरा प्रकृति की सीमाएं, क्षेत्र की संसाधन बंदोबस्ती, घुसपैठ का खतरा जो पूर्वोत्तर क्षेत्र पर अधिक मंडराता है, इत्यादि । परिणामत: घिरा हुआ यह क्षेत्र अत्यधिक महत्तवपूर्ण होते हुए भारत और उसके बहुत से पड़ोसी देशों के बीच संवेदी संर्पक भी है। इस दो दिवसीय आयोजन ने पूर्वोत्तर भारत की चीन तथा अन्य क्षेत्रीय सगंठनों सहित दक्षिण पूर्व एशियाई राष्ट्रों के साथ संलिप्तता के प्रक्षेप पथों जो अभी तक छिपे हुए थे, सफलतापूर्वक सामने ला दिया। पैनलधारकों ने बहुत से महत्तवपूर्ण क्षेत्रों की विशिष्टता से उल्लेख किया जिस पर यदि पर्याप्त ध्यान दिया जाए तो ये सीमांत पूर्वोत्तर को जोड़ने में लाभदायक सिद्ध हो सकते हैं। सममेलन का समर्थन करने वाले अन्य सगंठन है,भारतीय सामाजिक अनुसंधान परिषद् (आईसीएसएसआर), नई दिल्ली तथा विश्व मामलों संबंध भारतीय परिषद् (आईसीडब्लयूएस), नई दिल्ली।
फोटों
उद्घाटन समारोह-15 नवम्बर 2019
सम्मेलन की शुरूआत डॉ. एन. टी. रिकम, प्राचार्य, डेरा नेतुंग राजकीय महावि़द्यालय की गई जब उन्होंने भारत की एक्ट इंडिया नीति तथा दक्षिण और दक्षिण-पूर्व एशिया के बीच क्षेत्रीय अखंडता की समकालीन प्रक्रिया की प्रांसगिकता के बारे में भाषण दिया। उन्होंने जेएआईआर के साथ सम्मेलन के अतिथेय तथा आयोजन पर डेरा नेतुंग राजकीय महावि़द्यालय की ओर से कृतज्ञता व्यक्त की तथा गर्व का अनुभव किया। डेरा नेतुंग राजकीय महावि़द्यालय, ईटानगर के अर्थशास्त्र विभागाध्यक्ष डॉ. रामकृष्ण मण्डल, जो सम्मेलन के क्षेत्रीय संयोजक थे, ने सम्मेलन के समर्थन के लिए भारत सरकार के विदेश मंत्रालय केनीति नियोजन एवं अनुसंधान प्रभाग का औपचारिक रूप से धन्यवाद किया तथा प्रतिनिधिमंडल तथा दस्तावेज प्रस्तुतकर्त्ताओं का स्वागत किया तथा इस अकादमिक सम्मेलन में भाग लेने वाले मीडि़या के प्रतिनिधियों का धन्यवाद किया।
प्रोफेसर पर्था प्ररतिम बसु, अध्यक्ष जेएआईआर तथा जादवपुर विश्वविद्यालय के अंतर्राष्ट्रीय संबंध विभाग के प्रोफेसर जेएआईआर की लम्बी यात्रा तथा वर्षों के दौरान भारत के विशाल थिंक टैंक में रूप से इसके विकास को प्रतिबिम्बित किया। उन्होंने सम्मेलन के उद्देश्य पर टिप्पणी की। उनके बाद डॉ. ईमानकल्याण लहरी, महासचिव जेएआईआर विशेष टिप्पणी करते हुए भारत सरकार के विदेश मंत्रालय के नीति नियोजन एवं अनुसंधान प्रभाग के प्रति कृतज्ञता व्यक्त की।उन्होंने इस सम्मेलन की मेजबानी (अतिथय) के लिए डेरा नेतुंग राजकीय महाविद्यालय के प्रशासनिक कर्मचारियों तथा विद्यार्थियों का भी धन्यवाद किया। उन्होंने अरूणाचल प्रदेश प्रेस क्लब में 14 नवम्बर, 2018 को दिए गए भाषण का जिक्र करते हुए कहा कि वर्ष 2007-08 में बने जेयर (जेएआईआर) ने पूर्वोत्तर भारत के मणीपुर, शिलांग, मिजोरम, असम तथा पांचवें राज्य अरूणाचल प्रदेश के विभिन्न हिस्सों में ऐसे सम्मेलन आयोजित कर चुका है। उन्होंने कहा कि सेमिनार में भाग लेने वाले प्रत्येक विद्वान (शोधार्थी) की अपनी विषयक निविष्टि (इन्पुट) है तथा ये निविष्टियां जेयर (जेएआईआर) द्वारा प्रकाशित की जाएंगी जिससे अकादमिशियन तथा नीति-निर्माता भारत की एक्ट ईस्ट नीति के संबंध में एक व्यापक दृष्टिकोण अपना सकेंगे।
प्रोफेसर ओम प्रकाश मिश्रा, अंतर्राष्ट्रीय मामलों के विभागाध्यक्ष, जादवपुर विश्वविद्यालय ने अपने मूल सम्बोधन में पूर्वोत्तर क्षेत्र से संबंधित वर्तमान परिदृश्य विशेषत: एक्ट ईस्ट नीति के सन्दर्भ में चर्चा की। उन्होंने कहा भारत की एक्ट ईस्ट नीति के सफलतापूर्वक कार्यान्वयन के लिए एक मात्र पथ अखंडता है। उन्होंने भारत के दक्षिणपूर्व एशियाई राज्यों तथा बंगलादेश के साथ सुरक्षा हितों से संबंधित चिन्ता व्यक्त की। उन्होंने कहा कि भारत को दक्षिण पूर्व एशियाई देशों में सद्भावना स्थापित करनी चाहिए और देश के व्यापक हित में अपनी एक्ट ईस्ट नीति बड़ी समझदारी से (विवेकपूर्ण) लागू करनी चाहिए। चीन के साथ्ज्ञ भी निरन्तर संबंध विशेषकर आर्थिक मोर्चे परसहयोग बढ़ाने के लिए, आवश्यक हैं। उन्होंने उल्लेख किया कि आगामी दशकों में यह सुनिश्चित होना चाहिए कि विवाद के क्षेत्र कम से कम हों और आर्थिक अखंडता पूर्णत: प्रभावी हो। उन्होंने यह भी कहा कि भारत की एक्ट ईस्ट नीति दक्षिण पूर्व एशियाई क्षेत्र में चीन के बढ़ते प्रभाव को सन्तुलित कर रही है। उन्होंने कहा कि भारत को चीन की हठधर्मिता (स्वाग्रह) का बहुपक्षीय तंत्रों से जवाब देना चाहिए।
डॉ. जे.के. सचदेवाने सम्मेलन तथा एक्ट ईस्ट नीति से संबंधित मसलों की व्यापक समझ पैदा करने में मदद की असीमसंभावना पर भाषण दिया। प्रोफेसर अमितव मित्रा, पूर्व उपकुलपति, राजीव गांधी केन्द्रीय विश्वविद्यालय तथा राजीव गांधी केन्द्रीय विश्वविद्यालय के अर्थशास्त्र के प्रोफेसर ने सम्मेलन के थीम के विभिन्न जटील पहलूओं का ब्यौरा दिया जिसमें विभिन्न प्रतिनिधिमंडलों द्वारा चर्चित दृष्टिकोणों का सार दिया। उद्घाटन सत्र डॉ. बी.एल. बेहरा, विभागाध्यक्ष- अंग्रेजी, डेरा नेतुंग राजकीय महाविद्यालय के धन्यवाद प्रस्ताव से संपन्न हुआ।
डेरा नेतुंग राजकीय महाविद्यालयके विद्यार्थियों ने राष्ट्रीय अखंडता पर डान्स- ड्रामा पेश किया।
‘भारत की एक्ट ईस्ट नीति: मु्द्दे और अवसर’,पर विशेष व्याख्यान सत्रों के दौरान सुश्री दीपिका सारस्वत, सभासद,भारतीय विश्व मामले परिषद, नई दिल्ली प्रथम वक्ता थी जो दक्षिण पूर्व एशिया के संबंध में भारत के विकल्प विषय पर बोलीं। उन्होंने यह कहते हुए अपने विचार को विस्तार दिया कि भारत की एक्ट ईस्ट नीति आसियान देशों के साथ सहयोग बढ़ाने (सुदृढन) पर केन्द्रीय रहनी चाहिए। भागीदारी का लक्ष्य सेवाओं तथा निवेश और उग्रवाद से लड़ने के लिए, नौवहन की स्वतंत्रता, सामुद्रिक सुरक्षा तथा रक्षा सहयोग के कूटनीतिक सहयोग में भारत-आसियान एफटीए के कार्यन्वयन के माध्यम से आर्थिक पुनरोद्धार बढा़ने का होना चाहिए। उन्होंने आगे कहा कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की बौद्धत्सव,पर्यटन, लोगों से पारस्परिक बातचीत तथा क्षेत्र के साथ संबंधों जैसी मृदु शक्ति को अधिकाधिक उपयोग में लाया जाना चाहिए।
प्रोफेसरपार्थ प्रतिम बासु, अंतर्राष्ट्रीय संबंध विभाग, जादवपुर विद्यालय दक्षिण पूर्व एशिया में विकास के विभिन्न पहलुओं तथा दक्षिणपूर्व एशिया को भारत की एक्ट ईस्ट नीति से जोड़ने के महत्व पर बोले। प्रोफेसर बासु ने आगे कहा कि विदेश नीति का एक घरेलु मुद्दा भी है अर्थात् क्षेत्र के दक्षिण तथा दक्षिण पूर्व एशियाई देशों के साथ व्यापार सम्पर्क गहन बनाकर भारतके पूर्वोत्तर क्षेत्रका विकास करना। प्रोफेसर अनिन्दया ज्योति मजुमदार, प्रोफेसर, अंतर्राष्ट्रीय संबंध विभाग, जादवपुर विश्वविद्यालय,भारत की एक्ट ईस्ट नीतिऔर सम्बद्धता के भूराजनैतिक पहलुओं पर भाषण दिया। प्रोफेसर विवेक मिश्रा एशियाई अध्ययन नेताजी संस्थान, ने एक पेपर प्रस्तुत किया जिसमें बताया गया कि बीम्सटेक (बीआईएमएसटीईसी) को अति महत्वपूर्ण बंगाल की खाड़ी को दक्षिण पूर्व एशिया से जोड़ने हेतु दक्षिणतथा दक्षिण पूर्व एशिया के बीच प्राय: पुल के रूप में माना है। प्रोफेसर विश्वनाथ चक्रवर्ती, रविन्द्र भारती विश्वविद्यालय ने बताया कि 12 नवम्बर,2014 को आसियान-भारत सम्मेलन के दौरान प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने एक वक्तव्य दिया था कि आन्तरिक रूप से भारत में आर्थिक विकास, औद्योगिकीकरण तथा व्यापार का एक नया युग शुरू हो गया है तथा बाह्य रूप से भारत की लुक ईस्ट पॉलिसी ‘एक्ट ईस्ट पॉलिसी’ बन गयी है। आसियान इस नीति की नींव तथा आधारहै। एशिया-प्रशांत क्षेत्र के विकासशील कुटनीतिक सन्दर्भों के कारण भारत का आसियान से जुड़ाव बढ़ा है। भारत की एक्ट ईस्ट नीति सुरक्षा और आर्थिक चिन्ताओं से ग्रस्त है। तथापि यह विदितहै कि नीति के प्रारंभिक चरणों में भारत ने स्वयं को आसियान के साथ एकीकृत किया है तथा मुक्त बाजार के नये युग के संभावित निर्धारक लक्ष्यों को दृष्टिगत रखते हुए इसने व्यापार तथा निवेश पर जोर देने का भरसक प्रयास किया है।डॉ. सुकल्प चक्रवर्ती, उपनिदेशक, सिम्बोसिस स्कूल ऑफ अंतर्राष्ट्रीय स्टडिज, पूणे ने बताया कि चीन की काफी नकारात्मक भूमिका के बावजूद जिसने क्षेत्र के सैन्यकरण को भड़काया है यह जुड़ाव राज्यों में अभी तक उत्साहजनक रहा है तथा इसे समायोजित करने के लिए सिविलियन व्यवस्था से की गयी वार्ताएं बहुत सन्तोषजनक रही हैं। फिर भी यदि निकट भविष्य में नकारात्मकताओं से छुटकारा पाना है तो दोनों ओर से जोरदार प्रयास अनिवार्य होंगे। जापान भारत के विश्वसनीय देशों में से एक है तथा यही एक देश था जिसे पिछले वर्ष पूर्वोत्तर राज्यों के साथ विदेशी मुद्रा में व्यवहार की अनुमति दी गयी थी। शायद यह भी ध्यान रख्ने की बात है कि भारत और जापान जी-4 चतुष्टम, प्रजातंत्र चतुष्टय या त्रिकोणीय मिनिस्ट्रीय वार्ता के सदस्य है। अत: दिसम्बर, 2017 में भारत-जापान एक्ट ईस्ट फोरम की स्थापना निकट भविष्य में संस्थागत आत्मियता की ओर एक आशाजनक कदम है। इससे पूर्वोत्तर राज्यों की चारों ओर से घिरी जनता के आर्थिकतथा कूटनीतिक विकास में भी मदद मिलेगी। इस स्थिति में पूर्व एशिया के अन्य भागों में भी अखंडता एक वैध संभावना बन जाएगी। यह निर्णय इसलिए भी पर्याप्त रूप से महत्वपूर्ण एवं विशिष्ट है कि इससे भारत को चीन के बीआरआई (बेल्ट एंड रोड इनिसिएटिव) का हिस्सा न बनने तथा अलग-अलग किए गए जापान के भारत तथा आस्ट्रेलिया के साथ सैन्य मैत्री करने के निर्णय की प्रेरणा मिली है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी द्वारा जापान को भारत की एक्ट ईस्ट नीति की आधारशिला बताए जाने तथा दो देशों के भारत-प्रशांत क्षेत्र के विकास के लिए अधिक ठोस (सुदृढ़) तौर पर सहयोग के लिए सहमत होने से पूर्वोत्तर इस चैन (कड़ी) के एक बहुत महत्वपूर्ण संपर्क के रूप में उभरा है। हिन्द-प्रशांत क्षेत्र जापान के पूर्वी छोर से अफ्रीका के पूर्वी छोर तक फैला हुआ है तथा भारत और जापान दोनों सहमत हैं कि आसियान क्षेत्रीय ब्लॉक के महासंघ को क्षेत्र की शांति तथा समृद्धि में अहम् भूमिका निभानी है। दोनों पक्ष आपदा एवं जोखिम में कमीके लिए जापान-भारत सीधी कार्यशालाओं के माध्यम से इस मुद्दें पर जानकारी बांटने तथा उसके आदान-प्रदान पर भी विचार कर रहे हैं। रामकृष्ण मिशन विद्यामन्दिर, बेलूर के राजनीतिक विज्ञान विभाग के अध्यक्ष डॉ. इन्द्रशिश बैनर्जी ने कहा कि भू-कूटनीतिक मूलभूत मूल्यों के दृष्टिगत जिन्हें वह संघटित करने में सक्षम है,बंगलादेश अत्यधिक महत्वपूर्ण पड़ोसी देशों में से एक है। विश्व ने पश्चिम के पुराने लोकतंत्रों को देखा है परन्तु फिर भी नाजीवाद जैसी महामारियों के आक्रमणों से कौन इंकार करेगा जिसकी सभ्यताएं समय-समय पर शिकार हुईहैं। उदाहरण के तौर पर नाजीवादएक सही उदाहरणहोसकता है। फिर भी, ऐसे मुद्दें रहे हैं जिनके युरोपियन युनियन ने कम से कम उत्तर देने में तो तत्परता की है। उदार तथा स्पष्टत: स्वागत योग्य, असन्तोष पर प्रजातान्त्रिक दृष्टिकोण, विवरणों की बारिकियों के एकत्रण जिन पर राज्य मशीनरी स्वयं को विकसित करती है, समय के साथ सुदृढ़ हुए हैं। इसकी तुलना में बंगलादेश का दुखद इतिहास रहा है। जिसकी भूमि(क्षेत्र) तथा इस तरह लोगों ने सत्ताधारी नियंत्रण क्षेत्रवाद स्वयं भागीदारी के आधार पर विकसित हो सकता है, अर्थात् संस्कृति, वाणिज्य, सम्बद्धता की भागीदारी। ग्रामीण भारत तथा मंयमार के संदर्भ में अनुभव जन्य साक्ष्य लेने से पता चलता है कि बाधाएं अभी हैं। परंतु संस्थागत तथा संवैधानिक प्रजातंत्र क्षेत्र के निर्धारित लक्ष्यों के इत्तर शांति तथा प्रगति की कुंजी हो सकते हैं तथा हमारे मस्तिष्कों में भी उसी की धारणा हो सकती है। लेखक और पत्रकार श्री राजीव भट्टाचार्जी ने कहा कि नीति की धारणा में अनिवार्य राजनैतिक तत्व निर्विवाद रूप से है। समय का सवाल है कि क्या पूर्वोत्तर मयंमार के साथ जुड़ने को तैयार है। मयंमार के स्थलरूद्ध (लेंडलाक्ड), क्षेत्र को जोड़ने वाली तीन मुख्य धमनियां परिकल्पित हैं। परन्तु, स्थलीय (वास्तविक) जांच से ऐसी तस्वीर का पता चलता है जिसे वास्तविकता में उतरने (अमली जामा पहनाने) में कुछ समय लग सकता है।
एक्ट ईस्ट नीति- सम्बद्धता के घरेलु पैमाने से लेकर विभिन्न विषयों पर अन्य तकनीकी संत्रों में डॉ. वियना अबोमी, राजनीतिक विज्ञान, पूर्वोत्तर पहाड़ी विश्वविद्यालय, शिलांग विश्वविद्यालय नागालैंड के माध्यम से एक्ट ईस्ट की संभावनाएं तथा चुनौतियों पर बोले।डॉ. अवोमी ने कहा कि एक्ट ईस्ट नीति (एईपी) भारत की विदेशी नीति के सही बदलाव की घोतक है जिसमें पूर्वोत्तर क्षेत्र पर अधिक फोकस तथा इसकी बड़ी भूमिका पर ध्यान केंद्रीत है। नागालैंड घने जंगलों तथा प्राकृतिक संसाधनों से भरपूर है तथा सही हस्तक्षेप से इस क्षेत्र में कुछ कृषि उत्पादों के सबसे बड़े निर्यातक बनने की संभावना है। नागालैंड जिसकी लगभग 215 किलोमीटर की अंतर्राष्ट्रीय सीमा पड़ती है, सक्रीय घुसपैठों तथा अन्तर्जन-जातीय झगड़ों के अलावा सबसे घटिया सड़कों के कारण सन्देहास्पद ख्याति है जिसके कारण नागालैंड के माध्यम से एईपी लागू करने में बहुत बड़ी चुनौतियां हैं। डॉ. अवोमी ने भारत की एक्ट ईस्ट नीति लागू करके नागालैंड की समस्याओं को निपटाना कैसे महत्वपूर्ण है, इस पर जोर दिया। डॉ. ए. इवोटोम्बी सिंह, अर्थशास्त्र के एसोसिएट प्रोफेसर तथा ओएसडी(आरयुएसए), उच्चतर एवं तकनीकी शिक्षा निदेशालय, अरूणाचल प्रदेश सरकार इटानगर ने ‘संबद्धता: भारत की एक्ट ईस्ट नीति की संचालन शक्ति पर पेपर प्रस्तुत किया।डॉ. चांव खानसेंग मनन्ग, अर्थशास्त्र विभाग, सेंट क्लेरेट कालेज, जीरो तथा श्रीमती संगीता मगर सेंट क्लेरेट कालेज, जीरो-‘एक्ट ईस्ट नीति के माध्यम से परिवहन एक आर्थिक सुधार’ विषय पर बोले।
डॉ. सिल्विया आर. के नोंगख्ला, हैदराबाद विश्वविद्यालय, तेलंगाना ने भारत की एक्ट ईस्ट नीति की सांस्थानिकता के संदर्भ में लुक ईस्ट से एक्ट ईस्ट की ओर पारगमन पर भाषण दिया। डॉ. नोंगखला ने आगे कहा कि अपनी संस्थानिक स्थापनाओं में केन्द्र की नीतियों को समायोजित करने वाले भावी अभिनेताओं (कर्ताओं) की कूटनीतियाँ एक्ट ईस्ट नीति के परिवर्तन (बदलाव) का आधार होंगी। उन्होंने उन नीति घटकों पर प्रकाश डाला जो एक पुष्ट तथा परिणामोंन्मुखी नीति के कार्यान्वयन के लिए आशावाद को शक्ति प्रदान करते हैं। डेरा नेतुंग राजकीय महाविद्यालय के मानव विज्ञान विभाग की सुश्री रतन तेयेंग ने बताया कि ‘एक्ट ईस्ट नीति’ किस प्रकार अरूणाचल के लिए सहायक हो सकती है।डॉ. अर्पिता घोष ने शांति और युद्ध की स्थिति तथा भारत के पूर्वोत्तर से कुछ झलकों के संबंध में पेपर प्रस्तुत किए। डॉ. सुकुमल देव ने भारत के पूर्वोत्तर के संदर्भ में ‘गरीबी की रोकथाम (उन्मूलन) एक पहल’ पर भाषण दिया। डॉ. मिथिलेश कुमार झा एक्ट ईस्ट नीति तथा नागालैंड की अवसंरचना पर बोले। डॉ. पेबम मुनिन्द्रो सिंह ने ई-कचरे के जोखिमों से एक्ट ईस्ट कॉरिडोर पर युक्तियुक्त संघात तथा अरूणाचल प्रदेश के पेपुम परे जिले के केस अध्ययन के विशेष संदर्भ में इन जोखिमों के जागरूकता स्तर के आकलन की आवश्यकता पर भाषण दिया।
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सम्मेलन में उपस्थित भागीदार
एक्ट ईस्ट नीति तथा सम्बद्धता पर तकनीकी सत्रों के दौरान डॉ. ज्योतिराज पाठक,बोडोलैंड विश्वविद्यालय, असम ने ‘एक्ट ईस्ट नीति: पूर्वोत्तर भारत के लिए चुनौतियां और अवसर’ विषय पर भाषण दिया। उन्होंने कहा कि व्यापार, वाणिज्य सम्बद्धता इत्यादि के संदर्भ में अब दक्षिणपूर्व एशियाई देश चीन के विकल्प के रूप में भारत की ओर देख रहे हैं। क्षेत्रीय स्तर पर एक्ट ईस्ट नीति (एईपी) के कारण सभी राष्ट्रों को पारस्परिक लाभ मिलेगा जिसके फलस्वरूप दीर्घावधि में स्थायित्व, विकास तथा शांति आएगी। डॉ. सहेली बोस एक्ट ईस्ट नीति में ‘भारत के पूर्वोत्तर’ को व्यापार, सम्बद्धता तथा ऊर्जा सहयोग के माध्यम से तलाशने की बात कही। डॉ. अमित कश्यप ने पूर्वोत्तर के माध्यम से एक्ट ईस्ट तथा कूटनीति के नये युग की ओर भारत का रास्ता शीर्षक एक पेपर प्रस्तुत किया। डॉ. रनजीता मन्नोव ने अरूणाचल प्रदेश की महिलाओं के एक विश्लेषण के माध्यम से महिला आर्थिक सशक्तिकरण के लिए ‘पर्यटन एक सम्भावित उत्प्रेरक’ पर भाषण दिया। प्रोफेसर मैत्रयी चौधरी,उत्तर बंगाल विश्वविद्यालय, तबांग से कूटनीतिक महत्व की ओर बदलाव पर भाषण दिया।डॉ. विश्वजीत मैत्राने भारत के पूर्वोत्तर क्षेत्र में निर्धनता, मानव विकास तथा आर्थिक वृद्धि पर भाषण दिया। डॉ. मृगंका सेकिया तथा पंकज सेकिया ने एक्ट ईस्ट के माध्यम से असम के चुनिंदा गन्तव्यों पर एक अध्ययन के माध्यम से ‘असम के पर्यटक गन्तव्यों के लोगों पर पर्यटन का आर्थिक प्रभाव’ विषय पर एक पेपर प्रस्तुत किया। सम्मेलन के दौरान प्रस्तुत बहुत से अन्य दिलचस्प पेपर भी थे। श्रीमती टीटास विश्वास, जादवपुर विश्वविद्यालय ने पूर्वोत्तर की स्वदेशी संस्कृति के सामाजिक-राजनैतिक पहलु पर भाषाण दिया तथा रेखांकित किया कि वे बहुलतावादी प्रवचनों में संयुक्त अस्तित्व के लिए क्यों तलाश में हैं। जादवपुर विश्वविद्यालय के अंतर्राष्ट्रीय संबंध विभाग की श्रीमती अविपशा सिंह ने बताया कि भारत और चीन दो महान सभ्यताएं हैं जिनका विश्व सभ्यता की भौगोलिक स्थिति पर अत्यधिक क्षेत्रीय(प्रादेशिक) तथा आर्थिक प्रभाव पड़ा है। करीबी पड़ोसियों के रूप में ये युद्ध और असंतोष के समूचे रणक्षेत्र के बीच पारस्परिक प्रभाव का इतिहास साझा करते है जिसकी इस पैनल पर इतनी देर तक उग्र चर्चा हुई है। प्राचीन कालों से ही दोनों देशों के लोग सांस्कृतिक, आध्यात्मिक, शैक्षणिक तथा आर्थिक आदान-प्रदान में लिप्त रहे हैं। बौद्ध दर्शन, फलित-ज्योतिष, औषध, संगीत, साहित्य तथा नृत्य की आध्यात्मिक पद्धतियों के संचार ने कूटनीतिक, आर्थिक तथा भू-राजनैतिक सम्बन्धों का ठोस आधार तैयार किया। चीन के रेशम, चीनी-मिट्टी, चाय ने प्राचीन काल में भारत आने का रास्ता बनाया। समय के साथ बढ़े मतभेद की सीमा पर चर्चा करने की बजाय सन्दर्भ को हमारे ज्ञान के अनुसार अभी अस्तिल में रहने वाली मृदु-शक्ति युक्ति के साथ सामने रखना फायदेमंद होगा। यदि हर चीज से द्विपक्षीय सहयोग बढ़ाना है तो संस्कृति को एक महत्वपूर्ण घटक मानना होगा। भारी संख्या में लोगों की पारस्परिक सम्बद्धता दोनों देशों की प्राय: बाधित राजनैतिक व्यंजना को पराभूत करने में मदद कर सकती है। श्रीमती पर्णा भट्टाचार्य, अंतर्राष्ट्रीय संबंध विभाग, जादवपुर विश्वविद्यालय ने कहा कि अपनी एक्ट ईस्ट नीति को सुदृढ़ करने के अपने प्रयास में भारत की देश-विशेष रणनीति में वियतनाम संबंधों को अपने रक्षा तथा आर्थिक संबंधों के अगले वांच्छित स्तर पर ले जाने के लिए बहु-प्रतिक्षित महत्व देना चाहिए। वियतनाम ने शत्रुओं से रक्षा की सुविधार्थ आवश्यक गोला बारूद तथा उपस्कर मुहैय्या करवा कर अपने सततबढ़ते वाणिज्यिक हितोंके साथ भारत की मदद में अत्यधिक इमदाद की है। इसके अलावा दक्षिण चीन सागर में मौजूद पर्याप्त मात्रा में हाइड्रोकार्बन्स के भारत के निवेश उन मुख्य कारणों में से एक है जिनके बारे में इसे अपनी सामुद्रिक व्यापार मार्गों की सुरक्षा की चिन्ता है। वियतनाम ने इस प्रक्रिया की सुविधा जुटायी है जबकि भारत दक्षिण चीन सागर के चीनी क्षेत्र का हिस्सा बनाये जाने के विरोध में सुरक्षात्मक क्षमता प्रदान कर वियतनाम की सहायता कर रहा है। यह चीन के विरूद्ध कांउन्टर-घेराबंदी की कूटनीति का काम करती है तथा अपेक्षाकृत विशाल परिप्रेक्ष्य में भारत और चीन के बीच असहमति के लंबे इतिहास में एक संतुलित तकनीक का भी काम करती है। जादवपुर विश्वविद्यालय के अंतर्राष्ट्रीय संबंध विभाग की श्रीमती उपासना मिश्रा ने बताया कि एक्ट ईस्ट नीति का पदार्पण प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने 2014 में मयंमार में ईस्ट एशिया सम्मेलन में किया था। यह एशिया प्रशान्त क्षेत्र में विस्तारित पड़ौस तथा बातचीत और सहयोग के लिए संस्थानिक तंत्र की स्थापना पर केन्द्रीत है। मयंमार ही अकेला आसियान सदस्य देश है कि जिसकी भारत के साथ दोनों भू तथा समुद्री सीमाएं लगती है। दोनों की 1,643 किलोमीटर लम्बी भू-सीमा है। मयंमार नये परिदृश्य की कुंजी है क्योंकि यह चीन और भारत के बीच महत्वपूर्ण मध्यवर्ती के रूप में काम आता है। एक उभरती शक्ति के रूप में भारत मयंमार में अपने आर्थिक, प्रौद्योगिक तथा ऊर्जा विकास एवं भू-राजनैतिक हितों के लिए उपस्थिति बढ़ा रहा है। परंतु भारत को अभी अपनी संगत मयंमार नीति बनानी है, इसके विपरीत चीन मयंमार के साथ अपना राजनैतिक पारस्परिक विश्वास तथा आर्थिक संबंध मजबूत कर रहा है। उभरते एनडीए शासन ने पूर्ववर्ती ‘‘लुक ईस्ट’’ नीति को 2014 में ‘‘एक्टईस्ट’’ नीति में परिवर्तित करने की पहल की थी जो कुल मिलाकर (सार रूप में) दोनों स्थितियों में एक जैसी ही थी। भारत की लुक ईस्ट नीति की शुरूआत से द्विपक्षीय व्यापार बढ़ाने के लिए बहुत से समझौते किए गए थे। इनमें मोरेह-तामु तथा जोखावथार-रही सीमा व्यापार शामिल हैं। इनका उद्देश्य भारत और मयंमार दोनों के हितधारकों के जीवन निर्वाह के हालात सुधारना तथा सीमा पार व्यापार बढ़ाना है। वाणिज्यिक हितों तथा राज्य नीतियां जो अधिकाशत: सकारात्मक अंतर्राज्यीय संबंधों में सर्वश्रेष्ठ उपल्ब्धि के लिए प्रयासरत है, के अलावा नार्को-उग्रवाद तथा मादक पदार्थों के अवैध व्यापार के मुद्दे दोनों देशों की सुरक्षा के लिए वास्तविक खतरे हैं। चीन में युन्नान की ओर से अवैध गोला-बारूद के व्यापार के रूप में प्रचलित वस्तु-विनिमय प्रणाली एक और कठिनाई (जटिलता) है जिस पर काबु पाना है। भारत और मयंमार दोनों ने अनैतिक गतिविधियों की रोकथाम तथा एक व्यापार हब विकसित करके पड़ोसी देशों के साथ व्यापार गतिविधियां बढ़ाने के लिए उपाय किए हैं। श्री अतेन्द्रीय डाना ने कहा कि दक्षिण पूर्व एशिया तथा आसियान के साथ अपने व्यापारिक संबंधों को उन्नयित करके भारत की कूटनीति में एक नया सवेरा आया है। नीति में नरसिंम्हाराव की ‘‘लुक ईस्ट’’ से मोदी की ‘‘एक्ट ईस्ट’’ नीति में प्रतिमान बदलाव आया है। अवसंरचना तथा सम्बद्धता प्रासंगिकत: अनिवार्य घटक बने रहे। दक्षिण पूर्व के साथ वाणिज्यिक संबंध भारत की विदेशी नीति के 45% के लगभग है। अटलांटिक से प्रशान्त नेटवर्क को परिवर्तन से बहुत सी ‘‘लुक ईस्ट’’ परियोजनाओं को तरजीह मिली है। भारत-मयांमार-थाईलैंड त्रिपार्श्व को भारत के लिए व्यापक व्यापार-वर्धक के रूप में माना जा रहा है। परन्तु एक सीवनहीन सीमापार व्यापार प्रवाह की सुविधा की इस मंशाको स्थानीय समस्याएं प्राय: बाधित करती हैं। समझना अब यह शेष है कि इस योजना से पूरा पूर्वोत्तर क्षेत्र अगले कुछ वर्षों में कैसे स्वत: जुड़ सकता है। जीरो से डॉ. रिमी मेगा तथा तैलंग रिलुंग ने कहा कि पूर्वोत्तर भारत में व्यापार और निवेश के रूप में भारत का ‘बिजली घर’ बनने की संभावना है। यह क्षेत्र सांस्कृतिक धरोहर, प्राकृतिक संसाधनों तथा अन्य सभी ऐसे अवयवों से पूर्णतया सम्पन्न है जो किसी क्षेत्र कोभू-राजनैतिक रूप से महत्वपूर्ण बनाने के लिएआवश्यक हैं। अपनी भूराजनैतिक स्थिति के कारण विशेषत: अरूणाचल प्रदेश में अपने निकटतम पड़ौसियों के साथ सीमापार व्यापार बढ़ाने के बहुत से अवसर हैं। ऐसे व्यापार की धीमी प्रक्रिया अरूणाचल तथा तत्पश्चात् समग्र रूप से पूर्वोत्तर के आर्थिक विकास के लिए वर्धक है। उस सिलसिले में अरूणाचल प्रदेश के चांगलांग जिले में स्थित पांगसुपास (दर्रा) के रास्ते भारत-मयंमार सीमा व्यापार पर्याप्त सुविधाजनक है। सीमापार व्यापार की चुनौतियों तथा सम्भावनाओं का अध्ययन भी एक गंभीर प्रयास है। डॉ. आदित्य कान्त घिसिंग, डॉक्टोरल अभ्यार्थी, अंतर्राष्ट्रीय संबंध विभाग, जादवपुर विश्वविद्यालय ने बताया कि पूर्ववर्त्ती युपीए सरकार की ‘लुक ईस्ट नीति’जिसे सत्ताधारी एनडीए सरकार के अंतर्गत ‘एक्ट ईस्ट’ नीति नाम दिया गया है, के संदर्भ में पूर्वोत्तर क्षेत्र भारत के नीति नियोजकों के फोकस में रहा है। इस सपने को साकार करने के लिए वादे तो बहुत किए गए है पर अभी बहुत कुछ करने की आवश्यकता है। इस संबंध में चीन की भूमिका असीम रही है तथा बेल्ट एंड रोड पहल की घोषणा के साथ अब ध्यान इस ओर केंद्रीत है कि भारत दक्षिण-पूर्व एशिया में कैसे मूर्त परिणाम हासिल करने के लिए काम करेगा। इस क्षेत्र में चीन की बढ़ती उपस्थिति उन बहुत से कारकों में से एक है जिन पर तुरन्त ध्यान देने तथा अन्त:निरीक्षण की जरूरत है। धरातल पर घटनाओं के गुणात्मक अध्ययन तथा क्षेत्र में विभिन्न सरकारों के बीच सीमा पार समझौतों की स्थिति के आधार पर भारत की एक्ट ईस्ट नीति को मूर्त रूप देने में चीन की भूमिका केवल एकल भूमिका तक सीमित नहीं है। भारत की ‘एक्ट ईस्ट नीति’ तथा जापान और आस्ट्रेलिया द्वारा अपनाई नीतियां कुल मिला कर दक्षिण-एशिया में चीन के बढ़ते प्रभाव को संतुलित कर रही हैं। उन्होंने यह भी तर्कदिया कि चीन-भारत संबंध युगों से परिवर्तित हुए हैं। प्रथम शताब्दि एडी से जब बौद्धत्सव का चीन को निर्यात किया जा रहा था तथा व्यापार संबंध रेशमी मार्ग (शिल्की रूट) से समृद्ध हो नेहरू के भारत से नरसिम्हाराव की 62 के युद्ध के असबाब को झाड़ने के उद्देश्य से चीन को लपेटने(संलिप्त करने) की लुक ईस्ट नीति वाले दिनों के मोदी युग की लुक ईस्ट से एक्ट ईस्ट में पुनर्सम्वेष्टन तथा बहुपार्श्वीय पहलों के माध्यम से चीन को अलग-थलग करने के प्रयास की नीति तक पहुंच गए और ओबोर (ओबीओआर) नकारने से लेकर चीन के दक्षिण-चीन एशिया में विवादों पर पाकिस्तान के साथ मेल जोल तक चीन-हिन्द संबंध संकटपूर्ण स्थितियों में रहे।
सम्मलेन के दौरान ऐसे ही और पेपर प्रस्तुत किए गए थे। एक्ट ईस्ट नीति तथा अरूणाचल प्रदेश पर ही अकेला एक विशेष सत्र आयोजित किया गया था। लगभग 120 पेपर इस सम्मलेन के दौरान प्रस्तुत किए गए थे और 320 लोगों ने इसमें भाग लिया था।
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श्री बी.डी. मिश्रा, माननीय राज्यपाल, अरूणाचल प्रदेश 16 नवम्बर,2018 को सम्मेलन के विदाई सत्र के दौरान
श्री बी.डी. मिश्रा, माननीय राज्यपाल, अरूणाचल प्रदेश ने 16 नवम्बर,2018 को विदाई भाषण दिया। राज्यपाल बी.डी मिश्रा ने कहा कि आज भारतीय कूटनीति स्वतंत्रता से अब तक की सर्वोतम है। राज्यपाल का विदाई समारोह मे कहना था कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में आज हमारा ‘दृष्टिकोण’ है हमारा महत्व है, जिसका राष्ट्र की अस्मिता तथा प्रत्येक भारतीय के मान, सम्मान व महत्व है। राज्यपाल ने कहा कि राष्ट्र के विकास का लक्ष्य प्राप्त करने के लिए, प्रत्येक योजना, कार्य तथा नीति राष्ट्र हितोन्मुखी होने चाहिए। उन्होंने आगे कहा है कि पूर्वोत्तर क्षेत्र में बड़ी संभावनाएं हैं। इसमें पनऊर्जा (पनबिजली), खनिज, उपजाऊ भूमि, अपरिवर्तित वातावरण तथा विशाल वनक्षेत्र है। यह राष्ट्रीय सुरक्षा, संसाधनों तथा सर्वोतम मानव संसाधन के लिए महत्वपूर्ण है। इस क्षेत्र का विकास, समग्र विकास, राष्ट्रीय रक्षा, सुरक्षा तथा देश की अखंडता के लिए महत्वपूर्ण है। इसका विशाल क्षेत्र तथा पर्याप्त जनसंख्या है। श्री मिश्रा ने बताया कि आठ पूर्वोत्तर राज्यों की प्राय: एक जैसी भौगोलिक स्थिति जनसांख्यिकी, परिसम्पत्तियां तथा चुनौतियां है। उन्हें एक हस्ती ही समझा जाना चाहिए। राज्यपाल ने जोर दिया कि क्षेत्र का विकास टुकड़ों में नहीं वरन् एक एकीकृत दृष्टिकोण से, फिरान (पीएचआईआरएएन) पर केंद्रीत होना चाहिए जिसका आशय है बिजली, सडक, अंतर्देशीय जलमार्ग, रेलें, हवाईमार्ग तथा इलेक्ट्रोनिक एवं संचार जालतंत्र। उन्होंने क्षेत्र के भीतर तथा मयंमार तथा बंगलादेश जैसे पड़ोसी देशों में भी शांति, स्थायित्व और बेहत्तर कानून व्यवस्था के वातावरण के अलावा समुद्री मार्ग के साथ-साथ सामुद्रिक सुरक्षा पर जोर दिया।उन्होंने सम्मेलन के आयोजन के लिए डेरा नेतुंग राजकीय महाविद्यालय, इटानगर तथा अंतर्राष्ट्रीय संबंध महासंघ जादवपुर (जेएआईआर), कोलकाता की प्रशंसा की। उन्होंने अशोक चक्र से पुरस्कृत शहिद हंगपान दादा के जोश तथा शौर्य का अनुकरण करने वाली उत्कृष्ठ नृत्य–ड्रामा प्रस्तुति के लिए विद्यार्थियों को भी बधाई दी। इस अवसर पर राज्यपाल ने एक पुस्तक ‘उस रात की सुबह’, डीएनजीसी प्रोफेसर तुनबोम रिबा जोमोह द्वारा अरूणाचल प्रदेश की महिलाओं से संबंधित सामाजिक मामलों पर लिखित एक उपन्यास का विमोचन किया। पूरे भारत वर्ष के बहुत से उच्च शिक्षण संस्थानों के प्रतिनिधियों ने सम्मेलन में भाग लिया। इन संस्थानों में जादवपुर विश्वविद्यालय, जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय, मुम्बई विश्वविद्यालय,सिम्बोसिस स्कूल ऑफ इन्टरनेशनल स्टेडिज, पूर्वोत्तर हिल विश्वविद्यालय, मणिपुर विश्वविद्यालय, रविन्द्र भारती विश्वविद्यालय नेताजी संस्थान ऑफ एशियन अध्ययन, रामकृष्ण मिशन विद्या मन्दिर, बेलूरमठ, टाइम्स ऑफ इंडिया समूह, राजीव गांधी केन्द्रीय विश्वविद्यालय, हैदराबाद केन्द्रीय विश्वविद्यालय, बोडोलैंड विश्वविद्यालय, अरूणाचल प्रदेश के महाविद्यालयों के शोध छात्र तथा अध्यापक शामिल थे। दो दिवसीय सम्मेलन के दौरान बहुत से प्रस्ताव सामने आए।
कुल मिलाकर दी गयी प्रस्तुतियां अस्पष्ट रूप से तथा स्पष्ट रूप से उन वांछित नीतियों की ओर संकेत करती थी जिनकी सरकार को पालना करनी चाहिए अथवा कम से कम उनके बारे में सजग रहना चाहिए। एतद्द्वारा नीति फीडबैक इस प्रकार है जिसकी पहचान की जा सकती है:
अन्तत: नीति नियोजन एवं अनुसंधान प्रभाग, विदेश मंत्रालय, भारत सरकार के समर्थन वाला यह सम्मेलन नीति निर्माताओं, व्यावसायिक समूहों, शिक्षाविदों तथा सिविल सोसायटी को इक्कठ्ठे करने का एक प्रयास है। भारत की एक्ट ईस्ट नीति निश्चित रूप से सफल होगी तथा पूर्वोत्तर भारत न केवल देश के भीतर समृद्ध होगा वरन् क्षेत्र में भी और पूरे विश्व में भी फले-फुलेगा।
जादवपुर अंतर्राष्ट्रीय संबंध महासंघ (जेएआईआर), 2018