वैश्विक मामलों की भारतीय परिषद ने सप्रू हाऊस, नई दिल्ली में बदलती वैश्विक व्यवस्था में भारत अफ्रीका संबंधः प्राथमिकताएँ, संभावनाएँ तथा चुनौतियाँ नाम से राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन किया। संगोष्ठी में भाग लेने वालों में पाँच पूर्व राजदूत, 18 विश्वविद्यालयों के विद्वान तथा विचार मंचों से प्रतिनिधिगण, व्यापार मंडल, उद्योग एवं रणनीतिक विशेषज्ञ शामिल थे। आई.सी.डब्ल्यू.ए. के महानिदेशक, राजदूत टी.सी.ए. राघवन ने स्वागत उद्बोधन दिया तथा श्री टी.एस. त्रीमूर्ति, सचिव (आर्थिक संबंध) द्वारा स्वागत भाषण दिया गया। संगोष्ठी में, राजनीतिक सहमति, सुरक्षा सहयोग, आर्थिक व विकास सहयोग, प्रवासी संबंध, लोगों से जुड़ाव तथा अफ्रीकी अध्ययन का प्रचार सहित भारत-अफ्रीका संबंधों से जुडे मामलों को शामिल करने वाले छः सत्र थे।
प्रथम सत्र, राजनीतिक प्रयासों में पारस्परिकता: शासन और भू राजनीति की राजदूत राजीव भाटिया, दक्षिण अफ्रीका एवं केन्या के भूतपूर्व राजदूत द्वारा अध्यक्षता की गई थी। इस सत्र में सुश्री रूचिता बेरी, वरिष्ठ शोध सहयोगी, इंस्टीट्यूट ऑफ डिफेंस स्टडीज एंड एनालिसिस, डॉ. एस. शाहजी, हैदराबाद के केन्द्रीय विश्वविद्यालय में सहायक प्रोफेसर, डॉ. प्रणव कुमार, दक्षिण बिहार के केन्द्रीय विश्वविद्यालय में सहायक प्रोफेसर तथा डॉ. सौरभ मिश्रा, विश्व मामलों की भारतीय परिषद् में अध्येता, वक्ता शामिल थे। सत्र में पिछले दो दशकों में अफ्रीका में उदित लोकतंत्रीकरण के दौर तथा किस प्रकार विश्व के प्रति भारत के दृष्टिकोण व विश्व के प्रति अफ्रीका के दृष्टिकोण के मध्य संबंध बनाने की आवश्यकता है विषय पर चर्चा हुई। इसने इस बात पर प्रकाश डाला गया है कि भारत और अफ्रीका के मध्य ऐसी कार्यसूची का विस्तार करने की आवश्यकता है जिसमें नए विषयों जैसे ब्लू इकोनॉमी, डेटा सुरक्षा, डेटा प्रबंधन इत्यादि शामिल हैं। इससे भारत और अफ्रीका के संबंधों को आगे बढ़ने में मदद मिलेगी।
दूसरा सत्र, आर्थिक एवं विकास सहयोग को बढ़ावा, की अध्यक्षता इथोपिया के भूतपूर्व राजदूत व अफ्रीका संघ के भारतीय प्रतिनिधि राजदूत गुरजीत सिंह ने की। श्री तरूण शर्मा, महाप्रबंधक एवं क्षेत्रीय प्रमुख, एक्सिम बैंक, दिल्ली, प्रोफेसर रेणु मोदी, अफ्रीकी अध्ययन विभाग, मुंबई विश्वविद्यालय, संजय प्रधान, पीडीपीयू, गुजरात और सुश्री शीला सुधाकरन, भूतपूर्व सहायक पूर्व सहायक महासचिव, फिक्की व www.trendsnafrica.com की संपादक इस सत्र में वक्ता के रूप में शामिल थे। इस सत्र में मूल्यांकन किया गया कि कैसे अफ्रीका में भारतीय निवेश वर्तमान में ओडिए स्वरूप से व्यापार और निवेश की तरफ बढ़ रहा है। चूंकि अफ्रीका के साथ भारतका व्यापार मुख्य रूप से तेल आयात का है, इसलिए सत्र ने गैर-पारंपरिक ऊर्जा क्षेत्र में चरणबद्ध सहयोग बढ़ाने और अफ्रीका में सौर गठबंधन के विस्तार की आवश्यकता पर प्रकाश डाला। सर्वसम्मति यह थी कि भारत को अफ्रीका में एक स्थायी बुनियादी ढांचा निवेश बनाने के लिए सही मूलभूत अंग की आवश्यकता है।
तीसरा सत्र, भारत-अफ्रीका संबंधों में लेनदारी लेखा-क्रय, की अध्यक्षता दक्षिण अफ्रीका के भूतपूर्व उच्चायुक्त, राजदूत विरेन्द्र गुप्ता ने की। डॉ. पाखोलाल हओकिप, सहायक प्रोफेसर, इतिहास विभाग एवं अंतर्राष्ट्रीय संबंध, पुद्दुचेरी विश्वविद्यालय, डॉ. रजनीश कुमार गुप्ता, सहायक प्रोफेस, प्रवासी अध्ययन केन्द्र, गुजरात केन्द्रीय विश्वविद्यालय, डॉ. मनीष कर्मवार, सहायक प्रोफेसर, एसएलसीई, दिल्ली विश्ववद्यालय और डॉ. बसहाबी गुप्ता, सहायक प्रोफेसर, मिरान्डा हाऊस, दिल्ली विश्वविद्यालय इस सत्र में वक्ता के रूप में शामिल थे। इस सत्र में चर्चा की गई कि कैसे भारतीय प्रवासियों की बड़ी संख्या ने भारत-अफ्रीका संबंधों की बुनियाद को मजबूत किया है। इसने सांस्कृतिक संबंधों के माध्यम से भारत-अफ्रीका व्यापार संबंधों में सुधार की सीमा का मूल्यांकन किया, जो भारत को वर्तमान आर्थिक परिदृश्य में बड़े व्यापारिक सहयोगी के रूप में उभरते देशों के साथ प्रतिस्पर्धा करने में मदद करेगा।
चौथे सत्र, आम सुरक्षा चुनौतियाः सहयोग की संभावनाएं, की अध्यक्षता, जिन्दल स्कूल ऑफ इन्टरनेशनल अफेयर्स, ओ.पी. जिन्दल विश्वविद्यालय के अधिष्ठाता, प्रोफेसर श्रीराम चौलिया, प्रोफेसर अरविंद कुमार, जियोपॉलिटिक्स एण्ड आईआर मनीपाल विश्वविद्यालय, कैप्टन सरबजीत परमार, कार्यपालक निदेशक, एनएमएफ, लेफटिनेन्ट जनरल चंद्र प्रकाश (सेवानिवृत्त), भूतपूर्व फोर्स कमांडर, एमओएनयूएससीओ, डॉ. एफ.आर. सिद्दिकी, अध्येता, आईसीडब्ल्यूए तथा डॉ. निवेदिता रे, निदेशक (अनुसंधान) आईसीडब्ल्यूए ने की। सत्र में बेहतर भारत-अफ्रीका सहयोग के लिए संस्थागत संरचनाओं को मजबूत करने की आवश्यकता और कैसे भारत कोसम्पूर्ण पूर्वी अफ्रीकी तट और समग्र आंतरिक विकास की दृष्टि के माध्यम से अफ्रीका के साथ जुड़ने के प्रयास करने चाहिए, पर चर्चा की गई। इस बात पर भी प्रकाश डाला गया कि भारत का शांति प्रयासों में एक क्षेत्र ऐसा है जिसकी क्षमता काफी अधिक है, जिसमें कुछ चुनौतियां हैं और यह कि भारत द्वारा पारंपरिक और गैर-पारंपरिक समुद्री सुरक्षा के मुद्दों के साथ संलग्न होने के लिए आईओआरए (IORA) और आईओएनएस (IONS) का अधिक लाभ उठाया जा सकता है।
पाँचवां सत्र, लोगों में सहयोगः मीडिया, संस्कृति और शिक्षा विनिमय की अध्यक्षता मुम्बई विश्वविद्यालय के अफ्रीकी अध्ययन विभाग की प्रोफेसर अपराजिता बिशवास ने की। इस सत्र के वक्ताओं में दिल्ली विश्वविद्यालय के भारती कॉलेज की प्रोफेसर नन्दिनी सेन, जाधवपुर विश्वविद्यालय के अंतर्राष्ट्रीय संबंध विभाग की प्रोफेसर संजुकता भट्टाचार्य, मुम्बई विश्वविद्यालय की मीरा वेंकटाचलम तथा दिल्ली विश्वविद्यालय के अफ्रीकी अध्ययन विभाग की प्रोफेसर आंगुंगशी यारुनिनगम शामिल थीं। इस सत्र में चर्चा की गई कि “लोगों में सहयोग” कैसे भारत-अफ्रीका संबंधों को बढ़ाने में आवश्यक घटक बनता है तथा सरकार की कूटनीति के लिए सरकार की सराहना करते हुए एक प्रभावी कारक है। इसमें इस बात पर भी प्रकाश डाला गया कि बॉलीवुड दुनिया के लिए “भारतीय संस्कृतिक निर्यात” का सबसे बड़ा घटक साबित हुआ है। इसने भारतीय प्रवासियों में भारतीय संस्कृति को लोकप्रिय बनाया है। चर्चा, भारत में अफ्रीकी लोगों पर भी केन्द्रित थी और यह देखा गया कि भारत में आने वाले अफ्रीकियों के अधिकारों और भलाई की रक्षा करना भारत में सद्भावना बढ़ाने की एक महत्वपूर्ण रणनीति हो सकती है।
छठे सत्र, भारत में अफ्रीकी अध्ययन की स्थितिः स्टॉक लेना और आगे का रास्ता पर एक गोलमेज च्रर्चा की अध्यक्षता इलाबाद के जी. बी. पंत सामाजिक संस्थान के अध्यक्ष तथा इलाबाद केन्द्रीय विश्वविद्यालय के भूतपूर्व उपकुलपति प्रोफेसर राजेन हर्षे ने की तथा महानिदेशक, आईसीसीआर श्री अखिलेश मिश्रा सह अध्यक्ष थे। जामिया मीलीया इस्लामिया की अंतर्राष्ट्रीय अध्ययन की एमएमएजे अकादमी की रश्मि दुरईस्वामी, दिल्ली विश्वविद्यालय के अफ्रीकी अध्ययन विभाग की प्रोफेसर आंगुंगशी यारूइंगम तथा जोर्डन, लीबीया के भूतपूर्व राजदूत, राजदूत अनिल त्रिगुणायत वक्ताओं में शामिल थे। सत्र में भारत में अफ्रीकी छात्रवृत्ति की स्थिति पर चर्चा हुई। इसमें अफ्रीका के प्रति बहुआयामी और बहु-विषयक दृष्टिकोण और भारत में अफ्रीका पर अनुसंधान के लिए अधिक विश्वविद्यालय केंद्रों की स्थापना की आवश्यकता पर प्रकाश डाला गया।
भारत के उपराष्ट्रपति और आईसीडब्ल्यूए के अध्यक्ष श्री एम. वेंकैया नायडू द्वारा समापन भाषण दिया गया। इरीट्रीया के राजदूत, मिशन के अफ्रीकी प्रमुखों के अध्यक्ष और राजनयिक कोर के उपाध्यक्ष एच. ई. अलेम शेहाये वोल्डेमरियम, ने भी समापन संबोधन दिया।