"राष्ट्रीय सुरक्षा : भारत के लिए अहम चुनौतियां"
पर
गोलमेज चर्चा
में
राजदूत राजीव के भाटिया
महानिदेशक, आईसीडब्ल्यूए
द्वारा
स्वागत अभिभाषण
सप्रू हाउस, नई दिल्ली 2 दिसंबर 2014
श्री सुरेश प्रभाकर प्रभु, माननीय रेल मंत्री, श्री एन.एन. वोहरा, जम्मू और कश्मीर के माननीय राज्यपाल,श्री राज चेंगप्पा, प्रधान संपादक, द ट्रिब्यून ग्रुप ऑफ़ न्यूज़पेपर्स और इस गोलमेज के लिए हमारे सहयोगी संगठन,आईसीडब्ल्यूए की शासी परिषद के सदस्य और दी ट्रिब्यून के न्यासी, प्रतिष्ठित पैनलिस्ट, महानुभाव, मेहमान, देवियों और सज्जनों,
बाएं से दाएं) श्री राज चेंगप्पा, राजदूत सतीश चंद्र, श्री एन.एन. वोहरा, जम्मू-कश्मीर के माननीय राज्यपाल, राजदूत राजीव के भाटिया, महानिदेशक, आईसीडब्ल्यूए, श्री एस.एस.सोढ़ी, श्री नरेश मोहन और श्री एस.एस. मेहता।
आप सभी का हार्दिक स्वागत है। हम विशेष रूप से माननीय रेल मंत्री और जम्मू-कश्मीर के माननीय राज्यपाल की उपस्थिति से सम्मानित महसूस करते हैं।
- श्री सुरेश प्रभु , हमारे केंद्रीय मंत्रिमंडल के सबसे सेरेब्रल सदस्यों में से एक है। हममें से जिन्होंने हाल के जी -20 शिखर सम्मेलन को देखा है, उन्होंने, भारतीय परिप्रेक्ष्य से उनके विचार-विमर्श, उनके परिणाम और इसके प्रक्षेपण में वास्तविक योगदान का उल्लेख किया देखा होगा।
श्री एन.एन. वोहरा एक असाधारण सार्वजनिक व्यक्ति है, जिनके पास सुरक्षा और प्रशासन के मुद्दों में बेजोड़ विशेषज्ञता है। संक्षेप में, हम "राष्ट्रीय सुरक्षा: भारत के लिए महत्वपूर्ण चुनौतियां" पर इस गोलमेज सत्र के उद्घाटन सत्र के लिए और अधिक शक्तिशाली पैनल की आशा नहीं कर सकते थे।
- आईसीडब्ल्यूए, देश की सबसे पुरानी और प्रमुख विदेश नीति विचार-मंच है जो चयनित विषय पर गहन संवाद करता है। यह कार्यक्रम ट्रिब्यून समूह के साथ हमारे समर्थक सक्रिय सहयोग का परिणाम है। हमारा अनुभव है कि इस प्रकार के सहयोगी उद्यम महत्वपूर्ण तालमेल बनाने में मदद मिलती हैं और किसी संस्था द्वारा व्यक्तिगत रूप से आयोजित किए जाने पर कार्यक्रम की प्रभावशीलता बढ़ जाती है।
- गोलमेज के प्रयोजन की ओर मुड़ते हुए, कृपया मुझे कुछ संक्षिप्त टिप्पणी करने की अनुमति दें।
- सर्वप्रथम, देश के रणनीतिक समुदाय को सुरक्षा और विकास के बीच अटूट संबंध पर काफी हद तक सहमति है। सुरक्षा के बिना, विकास शायद ही संभव है; और समावेशी विकास के बिना, सुरक्षा केवल भ्रम हो सकती है। इसलिए, राष्ट्रीय सुरक्षा का एक समग्र या व्यापक साकल्य अवधारणा आवश्यक है।
- दूसरी बात, जबकि अक्सर सुरक्षा के मुद्दों पर चर्चा में, विद्वानों का दृष्टिकोण सुरक्षा और विकास के सभी क्षेत्रों को विस्तृत करने वाला होता है, हमारा केंद्रीय ध्यान न खोना वांछनीय है। मेरा सुझाव है कि राष्ट्रीय सुरक्षा पर एक यथार्थवादी दृष्टिकोण से हमें राष्ट्रीय सुरक्षा के मुख्य क्षेत्रों और माध्यमिक क्षेत्रों के बीच अंतर करने की आवश्यकता हो सकती है। हम इन क्षेत्रों को कैसे परिभाषित करते हैं और उन्हें एक-दूसरे के साथ सह-संबंधित करते हैं, आगे के प्रतिबिंब के योग्य मुद्दा है।
- तीसरा, यहां शामिल एक मौलिक दुविधा को संदर्भ बनाया जा सकता है। राष्ट्रीय सुरक्षा, जो सबसे संकीर्ण अर्थों में, रक्षा, आंतरिक सुरक्षा, खुफिया, आतंकवाद और कूटनीति, आदि से संबंधित है, एक निश्चित सीमा की गोपनीयता की आवश्यकता होती है। तो हम सार्वजनिक रूप से इन सभी संवेदनशील मामलों पर चर्चा कैसे कर सकते हैं ? मुझे लगता है कि उत्तर, यह होना चाहिए कि लोकतंत्र और सोशल मीडिया के इस युग में, जनता की राय और जागरूकता को बढ़ावा देने के लिए एक संतुलन बनाए रखने की जरूरत है, क्योंकि सार्वजनिक बहस की जरूरत है। इस गोल-मेज का उद्देश्य एक ऐसी प्रक्रिया शुरू करना है, जिसके परिणामस्वरूप प्रकृति और सीमा के बारे में चुनौतियों और समाधान पर सहमति बनती है। इस सहमति को नीति निर्माता के साथ साझा किया जाना चाहिए। मुझे पूरा विश्वास है कि इस संतुलित फोकस को पूरे दिन ध्यान में रखा जाएगा।
राजदूत राजीव के भाटिया, महानिदेशक, आईसीडब्ल्यूए भाषण देते हुए।
- अंत में, एक बार फिर से, मैं आईसीएडब्ल्यूए में का आप सभी से हार्दिक स्वागत करता हूँ और आज सप्रू हाउस में इतनी बड़ी संख्या में जुटे प्रतिष्ठित व्यक्तियों को देखकर अपार प्रसन्नता हो रही है।
- ध्यानपूर्वक सुनने के लिए धन्यवाद।
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