फ्रेंडशिप सोसाइटी और कोरिया गणराज्य दूतावास
द्वारा आयोजित
विशेष समारोह
में
“भारत-कोरिया गणराज्य के बीच द्विपक्षीय संबंध-प्रगति की ओर”
विषय पर
राजदूत राजीव के भाटिया
महानिदेशक, आईसीडब्ल्यूए
का उद्बोधन
कोरिया गणराज्य दूतावास, नई दिल्ली
1 दिसंबर 2014
इस गौरवशाली सभा को संबोधित करते हुए मुझे प्रसन्नता की अनुभूति हो रही है, मैं बोद्धिक, सांस्कृतिक और राजनयिक विषय पर आधारित इस विशेष शाम को संचालित करने के लिए मेजबान संस्थानो का गर्मजोशी से स्वागत करते हुए उन्हें बधाई देना चाहूंगा । उन्होंने यह समारोह भारत और कोरिया गणराज्य के बीच मजबूत मैत्रीपूर्ण संबंधों को आगे बढ़ाने के लिए आयोजित किया है ।
भारतीय विश्व कार्य परिषद (आईसीडब्ल्यूए) वह संस्थान है जिसका मैं यहां प्रतिनिधित्व कर रहा हूँ । परिषद के कोरिया गणराज्य में अपने समकक्ष संस्थानों के साथ गहरे मैत्रीपूर्ण संबंध हैं । हमारे देश में जून 2012 को विदेश कार्य और राष्ट्रीय सुरक्षा संस्थान (आईएफ़एएनएस) द्वारा प्रतिनियुक्त विद्वानों के एक शिष्टमंडल का आगमन हुआ था । हमारे देश की ओर से विशेषज्ञों के एक शिष्टमंडल ने पिछले महीने सियोल की यात्रा करके वहां सारगर्भित एवं सफल बातचीत की थी । इस शिष्टमंडल में उप-महानिदेशक श्री नरेंद्र सक्सेना और राजदूत स्कन्द तायल शामिल थे । हमें इस बात की भी सुखद अनुभूति हो रही है कि राजदूत तायल की कोरिया यात्रा के बाद उन्होंने एक बहुत ही महत्वपूर्ण पुस्तक लिखी थी जिसका नाम भारत और कोरिया गणराज्य;आगे बढ़ते हुए प्रजातांत्रिक मूल्य था ।
अतीत में बोये गए बीज भविष्य के हरे भरे पौधे हो जाते हैं । पिछले दो दशकों के दौरान हमारे द्विपक्षीय संबंधों की बुनियाद अब एक शानदार भविष्य की ओर अग्रसर हो रही है । दोनों देशों के बीच मैत्रीपूर्ण संबंधों की राहें अब हमें लाभकारी मार्ग की ओर प्रशस्त कर रही है तथापि इस प्रयोजन के लिए हमें और कड़ी मेहनत करनी होगी ।
वर्ष 2013 में हमने अपने राजनयिक संबंधों के 40 वर्ष पूरे कर लिए हैं, भारत द्वारा 1950 में कोरिया के युद्ध का शांतिपूर्ण समाधान ढूंढने का प्रबल प्रयास करने के बावजूद दोनों देशों के बीच परस्पर संबंधों का पहला चरण रणनीतिक अलगाव के रूप में वर्णित किया गया है । विशेष रूप से हम इसे कोरिया प्रायद्वीप और दक्षिण एशिया के बीच रणनीतिक संबंध विच्छेद का भी नाम दे सकते हैं ।
वैश्वीकरण की अवधारणा और उसकी गहरी छाप के कारण भारत की उदारवादी आर्थिक नीति और कोरिया गणराज्य द्वारा इस दिशा में अग्रसर होने के कारण एक नए युग का आविर्भाव हुआ । रणनीतिक संबंध विच्छेद वस्तुतः 3 देशों नामतः पाकिस्तान, उत्तर कोरिया और चीन द्वारा अपनी गई नीतियों का नतीजा था । बहुत अधिक विस्तार में जाए बिना मैं यह कहना पर्याप्त समझता हूँ कि अंतर्राष्ट्रीय परिदृश्य पर हुए परिवर्तनों को दृष्टिगत रखते हुए भारत और कोरिया गणराज्य को एक बार फिर अपनी नीतियों का मूल्यांकन करना चाहिए ताकि दोनों देश अपने परस्पर हितों को सध्या करते हुए और निकट आएं । वास्तव में दोनों देशों में मजबूत प्रजातांत्रिक व्यवस्था होने के कारण वहां स्थिरता, सुरक्षा, संतुलन और शांति का उल्लेखनीय वातावरण बना है जो पूर्वी एशिया की शांति के लिए जरूरी है इससे दोनों देश बहुआयामी आधार पर लाभांवित होंगे ।
1993 के मध्य में जब प्रधानमंत्री नरसिंह राव ने कोरिया गणराज्य की यात्रा की थी और इसके बाद वर्ष 2010 में दोनों देशों के बीच रणनीतिक भागीदारी शुरू हुई थी उस समय द्विपक्षीय संबंधों की ऐसी गहरी बुनियाद पड़ी जिसके दूरगामी प्रभाव अब भी स्पष्टतः दृष्टिगोचर हैं । आज के संसार में विश्व का प्रत्येक देश दूसरे देश से किसी न किसी प्रकार से जुड़ा हुआ है । उल्लेखनीय है कि भारत और कोरिया गणराज्य शत्रु पड़ोसियों से घिरे हुए हैं ।
कोरिया गणराज्य के लिए यह जरूरी है कि वह एक ओर चीन के साथ और दूसरी ओर अमेरिका, जापान और अपने दूसरे साथी देशों के संग संतुलित संबंध बनाए । जहां तक भारत का संबंध है तो इस संदर्भ में परिदृश्य बदल रहा है । अब लुक ईस्ट पॉलिसी का स्थान एक्ट ईस्ट पॉलिसी ने ले लिया है । एक्ट ईस्ट पॉलिसी कर्म, कार्यान्वयन आर्थिक संबंधों पर ज़ोर देती है, जो कोरिया गणराज्य द्वारा वांछित अवधारणाएं हैं । यह नीति दो अन्य कारणों से भी महत्वपूर्ण है । इसके तहत रणनीतिक सहयोग पर ज़ोर दिए जाने के साथ-साथ भौगोलिक फूटप्रिंट को भी विस्तारित करने की अवधारणा प्रस्तुत की गई है । भारत के नए नेतृत्व में म्यांमार से लेकर दक्षिण प्रशांत तक एक प्रभावी भूमिका निभाने का आह्वान किया गया है । इस दृष्टिकोण से भारत की विदेश नीति में कोरिया गणराज्य को एक महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त हो गया है । इन तथ्यों को मद्देनजर रखते हुए कहा जा सकता है कि संबंधित नीति और प्रचार के प्रयास निम्नलिखित पांच विशेष क्षेत्रों पर संकेंद्रित होने चाहिए-
प्रथम, दोनों देशों की सरकारों के बीच राजनीतिक मित्रता और गहरी होनी चाहिए । एचओएस/एचओजी के स्तर पर होने वाली यात्राएं पर्याप्त रूप से हो चुकी हैं । अब इस दिशा में दोनों देशों के बीच वार्षिक शोखर सम्मेलन होने चाहिए । प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा कोरिया गणराज्य की समभाव्य यात्रा इस दिशा में विशेष रूप से सहायक होगी ।
दूसरे, व्यापार निवेश और प्रौद्योगिकी के आदान प्रदान का विशेष दर्जा दिया जाना चाहिए । कोरियन कंपनियां यथा एलजी, सैमसंग, हाई हुंडई और डाइबू आदि के नाम अब भारतीय समाज में रच बस गए हैं । रणनीतिक विश्लेषक राजा मोहन ने कहा हाई कि आर्थिक संबंधों की प्रकृति बदल जाने से दोनों देशों के बीच परस्पर संबंधों के वृहद आयाम खुले हैं हालांकि भारत की मंडियों में कोरिया गणराज्य की होस्सेदारी विशेष रूप से आर्थिक सुधार 2.0 की यहां से शुरुआत संबंधी प्रक्रिया अवश्य निर्धारित होनी चाहिए । इलेक्ट्रोनिक, आटोमोटिव, अवसंरचना और ऊर्जा क्षेत्र के अलावा कोरिया की कंपनियों को दूसरे क्षेत्रों में भी पदार्पण करने के लिए प्रोत्साहित करना चाहिए । कोरिया को चाहिए कि वह भारत में फलते फूलते व्यापारिक वातावरण से स्वयं को लाभांवित करे । इस अनुक्रम में व्यापार और निवेश के स्तर को भी आगे बढ़ाए जाने की आवश्यकता है ।
तीसरे, रक्षा क्षेत्र में सहयोग भी बढ़ा है लेकिन अभी कुछ और क्षेत्रों में भी प्रवेश करने की आवश्यकता है दोनों देश समुद्रीय मार्ग संचार (एसएलओसी), समुद्रीय सुरक्षा और परस्पर हितों को प्राप्त करने के लिए संयुक्त रूप से प्रतिबद्ध है तथापि उनके रणनीतिक सहयोग को और आगे बढ़ना चाहिए ।
चौथे, हमें इस दिशा में दोनों देशों की जनता को भी समाविष्ट करना होगा । हमें उन्हें बताना होगा कि हमारे बीच प्राचीनकाल से ही सांस्कृतिक संबंध रहे हैं । उन्हें यह भी बताना होगा कि आयुता अथवा आयोध्या की राजकुमारी से संबंधित कहानी की पृष्ठभूमि क्या है । दोनों देशों के बीच बौद्ध धर्म, गांधी के दर्शन शास्त्र और रविंद्र नाथ टैगोर द्वारा कोरिया की यात्रा के कितने दूरगामी असर पड़े हैं । आज की शाम के सांस्कृतिक कार्यक्रम में हमें ये झलकियां भी प्रस्तुत करनी होंगी ।
अंततः, शैक्षणिक/रणनीतिक और सिविल सोसाइटी के स्तर पर पर्याप्त कार्यक्षेत्र ऐसा है जिसके तहत दोनों देश जी-20 और पूर्वी एशिया शिखर सम्मेलन में परस्पर कार्य करके क्षेत्रीय और वैश्विक मुद्दों पर गहरी नजर रख सकते हैं । विदेश नीति, चीन का उत्थान और एशियाई देशों की भावी रणनीति के परिप्रेक्ष्य में गैर पारंपरिक विषयों के साथ दोनों देशों के बीच बड़े पैमाने पर विद्वानों और शिक्षाविदों का आदान प्रदान होना चाहिए । तभी संबंधित नीति निर्माताओं, व्यापारियों और सामाजिक नेताओं को बेहतर मार्गदर्शन प्राप्त हो सकेगा ।
अंत में मैं शीट युद्ध के बाद द्विपक्षीय संबंधों में होने वाली महत्वपूर्ण प्रगति पर अपना संतोष व्यक्त करना चाहूंगा । क्षेत्र में बदलता हुआ शक्ति संतुलन भारत और कोरिया गणराज्य में हाल ही में हुए परिवर्तन से उम्मीद की जा सकती है कि अब दोनों देशों के बीच एक नए युग की शुरुआत होगी ।
मेरी बात ध्यानपूर्वक सुनने के लिए मैं आपका बहुतधन्यवाद करता हूँ ।