परिधीय क्षेत्रों के विकासर्थ बीसीआईएम: उप-क्षेत्रीय सहयोग
पर
अन्तर्राष्ट्रीय संगोष्ठी
में
राजदूत राजीव के भाटिया
महानिदेशक, आईसीडब्ल्यूए
द्वारा
अध्यक्षीय संबोधन
शिलांग, मेघालय
27.11.2014
मैं इस महत्वपूर्ण सम्मेलन को आयोजित करने के प्रयोजनार्थ की गयी प्रशंसनीय पहल के लिये मेजबान संस्थान का धन्यवाद करते हुए अपनी बात शुरू करता हूँ । यह विषय महत्वपूर्ण है, इसका स्थान शिलॉंग है इसका चयन तर्कसंगत है और समय भी अपने आप में बिल्कुल सही है ।
मुझे विश्वस है कि विभिन्न देशो और संस्थानों का प्रतिनिधित्व करने वाले प्रतिभागी इस अवसर का अधिकाधिक सदुपयोग करेगें । वे इस विषय पर न केवल परस्पर विचारों का आदान प्रदान करेगें बल्कि किसी निश्चित निष्कर्ष पर भी पहुँचने का प्रयास करेगें । उनके इस निष्कर्ष को बीसीआईएम आर्थिक कारीडोर परियोजना को आगे बढ़ाने के लिये इस समय चल रही आयोजना और तैयारीयों में शामिल करके आगे बढ़ाया जायेगा तथा क्षेत्रीय सहयोग के लिये बीसीआईएम मंच को और अधिक तरक्की दिये जाने के निमित्ता उससे सहायता ली जायेगी ।
पृष्ठभूमि
बंगलादेश, चीन, भारत और म्यांमार के बीच बहुआयामी सहयोग की अवधारणा कुनमिंग पहल शुरू करते हुए 1999 में शुरू की गयी थी जो अब तक प्रगति का मार्ग प्रशस्त करते हुए प्रखर रुप धारण कर गयी है, जिसके नजी नतीजे में चरण ii स्तर पर विद्वानों ओर विशेषज्ञों के बीच सारगर्भित निर्णय लिये गये हैं । सम्बन्धित विचारों और प्रस्तावों का तानाबाना विकसित करने के लिये1999 और 2013 के बीच पूर्ण स्तर की 11 बैठकों का आयोजन किया गया था । इन बैठकों को विस्तृत ऐतिहासिक विवरण अलग से उपलब्ध है । इस विषय पर पहले से ही पर्याप्त सामग्री मौजूद है । मैंने भारत के पूर्वोत्तर राज्य नामक चीनी अध्ययन मोनोग्राफ संस्थान, बीसीआईएम मंच और किशन एच राणा तथा पेट्रीसीया ओबेरॉय द्वारा लिखित बीसीआईएम मंच एकीकरण और आरआईएस द्वारा प्रस्तुत हाल के अध्ययन कार्य को पढ़ा और इस नतीजे पर पहुँचा कि ये इस दिशा में पर्याप्त महत्वपूर्ण और प्रासंगिक हैं । इस सम्मेलन में प्रस्तुत किया जाने वाले शोध पत्रों में निहित सामग्री का अवलोकन करने के बाद मैं इस नतीजे पर पहुंचा हूँ कि हम एक बहुत ही मजबूत बौद्धिक यात्रा की दिशा में अग्रसर हैं ।
भारतीय परिप्रेक्ष्य में बीसीआईएम चरण ii के रुप में विकसित हुआ है । यह अलग बात है कि चीन और म्यांमार ने तथा बाद में बंगलादेश ने इसे सरकार समर्थित अभ्यास के आइने में देखा । चार सरकारों की सहायता से फरवरी 2013 में संचालित कुनमिंग से कोलकाता (के2के) कार रेली को व्यापक लोकप्रियता प्राप्त हुई ।
इस पृष्ठ भूमि में चीन के प्रधान मंत्री लीन केक्वांग द्वारा भारत की यात्रा किये जाने के बाद जारी किये गये संयुक्त वक्तव्य सहित सम्बन्धित पैराग्राफ में मई 2013 के दौरान बीसीआईएम सहयोग को औपचारिक रुप से मान्यता प्राप्त हुई । चीन और भारत की सरकारों ने बीसीआईएम आर्थिक कारीडोर के विकासार्थ तथा दोनों देशों के नागरिको के बीच और अधिक मजबूत संबंध स्थापित करने के लिये बीसीआईएम क्षेत्र में कनेक्टीविटी को सुदृढ़ करने के प्रयोजनार्थ एक संयुक्त अध्ययन समूह (जेएसजी) को स्थापित करने का प्रस्ताव रखा था । इसके बाद अक्टूबर 2013 में प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की चीन यात्रा और सितम्बर 2014 में राष्ट्रपति जिनपिंग की भारत यात्रा के समापन पर जारी संयुक्त वकतव्यों में इसका भी जिक्र किया गया है । पिछली दो यात्राओं के बीच भरतीय और चीनी प्राधिकारीयों ने बंगलादेश और म्यांमार की सरकारों की सहमति प्राप्त की थी जिसके कारण दिसम्बर 2013 में कुनमिंग में संयुक्त अध्ययन समूह की पहली बैठक आयोजित करने का मार्ग प्रशस्त हुआ ।
इस पृष्ठ भूमि को दोबारा से सामने लाना इस लिये आवश्यक है ताकि इस क्षेत्र में गैर सरकारी विशेषज्ञ और शिक्षाविद्वान विदेश नीति, विकास नीति और विदेश आर्थिक नीति के निर्धारण में महत्वपूर्ण भूमिका अदा करें । बीसीआईएम सरकारों की ओर से राजकीय परिधी से बाहर प्रस्तावों द्वारा सृजित प्रभावों का एक बेहतर उदहारण है जिसमें अवधारणाओं ,निर्णयों और कि गयी कार्रवाइयों को समाविष्ट किया जाता है । इसलिये यह सुनिश्चित करना आवश्यक है कि न केवल बीसीआईएम कीअवधारणा जीवन्त रहे बल्कि आगे बढ़ते हुए अपने दृष्टिकोण को व्यावहारिक स्कीमों और परियोजनाओं के रुप में परिणत करें । यह बात अत्यधिक महत्वपूर्ण है कि अनुसंधान स्तर पर किया जा रहा कार्य अनवरत जारी रहे । यह सम्मेलन अपेक्षित दिशा की ओर अग्रसर होने में मील का पत्थर सिद्ध होगी ।
आवश्यक कार्य
अब हम गैर सरकारी विशेषज्ञों के संयुक्त प्रयासों सहित चारो सरकारो द्वारा यथा परिकल्पित बीसीआईएम सहयोग पर एक नजर डालेंगे । वस्तुता: बीसीआईएम का लक्ष्य आर्थिक और सामाजिक विकास के साथ गरीबी उन्मूलन भी है । जेएसजी की पहली बैठक में इस बात पर सहमति जताई गयी थी कि बीसीआईएम कारीडोर पूर्व में किनमिंग और पश्चिम में कोलकता से शुरू होकर मण्डाले ,ढाका , चिटगांव और अन्य बड़े नगरो सहित आस पास के क्षेत्रों में विस्तारित किया जायेगा । इस सहयोग के चार प्रमुख घटक होगें :
प्रतिभागी इस बात पर सहमत हो गये थे कि अन्य बहुपक्षीय और क्षेत्रीय सहयोग कार्य व्यवस्था से जुड़े श्रेष्ठ अभ्यासों को अमल में लाया जायेगा
इसके अतिरिक्त कतिपय आधारभूत सिद्धान्त बीसीआईएम परियोजना के भावी विकास का मार्ग प्रशस्त करेगें । इस अनुक्रम में परस्पर विश्वास, सम्मान , परस्पर हित, परस्पर हितों की न्ययसंगत भागीदारी, व्यवहारवाद, अपेक्षित प्रभावकारिता, सर्वसम्मति निर्माण और प्रापण निष्कर्ष शामिल होगें
व्यापक संदर्भ
म्यांमार के एक प्रसिद्ध विद्वान ने कहा था कि म्यांमार वह स्थान है जहां चीन और भारत मिलते हैं । यहां कोई भी व्यक्ति पूर्ण न्याय के साथ यह कह सकता है कि भारत का पूर्वोत्तर क्षेत्र वह स्थान है जहां चारों देश मिलते हैं तथा जहां दक्षिण ऐशिया और दक्षिण पूर्व ऐशिया परस्पर विचारों का आदान प्रदान करते हैं । यहां यह कहना भी युक्तियुक्त होगा कि भारतीय दृष्टिकोण के अनुसार बीसीआईएम पूर्वोत्तर क्षेत्र के सामाजिक आर्थिक विकास को बढ़ाने में एक महत्वपूर्ण भूमिका अदा करेगा । कोई भी व्यक्ति इस संदर्भ में यह नहीं कहेगा कि हमारे परिधीय क्षेत्रों के संबंध में किसी भी विकृत नीति का अनुपालन किया जायेगा । समय गुजरने के साथ साथ भारत ने पूर्वोत्तर के विकास में भारी निवेश किया है । तथापि अभी इस दिशा में बहुत कुछ किये जाने की जरूरत है ।
यह भारत की पूर्व से सम्बन्धित नीति का एक तर्क संगत अंश है जिसे हम पहले लुक ईस्ट पॉलेसी कहते थे । इस नीति के कई आयाम है जिसमें केन्द्र सरकार द्वारा पूर्वोत्तर क्षेत्र के विकासार्थ विशेष ध्यान सकेन्द्रण; म्यांमार और बंगलादेश के साथ भारत का निकट आर्थिक सहयोग; बिम्सटेक औरएमजीसी के जरिये उप क्षेत्र में परस्पर सम्बन्धो का सुदृढ़ीकरण; आसियान और पूर्वी ऐशिया के महत्वपूर्ण देशों के साथ सहयोग और बहुआयामी कनेक्टीविटी को विकसीत करना शामिल है । इन बहुपक्षीय क्षेत्रों में पर्याप्त प्रगति हो रही है और आशा है कि आने वाले वर्षों में यह प्रगति बहुत बढ़ जायेगी ।
अतः हमें यह ध्यान रखना है कि बीसीआईएम ऐसे सम्बन्धित मंचो में से एक होगा । यह मात्र एक ऐसा मंच नहीं होगा जिसका उपयोग भारत अपने पूर्वोत्तर विकासार्थ करेगा ।
युक्तियुक्त सुझाव
इस दिशा में और अधिक विचारों को लाने के साथ साथ सर्व सम्मति बानाने के लिये मैं आपको कुछ सुझाव देना चाहूँगा-
प्रथम, हमारे सीमावर्ती क्षेत्रों में चीन की घुसपैठ निरन्तर जारी है । इसलिये हमारे कई सुरक्षा विशेषज्ञों की यह राय है कि बीसीआईएम के विचारों को व्यवहारिक रूप न दिया जाये । उनका कहना है कि बेसीआईएम के पक्षकार यह समझ लें कि उन्हें तर्क और धैर्य की सहायता से सम्बन्धित मामलो को रचनात्मक तरीके से हल करना है ।
दूसरे-
दूसरे में यहा मौजूद अपने चीनी और दूसरे मित्रों से यह कहना चाहूंगा कि हम बीसीआईएम को बढ़ावा तो देना चाहते हैं । लेकिन उस प्रयोजनार्थ हमें सारगर्भित प्रगति करने के साथ साथ साजगार माहोल भी बनाना होगा जो तभी कायम हो सकता है जब सीमा पर शान्ति हो । इसलिये दोनों देशों के बीच निकट मैत्रीपूर्ण संबंध बनाने के लिये जरूरी है कि सीमा सम्बन्धि विवाद को शीघ्र हल कर लिया जाये ।
तृतीय, बीसीआईएम के समर्थको को यह भी समझ लेना चाहिए कि इस क्षेत्र के लिये अपेक्षित संसाधन विविध आयामी होने चाहिये । अवसंरचनात्म विकास के वित्त पोषण संसाधन चीन और भारत से ही प्राप्त हो सकते हैं । तथापि इन संशाधोनों को हम बहुपक्षीय, क्षेत्रीय तथा पूंजीवादी देशो यथा जापान, कोरियागणराज्य और सिंगापुर राज्या से भी प्राप्त कर सकते हैं । इस दिशा में हमे परस्पर सन्तुलन रखने की बाबत भी विचार करना होगा ।
चतुर्थ-बीसीआईएम परियोजनाओं को इस प्रकार बनाया जाना चाहिये कि वे भारत और उसके पूर्वी पड़ोसियों में संचालित परियोजनाओं को विस्थापित करने की बजाय उनके अनुपूरक हों जैसा कि हाल ही में विदेश मंत्रालय के एक वरिष्ठ पदाधिकारी ने कहा है, भारतीय दृष्टिकोण इस प्रकार का होना चाहिये जिससे पूर्वेत्तर क्षेत्र में पारिस्थितिकीय केन्द्र स्थापित हो ताकि वे बाह्य जगत के साथ जुड़ सकें । इस महत्वपूर्ण तथ्य को हमेशा दृष्टिगत रखा जाना चाहिये ।
पंचम- एक महत्वपूर्ण यदपि प्रतिकात्मक सुझाव पिछले वर्ष भारतीय विश्व कार्य परिषद द्वारा आयोजित संगोष्ठी में पूर्वोत्तर क्षेत्र के एक विद्वान द्वारा दिया गया था । उन्होंने कहा था कि बीसीआईएन आर्थिक कारीडोर का नाम बदल कर बीसीआईएम प्रगति कारीडोर रखा जाये ताकि सम्बन्धित क्षेत्र के अविकसित भाग पार्श्व केन्द्रों की भूमिका अदा करने की अपेक्षा विकासगत कार्यकलापों के केन्द्र बन जाये । यह तथ्य विशेष रुप से विचारणीय है ।
छटे, हम निःसन्देह यह तर्क वितर्क करेगे कि बीसीआईएम ईसी दक्षिणी रेशम मार्ग और समुद्रीय रेशम मार्ग (एमएसआर) के संबंध में चीन के प्रस्तावों से किस प्रकार तालमेल स्थापित करेगा । चीन के इन प्रस्तावों से सम्बन्धित कार्य क्षेत्र, दिशा निदेशों और विवक्षाओं को यहां एकत्रित चीनी विद्वानों द्वारा विमांसित किये जाने की आवश्यकता है । यहां हमारी स्थिति कुछ इस प्रकार की है कि हम कही जाने वाली बात को सुनें और समझें । इस सन्दर्भ में यह विशेष रुप से उल्लेखनिय है कि भारत के सरकारी स्रोतों के अनुसार एमएसआर का मामला भारत में राष्ट्रपति जी जिंगपिंग की यात्रा के दौरान न तो सरकारी तौर पर उठाया गया और न ही उस पर परिचर्चा की गयी थी । हमे पहले से ही मालूम है कि उनकी यात्रा के बाद किसी भी प्रकार का संयुक्त वक्तव्य जारी करने का कोई औचित्य नहीं था । अन्ततः मैं यह सुझाव देना चाहूंगा कि हमे बंगलादेश, म्यांमार और नेपाल के विशेषज्ञों द्वारा बीसीआईएम-पीसी पर दिये गये विशेष मंतव्यों को सावधानी पूर्वक सुनना चाहिए । सम्भवतः हमारी भाँति वे भी इस दिशा में सतर्क और सजग हों । यह अवधारणा अभिनन्दनीय है तथापि अपने आप में पर्याप्त नहीं । हम उनसे यह सीखना चाहेगें कि प्रस्तावित परियोजनाओं के जरीये सभी पक्षों को कैसे समान लाभ प्राप्त होगा । इसके अलावा हमें पूरे सम्मान और आदर से साथ उनकी बातों को सुनना चाहिए ताकि हम अपने पूर्वोत्तर से आये हुए विशेषज्ञों के दृष्टिकोण को उनके साथ मिला सकें ।
निष्कर्ष
मुझे आशा है कि विशेषज्ञों और विद्वानों की यह सभा इन सुझावों पर परिचर्चा करने के साथ साथ अन्य प्रासंगिक मालों पर भी रचनात्मक,पारदर्शी ढंग से गौर करेगी । मैत्रीपूर्ण ढंग से संचालित हमारी इस सामूहिक परिचर्चा से निश्चित रूप से बेहतर और सुव्यवस्थित समझ बूझ का मार्ग प्रशस्त होगा । इसके जरिये हमे अपनी भावी योजनाओं के बारे में भी सर्व सम्मति बनाने में सहायता मिलेगी जिससे हमारे सामान्य हित साध्य होगें ।
मैं एक बार फिर आपके प्रति अपना आभार प्रकट करना चाहूँगा कि आपने मुझे इस प्रारम्भिक सत्र में बुलाकर सम्मानित किया और उत्सुकतापूर्वक मेरे विचारों को सुना ।