राजदूत, राजीव के. भाटिया महानिदेशक, आईसीडब्ल्यूए
द्वारा
"भारत के पड़ोसी क्षेत्र में 'राजनीतिक परिवर्तन: अफगानिस्तान और म्यामांर"
पर
जाकिर हुसैन दिल्ली कॉलेज द्वारा आयोजित
सम्मेलन के उद्घाटन में की गई टिप्पणियां
दिल्ली
11 अप्रैल, 2014
"भारत के पड़ोसी क्षेत्र में राजनीतिक परिवर्तन : अफगानिस्तान और म्यांमार" पर आयोजित सम्मेलन के उद्घाटन सत्र की अध्यक्षता करते हुए मुझे गौरव का अनुभव हो रहा है। आप सभी को भारतीय विश्व मामला परिषद की ओर से शुभकामनाएं।
इस वार्ता में कुछ श्रेष्ठ विशेषज्ञ तथा युवा स्कॉलर भी शामिल हैं जिससे इस कार्यक्रम का अत्यंत उत्प्रेरक बनना निश्चित ही है, जो हमारे क्षेत्र में होने वाले विकास का अन्वेषण करने और हमारे राष्ट्रीय हितों पर उनके प्रभावों प्रतिबिंबित करने का सामूहिक प्रयास है। भारत की रणनीतिक स्थिति को ध्यान में रखते हुए, हमारे पास 360 अंश का दृष्टिकोण अपनाने के अलावा कोई अन्य विकल्प नहीं है जो हमें अपने देश के उत्तर और दक्षिण तथा साथ ही जो हमें अपने देश के उत्तर और दक्षिण तथा साथ ही पूर्व और पश्चिम की ओर देखने में समर्थ बनाता है। हमारी पहचान, सुरक्षा और समृद्धि हमारे निकटतम पड़ोस तथा विस्तारित पड़ोस में स्थित देशों के साथ गहनता के साथ गुंथी हुई है। |
डा. एम. असलम परवेज, प्राचार्य, जाकिर हुसैन दिल्ली कॉलेज राजदूत राजीव के. भाटिया, महानिदेशक, आईसीडब्ल्यूए का स्वागत करते हुए |
मैं जाकिर हुसैन कॉलेज के प्राचार्य और सम्मेलन के संयोजकों डा. उमा शंकर और डा. सोनू त्रिवेदी को इस एक-दिवसीय कार्यक्रम के आयोजन में उनकी पहलों के लिए बधाई देना चाहता हूं। हमारे सामने समाधान के लिए पहला ही प्रश्न यह उठेगा कि इन दो देशों को ही साथ में क्यों जोड़ा गया है।
पश्चिम में हमारे पड़ोस तथा पूर्व में हमारे पड़ोस पर एक सूक्ष्म नज़र पर हमें यह देखने को मिलता है कि उनमें अनेक समानताएं और भिन्नताएं हैं। इस संदर्भ में हम सर्वप्रथम पांच बातों का उल्लेख करेंगे।
पहला, दोनों ही राष्ट्र राज्यों ने आधी शताब्दी से भी अधिक समय तक अत्यंत खराब समय देखा है जिसके दौरान उनके लोगों के लिए गहन विवाद, खून-खराबा, अवसरों से वंचन, गरीबी और दु:ख तकलीफ से भरा समय रहा है। दूसरे, दोनों ही देश उनकी विशिष्ट परिस्थितियों के पीड़ित रहे हैं जिनका निर्माण उनके इतिहास, संस्कृति, अवस्थान, भू-राजनीति और उनकी राजनीति के आंतरिक और बाह्य आयामों द्वारा होता है। आंतरिक दृष्टि से, दोनों ही विखंडित समाज रहे हैं, परंतु उनका उद्भव भिन्न-भिन्न रहा है - एक आंतरिक आक्रमणों, समाजवादी शैली की प्रणाली, युद्धवादी प्रकृति, जेहादी उग्रवाद और अंतर्राष्ट्रीय आतंकवाद के माध्यम से राजतंत्र से सामान्य स्थिति और लोकतंत्र की ओर रूपांतरित हो रहा है तथा दूसरा एक महत्वाकांक्षी लोकतंत्र में सेना की भूमिका को परिभाषित और पुन:परिभाषित करने और फिर से परिभाषित करने के लिए संघर्ष कर रहा है तथा 'विविधता में एकता' के अपने दृष्टिकोण को भी मूर्त रूप प्रदान करने का प्रयास कर रहा है।
तीसरे, प्रत्येक देश बहु-आयामी परिवर्तन की प्रक्रिया से गुजर रहा है। अफगानिस्तान में, यह राजनीतिक सुरक्षा और आर्थिक परिवर्तन के संबंध में है। म्यांमार में, यह नृजातीय समझौते, प्रशासनिक सुधार आर्थिक रूपांतरण तथा उसकी विदेश नीति के पर्याप्त पुन: अंशाकन के बारे में है। अगला दशक उनके लिए निर्णायक होगा। दोनों ही क्षेत्र में तथा अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर पर्याप्त महत्व रखते हैं, जैसा कि अफगानिस्तान के मामले में अंतर्राष्ट्रीय सुरक्षा सहायता बल (आईएसएएफ) की एक दशक से संलिप्तता तथा हार्ट ऑफ एशिया (एचओए) के अंतर्गत कार्य करने |
(बाएं से दाएं) डा. एम. असलम परवेज, प्राचार्य जाकिर हुसैन दिल्ली कॉलेज प्रोफेसर एस.डी. मुनि, राजदूत राजीव के. भाटिया, महानिदेशक, आईसीडब्ल्यूए और श्री सिद्धार्थ वरदराजन |
वाले अनेक देशों की सक्रियता से स्पष्ट होता है तथा म्यांमार के मामले में 2011 में प्रारंभ हुए इसके सुधार युग के बाद से पश्चिम, निकटवर्ती पड़ोसी देशों, आसियान तथा अन्य के साथ संवर्धित संबंधों से प्रदर्शित होता है। परिवर्तन प्रक्रियाओं की सफलता और असफलता क्षेत्र की नियति का निर्माण करेगी। क्या दोनों देश सहयोग के पल और संयोजक बनेंगे अथवा क्रमश: दक्षिण एशिया, मध्य एशिया और दक्षिण-पूर्व एशिया में विवाद का विषय बनेंगे।
चौथे, भारत के लिए अफगानिस्तान और म्यांमार, दोनों ही पर्याप्त चुनौतियां और उत्कृष्ट अवसर प्रस्तुत करते हैं। इस बात को मान्यता प्रदान करते हुए, भारत की नीति परिवर्तन का सामना करने के लिए दोनों देशों की योग्यता को सुदृढ़ बनाने पर उच्च प्राथमिकता प्रदान करती है। दोनों देशों के साथ भारत के संबंध पिछले दशक में गहन और वैविध्यपूर्ण हुए हैं। हमारी दक्षिण एशिया नीति तथा बदलते हुए क्षेत्रीय और अंतर्राष्ट्रीय शक्ति समीकरणों के व्यापक ढांचे के भीतर हमारी अफगानिस्तान और म्यांमार नीतियों की विषय-वस्तु और विशेषताएं निसंदेह ही इस सम्मेलन में अत्यंत निर्णायक और वस्तुपरक आकलन प्रस्तुत करेंगी।
अंत में, दोनों ही देशों में शामिल हमारे पर्याप्त निवेश को ध्यान में रखते हुए, हमें विश्वास है कि भारतीय राजनति एक व्यापक दृष्टिकोण को समर्थन प्रदान करेगी जिसमें अफगानिस्तान और म्यांमार के साथ घनिष्ठ जी-टु-जी, बी-टु-बी और पी-टु-पी संबंध भी शामिल होंगे। यह यहां पर उपस्थित रहने वाले विशेषज्ञों के लिए सुविचारित और नवीन परामर्श के साथ एक मूल्यावान अवसर होगा जो शासकों और नीति-निर्माताओं के लिए व्यावहारिक महत्व का होगा जो अभी चल रहे आम चुनावों के उपरांत दिल्ली के प्रभारी होंगे। आइए हम इस अवसर का लाभ उठाए।
अब हम मंच पर उपस्थित दो प्रतिष्ठित विद्वानों के उदगार सुनने की प्रतीक्षा कर रहे हैं।
मुझे ध्यान से सुनने के लिए आपका बहुत-बहुत धन्यवाद।
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