"एशिया-प्रशांत में सुरक्षा का भविष्य"
पर
प्रादेशिक सम्मेलन
में
राजदूत राजीव के. भाटिया महानिदेशक, आईसीडब्ल्यूए
द्वारा
प्रस्तुतीकरण
बैंकॉक
25-26 अगस्त, 2014
भारत के अग्रणी विदेश नीति चिंतक संगठन भारतीय विश्व मामले परिषद की ओर से अभिनन्दन। पिछले दो वर्ष में किए गए हमारे अध्ययनों, शोध तथा चीन, रूस, यूरोपीय म्यांमार और आस्ट्रेलिया में विभिन्न चिंतकों से किए गए गहन वार्तालापों के आधार पर इस निर्दिष्ट विषय पर अपने कुछ विचार प्रस्तुत करते हुए प्रसन्नता का अनुभव कर रहा हूं।
यह महत्वपूर्ण बौद्धिक कार्यक्रम ट्रैक-I और ट्रैक-II दोनों ही मंचों पर होने वाले वर्तमान वाद-विवाद पर अर्थपूर्ण योगदान देने की आशा व्यक्त करता है जिसका विषय है - एशिया प्रशांत में प्रादेशिक सुरक्षा का भविष्य।
राजदूत राजीव के. भाटिया, महानिदेशक आईसीडब्ल्यूए सम्मेलन में अपना प्रस्तुतीकरण पेश करते हुए
मैं इस सम्मेलन की आधारभूत अवधारणा का अनुसमर्थन करता हूं : आज वस्तुत: 'सकारात्मक भू-आर्थिक प्रवृत्तियों के मध्य एक गंभीर 'द्विभाजन' विद्यमान है, जो एक ओर विकास और समृद्धि पर केन्द्रित है तथा दूसरी ओर इसने निरंतर हृास होती हुई भू-राजनीतिक प्रवृत्तियां दर्शाई हैं, जो क्षेत्र के अनेक राष्ट्रों के मध्य गहन प्रतिस्पर्धा और बढ़ते हुए तनाव में प्रतिबिंबित होती है। यदि हम विरोधाभास को निवारित किए बिना छोड़ दिया गया, तो इसमें हाल के दशकों में हासिल किए गए लाभों को संकट में डालने की क्षमता विद्यमान है। अत: इस प्रकार के गंभीर और सामूहिक प्रयास अपेक्षित भी हैं और समसामयिक भी।
मैं विशेष रूप से हमारे सत्र के लिए रखे गए तीन प्रश्नों पर विशेष रूप से ध्यान केन्द्रित करूंगा जो (क) मुख्य सुरक्षा चुनौतियों, (ख) नई सुरक्षा अवधारणाओं अथवा दृष्टिकोणों तथा (ग) विकसित होती क्षेत्रीय सुरक्षा संरचना को 'अपनाने' के लिए संभव तरीकों से संबंधित हैं ताकि यह वर्तमान और भावी चुनौतियों का प्रभावी ढंग से निपटान कर सके।
सर्वप्रथम, आधारभूत प्रकृति की कुछ विशेषताओं पर प्रकाश डाले जाने की आवश्यकता है।
प्रथमत: आज सुरक्षा और विकास आपस में पूरी तरह से जुड़ चुके हैं, एक के बिना दूसरा संभव नहीं है। सरकारों को सुरक्षा और विकास दोनों ही को सुनिश्चित करने के लिए साकल्यवादी दृष्टिकोण अपनाने की आवश्यकता है क्योंकि सुरक्षा के अभाव में विकास प्रभावित होगा तथा बिना सतत् और अंतर्वेशी विकास के, सुरक्षा एक परिकल्पना ही बनी रहेगी। शासन का वास्तविक लक्ष्य संपोषणीय विकास है, इसमें न केवल पर्यावरणीय सुरक्षा को ध्यान में रखा जाना चाहिए, बल्कि भोजन, जल, ऊर्जा, नियोजन आदि क्षेत्रों से संबंधित सुरक्षा के अन्य प्रकारों को भी शामिल किया जाना चाहिए। संक्षेप में, प्राधिकारी केवल हथियारों के निर्माण, आंतरिक सुरक्षा और सुरक्षा तैयारियों पर ही ध्यान-केन्द्रित न करें, "बल्कि उन्हें वार्तालाप और राजनयिकता के माध्यम से अंतर्राज्यीय तनावों के कारणों का भी निवारण करना चाहिए ताकि संसाधनों को आर्थिक विकास की ओर मोड़ा जा सके। शांति और सुरक्षा सुनिश्चित करना विकास के लिए एक पूर्वापेक्षा है।
दूसरे, हमारे नेताओं के लिए यह अच्छी बात है कि वे उनके राष्ट्रीय स्वप्नों की बात करते हैं। लेकिन एक राष्ट्र का स्वप्न दूसरे राष्ट्र के लिए दु:स्वप्न नहीं बनना चाहिए। क्षेत्र के लिए एक ऐसे स्वप्न को तैयार करना सर्वथा उचित रहेगा, जिसके हमारे समस्त राष्ट्रीय स्वप्न हिस्सा हों। हमारा उद्देश्य सामूहिक सुरक्षा और विकास होना चाहिए जैसा 'एशियाई स्वप्न' में तथा वर्तमान शताब्दी के 'एशियाई शताब्दी' के रूप में चित्रण में प्रतिपादित किया गया है।
तीसरे, एशिया के हमारे भाग की विविधता को पहचाने और उसका सम्मान किए जाने की आवश्यकता है। 'एशिया का हमारा भाग' क्या है? यहाँ हम भूगोल से भू-राजनीति की ओर प्रस्थान करते हैं। अनेक अवधारणाएं आज प्रचलन में हैं, जैसे 'एशिया-प्रशांत', 'पूर्व एशिया', 'प्रशांत-एशिया' और 'भारत-प्रशांत'। अंत में उल्लिखित तथा नवीनतम विचार ने क्षेत्र के रणनीतिक समुदाय के भीतर पर्याप्त चर्चा और बहस छेड़ दी है। इस अवधारणा के पक्ष में अनेक स्वर आस्ट्रेलिया, भारत, इंडोनेशिया, जापान और अमेरिका में सुनाई दिए हैं। परंतु 'भारत-प्रशांत' की परिभाषा, तर्काधार अथवा विवक्षाओं के बारे में सर्वसम्मति के कुछ ही संकेत प्राप्त हुए हैं। जबकि यह बहस अभी जारी है, हम उस स्थिति में स्पष्टता के प्रति योगदान दे सकते हैं, यदि हम एक विकल्प पर विचार करें, अर्थात् पूर्वी-एशिया शिखर क्षेत्र (ईएएसआर) जिसमें दस आसियान देश, उनके छह वार्ता भागीदार तथा अमेरिका और रूस शामिल हैं, जिसे हम 'एशिया के हमारे भाग' के रूप में परिभाषित कर सकते हैं।
ईएएसआर अनेक ऐसी सुरक्षा चुनौतियों का सामना कर रहा है, जो राजनीतिक, आर्थिक, सामाजिक और अन्य परिस्थितियों से उत्पन्न होती है। जब हम इस अत्यंत जटिल मुद्दे का समाधान करने का प्रयास करते हैं, तो हमें क्षेत्र के संबंधों की विरासत, विभिन्न भूमिका निर्वहनकर्ताओं के राष्ट्रीय हितों के विपथन और अभिसारिता, शक्ति की सम्मति, आर्थिक अंतरआश्रिता और रणनीतिक असुरक्षा के मिश्रण, स्व-बोध तथा अन्य के बोधों के बीच असंयोजनता तथा आडम्बर और वास्तविकता के बीच अंतर को ध्यान में रखना होगा।
पहली चुनौती चीन के उदय, 'प्रधानता/पुनर्संतुलन' पर अमेरिकी नीति तथा दोनों महाशक्तियों के बीच रणनीतिक प्रतिस्पर्धा के प्रति प्रतिक्रिया के बारे में नहीं है। यह सात श्रेष्ठ देशों अर्थात् आसियान, अमेरिका, चीन, भारत, जापान, रूस और आस्ट्रेलिया के मध्य अंतर्राज्यीय समीकरणों के संतुलन के बारे में है। यह कैसे सुनिश्चित किया जाए कि उनके संबंध सहयोगी और मैत्रीपूर्ण हैं तथा उनमें से कुछ के मध्य बढ़ते तनावों का उन्मूलन तथा विवाद की संभावना का निवारण (यदि स्वत: निर्मित नहीं, तो संयोगवश उत्पन्न) किस प्रकार किया जाए, यह हमारे सामने विद्यमान प्रमुख प्रश्नों में से कुछेक हैं। आसियान को इस सूची में शीघ्र पर रखना मात्र संयोग नहीं है, यह आसियान की केन्द्रीयता पर हमारी आस्था को रेखांकित करता है।
प्रादेशिक सुरक्षा के लिए दूसरी चुनौती अथवा संकट व्यापक हथियारों का निर्माण/होड़ है। यह तथ्य कि सेना के गोला-बारूद में वृद्धि की जा रही है, स्पष्ट करता है कि पारस्परिक असुरक्षा विद्यमान है तथा दूसरे पर प्रधानता जमाने की इच्छा बलवती है। तथापि, प्रादेशिक राजनीति की प्रकृति ऐसी प्रधानता को असंभव तो नहीं, परंतु कठिन तो बनाती ही है। इसका तरीका यह है कि हम किसी राष्ट्र-विशेष की सुरक्षा अथवा उसके केन्द्रीय हितों के स्थान पर सामूहिक सुरक्षा और साझे हितों की अनिवार्यता पर विचार करें। इससे राष्ट्र अपने सैन्य व्यय को कम करने तथा अपने विकासात्मक बजट में वृद्धि करने के लिए प्रेरित होंगे।
मैं इस बात पर बल दूंगा कि यह हथियारों और भोजन के बीच विकल्प नहीं है। इसका तर्काधार अधिक सृजनात्मक और अनुकूल राजनयिकता पर आधारित है जो कम हथियारों और अधिक भोजन का मार्ग प्रशस्त करता है। टैंक को खरीदने के लिए कर में दिए गए एक रुपए का अर्थ है कि किसी विद्यालय अथवा स्वास्थ्य केंद्र के निर्णय के लिए एक रुपया कम हो गया है। प्रसंगवश, मैं उल्लेख करूंगा कि आपका देश संभवत: प्रधानमंत्री की पुस्तक से उद्धरण ग्रहण करने पर विचार करेगा : उनका वित्त और रक्षा मंत्री एक ही व्यक्ति है, और यह प्रयोग सफल रहा है।
तीसरा मुद्दा निसंदेह ही सामुद्रिक और स्थलीय दावों तथा कड़े व्यापार उपायों के माध्यम से एकपक्षीय समाधानों के लिए प्रयास करने की हमारी इच्छा से संबधित है। दक्षिण चीन सागर और पूर्व चीन सागर तथा साथ ही भारत-चीन सीमा पर हालिया घटनाक्रम इस अवधारणा की पुष्टि करते प्रतीत होते हैं। विशेष रूप से, दक्षिण चीन सागर पर हम आचार संहिता को जल्द अंतिम रूप देने और उसके क्रियान्वयन के लिए प्रयासों का पूर्ण समर्थन करते हैं।
क्षेत्र में दो तनावपूर्ण प्रश्न विद्यमान हैं : क्या हमारे नेताओं के पास वार्तालाप के माध्यम से विवादग्रस्त मुद्दों का समाधान करने तथा हथियारों के प्रयोग की लालसा को रोक पाने की समझ और साहस है। क्या वे यह सुनिश्चित करना चाहते हैं कि जंगल के कानून पर विधि के नियम हावी हों?
एक अन्य जटिल मुद्दा आर्थिक क्षेत्र से संबंधित हैं जो क्षेत्र के भीतर और बाहर व्यापार, निवेश, कौशल और प्रौद्योगिकी प्रवाहों को प्रोत्साहित करने के लिए सकारात्मक संबंधों के जाल को विस्तारित करने से जुड़ा हुआ है। तथापि, हाल के वर्षों में प्रादेशिक व्यापक आर्थिक भागीदारी (आरसीईवी) खेमे जिसमें अन्य देशों के साथ-साथ चीन और भारत भी शामिल है तथा अमेरिका के नेतृत्व में ट्रांसपेसेप्सिक भागीदारी (टीपीपी) चार आसियान राज्य टीपीपी का भाग हैं, जबकि अन्य छह नहीं हैं। आसियान के सभी दस सदस्य आरसीईपी का भाग हैं। चीन तथा भारत के बारे में यह आशंका व्यक्त की गई थी कि वे भविष्य में टीपीपी में शामिल होने की संभावनाएं देख रहे हैं। राजनीतिक सुरक्षा और सहयोग निरंतर आर्थिक क्षेत्र में ध्रुवीकरण द्वारा संकटग्रस्त होते हैं। अत: इस बात पर ध्यान दिया जाना चाहिए कि आरसीईपी और टीपीपी के बीच गहन होती प्रतिस्पर्धा को किस प्रकार प्रबंधित अथवा उसका उन्मूलन किया जाए।
गैर-पारंपरिक सुरक्षा जोखिम क्षेत्रीय सुरक्षा के लिए चुनौतियों की एक अन्य श्रेणी का प्रतिनिधित्व करती है। यह विषय निसंदेह ही पश्चातवर्ती सत्रों में विस्तृत विचार-विमर्श के लिए लिया जाएगा।
अंतिम चुनौती वार्ता और सहयोग के लिए विद्यमान क्षेत्रीय सुरक्षा संरचना की प्रकृति से संबधित है। यह संरचना विविधतापूर्ण, विस्तारित, कुछ अव्यवस्थित, अतिव्याप्तिपूर्ण और अपर्याप्त है। यह वर्तमान और भविष्य की चुनौतियों का पूर्णत: निवारण करने में समर्थ नहीं है। अत: वर्तमान प्रणाली का अनुकूलन' किए जाने की आवश्यकता है, संभवत: एक ऐसा सुधार जो ठोस तो हो, साथ ही व्यावहारिक भी हो। ब्रूनेई दारूस्सलाम ओर रूस द्वारा आयोजित की गई हालिया ट्रैक-I कार्यशालाओं के परिणामों तथा चीन और इंडोनेशिया द्वारा प्रस्तुत किए गए प्रस्ताव का समुचित प्रचार-प्रसार किया जाना चाहिए और उन पर व्यापक चर्चा की जानी चाहिए।
विभिन्न देशों से आए सम्मेलन के प्रतिनिधि
जहां तक सुरक्षा चुनौतियों का निराकरण करने के साधनों का संबंध है, एक सुधार की गई संरचना के प्रधान सिद्धांतों और अवयवों की पहचान करना लाभप्रद रहेगा।
प्रत्येक देश की सूची में सिद्धांतों में समस्त एशियाई देशों के लोगों की शांति, समृद्धि, कुशलता और सामाजिक अंतर्वेशिता को प्रोत्साहित करने पर ध्यान शामिल होना चाहिए। ईएएस की 2011 की घोषणा जिसे 'बाली सिद्धांत' भी कहा जाता है, में प्रतिपादित पारस्परिक लाभप्रद संबधों के सिद्धांतों की परिकल्पना को सिद्धांत और व्यवहार, दोनों ही रूपों में पुन: पुष्टि लाभदायक होगी। इनमें, अन्य बातों के साथ-साथ, संयुक्त राष्ट्र चार्टर के अनुरूप किसी अन्य राज्य के विरुद्ध बल का प्रयोग करने अथवा बल के प्रयोग की धमकी का परित्याग करना तथा शांतिपूर्ण तरीके से विभेदों और विवादों का निपटान शामिल है।
अपनी प्रकृति में, सुरक्षा अवसंरचना मुक्त, पारदर्शी, अंतर्वेशी और क्रांतिकारी होनी चाहिए। इसे राजनीतिक प्रणालियों की विविधता तथा सुरक्षा संदर्शों की रक्षा करनी चाहिए। यह ईएएसआर तक परिसीमित होनी चाहिए अर्थात् पूर्व एशियाई शिखर के सदस्य-राष्ट्रों की भौगोलिक सीमाओं तक। एक अन्य प्रमख मार्गदर्शी सिद्धांत संप्रभुत्ता तथा द्विपक्षीय बातचीतों की प्रधानता का सम्मान करते हुए सामुद्रिक विवादों का शांतिपूर्वक समाधान करना है। सामुद्रिक सुरक्षा, नौवहन की स्वतंत्रता तथा संचार के समुद्री भागों की संरक्षा के साथ एक स्थायी सामुद्रिक परिवेश एक अनिवार्य अपेक्षा होगी।
जहां तक प्रस्तावित संरचना के प्रमुख अवयवों का संबंध है, मैं ईएएस के चिह्नित सुदृढ़ीकरण की सिफारिश करूंगा। इस संस्था को संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद और जी-20 समिट के बीच संकरण के रूप में उभरने में समर्थ बनाया जाना चाहिए। इसकी अधिकारिता में समस्त प्रमुख राजनीतिक, सुरक्षा, रक्षा, आर्थिक और विकास संबंधी मुद्दे शामिल होंगे, जो क्षेत्र को प्रभावित कर रहे हैं। तथापि, यह 'नेता-चालित मंच' के रूप में अपनी भूमिका का तब तक निवर्हन नहीं कर सकती है, जब तक इसे किसी नई मंत्रालयी परिषद द्वारा समर्थन प्राप्त न हो जिसमें प्रत्येक सदस्य-राज्य के विदेश, आर्थिक और रक्षा मंत्री शामिल होंगे। मंत्रालयी परिषद अन्य विद्यमान निकायों जैसे एआरएफ, एडीएमएम प्लस और ईएएस विदेश मंत्री बैठक से प्राप्त प्रस्तावों और सिफारिशों का प्रक्रमण करेगी तथा निर्णय लेने के लिए पूर्व एशिया समिट की सहायता करेगी।
दूसरे आसियान की केन्द्रीयता को प्रोत्साहित किया जा सकता है, यदि इसके सदस्य-राज्य अपनी एकता और साख को सुदृढ़ बना लें। इसके अलावा, आसियान सचिवालय ऐसी अतिरिक्त सहायता के साथ ईएएस सचिवालय के रूप में कार्य कर सकता है, जो उसे ईएएस के गैर-आसियान सदस्य राज्यों से आवश्यक हो।
तीसरे, ईएएसआर को स्वयं के भविष्य की राजनीतिक और आर्थिक संघ के रूप में परिकल्पित करना चाहिए। यह बात सच बनाने के लिए, आरसीईपी और टीपीपी के बीच अभिसारिता (और इनका अंतत: विलयन) अपेक्षित होगी। इस संभावना का भी आगे और अध्ययन किए जाने की आवश्यकता है।
चौथे, सुरक्षा चुनौतियों (जैसे आतंकवाद, साइबर-अपराध, हथियारों का अवैध व्यापार और समुद्री दस्युता) को रोकने तथा आसूचना के आदान-प्रदान और प्रतिक्रियाओं के समन्वय में ठोस और व्यावहारिक सहयोग किया जाना चाहिए। सुरक्षा और संरक्षा सेवाओं के मध्य अधिक सहयोग को भी सुकर बनाया जाना चाहिए जिसमें संयुक्त कवायदें, नौसेना दौरे, सामान्य प्रशिक्षण कार्यक्रम और रणनीतिक वार्ताएं शामिल हैं।
अंत में, रणनीतिक समुदाय को सोचने और समझने की प्रक्रियाओं में खामियों को कम करने तथा राष्ट्रों के मध्य अविश्वास को समाप्त करने में उसकी सम्यक भूमिका निभाने के लिए प्रोत्साहित किया जाना चाहिए। एक हैडस ऑफ थिंक टैंक (एचओटीडी) फोरम स्थापित किया जाना चाहिए जिसमें प्रत्येक ईएएस देश से एक प्रतिष्ठित व्यक्ति हो जो सरकार और लोगों के विचार के लिए नए विचारों का सृजन करे। ट्रैक 1.5 परामर्शों का अधिक प्रयोग विशेषकर लाभप्रद होगा।
निष्कर्ष
यह आशा की जाती है कि बैंकॉक प्रादेशिक सम्मेलन एक सर्वसम्मत दृष्टिकोण तैयार करने में सफल रहेगा। निष्कर्षों की सहमत रूपरेखा रखने वाला दस्तावेज हमारी सरकारों तथा शैक्षणिक रणनीतिक संस्थाओं के लिए अत्यंत लाभप्रद होगा, जो यहां प्रतिनिधित्व नहीं कर रही है। इसका व्यापक प्रचार-प्रसार किया जाना चाहिए। हमारी संस्था, आईसीडब्ल्यूए इस सम्मेलन के लिए अनुवर्ती कार्यवाही के बारे में मेजबान देश तथा अन्य इच्छुक संस्थाओं के साथ कार्य करने की इच्छुक है।
इस सम्मेलन की समाप्ति पर ही हमारा वास्तविक कार्य प्रारंभ होगा।
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