'इंडोनेशिया के राष्ट्रपति चुनाव : क्षेत्र और
भारत के लिए विवक्षाएं'
पर
गोल मेज चर्चा
में
राजदूत राजीव के. भाटिया महानिदेशक, आईसीडब्ल्यूए
द्वारा
प्रारंभिक टिप्पणयां
स्प्रू हाउस, नई दिल्ली 11 जुलाई,2014
एशिया के विशालतम लोकतंत्रों में से एक, इंडोनेशिया में अभी-अभी राष्ट्रपति के चुनाव हुए हैं जिससे इसके एक परिपक्व लोकतंत्र के रूप में उभरने का साक्ष्य भी प्राप्त हुआ है। इसका सभ्यात्मक ताना-बाना, बहुसांस्कृतिक और बहु-धार्मिक लोकाचार तथा लोकतांत्रिक राजनीति की निरंतर केन्द्रीयकृत होती हुई संघीय संरचना ने विश्व में इंडोनेशिया की स्थिति को सुदृढ़ बनाया है। तथापि, बहस इस बात पर जारी है कि क्या इंडोनेशिया अत्यंत सुदृढ़ आर्थिक और राजनीतिक आधार के साथ एक क्षेत्रीय अथवा परा-क्षेत्रीय शक्ति के रूप में उभरने में सफल रहेगा। एक अन्य प्रश्न यह है कि क्या पूर्व सैन्य कार्मिकों का साया राजनीति पर छाया रहेगा अथवा नागरिक राजनीतिज्ञ नियंत्रण प्राप्त करेंगे।
(बाएं से दाएं) सुनंदा के. दत्ता-रे, राजदूत नवरेख शर्मा, राजदूत राजीव सकरी, राजदूत राजीव के. भाटिया, डीजी, आईसीडब्ल्यूए, प्रो. बालादास, प्रो. पी.वी. राव
- 9 जुलाई, 2014 को इंडोनेशिया में 1998 में स्थापित सुहार्तो शासन के सत्ता से बाहर हो जाने के उपरांत तीसरे प्रत्यक्ष राष्ट्रपति चुनाव आयोजित किए गए। चुनाव का तीसरा चक्र जाको विडोडो - जुसुफ कल्ला और प्राजोबो सुबियांतो - हट्टा राडजासा के बीच संचालित हुआ। जोको विडोडो, जो एक व्यवसायी है और जर्काता के राज्यपाल हैं जिनके वर्तमान प्रतिद्वंद्वी पूर्व उपराष्ट्रपति जुसुफ कल्ला है। दूसरे प्रतिद्वंद्वी प्राबोवो सुबियांतो और हट्टा रडजासा हैं। प्रोबोवो एक पूर्व सेना जनरल है जबकि हट्टा पूर्व आर्थिक कार्य मंत्री हैं। समूची राजनीतिक पार्टियों ने उम्मीदवारों के किसी न किसी धड़े का समर्थन किया है, जो क्रमश: पीडीआई-पी और गेरिंडा से संबंधित हैं। अभियान के अतिम दिवसों में यह प्रतिस्पर्धा और भी कठिन हो गई। अंत में, इसे एक ऐसा चुनाव माना गया, जो अत्यंत ही कड़ा रहा था।
- इंडोनेशिया ने एक राज्य के रूप में, अनेक जटिल समस्याओं का सामना किया है जो धार्मिक कट्टरवाद और धर्मनिरपेक्ष विचारधारा को संतुलित करने से संबंधित हैं। तथापि, इंडोनेशिया के लिए आवश्यक अवसंरचना का सृजन करने के लिए राष्ट्रपति सुशीलो बामबांग युधोयोनो को पर्याप्त श्रेय दिया जाना चाहिए जिसकी वजही से इस देश ने आर्थिक रूप से विकास किया और राजनीतिक परिदृश्य से सुहार्तों के प्रस्थान के उपरांत अति आवश्यक स्थायित्व हासिल किया।
- सुशीलो बामबांग युधोयोनो की अपनी समस्याएं थीं जो भ्रष्ट नौकरशाही, पुलिस और सुरक्षा एजेंसियों तथा हठी न्यायपालिका से संबंधित थीं। तथापि, बैरेकों में इंडोनेशियाई सेना की वापसी तथा दीर्घकालिक आसन्न मुद्दों जैसे एशे के समाधान ने एक अनुकूल और सुलझे हुए पूर्व जनरल की छवि को उजागर किया जो इंडोनेशिया के रूपांतरण को प्रभावी बनाने में सहायक रहा था। विदेश और आर्थिक नीति ने भी इंडोनेशियाई राजनीति की एक संतुलनकारी प्रवृत्ति प्रदर्शित की जो अमेरिका और चीन दोनों ही के साथ वार्तालाप करने की थी ताकि उसके राष्ट्रीय और क्षेत्रीय हितों की रक्षा की जा सके। हम यह कह सकते हैं कि राष्ट्रपति योधोयोनो का कार्यकाल कुल मिलकर संतोषजनक रहा। राजनीतिक विश्लेषण में इसने एक नए युग की शुरुआत की थी।
- भारत के लिए, जिसने हाल ही में विश्व में विशालतम लोकतांत्रिक प्रक्रिया का संचालन किया है। इंडोनेशिया की निर्वाचन प्रक्रिया उल्लखनीय रही है। भारत आज नई दिशाएं अपना रहा है। इंडोनिशया के लिए भी, चुनावों ने लाखों लोगों के लिए आशाएं जगाई हैं। फिर भी, अभी यह देखना बाकी है कि किस प्रकार नए इंडोनेशियाई राष्ट्रपति अर्थव्यवस्था राष्ट्रीय नीति, विदेश नीति को दिशा प्रदान करेंगे तथा किस प्रकार वे लाखों इंडोनेशियाई नागरिकों की उम्मीदों को पूरा करेंगे।
- सबसे महत्वपूर्ण बात तो यह है कि भारत की ही भांति इंडोनेशियाई चुनावों ने भी मीडिया की शक्ति को प्रदर्शित किया है, जो पारंपरिक और नए दोनों ही प्रकार का है। उदाहरण के लिए राष्ट्रपति के चुनावों के दौरान उम्मीदवारों ने मीडिया को प्रभावित करने का प्रयास किया ओर यहां तक कि अनेक मीडिया चैनल भी प्रारंभ कर दिए। सोशल मीडिया प्लेटफार्मों जैसे ट्वीटर, फेसबुक और अन्य की भूमिका ने भी इन चुनावों को प्रतिष्ठा, पूर्वानुमान और उम्मीदों का चुनाव बना दिया।
- भारत के लिए इंडोनेशिया अत्यंत रणनीतिक महत्व का देश है। एशिया में भारत के प्रमुख रणनीतिक भागीदारों में से एक के रूप में इंडोनेशिया भारत का सामुद्रिक पड़ोसी है तथा यह अत्यंत तेजी के साथ विकास कर रहा है। इंडोनेशिया चीन, भारत और अमेरिका के बाद चौथा सबसे अधिक आबादी वाला देश है। समस्त दक्षिण-पूर्व एशियाई लोगों में से एक-तिहाई इंडोनिशयाई नागरिक है।
- आईसीडब्ल्यूए ट्रैक-II वार्ताओं के प्रयोग के माध्यम से अन्य देशों के साथ भारत के संबंधों को सुदृढ़ बनाने के प्रयास कर रहा है। जबकि दक्षिण एशिया पर विशेष ध्यान प्रदान किया गया है, पूर्वी एशिया के देश, जैसे इंडोनेशिया भी प्राथमिकता सूची में शामिल हैं। इस संबंध में हमने अनेक उल्लेखनीय कार्यक्रमों का आयोजन किया है, जिनमें शामिल हैं : 27 जुलाई, 2012 को इंडोनेशिया गणराज्य के विदेश मंत्री डा. आर.एम. मार्टी एम. नतालेगावा द्वारा सार्वजनिक व्याख्यान, 19-20 सितम्बर, 2013 को भारत, आस्ट्रेलिया और इंडोनेशिया के बीच प्रथम द्विपक्षीय वार्ता (टीडीआईओ), और फरवरी, 2013 में आयोजित दिल्ली वार्ता-V में भी इंडोनेशिया के अनेक प्रतिनिधियों की उपस्थिति दर्ज की गई थी, जिनमें विदेश मंत्री भी शामिल थे। हमारे महत्वाकांक्षी समारोह अर्थात् मार्च, 2013 में आयोजित एशियाई संबंध सम्मेलन के दौरान इंडोनेशिया के विद्वानों ने भी प्रतिभागिता की थी और पत्र प्रस्तुत किए थे जिससे भारत और इंडोनेशिया के रणनीतिक समुदाय के बीच उल्लेखनीय सहक्रिया का प्रदर्शन हुआ।
- हमारे पूर्व प्रधानमंत्री डा. मनमोहन सिंह की इंडोनेशिया की यात्रा के दौरान भारतीय विश्व मामले परिषद (आईसीडब्ल्यूए) तथा इंडोनेशियाई विश्व मामले परिषद के बीच जकार्ता में एक समझौता-ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए गए थे। मई, 2014 में अनुवर्ती कार्यवाही के रूप में आईसीडब्ल्यूए ने अपने समझौता-ज्ञापन भागीदार के साथ वार्तालाप करने के लिए एक पांच-सदस्यीय शिष्टमंडल को भेजा। हमारे संपर्कों के दौरान, यह स्पष्ट था कि भारत और इंडोनेशिया एक समान वैश्विक दृष्टिकोण साझा करते हैं तथा हमारा भविष्य एक-दूसरे के साथ बंधा है। चर्चाओं के दौरान मैंने लुक ईस्ट नीति (एलईपी) के लिए मामला प्रस्तुत किया तथा भारत की विदेश नीति में इसके महत्व को प्रदर्शित किया। मैंने यह कहा कि उस पूर्व एशिया शिखर-सम्मेलन में शीर्षस्थ नेताओं के मध्य विचारों के स्वतंत्र आदान-प्रदान के लिए अकेले ही एक महत्वपूर्ण मंच बनने की क्षमता है। वास्तविक रूप से दोनों ही पक्षों के वृत्तिकों और विशेषज्ञों ने प्रत्येक देश द्वारा दूसरे देश पर अधिक ध्यान देने की आवश्यकता को उजागर किया। आज की गोलमेज चर्चा भारत-इंडोनेशिया संबंधों के बारे में ज्ञान को व्यापक बनाने के लिए हमारे सतत् प्रयासों का ही भाग है।
- यह गोलमेज चर्चा अनेक उल्लेखनीय विषयों पर प्रकाश डालेगी जिसमें चार विषयों पर अत्यंत बल प्रदान किया जाएगा जिसका हमारे विशिष्ट पैनलविदों द्वारा समाधान करने का प्रयास किया जाएगा। ये विषय हैं : (i) इंडोनेशिया के राष्ट्रपति चुनाव : क्षेत्र के लिए विवक्षाएं; (ii) इंडोनेशिया की छवि-निर्माण; (iii) राष्ट्रीय संदर्भ में इंडोनेशियाई राष्ट्रपति निर्वाचन; और (iv) चुनाव उपरांत इंडोनेशिया: भारत इंडोनेशिया संबंधों के लिए संभावनाएं।
- मैं इस गोलमेज चर्चा की सफलता की कामना करता हूं।
मुझे ध्यानपूर्वक सुनने के लिए आपका बहुत-बहुत धन्यवाद।
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