अनेकपक्षवाद पर पांचवें भारत-ईयू फोरम"
में
राजदूत राजीव के. भाटिया
महानिदेशक, आईसीडब्ल्यूए
द्वारा
उद्घाटन वक्तव्य
स्प्रू हाउस, नई दिल्ली
29 अप्रैल, 2014
डा. एंटोनियो मिसीरोली, निदेशक, ईयूआईएसएस, राजदूत जैमिनी भगवती, सुश्री एनी मार्शल, प्रथम काउंसुलर, भारत में यूरोपीय संघ के प्रतिनिधि, महामहिमगण, मित्रो, देवियो और सज्जनो,
(बाएं से दाएं) डा. इवा ग्रॉस, वरिष्ठ विश्लेषक, ईयूआईएसएस, डा. एंटोनियो मिसीरोली, निदेशक,ईयूआईएसएस, राजूत राजीव के. भाटिया, महानिदेशक, आईसीडब्ल्यूए, सुश्री एनी मार्शल, प्रथम काउंसुलर भारत में यूरोपीय संघ की प्रतिनिधि राजदूत जैमनी भगवती, आईसीआरआईईआर में आरबीआई चेयर प्रोफेसर एवं सदस्य, परामर्श परिषद आईडीएफसी
- प्रभावी अनेकपक्षवाद पर भारत-ईयू फोरम का आयोजन करते हुए हमें प्रसन्नता है। यह वार्ता 2009-2014 के दौरान पांचवीं बार आयोजित की जा रही है। सतत् पारस्परिक सहयोग के माध्यम से, यूरोपीय संघ सुरक्षा अध्ययन संस्थान (ईयूआईएसएस) तथा भारतीय विश्व मामले परिषद (आईसीडब्ल्यूए) ने यह मंच स्थापित किया है। यह इसीलिए जारी रहा क्योंकि दोनों संस्थाओं ने और उनके लक्षित संघटकों ने इसे उपयोगी और उत्पादक माना है। यह एक उत्कृष्ट, व्यापक और अग्रदर्शी पहल है, जो हमें विश्व को हमारे साझे हितों के क्षेत्रों को तथा यूरोपीय संघ और भारत के बीच द्विपक्षीय संबंध को साथ मिलकर देखने में समर्थ बनाती है।
- हम पिछली बार अक्तूबर, 2012 में मिले थे। उस अवसर पर हमने एक साझा प्रकाशन जारी किया था, जिसका शीर्षक था, "ईयू-भारत भागीदारी : रणनीति अपनाने का समय?" इस रुचिकर पुस्तक ने जो प्रश्न उठाया था, वह आज भी वैध बना हुआ है। हमारी वार्ताओं का मुख्य निष्कर्ष यह था कि जबकि हमारी रणनीतिक भागीदारी ने प्रगति दर्ज की है, इसे अभी विभिन्न कारणों से अपनी इष्टतम क्षमता को हासिल करना है। हमारी साझी समझ यह थी कि दोनों ही पक्षों को भारत-ईयू रणनीतिक भागीदारी को गहन बनाने के उद्देश्य से अधिक प्रयास और अधिक निवेश करने की आवश्यकता है, हालांकि उस समय अल्पकाल के लिए हमारी आशावादिता सीमित प्रतीत होती थी।
- अब डेढ़ वर्ष बाद, हम स्वयं को एक गहन असमंजस में पाते हैं। आर्थिक विकास और राजनीतिक पुनरूत्थान से प्रेरित होकर, भारत अपने लिए स्थान का सृजन करना जारी रखे हुए है जो एक बहुध्रुवीय एशिया और बहुध्रुवीय विश्व में इसके राष्ट्रीय हितों के अनुकूल था। इसके अलावा, अब यह एक अभूतपूर्व राष्ट्रीय निर्वाचन से गुजर रहा है। इस निर्वाचन की अद्भुत विशेषताएं हर किसी के लिए देखने और उसका मूल्यांकन करने के लिए उपलब्ध हैं - निर्वाचकों का आकार, 100 मिलियन से अधिक नए निर्वाचकों का शामिल होना, युवाओं का उत्साह, सोशल मीडिया, उपकरणों की तैनाती, आदि तथा इनके साथ-साथ राष्ट्र के समक्ष विद्यमान जटिल मुद्दों और चुनौतियों की एक व्यापक परिधि भी है। हम में से अनेक लोगों के लिए मुख्य प्रश्न यह है कि इन चुनावों के बाद भारत की विदेश नीति के स्वरूप, दिशा और प्राथमिकताओं में किस प्रकार बदलाव आएगा?
- यूरोपीय संघ के पक्ष की ओर से विभिन्न घटनाक्रमों की समीक्षा किए जाने की आवश्यकता है, जैसे यूरो जोन संकट की विद्यमान चुनौती, यूरोपीय एकीकरण परियोजना में प्रतीत होता ठहराव, यूके की नई सोच, ईयू के साथ समीकरणों का पुन:संरेखण और सबसे महत्वपूर्ण गहन संकट में यूक्रेन के उभरते हुए बोझ। हालिया घटनाक्रमों की पृष्ठभूमि में यूरोपीय संघ स्वयं को और अन्य को किस प्रकार देखेगा, यह हमारी चर्चा के लिए एक अत्यंत महत्वपूर्ण प्रश्न होगा।
- एक ऐसे समय में, जब वैश्विक समुदाय राजनीतिक और आर्थिक क्षेत्रों से लेकर गैर-पारंपरिक क्षेत्रों तक अनेक चुनौतियों का सामना कर रहा है, जैसे अंतर्राष्ट्रीय आतंकवाद, व्यापक संहार के हथियारों का प्रचुरोद्भवन, संगठित अपराध, सामुद्रिक सुरक्षा तथा साइबर, ऊर्जा, खाद्य और जल सुरक्षा तथा जलवायु परिवर्तन, यह अत्यंत महत्वपूर्ण होगा कि हमारी दो संस्थाएं - ईयूआईएसएस और आईसीडब्ल्यू, शैक्षणिक और रणनीतिक समुदाय के स्तर पर निष्पक्ष और निर्माणात्मक विचारों को आदान-प्रदान को प्रोत्साहित करे और उसे सहयोग प्रदान करे। हम "मैत्री, सहयोग और समन्वयपूर्ण सांस्थानिक सहयोग के संवर्धन के माध्यम से "पारस्परिक समझ और मित्रता को बढ़ाने" के लिए पूर्णत: प्रतिबद्ध बने रहेंगे, जैसा कि अक्तूबर, 2009 में हस्ताक्षरित हमारे समझौता-ज्ञापन में स्पष्टत: उल्लेख किया गया है।
- जैसा कि हमारे सहमत एजेंडा दर्शाते हैं हम अगले दो दिनों में पर्याप्त चर्चा करेंगे जिनमें अंतर्राष्ट्रीय स्थिति, क्षेत्रीय मुद्दों की समीक्षा तथा द्विपक्षीय सहयोग में नवीनतम प्रवृत्तियों का आकलन शामिल है। इसके लिए हमारा आधारभूत प्रयास पूर्व की भांति ही होगा: ईयू और भारत के बीच रणनीतिक भागीदारी को और गहन बनाने की हमारी साझी इच्छा होगी।
पांचवें भारत-ईयू फोरम के प्रतिभागी
- मुझे पूर्ण विश्वास है कि यहां एकत्र हुए प्रतिष्ठित विशेषज्ञ तथा हमारे साथ बाद के सत्रों में जुड़ने वाले विद्वान नए और पुराने व्यावहारिक विचारों को प्रस्तुत करेंगे ताकि हमारे नीति-निर्माता उनसे सहयोग ले सके और संभवत: उनका उस समय प्रयोग कर सकें जब वे भारत-ईयू संबंध को एक नई ऊंचाइयों पर ले जाने के लिए भावी मार्ग तैयार करेंगे।
आपके द्वारा दर्शाई रुचि के लिए आपका बहुत-बहुत धन्यवाद।