प्रेस विज्ञप्ति
“21वीं सदी में भारत-अफ्रीका पर पूर्व-आईएएफएस सम्मेलन की मुख्य विशेषताएं : व्यापक साझेदारी का पैमाना और कार्य-क्षेत्र”
(15-16 अक्तूबर, 2015)
भारतीय विश्व मामले परिषद ने 15 तथा 16 अक्तूबर, 2015 को सप्रू हाउस, नई दिल्ली में विदेश मंत्रालय के सहयोग से भारत-अफ्रीका साझेदारी : व्यापक साझेदारी का पैमाना और कार्य-क्षेत्र पर प्री थर्ड इंडिया-अफ्रीका फोरम शिखर सम्मेलन का आयोजन किया ।
सम्मेलन में मिश्र, इथियोपिया, सूडान, केन्या, तंजानिया, मोजाम्बिक, दक्षिण अफ्रीका, जाम्बिया, मॉरीशस, घाना और नाइजीरिया के विद्वानों और विशेषज्ञों ने सहभागिता की । सम्मेलन में भारत के विशेषज्ञ समूह (थिंक टैंक), विश्लेषकों, व्यापार, मीडिया और नीति निर्माताओं के विशेषज्ञों के एक व्यापक प्रतिनिधित्व ने भी सहभागिता किया ।
दो दिवसीय सम्मेलन के दौरान प्रस्तुतियों और चर्चाओं को राजनीतिक सहयोग, आर्थिक संबंधों को बढ़ाने, शांति और सुरक्षा चुनौतियों, विकास सहयोग, लोगों को लोगों से जोड़ने और बहुपक्षीय जुड़ाव जैसे छह उप-विषयों के साथ संरचित किया गया था ।
- उद्घाटन सत्र में अपनी प्रारंभिक टिप्पणी में श्री नलिन सूरी, महानिदेशक, आईसीडब्ल्युए ने कहा कि :
- भारत-अफ्रीका साझेदारी एक मजबूत विरासत पर आधारित है और इसकी नींव बहुत ही मजबूत है ।
- यह एक सच्ची मित्रता है और भारत की अपनी स्वतंत्रता के बाद से और हाल के वर्षों में हमारी सहायता करने की क्षमता बढ़ी है, इस संबंध के स्तंभों को व्यापक करके इस मित्रता को लगातार मजबूत किया गया है ।
- अफ्रीका के साथ भारत का सहयोग अनिवार्य रूप से अफ्रीका में उसके मित्रों द्वारा अनुमानित आवश्यकताओं पर आधारित है । यह एक व्यापारिक संबंध नहीं है, बल्कि बराबरी का संबंध है । भारत को इस बात पर गर्व है कि अपनी स्वतंत्रता के बाद से उसने अफ्रीका के कई भागों में शांति और सुरक्षा बनाए रखने में सहायता करने, मानव संसाधन क्षमता विकसित करने और आपसी लाभ के लिए परियोजनाएं शुरू करने में कुछ भूमिका निभाई है ।
- “अफ्रीका का एजेंडा 2063” स्वयं को “एक एकीकृत, समृद्ध और शांतिपूर्ण अफ्रीका के लिए, अपने ही नागरिकों द्वारा संचालित और वैश्विक क्षेत्र में एक गतिशील बल का प्रतिनिधित्व करने के लिए” पुन: समर्पित करता है । उन्होंने अपनी भावना के साथ अपनी सहमति व्यक्त की और कहा कि भारत अफ्रीका के साथ मिलकर इसे वास्तविकता में बदलने में सहायता करेगा ।
- भारत एजेंडा 2063 में अफ्रीका के लिए आकांक्षाओं को साझा करता है और उन्हें पूरा करने के लिए अपने अफ्रीकी सहयोगियों के साथ काम करने के लिए प्रतिबद्ध है । एजेंडा 2063 रूपरेखा अफ्रीका के परिवर्तन के लिए “महत्वपूर्ण समर्थक” और सम्मेलन उन तरीकों और साधनों की पहचान करने में सहायता करेगा जिनके द्वारा भारत अपनी आकांक्षाओं का सम्मान करते हुए अफ्रीका के परिवर्तन में मदद कर सकता है ।
- श्री नवतेज सिंह सरना, सचिव(पश्चिम), विदेश मंत्रालय ने उद्घाटन पर अपने मुख्य भाषण में अन्य बातों के साथ कहा कि :
- सम्मेलन का महत्व यह है कि यह सोचने वाले लोगों को एक साथ लाता है ।
- अफ्रीका अर्थव्यवस्था, जातीयता, राजनीति और भूगोल के मामले में बहुत विविध है । परिणामस्वरूप, इस महाद्वीप के साथ भारत का जुड़ाव लचीला होना चाहिए । अफ्रीका के प्रति भारत का दृष्टिकोण न तो निर्धारित है और न ही शोषक; बल्कि अफ्रीका के साथ इसका संबंध बातचीत पर आधारित है ।
- अफ्रीका के साथ भारत का जुड़ाव सहस्राब्दियों से है । इसकी शुरूआत शिखर सम्मेलन प्रक्रिया से नहीं हुई है । वर्तमान में भारत के अफ्रीका के विभिन्न हिस्सों में 2.7 मिलियन सशक्त प्रवासी हैं ।
- अब तक भारत ने अफ्रीका के सभी बड़े शांति अभियानों में योगदान दिया है और वर्तमान में 4.5 हजार भारतीय शांति सैनिक अफीका में 4 शांति अभियानों में लगे हुए हैं ।
- अफीका में भारत उचित बुनियादी ढांचे के निर्माण में लगा हुआ है । यह अफ्रीका को 7.5 बिलियन डॉलर की स्वीकृत रियायती ऋण के माध्यम से किया गया है । भारत 41 अफ्रीकी देशों में 137 परियोजनाएं चला रहा है ।
- द्विपक्षीय व्यापार 70 बिलियन तक पहुंच गया है और भारतीय निवेश लगभग 30 बिलियन डॉलर है ।
- अफ्रीका की आवश्यकताओं के लिए भारत बेहद चौकस है । भारत पूरी मजबूती के साथ अफ्रीका की जरूरतों को पूरा करता है । इस संदर्भ में यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि इस वर्ष नई दिल्ली में होने वाला आगामी भारत-अफ्रीका फोरम शिखर सम्मेलन अफ्रीका के एजेंडा 2063 और एसडीजी 2030 लक्ष्यों की घोषणा के बाद यह पहला सम्मेलन होगा । इसलिए यह शिखर सम्मेलन इन लक्ष्यों को ध्यान में रखते हुए अफ्रीका के साथ भारत के जुड़ाव को परिभाषित करेगा ।
- आगामी वर्षों में अफ्रीका के साथ भारत के जुड़ाव के लिए केंद्र बिंदु के क्षेत्र में शामिल होंगे : i) एजेंडा 2063 को पीछे छोड़ते हुए ii) सतत विकास भागीदारी ; iii) शांति और सुरक्षा संचालन, आंतकवाद-रोधी और समुद्री सुरक्षा का समर्थन ; और iv) ब्लू इकोनॉमी का विकास।
- उद्घाटन बैठक में एच.ई. श्रीमती गनेट जेवाइड, अफ्रीकी राजनयिक कोर के डीन और इथियोपिया के राजदूत, नई दिल्ली ने कहा : -
- अफ्रीका के प्रति भारत की नीति i) पारस्परिक लाभ ii) समानता iii) पूरक पर आधारित है।
- पिछले दो शिखर सम्मेलनों में i) शांति और सुरक्षा ii) व्यापार और निवेश iii) ऋण की सीमा iv) इनमें से मानव संसाधन विकास, सबसे महत्वपूर्ण मानव संसाधन विकास है, जो अफ्रीका में भारत के योगदान की विशिष्टता का प्रतीक है । पिछले शिखर सम्मेलन के बाद से कई परियोजनाएं लागू की गई हैं और कुछ प्रक्रियाधीन हैं । हालांकि, कई परियोजनाओं को अभी भी कार्यान्वयन स्तर पर समस्याओं को सामना करना पड़ रहा है । अगले शिखर सम्मेलन में ऐसी बाधाओं को समाप्त करने की कोशिश की जानी चाहिए ।
- यह एजेंडा 2063 में तथा संयुक्त राष्ट्र के सतत विकास लक्ष्यों 2030 में निहित विचारों को पूरा करने के लिए अफ्रीका के लिए एक चुनौती है । अफ्रीका को विशेष रूप से i) गरीबी उन्मूलन ii) प्रगति और विकास iii) लोकतंत्र iv) कानून और सुशासन का नियम v) स्वास्थ्य और शिक्षा vi) जीवन की गुणवत्ता पर ध्यान केंद्रत करना चाहता है ।
- अफ्रीका निम्नलिखित क्षेत्रों में i) क्षमता निर्माण ii) प्रौद्योगिकी हस्तांतरण iii) मानव संसाधन विकास iv) विस्तारित व्यापार और आर्थिक संबंध पर भारत की सहायता करना चाहता है । व्यापार और आर्थिक संबंधों का विस्तार करना विशेष रूप से महत्वपूर्ण है क्योंकि यह युवा आबादी के रोजगार का निर्माण करेगा। निवेश कौशल विकास और रोजगार सृजन में सहायता करेगा ।
- 16 अक्तूबर, 2015 को समापन सत्र में डी.जी., आई.सी.डब्ल्यु.ए. ने याद किया कि पिछले दो दिनों की चर्चा स्पष्ट और सार्थक रही है । उन्होंने दस परिणामों पर ध्यान आकर्षिक किया, जो उन्हें लगा कि शिखर में प्रतिबिंबित हो सकता है । ये हैं :-
- भारत में लोकतंत्र क्यों और कैसे सफल रहा है और अफ्रीकी देश भारतीय अनुभव से कैसे सीख सकते हैं ? भारत इस प्रक्रिया में कैसे सहायता कर सकता है जिसे अफ्रीका अपनी सफलता के लिए महत्वपूर्ण मानता है जिसमें एजेंडा 2063 शामिल है ।
- अफ्रीका में शांत और सुरक्षा के मुद्दों में भारत को एक बड़ी भूमिका निभानी चाहिए, जिसमें संघर्ष और समुद्री सुरक्षा में मध्यस्थता के मामले और सशस्त्र बलों पर नागरिक नियंत्रण का वर्चस्व बढ़ाना शामिल है ।
- विकास सहयोग पर भारत की क्षमताओं और परियोजनाओं एवं कार्यक्रमों के बेहतर कार्यान्वयन के लिए बेहतर जोड़ीदार की आवश्यकता है ।
- परियोजना निर्धारण एवं मूल्यांकन के मुद्दों सहित दक्षिण-दक्षिण सहयोग पर दक्षिण में अधिक से अधिक शोध करने की आवश्यकता है ।
- कृषि में सहयोग पर अधिक ध्यान देने और अफ्रीकी साझेदार देशों में एसएमई में अधिक भारतीय निवेश की आवश्यकता है ताकि रोजगार पैदा किए जा सकें, कौशल और तकनीकी क्षमता बढ़ाई जा सके ।
- दोनों पक्षों को संयुक्त उद्यम / सार्वजनिक भागीदारी मॉडल के आधार पर संसाधन आधारित वित्तपोषण को देखना चाहिए ।
- भारत का अफ्रीकी देशों में “भूमि हड़पने” के मुद्दे में हिस्सा नहीं है ।
- भारत के विकास सहयोग प्रस्तावों के उपयोग में मोजाम्बिक द्वारा प्राप्त की गई सफलताओं को दोहराने की आवश्यकता है ।
- अफ्रीका में भारतीय समुदाय को आत्मसात करना चाहिए और बेहतर एकीकरण करना चाहिए। यह भारत और अफ्रीका के बीच साझेदारी की स्वाभाविकता को बेहतर ढंग व्यापार करने में सहायता करेगा।
- भारतीय एवं अफ्रीकी भागीदारों के बीच मीडिया और ज्ञान की कमी को दूर करने की आवश्यकता है । इसके अतिरिक्त भारत अफ्रीकी मीडिया संस्थानों की क्षमताओं को बढ़ाने में कैसे मदद कर सकता है ? क्या भारतीय-अफ्रीकी संपादकों के मंच को संस्थागत रूप देना चाहिए ?
- श्री अजनेश कुमार डी.डी.जी., आई.सी.डब्ल्यु.ए. ने अपने सम्मेलन की परिणाम रिपोर्ट में निम्नलिखित पर ध्यान आकर्षित किया है :-
सत्र I- भारत अफ्रीका राजनीतिक सहयोग : मुद्दे और परिप्रेक्ष्य
- अफ्रीका भारत से सीख सकता है कि विविध जातीय-सांस्कृतिक और धार्मिक विविधता वाले एक अनुकरणीय संवैधानिक ढांचे को कैसे स्थापित किया जाए जहां लोकतंत्र और विकास का एक संघ संभव होगा ।
- भारत को अफ्रीकी महाद्वीप में राजनीतिक दलों के विकास में क्षमता निर्माण की भूमिका निभानी चाहिए ।
- राष्ट्रमंडल संसदीय संघों की तरह संघों को भारत और अफ्रीकी राष्ट्रों के बीच एक दूसरे की राजनीतिक संरचना, संस्कृति और विकास के बारे में बेहतर समझ करने के लिए गठन किया जा सकता है ।
सत्र II- भारत अफ्रीका आर्थिक संबंधों को बढ़ाना
- भारत और अफ्रीका के बीच बहुत अधिक व्यापार क्षमता है, इसकी इष्टतम क्षमता का अभी तक अनुभव नहीं किया जा सका है । भारत और अफ्रीका के बीच अप्रत्यक्ष व्यापार पर आमतौर पर विचार नहीं किया जाता है, और यह आधिकारिक व्यापार आंकड़ों में अपर्याप्त आंकड़े हैं ।
- भारत और अफ्रीका को सुरक्षा के क्षेत्रों में सहयोग बढ़ाना चाहिए । आतंकवाद दोनों के लिए एक आम खतरा है । अन्य खतरों जैसे नागरिक संघर्ष, साइबर सुरक्षा, बैंकिंग क्षेत्र में धोखाधड़ी को भारत-अफ्रीका सहयोग के माध्यम से निपटाया जाना चाहिए ।
- संस्थागत तंत्र आर्थिक अंतर-संपर्क को सुविधाजनक बना रहा है । डीएफटीपी योजना ने अब तक अच्छा काम नहीं किया है, और केवल तंजानिया ने डीएफटीपी योजना से लाभ प्राप्त किया है ।
सत्र III – शांति और सुरक्षा चुनौतियां : साझा आधार को खोजना
- तेल एवं अन्य खनिजों की खोज के बाद संघर्ष काफी बढ़ गया है और तीव्र हो गया है ।
- भारत और अफ्रीका के बीच निम्नलिखित को बढ़ाने की आवश्यकता है
- एक व्यापक जवाबी आतंक कानूनी सहयोग फ्रेमवर्क का रास्ता निकालना
- द्विपक्षीय तंत्र और बहुपक्षीय संधियां भी ।
- प्रत्यर्पण संधियां और सूचना विनिमय ।
- निरंतर संलग्नता के माध्यम से गरीबी, बेरोजगारी और अशिक्षा से निपटना ।
सत्र IV – विकास सहयोग और आशाएं
- विकासात्मक गतिविधियों का पश्चिमी विचार मौद्रिक सिद्धांत पर आधारित है जबकि दक्षिण –दक्षिण सहयोग सशर्त मुक्त आर्थिक संतुलन पर आधारित है ।
- अफ्रीकी विद्यार्थियों को प्रदान की जाने वाली आईटीईसी सीटों और आईसीसीआर छात्रवृत्ति का पूरी तरह से उपयोग नहीं किया जा रहा है । भारत क्या पेशकश कर रहा और अफ्रीका क्या मांग रहा है इसमें एक अंतराल लगता है । इसका आकलन करने की आवश्यकता है ।
- विश्व अपनी संलग्नता को बढ़ाने के लिए भारत और अफ्रीका का इंतजार नहीं कर रही है । पश्चिम अंतरराष्ट्रीय व्यवस्था में अपनी प्रभावी स्थिति को और मजबूत करने के लिए नए संस्थान बना रहा है । उदाहरण के लिए टीपीपी और पेटेंट व्यवस्था को मजबूत बनाना। यह भारत और अफ्रीका दोनों के लिए चिंता की बात है कि वैश्विक संस्थान भविष्य में हमारे लिए अधिक शत्रुतापूर्ण होंगे ।
सत्र V – लोगों का लोगों से जुड़ाव के लिए मजबूत बनाना
- भारत और अफ्रीका के बीच संबंधों को संस्थागत बनाने के लिए संस्कृति और प्रवासी भारतीयों के बीच संबंध गहरा होना चाहिए ।
- भारत को विशेष रूप से मीडिया क्षमता के निर्माण में अफ्रीका की मदद करनी चाहिए क्योंकि अफ्रीका में ज्ञान और सूचना की कमी है ।
सत्र V – बहुपक्षीय संलग्नता : भारत – अफ्रीका हस्तक्षेप
- सार्क को और अधिक मजबूत आर्थिक संगठन बनने के लिए उसे उभारने की आवश्यकता है, ताकि वह पूर्वी एवं पश्चिमी अफ्रीका को आसियान से जोड़ सके ।
- भारत और अफ्रीका चार मुद्दों पर मौजूदा बहुपक्षीय संगठनों में एक साथ काम कर सकते हैं :
- संयुक्त राष्ट्र शांति बनाए रखने की दिशा में सुधार
- यू.एन.एस.सी. सुधार
- समुद्री सुरक्षा के लिए निर्माण क्षमता और
- अंतरराष्ट्रीय वित्तीय संस्थानों में सुधार
- भारत और अफ्रीका द्वारा बहुपक्षीय स्तरों पर मानदंडों और संस्थानों को स्थापित करने की आवश्यकता है, जो छह क्षेत्रों पर ध्यान केंद्रित कर रहे हैं जो भोजन, जलवायु, ऊर्जा, साइबर सुरक्षा तथा बाह्य स्थान है ।
VI – सुश्री सुजाता मेहता, सचिव(एम एवं ईआर), एमईए ने अपने समापन भाषण में निम्नलिखित बातों पर ध्यान दिलाया :-
- भारत-अफ्रीका का संबंध 3 सीएस : अनुयोजकता(कनेक्टिविटी), पूरक और सहयोग पर आधार है।
- अनुयोजकता लोगों से लोगों के संपर्क के लिए बुनियाद है । अनुयोजनकता की उपलब्धता बढ़े हुए सहयोग के लिए एक मंच है ।
- अफ्रीका और भारत के देशों के विकास का प्रतिरूप(पैटर्न) समान है और इसलिए अधिक से अधिक सहयोग संभव है । पूरक होने के नाते दोनों अपने सहयोग के माध्यम से हासिल करने के लिए तत्पर हैं ।
- भारत और अफ्रीका मिलकर 2.2 बिलियन लोगों का एक बाजार बनाते हैं और उनकी संयुक्त जीडीपी 3 टिलियन डॉलर है ।
- आई.ए.एफ.एस. महाद्वीप, क्षेत्रीय, उप-क्षेत्रीय र द्विपक्षीय स्तरों पर भारत और अफ्रीका के बीच मजबूत संबंध बनाने के लिए बुनियाद रखना चाहता है ।
- अफ्रीका में भारतीय दृष्टिकोण विकास में भागीदारी पर आधारित है और राज्य, निजी क्षेत्र और मीडिया सभी को इसमें भूमिका निभानी होगी ।
- भारतीय विकास कार्यक्रम i) क्रेडिट की सीमा ii) अनुदान iii) क्षमता निर्माण ; और iv) तकनीकी सहयोग के माध्यम से पहुंचाया ।
- पिछले शिखर सम्मेलन के बाद से भारत द्वारा प्रदान की गई 25000 छात्रवृत्ति का उपयोग अफ्रीका में किया गया है ।
- भारत ने अफ्रीका में भागीदार देशों की आवश्यकताओं और अपेक्षाओं पर प्रतिक्रिया देने की कोशिश की है । उदाहरण के लिए इसने नागरिक समाज (सिविल सोसाइटी) और मीडिया के लिए विशेष कार्यक्रम विकसित किए हैं ।
- भारत द्वारा अफ्रीका को दिया जाने वाला रियायती ऋण 7.4 बिलियन डॉलर का है और वर्तमान में भारत की 41 अफ्रीकी देशों में 142 परियाजनाओं में संलग्नता है ।
- सामुदायिक आधारभूत संरचना विशेषकर सड़कें, पानी, चिकित्सालय और बिजली परियोजनाओं के निर्माण में सफल अनुभव रहा है ।
- वर्ष 1991 में भारत का अफ्रीका के साथ व्यापार 1 बिलियन डॉलर से कम था और आज यह 70 बिलियन डॉलर है । साथ ही अफ्रीका को भारत का निर्यात उसके कुल निर्यात का 10 प्रतिशत है ।
- भारत का फोकस विकास साझेदारी पर है और यह अपने अफ्रीकी भागीदारों द्वारा पहचानी गई प्राथमिकताओं पर काम करना चाहेगा । यह एक ऐसा संबंध है जो व्यापारिक व्यापार से इतर है और विकास सहयोग पर केंद्रित है ।
- अफ्रीका में साउंड विनिर्माण वृद्धि का विकास महत्वपूर्ण है । भारत–अफ्रीका साझेदारी का अगला चरण संयुक्त उद्यमों में निवेश होगा । भारत अपने निजी क्षेत्र को संवेदनशील बना रहा है और इसे प्रोत्साहित करने के लिए अफ्रीका में सीएसआर गतिविधियों पर भी ध्यान केंद्रित कर रहा है।
- भारतीय प्रवासी अफ्रीका में संबंधों को मजबूत बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं ।
- भारत संबंध(रिलेशनशिप) को आगे ले जाने की इच्छा रखता है और लम्बे समय तक भारत में अफ्रीका के साथ संबंध में बेहतर भविष्य है, एक राज्य आधारित मॉडल के साथ दूसरों से भिन्न।
- भारत-अफ्रीका साझेदारी को साझा मूल्यों और मजबूत राजनीतिक समझ से नया आधार दिया गया है ।
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