महामहिम, प्रतिभागियों, देवियों और सज्जनों,
भारतीय प्रतिनिधिमंडल का हिस्सा होने के नाते 9वें हिंद महासागर संवाद में भाग लेना तथा संवाद में पैनलिस्ट के रूप में यहां अपने विचार व्यक्त करना मेरे लिए बेहद सम्मान और सौभाग्य की बात है।
महासागर और समुद्र का हमेशा से ही आर्थिक समृद्धि में महत्वपूर्ण योगदान रहा है, जिससे समुद्री उद्यम को गति मिली है। विगत कुछ वर्षों में मानवता की जरूरतों को पूरा करने में समुद्र पर निर्भरता बढ़ी है। महासागर और समुद्र मौजूदा वैश्वीकृत दुनिया में अधिक महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं क्योंकि समुद्री क्षेत्र का वैश्वीकरण की शुरुआत में अहम योगदान रहा है चूंकि यह वह माध्यम है जिसके ज़रिए 90 प्रतिशत से अधिक का विश्व व्यापार होता है। यह काफी अहम बात है लेकिन बहुत कम लोग जानते हैं कि इस महासागर और समुद्र क्षेत्र के तीन-चौथाई से अधिक हिस्से पर कोई भी कानूनी व्यवस्था नहीं है, यानी यह सभी के लिए एक तरह से मुफ्त है, इसलिए महासागरों के प्रबंधन में बड़ी चुनौती आती है। कुल मिलाकर, महासागर प्रशासन का हमारा विचार महासागरों के प्रबंधन से संबंधित है; ताकि उनका शांतिपूर्ण और टिकाऊ तरीके से इस्तेमाल किया जा सके यानी इसकी नीली अर्थव्यवस्था की क्षमता का दोहन किया जा सके।
पृथ्वी की सतह के लगभग 20% हिस्से में फैला हुआ हिंद महासागर, रणनीतिक रूप से अफ्रीका, एशिया तथा ऑस्ट्रेलिया के तीन महाद्वीपों को जोड़ता है। इसका आर्थिक और रणनीतिक महत्व बहुत अधिक है, क्योंकि यह क्षेत्र ऊर्जा संपन्न मध्य पूर्व, संसाधन संपन्न अफ्रीका, भारतीय उपमहाद्वीप, आसियान, पूर्वी एशिया की बढ़ती अर्थव्यवस्थाओं तथा इस क्षेत्र के द्वीपों को जोड़ने का काम करता है। इससे महासागर पर वैश्विक ध्यान पहले से कहीं बढ़ा है, जिसे क्षेत्रीय और वैश्विक संवाद में भारत-प्रशांत के बढ़ते महत्व के संदर्भ में उभरता हुआ केंद्र माना जाता है।
इस महासागर में वैश्विक व्यापार हेतु संचार के कई महत्वपूर्ण समुद्री लेन हैं, जिसमें सबसे महत्वपूर्ण पूर्व में मलक्का जलडमरूमध्य तथा पश्चिम में होर्मुज जलडमरूमध्य हैं। यह महासागर दुनिया का सबसे व्यस्त व्यापार गलियारा है, क्योंकि हिंद महासागर से दुनिया के तेल शिपमेंट का लगभग 2/3 और कुल 1/3 बल्क कार्गो गुजरता है। अंतर्राष्ट्रीय समुद्री व्यापार का 25 प्रतिशत मलक्का जलडमरूमध्य से होकर गुजरता है। गौर करने वाली बात यह है कि इस ट्रैफिक का तीन-चौथाई हिस्सा दुनिया के अन्य क्षेत्रों में जाता है। इसलिए आईओआर का शांतिपूर्ण और स्थिर होना क्षेत्रीय और अंतरराष्ट्रीय आर्थिक तथा रणनीतिक दृष्टिकोण से भी आवश्यक है।
नीली अर्थव्यवस्था की अवधारणा समुद्री क्षेत्र से संबंधित सबसे महत्वपूर्ण विषयों में से एक है। इसमें समुद्री व्यापार, नौसैनिक उद्योग, मत्स्य पालन, समुद्री प्रौद्योगिकी और वैज्ञानिक अनुसंधान, एकीकृत तटीय प्रबंधन, समुद्री पर्यावरण पर्यटन, अंतर्देशीय जलमार्गों से लेकर महासागर, समुद्र एवं तटों से संबंधित गतिविधियां शामिल है। आईओआरए के प्राथमिकता वाले क्षेत्रों में से एक नीली अर्थव्यवस्था में ऊर्जा सुरक्षा, खाद्य सुरक्षा एवं अन्य संबंधित क्षेत्रों में सतत विकास हेतु महासागरों को अर्थव्यवस्था का चालक मानने पर बल दिया गया है।
संयुक्त राष्ट्र का एजेंडा 2030, 'लाइफ अंडर सी' एसडीजी 14 "सतत विकास हेतु महासागरों, समुद्रों और समुद्री संसाधनों के संरक्षण एवं सतत उपयोग" पर बल देता है, जो नीली अर्थव्यवस्था के महत्व को दर्शाता है। यह वैश्विक प्रशासन तथा महासागर के संसाधनों के उपयोग हेतु मार्गदर्शक सिद्धांत का कार्य करता है और क्षेत्र में अंतर्राष्ट्रीय सहयोग को भी बढ़ावा देता है।
नीली अर्थव्यवस्था के दृष्टिकोण से निश्चित तौरपर हिंद महासागर में कई संसाधन हैं और इसका महत्व समय के साथ बढ़ा ही है। चाहे वह मत्स्य पालन एवं जलीय कृषि के दृष्टिकोण से हो, या फिर महासागर आधारित नवीकरणीय ऊर्जा, समुद्र तल में छिपे हुए खनिज हो, सबसे महत्वपूर्ण व्यापार गलियारा होने के नाते विश्व स्तर पर शिपिंग उद्योगों के दृष्टिकोण से बहुत महत्वपूर्ण है, इसलिए आईओआर का महत्व काफी अधिक है।
हालांकि, विगत कुछ समय से आईओआर के समुद्री क्षेत्र को नीली अर्थव्यवस्था की क्षमताओं का इस्तेमाल करने में कई अलग-अलग चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है। यहां कुछ बाहरी क्षेत्रों से आने वाले गैर-पारंपरिक खतरे बताए गए हैं, जो प्रकृति में गैर-पारंपरिक की तुलना में कहीं अधिक बड़े खतरे हैं।
इस सब वजहों न केवल क्षेत्र में नीली अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देने का लक्ष्य बाधित होता है बल्कि आईओआर में समुद्री क्षेत्र के प्रबंधन में भी चुनौती पैदा होती है।
समुद्री खतरों तथा समुद्र तटों से संबंधित चुनौतियों पर काबू पाने में समुद्री प्रशासन को लेकर तटीय देशों में सुसंगत दृष्टिकोण की कमी है।
कई तरह की चुनौतियों के मौजूदा परिदृश्य में, साझा चुनौतियों से निपटने तथा दुनिया भर की मानव जाति को सुरक्षित करने हेतु सुरक्षा को एकमात्र सहयोगी माना जाना चाहिए। ऐसी गैर-पारंपरिक चुनौतियों से निपटने में क्षेत्रीय और बहुपक्षीय सहयोग बहुत जरुरी है। इसलिए, समुद्री सुरक्षा के मुद्दों को संबोधित करने वाले प्रशासन की अवसंरचना को स्थानीय, राष्ट्रीय, क्षेत्रीय और वैश्विक स्तर पर समान तरीके से लागू करना होगा। इस तरह की चुनौतियों का मिलकर समाधान निकालना जैसे कि क्षेत्रीय देशों की विभिन्न एजेंसियों के बीच अच्छी तरीकों को साझा करने की दिशा में प्रयास करना, जिन देशों के पास क्षमता है द्वारा आपदा प्रबंधन और लचीलेपन के क्षेत्र में क्षमता निर्माण में सहायता प्रदान करना, शुरुआती चेतावनी प्रणाली पर ज्ञान साझा करना, जलवायु परिवर्तन हेतु अनुकूलन और शमन संबंधी उपाय करना तथा सार्वजनिक-निजी भागीदारी को बढ़ावा देना, आदि भी बेहद उपयोगी होगा। इन सबसे क्षेत्र में स्थिर और सुरक्षित समुद्री व्यवस्था बनाई जा सकती है। साथ ही अंतरराष्ट्रीय कानूनों को मानना, जिसमें सबसे महत्वपूर्ण 1982 यूएनसीएलओएस हो, समुद्री क्षेत्र को सुरक्षित बनाने में सबसे अहम है।
समुद्री सुरक्षा हेतु समुद्री क्षेत्र में जागरूकता (एमडीए) महत्वपूर्ण है, क्योंकि पूर्वानुमान विश्लेषण करने में मदद करके आईओआर में समुद्री क्षेत्र में जागरूकता का एक अच्छे माहौल के लिए और समुद्री क्षेत्र की चुनौतियों के लिए बेहतर तैयारी में सूचना संलयन केंद्रों की भूमिका भी महत्वपूर्ण है। इस संबंध में एक महत्वपूर्ण हालिया घटनाक्रम क्वाड टोक्यो शिखर सम्मेलन में इंडो-पैसिफिक पार्टनरशिप फॉर मैरीटाइम डोमेन अवेयरनेस (आईपीएमडीए) की घोषणा है। इसे मानवीय तथा प्राकृतिक आपदाओं से निपटने और अवैध तरीक से मछली पकड़ने से निपटने हेतु क्षेत्रीय भागीदारों के साथ काम करने के लिए बनाया गया है। आईपीएमडीए हमारे समुद्रों और महासागरों में स्थिरता और समृद्धि को बढ़ावा देने हेतु उन्नत, साझा समुद्री क्षेत्र जागरूकता कार्यक्रम का समर्थन करने के लिए प्रौद्योगिकी और प्रशिक्षण प्रदान करके हिंद महासागर, दक्षिण पूर्व एशिया और प्रशांत द्वीप समूह में भारत-प्रशांत देशों तथा क्षेत्रीय सूचना संलयन केंद्रों के परामर्श से काम करेगा। यह पहल आम जनता की साझा चुनौतियों से निपटने के लिए सहयोगात्मक तथा समन्वित प्रयासों का एक अच्छा उदाहरण है।
ज्यादातर परस्पर संबंधित रहने वाले महासागर संबंधित मुद्दों को हल करने में बहुपक्षवाद महत्वपूर्ण है। यहां आईओआरए और आसियान जैसे संस्थानों के ज़रिए 'समुद्री बहुपक्षवाद' का महत्व समझ आता है, ताकि हिंद महासागर क्षेत्र के भीतर क्षेत्रीय सहयोग को सुदृढ़ और सतत विकास को संस्थागत रूप दिया जा सके। इस क्षेत्र में आईओआरए, आईओसी, आसियान, आसियान ऑउटलुक ऑन इंडो-पैसिफिक (एओआईपी) जैसी कई पहलें तथा एआरएफ, एडीएमएम+, ईएएस जैसे संबंधित तंत्र हैं जो व्यापक हिंद-प्रशांत क्षेत्र में स्थिर और सुरक्षित क्षेत्रीय व्यवस्था हेतु गतिशील बहुपक्षवाद को बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। उदाहरण के लिए: आईओआरए अपने सदस्य देशों तथा संवाद भागीदारों के साथ आईओआर की साझा चुनौतियों से निपटने और महासागर संसाधनों के सतत उपयोग के एजेंडे को बढ़ावा देने हेतु एक मजबूत दृष्टिकोण रखता है। साथ ही, अन्य समुद्री क्षेत्र से संबंधित पक्षों तथा गैर-राज्य समूहों सहित एजेंसियों को साथ लाना भी महत्वपूर्ण है, जिससे इस क्षेत्र में समुद्री प्रबंधन हेतु एक सर्व-समावेशी दृष्टिकोण बनाया जा सकेगा।
भारत का दृष्टिकोण और पहल
भारत में, नीली अर्थव्यवस्था, देश की आर्थिक नीति की संरचना में एक महत्वपूर्ण क्षेत्र है जो मुख्यतः तटीय समुदायों के जीवन में सुधार, समुद्री जैव विविधता के संरक्षण पर ध्यान केंद्रित करते हुए पूरे आर्थिक विकास में योगदान कर सकता है। इस विचार का महत्व 2015 में मॉरीशस में बोलते हुए प्रधानमंत्री मोदी द्वारा भी व्यक्त किया गया था, और उन्होंने कहा था कि "भारत के राष्ट्रीय ध्वज में नीला चक्र या पहिया 'नीली क्रांति', या 'समुद्री अर्थव्यवस्था' की क्षमता को दर्शाता है"। यह देश के सामाजिक लाभ हेतु प्रचुर मात्रा में उपलब्ध समुद्री संसाधनों का जिम्मेदारी से उपयोग करने का एक बड़ा सामाजिक-आर्थिक अवसर पेश करता है। भारत में नीली अर्थव्यवस्था-2021 के लिए एक मसौदा राष्ट्रीय नीति भी है, जिसे अंतिम देने का काम चल रहा है।
भारत ने समुद्री क्षेत्र से संबंधित मुद्दों पर वैश्विक संवाद में हमेशा अग्रणी भूमिका निभाई है। भारत वैश्विक स्तर पर समुद्री एजेंडे के प्रति प्रतिबद्ध है। 9 अगस्त को, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भारत की पहल पर यूएनएससी में समुद्री सुरक्षा के मुद्दे पर पहली चर्चा में संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की उच्च स्तरीय खुली बहस की अध्यक्षता करने वाले पहले भारतीय प्रधान मंत्री बने।
भारत में हाल के दिनों में जो पहलें कि हैं, उन्हें समुद्र के प्रबंधन में योगदान तथा सतत उपयोग के दृष्टिकोण से देखा जा सकता है। एसएजीएआर (सागर) ऐसी ही एक पहल है - जिसका विस्तृत रुप व्यापार, पर्यटन, अवसंरचना, पर्यावरण, नीली अर्थव्यवस्था और सुरक्षा में सहयोग पर ध्यान केंद्रित करते हुए क्षेत्र में सभी की सुरक्षा और विकास खड़ा है। यह देशों को सुरक्षित और स्थिर समुद्री क्षेत्र की दिशा में सहयोग और तालमेल तथा साथ ही समुद्री क्षेत्र के संरक्षण और स्थायी उपयोग हेतु सार्थक कदम उठाने के लिए प्रोत्साहित करता है। भारत का समुद्र से गहरा जुड़ाव रहा है; एसएजीएआर (सागर) दृष्टिकोण के तहत पारस्परिक रूप से सहायक तथा सहकारी तरीके से क्षेत्रीय भागीदारों के साथ संबंधों को मजबूत करने का प्रयास है। ईएएस शिखर सम्मेलन, 2019 में आईपीओआई की घोषणा से एसएजीएआर (सागर) का विज़न बढ़ गया है। आईपीओआई में खुले व समावेशी तरीके से व्यावहारिक सहयोग के ज़रिए समान विचारधारा वाले देशों के साथ साझेदारी करने हितधारकों का एक समूह बनाने का उद्देश्य है।
इसमें समुद्री सुरक्षा, समुद्री पारिस्थितिकी, समुद्री संसाधन, क्षमता सृजन व संसाधन साझाकरण, आपदा जोखिम में कमी व प्रबंधन, विज्ञान, प्रौद्योगिकी एवं शैक्षणिक में सहयोग; और व्यापार, कनेक्टिविटी और समुद्री परिवहन सहित सात स्तंभ हैं।
आईपीओआई समुद्री सुरक्षा और महासागरों के सतत उपयोग संबंधी पहलों में अपना योगदान देगा। भारत अन्य देशों को आईपीओआई में शामिल होने हेतु प्रोत्साहित कर रहा है, साथ ही इस पहल के तहत कुछ विषयगत क्षेत्रों का नेतृत्व भी कर रहा है। अब तक ऑस्ट्रेलिया, फ्रांस, इंडोनेशिया, यूनाइटेड किंगडम, सिंगापुर, इटली और जापान आईपीओआई में शामिल हो चुके हैं।
भारत आईओआर में बहुपक्षीय क्षेत्रीय संरचना में भी सक्रिय तथा सकारात्मक भूमिका निभा रहा है। कोएलिशन फॉर डिजास्टर रेजिलिएंट इन्फ्रास्ट्रक्चर (सीडीआरआई), और इंटरनेशनल सोलर एलायंस जलवायु परिवर्तन एजेंडा में भारत की क्षेत्रीय और वैश्विक प्रतिबद्धता का अंतर्भूत हिस्सा हैं।
एमडीए, एचएडीआर क्षेत्र में प्रशिक्षण और क्षमता सृजन, इस क्षेत्र में भारत के सहयोग का एक अन्य पहलू है। भारतीय नौसेना और तट रक्षकों ने आपदा प्रबंधन में प्रभावी और समय पर सहायता पहुंचाने में सक्रिय भूमिका निभाई है। भारत के पास आईओआर में स्थिर, सुरक्षित और सामंजस्यपूर्ण परिवेश बनाने की दिशा में काम करने की पूरी क्षमताएं और जिम्मेदारियां हैं।
भारत द्वारा किए जा रहे ये प्रयास इंडो-पैसिफिक क्षेत्र के भारत के दृष्टिकोण के अनुरूप हैं, जिसका हिंद महासागर केंद्र है। यह दृष्टिकोण नियम-आधारित अंतर्राष्ट्रीय व्यवस्था पर बने मुक्त, खुले, समावेशी, शांतिपूर्ण और समृद्ध इंडो-पैसिफिक क्षेत्र की परिकल्पना करता है, जिसमें सभी देश प्रगति और समृद्धि की साझा तलाश में एकजुट रहें। भारत महासागर आधारित नीली अर्थव्यवस्था के विकास के ज़रिए इस क्षेत्र के अधिक सहकारी और एकीकृत भविष्य की तलाश में है।
संस्थान स्तर पर, 2019 और 2021 में दो हिंद महासागर संवाद हेतु विदेश मंत्रालय, भारत के ज्ञान भागीदार और 2019 -2021 में आईओआरए शैक्षणिक समूह (आईओआरएजी) के अध्यक्ष के रूप में आईओआरए के साथ जुड़ना आईसीडब्ल्यूए के लिए सौभाग्य की बात रही है।
हिंद महासागर की नीली अर्थव्यवस्था की क्षमताओं तथा महासागर के प्रबंधन का सही से इस्तेमाल करने हेतु हिंद महासागर के जल को स्थायी तरीके से तथा समग्र, एकीकृत क्षेत्रीय दृष्टिकोण की आवश्यकता है। इसके लिए विभिन्न प्रकार की साझेदारियों के माध्यम से सीमाओं और क्षेत्रों में सहयोग की भी आवश्यकता है। इसलिए सामूहिक दृष्टिकोण वर्तमान परिस्थितियों में एक आवश्यकता है।
स्थायी तरीके से और समग्र, एकीकृत क्षेत्रीय दृष्टिकोण से हिंद महासागर के जल का दोहन करना, हिंद महासागर की नीली अर्थव्यवस्था की क्षमताओं और महासागर के प्रबंधन का ठीक से इस्तेमाल करने हेतु आवश्यक है। इसके लिए कई तरह की साझेदारियों के ज़रिए कई देशों तथा क्षेत्रों में भी सहयोग की आवश्यकता है। इसलिए मौजूदा परिस्थितियों में सामूहिक दृष्टिकोण बहुत आवश्यकता है।
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