संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में भारत: जून 2021 का मासिक पूर्वावालोकन
एशिया, अफ्रीका, विषयगत मुद्दों और साइबर सुरक्षा पर ध्यानाकर्षण
संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (यूएनएससी) के निर्वाचित सदस्य के रूप में भारत के दो वर्षीय कार्यकाल में संयुक्त राष्ट्र में भारत के पूर्व स्थायी प्रतिनिधि, राजदूत अशोक कुमार मुखर्जी द्वारा 'संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा में भारत: मासिक संक्षिप्त आवृत्ति' की आईसीडब्ल्यूए श्रृंखला में छठवाँ विश्लेषण नीचे दिया गया है।
पश्चिमी यूरोपीय और अन्य राज्यों (डब्ल्यूईओजी) के समूह से अस्थायी सदस्य के रूप में चुने गए एस्टोनिया ने जून 2021 के दौरान संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (यूएनएससी) की अध्यक्षता की। इसने तीन प्रमुख कार्यक्रमों की घोषणा की: अफगानिस्तान पर एक उच्च स्तरीय बैठक; सशस्त्र संघर्ष के दौरान पकड़े गए बच्चों पर ध्यान केंद्रित करना; और साइबर सुरक्षा पर यूएनएससी की पहली आधिकारिक बैठक। एस्टोनिया ने संयुक्त राष्ट्र महासचिव के रूप में एंटोनियो गुटेरेस (डब्ल्यूईओजी के) के लिए दूसरे पांच वर्षीय कार्यकाल के दौरान संयुक्त राष्ट्र चार्टर के अनुच्छेद 97 के तहत संयुक्त राष्ट्र महासभा की प्रारंभिक यूएनएससी सिफारिश पर कार्रवाई को आगे बढ़ाने हेतु यूएनएससी की एक अलग बैठक बुलाने के लिए सक्रिय दृष्टिकोण अपनाया।
जून 2021 के दौरान, यूएनएससी ने सर्वसम्मति से 7 प्रस्तावों को अपनाया। ये प्रस्ताव लीबिया (3 जून का प्रस्ताव 2578) पर हथियारों के प्रतिबंध का उल्लंघन करने के संदेह में उच्च समुद्री इलाकों में जहाजों का निरीक्षण करने के अपने प्राधिकरण को बढ़ाने; सूडान/दक्षिण सूडान पर (3 जून का प्रस्ताव 2579); संयुक्त राष्ट्र महासचिव के रुप में एक और कार्यकाल की सिफारिश (8 जून का प्रस्ताव 2580) से संबंधित थे; और चार प्रस्तावों को 29 जून को स्वीकार किया गया। इसने सीरिया द्वारा इजरायल की अपनी सीमा पर नियोजित यूएनडीओएफ शांति सेना के जनादेश को 31 दिसंबर 2021 (प्रस्ताव 2581) तक बढ़ा दिया; हथियारों पर प्रतिबंध, यात्रा प्रतिबंध और डीआरसी पर संपत्ति जब्ती (संकल्प 2582) को 1 जुलाई 2022 तक बढ़ाया गया; 5 नवंबर 2021 को अंतरराष्ट्रीय न्यायालय में रिक्ति के लिए चुनाव की तिथि (प्रस्ताव 2583) निर्धारित की गई; और इसी तिथि को 24 मई 2021 (संकल्प 2584) के सैन्य तख्तापलट के बाद माली में स्थिति का जवाब देना तय किया गया। बुर्किना फासो (8 जून) में नागरिकों की हत्या और अफगानिस्तान में खदान मजदूरों की हत्या (11 जून) की निंदा करते हुए जून में दो सर्वसम्मत यूएनएससी प्रेस वक्तव्य जारी किए गए थे। भारत ने यूएनएससी के इन सभी सर्वसम्मत निर्णयों पर हुई बातचीत में सक्रिय रूप से भाग लिया।
एशियाई मुद्दे
विदेश मंत्री डॉ. एस जयशंकर ने अफगानिस्तान पर यूएनएससी की उच्च स्तरीय बैठक (22 जून) में हिस्सा लिया। बैठक का मुख्य विषय अगले कुछ महीनों के भीतर अफगानिस्तान से संयुक्त राज्य अमेरिका और नाटो सैनिकों की वापसी था। यूएनएसजी के विशेष प्रतिनिधि डेबोरा लियोन ने संयुक्त राज्य अमेरिका, रूस, चीन और पाकिस्तान के "विस्तारित तीन देशों के समूह" द्वारा बड़ी भूमिका निभाने की वकालत की। रूस ने इसका समर्थन किया। परिषद के शीघ्र विचार हेतु चीन ने महासचिव से देश में संयुक्त राष्ट्र की मौजूदगी के संदर्भ में विकल्पों का प्रस्ताव करने का अनुरोध किया। भारत ने कहा कि अफगानिस्तान में स्थायी शांति के लिए "दोहरी शांति" की जरुरत है, यानि अफगानिस्तान के भीतर और अफगानिस्तान के आसपास के क्षेत्रों में। भारत ने अफगान सरकार और तालिबान के बीच वार्ता सहित अंतर-अफगान वार्ता का समर्थन किया। भारत ने इस बात पर बल दिया कि अफगानिस्तान के इलाकों का इस्तेमाल आतंकवादी समूहों द्वारा किसी अन्य देश को धमकाने या हमला करने के लिए नहीं किया जाना चाहिए। भारत ने द्विपक्षीय व बहुपक्षीय पारगमन समझौतों के तहत अफगानिस्तान के पारगमन अधिकारों को लागू करके, अप्राकृतिक पारगमन बाधाओं को हटाने सहित, उच्च समुद्री इलाकों तक अफगानिस्तान की निर्बाध पहुंच के पक्ष में अपनी बात रखी।
यूएनएससी ने किसी परिणाम दस्तावेज़ के बिना म्यांमार पर एक "निजी बैठक" (18 जून) की। म्यांमार में संयुक्त राष्ट्र के विशेष दूत क्रिस्टीन बर्गेनर और आसियान अध्यक्ष ब्रुनेई के दूसरे विदेश मंत्री एरीवान युसूफ (जिन्होंने 4-5 जून को म्यांमार का दौरा किया था) ने परिषद को इससे जुड़ी जानकारी दी। बैठक के दौरान, चीन, वियतनाम और भारत ने कथित तौर पर म्यांमार में उपजे मौजूदा संकट को दूर करने में आसियान की केंद्रीय भूमिका का समर्थन किया। इसमें आसियान अध्यक्ष के विशेष दूत को म्यांमार के साथ किसी समझौते पर पहुंचने के लिए अधिक समय देना शामिल है, जो आसियान के पांच सूत्री प्रस्ताव को आगे रखेंगे।
तीन बैठकों के दौरान यूएनएससी में सीरिया पर भी गहन चर्चा हुई। सीरिया में रासायनिक हथियारों के कथित उपयोग (3 जून) पर संयुक्त राज्य अमेरिका, ब्रिटेन और फ्रांस ने यह कहा कि 25 मई 2021 को यूएनएससी में पेश की गई रासायनिक हथियार निषेध संगठन (ओपीसीडब्ल्यू) के महानिदेशक की रिपोर्ट को सीरिया के खिलाफ विशिष्ट यूएनएससी उपायों का आधार बनाया जाना चाहिए। रूस और चीन ने कहा कि ओपीसीडब्ल्यू रिपोर्ट में "निष्पक्षता" अपनाने की जररुत है। इस संदर्भ में भारत ने कहा कि ओपीसीडब्ल्यू रिपोर्ट "निष्पक्ष, विश्वसनीय एवं उद्देश्यपूर्ण होनी चाहिए, कन्वेंशन में निहित प्रावधानों व प्रक्रिया का ईमानदारी से पालन करना चाहिए, और किसी भी नतीजे पर पहुंचने और साक्ष्य-आधारित निष्कर्ष" के लिए इसमें निहित शक्ति और जिम्मेदारी के बीच संतुलन होना चाहिए। भारत ने सीरिया में रासायनिक हथियारों के आतंकवादियों के हाथों में पड़ने की संभावना पर फिर से चिंता व्यक्त की।
सीरिया में मानवीय स्थिति पर हुई बहस (23 जून) में, यूएनएससी के सदस्य देशों ने गृह युद्ध की वजह से विस्थापित हुए 11 मिलियन से अधिक सीरियाई लोगों को सीमा पार मानवीय सहायता पहुंचाने पर चर्चा की। भारत ने "सीरिया की संप्रभुता, स्वतंत्रता और क्षेत्रीय अखंडता" को बनाए रखते हुए "पूरे देश में सीरिया के सभी लोगों को बिना किसी भेदभाव, राजनीति, या शर्त के उन्नत और प्रभावी मानवीय सहायता" देने का आह्वान किया।
इस चर्चा में सीरिया में राजनीतिक स्थिति पर गठित परिषद ने भी अपने विचार सामने रखे, जिस पर संयुक्त राष्ट्र के विशेष दूत गीर पेडर्सन ने जोर देकर कहा कि मानवीय सहायता प्रदान करने हेतु पूरे देश में संघर्ष विराम का होना आवश्यक है। चीन और रूस ने अपने नागरिकों को मानवीय सहायता की आपूर्ति पर सीरियाई सरकार के नियंत्रण का पुरजोर समर्थन किया। भारत ने दोहराया कि "सीरियाई संघर्ष का हल सैन्य तरीके से नहीं हो सकता" और "संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के प्रस्ताव 2254 के अनुरूप सीरिया के नेतृत्व वाली और सीरिया के स्वामित्व वाली राजनीतिक प्रक्रिया को आगे बढ़ाने की अपनी प्रतिबद्धता दोहराई"। साथ ही, भारत ने तीन मुख्य समूहों को बातचीत हेतु तैयार करने के लिए अप्रैल 2021 में संयुक्त राष्ट्र के विशेष दूत के "ब्रिजिंग प्रस्ताव" पर समर्थन व्यक्त करते हुए, यह भी कहा कि "संयुक्त राष्ट्र की देखरेख में होने वाली संवैधानिक समिति की प्रक्रिया" से "सितंबर 2019 में इसकी स्थापना के बाद से" कुछ खास प्रगति नहीं हुई है।
यूएनएससी ने महीने के दौरान दो बार यमन की स्थिति पर विचार किया। ब्रिटेन ने "कलम-धारक" के रूप में 45 साल पुराने "एफएसओ सफर" जहाज के गैर-रखरखाव से संभावित पर्यावरणीय आपदा पर चर्चा (3 जून) शुरू की, जिसमें अनुमानित रुप से 1.15 मिलियन बैरल तेल यमन के मारिबगवर्न से पाइपलाइन द्वारा स्थानांतरित किया गया था। यूएनएससी को लिखे एक पत्र में, संयुक्त राष्ट्र महासचिव ने यमन के लाल सागर बंदरगाहों के कामकाज को सुनिश्चित करने हेतु हुदायदाह समझौते (यूएनएमएचए) का समर्थन करने के लिए दो साल पुराने संयुक्त राष्ट्र के विशेष राजनीतिक मिशन को बनाये रखने पर बल दिया। भारत के सेवानिवृत्त लेफ्टिनेंट जनरल अभिजीत गुहा यूएनएमएचए का नेतृत्व करते हैं।
एक ब्रीफिंग (15 जून) के दौरान, संयुक्त राष्ट्र के विशेष दूत मार्टिन ग्रिफिथ्स ने मई के अंत और जून की शुरुआत में ओमान (हौथिस से मिलने के लिए) और ईरान के दौरे के बाद बताया कि युद्धविराम और राजनीतिक प्रक्रिया की शुरुआत में असहमति की मुख्य वजह हुदायदाह बंदरगाहों और सना हवाई अड्डे पर स्टैंड-अलोन समझौते के लिए अंसार अल्लाह समूह की एकतरफा मांग, और यमन सरकार द्वारा संयुक्त राष्ट्र, संयुक्त राज्य अमेरिका, सऊदी अरब और ओमान की सहायता से सामूहिक समाधान पर जोर देना है। चीन ने यमन में खाड़ी देशों की भूमिका का समर्थन किया। भारत ने "इस क्षेत्र में स्थित देशों" से यमनी को लड़ाई रोकने तथा शांति व सुलह के लिए हस्तक्षेप करने का आग्रह किया। भारत ने कहा कि लगातार हो रही हिंसा और आतंकवाद से लाल सागर और अदन की खाड़ी (जो भारत के लिए संचार के समुद्री मार्गों को नियंत्रित करता है) से गुजरने वाले वाणिज्यिक जहाजों को निशाना बनाया जा सकता है।
यूएनएससी ने जुलाई 2015 की संयुक्त व्यापक कार्य योजना (जेसीपीओए) का समर्थन करते हुए यूएनएससी प्रस्ताव 2231 के तहत ईरान (30 जून) पर अपनी अर्ध-वार्षिक ब्रीफिंग आयोजित की। संयुक्त राष्ट्र की अवर महासचिव रोज़मेरी डिकार्लो ने यूएनएससी प्रस्ताव 2231 को लागू करने हेतु "आवश्यक कदम" के रूप में संयुक्त राज्य अमेरिका से ईरान के खिलाफ अपने प्रतिबंधों को हटाने या माफ करने का आह्वान किया। फ्रांस और यूके ईरान के बैलिस्टिक मिसाइल कार्यक्रम से निपटना चाहते थे, और संयुक्त राज्य अमेरिका ने कहा कि 2006 के यूएनएससी प्रस्ताव 1701 और 2015 के 2215 यूएनएससी प्रस्ताव के तहत हिजबुल्लाह और हौथिस को ईरान के समर्थन की अनुमति नहीं थी। रूस ने अमेरिका की इस बात को खारिज कर दिया, जबकि चीन ने कहा कि अमेरिका को "बिना शर्त" जेसीपीओए में पुनः शामिल हो जाना चाहिए। भारत ने उन पक्षों को मदद करने की तत्परता व्यक्त की "जो परिषद के प्रस्ताव 2231 के तहत अपने दायित्वों का पालन" करने के लिए तैयार है।
मध्य पूर्व और फिलिस्तीन (24 जून) पर यूएनएससी की मासिक बैठक 21 जून को संयुक्त राष्ट्र के विशेष दूत टोर वेनेसलैंड और हमास नेता याह्या सिनवार के बीच हुई बैठक के बाद आयोजित हुई। संयुक्त राष्ट्र के विशेष दूत ने इजरायल और हमास के बीच हाल में हुए युद्धविराम के नाजुक हालत की बात की और पूरी शांति प्रक्रिया पर कब्जे वाले फिलिस्तीनी क्षेत्रों में इजरायली बस्तियों को बनाये रखने के नकारात्मक प्रभाव पर बल दिया। भारत ने इस बात पर बल दिया कि इजरायल-फिलिस्तीन संघर्ष के शांतिपूर्ण हल के लिए फिलिस्तीन के अंदर एकजुटता महत्वपूर्ण है। बातचीत को फिर से शुरू करने और शांति प्रक्रिया को सरल बनाने के लिए चारों देशों सहित सभी राजनयिक प्रयासों का समर्थन करते हुए, भारत ने कहा कि सार्थक व स्थायी शांति के लिए दो-स्थिति वाले हल का कोई विकल्प नहीं है।
अफ्रीकी मुद्दे
मध्य अफ्रीकी क्षेत्र की स्थिति यूएनएससी (7 जून) के एजेंडे में शामिल रही। यूएनएससी के सदस्यों ने मध्य अफ्रीकी गणराज्य (सीएआर), कैमरून, चाड, गैबॉन और कांगो गणराज्य में हुए चुनावों के सकारात्मक प्रभाव पर संतोष व्यक्त किया, लेकिन मध्य अफ्रीकी राज्यों की सुरक्षा व स्थिरता पर बोको हराम द्वारा उत्पन्न आतंकवाद के निरंतर खतरे पर प्रकाश डाला। इस दौरान, चीन ने इस बात पर जोर दिया कि शांति और सुरक्षा के क्षेत्रीय प्रयासों को परिषद की ओर से दी जा रही किसी भी समर्थन में मध्य अफ्रीकी राज्यों की संप्रभुता को बरकरार रखा जाना चाहिए। भारत ने बोको हराम का मुकाबला करने में अफ्रीकी संघ (एयू) की भूमिका को बढ़ाने हेतु नाइजर, केन्या, ट्यूनीशिया और सेंट विंसेंट और ग्रेनेडाइंस के ए3+1 समूह के आह्वान का समर्थन किया। गिनी की खाड़ी में समुद्री डकैती की बढ़ती घटनाओं पर भारत ने चिंता व्यक्त की, जिसने इस क्षेत्र में भारतीय नाविकों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा है और कहा कि अंतर्राष्ट्रीय सहयोग के ज़रिए इसका मुकाबला करने की जरुरत है।
सीएआर और एमआईएनयूएससीए शांति मिशन पर यूएनएससी की बैठक (23 जून) में सीएआर में रूसी प्रशिक्षकों/सलाहकारों द्वारा मानवाधिकारों के कथित उल्लंघन पर संयुक्त राज्य और रूस के बीच मतभेद नज़र आये। रूस ने कहा कि सीएआर में उसके प्रशिक्षकों को यूएनएससी की पूरी जानकारी थी और सीएआर पर यूएनएससी हथियार प्रतिबंध हटाने के आह्वान में चीन का समर्थन किया। संयुक्त राज्य अमेरिका, ब्रिटेन और फ्रांस ने कहा कि सुरक्षा खतरों का मुकाबला करने के लिए सीएआर को हथियारों की पहुंच की अनुमति देने हेतु यूएनएससी हथियार प्रतिबंध में पर्याप्त "छूट" के प्रावधान हैं। भारत ने कहा कि यूएन, एयू, ईसीसीएएस (मध्य अफ्रीकी राज्यों का आर्थिक समुदाय) और आईसीजीएलआर (इंटरनेशनल कॉफ्रेंस ऑफ ग्रेट लेक्स रीजन) को सकारात्मक भूमिका निभानी चाहिए; जिसमें से एक भूमिका फरवरी 2022 तक अपेक्षित स्थानीय चुनाव कराने के लिए सीएआर में राजनीतिक हितधारक के रूप में है।
ब्रिटेन द्वारा "कलम-धारक" के रूप में तैयार किए गए प्रस्ताव 2579 को सर्वसम्मति से अपनाते (3 जून) हुए, यूएनएससी ने सूडान में राजनीतिक संक्रमण का समर्थन करने वाले संयुक्त राष्ट्र मिशन (यूएनआईटीएएमएस) के जनादेश को बढ़ाया। प्रस्ताव पर बातचीत के दौरान, संयुक्त राज्य अमेरिका ने स्थायी विकास को शांति व सुरक्षा से जोड़ने वाले किसी भी तरह के संदर्भ का विरोध किया, जबकि रूस और चीन ने जलवायु परिवर्तन को यूएनआईटीएएमएस की प्राथमिकता बनाने से इनकार कर दिया। सूडान और अंतर्राष्ट्रीय आपराधिक न्यायालय के बीच सहयोग पर विचार करने हेतु आयोजित की गई एक बैठक (9 जून) में, यूएनएससी के डब्ल्यूईओजी सदस्यों ने सूडान को कथित युद्ध अपराधियों को न्यायालय को सौंपने के लिए कहा। चीन, रूस, वियतनाम और भारत ने इस संदर्भ में कहा कि सूडान, जो आईसीसी में शामिल नहीं था, को अपने राष्ट्रीय कानूनों को लागू करके न्याय व्यवस्था में तेजी लानी चाहिए।
यूएनएससी ने दक्षिण सूडान की स्थिति पर चर्चा (21 जून) की। संयुक्त राज्य अमेरिका ने कहा कि राजनीतिक परिवर्तन को सरल बनाने के लिए यूएनएससी प्रतिबंधों में पर्याप्त "छूट" के प्रावधान किए गए हैं, जबकि चीन तथा वियतनाम ने इन प्रतिबंधों को हटाने का आह्वान किया। भारत ने यूएनएमआईएसएस में अपने संयुक्त राष्ट्र शांति सैनिकों के महत्वपूर्ण योगदान पर प्रकाश डाला, जिनमें से 135 को दक्षिण सूडान में शांति व सुरक्षा में उनके योगदान हेतु पदक देकर सम्मानित किया गया था। भारत ने कहा कि शांति को लेकर दक्षिण सूडानी नेतृत्व की प्रतिबद्धता का पालन सेना की एकीकृत कमान की शीघ्र स्थापना और आवश्यक एकीकृत बलों के प्रशिक्षण द्वारा किया जाना चाहिए, जो 2018 के पुनरोद्धार शांति समझौते का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है।
माली में मौजूदा स्थिति पर परिषद ने दो बैठकें (14 और 29 जून) कीं। माली पर संयुक्त राष्ट्र महासचिव के पत्र (1 जून) में इस बात पर चिंता व्यक्त की गई कि हाल के सैन्य तख्तापलट से फरवरी 2022 तक पूरा होने वाली राजनीतिक संक्रमण प्रक्रिया पटरी से उतर गई है और माली व अफ्रीकी संघ (साथ ही फ्रांस) के बीच सहयोग में रुकावट आई है। संयुक्त राष्ट्र ने माली में राजनीतिक समाधान के परिषद के प्रयासों के लिए एमआईएनयूएसएमए शांति अभियान की महत्वपूर्ण भूमिका पर बल दिया।
फ्रांस ने माली और एमआईएनयूएसएमए पर "कलम-धारक" के रूप में यूएनएससी प्रस्ताव 2584 का मसौदा तैयार किया, जिसे संयुक्त राज्य अमेरिका (जो सतत विकास के मुद्दों के किसी भी संदर्भ का विरोध करता है), रूस, चीन (दोनों जलवायु परिवर्तन को प्राथमिकताओं के रूप में शामिल करने के प्रयास के विरोधी हैं), यूके और भारत की सक्रिय भागीदारी के तहत सर्वसम्मति से (29 जून) अपनाया गया था। भारत ने माली में सैन्य तख्तापलट की निंदा करने वाले अफ्रीकी संघ और क्षेत्रीय ईसीओडब्ल्यूएएस समूह की नीति का समर्थन किया। भारत ने प्रस्ताव के अनुच्छेद 46 की आलोचना की, जिसे आतंकवाद का मुकाबला करने में एमआईएनयूएसएमए की भूमिका के लिए आलोचनात्मक माना जाता था। भारत ने दोहराया कि "आतंकवादियों और चरमपंथी सशस्त्र समूहों से लड़ने की प्राथमिक जिम्मेदारी माली के रक्षा एवं सुरक्षा बलों की है" जबकि एमआईएनयूएसएमए शांति सैनिकों को शांति समझौते को लागू करने हेतु केवल माली की सेना का समर्थन करना है।
संयुक्त राज्य अमेरिका द्वारा सामने रखे गए इथियोपिया के टाइग्रे प्रांत की स्थिति पर यूएनएससी की एक अनौपचारिक इंटरएक्टिव डायलॉग बैठक में ए3 + 1, चीन और रूस की सहमति से विचार (15 जून) किया गया। इस बातचीत का मुख्य विषय संघर्ष के कारण इस क्षेत्र में बढ़ते मानवीय संकट और इथियोपिया द्वारा बातचीत के जरिए युद्धविराम के माध्यम से संकट को कम करने का प्रयास था। भारत ने इथियोपिया के प्रयासों का समर्थन किया।
विषयगत मुद्दे
संयुक्त राष्ट्र और यूरोपीय संघ के बीच संबंधों पर यूएनएससी की बहस (10 जून) यूरोपीय संघ के "सहमत नियमों के आधार पर वैश्विक सहयोग" के एजेंडे पर केंद्रित थी। रूस ने कहा कि यूरोपीय संघ की गतिविधियां यूएनएससी द्वारा दिए गए जनादेश से परे नहीं होनी चाहिए। चीन ने कहा कि यूरोपीय संघ को "बहुपक्षवाद के मॉडल" के रूप में मानवाधिकारों पर राष्ट्रीय संप्रभुता का सम्मान करना चाहिए। भारत-यूरोपीय संघ के नेताओं की बैठक (8 मई 2021) के दौरान घोषित भारत-यूरोपीय संघ रणनीतिक साझेदारी और पहल के संदर्भ में भारत ने वैश्विक शांति व सुरक्षा चुनौतियों के साथ-साथ विकासात्मक प्रयासों को गति देने में यूरोपीय संघ को "संयुक्त राष्ट्र का एक स्वाभाविक भागीदार" कहा।
यूएनएससी कार्रवाई प्रक्रियाओं पर खुली बहस (16 जून) में, रूस ने "कलम-धारक" प्रणाली की प्रभावशीलता पर सवाल उठाते हुए, यूएनएससी को अपने एजेंडे विषयगत मुद्दों को लाने के लिए आगाह किया जो संयुक्त राष्ट्र के अन्य अंगों जैसे यूएनजीए व ईसीओएसओसी के दायरे में थे। चीन ने वोट के बिना परिषद द्वारा सर्वसम्मति के निर्णयों को अपनाने की आवश्यकता पर प्रकाश डाला। केन्या ने 10 निर्वाचित सदस्यों की ओर से (भारत सहित, जिन्होंने बात नहीं की) ने यूएनएससी की गैर-प्रतिनिधि संरचना और वीटो शक्ति के "डरावने प्रभाव" पर प्रकाश डाला, और सामूहिक अत्याचारों का जवाब देने वाली कार्रवाइयों पर वीटो का इस्तेमाल संयम से करने का आह्वान किया। फ्रांस ने वीटो के इस्तेमाल पर इस तरह की सीमा का समर्थन किया।
बच्चों और सशस्त्र संघर्ष के विषय पर संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की उच्च स्तरीय बहस (28 जून) में, संयुक्त राष्ट्र महासचिव ने बताया कि संघर्ष की स्थितियों में बच्चों के खिलाफ सबसे अधिक उल्लंघन सोमालिया, डीआरसी, अफगानिस्तान और सीरिया में हुए - जिसमें 2020 में दर्ज किए गए 23,946 उल्लंघनों में से 60 प्रतिशत हिस्सा इन्हीं क्षेत्रों से है। यूएनएससी ने बच्चों की भर्ती व उपयोग; हत्या व अपंगता; अपहरण; बलात्कार व यौन हिंसा के अन्य रूप; स्कूलों तथा अस्पतालों पर हमले; और मानवीय पहुंच से इनकार करने से संबंधित प्रतिक्रिया पर 13 प्रस्तावों को अपनाया था। विदेश सचिव हर्ष वी. श्रृंगला ने भारत की स्थिति को फिर से दोहराते हुए कहा कि बाल अधिकारों पर कन्वेंशन द्वारा तय अनुसार बच्चों के अधिकारों की रक्षा करने की प्राथमिक जिम्मेदारी देश की सरकारों की है और और संयुक्त राष्ट्र के सदस्य-राज्यों से कन्वेंशन के वैकल्पिक प्रोटोकॉल की पुष्टि करने का आह्वान किया। भारत ने इस क्षेत्र में अपने अनुभव के आधार पर संयुक्त राष्ट्र शांति मिशन में बाल संरक्षण सलाहकारों को तैनात करने की सिफारिश की।
साइबर सुरक्षा पर यूएनएससी की पहली औपचारिक बैठक (29 जून) एस्टोनिया द्वारा आयोजित की गई थी, जो तेलिन में नाटो से संबद्ध सहकारी रक्षा केंद्र की भी मेजबानी करता है। डब्ल्यूईओजी समूह के यूएनएससी सदस्यों ने साइबरस्पेस में देशों से जिम्मेदारीपूर्ण व्यवहार करने के महत्व पर बल दिया और कहा कि साइबरस्पेस अंतर्राष्ट्रीय कानून के अंतर्गत आता है, जिसमें संयुक्त राष्ट्र का चार्टर और राज्य की संप्रभुता का सिद्धांत शामिल है। चीन ने इस दौरान कहा कि सभी देश संयुक्त राष्ट्र की छत्रछाया में एक ओपन साइबर सुरक्षा ढांचा तैयार करें और उन नियमों को अपनाएं जो आम तौर पर सभी राज्यों द्वारा स्वीकार किए जाते हैं। रूस ने कहा कि संयुक्त राष्ट्र महासभा में सभी सदस्य देशों को साइबर सुरक्षा के मुद्दों पर चर्चा करनी चाहिए। वियतनाम और नाइजर ने एक अंतरराष्ट्रीय ढांचे बनाने का आह्वान किया जो साइबर स्पेस को विनियमित करने हेतु नियम तय मानदंड तय करे। भारत के विदेश सचिव हर्ष वी. श्रृंगला ने कहा कि साइबरस्पेस ने संप्रभुता, अधिकार क्षेत्र और गोपनीयता की अवधारणाओं को चुनौती दी है, जो सदस्य-राज्यों के सामने कई तरह की चुनौतियां लाते हैं। भारत ने आतंकवादियों द्वारा साइबर डोमेन का इस्तेमाल करने का अधिक रणनीतिक रूप से जवाब देने का आह्वान किया था। राज्य और गैर-राज्य कारकों द्वारा पेश की गई चुनौतियों का सामना करने के लिए आईसीटी उत्पादों की अखंडता और सुरक्षा को बनाए रखने की तत्काल जरुरत है। अंतर्राष्ट्रीय सहयोग को प्रभावी बनाने के लिए बहु-हितधारकों की भागीदारी की आवश्यकता है ताकि साइबरस्पेस नवोन्मेष, आर्थिक विकास, सतत विकास का इंजन बन सके, और सूचना का मुक्त प्रवाह हो सके और सांस्कृतिक व भाषाई विविधता का सम्मान हो सके।
अन्य मुद्दे
एनएससी ने हैती की स्थिति पर चर्चा करने हेतु बैठकें (17 जून) कीं, जिसके दौरान भारत ने राजनीतिक गतिरोध पर चिंता व्यक्त की, जो फरवरी 2022 तक सत्ता के लोकतांत्रिक हस्तांतरण में रुकावट डाल सकता है। अंतर्राष्ट्रीय आपराधिक न्यायाधिकरण अवशिष्ट तंत्र (आईआरएमसीटी) पर यूएनएससी की बैठक (8 जून) में भाग लेते हुए भारत ने न्यायाधिकरण को न्याय, निष्पक्षता व न्यायसंगति के सिद्धांतों को बनाए रखने और सदस्य-राज्यों के राष्ट्रीय न्यायिक प्राधिकरणों की क्षमता बढ़ाने में योगदान करने की सिफारिश की। बॉस्निया और हर्जेगोविना पर यूएनएससी की बैठक (29 जून) में, भारत ने समानता व आपसी सम्मान, समझौता और आम सहमति के आधार पर पक्षों के बीच बातचीत के ज़रिए अंतर-जातीय संघर्षों का हल करने का आह्वान किया।
इस महीने के दौरान यूएनएससी में भारत की भागीदारी ने एशिया और अफ्रीका के मौजूदा राजनीतिक संकटों से उत्पन्न आतंकवाद के खतरे पर बल दिया। इस दृष्टिकोण पर संयुक्त राष्ट्र महासभा के सर्वसम्मत समझौते के बावजूद, कुछ स्थायी सदस्यों द्वारा संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद को शांति, सुरक्षा व विकास के लिए समग्र दृष्टिकोण अपनाने में भारत की रुचि की अवहेलना की जा रही है।
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