आज राजनयिक, महिला हो या पुरुष, हमलोग न केवल कूटनीति के कौशल शिल्प का अभ्यास करने के लिए कार्य करते हैं, बल्कि हम सॉफ्ट पावर अथवा बेहतर शब्द में स्मार्ट पावर के अभ्यास के अलावा राष्ट्रीय सुरक्षा, रक्षा, व्यापार और विकास से संबंधित मामलों से चिंतित होते हैं। यह आज विदेश नीति का जीवन चक्र है। परन्तु लैंगिक विषय की ओर मुड़ते हुए, अपने पारंपरिक रूप तथा संरचना में, विदेश नीति ने महिलाओं और बच्चों पर अपने कामकाज के प्रभाव के लिए अधिक ध्यान केंद्रित अथवा ध्यान सुसंगत तरीके से समर्पित नहीं किया है । जबकि एक देश के रूप में, भारत में, हमने सैन्य बल द्वारा राजनयिक समाधानों को प्राथमिकता दी है, हमने नीतिगत अवधारणा में महिलाओं, शांति तथा सुरक्षा के प्रश्नों पर क्या ध्यान दिया है तथा क्या पारंपरिक रूप से नजरअंदाज किए गए लोगों को आवाज दी गई है? हमें संयुक्त राष्ट्र शांति सुरक्षा दल में महिलाओं के योगदान पर गर्व है तथा यह सही है, परन्तु हमारी विदेश नीति में लैंगिक संवेदनशीलता के पूरे परिदृश्य में अभी भी मूल्य का संचार किया जाना है, विशेष रूप से इसलिए कि हमारी कूटनीतिक ताकत में अधिक महिलाएं जुड़ती हैं तथा वे राष्ट्र की विदेश सेवा में प्रमुख जिम्मेदारियां निभाती हैं।
महिलाओं को कूटनीति की आदत होती है-यह हमारे जीन में है। अरस्तोफानेज़ की कॉमेडी, लाइसिएट्रेट (400 ईसा पूर्व) तीन अलग-अलग शहरों की महिलाओं के बारे में है जो युद्ध और शांति के मामलों में पुरुषों की सफलता की कमी से निराश हैं, पेलोपोनेशियन युद्ध को समाप्त करने के लिए खुद को व्यवस्थित करते हैं। इन महिलाओं के असाधारण राजनयिक क्षमता को चित्रित करने के लिए इस्तेमाल किया गया रूपक अरस्तोफानेज़ था, जिन्होंने समाज को साथ लाकर, शांति बातचीत की तथा राष्ट्र के ताने-बाने को बुना। [1] एक आदर्श विश्व में स्त्रीओं के इन सहज गुणों की मान्यता प्राप्त होगी। लेकिन जीवन सत्य से दूर है तथा अपरिहार्य वास्तविकता यह है कि पुरुषों, जैसा कि कहा गया है, हम महिलायें जीवन के चरखों पर कूटनीति के कपड़े बुनते है तथा पुरुष मस्ल, मीडिया तथा मनी से समर्थन प्राप्त करते हैं। समानता का संयोजन जिसकी हमें जरूरत है, सभी के लिए समानता, पुरुषों तथा महिलाओं के गुण को साझा करना हमारा लक्ष्य होना चाहिए।
पुरे विश्व भर में विदेश नीति लैंगिक परिदृश्य में विवेकशून्य है। परन्तु परिदृश्य बदल रहा है। 2014 में, स्वीडन ऐसा पहला राष्ट्र हुआ जो मुखर रूप से नारीवादी विदेश नीति के साथ सामने आयी है जिसमे इस तरह की नीति में अंतरराष्ट्रीय राजनीति में महिलाओं के अधिक प्रतिनिधित्व पर ध्यान केंद्रित होगा, महिलाओं के लिए संसाधनों के लिए समान पहुंच तथा यह महिलाओं के अधिकारों का सम्मान तथा लैंगिक समानता पर केंद्रित होगा, यह जोसेफ न्य के "स्मार्ट पावर के विचार पर आधारित है। इसका उद्देश्य आधी आबादी को शामिल करना था जिसे अब तक लगभग व्यवस्थित रूप से बाहर रखा गया है तथा भुला दिया गया है-अर्थात् महिलाएं । तब से फ्रांस, कनाडा, मैक्सिको तथा नीदरलैंड जैसे कुछ अन्य देश रहे हैं जो इस विचार के अपने पुनरावृत्तियों के साथ बाहर आए हैं।
नारीवादी विदेश नीति में यह कहा जाता है, समाज के कमजोर तथा कम प्रतिनिधित्व वर्गों के दृष्टिकोण से शांति, सुरक्षा, आर्थिक हित तथा विकास के सवालों के लिए एक चौतरफा दृष्टिकोण अपनाता है। यह देखते हुए कि राष्ट्रीय स्तर पर, हमारी सरकार की नीति हमारी महिला आबादी, उनके स्वास्थ्य, शिक्षा, आजीविका तथा प्रमुख राष्ट्रीय संस्थानों में उनकी गतिशीलता तथा प्रतिनिधित्व के कारण तथा कल्याण कार्यक्रमों को आगे बढ़ाने की है, हमारे वैश्विक दृष्टिकोण तथा हमारी विदेश नीति की परिभाषा में इन बुनियादी मूल्यों को व्यक्त करने में हमारे तरफ से कोई अवरोध नहीं होना चाहिए। उदाहरण के लिए, सरकार वैश्विक महिला मुद्दों के लिए एक महिला राजदूत की नियुक्ति पर विचार कर सकती है (जैसा कि ओबामा प्रशासन ने मेलने वेरवीर को नियुक्त करके किया था) अथवा विदेश नीति में महिलाओं पर नीति नियोजन के लिए एक कार्यालय बना सकता है जो नीति निर्माण में महिलाओं के प्रतिनिधित्व के पूरे पहलु को देखेगा, यह सुनिश्चित करना कि महिलाओं के मुद्दों, समावेशन तथा विविधता को हमारी विकास कूटनीति में जगह मिले , आपदा प्रबंधन, मानवीय सहायता, तथा व्यापार, शिक्षा और स्वास्थ्य में क्षेत्रीय सहयोग में भी, साथ ही संघर्ष की रोकथाम और शांति कायम करने में महिलाओं के लिए एक आवाज सुनिश्चित किया जाना चाहिए।
भारत की संस्थापक ' माताओं ' में से एक, जैसा कि मैं उन्हें बुलाना चाहूँगी, कमलादेवी चट्टोपाध्याय ने पुरुष तथा महिला को सड़क के कामरेड के रूप में देखा, जो एक साथ आगे बढ़ रहे हैं, यह इस सप्ताह के लिए व्यक्त करने के लिए एक अद्भुत छवि है जब हम अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस मना रहें हैं। उनका विश्व-दृष्टिकोण इस बोध में आधारित था कि भारत की महिलाओं को विशेष रूप से एक वैश्विक दृष्टिकोण प्रदान करना होगा जो शालीनता, शांति तथा प्रसन्नता के आधार पर सहकारी विश्व व्यवस्था की ओर संकीर्णता से परे चलता है। बेशक, पुरुष अथवा महिला होने का कोई प्रश्न नहीं है, जैसा कि विजया लक्ष्मी पंडित ने एक बार कहा था, पुरुष तथा महिला अपने कर्तव्य के साथ विश्व मामलों में अपना स्थान लेते हैं। नारीवादी दोनों में कोई भी हो सकता हैं।
हाल ही में कहा गया था की नारीवाद हमें सत्ता के तरफ, सत्ता में बैठे लोग तथा सत्ता तक महिलाओं की पहुँच को रोकने वालों लोगों के तरफ समग्र रूप से देखने की आवश्यकता है तथा यह लैंगिक समानता के बारे में प्रश्न से भी बड़ा हो सकता है, यह समानता का सवाल है, ऐतिहासिक रूप से हाशिए पर रहे हैं तथा संघर्ष करते रहे हैं। हमें एक प्रणालीगत लेंस की आवश्यकता है जिसके माध्यम से हम ऐसी जरूरतों से निपट सकें।
कूटनीति लैंगिक रूप से तटस्थ हो सकती है, परन्तु यह लैंगिक रूप से कभी विवेकशून्य नहीं हो सकती-इसे मध्य मार्ग पर ध्यान केंद्रित करना होगा, युद्ध अधिरोहण करने के लिए शांति प्राप्त करनी होगी, कुशल बातचीत पर जोर देना, विविधता को गले लगाना तथा पदानुक्रम और नायकत्व की पुरानी अवधारणाओं को दूर करना होगा। जब हम कहते है कि कूटनीति को लैंगिक रूप से तटस्थ होना चाहिए हमारा मतलब है कि यह मुद्दों के बारे में होना चाहिए कि मानव कल्याण चिंता का विषय है, महिलाओं के साथ इस दृष्टिकोण का एक अविभाज्य घटक के रूप में। महिलाओं की आवाज को कूटनीति के एजेंडा तथा परिणामों में समावेशित होना चाहिए, और इसलिए महिलाओं को एजेंसी में शीर्ष पर होना चाहिए तथा खुद को और अधिक प्रभावी ढंग से सुना जाना चाहिए- विशेष रूप से युद्ध तथा संघर्ष में बिखरे समाज में पुनर्निर्माण के मुद्दों पर, एक अफगान महिला ने एक बार कहा, "हम विनाश के लिए जिंमेदार नहीं हैं, लेकिन हम पुनर्निर्माण के लिए जिंमेदार होना चाहिए." इसलिए, नारीवादी (अथवा लैंगिक रूप से संवेदनशील) विदेश नीति वह है जो संघर्ष के समाधान, कूटनीति तथा व्यापार, सुरक्षा तथा हित के लिए राजनीतिक बातचीत पर केंद्रित है, बहुपक्षीयता पर जोर दिया जाना चाहिए, समावेशी तथा प्रतिच्छेदित किया जाना चाहिए तथा सिविल सोसाइटी संस्थाओं और स्थानीय समुदायों में निहित होना चाहिए। महिलाओं को बातचीत की मेज पर बैठना चाहिए, निर्णय लेने में भाग लेना चाहिए जिसमें हमारे समाजों का भविष्य शामिल है। हमें सैन्य समाधान के जगह राजनयिक समाधानों को प्राथमिकता देनी चाहिए। उदाहरण के लिए, क्या हमने महिलाओं और बच्चों पर परमाणु हथियारों के इस्तेमाल के प्रभाव पर विचार किया है? क्या कूटनीति और विदेश नीति में हमारी आपदा प्रबंधन पहुंच में महिलाओं तथा बच्चों पर पड़ने वाले प्रभाव और उन्हें होने वाले लाभों से संबंधित एक महत्वपूर्ण घटक है? क्या जलवायु परिवर्तन पर हमारी नीति मनुष्यों की इस श्रेणी के प्रति संवेदनशील है? हमारी विदेश नीति के रूप में यह विकासशील राष्ट्रों से संबंधित इन चिंताओं पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए।
विदेश नीति में नारीवाद हमें उन तरीकों के बारे में अधिक विचारशील बनाना चाहिए जिनमें हम ऐसे मामलों का रुख करते हैं, इसे शांति और विकास के मामलों में नीति निर्माण में स्त्री मूल्यों को एकीकृत करना चाहिए। अंतरराष्ट्रीय नियम के लिए सम्मान को रेखांकित करना चाहिए। क्या पी-5 के कुछ देशों ने महिलाओं और बच्चों पर अपने विरोधियों पर अपने प्रतिबंधों के प्रभाव पर विचार किया है-ईरान परमाणु प्रतिबंधों का उदाहरण लें? अक्सर इन फैसलों का असर महसूस करने वाला कौन है, इसकी अनदेखी की जाती है। नीति निर्माताओं को इन मुद्दों पर सिविल सोसाइटी का संवाद सुनना चाहिए ।
आज, महिलाओं पर वर्ष भर के कोविड-19 महामारी का प्रभाव विशेष चिंता का विषय होना चाहिए, जिसमें घरेलू हिंसा का मुद्दा शामिल है-तथाकथित महामारी की छाया विश्व भर में लाखों महिलाओं को प्रभावित कर रही है। जैसा कि इसाबेल एलेंडे ने हाल ही में कहा था, महिलाओं के खिलाफ आक्रामकता तथा हिंसा को महिला के मानवाधिकारों का उल्लंघन क्यों नहीं माना जाता?
अमेरिका के हवाई राज्य ने हाल ही में महामारी से निपटने के लिए, जो की नीतिगत प्रतिक्रिया के केंद्र में महिलाओं के लिए एक नारीवादी पुन:प्राप्ति योजना की शुरुआत की । इसे "पिछे से न जाये, पूल बनाए" कार्यक्रम कहा जाता है। हमें जल, सफाई, स्वच्छता, आवास, जेंडर डिजिटल डिवाइड, पर्यावरण संबंधी चिंताएं, रोजगार में असमानता, मजदूरी, जीवन की गुणवत्ता जैसे मुद्दों का समाधान करना होगा। जब कूटनीति विकास पर केंद्रित होती है, तो ये ऐसे मुद्दे हैं जिन्हें हमारे नीति निर्माताओं को ध्यान केंद्रित करना चाहिए, क्योंकि वे महिलाओं तथा पूरे समाज को लाभ पहुंचाते हैं। इसलिए, महामारी के प्रभावों पर काबू पाने के लिए हमारे दृष्टिकोण में एक चौतरफा विश्लेषण की आवश्यकता है। जहाँ प्रत्येक अनुभाग में अवसरों के लिए समान पहुंच के लिए एक महिला होना चाहिए। अमेरिका की उप-राष्ट्रपति कमला हैरिस ने हाल ही में राष्ट्रीय आपातकाल के रूप में महामारी के दौरान कार्यबल से महिलाओं के बड़े पैमाने पर पलायन की बात कही थी। उन्होंने कहा, "महामारी ने महिला कामगारों के लिए एक तूफान ले आया है। क्या हमने देश में तथा अपने क्षेत्र में महिलाओं पर महामारी के प्रभाव का आकलन किया है?
जहां महिलाएं नेतृत्व कर रहीं हैं, वहां महामारी में प्रतिक्रियाएं सबसे ज्यादा प्रसन्नता तथा प्रभावशालीता ला रही हैं। न्यूजीलैंड की जेसिंडा आर्डरर्न तथा ताइवान के त्साई इंग-वेन के उदाहरण इस संबंध में उद्धृत किए जा सकते हैं। यह कहा जाता है कि पुरुषों के ऐसे कई उदाहरण है जहाँ महिलाओं को संकट के समय में पुरूषों द्वारा पद त्यागकर नेतृत्व करने के लिए नियुक्त किया जाता है- महिलाओं को अव्यवस्था से निपटने के लिए छोड़ दिया जाता है- जैसे ब्रिटेन में थेरेसा मे का ब्रेक्सिट के दौरान पद संभालना। वे इसे ग्लास क्लिफ कहते हैं - महिलाओं को जिम्मेदारी के पदों पर नियुक्त किया जाना जब विफलता की संभावना सबसे अधिक होती है। उम्मीदों के विपरीत, ऐसी स्थितियों में कई महिलाओं ने दिखाया है कि ग्लास क्लिफ कोई बाधा नहीं है तथा यह ऐसा हथियार भी साबित होता है की इससे ग्लास सिलिंग की अवधारणा को भी दूर किया जा सकता है!
शांति प्रक्रियाओं में महिलाओं को शामिल करना तथा उन्हें इस कार्य में लाने का प्रयोजन होना चाहिए। यदि आधी आबादी को बाहर रखा जाता है तो हम शांति कैसे ला रहे हैं? नीति निर्माताओं के लिए एक इनपुट के रूप में संघर्ष को रोकने और शांति के निर्माण के लिए हमारे अनुसंधान आधार को इस महत्वपूर्ण क्षेत्र में लैंगिक समानता तथा महिलाओं की भूमिका को देखना चाहिए। शायद इससे हमें संघर्ष को हल करने के एकमात्र तरीके के रूप में कठोर शक्ति की धारणा को चुनौती देने में भी मदद मिलेगी, कि हम शांति लाने के साधन के रूप में कूटनीति, व्यापार, समावेश के साधनों का भी उपयोग कर सकते हैं, तथा इस तथ्य की दृष्टि कभी न खोने दें कि जब हम सुरक्षा के बारे में सोचते हैं तो हमें सम्पूर्ण मानव सुरक्षा के बारे में भी सोचना चाहिए। हमें इस तथ्य के प्रति सचेत रहना चाहिए कि हम जो भी नीति बनाते हैं, वह पुरुषों तथा महिलाओं को अलग-अलग प्रभावित करती है। हमें अपने मन को अपने द्वारा लिए जाने वाले प्रत्येक नीतिगत निर्णय के लैंगिक प्रभाव को देखने के लिए प्रशिक्षित करना चाहिए। इसके लिए यह आवश्यक है कि हम नीति तथा निर्णय लेने के तंत्र में विविधता सुनिश्चित करें तथा हम नीति बनाते समय महिलाओं के साथ परामर्श बढ़ाएं तथा किसी निर्णय से प्रभावित होने वाला प्रत्येक की आवाज़ सुनी जाए।
लोकप्रिय धारणा के विपरीत, नारीवादी विदेश नीति एक शांतिवादी विदेश नीति नहीं है। यह एक सुंदर तरीके से कठिन बातचीत करने के बारे में है। महत्वपूर्ण बात यह है कि कूटनीति तथा रक्षा को संतुलित किया जाए तथा कूटनीति को रक्षा की पहली पंक्ति के रूप में इस्तेमाल किया जाए ताकि हम जो निर्णय लेते हैं, उससे अधिक स्थिरता आएगी। हमारे निर्णय ठोस डेटा विश्लेषण पर आधारित होने चाहिए तथा हमें नीति के कामकाज में अनपेक्षित परिणामों से बचने के लिए क्षेत्र में अनुसंधान से डेटा का उपयोग करते हुए अपनी विदेश नीति के कामकाज में लैंगिक समानता को एकीकृत करना चाहिए।
प्रसंग के केंद्र में एक अन्य मुद्दा महिला, शांति तथा सुरक्षा अथवा डब्ल्यूपीएस एजेंडा का है। संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के प्रस्ताव 1325 (यूएनसीआर 1325) के पारित होने के बीस वर्ष बाद भारत तथा शामिल कई सदस्य देशों ने डब्ल्यूपीएस राष्ट्रीय कार्य योजना (नैप) विकसित नहीं की है। भारत एजेंडे का समर्थन करता है तथा संकल्प के लिए प्रतिबद्ध है, परन्तु इन प्रतिबद्धताओं तथा बात करने वाले बिंदुओं के वास्तविक कार्य में अधिक बारीकियों की आवश्यकता होती है। शायद, यह प्रगति पर है। सशस्त्र संघर्ष का मुद्दा-निहत्थे तथा हाशिए पर रह रहे लोगों का हथियार के रूप में बल का इस्तेमाल जिसमें हम महिलाओं को शामिल करते हैं, जो नहीं लड़ रहे होते है उनके जीवन पर गंभीर प्रभाव डालते हैं तथा यदि हम संघर्ष की रोकथाम तथा उन्मूलन सुनिश्चित करते हैं तो हम इस कारक की अनदेखी करने की कीमत नहीं चूका सकते। हमें उनकी आवाज सुननी होगी तथा यूएनएससीआर 1325 पर एक राष्ट्रीय सहमति बनानी होगी तथा मानव सुरक्षा के सही अर्थ को समझना होगा। प्रमुख शासन संस्थानों तथा निकायों में महिलाओं के प्रतिनिधित्व को मजबूत करना इस प्रयास का एक हिस्सा है। यह हमारे लोकतंत्र के लिए एक महत्वपूर्ण चिह्नक होना चाहिए ।
अंत में, सुरक्षा अध्ययन तथा अंतर्राष्ट्रीय संबंधों के क्षेत्र तक पहुंचने के लिए इसमें अधिक भारतीय महिलाओं की आवश्यकता है की वें इस देश में थिंक टैंक में वरिष्ठ कार्यकारी पदों पर उनकी संख्या में वृद्धि हो। कई पितृसत्तात्मक तथा आरोपित बाधाओं को दूर करना होगा। महिलाओं को उनके जेंडर के आधार पर एक कोष्ठ में रहने दिया जाता है। पुराने लोग तो पुराने ही रहेंगे हालांकि कई पुरुष हैं जो इस नियम तथा मूल्य विविधता और समावेशन के अपवाद हैं। एक महिला सुरक्षा अध्ययन विद्वान ने हाल ही में सुझाव दिया था कि भारत द्वारा यूएनएससीआर 1325 पर राष्ट्रीय कार्य योजना शांति तथा सुरक्षा में महिला विद्वानों की भूमिका और उपस्थिति को प्रायोजित कर सकती है । यह निश्चित रूप से आगे विचार के लायक है ।
कुछ वर्ष पहले, मैंने लिखा था "हैव द वूमेन स्पोकन?" [2] दक्षिण एशिय में के रूप में बोलते हुए, जिसे मैं अपनी भारतीय पहचान में अत्यधिक शामिलकरती हूं, मैंने निम्नलिखित कहा: "मुझे अक्सर आश्चर्य होता है कि दक्षिण एशिया के लिए नारीवादी विदेश नीति कैसी होगी। (यूरोप में, स्वीडन में है, हमारे यहाँ नहीं है.) क्या हम ऐसे तर्क पर विचार नहीं कर सकते जो युद्ध तथा शांति से परे बात करता हो (दक्षिण एशियाई उपमहाद्वीप में शांति सफेद झंडे, आत्मसमर्पण, निवेदन, कमजोरी से जुड़ी प्रतीत होती है)? क्या हम दक्षिण एशियाई आम लोगों के बारे में सोचते हैं? यह जूस्टिंग के लिए एक अखाड़ा नहीं है जहां हम रक्त खेल में एक दूसरे पर भाला फेंकते है, परन्तु शांतिपूर्ण उद्देश्य, मजबूत सभ्यता, तथा आपसी मेल-जोल से रहने की परिपक्वता की आवश्यकता है? हमने अपने चारों ओर विशाल कोलाहल का निर्माण किया है, परन्तु हमने आम जनता के लिए कोई रास्ता साफ नहीं किया है।
भारतीय तथा अन्य दक्षिण एशियाई महिलाओं को एक दूसरे से ज्यादा अलग नहीं करता है। हम एक ही पुरुष पितृसत्ताओं के अंतर्गत इसी तरह की वंशावली तथा श्रम साझा करते हैं। हम अपने बच्चों, हमारे घरों, हमारे वातावरण के बारे में इसी तरह समान है । हमें शांतिदूत बनना हमारे प्रकृति में है, हमारे अपने छोटे तरीके से तथा हम समान तरह से जीवन खोने के बाद रोते हैं। हम सत्ता में बैठे लोगों से साक्षरता, सशक्तिकरण तथा स्वतंत्रता की माँग करते है इसकी कमी जो हमें रिक्त स्थान में सीमित रखते हैं तथा हमारी प्रतिभाओं को सक्षम, प्रतिभाशाली, मनुष्यों के रूप में स्फुटित होने से रोकते हैं।
मैंने कहा कि नारीवादी अथवा लैंगिक संवेदनशील विदेश नीति दक्षिण एशियाई आम लोगों के विचार को गले लगाएगी; यह फुट को नहीं बढ़ाएगी, बल्कि एकता को तर्कसंगत बनाने, विकसित करने, जोड़ने के लिए क्षमताओं को तर्कसंगत बनाने के पक्ष में कार्य करेगा । यह युद्ध को अवरुद्ध करने के लिए वीटो का प्रयोग करेगा, शांति नहीं; यह भोजन के अधिकार, सार्वजनिक स्वास्थ्य का अधिकार, ज्ञान तथा सीखने का अधिकार, महिलाओं के अस्तित्व के मौलिक अधिकार, वियोजन को अस्वीकार करने का अधिकार, घिसे-पीटे रूढ़ोक्ति तथा मानसिक बाधाओं पर जोर देगा जो हमें विभाजित करते हैं। यह कहीं अधिक परिशुद्धता तथा बुद्धिमत्ता के साथ सत्ता के हितों के खिलाफ मानवतावाद के हितों को तौलना होगा।
किसी के भी विरुद्ध हो यह हिंसा का साथ नहीं देंगे, परन्तु विशेष रूप से महिलाओं तथा बच्चों के विरुद्ध अपराध का साथ नहीं देंगे। यह अभी तक के दक्षिणपंथी अथवा वामपंथी विचारधारा की आवाज को अस्वीकार करेगा। यह अज्ञात आदमी अथवा औरत, हाशिए पर रहने वाले लोगों, बहिष्कृत व्यक्ति की असली नब्ज महसूस करेगा। यह एक जन केंद्रित दृष्टिकोण होगा। यह व्यापार-से-व्यापार संबंधों को बढ़ावा देगा, व्यापार के लिए बुनियादी ढांचे का निर्माण करेगा, गैर-टैरिफ बाधाओं को दूर करेगा, वाणिज्य को सुविधाजनक बनाएगा, निकटता के अर्थशास्त्र को समझेगा न की विनाश के लिए निकटता को बढ़ावा देगा। इतिहास की वेदी पर इन लाभों का त्याग क्यों? बल्कि, इन संभावनाओं का संपत्ति के रूप में प्रयोग करें जो इतिहास की रिवायत को बदल दे तथा और शांति की संभावनाओं की अनुभूति कर सकते हैं जो अभी तक भ्रांतिजनक रहा है।
जैसा कि मैंने पहले कहा है, नारीवादी दोनों जेंडर से आ सकता हैं। महत्वपूर्ण बात यह है कि हम लैंगिक समानता, महिलाओं के अधिकार को सुने जाने तथा हमारे स्वदेश की शांति और सुरक्षा को प्रभावित करने वाले फैसले लेने, सार्वजनिक जीवन में उनकी भागीदारी को बढ़ावा देने तथा उनके नेतृत्व के अवसरों का विस्तार करने के लिए पहचान तथा सम्मान करते हैं। अब हमारे लिए समय आया है की होशियार तथा साहसी महिलायें बनें तथा हितों का रक्षा में क्या होना चाहिए तथा नारीवादी विदेश नीति को मैनसप्लेन की आवश्यकता नहीं। हम इन सब बातों का क्या अभिप्राय है इसके लिए सत्ता के शिखर तक बात कर सकतें हैं।
ये कुछ विचार हैं। मैं जानती हूं कि हमारे विशेषज्ञ पैनलिस्ट के पास आज दोपहर चर्चा में योगदान करने के लिए बहुत कुछ होगा। मैं आईसीडब्ल्यूए को इस वेबिनार में भाग लेने के लिए आमंत्रित करने के लिए धन्यवाद देती हूं, यह एक अनूठा विशेषाधिकार है। बहुत-बहुत धन्यवाद।
*****
[1] Stella Kyriakides, ‘Women in diplomacy - delivered at the “Women in Diplomacy” event hosted by the Ministry of Foreign Affairs of Cyprus’, 21 February 2020, European Commission, https://ec.europa.eu/commission/commissioners/2019-2024/kyriakides/announcements/women-diplomacy-delivered-women-diplomacy-event-hosted-ministry-foreign-affairs-cyprus_en
[2]Nirupama Rao, ‘Have the women spoken?’, The Indian Express, 18 October 2016, https://indianexpress.com/article/opinion/columns/india-pakistan-women-literacy-women-empowerment-women-safety-3088484/