आईसीडब्ल्यूए वेबिनार 'भारत तथा अफ्रीका का अग्रावलोकन'
उद्घाटन सत्र,
24 नवंबर 2020
श्री राहुल छाबड़ा का विशेष सम्बोधन
सचिव (आर्थिक सम्बन्ध), विदेश मंत्रालय
वर्तमान समय में, हम महामारी के बारे में बात किए बिना कोई बातचीत शुरू नहीं कर सकते। मुझे लगता है कि हम में से ज्यादातर को यह एहसास है कि यह द्वितीय विश्व युद्ध अथवा डीकोलोनाइज़ेशन के बाद की यह सबसे महत्वपूर्ण घटना है। यह इतिहास में उन परिवर्तनकारी क्षणों में से एक है जिसके अंतर्गत हम अभी गुजर रहे हैं। उभरती संभावनाएं क्या हैं तथा यह आगे कहाँ जायेगा? अधिक अनिश्चितता तथा बहु-ध्रुवीयता की संभावना आगे दिख रही हैं।
भारत के सदियों से अफ्रीका के साथ मजबूत संबंध रहे हैं। पिछले कुछ दशकों में हमारे संबंध मजबूत हो गए हैं। अफ्रीका के साथ भारत की साझेदारी सहयोग के परामर्शी मॉडल, अफ्रीकी देशों की जरूरतों के प्रति उत्तरदायी तथा विकास के अनुभवों को साझा करने पर आधारित है। यह मांग संचालित है तथा शर्तों से मुक्त है; दक्षिण-दक्षिण सहयोग मॉडल।
अब तक तीन भारत-अफ्रीका फोरम शिखर सम्मेलन (2008 में आईएएफ-1, 2011 में आईएएफ-2 और 2015 में आईएएफ-3) आयोजित किए गए हैं, जिसने अफ़्रीकी महाद्वीप के साथ हमारी साझेदारी को और अधिक उत्साह प्रदान किया। आईएएफएस-III में भारत के साथ राजनयिक संबंध रखने वाले सभी 54 अफ्रीकी देशों ने भाग लिया था, जिनमें से रिकॉर्ड 41 राष्ट्रों ने राष्ट्राध्यक्ष अथवा सरकार के स्तर पर भाग लिया था। हम महामारी के कारण अभी तक शिखर सम्मेलन के चौथे संस्करण की मेजबानी नहीं कर सके लेकिन हम यथाशीघ्र ऐसा करने की आशा करते हैं।
द्विपक्षीय राजनयिक मोर्चेपर पिछले 6 वर्षों में 34 उच्च स्तर की यात्राएं (राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री तथा उपराष्ट्रपति के स्तर पर) हुई; पारस्परिक रूप से 100 से अधिक अफ्रीकी नेताओं/मंत्रियों ने भारत का दौरा किया है। पहले से ही हमारे 40 दूतावास हैं तथा पिछले दो वर्षों में एक चौथाई से अधिक शुरू किये गए हैं; 47 दूतावास का हमारा लक्ष्य अगले 2 वर्षों में पूरा किया जाएगा।
द्विपक्षीय कूटनीतिक मोर्चे पर समकालीन वास्तविकता वास्तव में डिजिटल कूटनीति की है। प्रधानमंत्री तथा विदेश मंत्री डिजिटल डोमेन पर अपने समकक्षों के साथ जुड़ रहे हैं, जैसा कि आज हम कर रहे हैं। एक उभरती हुई संभावना के रूप में, हम देखते हैं कि हर कोई इसके साथ सहज हो रहा है, तथा हम अफ्रीकी और भारतीय नेताओं को तालमेल स्थापित करते हुए तथा डिजिटल प्लेटफार्मों पर अपनी बातचीत जारी रखते हुए काफी प्रसन्न थे । यह प्रौद्योगिकी का एक लीपफ्रॉग होगा, तथा अफ्रीका और भारत एक उदाहरण स्थापित कर सकते हैं जिसमे यह होगा की हम इस प्रकार के माध्यम से अपने व्यापार तथा कूटनीति को कैसे जारी रख सकते हैं।
जहां तक बहुपक्षीय और बहुपक्षीय मंचों पर कूटनीति की बात है, हम संयुक्त राष्ट्र, आईओआरए तथा इब्सा के साथ जुड़ते रहे हैं-हालांकि इसमें ब्राजील भी है-लेकिन भारत, दक्षिण अफ्रीका और ब्राजील तीन दक्षिणी लोकतंत्र हैं। उभरती संभावनाएं वास्तव में आईएसए-अंतर्राष्ट्रीयसौर गठबंधन में हैं जिसके लिए हमने अफ्रीका सहित सौर परियोजनाओं के लिए लचीला ऋण के रूप में 1.7 बिलियन अमेरिकी डॉलर की प्रतिबद्धता की है, तथा आपदा जुझारू बुनियादी ढांचे के लिए सीडीआरआई-गठबंधन में जिसमे हमें उम्मीद है कि कई और अफ्रीकी देश शामिल होंगे। आईएसए के आधे से ज्यादा सदस्य अफ्रीका के हैं। हम इस प्रतिक्रिया से प्रसन्न हैं तथा हम सीडीआरआई और ऐसे अन्य नए मंचों में इसी तरह की प्रतिक्रिया का इंतजार कर रहे हैं जो सामने आ सकते हैं।
अब, मैं विकास भागीदारी पर बात करूंगा। 37 देशों में 189 विकास परियोजनाएं पहले ही पूरी हो चुकी हैं; वर्तमान में 42 देशों में 77 परियोजनाएं चल रही हैं जिनमें 12.86 बिलियन अमेरिकी डॉलर से अधिक का निवेश है। हमने अफ्रीका के 48 देशों में विकास तथा अनुदान परियोजनाएं की हैं। यह कहा जा सकता है कि भारत के सर्वश्रेष्ठ अनुभवों को प्रदर्शित किया जा रहा है तथा अफ्रीका के साथ साझा किया जा रहा है ताकि लोगों को निष्कर्षित संबंध बनाने के बजाय सशक्त बनाया जा सके।
उभरती संभावनाएं ई-विद्या भारती और ई-आरोग्य भारती में हैं, जहां उपग्रहों और इसी तरह के प्लेटफार्मों का उपयोग वास्तव में कनेक्टिविटी को सक्षम करने में हो रहा है, यह तुरंत उपलब्ध होता है, बहुत आसान है तथा लागत प्रभावी होता हैं। ई-विद्याभारती सेवाओं का लाभ 17 देशों ने उठाया है परन्तु अभी भी काफी गुंजाइश है तथा हम ई-आरोग्य भारती में उभरती सम्भवनाओं को देख रहे हैं। मैं उन अफ्रीकी राष्ट्रों को प्रोत्साहित करूंगा जिन्हे अभी इसमे शामिल होना है, ताकि वे तीव्रता से ऐसा करें तथा इस महत्वाकांक्षी परियोजना से लाभान्वित हों।
व्यापार तथा निवेश पर, हम अफ्रीका के लिए पहले से ही तीसरा सबसे बड़ा निर्यात गंतव्य हैं; मुझे नहीं लगता कि भारतीय उद्योग के एक बड़े हिस्से ने अफ्रीका महाद्वीपीय मुक्त व्यापार समझौते के पूर्ण निहितार्थों को महसूस किया है, जो लागू हो रहा है। 70 अरब अमेरिकी डॉलर के व्यापार के साथ, हम इस प्रकार "व्यापार, न सिर्फ सहायता" की हमारी प्रतिबद्धता पर खरा उतरे है। बेशक, हम 2008 में 33 अफ्रीकी अल्प विकसित देशों को शुल्क मुक्त, कोटा मुक्त पहुंच प्रदान करने वाले पहले देशों में से एक होने में प्रसन्नता महसूस कर रहे हैं। भारत पहले ही अफ्रीका में 54 बिलियन अमेरिकी डॉलर का निवेश कर चुका है।
हमने बुनियादी ढांचे के निर्माण के लिए व्यापक प्रशिक्षण तथा क्षमता विकास कार्यक्रम तथा रियायती ऋण प्रदान किए हैं। हमने पिछले 5 वर्षों में चावल अथवा गेहूं के अनुदान अथवा कैंसर के इलाज वाली चिकित्सा उपकरणों तथा दवाओं, पुलिस बलों तथा एंबुलेंस को वाहनों की उपहार, व्यापार प्रबंधन, जल संसाधन प्रबंधन, ऑन्कोलॉजी और कार्डियोलॉजी प्रशिक्षण में भारत में अत्यधिक विशिष्ट प्रशिक्षण कार्यक्रमों तथा डिग्री पाठ्यक्रमों जैसी जनता केंद्रित परियोजनाओं के लिए 700 मिलियन अमेरिकी डॉलर की अनुदान सहायता वितरित की है। प्राकृतिक आपदाओं के बाद आपदा राहत के लिए अथवा प्रमुख सम्मेलनों की मेजबानी की लागत को चुकाने के लिए नकद अनुदान दिए गए थे । हमने नाइजर में महात्मा गांधी इंटरनेशनल कन्वेंशन सेंटर का निर्माण किया जिसका उपयोग जुलाई 2019 में अफ्रीकी संघ शिखर सम्मेलन की मेजबानी के लिए किया गया था।
उभरती संभावनाएं ऊर्जा जैसे क्षेत्रों में हैं, जहां 2040 तक अफ्रीका की ऊर्जा का 25% से अधिक नवीकरणीय ऊर्जा होने जा रहा है। अक्षय ऊर्जा में भारत की काफी शक्ति है; इसलिए, यह एक अच्छी साझेदारी है। हमने मोजांबिक में 7 अरब अमेरिकी डॉलर, दक्षिण सूडान में 0.5 अरब अमेरिकी डॉलर से अधिक तथा पश्चिम और उत्तरी अफ्रीका में अधिक निवेश किया है। अफ्रीका ऊर्जा सुरक्षा के लिए एक बहुत करीबी तथा भरोसेमंद साझेदार बनता जा रहा है।
इसी प्रकार खाद्य सुरक्षा के लिए, कृषि में, हम अफ्रीका के कई देशों के साथ कार्य कर रहे हैं; हमने अफ्रीका के पूर्वी तट के साथ इब्सा फंड के अंतर्गत और यूएसएड के साथ त्रिपक्षीय परियोजनाओं में शामिल होने पर भी गौर किया है; कृषि में परियोजनाएं चल रही हैं।
इस व्यापार-निवेश खंड में मैं जिस अंतिम विशिष्ट क्षेत्र का उल्लेख करना चाहता था वह स्वास्थ्य है। हमने अपनी आपूर्ति श्रृंखलाओं को खुला रखा तथा हमने दवाइयां भेजीं, हालांकि ये कम थे-हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वीन (एचसीक्यू), पैरासिटामोल तथा दूसरे दवाओं की पैक भेजी गई जब महामारी अपने शिखर पर था। 150 से अधिक देशों को ये दवाएं प्रदान की गईं जिनमें से 75 से अधिक देश, जिनमें से कई अफ्रीका में अनुदान के आधार पर दी गई थीं। टीका विकास में भारत तथा दक्षिण अफ्रीका ने संयुक्त रूप से विश्व व्यापार संगठन से आईपीआर नियमों में ढील देने की अपील की है ताकि टीकों को अफ्रीका सहित विकासशील देशों के लिए अधिक आसानी से सुलभ बनाया जा सके।
भारत ने अफ्रीका को इस महामारी के दौरान "विकासशील विश्व के लिए फार्मेसी" की महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाली जीवन रक्षक दवाओं तथा चिकित्सा उपकरणों की आपूर्ति का आश्वासन दिया। हमने अनुदान के रूप में 25 अफ्रीकी देशों को 5.5 मिलियन अमेरिकी डॉलर की दवाएं प्रदान कीं। कोविड वैक्सीन की 10 लाख खुराकें (600,000 खुराकें पहले ही वितरित की गई हैं, संयुक्त राष्ट्र के स्वास्थ्य कर्मियों को और 600,000 खुराकें प्रदान की गई हैं) अनुदान के रूप में आपूर्ति की गई थी तथा वाणिज्यिक आधार पर कोवैक्स सुविधा के अंतर्गत भारत निर्मित टीकों की 22.4 मिलियन खुराकों के निर्यात की सुविधा प्रदान की गई थी।
अप्रैल 2020 में, वित्त मंत्रियों और केंद्रीय बैंक के गवर्नरों की जी-20 वर्चुअल बैठक के दौरान, भारत ने सबसे गरीब देशों के लिए ऋण सेवा भुगतान को समयबद्ध निलंबन करने पर सहमति व्यक्त की, जिसने महामारी के आलोक में इस तरह के निलंबन का अनुरोध किया था। भारत ने अभी तक जाम्बिया, इथियोपिया, मलावी, मोजांबिक तथा लेसोथो के लिए ऋण निलंबित कर दिया है। हमारा उद्देश्य एकजुटता के संकेत के रूप में अपने स्वास्थ्य, आर्थिक तथा सामाजिक सूचकांकों में सुधार करने के लिए सभी अफ्रीकी साझेदार देशों की सहायता करना है।
भारत ने दक्षिण अफ्रीका, केन्या, तंजानिया, मोजांबिक, मलावी, नामीबिया तथा इथियोपिया के हजारों फंसे अफ्रीकी नागरिकों को भारत से अपने गृह देशों में निकालने की सुविधा प्रदान की।
इसका अगला चरण अर्थात लोगों से लोगों बिच का संपर्क, अफ्रीका तथा भारत दोनों में सबसे कम उम्र की जनसंख्या अधिक है। शिक्षा के क्षेत्र में पूरे अफ्रीका में हजारों भारतीय शिक्षक पढ़ा रहे हैं। उभरती संभावनाओं के संदर्भ में हमने 6 आईटी प्रशिक्षण केन्द्र, 7 व्यावसायिक प्रशिक्षण केन्द्र, उद्यमिता प्रशिक्षण केन्द्र तथा प्रौद्योगिकी केन्द्र स्थापित किए हैं। ये केंद्र तब से स्थापित किए गए हैं, जब से शिक्षक पढ़ाने नहीं जा रहे थे। ये वास्तव में ई-विद्याभारती तथा ई-आरोग्य भारती योजनाओं के उपग्रह लिंक के माध्यम से किए जा रहे कार्यों के पूरक के अलावा पूर्ण केंद्र स्थापित किए जा रहे हैं।
क्षमता निर्माण पर, 15 साल से कम उम्र के अफ्रीकियों के 40% से अधिक जनसंख्या के साथ अफ्रीकी महाद्वीप धरती पर सबसे कम उम्र की आबादी रहती है । आईएएफएस-III में वादा किए गए 50,000 प्रशिक्षण स्लॉट में से, 42,000 स्लॉट (अल्पकालिक तथा दीर्घकालिक दोनों) का उपयोग किया गया है; इनमें से लगभग 18,000 आईटीईसी कार्यक्रम के अंतर्गत हैं। प्रत्येक समय, हमारे पास इंजीनियरिंग, चिकित्सा विज्ञान, व्यापार प्रबंधन तथा अन्य विषयों में डिग्री पाठ्यक्रमों की पढ़ाई करने वाले कई हजार अफ्रीकी छात्र हैं। 1-3 महीने की अवधि के हमारे अल्पकालिक पाठ्यक्रमों में सौर ऊर्जा, जल संसाधन प्रबंधन, आईसीटी, कृषि विज्ञान तथा सहयोगी स्टाफ के लिए प्रशिक्षण शामिल है।
यह एक लोगों से लोगों की मजबूत कड़ी है तथा दूसरा क्षेत्र प्रवासी का है। निस्संदेह, मैंने अफ्रीका में सेवा की है तथा वास्तव में, मुझे इसका सही उल्लेख करना चाहिए,इसमे मेरा निहित स्वार्थ है। मैं अफ्रीका में दो बार सेवा की है; पश्चिमी तट तथा पूर्वी तट पर। मेरा अत्यंत ही व्यक्तिगत जुड़ाव है, क्योंकि मेरे दोनों बच्चों का जन्म अफ्रीका में ही हुआ था। प्रवासी कई पीढ़ियों से अफ्रीका में रह रहे हैं। मुझे एक वाक्या याद आ रहा है मैं नैरोबी के लिए अपनी पहली उड़ान पर था तथा एयर होस्टेस ने मुझे देखा और कहा, ओह, आप नैरोबी जा रहे हैं। तो आप कौन सी पीढ़ी से हैं? " मैं सोच रहा था कि पीढ़ी का मतलब क्या है। क्या वह नहीं देख सकती की एक भारतीय केंया जा रहा है। नैरोबी पहुंचने के बाद मुझे एहसास हुआ कि इसका क्या अभिप्राय है। भारतीय इतनी अच्छी तरह से एकीकृत हैं कि यदि आप कहते हैं कि आप एक भारतीय हैं तथा आप नैरोबी जा रहे हैं तो इसका मतलब है कि आप वहाँ कई पीढ़ियों से रह रहें हैं। नई उभरती संभावनाएं वास्तव में तकनीक उद्यमी, नए उद्यमी, फिनटेक उद्यमियों दक्षिण अफ्रीका तथा नैरोबी जा रहे हैं, जो सुचना तकनीक, वित्त के उभरते केंद्र हैं तथा कई भारतीय नागरिक इन नौकरियों को प्राप्त करने के लिए वहां जा रहे हैं।
मैं अंत में रक्षा तथा सुरक्षा सहयोग पर बात करना चाहता हूँ। निस्संदेह, हमने अफ्रीकी देशों में कई स्टाफ तथा कमांड कॉलेज स्थापित करने में मदद की है तथा अफ्रीका के हजारों सशस्त्र बलों के कर्मियों को भारत के सर्वश्रेष्ठ सैन्य संस्थानों में प्रशिक्षित किया है। भारतीय सशस्त्र बलों ने अफ्रीका में अनेकों संयुक्त राष्ट्र शांति अभियानों में शांति को शौर्य तथा सहानुभूति के साथ बनाए रखने में मदद की है। भारत ने 12 से अधिक शांति अभियानों में भाग लिया है तथा लाइबेरिया में संयुक्त राष्ट्र की पहली अखिल महिला पुलिस इकाई की स्थापना की गई थी। आज तक 6,000 भारतीय सैनिक पूरे महाद्वीप में 5 शांति अभियानों में शामिल हैं। अफ्रीकी राष्ट्र जो अब स्वयं शांति सेना में योगदान दे रहे हैं, हमारे अनुभव से लाभान्वित हुए हैं कि हमे उनके साथ साझा करने में प्रसन्नता हो रही है।
सबसे महत्वपूर्ण उभरती संभावना समुद्री सुरक्षा है। हिंद महासागर न केवल हमें अलग करता है, बल्कि यह हमें एकजुट भी करता है। हिंद महासागर क्षेत्र एक साझा क्षेत्र है जहां समुद्री सुरक्षा बहुत महत्वपूर्ण है तथा भारत इस पर सहयोग करता नजर आएगा। इसी अर्थ में, हमारे पास एचएडीआर-मानवीय सहायता तथा आपदा राहत अभियानों में अच्छी नौवहन क्षमताएं हैं, जो फिर से सहयोग की उभरती संभावनाओं का एक और क्षेत्र है ।
इस आधार पर, मैं 2018 में युगांडा की संसद में प्रतिपादित प्रधानमंत्री के दस मार्गदर्शक सिद्धांतों के संदर्भ के साथ समाप्त करना चाहूंगा क्योंकि ये वे सिद्धांत हैं जिसने पिछले कुछ वर्षों में हमारी नीति का मार्गदर्शन किया है। भारत के विकास सहयोग के लिए प्रधान मंत्री के दूरदृष्टिता का सार है "हमारी विकास साझेदारी आपकी प्राथमिकताओं से निर्देशित होगी। यह उन शर्तों पर होगा जो आपके लिए आरामदायक होंगे, जो आपकी क्षमता को सामने लायेंगे तथा आपके भविष्य को बाधित नहीं करेंगे। हम अफ्रीकी प्रतिभा तथा कौशल पर भरोसा करेंगे। हम अधिक से अधिक स्थानीय क्षमता का निर्माण करेंगे तथा यथासंभव अधिक से अधिक स्थानीय अवसर पैदा करेंगे।
मैं अंत में यह कह कर समाप्त करना चाहता हूं कि, एजेंडा 2063,जिसे अफ़्रीकी संघ द्वारा निर्धारित किया गया है तथा हमारी अपनी विकास योजना अत्यंत अच्छी तरह से समाहित लगता है। मैं देख सकता हूं कि इस शताब्दी की निर्णायक साझेदारियों में से एक भारत-अफ्रीका साझेदारी होने जा रही है।
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