संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में भारत: फरवरी, 2021 के मासिक संक्षिप्त में कोविड, जलवायु एवं विवाद-समाधान पर ध्यानाकर्षण
संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (यूएनएससी) के निर्वाचित सदस्य के रूप में भारत के आठवें दो वर्षीय कार्यकाल के संदर्भ में; राजदूत अशोक कुमार मुखर्जी, संयुक्त राष्ट्र में भारत के पूर्व स्थायी प्रतिनिधि, द्वारा आईसीडब्लूए की ‘संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा में भारत : मासिक पूर्वावालोकन’ श्रृंखला का दूसरा विश्लेषण निम्नलिखित है।
संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (यूएनएससी) के निर्वाचित सदस्य के रूप में भारत के कार्यकाल दूसरा महीना यूनाइटेड किंगडम (यूके) की सक्रिय अध्यक्षता से काफी प्रेरित रहा, जो यूएनएससी के पांच स्थायी सदस्यों (पी5) में से एक है। इस महीने परिषद की अध्यक्षता कर रहे यूनाइटेड किंगडम ने यूएन चार्टर के अनुच्छेद 27.3 के तहत अपनी वीटो शक्ति के खतरे के तहत परिषद की कार्यवाही का संचालन करने में किसी भी पी5 सदस्य के अंतनिर्हित लाभ को दर्शाया।
यूके की अध्यक्षता तीन कारणों से बहुत प्रभावशाली रही। पहला कारण, यूके ब्रेक्सिट के बाद पहली बार यूएनएससी की बैठकों की अध्यक्षता कर रहा था, जिससे इसे इसकी "ग्लोबल ब्रिटेन" विदेश नीति की बहुपक्षीय प्राथमिकताओं को प्रदर्शित करने हेतु एक मंच मिला। दूसरा कारण, परिषद की अध्यक्षता करना हाल ही में नियुक्त ब्रिटिश संयुक्त राष्ट्र के दूत डेम बारबरा वुडवर्ड के अनुभवी राजनयिक कौशल की पहली परीक्षा भी था, जो एक अनुभवी सिनोलॉजिस्ट हैं। तीसरा कारण, यूके के उच्च राजनयिक, वैज्ञानिक एवं वाणिज्यिक हितों को ध्यान में रखते हुए कोविड-19 वायरस का मुकाबला करने हेतु अध्यक्षता की वजह से 2020 की तुलना में यूएनएससी की ओर से महामारी का मुकाबला करने के लिए अधिक सुसंगत राजनीतिक प्रतिक्रिया तय करने का रास्ता मिला।
ब्रिटेन ने परिषद के एजेंडे में शामिल देशों के विशेष तथा विषयगत मुद्दों की लंबी सूची में से फरवरी 2021 में यूएनएससी की तीन प्राथमिकताएं तय कीं। ये प्रथामिकताएं कोविद-19; शांति, सुरक्षा एवं जलवायु परिवर्तन के बीच सामन्जस्य; और विवादों का समाधान (विशेषकर उन जगहों पर जहां ब्रिटेन यमन की तरह पर्दे की पीछे रहते हुए "कलम-धारक" की भूमिका निभाता है) थीं।
यूएनएससी द्वारा अपने विचार-विमर्श में कोविड-19 पर ब्रिटेन द्वारा अधिक ध्यान देने से भारत को फायदा हुआ। 17 फरवरी को यूके के विदेश सचिव डॉमिनिक रैब की अध्यक्षता में यूएनएससी की बैठक में भाग लेते हुए, भारत के विदेश मंत्री डॉ. एस. जयशंकर ने कुछ ही हफ्तों के भीतर लगभग 75 संयुक्त राष्ट्र सदस्य देशों को भारत में बनी एंटी कोविड वैक्सीन की आपूर्ति करने की भारतीय सहायता पर प्रकाश डाला। अहम बात यह है कि, इन वैक्सीनों में से एक (कोविशिल्ड) का निर्माण यूके की एस्ट्राजेनेका और भारत की सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया ने मिलकर किया है। यूएनएससी द्वारा दुनिया भर में हिंसक संघर्ष वालों जगहों पर तैनात लगभग संयुक्त राष्ट्र के लगभग 90,000 शांति सैनिकों को 200,000 वैक्सीन उपहार में देने की भारत की पेशकश ने संयुक्त राष्ट्र के शांति सैनिकों की प्रभावशीलता बढ़ाने की उनकी प्रतिबद्धता के साथ-साथ "सुधारित बहुपक्षवाद" के उद्देश्यों को रेखांकित किया, जिसके तहत वैश्विक मानव कल्याण को प्राथमिकता देने का लक्ष्य है।
यूएनएससी के फैसलों को लागू करने में निर्वाचित सदस्य के रूप में भारत की क्षमता 26 फरवरी को सर्वसम्मति से यूएनएससी संकल्प 2565 (यूके द्वारा अध्यक्षीय पाठ के रूप में प्रस्तावित) के उसके सह-प्रायोजन के रुप में देखने को मिली, जो संघर्ष वाले इलाकों में वैक्सीन की एक समान पहुंच का समर्थन करता है। इस परिणाम के व्यापक प्रभाव को विश्व स्वास्थ्य संगठन और विश्व व्यापार संगठन की भीतरी प्रक्रियाओं में तय किया जाएगा, जो कि अधिकांश वैश्विक आबादी के लिए वैक्सीन की आसान एवं सस्ती पहुंच सुनिश्चित करने के वैश्विक उद्देश्य के कार्यान्वयन को समर्थन करने हेतु जिम्मेदार हैं।
यूके के प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन की अध्यक्षता में 23 फरवरी को यूएनएससी की एक उच्च-स्तरीय ओपन वार्ता आयोजित की गई थी। भारत संयुक्त राष्ट्र के उन सदस्य देशों में से है, जो नए क्षेत्रों को शामिल करने हेतु "अंतर्राष्ट्रीय शांति एवं सुरक्षा को बनाये रखने" हेतु यूएनएससी के चार्टर के जनादेश के दायरे को बढ़ाने को लेकर सावधान है, जिनके पास (या जिनकी आवश्यकता है) वैश्विक शासन के लिए अपने स्वयं की संरचना मौजूद है। जलवायु परिवर्तन संयुक्त राष्ट्र फ्रेमवर्क कन्वेंशन ऑन क्लाइमेट चेंज (यूएनएफसीसीसी) की कानूनी संधि के दायरे में हैं, जहां यूएनएससी की कोई प्रत्यक्ष भूमिका नहीं है।
चर्चा में भारत की भागीदारी से "जलवायु परिवर्तन, संघर्ष एवं नाजुकता के बीच संबंधों के आकलन के लिए आम, व्यापक रूप से स्वीकार की गई कार्यप्रणाली" के बिना यूएनएससी द्वारा जलवायु मुद्दों पर विशेष ध्यान देने की उसकी चिंता को चित्रित किया। इस अवसर पर बोलते हुए, भारत के पर्यावरण मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने जोर देकर कहा कि "जलवायु परिवर्तन सीधे या स्वाभाविक रूप से हिंसक संघर्ष का कारण नहीं है, अन्य सामाजिक, राजनीतिक एवं आर्थिक कारकों के साथ इसके जुड़ाव, संघर्ष और नाजुकता के कारक बन सकते हैं और इनका शांति, स्थिरता और सुरक्षा पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है।" यह सतत विकास पर एजेंडा 2030 की प्रस्तावना यानि "बिना विकास के स्थायी विकास नहीं हो सकता और स्थायी विकास के बिना शांति स्थापित नहीं हो सकती।" में की गई घोषणा को दर्शाता है, जिसे सितंबर 2015 में दुनिया भर के नेताओं ने सर्वसम्मति से अपनाया था।
यूके की अध्यक्षता में चिन्हित किए जाने वाले तीसरे प्राथमिकता वाले क्षेत्र में, भारत ने संघर्षों से संबंधित मुद्दों, विशेषकर एशिया में, पर चर्चा में सक्रिय रूप से भाग लिया, और फरवरी 2021 के लिए यूएनएससी के एजेंडे पर बल दिया। भारत द्वारा दो नीतिगत दृष्टिकोणों पर प्रकाश डाला गया। पहला, इन संघर्षों का अगर लंबे समय तक हल नहीं निकलता है, तो इससे ट्रांस-नेशनल आतंकवाद की गतिविधियां बढ़ती हैं। दूसरा, ऐसे संघर्षों के स्थायी राजनीतिक हल के लिए जमीनी स्तर पर देशों द्वारा समावेशी रूप से संचालित प्रक्रिया की आवश्यकता है, जिसमें सदस्य-राज्यों के क्षेत्रीय अखंडता, संप्रभुता एवं सामाजिक-आर्थिक विकास को ध्यान में रखा जाये।
10 फरवरी को संयुक्त राष्ट्र महासचिव की इस्लामिक राज्य द्वारा इराक और लेवेंट (आईएसआईएल) में उत्पन्न खतरे पर 12वीं द्विवार्षिक रणनीतिक स्तर की रिपोर्ट पर विचार करने हेतु यूएनसीएस की बैठक हुई। भारत के राजदूत टी.एस. तिरुमूर्ति ने यूएनएससी से भारत के खिलाफ आतंकवादी गतिविधियों में लगे लश्कर तथा जेईएम जैसे आतंकवादी समूहों के वित्तपोषण को रोकने हेतु वित्तीय कार्रवाई कार्य बल (एफएटीएफ) के साथ समन्वय बढ़ाने का आग्रह किया। उन्होंने अफगानिस्तान-पाक क्षेत्र से जुड़े दो मुद्दों पर भी चिंता व्यक्त की। जिनमें से एक पाकिस्तानी अधिकारियों सहित यूएनएससी द्वारा निषिद्ध "हक्कानी नेटवर्क और उसके समर्थकों" से संबंधित थी, जो "अल-कायदा, और दक्षिण एशिया में आईएसआईएल-के आदि जैसे प्रमुख आतंकवादी संगठनों के साथ काम कर रहे हैं।" ये आतंकवादी "पाकिस्तान में मौजूद अपने सुरक्षित ठिकानों" का इस्तेमाल अफगानिस्तान में "हिंसक हमलों के लिए कर रहे हैं, जिससे शांति भंग हो रही है।" दूसरी चिंता "डुरंड रेखा के आसपास, विशेष रूप से कुनार और नंगरहार प्रांतों में अफगानिस्तान में स्थित आतंकी समूहों का स्थानांतरण।" भारत ने इस बात पर बल दिया कि, "इस रिपोर्ट में उनका नाम नहीं दिया गया है क्योंकि यह रिपोर्ट इस क्षेत्र की मौजूदा स्थिति का पक्षपातपूर्ण और आंशिक स्थिति ही दिखाती है।" भारत ने अफगानिस्तान-पाक क्षेत्र में आतंकवाद का मुकाबला करने पर यूएनएससी की कार्यवाही में उसके राष्ट्रीय हितों को पेश करने की अफ़गानिस्तान के प्रति अपनी प्रतिबद्धता को दर्शाया।
भारत ने 24 फरवरी को अनौपचारिक "अररिया फार्मूला" बैठक में भाग लिया, जो संयुक्त राष्ट्र के चार्टर के अनुच्छेद 51 के तहत आत्म-रक्षा के अधिकार के विषय पर, निर्वाचित यूएनएससी सदस्य, मैक्सिको द्वारा बुलाई गई थी। भारत ने कहा कि प्रभावित राज्यों की "राष्ट्रीय अखंडता एवं संप्रभुता" की रक्षा के लिए राज्यों के साथ-साथ गैर-राज्य कारकों द्वारा किए गए हमलों के जवाब में आत्मरक्षा का अधिकार सभी को है। हालांकि अनौपचारिक, "अररिया-फार्मूला" बैठकों (जिसका नाम मार्च 1992 में यूएनएससी के वेनेजुएला के राष्ट्रपति डिएगो अररिया के नाम पर रखा गया है) ने यूएनएससी द्वारा चर्चाओं और निर्णयों के लिए जमीन तैयार करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।
फरवरी में यूएनएससी में उच्च प्राथमिकता वाले पश्चिम एशियाई संघर्ष स्थितियों पर चर्चा हुई, जिसमें कोई बड़ा फैसला नहीं लिया जा सका। 9 फरवरी को, भारत ने सीरियाई संघर्ष को हल करने हेतु एक राजनीतिक प्रक्रिया की आवश्यकता पर प्रकाश डाला, इस बात की सावधानी बरतते हुए कि सीरियाई संप्रभुता के उल्लंघन से राजनीतिक समझौते पर पहुंचने में आपसी विश्वास की कमी पैदा हुई, जिससे आतंकवादी कृत्यों को हवा मिली। इससे पहले, 3 फरवरी को एक बैठक में सीरिया में रासायनिक हथियारों के कथित इस्तेमाल पर बोलते हुए, भारत ने भारत ने "निष्पक्ष एवं उद्देश्यपूर्ण जांच" का आह्वान करते हुए "पहले राज्य दलों को रासायनिक-हथियार मुक्त राज्य घोषित किए जाने" की बात की। भारत ने आगाह किया कि "मुद्दे के राजनीतिकरण से पक्ष चरम स्थिति अपना सकते हैं", जिससे समस्या को हल करने के प्रयास कमजोर पड़ेगें, और संभावित रूप से "आतंकवादी संगठनों एवं ऐसे लोगों के हाथों में बड़े पैमाने पर विनाश के हथियार" जाने की स्थितियां पैदा होगी। भारत ने सीरिया में किसी भी रासायनिक भंडार और संबंधित सुविधाओं को नष्ट करने में मदद करने हेतु बहुपक्षीय ओपीसीडब्ल्यू ट्रस्ट फंड में एक मिलियन अमेरिकी डॉलर का योगदान दिया। 25 फरवरी को, भारत ने सीरिया पर एकतरफा आर्थिक प्रतिबंधों को जारी रखने का विरोध करते हुए "उन लोगों को लेकर अपनी चिंता व्यक्त की, जो राजनीतिक समझ पर अपने अपेक्षित परिणामों के लिए मानवीय सहायता को जोड़ने की वकालत करते हैं", जिसे दुनिया का हर व्यक्ति महसूस करता है। भारत ने 2000 से अधिक मीट्रिक टन चावल और 10 मीट्रिक टन दवाओं, साथ ही सीरिया में कोविड महामारी का मुकाबला करने हेतु मेड-इन-इंडिया वैक्सीन की आपूर्ति की घोषणा की।
भारत ने इराक में संप्रभुता, क्षेत्रीय अखंडता तथा लोकतांत्रिक संक्रमण को बनाए रखने हेतु 16 फरवरी को हुई बैठक में इराक में संयुक्त राष्ट्र सहायता मिशन (यूएनएएमआई) के माध्यम से उठाये गए कदमों का समर्थन किया। इराक की लोकतांत्रिक अवसंरचनाओं को सुदृढ़ करने में भारत द्वारा दिये जा रहे योगदान में स्वतंत्र इराकी चुनावी अधिकारियों को प्रशिक्षित करना और इराक में चुनाव पर्यवेक्षक भेजना शामिल है। भारत ने इराक के लिए अंतर्राष्ट्रीय पुनर्निर्माण कोष सुविधा, विश्व खाद्य कार्यक्रम और भारतीय तकनीकी एवं आर्थिक सहयोग (आईटीईसी) कार्यक्रम के तहत इराक में राहत एवं पुनर्निर्माण हेतु 30 मिलियन अमेरिकी डॉलर का योगदान दिया है। पिछले चार महीनों के दौरान भारत आने वाले 10,000 से अधिक इराकी नागरिकों को चिकित्सा सेवा प्रदान की गई थी।
18 फरवरी को यमन में आयोजित की गई यूएनएससी चर्चा में, भारत ने "व्यापक-बातचीत और परामर्श के माध्यम से शांतिपूर्ण राजनीतिक समझौता" करने का आह्वान किया। भारत ने "व्यापक शांति प्रक्रिया" हेतु संयुक्त राष्ट्र द्वारा "सहयोगी" की भूमिका निभाने का समर्थन किया, जिसमें "यमन की विभिन्न पक्षों के प्रभाव वाले क्षेत्रीय देश" शामिल होने चाहिए। भारत ने माना किया कि यमनी संघर्ष के किसी भी स्थायी राजनीतिक हल में महिलाओं और युवाओं के हितों को भी एकीकृत करना चाहिए। इसमें दुनिया के सबसे बड़े मानवीय संकट को प्राथमिकता दी जानी चाहिए, जिससे यमन की 30 मिलियन आबादी में से 24 मिलियन आबादी प्रभावित हैं।
26 फरवरी को आयोजित फिलिस्तीन के मुद्दे सहित मध्य पूर्व की स्थिति पर नियमित रूप से होने वाली यूएनएससी की चर्चा में, भारत ने "फिलीस्तीनी हितों और इजरायल के साथ शांति और सुरक्षा बनाते हुए संप्रभु, व्यवहार्य और स्वतंत्र फिलिस्तीन की स्थापना" को अपने समर्थन की पुष्टि की और साथ ही इस बात पर बल दिया कि "केवल लोग एवं इजरायल और फिलिस्तीन की इच्छा एवं पात्रता के बीच समाधान से शांति आयेगी।" भारत ने 5 मिलियन फिलिस्तीनी लोगों के बीच आयोजित होने वाले आगामी संसदीय एवं राष्ट्रपति चुनावों पर फतह और हमास फिलिस्तीनी समूहों के बीच काहिरा समझौते का समर्थन किया। फिलिस्तीन के लिए संयुक्त राष्ट्र राहत एवं निर्माण एजेंसी (यूएनडब्ल्यूआरए) की गतिविधियों पर कोविड महामारी की वजह से पड़े आर्थिक प्रभाव को दूर करने के लिए भारत ने एजेंसी को अगले दो वर्षों में 5 मिलियन अमेरिकी डॉलर के वित्तीय योगदान की घोषणा की।
1 फरवरी 2021 को म्यांमार में सैन्य नेतृत्व में हुआ तख्तापलट यूएनएससी के लिए एक अप्रत्याशित घटना थी। यूके द्वारा 4 फरवरी को जारी किए गए यूएनएससी प्रेस वक्तव्य के सर्वसम्मति पाठ में भारत भी शामिल हुआ, जो "लोकतांत्रिक संस्थानों एवं प्रक्रियाओं को बनाए" रखने की आवश्यकता सहित "म्यांमार में लोकतांत्रिक बदलाव के सतत समर्थन की आवश्यकता पर बल देता है।" यूएनएससी की "म्यांमार की संप्रभुता, राजनीतिक स्वतंत्रता, क्षेत्रीय अखंडता व एकता के प्रति सुदृढ़ प्रतिबद्धता" ने आसियान के माध्यम सहित, इस संकट को हल करने हेतु बातचीत की रूपरेखा प्रदान की, जिसकी की म्यांमार भी एक सदस्य है। भारत की स्थिति म्यांमार के प्रति उसके राजनयिक दृष्टिकोण को दर्शाती है, जो म्यांमार में शांतिपूर्ण लोकतांत्रिक संक्रमण प्रक्रिया का समर्थन करने पर केंद्रित है, जो तख्तापलट से प्रभावित हुई है।
भारत ने एशिया के बाहर दुनिया के अन्य क्षेत्रों के संघर्षों पर यूएनएससी चर्चा में भाग लिया। भारत ने यूएनएससी एजेंडे पर संघर्ष का सामना कर रहे सदस्य-राष्ट्रों के राष्ट्रीय शासन संरचनाओं को सुदृढ़ करने में यूएनएससी की अगुवाई में सहायता प्रदान करने का समर्थन किया। इन चर्चाओं में हैती (22 फरवरी), सेंट्रल अफ्रीकन रिपब्लिक (24 फरवरी) के साथ-साथ साहेल क्षेत्र (2 फरवरी) की स्थिति भी शामिल थी।
भारत ने सोमालिया में तय चुनाव कार्यक्रम को लागू करने में देरी के बाद यहां शांति एवं सुरक्षा के भंग होने पर 22 फरवरी को चिंता व्यक्त की, और अफ्रीकी संघ के नेतृत्व वाले शांति मिशन (एएमआईएसओएम) का समर्थन किया। भारत ने उन 12 सैनिकों सहित, जिन्होंने यूएनओएसओएम-II में अपनी जान गवाई थी, संयुक्त राष्ट्र शांति सैनिकों के माध्यम से 1993-94 में सोमालिया में शांति बहाल करने के अपने ऐतिहासिक अनुभवों पर ध्यान खींचा। सोमालिया में स्थिरता पश्चिमी इंडो-पैसिफिक क्षेत्र पर भारत के मौजूदा रणनीतिक ध्यान हेतु महत्वपूर्ण है, जहां उसने भारत को लाल सागर से जोड़ने वाली महत्वपूर्ण समुद्री लेन की सुरक्षा के लिए 2008 से समुद्री डकैती पर यूसीएससी-अनिवार्य संपर्क समूह के लिए अपनी नौसेना सुविधाओं को तैनात किया है।
भारत ने 11 फरवरी को मिंस्क समझौतों के कार्यान्वयन पर चर्चा के दौरान यूक्रेन की स्थिति पर यूएनएससी में अपना पहला बयान दिया। जुलाई 1972 में शिमला में राजनीतिक चर्चा द्वारा द्विपक्षीय समझौते के माध्यम से संघर्षों को हल करने में अपने अनुभव पर ध्यान दिलाते हुए, भारत ने कहा कि "इस तरह के समझौते सुरक्षा परिषद द्वारा अपनाए गए प्रस्तावों से भी अच्छे हैं, क्योंकि ये समझौते बाहरी रूप से लागू नहीं होते हैं, बल्कि संबंधित पक्षों की सहमति से होते हैं और इसलिए इनके सफल होने की संभावना बहुत अधिक होती है।"
निर्वाचित यूएनएससी सदस्य के रूप में फरवरी 2021 में भारत के कार्य-निष्पादन से संघर्षों के, विशेष रूप से एशिया में, जमीनी स्तर पर समावेशी राजनीतिक हल की मांग करने की उसकी प्रतिबद्धता दिखाई देती है, जिससे क्षेत्र के सामाजिक-आर्थिक विकास पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। पी5 के साथ अपने जुड़ाव में भारत ने कोविड-19 और संघर्ष के क्षेत्रों पर सर्वसम्मति से अपनाए गए एकमात्र प्रस्ताव को सफलतापूर्वक प्रायोजित करने के साथ, अंतर्राष्ट्रीय शांति व सुरक्षा बनाए रखने हेतु अपने राजनयिक, मानव, आर्थिक व तकनीकी संसाधनों को तैनात करने की अपनी बढ़ती क्षमता को भी दर्शाया।
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