पाँचवें आईसीडब्ल्यूए-सीपीआईएफए वार्ता
पर
डॉ. टी. सी. ए. राघवन
महानिदेशक
विश्व मामलों की भारतीय परिषद
द्वारा
टिप्पणी
बीजिंग, चीन
25 सितंबर 2018
राजदूत वू हैलोंग, अध्यक्ष, चीनी पीपुल्स इंस्टीट्यूट ऑफ फॉरेन अफेयर्स (सीपीआईएफए),
चीन में भारतीय राजदूत - श्री गौतम बंबावाले,
राजदूत ओयू बाकियान, उपाध्यक्ष, सीपीआईएफए,
राजदूत अशोक कांथा,
दोनों प्रतिनिधिमंडल के विशिष्ट सदस्य, देवियों और सज्जनों,
शुभकामनाएं!
मैं विश्व मामलों की भारतीय परिषद की ओर से आप सभी को सादर अभिनंदन प्रेषित करता हूँ, जो कि भारत की सबसे प्रमुख और सबसे पुरानी विदेशी नीति बौद्धिक स्रोत इकाई है। हम सीपीआईएफए के प्रति कृतज्ञ हैं कि उन्होंने हमें इस परिचर्चा के लिए अपना विनीत आमंत्रण हमें दिया और साथ ही साथ उनके आथित्य के लिए भी, जो उन्होंने हमें हमारी बीजिंग के दौरे के लिए प्रदान की है। हम आज बहुत ही आशावान हैं कि आपके साथ हम बहुत ही उत्पादक और सफल विचार-विमर्श का एक अच्छा समय व्यतीत करेंगे।
मुझे यह जानकर खुशी हुई है कि, सीपीआईएफए के अध्यक्ष, राजदूत वू हैलोंग, चीन के अपने प्रतिष्ठित प्रतिनिधिमंडल का नेतृत्व कर रहे हैं। मैं इस वार्ता के लिए भारत के कई प्रसिद्ध चीनी विशेषज्ञों को आमंत्रित करने के लिए धन्यवाद देता हूँ।
पूर्व गतिविधियां
हमारे दो संस्थान - आईसीडब्ल्यूए और सीपीआईएफए द्वारा विगत अप्रैल 2005 में सहयोग पर एक समझौता ज्ञापन हस्ताक्षर किए गए। हमारे बीच काफी सार्थक गतिविधियों/वार्ताओं का अतीत रहा है। आज इस क्रम में हम हमारी पाँचवीं संरचित वार्ता को आरंभ करने वाले हैं, जिसकी सर्वप्रथम शुरूआत नवंबर 2013 में हुई थी।
कार्यसूची
हमारी आपसी तौर पर सहमत कार्यसूची है। हम कुछ उचित संख्या के प्रमुख मुद्दों पर चर्चा करना चाहते हैं जो कि भारत-चीन संबंधों के द्विपक्षीय एवं बहुपक्षीय पहलुओं के संबंध में हैं। हमारे संबंधों में विभिन्न आयाम शामिल हैं - जैसे कि राजनीतिक, व्यापार, आर्थिक और निवेश संबंधी, लोगों से लोगों के संपर्क, और अन्य। हमारे पास परस्पर हस्तक्षेप के भी कई बिंदु हैं, जो द्विपक्षीय और बहुपक्षीय दोनों हैं। मैं आशा करता हूँ कि हमारी चर्चा के दौरान हम इन सभी पहलुओं को शामिल करेंगे। वुहान भावना के लिए यह आवश्यक है कि हम अपने द्विपक्षीय संबंधों को व्यापक रूप से संबोधित करें। यदि हमारी सरकारें शुरुआती परिणामों और शुरुआती प्राप्तियोग्य बिंदुओं की पहचान कर सकती हैं, तो वे निश्चित रूप से इन्हें हमारे अभिसरणों की पोर्टफोलियो में जोड़ी जाएंगी। हम उसी भावना में अपनी चर्चा को आगे ले जाने के लिए तत्पर हैं।
हमारे क्षेत्रीय माहौल में त्वरित तौर पर प्रगति हो रही है। हम अफगानिस्तान और ईरान के संबंध में, और अरब सागर के समुद्री राज्यों की स्थितियों पर आपके आकलन की अपेक्षा करते हैं।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी द्वारा 1 जून, 2018 को शांग्री ला संवाद में दिए गए मुख्य अभिभाषण में स्पष्ट रूप से विश्व में शांति, विकास और स्थिरता में भारत की भूमिका और योगदान का उल्लेख किया गया है। मुख्य अभिभाषण में हिन्द-प्रशांत क्षेत्र के महत्व को महत्वपूर्ण तौर पर रेखांकित किया गया है, और हिन्द महासागर के महत्व पर जोर देते हुए हिन्द महासागर को “वैश्विक वाणिज्य की जीवन रेखा” कहा गया है।
यह अभिभाषण हाल के दिनों में भारत-चीन संबंधों और बदलते आयामों के महत्व को रेखांकित करता है। भारत-चीन संबंधों पर, भाषण उल्लेख करता हैः
‘‘भारत के किसी और रिश्ते की उतनी परतें नहीं हैं, जितनी कि चीन के साथ हमारे संबंधों की हैं। हम दुनिया के दो सबसे अधिक आबादी वाले देश हैं, और साथ ही साथ सबसे तेजी से बढ़ती प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं में से भी। हमारे सहयोग बढ़ रहे हैं। व्यापार बढ़ रहे हैं। और हमने विभिन्न मुद्दों को प्रबंधित करने, और एक शांतिपूर्ण सीमा सुनिश्चित करने में हमने अपनी परिपक्वता और बुद्धिमता का प्रदर्शन किया है।’’
‘‘आसियान की केंद्रीयता भारत-प्रशांत क्षेत्र के लिए भारत के दृष्टिकोण का मार्गदर्शन करेगी, साथ ही यह इस क्षेत्र में शांति और सुरक्षा के निर्माण में भारत के सहयोग का मार्गदर्शन भी करेगी। संबोधन का एक अन्य महत्वपूर्ण बिन्दु साझा मूल्यों और हितों के आधार पर निर्मित अन्य देशों के साथ भारत की साझेदारी के बारे में था। यह भारत-प्रशांत क्षेत्र में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाने के लिए भारत की रणनीतिक स्वायत्तता और प्रतिबद्धता की पुनःपुष्टि करता है। साथ ही यह उल्लेख करता है कि भारत ‘नियंत्रक कार्रवाई का गठजोड़’ निर्मित नहीं कर रह है।’’
यहाँ यह भी बता दूँ कि भारत-चीन संबंधों को सुधारने और मजबूत करने का यह सबसे उपयुक्त समय है।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने अपनी प्रथम ‘अनौपचारिक समिट’ का आयोजन 27-28 अप्रैल, 2018 को वुहान में किया था। इस सम्मेलन का उद्देश्य, ‘‘वर्तमान और भविष्य की अंतर्राष्ट्रीय परिस्थिति के संदर्भ में राष्ट्रीय विकास के लिए, द्विपक्षीय और वैश्विक महत्व के व्यापक मुद्दों पर विचारों का आदान-प्रदान करना और उनसे संबंधित दृष्टिकोणों और प्राथमिकताओं का विस्तार करना था’’।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने राष्ट्रपति शी जिनपिंग से चीन के बंदरगाह शहर क्वींगदाओ में 9 जून, 2018 को, 18वें शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) सम्मेलन के पूर्व मुलाकात की थी। क्वींगदाओ में, प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने वुहान सम्मेलन को “एक मील के पत्थर” के रूप में वर्णित किया था, राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने वुहान को “हमारे द्विपक्षीय संबंधों की एक नई शुरूआत का बिन्दु” कहा था।
यह "वुहान भावना" तब स्पष्ट हुई जब प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने 26 जुलाई 2018 को चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग के साथ जोहान्सबर्ग में ब्रिक्स शिखर सम्मेलन के मौके पर मुलाकात की।
इस वर्ष के अंत में हमारे नेता जी-20 शिखर सम्मेलन में भी बैठक करेंगे। हम दिसंबर में चीन के विदेश मंत्री की भारत यात्रा का इंतजार कर रहे हैं।
आईसीडब्ल्यूए ने भारत-चीन संबंधों को मजबूत करने में भी अपनी भूमिका निभाई है।
मुझे याद है कि आईसीडब्ल्यूए को चीनी नेताओं, राष्ट्रपति शी जिनपिंग, राष्ट्रपति हू जिन्ताओ, प्रीमियर वेन जियाबाओ और प्रीमियर ली केकियांग द्वारा सार्वजनिक व्याख्यान की मेजबानी करने का अनूठा गौरव प्राप्त हुआ है।
दिनाँक 21 मई 2013 को आईसीडब्ल्यूए द्वारा आयोजित नई दिल्ली में अपने संबोधन में बोलते हुए, प्रीमियर ली केकियांग ने कहा: "अपने 70 वर्ष के इतिहास में, आईसीडब्ल्यूए ने अंतर्राष्ट्रीय मुद्दों और कूटनीति पर उत्पादक अध्ययन किए हैं।"
दिनाँक 18 सितंबर, 2014 को आईसीडब्ल्यूए द्वारा मेजबानी किए गए अपने विशेष संबोधन के दौरान, राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने नोट किया कि, ‘‘चीन और भारत को घनिष्ठ विकास साझेदार, विकास में अग्रणी सहकारी भागीदार और रणनीतिक वैश्विक साझेदार होना चाहिए’’।
जहाँ तक भारत-चीन संबंधों का संबंध है, आईसीडब्ल्यूए को अन्य प्रमुख जिम्मेदारियां भी सौंपी गई हैं।
तीसरे भारत-चीन थिंक-टैंक फोरम का आयोजन दिसंबर 2018 के दौरान भारत में किया जाना प्रस्तावित है। फोरम का आयोजन विश्व मामलों की भारतीय परिषद, तथा चाइनीज़ एकैडमी ऑफ सोशल साइन्सेस द्वारा किया जाएगा। फोरम एक द्विपक्षीय मंच है जिसकी स्थापना प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी के मई 2015 में चीन की यात्रा के दौरान, विदेश मंत्रालय, भारत तथा चाइनीज़ एकैडमी ऑफ सोशल साइन्सेस के बीच निष्पादित एक समझौता ज्ञापन के माध्यम से की गई थी।
अपनी टिप्पणियों को विराम देते हुए मैं प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी द्वारा (जून 2018 में) शांग्री ला संवाद में दिए संभाषण का उल्लेख करना चाहता हूँ, जिसमें उन्होंने कहा थाः ‘‘मुझे दृढ़ विश्वास है कि एशिया और विश्व का एक बेहतर भविष्य होगा जब भारत और चीन एक साथ भरोसे और आत्मविश्वास के साथ मिलकर काम करेंगे, और एक-दूसरे के हितों के प्रति संवेदनशील होंगे’’। यह वह संदेश है, जिसका हमें भविष्य में पालन करने की जरूरत है। यह द्विपक्षीय संबंधों को मजबूत करने के साथ-साथ हमारे आपसी लाभ के लिए विभिन्न क्षेत्रों में सहयोग को बढ़ाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कारक होगा।
धन्यवाद।